Monday, 3 November 2014

masti ki pathsala - 61

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-61
 वहाँ पहुँचते ही विजेंदर सारा माजरा समझ गया.. मुरारी रह रह कर उसकी और कुच्छ इशारा सा करने की कोशिश कर रहा था.. पर विजेंदर ने उसकी और देखा ही नही..
पूरी बात सुन्न'ने के बाद विजेंदर बोला..," तब तो आज आपको इसकी कस्टडी हमें देनी होगी.. हम दोनो को लेजाकर लड़की के बयान लिखवा लेते हैं.. अगर ज़रूरत पड़ी तो इसको सुबह कोर्ट में पेश कर देंगे.. आप वहाँ से इनकी कस्टडी ले लेना..
"ओके सर.. हम कल मिलते हैं....!" कहकर टफ ने विजेंदर से हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया ही था कि अब तक चुप चाप खड़ी शालिनी चीख उठी...," नही.. मैं इनके साथ नही जाउन्गि.. ये तो यही पड़े रहते हैं हमेशा.. इस कुत्ते के पास...!"
शरम के मारे विजेंदर की आँखें झुक गयी..," ऐसी बात नही है मेडम.. ड्यूटी ईज़ ड्यूटी.." उसने शालिनी को आसवस्त करने की कोशिश की...
" नही प्लीज़.. मुझे इनके भरोसे छ्चोड़ कर मत जाइए.. मेरे बयान यहीं लिख लीजिए और मुझे जाने दीजिए...
" देखो बेटी. ऐसा हो नही सकता है.. आपको थाने चलना ही पड़ेगा...!" विजेंदर ने अपने गले का थूक गटका..
टफ अब तक स्थिति को समझ गया था," क्यूँ नही हो सकते सर..? यहाँ बयान क्यूँ नही हो सकते..? क्या मैं जान सकता हूँ..?"
"इधर तो आओ यार एक बार.." विजेंदर ने टफ का हाथ पकड़ कर एक तरफ ले जाने की कोशिश की..
"नही.. मैं इधर उधर नही जाता... आप यहीं लड़की के बयान लिखिए और इसको जाने दीजिए.. आज मुरारी आप का मेहमान है.. जी भर कर खातिरदारी करना.. कल इसकी सारी दूध दही मैं बाहर निकाल दूँगा..." टफ ने अपनी पोलीस कॅप सिर पर रखते हुए अपने इरादों का परिचय दिया...
विजेंदर कुच्छ ना बोला.. और मुंशी को जीप से कागजात उठाकर लाने को कहा..," हां बोलिए मेडम.. क्या शिकायत है..." उसके बोल में रूखापन सॉफ झलक रहा था...
शालिनी के बयान लिखवाने के बाद टफ उसकी और मुखातिब हुआ..," तो शालिनी जी.. आप घर जा सकती हैं.. या हम आपको छ्चोड़ कर आयें..."
शालिनी सुबकने लगी... कुच्छ देर बाद संभाल कर बोली..," मेरा घर नही है.. मैं तो महिला आश्रम में रहती हूँ.."
"यार ये सारे किस्मत के मारे रोहतक में ही रहते हैं क्या.." टफ मंन ही मंन बुदबुडाया.. फिर प्रत्यक्ष में बोला," ओह्ह.. आइ मीन.. वहाँ छ्चोड़ देते हैं.. या कोई और प्राब्लम है..?"
" वहाँ से इनके लिए लड़कियाँ और औरतें भेजी जाती हैं.. वहाँ तो ये कुच्छ भी करा सकते हैं.." शालिनी ने नज़रें झुकाए हुए ही जवाब दिया..
टफ के जी मैं आया.. वहीं पर मुरारी का राम नाम कर दे.. पर आजकल वो क़ानून से कुच्छ ज़्यादा ही बँध गया था.. सीमा ने उसको कितना बदल दिया," साला कुत्ता!" कहते हुए टफ ने फोन निकाला और सीमा के पास फोन मिलाया..,"
" मिल गयी फ़ुर्सत तुम्हे.. सुबह से फोन लगा रही हूँ.. उठा क्यूँ नही रहे.." सीमा के बोल में प्यार और गुस्सा.. दोनों महक आ रही थी.. और दोनो बड़ी लाजवाब थी...
" तुम्हारी एक सहेली घर आ रही है.. अपनी तैयारी कर लेना.. बाद में मत कहना बताया नही.." टफ का इंस्पेक्टोरी लहज़ा गायब होकर 'म्याउ' हो गया
" क्या.. कौन.. कब?" सीमा ने चहकति हुई आवाज़ में जाने कितने सवाल दाग दिए...
" अभी रोहतक मैं हूँ.. करीब 2 घंटे लगेंगे.. आने में.. बाकी बाद में..."
"सुनो.. सुनो.. सुनो.." सीमा बोलती रह गयी और टफ ने फोन काट दिया...
" मेरे साथ मेरे घर चलने में तो कोई प्राब्लम नही है ना.. मेरी पत्नी भी यहीं से हैं.. रोहतक से..
शालिनी ने नज़रें उठाकर टफ को क्रितग्यता की द्रिस्ति से देखा.. किस्मत के मारे चेहरे पर खुशी की सहमति की हल्की सी मुस्कान उभर आई...
टफ ने विजेंदर से कंप्लेंट की रिसीविंग ली, कुच्छ और खाना पूर्ति की और ,"अच्च्छा तो जनाब.. हम चलते हैं.. जैहिन्द!" कहकर गाड़ी की और चल पड़ा..... शालिनी उसके पिछे पिछे चल दी और गाड़ी में बैठ गयी....
"यार... तुझसे एक मदद चाहिए थी..." विकी ने स्नेहा से अलग होते हुए टफ को फोन किया...
"बोल मेरे यार... जान दे दूँ???" टफ शालिनी को लेकर घर की और चला ही था...
"वो तूने न्यूज़ तो देखी ही होगी.. मुरारी कांड!" विकी ने अपना सिर खुजलाया... वो समझ नही पा रहा था बात कहाँ से शुरू करे!
"सच में यार.. मुरारी जैसे घटिया लोग कैसे राजनीति में बने रहते हैं.. इतना बकवास आदमी मैने आज तक नही देखा.. कल साले की अकल ठिकाने लगा दूँगा..!" टफ ने कहते हुए कनखियों से शालिनी की और देखा.. हालाँकि कपड़े चेंज करने के बाद वो काफ़ी हद तक नॉर्मल महसूस कर रही थी पर उसकी आँखें अब भी सहमी हुई थी.. दूध का जला छाछ को भी फूँक फूँक कर पीता है..
"अकल ठिकाने लगा देगा मतलब...??? तुम उसको पर्सनली जानते हो क्या?" विकी को उसकी बात कुच्छ अटपटी सी लगी...
"मैं ऐसे कुत्तों से इत्तिफाक नही रखता.... दरअसल उसका केस मुझे ही हॅंडोवर किया हुआ है....." और विकी ने टफ को बीच में ही रोक दिया," क्याअ????"
"हां.. उसकी चाँदी का माप मुझे ही लेना है... खैर छ्चोड़.. तू बता.. किसलिए फोन किया..?" टफ ने काम की बात पर आते हुए कहा...
"नही.. कुच्छ नही.. बस ऐसे ही याद कर लिया था... अच्च्छा अब रखता हूँ... बाहर कोई है शायद..." कहकर विकी ने तुरंत फोन काट दिया...
"अजीब आदमी है.. अब तो कह रहा था की कुच्छ काम है.." मंन ही मंन बड़बड़ाते हुए टफ ने गाड़ी अपने घर की पार्किंग में घुसा दी... वहाँ सीमा उनका बेशबरी से इंतज़ार कर रही थी...

अंदर जाने पर सीमा ने मुस्कुरकर शालिनी का स्वागत किया.. उसकी आँखें अतीत में जाकर सामने खड़ी उस हमउम्र लड़की को पहचान'ने की कोशिश करती रही.. दूसरी और शालिनी दरवाजे से अंदर जाकर नज़रें झुककर खड़ी हो गयी....
"अरे आओ ना.. अंदर आओ.. यहाँ बैठहो.. आराम से...
शालिनी चुपचाप सोफे पर बैठ गयी...
"क्या तुम मुझे जानती हो?" पानी का ग्लास शालिनी की और करते हुए सीमा ने पूचछा.. टफ कपड़े चेंज करने अंदर चला गया था....
शालिनी ने 'ना' में अपना सिर हिला दिया.. और सिर झुकाए ही रही...
सीमा असमन्झस में पड़ गयी.. कुच्छ देर बैठहे रहने के बाद वो 'एक मिनिट' कह कर अंदर चली गयी," हां जी.. मुझे तो ये आपकी सहेली लगती है कोई.. क्या चक्कर है? ना मैं इसको जानती हूँ.. और ना ये मुझे!" सीमा अपने कुल्हों पर हाथ रखकर शरारती अंदाज में मुस्कुराती हुई कपड़े बदल रहे टफ के सामने खड़ी हो गयी...
" बताता हूँ..." कहकर टफ ने अपनी पॅंट उपर की और रोहतक में जो कुच्छ घटा सब सीमा को बता दिया...
"ओह माइ गॉड..! आपने बहुत अच्च्छा किया जो इसको यहाँ ले आए.. कहकर सीमा टफ के गले लग गयी...
"आहा.. आराम से.. आदित्या का कुच्छ ख़याल है की नही.." टफ ने उसको बाहों में भर लिया...
"आदित्या नही.. वैशाली होगी.. मा को ज़्यादा पता होता है.. हां!" कहकर सीमा अलग हट कर नीचे झुक कर अपने हुल्के से उभरे हुए पेट को सहलाने लगी.. और एकद्ूम पलटकर बाहर चली गयी...
"आ अंदर बेडरूम में बैठते हैं.." सीमा ने शालिनी का हाथ पकड़ा और बेडरूम में ले गयी....

No comments:

Post a Comment