Monday, 24 November 2014

masti ki pathsala - 67

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-67
 उधर रिया ओर प्रिया की बात सुनते है वह दोनो इस टाइम क्या कर रही हैं
" रिया?"
"हूंम्म्म.." रिया ने किताब से नज़र हटा कर प्रिया की और देखा..
"मैने राज के साथ बहुत ग़लत किया ना?" प्रिया सारा दिन उदास बैठी रही थी.. स्कूल में भी.. घर में भी..
"अब भूल भी जा बात को.. कुच्छ नही होगा.. एक दो दिन में सब ठीक हो जाएगा.." रिया ने उसको दिलासा दी...
"मुझे नही लगता! वो मुझसे नफ़रत करने लगा है.. आज मेरी और क्लास में एक बार भी नही देखा.." प्रिया पागल सी हो गयी थी.. राज के लिए..
"अच्च्छा.. तुझे कैसे पता..?" रिया ने सवाल किया....
प्रिया उठकर रिया के पास आकर बैठ गयी," मैं आज सारा दिन उसी को देख रही थी.. एक अक्षर भी नही पढ़ा स्कूल में आज!"
" वीरेंदर आज स्कूल क्यूँ नही आया..?" रिया ने अपने वाले की बात छेड़ दी..
"अब मुझे क्या पता? राज से पूच्छ लेती.." प्रिया ने कहा...
"वो तो तुझे पूच्छना चाहिए था.. एक बात बटाओ?" रिया ने इस अंदाज में अपने होंटो को गोल करके कहा मानो वह बहुत बड़ा राज खोलने वाली है...
"क्या?" प्रिया गौर से उसके चेहरे को देखने लगी...
"वो लड़की जिसको हुमने आज सुबह खिड़की से देखा था... इनमें से किसी की भी बेहन नही हो सकती..!" रिया ने खुलासा किया..
"क्या कह रही हो.. तो फिर कौन हो सकती है..?" प्रिया के दिल पर साँप सा लेट गया..
"ये तो मुझे नही पता.. पर बेहन तो इनमें से किसी की है ही नही.. मुझे आज फॅमिली रेकॉर्ड वाला रिजिस्टर ऑफीस में रखकर आने को बोला था, सैनी सर ने.. मैने दोनो का रेकॉर्ड चेक किया था.. दोनो में से किसी की कोई बेहन नही है..!" रिया ने अपने विस्वास की वजह बताई....
"तुम कहना क्या चाहती हो? प्लीज़ मुझे डराव मत.." प्रिया जाने क्या सोचकर डर गयी थी..
"अच्च्छा हुआ.. जो मैं कहना चाहती हूँ.. तुम बिना कहे ही समझ गयी... जमाना बहुत खराब है प्रिया.. आज कल ये लड़के रूम्स पर गंदी लड़कियों को लाते हैं.." रिया ने तो प्रिया की साँस ही रोक दी..
"पर वो तो बहुत ज़्यादा सुंदर थी?" प्रिया ने भोलेपन से कहा...
"अरे मैं कॅरक्टरवाइज़ 'गंदी' बोल रही हूँ.. शकल सूरत से क्या होता है..? आज कल अच्छे घरों की लड़कियाँ भी उपर के खर्चे के लिए 'ग़लत काम' करती हैं.. तुमने कभी सुना नही क्या?" रिया अपने मन में जाने क्या क्या ख़याली पुलाव पका रही थी...
प्रिया ने सहमति में सिर हिलाया," हां... सुना तो है!... पर राज ऐसा नही हो सकता.. नही.. मैं नही मानती...मेरा राज ऐसा नही हो सकता!" प्रिया ने खुद को दिलासा देने की कोशिश की... पर उसका दिल बैठ गया था..
"तुम क्या कहना चाहती हो? वीरेंदर है ऐसा.. वो तो बिल्कुल नही हो सकता.. वो तो लड़कियों की तरफ देखता भी नही.." रिया ने अपने वाले का पक्ष लिया.. बातों ही बातों में वो भूल चुकी थी की उनकी बात सिर्फ़ शक और कल्पना पर शुरू हुई थी...
" तो राज भी ऐसा नही हो सकता.. उसकी गॅरेंटी मैं लेती हूँ..." प्रिया ने ताल ठोनकी..
"क्यूँ नही हो सकता.. वो इतना शरीफ भी नही है.. जितना तुझे लगता है.. तुझे एक बात बताऊं.. कल रात उसने मुझे चुटकी काटी थी.. यहाँ पर.. मैने तुझे ऐसे ही नही बताया..." रिया ने अपने पिच्छवाड़े पर हाथ लगाकर बताया...
प्रिया ये भूल गयी की कल रात उसने खुद को राज के सामने रिया बताया था..," नही.. तू झूठ बोल रही है.. हो ही नही सकता.. झूठ बोल रही है ना.. सच सच बता प्लीज़!"
रिया ने प्रिया के सिर पर हाथ रख दिया," सच्ची.. तुम्हारी कसम.. काटी थी..!"
"यहीं पर?" प्रिया ने अपने नितंबों को छ्छू कर कहा..
"हां!"
"तो तूने उसको थप्पड़ क्यूँ नही मारा.. मैं उसको छ्चोड़ूँगी नही.." प्रिया जलन के मारे उबल पड़ी....
"मम्मी बाहर खड़ी थी.. मैं बाथरूम में कपड़े लेने गयी.. तब की बात है.. बोल! मैं क्या बोलती..?" रिया ने तो प्रिया को रुला ही दिया... प्रिया बेड पर उल्टी लेट गयी.. और सूबक'ने लगी.. 4 दिन पहले का प्यार जाने कितने मोड़ ले चुका था.. कच्ची उमर का प्यार ऐसा ही होता है!

"चल आ खिड़की में से देखते हैं.. वो अभी भी यहाँ है की नही?" रिया ने प्रिया को उठाते हुए कहा...
"मुझे नही देखना किसी को.. अब क्या देखना रह गया है.. मैं उसको कितना अच्च्छा समझती थी..." प्रिया ने रिया का हाथ झटकते हुए कहा...
"मैं तो देख कर आउन्गि.. तुझे नही चलना तो मत चल..!" रिया ने कहा और ज़ीने में जाकर खड़ी हो गयी.. पर सामने वाली खिड़की बंद थी.. रिया वापस लौटने वाली थी की तभी प्रिया भी पीछे पीछे आ गयी..
"खिड़की बंद है.." रिया ने प्रिया की और मुड़ते हुए धीरे से कहा..

"रुक जा.. मैं खुल्वाति हूँ खिड़की.." गुस्से मैं जली भूनी आई प्रिया उपर से एक मोटा सा पत्थर का टुकड़ा लेकर आई और उसको धुमम से खिड़की पर दे मारा...

अंदर बैठे तीनो इस आवाज़ को सुनकर चोंक गये.. स्नेहा खिलखिलते हुए बोली," लो राज! तुम्हारा फिर से बुलावा आ गया.. आज नही जाओगे क्या..?" राज ने छेड़ छाड़ की बातें छ्चोड़कर सब कुच्छ उनको बता दिया था..
"देखो प्लीज़.. अब तो मेरा मज़ाक मत बनाओ.. तुमको बता दिया सब कुच्छ तो इसका मतलब ये तो नही..." राज उनके मज़ाक सुन सुन कर पक चुका था... वीरू की आँख लग गयी थी...
"सॉरी.. पर मैं देख तो लूं.. कैसी है तुम्हारी गर्लफ्रेंड.." कहते हुए स्नेहा बिस्तेर से उठी और खिड़की के सामने जाकर खिड़की खोल दी...
स्नेहा की दोनो लड़कियों से नज़र मिली.. एक बिना कोई भाव अपनी आँखों में लिए खड़ी थी.. और दूसरी फुफ्कार रही थी.. जैसे ही प्रिया ने स्नेहा को देखा.. उसने खिड़की में से गली की और थूका और उपर भाग गयी.. रिया भी उसके पिछे पिछे निकल ली..
"तुम बिल्कुल सही कह रहे थे राज.. दोनो हूबहू एक जैसी हैं.. तुम्हारी गर्लफ्रेंड कौनसी है.. गरम वाली.. की नरम वाली!" स्नेहा ने खिड़की बंद करते हुए राज से कहा...
"कोई नही है.. मेरी छ्चोड़ो.. तुम अपनी बात पूरी बताओ... गाड़ी बदल'ने के बाद क्या हुआ?" राज बड़े गौर से स्नेहा की कहानी सुन रहा था...
"ठंड रख यार.. ये सिर्फ़ हमारा वहाँ भी तो हो सकता है.. कल पूच्छ लेंगे उस'से..!" रिया ने सुबक्ती हुई प्रिया को दिलासा देते हुए कहा," मैं पूच्छ लूँगी कल.. वैसे भी अगर वो कोई ऐसी वैसी लड़की होती तो सामने थोड़े आती..."
"मैं एक बार चली जाउ?" प्रिया उठ कर बैठ गयी...
"कहाँ?"
प्रिया ने अपने आपको शांत करने की कोशिश करते हुए कहा," राज के पास... उनके कमरे पर.."
"व्हाट.. तुझे पता है तू क्या कह रही है?" रिया बिस्तेर से उच्छल पड़ी...
" हां पता है... वो इसी बात की धोंस जमा रहा है ना की वो मुझसे प्यार करता है... इसीलिए जान जोखिम में डाल कर रात को हमरे घर आ गया... मैं क्या उस'से प्यार नही करती.. मैं क्या जा नही उसके पास.. हिसाब बराबर हो जाएगा.. उसके बाद भी अगर उसने मुझे माफ़ नही किया तो मैं भी कभी उस'से बात नही करूँगी... मैं जाउ ना?" प्रिया ने रिया का हाथ अपने हाथों में लेते हुए पूचछा...
रिया से कुच्छ देर तो कुच्छ बोलते ही ना बना.. वा आँखें फाडे प्रिया को देखती रही.. फिर अचानक संभाल कर बोली," तू पागल है क्या? थोड़ी बहुत भी अकल नही बची क्या अब.. रात को दरवाजे से बाहर पैर रखने का मतलब पता है ना तुझे... काट के रख देंगे पापा.. तुझे भी.. और राज को भी.. ऐसी पागल बातें मत कर.. और आ चल कर सोते हैं.. मम्मी भी आने वाली ही होगी.. चल आजा.." रिया ने प्रिया का हाथ पकड़ कर उसको उठाया और अपने साथ बाहर खींच लिया.. दरवाजे को ताला लगाया और उसको हाथ पकड़े पकड़े ही नीचे ले गयी....
" आ गयी तुम.. मैं बस उपर आने ही वाली थी.. ज़्यादा शोर मत करना.. तुम्हारे पापा कल रात से सोए नही हैं.. उठ गये तो गुस्सा करेंगे...! जल्दी से अपना दूध ख़तम करो और सो जाओ!" मम्मी ने कहा और अपने बेडरूम में चली गयी... उनके पापा के पास!
"देख रिया.. आज पापा भी गहरी नींद में होंगे.. प्लीज़ जाने दे ना! ... मैं बस 5 मिनिट मैं आ जाउन्गि..." प्रिया ने उसके कान में धीरे से कहा...
"तू है ना.. अपने साथ साथ मुझे भी मरवाएगी.. देख प्रिया.. मेरे सामने ऐसी बात मत कर.. मुझे डर लग रहा है... सो जा चुपचाप!" कहकर रिया ने अपना दूध ख़तम किया.. और बिस्तर पर लेट गयी... प्रिया भी क्या करती.. बेचारी.. प्यार का भूत उसके सिर पर बुरी तरह सवार हो चुका था.. वह लेट तो गयी.. पर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी.. उसकी आँखों में तो अब राज बस चुका था..

करीब एक घंटा बीट गया.. घर की सब लाइट्स बंद थी.. प्रिया ने अपना सिर उठाकर रिया को देखा.. वह दूसरी और मुँह किए सो रही थी.. नींद में उसका नाइट स्कर्ट उसकी जांघों से कहीं ज़्यादा उपर उठा हुआ था.. पॅंटी उसके नितंबों से बुरी तरह चिपकी हुई थी.. ,"नालयक!" कहते हुए प्रिया ने उसका स्कर्ट नीचे खींच दिया.. प्रिया को राज के द्वारा रिया के नितंबों पर काटी गयी चुटकी याद आ गयी... वह बेचैन हो उठी.. खड़ी होकर बाथरूम में गयी और फिर बिना कुच्छ किए ही वापस आ गयी.. मम्मी पापा के बेडरूम का दरवाजा आराम से खोल कर देखा.. वो अंदर से बंद था..
प्रिया वापस लौट आई.. वह गहरी असमन्झस में थी.. समझ नही आ रहा था की करे तो क्या करे... अंतत: उसके ज़ज्बात उसके भय पर हावी हो गये.. चुपके से मैं गेट की चाबी उठाई और दबे पाँव बाहर निकल गयी...
आँगन में जाने के बाद उसने आँगन की लाइट्स ऑफ कर दी.. धीरे से ताला खोला और ताला दरवाजे में ही टँगे रहने दिया.. उसके हाथ पैर बुरी तरह काँप रहे थे.. एक पल को वापस मूडी.. राज और फिर भगवान को याद किया.. और सारे समाज और घर वालों के डर को दरकिनार कर देहरी लाँघ गयी.. इज़्ज़त की देहरी..

प्रिया ने घर से बाहर कदम रखा ही था की उसकी मम्मी जमहाई लेते हुए अपने बेडरूम से बाहर निकली... बाथरूम में जाकर आई और फिर प्रिया और रिया के बेडरूम में चली गयी.. देखा बेड पर अकेली रिया ही सो रही है..
"रिया... आ रिया.." मम्मी ने रिया को पकड़कर हिल्या.. रिया गहरी नींद में थी...," उम्म्म्मममममम.. क्या है?" वह कसमसाई और करवट बदलकर फिर से चित्त हो गयी...
"ऱियाआअ!" मम्मी ने उसको ज़ोर से झकझोरा...
" क्या है मम्मी.. सोने दो ना!" रिया ने नींद में ही कहा...
"प्रिया कहाँ है?" उसकी मम्मी चिंतित सी हो गयी थी..
"होगी.. बाथरूम में.. मुझे क्या पता..?" और अचानक ही रिया चोंक कर उठ बैठी.. उसको सोने से पहले की प्रिया की बात याद आ गयी... कहीं..?," बाथरूम में होगी मम्मी.. आप सो जाओ जाकर.." रिया काँप सी उठी.. अब क्या होगा.. अगर... उसने मन ही मन सोचा..
"बाथरूम की तो कुण्डी बंद है बाहर से.. कहाँ गयी कारामजलि.. मुझे तुम्हारे लक्षण अच्छे नही लग रहे कुच्छ दीनो से.. तुम फोन वोन तो नही रखती हो ना..?"
रिया ने मम्मी की बातों पर ध्यान ही नही दिया..," मम्मी.. वो उपर चली गयी होगी पढ़ने.. उसका काफ़ी काम बाकी था.. मैं देखकर आती हूँ.." कहकर रिया उपर भाग गयी.. मम्मी ने उसको रोकने की कोशिश भी की.. पर तब तक तो वो सीढ़ियों पर जा चुकी थी...
" इनको भी पढ़ने का टाइम ही नही पता.. जब देखो किताब खोलकर बैठ जाती हैं... अब देखो ना.. ये भी कोई पढ़ने का टाइम है भला...?" अंगड़ाई लेकर बाहर निकले अपने पति को देखकर वो बोली.... विजेंदर की नींद पूरी हो गयी थी.. शाम 6 बजे से ही सोया हुआ था वो...
"अरे भाई.. आजकल कॉंपिटेशन का जमाना है.. टाइम देखकर पढ़ेंगी तो पिछे नही रह जाएँगी भला....." विजेंदर ने कहा और अपनी बीवी के पास आकर बेड पर बैठ गया," पर इनको कह दो.. रात को उपर पढ़ने की कोई ज़रूरत नही है... अगर पढ़ना है तो यहीं पढ़ें.. नीचे...!"
" मैने तो जाने कितनी बार कहा है जी.. पर माने तब ना! कहती हैं.. टी.वी. की आवाज़ में डिस्टर्ब होती हैं.." मम्मी ने सफाई दी...
" तुम कभी पिछे जाकर देखती भी हो क्या? पढ़ती भी हैं या... चलो उपर चलते हैं..." विजेंदर यही समझ रहा था की दोनो अभी तक उपर पढ़ रही हैं.. उसको ये अहसास भी नही था की प्रिया सोने के बाद गायब हुई है.. और अब रिया उसको देखने गयी है...
" मेरे तो घुटनो में दर्द है जी.. मुझसे नही चढ़ा जाता बार बार उपर...." मम्मी ने कहा ही था की रिया नीचे आ गयी.. और पापा को वहीं बैठा पाकर सहम गयी..," व्व वो.. उपर ही ... है.. मम्मी.. अपना काम कर रही है.. अभी आ जाएगी.. 10 -15 मिनिट में..." रिया ने हकलाते हुए कहा.....
विजेंदर के पॉलिसिया दिमाग़ में रिया की बातों में गड़बड़ की बू आई..कुच्छ सोचते हुए.. वो खड़ा हुआ और बोला," आइन्दा से तुम दोनो नीचे ही पढ़ा करो.. टी.वी. नही चलेगा... और कहकर वापस अपने कमरे में चला गया," कुच्छ खाने को है क्या? भूख लगी है!"
" है जी.. अभी लाती हूँ.. आप बैठो.." कहकर उसकी मम्मी किचन में चली गयी...
"रिया बिस्तर पर बैठी बैठी काँप रही थी.. और दुआ कर रही थी की प्रिया जल्दी आ जाए.. और उसके मम्मी पापा को पता ना चले...
"अरे.. आज मैने दरवाजा खुला ही छ्चोड़ दिया..! किचन से आँगन का बल्ब जलते ही उसकी नज़र दरवाजे पर टँगे ताले पर पड़ी... वह बाहर गयी और दरवाजा लॉक करके वापस आ गयी.. रिया का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा...
उसकी मम्मी ने अंदर आकर चाबी स्लॅब पर रख दी थी.. रिया ने हिम्मत करके चाबी उठाई और मम्मी के बेडरूम में जाते ही ताला फिर खोल आई.. भाग कर...

उधर राज और वीरू सो गये थे.. स्नेहा अपने मोहन के ख़यालो में खोई हुई थी और जल्दी से सुबह होने का इंतजार कर रही थी.. दरवाजे पर हुई दस्तक से वह चौंक गयी.. बिस्तर से उठी और राज को उठाने की सोची...," इश्स वक़्त यहाँ मोहन के अलावा और कौन आ सकता है.." ये सोचकर वा खिल उठी और एकदम से जाकर दरवाजा खोल दिया....
सामने अपने सिर और चेहरे को चुननी से ढके प्रिया खड़ी थी.. दरवाजा खुलते ही वह भाग कर अंदर आ गयी और चुननी उतार दी... स्नेहा ने पहचान लिया..," प्रिया?"
प्रिया ने सहमति में सिर हिलाया और कमरे में नज़रें दौड़ाई.. राज ज़मीन पर बिस्तर बिच्छाए चैन से सोया पड़ा था..
"तुम कौन हो?" प्रिया सोचकर आई थी की जाते ही उस लड़की तो खबर लेनी ही है.. पर यहाँ तो डर के मारे उसकी आवाज़ ही मुश्किल से निकल पा रही थी...
"मैं इनकी बेहन हूँ.." स्नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा...
"किसकी..?" प्रिया ने कांपति हुई आवाज़ में पूचछा..
"दोनो की.. क्या तुम यही पूच्छने के लिए आई हो.. इतना डरी हुई क्यूँ हो.. आओ बैठहो..." स्नेहा ने प्यार से अपनी होने वाली भाभी के चेहरे को उसकी थोड़ी पर हाथ लगाकर उपर उठाया...
" पर ये तो सगे भाई नही हैं ना.. फिर तुम दोनो की बेहन कैसे हुई..?" प्रिया ने भोलेपन से पूचछा...
"क्या खून का रिश्ता ही रिश्ता होता है... सग़ी तो मैं इनमें से किसी की भी नही हूँ.. पर दोनो मेरे लिए अपनो से कहीं बढ़कर हैं... तुम बैठो ना.. मैं राज भैया को जगाती हूँ..!" स्नेहा ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी और खींचा...
प्रिया के दिल को बड़ी तसल्ली मिली.. ये सब सुनकर.. उसने तो यूँही जान आफ़त में डाल ली थी..," नही.. अब मैं जा रही हूँ.. घर वाले जाग गये तो..."
"प्लीज़.. सिर्फ़ एक मिनिट.." और स्नेहा जाकर राज को जगाने लगी... ," राज.. राज! देखो ना कौन आया है..?

राज हड़बड़ा कर उठ बैठा और जैसे ही उसने प्रिया को अपने कमरे में खड़े देखा वा उच्छल पड़ा.. एक बार को तो उसको अपनी आँखों पर विस्वास ही नही हुआ," तूमम्म????? यहाँ क्यूँ आई हो.. मतलब.. कैसे आ गयी? डर नही लगा..." राज ने खड़े होते हुए अपने कपड़ों को ठीक किया...

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