वापस आई तो उसके माथे पर पसीना झलक रहा था.. तृप्त होकर भी वह और 'प्यासी' होकर आई थी.. रिया ने अंदाज़ा लगा लिया.. पर बोली कुच्छ नही...
"एक बात बताऊं प्रिया.. अगर किसी से ना कहो तो..?"
" हां बोलो..." प्रिया आज पूरे सुरूर में थी..
" नही.. पहले प्रोमिसे करो...!"
"प्रोमिस किया ना.. बोल तो सही..." प्रिया ने जान'ने के लिए दबाव बनाया...
"मुझे..... वीरेंदर बहुत अच्च्छा लगता है...?" एक बात कहने के लिए रिया को दो बार साँस लेनी पड़ी...
"व्हाट..? और तूने आज तक नही बताया.. कभी बात भी हुई है क्या?" प्रिया को सुनकर बड़ी खुशी हुई.. अब वह भी अपने दिल का राज बता सकती थी...
" कहाँ यार.. बात क्या खाक होंगी.. वो तो सिर उठाकर भी नही देखता किसी की और.. और लड़कियों से तो वो बात ही तभी करता है जब उसको लड़ाई करनी हो....... इसीलिए तो अच्च्छा लगता है.." रिया अपने दिल में करीब एक साल से छिपाइ हुई बात को अपनी बेहन के साथ शेअर करके राहत महसूस कर रही थी.. उसके चेहरे पर सुकून सा था...
"हां यार.. ये तो सच है.. सभी लड़कियाँ उस'से बात करते हुए डरती हैं... बाइ दा वे.. तुम्हारी चाय्स बहुत अच्छि है.. पर इश्स खावहिस को दिल में ही रखना.. पापा का पता है ना...." प्रिया ने बिन माँगे सलाह दे डाली...
रिया मायूस सी हो गयी...," तुम बताओ ना.. क्या तुम्हे कोई अच्च्छा नही लगता..? सच बताना..."
"पता नही...." कहते हुए प्रिया लजा सी गयी.. उसके गुलाबी होंठ अपने आप तर हो गये.. और आँखों में एक अजीब सी चमक उभर आई.....
"ये तो चीटिंग है.. पता नही का क्या मतलब है.. बताओ ना...!" रिया ने उसके कंधे पकड़कर उसको ज़ोर से हिला दिया...
"अब दो दिन में मुझे क्या पता.. आगे क्या होगा.. अगर इसी तरह फाइल माँग माँग कर गायब होता रहा तो मेरी नही बन'ने वाली.." प्रिया ने मुस्कुराते हुए रिया को अपनी बाहों में भर लिया.. छातियो के आपस में टकराने से दिल के अरमान जाग उठे...
"ओह माइ गॉड! इट्स राज.. मैं जानती थी.. वो बिल्कुल तुम्हारे टाइप का है प्रिया.. झेंपू सा.. हे हे हे..!" रिया उस'से अलग होते हुए बोली...," अगर तुम्हारी फाइल अभी मिल जाए.. तो तुम उस'से नाराज़ नही होवॉगी ना...!"
"अभी?.... कैसे...?" वो मेरा काम है.. पर शर्त ये है की कल स्कूल में तुम खुद उस'से बात करोगी... बोलो मंजूर है.." प्रिया की हन से ही तो रिया के रास्ते खुलने तहे.. राज के मद्धयम से वह वीरेंदर के दिल तक जा सकती थी...
"पर बताओ तो कैसे..? आज फाइल कैसे मिल सकती है...?"
"वो मुझ पर छ्चोड़ दो.. तुम सिर्फ़ हां बोलो"
"हां" प्रिया ने बिना सोचे समझे तपाक से हां बोल दिया... आख़िर उसको भी तो बहाना मिल रहा था... 'शर्त' के बहाने तीर चलाने का...
"बस एक मिनिट..!" रिया एक दम से उठकर गयी और एक कॉपी और पेन उठा लाई..
"इसका क्या करोगी...?" प्रिया ने हैरान होते हुए पूचछा..
"तुम अब बोलो मत.. मेरा कमाल देखो.." और रिया लिखने लगी...
"हाई राज!
आप जो फाइल लेकर गये थे.. मुझे उसकी सख़्त ज़रूरत है... वो मुझे चाहिए.. तुम आज स्कूल भी नही आए.. सारा दिन तुम्हारी राह देखती रही... प्लीज़ उसको गेट के नीचे से अंदर सरका देना.. मैं उठा लूँगी...
आज स्कूल क्यूँ नही आए.. कल तो आओगे ना...
तुम्हारी दोस्त,
प्रिया!"
"हे.. तुमने मेरा नाम क्यूँ लिखा.. अपना लिखो ना.. और इसका करोगी क्या अब..?" प्रिया का दिल जोरों से धक धक कर रहा था.. किसी अनहोनी की आशंका से...
"डोंट वरी डार्लिंग.. बस मेरा कमाल देखती जाओ... एक बार पापा को देख आओ.. सो गये या नही......
प्रिया नीचे जाकर आई...," पापा तो आज आए ही नही.. मम्मी कह रही थी.. आज थाने में ही रहेंगे.. वो मुरारी पकड़ा गया है ना..."
"श.. थॅंक्स मुरारी जी! अब कोई डर नही.." रिया खुशी से उच्छल पड़ी....," तुम भी आ रही हो क्या? खिड़की तक..."
"ना.. मुझे तो डर लग रहा है.. तुम्ही जाओ..." प्रिया का दिल गदगद हो उठा था.. कम से कम बेहन से तो अब वो दिल की बात कर सकती है...
रिया करीब 2 मिनिट खिड़की के पास खड़ी रही.. जैसे ही राज ने उसकी और देखा.. रिया ने अपना हाथ हिला दिया..
राज का तो बंद ही बज गया.. उसको अपनी आँखों पर विस्वास ही नही हुआ.. आँखें फाड़ कर खिड़की की और देखने लगा...
रिया वापस छत पर गयी.. एक पत्थर ढूँढा और कागज को उसपर लपेट दिया.. राज को सिर्फ़ रिया दिखाई दे रही थी जिसको वो प्रिया समझ रहा था.. उसके हाथ में पकड़ी चीज़ उसको नज़र नही आई...
रिया ने खिड़की से हाथ बाहर निकाला और निशाना लगाकर दे मारा.. इसके साथ ही वो पिछे हट गयी..
किस्मत का ही खेल कहेंगे.. हवा में फैंकने के साथ ही पत्थर पर लिपटा कागज हवा में ही रह गया और पत्थर जाकर राज वाली खिड़की से जा टकराया...
रिया उपर भाग गयी....
"ओये वीरू.. देख.. प्रिया ने पत्थर फैंका..." राज खुशी से नाच उठा..
"क्यूँ? तेरा सिर फोड़ना चाहती है क्या वो..? तू पागल हो गया है बेटा.. ये तुझे कहीं का नही छ्चोड़ेंगी.. पिच्छली बार टॉप किया है ना.. लगता है अगली बार ड्रॉप करेगा.. चुप चाप पढ़ ले.. तुझे लड़कियों की फ़ितरत का नही पता.. बहुत भोला है..!" वीरू ने फिर से किताब में ध्यान लगा लिया...
"यार, तू तो हमेशा ऐसी बात करता है जैसे दिल पर बहुत से जखम खाए बैठा हो.. इतना भी नही समझता.. वो मुझे परेशान कर रही है.. मतलब वो भी....." राज को वीरेंदर ने बीच में ही टोक दिया," हां हां.. वो भी.. और तू भी.. दिल के जखम तुम्हे ही मुबारक हों बेटा.. ऐसी कोई लड़की बनी ही नही जो मुझे जखम दे सके.. तुम जैसे आशिकों की हालत देखकर ही संभाल गया हूँ.. मैं तो...
राज और वीरेंदर में बहस जारी थी.. उधर प्रिया रिया को 2 बार नीचे भेज चुकी थी.. फाइल देखकर आने के लिए.. एक बार खुद भी आई थी.. पर हर बार राज उन्हे वहीं बैठा मिला.. उसका ध्यान अब भी बार बार खिड़की पर लगा हुआ था..
"ओहो यार.. एक ग़लती हो गयी.. हमने ये लिख दिया की कल तो आओगे ना.. कहीं उसने ये तो नही समझा की अगर कल ना आए तो रखनी है..." रिया ने आइडिया लगाया..
"हां.. मुझे भी यही लगता है.. नही तो अब तक तो रख ही देता.." प्रिया ने भी सुर में सुर मिलाया...
"ठहर.. एक और कागज खराब करना पड़ेगा.. डोंट वरी.. मोहब्बत और जुंग में सब जायज़ है.. हे हे.." और रिया उठकर एक बार फिर से कॉपी और पेन उठा लाई... आज उसकी आँखों में नींद थी ही नही... नही तो कब की लुढ़क चुकी होती...
"राज!
यार मुझे बहुत...."
"आ.. यार काट दे.. दोबारा लिख..." प्रिया ने कहा...
"ओक.. नो प्राब्लम.." रिया ने फिर से लिखना शुरू किया...
"राज!
अभी आ जाओ ना प्लीज़.. बहुत ज़रूरी है.. मैं रिया को नीचे भेज रही हूँ.....
आइ आम वेटिंग
तुम्हारी दोस्त
प्रिया
"पर यार.. तू समझता क्यूँ नही है.. वो ऐसी नही है.. बाकी लड़कियों की तरह... कितनी प्यारी है..!" राज वीरेंदर को किसी भी तरह से सहमत कर लेना चाहता था.. इश्स तनका झाँकी को दोस्ती के रास्ते पर ले जाने के लिए.. ," कुच्छ भी हो जाए.. मैं कल उस'से बात करके रहूँगा.. देख लेना!"
"उस दिन तो तेरी फट रही थी.. फाइल माँगते हुए.. कल कौनसा तीर मारेगा..? फिर कह रहा हूँ.. ये ......"
"ओये.. फिर आ गयी.. लगता है अब फिर पत्थर उठा कर लाई है... आज तो मेरा काम करके रहेगी.." अब की बार राज ने भी खिड़की की ओर हाथ हिला दिया.. बहुत ही खुस था वो...
अब की बार पत्थर सीधा उनके कमरे के अंदर आया.. शुक्रा था राज चौकन्ना था.. वरना सिर पर ही लगता..," अरे.. इससपर तो कागज लिपटा हुआ है.."
"उठा ले.. आ गया लव लेटर.. तेरे लिए... हो गयी तमन्ना पूरी.. अब तू गया काम से...." वीरू ने पत्थर पर लिपटे कागज को गौर से देखा...
तब तक राज कागज को पत्थर समेत लपक चुका था.. जैसे ही उसने कागज को खोला.. उसका दिल धड़क उठा... ये तो कमाल ही हो गया.. उसने तो सीधे सीधे घर पर ही बुला लिया था.. वो भी अभी.. रात को.. ओह माइ गॉड! मुझे नही पता था की 'वो' ऐसी लड़की है.. राज मॅन ही मॅन सोच रहा था...
"क्या हुआ..? ऐसा क्या लिखा है उसने..? कहाँ खो गया?" वीरेंदर ने उत्सुकता से पूचछा...
"क्कुच्छ नही.. ऐसे ही.. ये तो वैसे ही है.. कुच्छ पुराना लिखा हुआ है..!" राज उसको उलट पुलट कर देखने का नाटक करते हुए बोला...
"फिर उसको बीमारी क्या है..? कल स्कूल में देखता हूँ..." वीरेंदर को उसकी बात पर विस्वास हो गया था..
"क्यूँ तुझे क्या प्राब्लम है..? मदद नही कर स्सकता तो कम से कम रोड़ा तो मत बन.." राज ने वीरेंदर को बोला...
"ठीक है बेटा.. ये गधे के दिन सबके आते हैं.. तेरे भी आ गये.. पर रोड़ा मैं नही.. वो रोड़ा फैंकने वाली बन रही है... 2 घंटे से देख रहा हूँ.. तू किताब के उसी पेज को खोले बैठा है....
"तू तो बुरा मान गया यार.. मेरा ये मतलब नही था.. चल ठीक है.. मैं थोड़ा बाहर घूम आता हूँ.. माइंड फ्रेश हो जाएगा.. उसके बाद पढ़ता हूँ..." राज ने बेड से उठहते हुए कहा...
"माइंड फ्रेश तो ठीक है.. पर ये रात को कंघी.. ये क्या चक्कर है..?" वीरू ने उसको घूरते हुए पूचछा....
"थोडा आगे तक जाकर अवँगा.. कोल्डद्रिंक्स भी ले आता हूँ.." शर्ट डालते हुए राज वीरेंदर की और मुस्कुराया....
"चल ठीक है.. दूध भी ले आना.. जल्दी आना.." वीरेंदर को उसकी बात से तसल्ली हो गयी...
"तू कितना प्यारा है यार..? दिल करता है तेरी चुम्मि ले लूँ.. हे हे हे.." राज ने मज़ाक में कहा तो वीरेंदर खिल खिलाकर हंस पड़ा," अब मक्खानबाज़ी मत कर.. जल्दी आना.. सच में यार.. तूने तो पढ़ना ही छ्चोड़ दिया है..."
"डोंट वरी भाई.. मैं सब संभाल लूँगा.." कहकर राज कमरे से बाहर निकल गया...
"ए प्रिया.. वो अब वहाँ नही है.. तेरी फाइल आने ही वाली है.. कल के लिए तैयार हो जाना.. याद है ना.. क्या शर्त थी..." रिया उपर जाकर चहकते हुए प्रिया से बोली...
"हाँ हाँ.. सब याद है.. खाँमखा प्रोमिस कर दिया.. छ्होटी सी बात के लिए.. ये तो मैं ही ना कर देती..." प्रिया मुस्कुराइ... वो बहुत खुश लग रही थी....
रूम से बाहर निकल कर राज ने 'वो' कागज निकाल लिया जिसमें प्रिया ने उसको अपने पास आने का निमंत्रण भेजा था.. वो भी अभी.. रात को... राज के लिए सब कुच्छ सपने जैसा था.. ऐसा सपना जिसमें कोई ना कोई तो 'कड़ी' थी ही.. जो बीच से टूटी हुई थी.. और वहीं पर राज का दिमाग़ अटका हुआ था..
'अगर वो शरीफ लड़की है तो मुझे क्या किसी को भी यूँ बुला नही सकती.. और फिर मेरी और उसकी जान पहचान ही क्या है.. सिर्फ़ 'फाइल' ही तो माँगी थी..' उधेड़बुन में फँसे राज ने वो कागज का टुकड़ा.. एक बार फिर निकाल लिया और दोबारा पढ़ने लगा...
"राज!
अभी आ जाओ ना प्लीज़.. बहुत ज़रूरी है.. मैं रिया को नीचे भेज रही हूँ.....
आइ आम वेटिंग
तुम्हारी दोस्त
प्रिया
'कमाल है.. इसमें ना तो कोई काम ही लिखा हुआ है.. और ना ही कोई वजह बताई गयी है.. फिर वो मेरा इंतजार कर किसलिए रही है.. क्या उसको किसी ने बता दिया है की मैं उसपर मरता हूँ... नही! ये कैसे हो सकता है..? वीरेंदर के अलावा कोई ये बात जानता ही नही.. फिर?????' राज का दिमाग़ चकरा रहा था पर दिल उच्छल रहा था.. दिमाग़ उसको धैर्या रखने को कह रहा था तो दिल कुच्छ कर गुजरने को बावला हुआ जा रहा था...
'क्या किया जाए?' अपने मकान के दरवाजे पर खड़ा होकर राज प्रिया के घर की छत को निहारने लगा... वहाँ काफ़ी अंधेरा था.. इसीलिए वह किसी को भी खड़ा दिखाई नही दे सकता था... प्रिया के घर दरवाजे से अंदर घुसना तो लगभग असंभव ही था.. पर साथ सटे हुए घर की सीढ़हियाँ उसके आँगन से शुरू होकर छत तक जाती थी.. पर उस घर के आँगन में लाइट जल रही थी.. दीवार फांदकर घुसना ख़तरनाक हो सकता था.. 'नही.. नही जा सकता' ऐसा सोचकर राज ने कागज के टुकड़े टुकड़े करके वही फैंक दिया और कोल्डद्रिंक लाने के लिए चल दिया.. एक लंबी गहरी साँस छ्चोड़कर....
हालाँकि राज ने ना जाने का पूरा मॅन बना लिया था.. पर फिर भी जाने क्यूँ वा बार बार पिछे मुड़कर देख रहा था.. छत तक जाने का रास्ता...
कहते हैं.. 'जहाँ चाह; वहाँ राह..' और राह मिल गयी.. थोड़ा सा रिस्क ज़रूर था.. पर मोहब्बत में रिस्क कहाँ नही होता...
साथ वाले घर से आगे निकलते हुए राज को उस घर की चारदीवारी के साथ खाली प्लॉट में एक भैंसा दिखाई दिया.. वो बैठा हुआ मस्ती से जुगली कर रहा था.. उसको क्या पता था की वो आज रात को दो प्यार करने वालों के बीच की 'दीवार' लाँघने का साधन बन'ने वाला है.. उसके उपर बैठ कर राज सीधा 'ज़ीने' में कूद सकता था.. और प्रिया के साथ वाले घर की छत तक बिना किसी रुकावट के पहुँचा जा सकता था... यानी आधी प्राब्लम सॉल्व हो जाने थी...
"चल बेटा.. खड़ा हो जा.." राज ने उसको एक लात मारी.. और बेचारा भैंसा.. बिना किसी लाग-लपेट के खड़ा होकर दीवार के साथ लग गया...
"शाबाश.. आ हैईन्शा.." और राज उसके उपर जा बैठा...
अब तक बिल्कुल शांत खड़े भैंसे को राज की ये हरकत गंवारा नही हुई.. और लहराती हुई उसकी पूंच्छ.. राज के चेहरे पर आ टकराई..
"अफ.. साले.. गोबर चिपका दिया.. क्या जाता है तेरा.. एक मिनिट में.." और फिर एक पल भी ना गँवाए राज ने उच्छल कर अपने हाथो से 'ज़ीने' की दीवार थाम ली.. फिर लटकते हुए उसने ज़ोर लगाया और अगले ही पल वो 'ज़ीने' में था...," श..! राज का दिल कूदने के साथ ही धक धक करने लगा.. यहाँ से अब अगर वो किसी को भी दिख जाता तो बड़ी मुसीबत आ जानी थी...
साथ वाले घर में उपर कोई कमरा वग़ैरह नही था.. राज बिना देर किए फटाफट छत पार करके प्रिया के घर के साथ जा चिपका.. उसकी साँसे बुरी तरह उखड़ गयी थी.. जिस तरह और जिस हालत में वो यहाँ था.. ऐसा होना लाजिमी ही था.. अपनी धड़कनो पर काबू पाना उसके लिए मुश्किल हो रहा था...
यहाँ से उसको प्रिया और रिया के धीरे धीरे बोलने की आवाज़ें आ रही थी.. वहाँ से आगे करीब 6 फीट ऊँची दीवार को लाँघना 6 फीट के ही राज के लिए कोई मुश्किल काम ना था... राज ने कुच्छ देर ऐसे ही खड़ा रहकर अपनी साँसों को काबू में किया.. और आख़िरी दीवार भी लाँघ गया.. वहाँ से साथ वाले कमरे में ही प्रिया और रिया उसकी ही बातों में व्यस्त थी...
पर बातें सुन'ने का टाइम किसके पास था.. उसका तो 'बुलावा' आया था ना; फिर वो क्यूँ और किस बात का इंतज़ार करता.. बिना एक भी पल गँवायें राज तपाक से कमरे में घुस गया...
अपने सामने यूँ अचानक 'लुटेरों' की शकल बनाए राज को देखकर प्रिया सहम गयी.. डर के मारे उसकी तो साँस ही गले में अटक गयी.. रिया की तो चीख निकल गयी... हंगामा हो जाना था.. अगर प्रिया समय से पहले ही स्थिति भाँप कर उसके मुँह को अपने हाथ से ना दबा देती तो..
"तूमम.. यहाँ.... यहाँ क्या करने आए हो?" सहमी हुई प्रिया के गले से अटक अटक कर बात निकल रही थी...
"तुमने ही तो बुलाया था..." राज गले का थ्हूक गटक कर अपनी शर्ट की आस्तीन नीचे करते हुए बोला.. डरा हुआ वह भी था..
"भाग जाओ जल्दी.. सब मारे जाएँगे.. मम्मी जाग रही है.." प्रिया धीरे से हड़बड़ाहट में बोली...
"अजीब लोग हो तुम भी.. पहले बुलाते हो.. फिर बेइज़्ज़ती करते हो.. पता है कितना जोखिम उठा के आया था.." राज खिसिया सा गया था.." अजीब मज़ाक किया तुम दोनो ने आज मेरे साथ.." कहकर वो वापस पलटा तो अब तक चुपचाप खड़ी रिया बोल पड़ी...," नही, रूको राज... एक मिनिट.. तुम यहीं ठहरो.. मैं मम्मी को देखकर आती हूँ..." कहकर रिया कमरे से बाहर निकली और तुरंत ही वापिस पलटी," इस बेचारे का चेहरा तो धुल्वा दो..!" कहकर अपनी बत्तीसी निकाली और नीचे भाग गयी...
"क्यूँ? मेरे चेहरे को क्या हुआ.." कहते हुए राज ने अपने चेहरे को हाथ लगाया तो चिपका हुआ गोबर उसके हाथो को लग गया..," ओह्ह... वो.. भैंसे की पूंच्छ..." फिर रुक-कर अचानक इधर उधर देखने लगा....
"बाथरूम इधर है.. प्रिया उसकी शकल देखकर मुश्किल से अपनी हँसी रोक पा रही थी.. इश्स कोशिश में उसने अपने निचले होंठ को ही काट खाया था.."
"ओह्ह.. थॅंक्स.." कहकर वह बाथरूम में घुस गया....
बाहर आते ही उसने सीधा सा सवाल किया..," मुझे क्यूँ बुलाया था यहाँ..?"
"हमने?... हमने कब बुलाया था.." सामान्य होने के बाद भी प्रिया की आवाज़ नही निकल पा रही थी.. वह अभी तक एक तरफ खड़ी थी.. अपने हाथ बाँधे हुए.. और लगातार राज से नज़रें चुरा रही थी.. कभी इधर देखती.. कभी उधर.. ना खुद बैठही और ना ही राज को बैठने को कहा...
"तो?.. वो पत्थर क्यूँ मार रहे थे.. तुम.. मेरा सिर फोड़ने के लिए..?" प्रिया को हिचकिचाते देख राज 'शेर' हो गया.. खैर उसका गुस्सा जायज़ भी था.. बेचारा कितने बॉर्डर पार करके जो आया था..
"वो.. वो तो.. हमने फाइल माँगी थी.... गेट के नीचे से डालने को बोला था.. ले आए फाइल..?" प्रिया ने आख़िरी शब्द बोलते हुए एक बार राज को नज़र उठाकर देखा.. पर उसको अपनी ही और देखते पाकर तुरंत ही नज़र फिर से झुका ली...
"कब बोला था.. फाइल के लिए...? मुझे तो यहाँ आने के लिए बोला था... और वो भी अभी!" वैसे तुम रिया हो या प्रिया..?" राज तो प्रिया के लिए ही आया था........
"प्रिया..... तुम्हे कौन चाहिए..?" जाने कितनी हिम्मत जोड़ कर प्रिया ने ये व्यंग्य कर ही दिया...
"मुझे कुच्छ नही चाहिए.. बस ये बताओ.. यहाँ बुलाया क्यूँ?" राज भी अब तक सामान्य हो गया था..
"कहा नाअ..." प्रिया ने अब की बार सीधा उसकी नज़रों में झाँका था.. इसीलिए आगे बोल नही पाई...
राज भी अपने मंन की बात कह ही देना चाहता था.. और आज मौका भी था.. और मौसम भी..," एक बात बोलूं.. प्रिया.. मैने आज तक किसी लड़की से बात तक नही की है.. पर.. तुमने बुलाया तो खुद को रोक ही नही पाया.. तुम मुझे बहुत अच्छि लगती हो.. मेरा तो पढ़ना लिखना ही छ्छूट गया है.. जब से तुम्हे देखा है... कहते हुए राज हूल्का सा उसकी और बढ़ गया.. ऐसा करते ही प्रिया ने भी घबराकर अपने आपको उतना ही पीछे खींच लिया.. राज से दूर..!
"क्या बात है..? मैं तुम्हे अच्च्छा नही लगता क्या?" राज थोड़ा सा और आगे बढ़ गया...
"नही.. म्म्मेरा मतलब है.. ऐसी बात नही है.. ववो.. आने ही वाली होगी..!" प्रिया सिमट सी गयी.. अब पिछे हटने की जगह नही बची थी.. वह चाहकर भी उपर नही देख पा रही थी...
राज समझ रहा था कि अगर बुलाया है तो प्यार तो करती ही होगी.. पर बोलने से डर रही है.. 'लड़की' है ना...," मैं तुमसे प्यार करता हूँ प्रिया.. तुम्हारी वजह से इतना बड़ा रिस्क लेकर आया हूँ.. अब तुम भी बता ही दो ना.. तुम्हे मैं अच्च्छा लगता हूँ या नही.. कहते हुए राज थोड़ा और आगे सरक आया..
प्रिया कुच्छ ना बोली.. बस बचाव की मुद्रा में आ गयी.. उसको इस ख़याल से ही इतना डर लग रहा था कि कहीं राज उसको छ्छू ना ले.. कितनी नाज़ुक थी.. बेचारी.. कितनी मासूम!
"बोलती क्यूँ नही..?" राज ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया.. प्रिया थर थर.. काँपने लगी....," मैं प्रिया नही हूँ... रिया हूँ.."
"ओह्ह.. पहले क्यूँ नही बताया.. सॉरी.." राज को जैसे बिजली का झटका लगा हो.. जितनी दूर पहले था.. पालक झपकते ही उस'से भी ज़्यादा दूर जाकर खड़ा हो गया..," सॉरी.. प्लीज़ किसी को मत बताना.. मैने आपसे जो कहा है.. उसकी पिटाई हो जाएगी... वो लेटर भी नही लिखा था उसने.. मैं तो ऐसे ही झूठ बोल रहा था.." राज को लगा इसको लेटर के बारे में शायद पता नही होगा...
राज की ये बातें सुनकर प्रिया मंन ही मंन उच्छल रही थी... कितनी सोचता है.. मेरे बारे में... फिर प्रत्यक्ष में रिया बनकर बोली..," मुझे सब पता है.. वो लेटर हमने मिलकर ही लिखा था.. और उसको तुम अच्छे भी बहुत लगते हो.. पर वो आसानी से ये बात स्वीकार नही करेगी.. वो तुमसे प्यार करती है.. और शायद आज के बाद तो तुम्हे कभी भूल ही नही पाएगी.."
"क्यूँ.. आज ऐसा क्या हुआ..?" राज प्रफुल्लित हो उठा..
"आज तुमने यहाँ आने का इतना बड़ा साहस किया.... तुम बहुत अच्छे हो राज.. बहुत प्यारे हो..." प्रिया एक ही साँस में कह गयी...
"पर मैं अगर उसके मुँह से ये सब सुनता तो बहुत अच्च्छा लगता..." राज ने 'प्रिया' के इंतज़ार में दरवाजे की और देखा...
"अभी तो तुम जाओ.. कल स्कूल में मैं.. मतलब मैं उसको बोल दूँगी.. वो तुमसे बात कर लेगी...."
प्रिया ने अपनी बात पूरी भी नही की थी की रिया नीचे से लगभग भागती हुई वापस आई," मम्मी.. मम्मी आ रही हैं उपर... !"
राज दरवाजे की और बढ़ा तो रिया ने वापस धकेल दिया..," बाथरूम में छिप जाओ.. उपर आ चुकी हैं मम्मी.."
असमन्झस में खड़ा राज यकायक बाहर किसी के कदमों की आहत सुनकर बाथरूम में घुस गया..
"क्या बात है.. आज सोना भी है या नही.. तुम दोनो को.. कब से उपर नीचे भागती फिर रही हो.. चलो नीचे.. चलकर सो जाओ..."
"आ रहे हैं मम्मी.. बस 5 मिनिट और.. आप चलिए..."रिया ने कहा...
"बहुत हो गये 5 मिनिट.. 12 बजने वाले हैं.. जल्दी उठकर नीचे भागो.." मम्मी ने किताबें उठाकर टेबल पर रख दी..," वो तुम्हारे कपड़े कहाँ हैं.. मशीन में डाल देती हूँ.. सुबह धोने हैं.. " कहकर वो बाथरूम की और चल दी...
"मैं देती हूँ मम्मी..." रिया झटके के साथ अपनी मम्मी से आगे बाथरूम में घुस गयी.. दोनो पसीने से भीग गयी थी...
रिया ने कपड़े लेकर चलते हुए राज की और हल्के से मुस्कुरकर देखा तो राज ने उसके नितंबों पर चिकोटी काट ली... रिया ने एकद्ूम घूर कर देखा.. पर वक़्त था नही.. हिसाब बराबर करने का.. सो बाथरूम की चितकनी बंद करते हुए बाहर निकल गयी.. उसको पता था.. वो नही करेगी तो उसकी मम्मी करेगी....
"चलो अब नीचे..!"
"आप चलिए ना मम्मी जी.. हम आ रहे हैं बस..!" प्रिया बोली...
"नही पहले तुम चलो.. 5 मिनिट की कहकर घंटा लगा देती हो.. सुना नही क्या?" मम्मी ने जब घूर कर बेड पर बैठही रिया को देखा तो उनकी हिम्मत ना हुई आगे कुच्छ बोलने की.. दोनो मम्मी के आगे आगे चल दी...
बेचारा राज! बाथरूम से निकालने का रास्ता ढूंढता रह गया....
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