Tuesday, 30 September 2014

masti ki pathsala - 39

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-39
 और कमाल हो गया.... करीब आधे घंटे बाद वही चमचमाती हुई गाड़ी थाने के बाहर आकर रुकी जिसमें निशा सुबह बैठकर आई थी.

लगभग सारा स्टाफ ही राका को जानता था.. लोकल सेलेब्रिटी जो थे... एस.एच.ओ. साहब ने उनसे हाथ मिलाया और पूचछा.. "कैसे आना हुआ भाई साहब!"

राका उनका हाथ पकड़े पकड़े ही उनके रेस्ट रूम में चला गया....," ये लड़की जो आपकी कस्टडी में है.. मेरी दूर की जान पहचान वाली है.. उसको छ्चोड़ देंगे प्लीज़!"
एस.एच.ओ. भी कोई कच्चा खिलाड़ी तो था नही.. समझता था की कौनसी दूर की जान पहचान हो सकती है.. पर पंगा कौन ले; हुल्के से राका का हाथ दबाया," अरे फोन कर दिया होता भाई साहब... हमें क्या पता था..... और सुनायिये क्या लेंगे..?"
"थॅंक्स.. बट अभी ज़रा जल्दी में हूँ... फिर कभी.." राका नज़रें चुरा रहा था.. जाने थानेदार क्या सोचता होगा...
"नो प्राब्लम.. आप लड़की को लेकर जा सकते हैं... कहो तो लड़के की थुकाइ करवा दूं...." थानेदार ने मस्के लगाने की कोशिश की...
"नही प्लीज़... हमारे जाने के बाद उनको छ्चोड़ देना... बाकी जैसे तुम चाहो... अब चलूं?"

"ओके.. बाइ.. कभी काम पड़े तो याद करना भाई साहब......."

"बाइ.. नाइस टू मीट यू!" कहकर राका बाहर निकला तो निशा भी उसके पिछे पिछे आ गयी.. बिना कहे ही आगे वाली खिड़की खोली और राका के पास जा बैठी.. वह समझ नही पा रही थी की उसके अहसान का बदला कैसे चुकाए......

"अब क्या है? अब कहीं और छ्चोड़ कर आना है क्या?" राका ने रूखे स्वर में उत्तर दिया....
निशा फफक फफ्ख कर रो पड़ी.... राका ने कुच्छ पल उसको निहारा और फिर गाड़ी स्टार्ट करके दौड़ा दी........


गर्ल्स स्कूल पार्ट --28

गाड़ी शहर के भीड़-भाड़ वाले इलाक़े से धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी. राका की चुप्पी अंदर ही अंदर निशा को और शर्मिंदा कर रही थी.. पर खुद बोले भी तो क्या बोले! अपनी मोटी नशीली आँखों को तिरछा कर कयि बार कनखियों से निशा ने राका को देखा.. उसके चेहरे पर रूखापन था... निशा का दिल बार बार राका को सॉरी बोलने को कर रहा था, पर हिम्मत उसका साथ नही दे रही थी....

बस-स्टॅंड जाकर राका ने पार्किंग में ले जाकर गाड़ी रोक दी,"कहाँ जाना है?" राका की आवाज़ में भी रूखापन सॉफ झलक रहा था...
निशा ने अपनी नज़रें तुरंत नीचे झुका ली.. दबी हुई सी लंबी साँस ली और अपने हाथ की उंगलियों को आपस में जाकड़ कर हौले से बोली," घर!"
"ठीक है.. तुम्हे यहाँ से भिवानी की बस मिल जाएगी.. आगे का तुम्हे पता ही होगा!" कहकर राका गाड़ी से बाहर उतर आया.. मजबूरन निशा को भी नीचे आना पड़ा.. पर वह गयी नही... उसकी आँखें डॅब्डबॉ गयी..

"अब क्या है?" राका जल्दी में लग रहा था..
"क्क्क.. कुच्छ नही..." निशा इसके आगे कुच्छ ना बोली...
"ठीक है फिर.. मैं चलता हूँ.. संभाल कर जाना.. " राका जाकर गाड़ी में बैठ गया...
"आ....आपका नाम क्या है.. सर?" इश्स बार निशा के लब लरज गये...
"आम तौर पर मैं आवारा लड़कियों के मुँह नही लगता. बाइ" कहकर राका गाड़ी घूमने के लिए आगे की तरफ ले गया.....

कहते हैं होनी को कोई टाल नही सकता, और भगवान की इच्च्छा के बगैर पत्ता भी नही हिल सकता.. फिर राका किस खेत की मूली था. गाड़ी घूमकर जब राका वापस आया था तो निशा वही खड़ी गाड़ी को अपनी और आते देख रही थी.. उसकी आँखों में अपनापन सा झलक रहा था.. खुद को आवारा लड़की के खिताब से नवाज़ी जाने के बाद भी भीगी आँखों में अजीब सा अपनापन झलक रहा था.. राका ने उसको अविचल वहीं खड़े देखा पर वो रुका नही...

मुश्किल से राका एक किलोमेटेर भी नही गया होगा की होनी का खेल शुरू हो गया.. तेज आँधी चलने लगी. जाने कहाँ से काली घटायें घूमड़ घूमड़ कर इकट्ठा हो गयी.. शाम के 3:00 बजे ही सूरज छिप गया और लगने लगा मानो रात हो गयी हो.. घोर अंधेरा छा गया.."ओह माइ गॉड! इश्स हालत में वो अकेली कैसे जाएगी.... क्या करूँ?", राका ने अपने अंतर्मन से पूचछा और आवाज़ वही आई जो होनी को मंजूर था...

अगले कट से राका ने यू-टर्न ले लिया.....

राका वापस बस-स्टॅंड जा पहुँचा... निशा वहीं खड़ी थी जहाँ उसको राका छ्चोड़ कर गया था... धरती अभी प्यासी ही था.. पर निशा की आँखों से निर्झर बरसात जारी थी.. शायद ग़लत रास्ते पर चलने का पस्चाताप आँसुओ की शकल में बाहर आ रहा था.. निशा अब भी सिर झुकाए खड़ी थी.. गोरे गालों पर अश्कों के मोती लगातार बह रहे थे...
"सुनो!"
चिरपरिचित सी आवाज़ सुनकर निशा चौंक कर पलटी.. राका पीछे खड़ा मुश्कुरा रहा था,"तुम मुझे राका कह सकती हो!"

अब की बार राका की मुश्कूराहट उसको 'अपनी' सी लगी.. एक पल को निशा के दिल में ज़रूर आया होगा की वह दो कदम बढ़ा कर राका के सीने से चिपक जाए और बता दे की अब वो 'आवारा' नही रही.. उसकी आँखों में पलभर को आई चमक से ऐसा अहसास राका को भी हुआ होगा... पर वो चमक पल भर में ही गायब हो गयी और निशा ने फिर अपनी पलकें झुका ली...

राका ने पहली बार उसको गौर से देखा.. निशा के रंग-रूप, नयन-नक्स, चेहरे की मासूमियत और ललाट के तेज से कहीं ऐसा नही लगता था की वो कोई आवारा लड़की है... हां, उस कमसिन उम्र में बहकना अलग बात होती है.. निशा का यौवन अप्रतिम था.. ऐसी हूर तो जन्नत में भी नही मिलती होंगी.. ज़रूर राका ने यही सब सोचकर ऐसा कहा होगा," तुमने अपना नाम तो बताया ही नही!"

5'-6" की निशा को राका की नज़रों में झाँकने के लिए अपनी गर्दन काफ़ी उठानी पड़ी," निशा!"
परिचय संपन्न हुआ और प्रण की अग्नि में आसमान की आहुति शुरू हो गयी.. घटाओ ने जमकर बरसना शुरू कर दिया.. राका ने निशा का हाथ पकड़ा और गाड़ी की और भागा... बारिश इतनी तेज थी की करीब 20 मीटर की दूरी पर खड़ी गाड़ी तक भाग कर पहुँचने पर भी दोनो पानी पानी हो गये... और निशा तो बारिश से भीगा अपना बदन देखकर अंदर तक ही पानी पानी हो गयी... होटेल से निकलते वक़्त हड़बड़ाहट में वो समीज़ डालना भूल गयी थी...


तेज बारिश की झमाझम के बीच गाड़ी सड़क पर सरपट दौड़ने लगी.. निशा को अपने छातियों के बीचों बीच सिर उठाए खड़े बेपर्दा सी हालत में गुलाबी दानों का अहसास हो गया था.. इसीलिए उसने अपने आपको टेढ़ा करके राका की तरफ पीठ घुमा ली और बाहर की और देखते हुए अपने लबों को खोला," हम कहाँ जा रहे हैं"
"तुम्हारे घर.. तुम्हे कहीं और......?" राका ने उत्तर देते हुए जैसे ही निशा की और देखा.. आवाज़ उसके गले में ही अटक गयी... कमीज़ भीगने की वजह से निशा की कमर लगभग पारदर्शी हो गयी थी.. ऐसा नायाब बदन... कुल्हों से उपर कटाव इतना शानदार था की शायद स्वर्ग की अप्सरा 'मेनका' की उपमा भी फीकी पड़ जाए.. कूल्हे अपेक्षाकृत अधिक सुडौल थे.. कमर में से बूँदों की शकल में चू रहा पानी.. पानी नही अमृत लग रहा था.. मानो अभी अपने होंठो से उसको चख कर अमर हो लिया जाए.. सचमुच क्या बदन था.. राका के बदन में तूफान सा आ गया... उसके लिए अब ड्राइविंग पर ध्यान देना कठिन हो रहा था.... वो आगे से भी इश्स स्वपनिल सुंदरी का रूप देखने को बेताब हो उठा," ऐसे क्यूँ बैठी हो? सीधी होकर आराम से बैठो ना!"

राका को क्या मालूम था.. जो राका देखना चाह रहा था.. वही तो निशा च्छूपा रही थी," नही.. ऐसे ठीक है!" निशा का बदन इतने शानदार युवक को साथ पाकर काई बार मचला.. पर हर बार उसके बदल चुके मॅन ने उसको शांत कर दिया......
"क्या करती हो तुम?" राका बात बढ़ाए बिना ना रह सका..

"अभी 12थ के एग्ज़ॅम दिए हैं.. रिज़ल्ट आने वाला है..." निशा ने कमर से चिपके कपड़े को अपने हाथ से खींच कर ठीक किया...
"तुम बहुत ही सुंदर हो... बहुत ही प्यारी" राका ने झूठी तारीफ़ नही की थी.. वो बेमिशाल थी....

निशा के शरीर में झुरजुरी सी उठी.. उसके मुँह से अपनी तारीफ़ सुन'ना उसको बहुत अच्च्छा लगा...," थॅंक्स सर......"
चिर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर! राका को ब्रेक लगाने पर मजबूर होना पड़ा...

निशा चौंक कर पलटी और राका की और देखा," क्या हुआ?"
"आगे रास्ता बंद है.. वो देखो!" राका ने सड़क पर गिरे भारी भरकम पेड़ की और इशारा किया.. बारिश अब भी उतनी ही तेज थी.

"अब क्या करें?" निशा ने उसकी और परेशान निगाहों से देखा..
"डॉन'ट वरी.. थोड़ी पिछे एक कच्चा रास्ता है.. वहाँ से निकाल लेते हैं" कहते हुए राका ने गाड़ी वापस घुमा ली...

इसीलिए तो कहा था.. होनी को कोई नही टाल सकता.. पता नही राका ने ध्यान नही दिया या देने की सुध ही नही थी.. कच्चे रास्ते पर मुश्किल से वो एक किलोमेटेर चले होंगे की गाड़ी बीच रास्ते फँस गयी. बारिश की वजह से कीचड़ बहुत हो गया था... और एक जगह जाकर करीब 2 फीट गहरे गड्ढे से गाड़ी बाहर नही निकल पाई.. ना ही पिछे एक इंच ही हिली.. भगवान जाने; राका ने निकालने लायक कोशिश की भी थी या नही..
"शिट.. यहाँ बुरे फँसे.. अब क्या करें?" राका ने स्टियरिंग पर ज़ोर से हाथ पटका..
"मेरी वजह से आप भी कितने परेशान हो गये हैं सर..!" निशा ने परेशान होने की बजाय अपनी सहानुभूति दिखाना ठीक समझा.....
"कोई बात नही..निशा... जो होता है अच्छे के लिए होता है.." राका कैसे बताता वो परेशान नही है.. शुक्र है उपर वाले का.. नही तो वो चाहता तो एक क्या 10 गाड़ी मंगवा सकता था...

खेतों में दूर दूर तक कोई नज़र नही आ रहा था. करीब 10 मिनिट तक दोनो कुच्छ नही बोले... दोनो के मॅन में एक दूसरे के ही ख़यालात थे.. हालाँकि निशा नज़रें मिलने से कतरा रही थी...

आख़िरकार.. राका से ना रहा गया..," मैं तो बारिश में नहा रहा हूँ.. आना चाहो तो आ सकती हो..."
"छ्ह्ह्हीइ!" निशा बुरी तरह शर्मा गयी.. पहले से भीगे यौवन को तो वह संभाल नही पा रही थी... और कैसे नहाएगी...
"एज यू विश!" राका ने कहा और बाहर जाकर खेत की मेड पर लगी घास पर बैठ गया....

अंदर बैठी निशा का बदन तपने लगा.. राका ने खुद ही तो उसको बोला है.. नहाने के लिए.. उसकी छाती से लगने की निशा की तड़प एक बार फिर उसके मॅन पर हावी हो गयी....
निशा ने शीशा नीचे करके राका को आवाज़ लगाई," आ जाऊं.. मैं भी.. अंदर दिल नही लग रहा..."
"नेकी और पूच्छ पूच्छ! आ जाओ ना.. बड़े दीनो के बाद ऐसे खुले में नहाने का मौका मिल रहा है........


निशा ने नीचे उतरने से पहले एक बार फिर अपने भीगे जिस्म का मुआयना किया.. बदन से चिपके हुए कमीज़ में से उसकी शानदार चूचियों का आकर बिना किसी दिक्कत के महसूस किया जा सकता था. तने हुए अनार के दानों जैसे निप्पल्स तो किसी की भी साँस रोक देने के लिए काफ़ी थे.. वी- आकार के गले की कमीज़ से दिखाई दे रही गहरी खाई स्वर्गिक सुख के द्वार का प्रतीक प्रतीत हो रही थी. "हाए राम.. ऐसे कैसे जाउ?" राका के एक व्यंगया ने निशा को लड़की होने का मतलब समझा दिया था.. अब वह आवारा नही रहना चाहती थी...
"आ रही थी तुम..?" राका ने निशा को पुकारा...
"उम्म्म्मममम... नही, तुम्ही नहा लो!" बाहर निकलने की प्रबल इच्च्छा के बावजूद निशा को 'ना' ही कहना पड़ा....
राका उठ कर खिड़की के पास आया," क्यूँ क्या हुआ? मुझसे डर लग रहा है?" कह कर राका ने कामुक मुस्कान निशा की और उच्छाली...
निशा ने राका को सामने देख शर्माकर अपने दोनो हाथ अपने कंधों पर ले जाकर मचल रही मस्त चूचियों को कोहनियों में छिपा लिया," नही.. आपसे कैसा डर...?"
"क्यूँ क्या मैं मर्द नही हूँ?" कहकर राका ने ज़ोर का ठहाका लगाया.. अब उसकी कोशिश निशा की हिचक दूर करने की थी.
राका की बात का मतलब समझ कर निशा का चेहरा एक दम लाल हो गया.. होन्ट लरज उठे.. कोहनियाँ और सख्ती से चूचियों से जा चिपकी.. पर आवाज़ ना निकली. एक वाक्य ने निशा को कितना बदल दिया था ' मैं आवारा लड़कियों के मुँह नही लगता!'
अगर पहले वाली निशा होती तो पहल वही करती.. पर अब निशा सचमुच ही 19 साल की मासूम लड़की लग रही थी..
"एक बात पूच्छू?" राका खिड़की पर झुक गया...
निशा ने हां में सिर हिलाया.... नज़रें वो फिर भी ना मिला सकी...
"तुम क्या जान बूझ कर उनके साथ आई थी..."
निशा क्या बोलती.. चुप ही रही...
"बोलो ना" हाथों के बीच से निशा के अंदर झाँकते हुए राका ने कहा..
सच बोलने का मतलब खुद को आवारा साबित करने के लिए काफ़ी था और झूठ बोलने के लिए वो क्या कहानी बनाती....
निशा की आँखों से छलक आए अश्कों ने सारी बात बयान कर दी...
"ये क्या बात हुई.. होता है.. ग़लती इंसान से ही होती है.. वैसे एक बात कहूँ; तुमसे प्यारी लड़की आज तक मेरी नज़र में नही आई.." गीले चेहरे की वजह से निशा के गालों पर फैल गये अश्कों को राका ने अपनी हथेलियों में थाम लिया.. निशा सिसक उठी.. आँखें बंद हो गयी और होन्ट काँपने लगे. उसका हसीन चेहरा राका की हथेलियों में क़ैद था.
राका ने आँसू पोंच्छ कर हाथ हटा लिए.. निशा जैसे सपनों की दुनिया से वापस ज़मीन पर आई... पहली बार उसको प्यार होने का अहसास हुआ.. पल भर में ही उसने क्या कुच्छ नही पा लिया ....
"आओ ना बाहर.. मौसम की पहली बरसात है.. मुझे तो लग रहा है जैसे हमारे लिए ही सावन बरसा है आज..." राका ने खिड़की खोल कर अपना हाथ बढ़ाया तो बेसूध सी निशा ने अपना हाथ राका के हाथ में दे दिया.. अपनी तरफ से हमेशा के लिए!
निशा राका के साथ बाहर आ गयी.. खुले आसमान के नीचे! दिल ज़ोर से धड़क रहा था.. उसका जवान शरीर तपने लगा था.. राका तो जाने कब से निशा के पहलू में फ़ना हो जाना चाह रहा था...
"अगर तुम्हे ऐतराज ना हो तो मैं बियर की कॅन निकाल लून क्या? ठंडी हो गयी होंगी.. प्यास लगी है..
निशा ने अपने कंधे उचका दिए.. अभी तक उसको अधिकार ही कहाँ मिला था, मना करने का....

राका ने अपने दिल को निकाल कर निशा के सामने रख देने का माहौल तैयार कर लिया था.. एक तो इतनी हसीन लड़की साथ में.. उपर से बारिश और साथ में बियर.. एक केन में ही राका झूमने लगा. अब राका नही, पहली नज़र में ही निशा का दीवाना हो चुका दिल बोल रहा था," निशा!"
"हूंम्म!" बारिश से तर बदन को समेटे बैठी निशा भी मानो मदहोश सी हो चुकी थी.. उसके 'हूंम्म्म' से कुच्छ ऐसा ही लगा.
"तुम्हे मैं कैसा लगता हूँ?"
निशा बिना कुच्छ बोले अपनी गर्दन तिर्छि करके राका की आँखों में देखने लगी.. राका तो पहले ही उसकी और देख रहा था.. सच मानो तो आँखें चार होना इसी को कहते हैं.. निशा की काली बिल्लौरी आँखों ने उसके सवाल का जवाब दे दिया और राका की बेताब आँखों ने मतलब पढ़ लिया..
राका ने निशा का हाथ अपने हाथ में ले लिया.. दोनो अब भी एक दूसरे से आँखों ही आँखों में बतिया रहे थे..
निशा के होंठो से हल्की सी सिसकी निकली.. ये पता नही की कारण दिल था या बदन....
"क्या तुम अपना हाथ मेरे हाथ में दे सकती हो.. हमेशा के लिए!" राका दिल से बोल रहा था.
निशा को विस्वास नही हुआ.. 'हमेशा के लिए' ... राका के हाथ में समाया उसका हाथ कसमसा उठा... राका ने हाथ छ्चोड़ दिया," क्या हुआ.. अगर बुरा लगा हो तो सॉरी!"
निशा को जवाब देना ही पड़ा," म्म..मैं आपके लायक नही हूँ.. रा... सर!" कह कर निशा हिचकिया ले ले कर सिसकने लगी.. उसने जल्दबाज़ी क्यों की.. इंतज़ार क्यूँ नही किया.. आज तक का.. राका का!"
राका ने उसकी और घूम कर उसका चेहरा अपने हाथों में ले लिया," किसने कहा पगली..!"
सिसकते हुए ही निशा ने जवाब दिया," म्‍मैई... अच्च्ची लड़की नही थी.. मैं....." कहकर निशा सुबकने लगी...

"मेरे लिए इसके कोई मायने नही हैं पगली.. लड़के और लड़की के लिए अलग पैमाने समाज ने बनाए हैं और मैं लकीर का फकीर नही हूँ... अगर लड़का अपनी जिंदगी जैसे चाहे जी सकता है तो लड़की क्यूँ नही.. हां उम्मीद करूँगा की शादी के बाद तुम मुझे ही अपनी दुनिया मानो.. मैं भी वादा करता हूँ!"
'शादी' ये शब्द सुनते ही निशा का नरित्व जाग उठा.. आज की बारिश ने मानो उसके सारे पाप धो दिए हों.... निशा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और राका के हाथ में दे दिया.. हमेशा के लिए,"सच्ची" निशा कमाल के फूल की तरह सावन की फुहारों में खिल उठी..
"हां! आइ लव यू निशा.. मुझे कल देखते ही तुमसे प्यार हो गया था..." राका ने निशा का दूसरा हाथ भी अपने हाथ में ले लिया.. अब भी हुल्की हुल्की फुहारें इश्स नायाब जोड़ी को अपना आशीर्वाद दे रही थी..
"मुझे ठंड लग रही है.. गाड़ी में चलें.." गरम हो चुके बदन पर बरसात की शीतल बूँदें अब सहन नही हो रही थी..
"चलो!" राका के कहते ही दोनो उठ खड़े हुए और गाड़ी के पास चले गये..
"श.. आगे वाली सीट गीली हो गयी हैं.. हम शीशा चढ़ाना भूल गये निशा"
"तो क्या हुआ.. हम तो पहले से ही गीले हैं.." निशा अब चहक रही थी.. राका के रूप में उसको अपना राजकुमार नज़र आ रहा था. जिसके लिए हर लड़की सपनें संजोती है...
"नही.. पीछे बैठते हैं कुच्छ देर.. फिर में कंपनी में फोन करके दूसरी गाड़ी मंगवा लूँगा"

"ठीक है.." निशा ने कहा और पिच्छली सीट पर जा बैठी. राका ने भी उसके करीब बैठने में देर नही लगाई.....

तुम्हारे होन्ट कितने प्यारे हैं.. एक दम गुलाब की पंखुड़ियों जैसे!" राका ने मस्का लगाना शुरू किया....

"हे हे हे हे हे!" निशा चहक उठी.. उसकी हँसी में अपनी प्रशंसा सुन'ने की ख़ुसी के साथ हूल्का सा अभिमान भी था.. हो भी क्यूँ ना.. इतनी खूबसूरती के साथ भगवान हर किसी को नही तराष्ता..
"तुम्हारी आँखें भी बड़ी प्यारी हैं... एक दम सीप के माफिक.. बड़ी बड़ी.. सच में तुम बहुत प्यारी हो निशा.. मुझे यकीन नही होता की तुम मेरे नशीब में हो.." ( दोस्तो एक छोटी सी चूत के लिए आदमी पता नही क्या क्या करता है इस समय विचारा राका यही सब कर रहा था तो क्या बुरा कर रहा था आपका दोस्त राज शर्मा ) राका ने अपनी तरफ से उपमा देने में कसर नही छ्चोड़ी थी..

निशा गौर से राका के चेहरे को देखती रही.. उसके चेहरे पर अपरिमित मुस्कान
थी..
"तुम्हारी......" कहकर राका रुक गया.. तीन तीन नशे साथ होने पर भी वा आगे ना बढ़ पाया..

निशा तो भूल ही चुकी थी की उसके बदन को ढक'ने वाले कपड़े पारदर्शी हो चुके हैं... राका को अपनी चूचियों की ओर एकटक देखता पाकर वह हड़बड़ा गयी.. निशा के हाथ राका ने अपने हाथों में संभाल रखे थे.. जब निशा को अपना अर्ध्नग्न बदन छिपाने का कोई उपाय ना सूझा तो झुक कर राका की छाति में अपना सिर छिपा लिया..
निशा की गरम साँसें अपनी छाति पर महसूस करके राका दहक उठा.. उसकी पॅंट के अंदर आई हुलचल को उसकी गोद में रखे निशा के हॉथो ने भी महसूस किया..,"आह!"
राका ने अपना एक हाथ निशा की पतली कमर पर रखा और उसको अपने और करीब सटा लिया...," निशा! क्या मैं तुम्हे छ्छू सकता हूँ?"
"कहाआँ?" निशा का सारा बदन अंगड़ाई ले उठा...
"तुम्हारे होंठों को......"फिर थोड़ा रुक कर राका ने बात पूरी की,"..... अपने होंठों से.."
निशा की हालत पहले ही राका की मर्दानगी को महसूस करके पतली हो चुकी थी.. अपना चेहरा उपर करके निशा ने अपने होंठ राका के हवाले कर दिए.. सुर्ख लाल होंठ काँप रहे थे... निशा की साँसों की मादक महक जब राका के नथुनो से टकराई तो एक बार फिर निशा ने उसके और सख़्त हो गये हथियार की चुभन अपने हॉथो पर हुई...
राका के होंठ जैसे ही निशा के लबों को चूमने के लिए आगे बढ़े, होंठ अपने आप खुल गये, एक दूसरे के होंठों को इज़्ज़त देने के लिए..
"उम्म्म्मममम!" राका ने अगर पहले ऐसा किया भी होगा तो इतना मज़ा नही आया होगा.. निशा भी सब कुच्छ भूल कर बदहवास होती जा रही थी.. राका के दोनो हाथ निशा की कमर पर रेंगने लगे.. निशा के हाथ राका के बालों में जा फँसे.. बेइंतहा मस्ती में मगन निशा अपनी एक टाँग सीधी करके राका की जांघों के उपर फैला कर उस'से और चिपक गयी.. निशा की जाँघ राका की जाँघ पर टिकी हुई थी.. दोनो की साँसे उखाड़ने लगी...
अचानक राका ने निशा के होंठो को अपनी क़ैद से अलग किया और बेकरारी से बोला..," निशा.. मैं तुम्हे और भी छूना चाहता हूँ.. मैं तुम्हे हर जगह छूना चाहता हूँ" कहकर राका फिर उसके होंठों से चिपक गया..
निशा में भी सेक्स कूट कूट कर भरा हुआ था.. और अब ये बदन था ही किसका," अपने होंठ आज़ाद करते हुए उखड़ चुकी साँसों को वश में करने की कोशिश करते हुए बोली..," छ्छू लो जान.. अब मैं सिर्फ़ तुम्हारी हूँ.. छ्छू लो मुझे.. जहाँ दिल करे.. मार डालो मुझे!" निशा भावनात्मक हो उठी....

राका ने निशा को सीट पर लिटा दिया और गौर से उसके जिस्म की हर हड्डी को अपनी आँखों में उतारने लगा...
"क्या देख रहे हो...?" निशा राका को इश्स तरह देखता पाकर रोमांचित हो उठी...
"मेरी तो समझ में ही नही आ रहा.. देखूं या कुच्छ करूँ.. तुम्हारा सब कुच्छ कमाल का है.."
"क्या कमाल का है?" निशा ने इतराते हुए पूचछा..
"नाम लेकर बताऊं क्या?" राका की नज़र निशा की मस्त गोलाइयों पर थी....
"नही !" निशा एक बार फिर शर्मा गयी.. फिर आँखें बंद करके बोली.. जो चाहो करो जान.. पर कुच्छ करो.. अब सहन नही होता.. मैं मर जाउन्गि.. बाद में देखते रहना.. सारी उम्र!"
राका ने अपने हाथ आगे ले जाकर चूचियों पर टीके दानों की चुभन को महसूस किया...
"आआआहह!" निशा ने राका के हॉथो पर हाथ रख कर उन्हे वहीं दबा लिया.. राका ने ज्यों ही गोलाइयों की सख्ती को अपने हाथो में समेट कर दबाया तो निशा कामुकता से उच्छल पड़ी... उसने दूसरी टांगे भी फैला कर राका की दूसरी जाँघ पर रख दी..
अब निशा की गान्ड राका की जांघों के बीच में रखी थी... और राका का लंड उसकी फांकों के बीच में फुफ्कार रहा था.... निशा तंन और मॅन को मिले इश्स अहसास से महक उठी, दहक उठी...
राका ने निशा की कमीज़ का पल्लू पकड़ा और कमर से उपर का हिस्सा अनावृत कर दिया.. निशा का पतला पेट मारे उत्तेजना के काँप रहा था.. राका उसके शरीर का गठन देख कर बाग बाग हो गया....
"कपड़े निकल दूं क्या?" निशा के उपर झुक कर उसके कानों के पास अपने होंठ ले जाकर राका ने धीरे से कहा..."
"मुझसे कुच्छ मत पूच्छो जान.. बस जल्दी से मेरी जान ले लो... मार डालो!"

और राका ने उसको बैठकर उसका कमीज़ गोरे बदन से निकाल दिया.. निशा आँखें बंद किए हाँफ रही थी.. वह जल्द से जल्द अपने अंदर राका को पायबस्त कर लेना चाहती थी पर हिम्मत नही हो रही थी कहने की.. हालाँकि वह अपनी गान्ड को हिला हिला कर अपनी बेताबी ज़रूर पर्दर्शित कर रही थी.... लगातार..
नंगी चूचियों को छ्छूने से ही राका पागल हो उठा था.. और जब उसने उनका स्वाद अपने होंठों से चखा तो दोनो में तूफान सा आ गया.. तूफान बीच रास्ते पर खड़ी गाड़ी के बाहर भी महसूस किया जा सकता था...
राका ने चूस चूस कर गुलाबी निप्पालों को लाल कर दिया.. उनसे दिल भरता तो राका आगे की सोचता ना...

निशा का सब्र दम तोड़ गया," अब डाल दो ना अंदर.. प्लीज़.. ऐसे तो मैं पहले ही दम तोड़ दूँगी.....
"ओह हां.. वो तो मैं भूल ही चुका था.. और राका ने निशा की सलवार का नाडा खोल दिया...

इतनी हसीन दुनिया के दीदार के बारे में राका ने कभी सोचा भी नही था.. नीचे के कटाव उपर से इक्कीस ही थे.. निशा की योनि एकदम गीली थी.. पानी से नही.. उसके अपने रस से.. फूली हुई फांकों में पतली सी दरार ने राका के होश उड़ा दिए.. जैसे ही राका ने अपनी उंगली उसके बीचों बीच रखी, निशा उच्छल पड़ी.. अब देर मत करो, मैं होने वाली हूँ... "
"बस एक बार चखने दो जान.." कहकर राका पिछे हटा और निशा की तितली के उपर अपने होंठ लगा दिए.. अचानक उसकी नायाब तितली के पंख फड्फाडा उठे.. जीभ दरार से होती हुई ज्योन्हि योनि के दाने से टकराई.. उसने दम तोड़ ही दिया,"आआआः मैने कहा था ना.." कहते हुए निशा ने राका का सिर वही दबा लिया.. ना दबाती तो भी राका वहाँ से हटने वाला नही था.. जब तक उस 'रस का एक एक कतरा हजम नही करता...
राका ने जब अपना सिर हटाया तो दोनो के चेहरे पर सन्तुस्ति की मुस्कान थी...
राका ने अपनी पॅंट उतार फेंकी और अंडरवेर की साइड से अपना लंबा तगड़ा लंड निकाल कर निशा के हाथ में पकड़ा दिया," अब तुम्हारी बारी..."
निशा राका का मतलब समझ गयी.. जड़ से लेकर सुपाडे तक अपनी उंगलियाँ चलाते हुए वह झुकी और अपने होंठ सुपाडे पर रख दिए..
दनदनाता हुआ लंड अंदर जाने के लिए फद्फडा रहा था.. पर निशा को वो साइज़ सूट नही करता था.. बड़ी मुश्किल से वो सुपाडे भर को अपने मुँह के अंदर ले पाई और होंठों का घेरा रब्बर की तरह खींच कर उसकी मोटाई के चारों और फँस गया...," नही.. ये नही होगा.. मुँह दुखने लगा है.. प्लीज़..." निशा ने सूपड़ा मुँह से निकाल दिया
"कोई बात नही.." राका ने संतोष कर लिया.. "उल्टी हो जाओ... आगे कोहनिया टेक कर..."
निशा ने वैसा ही किया.. अपने आशिक़ की बात भला कैसे टालती.. हालाँकि गाड़ी में सब कुच्छ थोड़ा सा मुश्किल था.. पर उस वक़्त मुश्किलों में कौन पीछे हट-ता..

कोहनियाँ टीका कर जैसे ही निशा ने अपनी मस्त कसी हुई गान्ड उपर उठाई.. योनि पीछे से राका को पागल बनाने लगी.. राका ने निशा की टाँगों को उपर तक सहलाया और एक बार फिर अपने होंठ उसकी चिकनी चूत पर रख दिए.. निशा से आनंद सहन नही हो पा रहा था.. वा बार बार उचक जाती और चूत उसकी जांघों में छिप जाती.. इसी लूका छिपि में निशा एक बार फिर अपने होश खोने लगी.. उसने अपनी टांगे अच्छि तरह फैला दी और चूत का मुँह राका को ललचाने के लिए खुल गया," अब तो कर दो..." निशा ने तड़प्ते हुए कहा.....
ऐसा नही था की राका इसके लिए तड़प नही रहा था.. पर उसको अहसास था की अगर उसने जल्दबाज़ी की तो निशा ज़्यादा देर तक टिक नही पाएगी और शायद उसके मोटे लंबे हथियार को दुबारा लेने के लिए जल्दी तैयार नही होगी.. अब सब कुच्छ उसके मुताबिक ही था.. एक बार स्खलन के बाद दोबारा तैयार होगी तो वह ज़्यादा देर तक
सहन कर पाएगी.. यही हुआ भी.. निशा की कमसिन चूत अब फिर अपना मुँह खोल चुकी थी और शायद इश्स बार उसकी बेकरारी भी पहले से ज़्यादा थी..
राका ने अपनी बाई टाँग का घुटना सीट पर रखा और दायां पैर सीट से नीचे घुटना मोड़ कर रख लिया.. अब लक्ष बिल्कुल सामने था.. राका ने जैसे ही अपना लंड निशा की चूत के पतले च्छेद पर रखा.. लगभग पूरी चूत सुपाडे के पिछे छिप गयी.. राका हाथ में. पकड़ कर चूत से रगड़ने लगा.. पहले से ही हाँफ रही निशा बेचैन होकर अपनी कमर को बार बार पिछे करके लंड को जल्द से जल्द अंदर लेना चाहती थी.. उसने पिछे मुँह करके बड़ी प्यासी नज़रों से राका की और देखा," आआआः.. क्यूँ तड़पा रहे हो.."
"ये लो मेरी जान!" राका ने निशा की जांघों को मजबूती से पकड़ा और एक जोरदार धक्का आगे की और लगाया.. धक्का इतना जबरदस्त था की अगर राका ने उसकी जांघों पर अपने हाथ मजबूती से ना जमाए होते तो यक़ीनन निशा का सिर खिड़की से टकराना था...
"आआआआः.. मररररर गयी मम्मी!" निशा पीड़ा से तड़प उठी.. शुक्र है वो कुँवारी नही थी नही तो बेहोश हो जानी थी.. दर्द के मारे उसकी आँखों से आँसू बह निकले....
सूपड़ा उसकी चूत में बुरी तरह फँसा हुआ था...
राका निशा की कमर पर झुक गया और अपने होंटो से कमर के चुंबन लेने लगा..," बस एक मिनिट मेरी जान.. अभी और नही डालूँगा.. बस.. रिलॅक्स.."
पर यहाँ चैन कहाँ था.. निशा योनि में दर्द से बिलबिला रही थी....
कुच्छ देर बाद जब निशा ने लंड निकालने की कोशिश बंद कर दी तो राका ने उसकी जांघों को छ्चोड़ कर अपने हाथों में उसकी दोनो चूचियाँ पकड़ ली.. गर्दन के आसपास चुंबनों की बौच्हर ने धीरे धीरे निशा को मस्त कर दिया..
"चेहरा इधर तो करो!"
जितना हो सकता था.. निशा ने अपनी गर्दन घुमा ली.. राका अपना चेहरा आगे ले जाकर अपनी जीभ से उसके होंटो को चाटने लगा.. निशा भी अपनी जीभ निकाल कर राका की जीभ से खेलने लगी.. जल्द ही खुमारी निशा पर फिर से चढ़ने लगी और वा अपनी गान्ड को आगे पीछे करके राका को अपने इरादों से अवगत करने लगी...
सही समय था.. राका एक बार फिर सीधा हुआ और अपने हाथ फिर से उसकी जांघों पर जमा दिए.. थोड़ा सा ज़ोर और लगाया और लंड अंदर सरक गया.. इश्स बार निशा ने भी दर्द पर काबू करके अपना सहयोग दिया," तुमने तो मुझे सच में ही मार दिया था जान!"
राका इतनी शानदार चीज़ को पाकर बौखला सा गया था.. अब वह बातों पर कम
और काम पर ज़्यादा ध्यान दे रहा था.. धीरे धीरे धक्के लगाते हुए आख़िरकार लंड गर्भाष्या की दीवार से जा टकराया.. निशा आनंद से सराबोर अपना वजूद भूलती जा रही थी..," अया.... आआआह.. धीरे धीरे आगे पिछे करो जान... बहुत मज़ा आ रहा है.. आआआह आआआआअह... निशा ने अपना सिर सीट पर टीका लिया और अपनी गान्ड और उपर उठा ली.. इससे धक्कों की गति बढ़ने लगी... इसके साथ ही दोनो का पागलपन भी.. धक्कों के साथ ही दोनो कुच्छ का कुच्छ बड़बड़ाने लगे....
"सीधी कर लो ना... मैं तुम्हे अपने अंदर आते जाते देखना चाहती हूँ..."
"ओके.." कहकर राका ने लंड बाहर खींच लिया.. और टूट चुकी निशा के सीधे होने में मदद की....
एक बार फिर से लंड अंदर और धक्के शुरू.. निशा अपने अंदर बाहर हो रहे लंड को देखकर और ज़्यादा उत्तेजित हो गयी... बदहवास सी वह अपनी गान्ड को उपर उठा उठा कर गाड़ी में अपेक्षाकृत कम लग रहे धक्कों में तेज़ी लाने की कोशिश करती रही.. राका झुक कर चूचियों को अपने मुँह में भरने की कोशिश करता हुआ धक्के लगाता रहा...

चरम आनंद की तमाम हदें पार करते हुए वो पल आ गया जहाँ दोनों सब कुच्छ भूल गये.. आखरी धक्का लगा कर राका निशा से चिपक गया और उसके रस की बौच्चरें रह रह कर निशा की योनि को अंदर तक आनंद से भरने लगी.. एक अलग ही तरह का गरम अहसास निशा को अपने अंदर होते ही उसने भी जवाब देना शुरू किया और किसी जोंक की तरह राका के बदन से चिपक गयी... काफ़ी देर तक एक दूसरे को चूमते रहने के बाद अचानक निशा को होश आया," अगर बच्चा हो गया तो?"
"उस'से बहुत पहले हम शादी कर लेंगे जान.. तुम सचमुच अनमोल हो.. मेरे लिए!"

निशा की आँखों से खुशी के आँसू छलक उठे.. आख़िरकार उसको मंज़िल जो मिल गयी..

एक दूसरे को सॉफ करने के बाद निशा ने राका से कहा..," मैं आज अपने घर नही जाउन्गि!"
"क्यूँ?"
"मैं तुम्हारे साथ रहूंगी...."
राका ने निशा को एक बार फिर चूम लिया," ठीक है.. तुम अपने होने वाले घर
चलो!"
"क्या वहाँ कोई नही है..?" निशा ने सवाल किया..
"है क्यूँ नही मेरी जान..! मा है.. पापा हैं... भैया भाभी हैं!"
"कुच्छ बोलेंगे तो..?"
"बोलेंगे क्यूँ नही... सभी बोलेंगे.. अपनी होने वाली बहू से!" कहकर राका ने एक बार फिर उसको अपनी बाहों में खींच लिया.....
"नही.... तुम तो सच में जान निकल देते हो..." निशा ने हंसते हुए कहा और राका से चिपक गयी..........

Monday, 29 September 2014

masti ki pathsala - 38

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-38
 निशा की इश्स तड़प भारी चीख ने राकेश की मस्ती और बढ़ा दी... उसने पूरी जीभ बाहर निकाल कर अपने हाथो में दबोचे हुए स्तनों पर घुमानी शुरू कर दी.. थूक से गीली होकर चुचियाँ चमकने लगी.. निशा आधी आँखें बंद किए हुए बदहवास सी होकर अपने हाथों को मर्द की प्यासी अपनी योनि तक पहुँचने
की कोशिश करने लगी.. राकेश को अब जाकर ख़याल आया की उपर लटक रहे प्रेम फलों में ही वो इतना मदहोश हो गया की नीचे का खजाना याद तक नही रहा.. राकेश अपनी ग़लती का अहसास होते ही निशा की चूचियों को छ्चोड़ उसकी सलवार के नाडे की और लपका पर दोस्तो हाए री बाद किस्मती....
दरवाजे पर बेल बजी...

एक पल को राकेश चौका फिर ये सोच कर की वेटर आया होगा फिर से निशा पर टूट पड़ा.....

"खाट खाट खाट...." अबकी बार दरवाजे पर ज़ोर से दस्तक दी गयी....
"तुम ऐसे ही लेटी रहो मेरी जान.. मैं अभी उसको सबक सिखाता हूँ.." राकेश उठ कर खड़ा हुआ,"कौन है बे भूट्नी के... यहाँ दोबारा खाट खाट की तो साले तेरी मा....." राकेश को आगे बोलने का मौका ही नही मिला.. दरवाजा खोलते ही सामने दो पोलीस वालों और पोलीस वाली को देख कर उसका पेशाब नीचे उतर आया..," आअ.. वुवू.. मैं.... "

दो स्टार वाले पोलीस जी ने उसकी बातों पर ध्यान ना देकर पहले अंदर बैठी नायाब कली के हुष्ण का दीदार करने की सोची.. उसने राकेश की छाती में धक्का सा मारा और एक पल में अंदर घुस गया..

पोलीस आई देख निशा थर थर काँपने लगी.. पहले उसका ध्यान अपनी सलवार पर गया.. वो अभी तक उसकी 'चिड़िया' को ढके हुए थी.. हड़बड़ाहट में एक हाथ से अपने दोनो रसीले फलों को ढकने की नाकाम कोशिश करते हुए उसने इधर उधर से अपने कपड़े उठाने की कोशिश करी.. पर वो तो फर्श पर बिखरे पड़े थे...
निशा का दूसरा हाथ भी इज़्ज़त बचाने में पहले हाथ की मदद करने पहुँच गया... पर तब तक जितना उस सब-इनस्पेक्टर ने देख लिया था.... उसको पागल बना'ने के लिए काफ़ी था....
"क्या तीतर मारा है साले...!" सब.इनस्पेक्टर. ने होंठों पर जीभ फिराते हुए कहा.....
पोलीस में भी अच्छे इंसान होते हैं.. निशा को पहली बार तब पता चला जब उस नौ-जवान पोलीस वाली ने अंदर आकर फर्श पर बिखरे कपड़े उठाए और निशा की तरफ उच्छाल कर उसके आगे खड़ी हो गयी," कपड़े पहन लो!" हालाँकि उसके स्वर में कोई हमदर्दि नही थी....
"एस.एच.ओ. साहब को तुम्ही मिली थी क्या.. मेरे साथ राइड पर भेजने के लिए... देख भी नही सकता क्या जी भर कर...." एस.आइ. गुस्से से तमतमा गया...
"दिस ईज़ माइ जॉब सर... यू प्लीज़ हॅंडल दट गे!" अब भी उस पोलीस वाली की आवाज़ उतनी ही निर्दयी थी...
"ठीक है भगवान! लगता है सारी उमरा तुमसे ही गुज़ारा करना पड़ेगा..." एस.आइ. ने खिसियया हुआ सा मज़ाक किया...
"नीलम के चेहरे पर एक पल के लिए मुस्कान बिखरी," इधर उधर मुँह मारना था तो फेरे क्यूँ लिए थे..." फिर निशा की तरफ मुखातिब हुई," चलो.. थाने चलते हैं...."
"नही.. मेडम.. प्लीज़.... वो.. ये मुझे ज़बरदस्ती लेकर आया थ..." निशा ने कांपति आवाज़ में अपनी सफाई दी...
"ज़्यादा बकवास की ना तो एक झापड़ दूँगी खींच के... शरम नही आती ऐसे होटलों में गुलच्छर्रे उड़ाते हुए... अरे तुम जैसी लड़कियों ने ही तो नारी के नाम पर ऐसा कलंक लगाया है की उनको सिर्फ़ भोग की वस्तु समझा जाता है... क्या सोच कर जी लेती हो तुम... हां? शरीर की हवस क्या तुम्हारी खुद की और तुम्हारे घर वालों की इज़्ज़त से बढ़कर है..? चली आती हो मर्द के हाथों का खिलौना बन'ने... इससके अलावा भी कुच्छ सोचा है या नही जिंदगी में....?" नीलम तमतमा उठी थी...
"बस भी करो अब.. बच्ची है... तुम तो कहीं भी भसंबाज़ी शुरू कर देती हो...!"
"तुम चुप करो जी! कल को अगर हमारे बच्च्चे ऐसा करेंगे.. तो भी क्या तुम यही कह कर संतोष कर लोगे... मैं इन्नके पेरेंट्स को बुलाए बगैर इनको नही छ्चोड़ूँगी... चल खड़ी हो जल्दी....." नीलम ने हाथ से पकड़ कर निशा को खींचा....

बेचारे पातिदेव के पास बोलने को कुच्छ बचा ही नही था.. राकेश को कॉलर से पकड़ा और बाहर खींच ले गया....

निशा बुरी तरह बिलख रही थी.... ये क्या हो गया उस'से? घर वालों को कैसे मुँह दिखाएगी...

नीलम लगभग घसीट'ती हुई उसको बाहर ले गयी.

"हूंम्म... कहाँ की रहने वाली हो?" नीलम अभी तक गुस्से में थी...
"ज्ज्ज..जी वो...." निशा गाँव का नाम लेने से हिचक रही थी....

"मैं तुम्हे ऐसे ही छ्चोड़ने की ग़लती नही करने वाली हूँ... किसी ना किसी को तो तुम्हे बुलाना ही पड़ेगा.. समझी..! बोलो किसको बुलवाना है...?"
"प्लीज़ मेडम.. मैं आइन्दा कभी ऐसा नही करूँगी.. मुझे माफ़ कर दो.. मैं अंधी हो गयी थी..." निशा बुरी तरह गिडगिडाने लगी...

"एक झापड़ दिया ना तो सारी आक्टिंग भूल जाएगी.. ये सब वादे अपने घर वालों के सामने करना.. हो सकता है उन्हे तुम पर विस्वास हो जाए... जल्दी बताओ.. कोई नंबर. बताओ मैं डाइयल करती हूँ..." नीलम पर निशा के गिड़गिदाने का कोई प्रभाव नही पड़ा...
"नंबर. की बात सुनते ही निशा के दिमाग़ में वो मोबाइल नंबर. कौंध गया जो उसने राका की फॅक्टरी के बाहर बोर्ड पर पढ़ा था.. आगे की कुच्छ ना सोचते हुए उसने नीलम को वही नो. बता दिया....

नीलम ने नंबर. डाइयल किया.. खुसकिस्मती से नंबर. राका का ही था..," हेलो!"
"दिस ईज़ एस.आइ. नीलम स्पीकिंग फ्रॉम सिटी थाना हिस्सर.. हियर ईज़ वन ऑफ उर रिलेटिव सिट्टिंग व्ड मी.. प्लीज़ कम सून अदरवाइज़ शी माइट बे इन ट्रबल.."
"वॉट नॉनसेन्स यू आर टॉकिंग? हू ईज़ शी...?" राका अचंभे में पड़ गया...
"उम्म्म्म.." कहते हुए नीलम ने निशा से पूचछा..," तुम्हारा नाम क्या है लड़की?"
"ज्ज्जिई.. मैं बात कर लूँ..." निशा ने अनुनायपूर्वक नीलम की और देखा..

"ओ.के..." फिर फोन पर राका से मुखातिब हुई," आस्क हर..!" और फोन निशा को दे दिया..
सब कुच्छ अच्च्छा ही हो रहा था.. नीलम के लिए बाहर से आवाज़ आई और वो उठ कर बाहर चली गयी...
"हेलो सर.. म्माई वही लड़की हूँ.. जो दो लड़कों के साथ आपकी गाड़ी में बैठकर आई थी... प्लीज़ मुझे बचा लीजिए सर.. वरना मैं मर जाउन्गि...." निशा धीरे से गिड़गिडाई...
राका को माजरा समझते देर ना लगी... कार
में ही वो उनकी हरकतों से काफ़ी कुच्छ समझ गया था," पर तुम्हे मेरा नंबर. कहाँ से मिला?"
"वो मैं बाद में बता दूँगी.. प्लीज़ सर आप आ जाइए.."

राका ने बिना कुच्छ कहे फोने डिसकनेक्ट कर दिया...

निशा रो पड़ी... शायद कोई उम्मीद नही थी....

"हां... आ रहा है क्या कोई.." करीब 4 मिनिट बाद नीलम अंदर आई...
निशा ने यूँही हां में सिर हिला दिया... और बिलख पड़ी....
"अगर तुम्हे पता है की ये बातें इतनी शर्मिंदगी की हैं तो पहले कभी क्यूँ नही सोचा..... अब अगर में. तुम्हे यूँही छ्चोड़ देती तो तुम 2-4 दिन में ही सब कुच्छ भूल जाती... उम्मीद करती हूँ की आइन्दा तुम ऐसा काम नही करोगी.... कितनी देर
मे आ रहे हैं वो... क्या लगते हैं तुम्हारे?"

निशा कुच्छ ना बोली.. बस आँसू टपकाती रही..... नीलम ने भी जान'ने में ज़्यादा दिलचस्पी नही दिखाई....

Sunday, 28 September 2014

masti ki pathsala - 37

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-37
 अब तीनो बस-स्टॅंड के बाहर किसी टॅक्सी की तलाश में खड़े थे.. भिवानी जैसे शहर में यूँ सड़कों पर टेकसियाँ नही मिलती थी.. पर उनपर किस्मत कुच्छ ज़्यादा ही मेहरबान थी... अचानक उनके हाथ देने पर एक लंबी सी गाड़ी आकर उनके पास रुकी. 'टॅक्सी ड्राइवर' ने शीशा नीचे किया," हां?"
"हिस्सर चलोगे क्या? हम तीन सवारी हैं.. क्या लोगे...?" सवालों की बौच्हर सी निशा की तरफ से हुई थी जिसे "ड्राइवर" ने बीच में ही काट दिया...
"आपके साथ तो जहन्नुम में भी चलूँगा.. मॅम' शाब!.. इन्न दोनो को भी डाल लेंगे.. वैसे जो देना चाहो, दे सकती हो! बंदा अभी जवान है." कहते हुए उसने अपनी एक आँख दबा दी...
"ज़्यादा बकवास मत करो.. चलो आगे...!" कहकर राकेश ने आगे बढ़ने की सोची पर निशा तो जैसे उस 'लंबी टॅक्सी' पर फिदा हो गयी थी...," तुम सच में चलोगे?"
'ड्राइवर' ने अगली खिड़की खोल दी! निशा ने पलट कर दोनो की और देखा.. राकेश को लगा मौका आज भी हाथ से निकालने वाला है.. उसने पिच्छली खिड़की खोलने का इशारा 'ड्राइवर' को किया...
खिड़की खुलते ही दिनेश गाड़ी के अंदर जा बैठा... राकेश ने आगे बैठ रही निशा को लगभग ज़बरदस्ती करते हुए पिछे डाल दिया और खुद भी उसके बाईं और जा बैठा...
उसकी इश्स हरकत पर टॅक्सी ड्राइवर मुश्कुराए बिना ना रह सका.. उसके लिए समझना मुश्किल नही था की मामला कुच्छ गड़बड़
है...

जिस नवयुवक को वो तीनो टॅक्सी ड्राइवर समझने की भूल कर बैठे थे वो दर-असल हिसार में एक बड़ी कंपनी के मालिक का बेटा था.. राका! डील डौल में उन्न दोनो से अव्वाल तो था ही.. शकल सूरत भी लुभावनी थी.. निशा को वो ड्राइवर सच में ही प्यारा लगा होगा.. नही तो भला उसकी बातों का बुरा नही मानती क्या? वो तो आगे बैठने तक को तैयार हो गयी थी अगर राकेश उसे वापस ना खींचता तो.. खैर गाड़ी चल पड़ी थी....

मर्सिडीस को सड़क पर दौड़ते करीब 5 मिनिट हो चुके थे. दिनेश और राकेश निशा से चिपके बैठे थे. दिनेश से रहा ना गया और उसने अपना हाथ निशा की मांसल जाँघ पर हल्क से रख दिया. निशा इश्स हाथ की जाने कब से प्यासी थी. उसकी जांघों में अपने आप ही दूरी बन गयी...
"तो मॅम साब! कहाँ से आ रही हो आप?" राका को भी उसी समय बातों का सिलसिला शुरू करना था..
"लोहारू से!" निशा ने टाँगें अचानक वापस भीच ली...
"बड़े अजीब से लोग हैं वहाँ के.. एक बार जाना हुआ था.. खैर हिस्सार किसलिए जा रही हैं..?" राका ने दूसरा सवाल दागा.
"तुम चुपचाप गाड़ी चलाते रहो!" निशा के बोलने से पहले ही दिनेश ने खिज कर उसको कहा. वह चाहता था की हिस्सार तक पहुँचते पहुँचते निशा इतनी गरम हो जाए की कूछ कहे बिना ही उनके पिछे पिछे चल पड़े.. ये ड्राइवर अब उसको दूध में मक्खी लगने लगा था.....
"आपकी क्या प्राब्लम है भाई साहब.. शकल से इसके भाई तो कतई नही लगते...." राका मूड में लग रहा था.
"भाई होगा तू..... तेरी प्राब्लम क्या है.. चुपचाप गाड़ी चला ना...." दिनेश ने इतना ही बोला था की राकेश ने उसका कंधा दबा दिया....," कुच्छ नही भाई साहब.. इसके लिए मैं माफी माँगता हूँ.. वैसे ये अड्मिशन के लिए हिस्सार जा रही है..." राकेश वासू की तरह यहाँ कोई पंगा नही चाहता था.
"और तुम? ..... तुम किसलिए जा रहे हो.. लगता है तुम तो किसी स्कूल के पिच्छवाड़े से भी नही गुज़रे हो आज तक." राका ने टाइम पास जारी रखा....
"व्व..वो हुमको इसके मम्मी पापा ने साथ भेजा है.. हम इसके गाँव के हैं.." राकेश ने हड़बड़ाहट में जवाब दिया...
"यूँ बीच में बैठा कर... हूंम्म्मम" कह कर राका ज़ोर से हंस पड़ा...
निशा राका की इश्स बात पर बुरी तरह शर्मिंदा हो गयी. उसने दिनेश का हाथ अपनी जांघों से हटा दिया..
"तुम्हे इश्स'से क्या मतलब है... तुम्हे तो अपने किराए से मतलब होना चाहिए.." दिनेश बौखला गया था...
"सही कहते हो.. मुझे तो किराए से मतलब होना चाहिए... तो मिस...? ... दे रही हैं ना आप......... कीराआया!"
"निशा राका की इश्स द्वियार्थी बात का मतलब भाँप कर बुरी झेंप सी गयी... उसके गोल दूध जैसे गोरे चेहरे पर लाली सी झलकने लगी... पर वो बोली कुच्छ नही.

दिनेश ने एक बार फिर निशा को छ्छूने की कोशिश की पर उसने हाथ को एक तरफ झटक दिया. दिनेश तमतमा उठा.

गाड़ी हिस्सार के करीब ही थी... राका ने स्पीड कम करते हुए निशा से मुखातिब होकर कहा," अगर आपको ऐतराज ना हो.. मिस?... तो मुझे यहाँ 5 मिनिट का काम है.... इंतज़ार कर लेंगी क्या?"
"तुम हमें यहीं उतार दो... हम कोई और गाड़ी कर लेंगे..." दिनेश उस ड्राइवर से जल्द से जल्द पिछा छुड़ाना चाहता था...
"क्या कहती हो..?" राका ने दिनेश की बात को अनसुना करते हुए फिर निशा को टोका..
निशा ने एक बार गर्दन घुमा कर दोनो का इनकार वाला चेहरा देखा और नज़रअंदाज करते हुए राका से बोली," ठीक है.. हम इंतज़ार कर सकते हैं.. तुम अपना काम कर लो.." जाने क्यूँ निशा ने उसकी बात मान ली... राकेश और दिनेश को लगा.. इश्स बार भी वो हाथ मलते ना रह जायें.. पर मरते क्या ना करते.. चुप चाप मुँह बनाकर बैठे रहे.
"गुड!" कहते हुए राका ने गाड़ी बाई और घुमा दी

एक बड़ी सी फॅक्टरी के बाहर गाड़ी रुकते ही गेट्कीपर ने दरवाजा पूरा खोल दिया पर गाड़ी रुकी देखकर लगभग भागता हुआ पिच्छली सीट की तरफ दौड़ा.. लेकिन राका को ड्राइविंग सीट से उतरते देख अदद सल्यूट ठोंक कर कहा," क्या बात है साहब? ड्राइवर कहाँ गया?"
राका बिना कोई जवाब दिए तेज़ी से अंदर बढ़ गया...

माजरा तीनों की समझ में आ गया था.. अपनी ग़लती पर वो बुरी तरह शर्मिंदा थे...
"मुझे लगता है हमें यहाँ नही रुकना चाहिए.. इतने बड़े आदमी को ड्राइवर समझ लिया..." निशा से गाड़ी में बैठा ना रहा गया और वो गाड़ी से उतार कर रोड की तरफ चल दी....
"अरे मेम'शाब कहाँ जा रही हैं..."
"कुच्छ नही.. बस यहीं तक आना था" कहकर निशा ने अपनी चल तेज़ कर दी... ये देख राकेश और दिनेश की तो बान्छे खिल गयी.. दोनो उसके पिछे तेज़ी से बढ़ गये... चलते चलते निशा ने बोर्ड पर लिखा एक मोबाइल नंबर. रट लिया... ताकि कम से कम सॉरी तो बोल सके........

बाकी का 5 मिनिट का रास्ता उन्होने 'ऑटो' से तय किया.... हिस्सार उतरने के बाद समस्या ये थी की कहाँ चला जाए..
"तुम दोनो प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो... मैं अब अपनी सहेली के घर जाउन्गि.."
"ये क्या कह रही हो.... ऐसा मज़ाक तो आज तक किसी ने भी नही किया... प्लीज़ एक घंटे के लिए ही हमारे साथ चलो!" दिनेश ठगा सा रह गया था...
"पर मेरा मूड बिल्कुल खराब है..... फिर कभी......" निशा को उनसे पिंड छुड़ाना मुश्किल हो रहा था...
"प्लीज़.. सिर्फ़ एक बार हमारे साथ चलो... हम कुच्छ नही करेंगे... बस हमें करीब से देखने देना....." कहते हुए राकेश गिड़गिदा रहा था...
निशा को उनकी दया भी आ रही थी और अपने बदन की भी...," प्रोमिसे?"
"100 बटा 100 प्रोमिसे यार... तुम चल कर तो देखो एक बार.. " राकेश ने दिनेश की तरफ हौले से आँख मारी....
"ठीक है.. पर जाएँगे कहाँ...?"
"होटेल में चलेंगे रानी... इश्स सहर के सबसे बड़े होटेल में...."
"तीनो... एक साथ?"

"उसकी तुम परवाह मत करो.. मेरे पास प्लान है..." राकेश और दिनेश निशा को राज़ी होते देख मॅन ही मॅन गदगद हो उठे...
"ठीक है.. पर आधे घंटे से ज़्यादा नही रुकूंगी.."

"ये हुई ना बात" दिनेश ने कहा और एक ऑटो वाले को रोक कर विक्रांत होटेल चलने को कहा......

होटेल के पास पहुँच कर तीनो कुच्छ पल के लिए रुके...," दिनेश तुम बाद में आकर अलग कमरा बुक कर लेना.. मैं तुम्हे फोने करके हमारा रूम नंबर. बता दूँगा.... ठीक है ना भाई" दिनेश ने पहली बार राकेश के मुँह से भाई शब्द सुना था... ना चाहते हुए भी उसको हामी भरनी पड़ी....

अगली 10 मिनिट में राकेश और निशा होटेल के डेलक्स रूम में था... अब राकेश को दिनेश का इंतज़ार व्यर्थ लग रहा था.. उसने अपना फोन स्विच्ड ऑफ कर दिया.....

गर्ल्स स्कूल--27

"चलो.. जल्दी से कपड़े निकालो!" राकेश अब तक अपनी शर्ट निकाल चुका था और पॅंट खोलने की तैयारी में था....

"दिनेश को तो आ जाने दो... बार बार....." निशा ने बेड पर बैठते हुए कहा...
"साले की मा की चूत... पैसे में लगाउ.. और मज़े वो लूटे.. जल्दी करो मेरी जान.. मैने फोन ऑफ कर दिया है.. अब वो भूट्नी का बाहर ही इंतज़ार करेगा.. उसको देनी हो तो गाँव में दे देना... चल जल्दी दिखा अपना माल!" राकेश ने अपनी पॅंट निकाल दी थी.. उसका लंड कच्च्चे को फाड़ने को बेताब था!

निशा राकेश की गाली गलोच सुनकर हक्की बक्की रह गयी," तुम ऐसे क्यूँ बोल रहे हो.. उस बेचारे को भी बुला लो ना" दरअसल निशा ने आज तक दिनेश के जितना मोटा लंड देखा नही था.. और वो उसको करीब से देखना चाहती थी...

"बेचारे की बेहन चोदुन्गा आज.. चल अब निकाल भी दे.. क्यूँ टाइम वेस्ट कर रही है..."
"नही.. उसके आने से पहले मैं कपड़े नही निकालूंगी.." डरी सहमी सी निशा ने हूल्का सा विरोध दिखाने की चेस्टा की.....
"अब ये तेरे बाप का घर नही है साली... तुझे पता नही कितना इंतज़ार किया है तेरा... अब जल्दी से कपड़े निकाल कर कुतिया बन जा.. नही तो खींच कर निकाल दूँगा.. आए हाए.. मुझे तो यकीन ही नही था.. तेरी चूत मारने को मिल जाएगी..." राकेश ने अपना लंड अंडरवेर से बाहर निकाल कर लहराया...
" पर तुमने तो सिर्फ़ देखने की बात की थी.. ज़बरदस्ती करोगे तो मैं शोर मचा दूँगी..." निशा बुरी तरह काँप उठी...
"शोर मचाएगी साली बहनचोड़... चल मचा शोर.. सारा होटेल पहले तुझे चोदेगा और फिर पूछेगा.. यहाँ क्या अपनी मा चुदवाने आई थी..." कहते हुए राकेश ने निशा के पास जाकर एक हाथ उसकी कमर के पिछे लगाया और दूसरी हाथ से उसकी चूची को बड़ी मुश्किल से अपने हाथ में पकड़ कर मसल दिया..," क्या मस्त चूचियाँ हैं तेरी... सारी रात इनका रस पियुंगा जाने मॅन.."

"रूको! मैं निकालती हूँ... पर प्लीज़ आधे घंटे में मुझे यहाँ से जाने देना..." निशा की आँखों में आँसू आ गये थे.. जवानी के जोश में वो ये क्या कर बैठी थी...

"2000 रुपए मैने तेरी नंगी मूर्ति देखने के लिए खर्च नही किए.. तेरी चूत का मुरब्बा निकालना है सारी रात.. तुझे कपड़ों में देखकर ही जाने कितनी बार अपना लंड ठंडा किया है मैने.. आज तो जी भर कर चोदुन्गा तुझे मेरी रानी.." कहते हुए राकेश ने स्कर्ट के अंदर हाथ डाल कर उसकी जांघों तक पहुँचा दिया.. निशा को झुरजुरी सी आई और उसने आनमने मंन से अपनी योनि को जांघें भींच कर च्छूपा लिया...

"खोल रही है की फाड़ डालूं तेरे कपड़ों को.. देख प्यार से मान जा वरना....."

निशा समझ गयी थी.. ऐसे या वैसे आज तो राकेश से मरवा कर ही पीचछा छूटेगा.. फिर अब तक वो पिच्छली बातों को भूल कर अपने रंग में आना शुरू हो गयी तही....," एक मिनिट रूको तो सही.. निकालती हूँ ना..."
"ना.. अब निकालूँगा मैं.. तू तो मेरे लौदे से खेल" कह कर राकेश ने अपना लंड निशा के हाथ में पकड़ा दिया...

हालाँकि राकेश का हथियार दिनेश वाले के सामने कहीं नही ठहरता था पर जो दो आज तक उसने चखे थे, उनसे तो बड़ा ही था... निशा ने लंड को अपनी मुट्ही में भींचने की कोशिश की पर वो पूरा नही समा पाया.. निशा जाने क्या सोचते हुए राकेश के लंड के सुपादे को निहारने लगी...

"सोच क्या रही है मेरी जान... अपने होंठों से चखकर देख इसको.... आइस्क्रीम की तरह चूस और केले की तरह खा.. बड़ा मज़ा आएगा." कहते हुए राकेश ने एक पल को उसके हाथ उपर कराए और कमीज़ खींच कर निकाल दिया..
समीज़ के अंदर से नज़र आ रही चूचियों का आकर और उनके बीच का कटाव इतना मनमोहक था की कुच्छ पल के लिए राकेश उनको अपलक निहारता रहा.. दूध जैसा सफेद रंग और कसे हुए ढाँचे में ढले सेब के आकर की तनी तनी चुचियाँ किसी को भी पागल बना'ने के लिए काफ़ी थी.. चुचियों पर गुलाबी दाने समीज़ के अंदर से ही अपनी हुल्की झलक दिखाकर राकेश को अपने होश खोने पर मजबूर कर रहे थे," तू तो इंपोर्टेड आइटम लगती है रे!" राकेश ने समीज़ के अंदर हाथ डाल कर निशा की छ्चातियों की गर्मी और कसाव मापते हुए सिसकारी सी लेकर कहा.. निशा ने फिर से उसके तने हुए लंड को अपनी मुट्ही में लेने की कोशिश शुरू कर दी..
"एक मिनिट शांति तो कर ले रंडी..." और राकेश ने उसका समीज़ भी निकाल कर हवा में उच्छल दिया...

समीज़ की क़ैद से आज़ाद होते ही निशा का यौवन इतरा उठा... दोनो चुचियाँ पेंडुलम की तरह हिल हिल कर अपनी मस्ती का प्रदर्शन करने लगी.. राकेश ने झट से निशा को धक्का देकर बेड पर लिटा दिया.. लेकिन उनकी उँचाई पहले की तरह यथावत रही.. हां छेड़ छाड़ से दानो की उँचाई और मोटाई ज़रूर बढ़ गयी और वो पहले से भी ज़्यादा गुलाबी हो उठे.....

राकेश ने निशा के निप्पल्स को अपनी उंगलियों में पकड़ा और धीरे धीरे मसल्ने लगा.. निशा की आँखें बंद हो गयी और वो सिसकारी भरने लगी.. उसके हाथ एक बार फिर बिना इजाज़त लिए राकेश के लंड तक जा पहुँचे...
"खेली खाई लगती है साली... तुझमें तो ज़रा भी शरम नही है.... ये ले..." राकेश उसकी छाती पर चढ़ बैठा और अपना तननाया हुआ लंड उसके गुलाबी होंठों पर रख दिया.. निशा तो मदहोश थी ही.. अपने होंठो को खोलकर उसने तीसरे मर्द के लंड पर अपनी जीभ फिराई... थोड़ी तडी ज़बरदस्ती नॉर्मल सेक्स से कहीं ज़्यादा मज़ा देती है...
शुपाडे पर जीभ लगते ही राकेश सीत्कार उठा... इतनी सुंदर लड़की उसके लंड को चूसेगी... राकेश पागल सा हो गया और एक झटके के साथ आधा लंड निशा के हुलक में उतार दिया...
निशा इसके लिए तैयार नही थी.. वह गला रुकने की वजह से अचानक बेचैन सी हो गयी और अपने हाथ हिलाकर रहम की भीख माँगी.. शुक्रा है राकेश ने लंड वापस खींच लिया...
"मेरी जान निकल जाती.. गले में फँस गया था"
"ऐसी जान नही निकलती रानी... अँग्रेज़ी फिल्मों में देखा नही क्या.. तुमने तो आधा ही अंदर लिया है.. वो तो पूरा का पूरा गले में उतार लेती हैं.." कहकर राकेश उसकी छाती से नीचे उतर गया और दोनो हाथों में उसकी चूचियाँ पकड़ कर अपनी जीभ से बारी बारी चाटने लगा...

आनंद में पागल सी हो चुकी निशा बिस्तेर की चादर को अपने हाथो में पकड़ कर खींचने लगी........ कमरा मादक सिसकारियों से भर उठा....

उधर एक घंटा बीत चूकने पर भी राकेश का फोन ना आने पर दिनेश गुस्से से लाल हो उठा... "साला दगाबाज.. फोन ऑफ कर दिया... अब क्या करूँ.. मैं तो उस'से पैसे लेने भी भूल गया की रूम लेकर खुद ही ढूँढ लेता सालों को..." सोचते हुए गुस्से में तमतमा रहे दिनेश ने बदला लेने की नीयत से 100 नो. डाइयल कर दिया और पोलीस को होटेल में चल रही मस्ती की सूचना दे दी.......

गुलाबी रंगत में रंगते जा रहे निशा की चुचियों के निप्पल्स मादक करारी मस्ती से सराबोरे होते जा रहे थे.. अब सहन करना ना इसके वश में था ना उसमें.. राकेश ने एक निप्पल को अपने दाँतों के बीच दबाया जैसे काट ही डाला...

"ऊऊऊईीईई मुंम्म्ममय्ययी!" दर्द निशा के लिए असहनीया था....

Saturday, 27 September 2014

masti ki pathsala - 36

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-36
 नीरू बेड पर इश्स तरह बाहें फैलाकर आँखें बंद किए लेटी थी मानो वा सुहाग की सेज़ पर पलकें बिच्छायें अपने पिया की खातिर खुद को न्योचछवर करने के लिए लेटी हो.... उसकी छातियाँ छातियों की तरह नही बल्कि शिकार को ललचाने के लिए डाले गये अमृत कलश हों, जिनको देखने मात्र से ही शिकार उन्न नायाब 'अमृत पात्रों' में अमृत ढ़हूँढने को बेताब होकर उन्न पर टूट पड़े और जाने अंजाने उन्न घाटियों की भूल भुलैया में ही खोकर रह जाए, हमेशा के लिए..

ये वासू का ब्रहंचर्या ही था जो वो अभी तक अपने आप पर काबू रख पा रहा था, कोई और होता तो.. इंतजार नही करता; इजाज़त तक नही लेता और नीरू 'नारी' बन जाती.. कन्या से," नीरू! अब भी दर्द हो रहा है क्या?"
नीरू ने आँखें नही खोली; एक लंबी सी साँस लेकर वासू के ब्रह्म्चर्य को डिगाने की कोशिश करते हुए अपने सीने में अजीब सी हलचल पैदा की," हां सर!"
"लो चाय पी लो... ठीक हो जाएगा..!" वासू एक बार नीरू के मच्हलीनुमा बदन को और एक बार अपने ईष्ट देव को याद कर रहा था.
"सर; उठा तक नही जा रहा... क्या करूँ!" नीरू ने मादक आह भरकर कहा.
अब तक यौवन सुख से अंजान वासू को अपनी प्रेम पुजारीन की आमंत्रानपुराण आह, असहनीया दर्द से पीड़ित लड़की का बिलखना लगा.. हां दर्द तो था.. पर पेट में नही.. कहीं और!
"च.. चाय तो पीनी ही पड़ेगी.. नी..." नाभि से नीचे के कटाव को देखकर जिंदगी में पहली बार वासू की ज़ुबान फिसल गयी," वरना.. पीड़ा कम कैसे होगी..!"
नीरू कुच्छ ना बोली.. चुप चाप पेट दर्द की नौटंकी करती रही....
वासू ने एक बार फिर हनुमान जी को देखा, उसको हनुमान जी क्रोधित दिखाई दिए.. वासू को लगा जैसे भगवान ने उनके मंन की दुविधा को भाँप लिया है और अपने हाथों में उठाए पहाड़ को उस पर फैंकने ही वाले हैं....

"हे प्रभु.. क्या करूँ..?" वासू की एक आँख अपने ईष्ट देव को और दूसरी उसकी हसरतों को जवान करने वाली अप्रतिम सुंदरी को यहाँ वहाँ से झाँक रही थी...

कहते हैं आवश्यकता आविसकार की जननी है.. वासू अपने छ्होटे से मंदिर की और गये और हनुमान जी की मूर्ति के आगे एक दूसरी मूर्ति लगा दी... जै श्री कृष्णा!

नीरू की तरफ चलते हुए एक बार फिर वासू ने पलट कर देखा, श्री कृशन जी हौले हौले मुश्कुरा रहे थे, मानो कह रहे हों.. वासू तू करम कर दे; फल की चिंता मत कर..

इश्स बार वासू ने जैसे ही बेड पर बल खाए लेटी नवयोयोवाना को देखा, उसने झटका सा खाया.. प्रेमावेग का.. औरत आदमी को कही का नही छ्चोड़ती.. उसको अपना कुच्छ कुच्छ देकर, उसका सब कुच्छ ले लेती है...," नीरू!"
"आ सर.. मैं उठ नही सकती.. बहुत दर्द हो रहा है.." नीरू ने भी जैसे कसम खा ली थी...
"मेरे पास एक बाम है.. पीड़ा हरने वाली...... एम्म मैं... मालिश कर दूं?" वासू की जान निकल गयी थी.. ये छ्होटी सी बात कहते हुए..
नीरू एक बार और 'आह' कहना चाहती थी पर उसके मुँह से कुच्छ और ही निकला," हाययई..." और वो चाहती ही क्या थी.. नीरू के बदन में झुरजुरी सी उठी और उसको पॅंटी के अंदर से कुच्छ रिश'ता हुआ सा महसूस हुआ...
"कर दूँ क्या.. नीरू.. ठीक हो जाओगी...!" वासू विश्वामित्रा तापश्या छ्चोड़ लंगोटी फैंकने को तत्पर हो उठा था...

"हूंम्म!" नीरू अपनी झिझक और कसक छिपाने के लिए आँखें बंद किए बैठी रही....," कर दो.... सर!"

वासू लेटी हुई नीरू के कातिल उतार चढ़ाव को देखकर पागल सा हो गया था.... ,"सच में.. कर दूँ ना... माअलिश!"
नीरू के मॅन में आया अपनी टी-शर्ट को उपर चढ़ा कर वासू को बता ही दे की वो उस 'मालिश' के लिए कितने दीनो से तड़प रही है.. पर अभी वा सिर्फ़ सोच ही सकती थी.. पहल करने की हिम्मत सब लड़कियों में कहाँ होती है.. वो भी कुँवारी लड़कियों में........

अब तक वासू भी ख़यालों ही ख़यालों में इश्स कदर लाचार हो चुका था की इजाज़त के बिना ही अपनी अलमारी से पता नही किस मर्ज की शीशी उठाई और बेड पर जाकर नीरू के उदर (पेट) के साथ बैठ गया....

अपने करम और फल के ताने बने में उलझा हुआ वासू एक नज़र निहारने के बाद नीरू के नंगे पेट को सहलाने को बेकरार हो उठा.. नीरू के मंन में इश्स'से भी कही आगे बढ़ जाने की व्याकुल'ता थी. ताकि वह बिना हिचक उस अति-शक्तिशाली शास्त्री को अपना सब कुच्छ सौंप कर उसका सब कुच्छ हमेशा के लिए अपना कर सके.

वासू ने अपने काँपते हाथों से नीरू की टी-शर्ट के निचले किनारे को पकड़ा, दिल किया और उपर उठा कर पहली दफ़ा अपने आपको काम-ज्ञान का बोध करा सके. पर उसकी हिम्मत ना हुई," कहाँ दर्द है नीरू?"
नीरू ने बिना कुच्छ कहे सुने अपना हाथ वासू के हाथ से थोडा उपर रख दिया और आँखें बंद किए हुए ही अपनी गर्दन दूसरी और घुमा ली. नाभि से करीब 4 इंच ऊपर नीरू की उंगली रखी थी, इसका मतलब था की टी-शर्ट को वहाँ तक उठाना ही पड़ेगा.. 'प्यार' से मलम लगाने के लिए.
"आ.. टी-शर्ट थोड़ी उपर उठानी पड़ेगी? क्या मैं उठा दूँ..." वासू ऐसे पूच्छ रहा था जैसे कोई कारीगर गाड़ी की मररमत करते समय कुच्छ 'जुगाड़' फिट करने से पहले मलिक की इजाज़त ले रहा हो.. कहीं ऐसा ना हो बाद में लेने के देने पड़ जायें...
नीरू के चेहरे पर शर्म और हया की लाली तेर गयी.. वो अंदर ही अंदर जितनी खुश थी, उसका अंदाज़ा वासू जैसा नादान खिलाड़ी नही लगा पाया.. नीरू ने अपना हाथ उठा कर वापस पीछे खींच लिया, बिना कुच्छ कहे.. सीने का उभार अपनी सर्वाधिक सुंदर अवस्था में पुनः: आ गया.
वासू अब कहाँ तक काबू रखता; टी-शर्ट का सिरा फिर से पकड़ा और उस कमसिन बाला के हसीन बदन के उस भाग को अनावृत करता चला गया, जहाँ पर वह दर्द बता रही थी.. वासू के दिल की धड़कन नीरू के लोचदार पेट के सामने आने के साथ ही बढ़ने लगी.. कुछ और भी आसचर्यजनक ढंग से बढ़ता जा रहा था. वासू के भोले भले 'यन्त्र' का आकर....

नीरू के मक्खन जैसे मुलायम और चिकने पेट पर फिसल रहे वासू के हाथों में प्रथम नारी स्पर्श की स्वर्गिक अनुभूति के कारण कंपन स्वाभाविक था. लगभग ऐसा ही कंपन नीरू के अंग अंग से उत्पन्न हो रहा था. नीरू की साँसे मादक ढंग से तेज होने लगी थी.. साँसों के साथ ही उसकी छातियों का तेज़ी से उपर नीचे होना वासू को नीचे तक हिला गया. अनार-दाने आसचर्यजनक ढंग से सख़्त होकर समीज़ और कमीज़ को भेदने के लिए तत्पर दिखाई देने लगे.. किंचित कोमल छातियों में जाने कहाँ से प्रेम रस आ भरा... कमीज़ के उपर से ही उत्तेजित चुचियों का मचलना सोने पर सुहागे का काम कर रहा था. नीरू ने हया की चादर में लिप'टे लिपटे ही एक हुल्की सी आह भरी और अपने चेहरे को दोनो हाथों से ढक लिया...
वासू सदैव मानता था की नारी नरक का द्वार है.. पर इश्स नरक की अग्नि में इतना आनंद आता होगा ये उसको कदापि अहसास नही था. लहर्दार पेट पर फिसलती हुई उसकी उंगलियाँ अब रह रह कर नीरू की छ्चातियों के निचले भाग को स्पर्श करने लगी थी.... यही कारण था की नीरू अपने होशो-हवस भूल कर सिसकियाँ लेने लगी थी....
"दर्द कहाँ है.. नीरू?" वासू उसकी नीयत जान'ने के इरादे से बोला..
नीरू कुच्छ ना बोल पाई.. उसको कहाँ मालूम था ' ये इश्क़ नही आसान...

वासू ने दूसरे हाथ से नीरू के चेहरे पर रखे हाथ को पकड़ कर अपनी और खींच लिया," बताओ ना.. दर्द कहाँ है?"

नीरू की आँखें बंद थी, पर शायद उसके दिल के अरमान को खुलकर बताने के लिए उसका हाथ ही काफ़ी था.. वासू के हाथ से फिसल कर उसका हाथ नाभि से कहीं नीचे जाकर ठहर गया.. उफफफफफ्फ़!

अँधा क्या चाहे; दो आँखें! वासू सचमुच उस हसीन बेलगाम जवानी को अपने पहलू में सिमटा पाकर अँधा हो गया था! जहाँ पर नीरू ने अपना हाथ रखकर दर्द बताया था, वहाँ पहुँचने के लिए वासू जैसे भोले भले नादान को जाने क्या क्या नही करना पड़ता होगा; जाने कितना समय लग जाता होगा और वासू को...!

मंज़िल वासू से चंद इंच की दूरी पर ही थी.. रास्ते में कोई रुकावट भी ना थी; पर जाने क्यूँ वासू की साँसे उपर नीचे होने लगी.. इतना बहक जाने के बावजूद भी वो केवल अपने होंठों पर लंपट जीभ फेर कर रह गया,"अफ क्या करूँ?"

अपने प्रियतम को बदहवासी में ये सब बोलते देख नीरू आँखें खोले बिना ना रह सकी.. उसने देखा; वासू नज़रें फाडे लोवर के उपर से ही दिखाई दे रही उसकी योनि की फांकों को पागलों की तरह घूर रहा है जहाँ चंद मिनिट पहले ही नीरू ने हाथ रखा था, अपने दर्द की जड़ बताने के लिए.

इश्स कदर वासू को देखता पाकर नीरू शरम से दोहरी हो गयी और पलट कर उल्टी लेट गयी.. अब जो कुच्छ वासू की नज़रों के सामने आया वो तो पहले द्रिश्य से भी कहीं अधिक ख़तरनाक था. नीरू के लोवर का कपड़ा उसके मोटे नितंबों की गोलाइयों और कसाव का बखूबी बखान कर रहा था और उनके बीच में फँसा कपड़ा उनकी गहराई का. वासू से रोके ना रुका गया.... उसने अपना हाथ नीरू के नितंब पर रख दिया," क्या बात है नीरू? उल्टी क्यूँ हो गयी... पेट नही दबवाना क्या.?"

नीरू के मुँह से मादक सिसकारी निकलते निकलते बची.. वासू की उंगलियाँ उसके नितंबों की दरार के बीच में आ जमी थी और सकपकाहट में नीरू ने अपने नितंबों को भींच लिया; वासू की उंगलियाँ फाँसी की फाँसी रह गयी.. फिर ना वासू ने निकालने की कोशिश की.. और ना ही नीरू ने उन्हे आज़ाद करने की.. यूँही अपने चूतड़ भीछें हुए नीरू ने कामावेश में बिस्तेर की चदडार को अपने मुँह में भर लिया.... ताकि आवाज़ ना निकले!

अब किसी के मॅन में कोई संशय नही था.. दोनो लुट'ने को तैयार थे और दोनो ही लूटने को; जवानी के मज़े!

वासू ने हल्के हल्के अपनी उंगलियों से नीरू की दरार को कुरेदना शुरू कर दिया.. उसका दूसरा हाथ अब अपने तने खड़े हथियार को दुलार रहा था.

नीरू की हालत बुरी हो गयी.. उसके नितंब अपने आप उपर उठ'ते चले गये.. दरार खुल गयी और वासू की उंगलियाँ नीरू की योनि से जा टकराई..

कच्ची जवानी कब तक ठहरती, नीरू अचानक काँपने लगी और वासू की उंगलियाँ तक योनि रस से गीली हो गयी.. एक पल को नीरू अचानक उठी और वासू की जांघों में बैठकर उसकी छाती से चिपक गयी.. वासू के लिए ये पल असहनिय था... वासू का शेरू नीरू के नितंबों के बीचों बीच फनफना रहा था.. पर ऐसा सिर्फ़ कुच्छ पल ही रहा..
अचानक नीरू पीठ दिखा बैठी.. उसकी बेकरारी तो वैसे भी ख़तम हो ही चुकी थी.. जैसे ही उसको वासू के छुपे रुस्तम की वास्तविक लंबाई चौड़ाई का बोध अपनी योनि से च्छुअन के कारण हुआ, वह बिदक गयी और लगभग उच्छल कर पिछे हट गयी," सर! मुझे जाना है!"
"क्याअ?" वासू को जैसे ज़ोर का झटका धीरे से लगा,'ये क्या मज़ाक है?"

"मुझे देर हो रही है सर!" नीरू और कुच्छ ना बोली.. नज़रें झुकाए हुए ही अपनी किताबें उठाई और झेंपते हुए दरवाजे से बाहर निकल गयी..

वासू का हाथ वहीं था.. वह कभी अपने हाथ को तो कभी दरवाजे के बाहर बिछि चटाई को हक्का बक्का सा देखता रहा..

अचानक वासू मुस्कुराया और गुनगुनाने लगा," कब तक जवानी छुपाओगि रानी!"
उधर जिस दिन से निशा के कुंवारे जोबन के दर्शन का सौभाग्या दिनेश को प्राप्त हुआ था, वह तो खाना पीना ही भूल गया.. रात दिन, सोते जागते बस एक ही दृश्या उसकी आँखों के सामने तैरता रहता.. खिड़की में खड़ी होकर निशा द्वारा ललचाई आँखों से उसको हस्त मैथुन करते देखना और इरादतन उसको अपनी कमीज़ निकाल कर उनमें छिपि मद मस्त गोलाइयों का दर्शन करना. उसकी समझ में नही आया था कि क्यूँ ऐसा हुआ की निशा ने उसको रात्रिभोग का निमानतरण देकर भूखा ही रख दिया.. कुच्छ दिन तक रोज़ रात को उल्लू की तरह रात रात भर उसके घर की तरफ बैमौसम बरसात के इंतज़ार में घटूर'ने के बाद अब उसका सुरूर काफ़ी हद तक उतर गया था. पर उसकी एक तमन्ना अब भी बाकी थी.. बस एक बार निशा यूँही खिड़की में खड़ी होकर अपना जलवा फिर से दिखा दे.....

राकेश ने भी अब उसस्पर दादागिरी झाड़नी छ्चोड़कर लाड़ लपट्टन शुरू कर दी थी.. उसको डर था की कहीं दिनेश अकेला ही उस कमसिन काया को ना भोग बैठे.. आज कल राकेश का लगभग सारा दिन दिनेश के घर पर ही गुजर'ता रहता और गाँव के मनचलों की तमाम महफ़िलों से नदारद ही रहता.. गौरी उसको दूर की कौड़ी लगती थी; इसीलिए उस सौंदर्या प्रतिमा को वह अपने दिल-ओ-दिमाग़ से बेदखल कर चुका था. अब उसका निशाना सिर्फ़ और सिर्फ़ निशा थी.. वो भी तो उन्नीस की ही थी; गाँव की हुई तो क्या? और कहते हैं ना.. नमकीन का मज़ा तो नमकीन में ही आएगा.. भले ही राकेश के लिए ये अंगूर खट्टे हैं वाली बात थी.. पर ये सच था की अब वो भी हाथ धो कर निशा को ही चखने की फिराक में था..

"ओये; देख साले!" राकेश दिनेश के साथ उसके घर की छत पर ही बैठा था जब अचानक उसके मुँह से ये आवाज़ निकली मानो बिल्ली ने चूहा देख लिया हो.

दिनेश की नज़र एक पल भी बिना गँवायें निशा के घर की तरफ ही गयी... और आजकल वो इंतज़ार ही किसका करते थे..

निशा उपर वाले कमरे की खिड़की में खड़ी लोहे की सलाखों को पकड़े सूनी आँखों से उन्हे देख रही थी.. मानो कह रही हो,' मैं भी उतनी ही प्यासी हूँ.. मर्द की!'

दिनेश को पिच्छली बात याद हो आई.... उसने ये तक नही सोचा की राकेश उसके पास बैठा है.. बस आव देखा ना ताव, झट से अपने पॅंट की जीप खोली और निशा को देखते ही खड़ा हो चुका लंड बाहर निकाल कर उसकी बेकरारी का अहसास कराया.. निशा राकेश के सामने उसको ऐसा करते देख झेंप सी गयी और एकदम खिड़की से औझल हो गयी..

" अबे! बेहन के यार.. झंडा दिखाने की क्या ज़रूरत थी.. डरा दिया ना... बेचारी को" राकेश ने बड़ी मुश्किल से मिले चान्स को हाथ से जाते देख दिनेश को खा जाने वाली नज़रों से देखा...

" पर भाई.. मैने पहले भी तो....... यही दिखा कर उसको ललचाया था... वो ज़रूर तुम्हे देखकर हिचक गयी होगी...." दिनेश ने सफाई देने की कोशिश की...

राकेश ने उसके कंधे पर हल्का सा घूँसा दिया," हा हा! मैं तो उसका जेठ लगता हूँ ना.. मुझे देखकर हिचक्क्क... अबे फिर आ येगी बेहन्चोद"

दोनो का मुँह खुला का खुला रह गया... मर्द की प्यासी निशा इतनी आतुर हो चुकी थी की उसको इश्स'से भी कोई फ़र्क नही पड़ा की गाँव का सबसे ज़्यादा लौंडीबाज दिनेश के साथ बैठा है... उसका भाई एचएम करने के बाद मुंबई किसी होटेल में जाय्न कर चुका था और उसका चचेरा भाई भी निशा से थोड़ा बहुत सीख साख कर वापस चला गया था.. अब निशा की हालत भूखी शेरनी की तरह थी.. और वो इन्न दोनो को अपना शिकार समझ बैठी थी जो खुद उसका शिकार करने की फिराक में बैठे थे....

निशा जब दोबारा खिड़की पर आई तो जितनी भी दिनेश और राकेश को दिखाई दी.. जनम जात नंगी थी... भाई से प्यार का पहला पाठ पढ़ने वाली निशा से अब एक दिन के लिए भी मर्द की जुदाई सहन करना मुश्किल था.. इसी भूख ने उसके तमाम अंगों को और भी ज़्यादा नशीला बना दिया.. नित नये भंवरों की तलाश में.. गदराई हुई गोल गोल चुचियों ने अपना मुँह अब और उपर उठा लिया था... दोनो गोलाइयों पर तैरती चिकनाई पहले से भी ज़्यादा मादक अंदाज में उन्न दीवानो को लुभा रही थी.. दाने किंचित और बड़े हो गये थे.. जिनका लाल रंग अब घर दूर से भी दोनो की जान लेने के लिए काफ़ी था.. छातियाँ उभर'ने की वजह से अब उसका पतला पेट और ज़्यादा आकर्षक लग रहा था...

निशा ने बेहयाई का पर्दर्शन करते हुए दोनो गोलाइयों को अपने हाथों में समेटा और अपनी एक एक उंगली से मोती जैसे दानो को दबा दिया.....

"इसस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स हाआआआआआ" राकेश ने अपने लंड को पॅंट के अंदर ही मसल डाला," कयामत है यार ये तो...... पूच्छ ना.. कब देगी?"

दिनेश उसकी बातों से अंजान यूयेसेस हर पल को अपनी आँखों के ज़रिए दिलो दिमाग़ में क़ैद करता हुआ लंड बाहर निकाल कर हाथों से उसको शांत करने की चेस्टा में लगा रहा...

निशा दिनेश के मोटे लंड को देखती हुई अपने एक हाथ से खुद की तृष्णा शांत करती हुई उन्न दोनो को अपनी स्प्रिंग की तरह उच्छल रही छातियों के कमनीया दृश्या का रसास्वादन करती रही... एका एक उसने अपने दोनो हाथों से खिड़की की सलाखों को कसकर पकड़ लिया.. और अपने दाँतों से सलाखों को काटने की कोशिश सी करने लगी.. उसकी जांघें योनि रस से तर हो गयी थी....

इश्स मनोरम द्रिश्य को हाथ से निकलता देख दिनेश की स्पीड भी बढ़ गयी और कुच्छ ही देर बाद एक जोरदार पिचकारी के साथ उसकी आँखें बंद हो गयी.. मानो अब और कुच्छ देखने की हसरत ही बाकी ना रही हो.....

राकेश का तो मसलते मसलते.. पॅंट में ही निकल गया....

कुच्छ ही देर बाद दिनेश के घर की तरफ पत्थर में लिपटी एक पर्ची आकर गिरी....

" कल में हिस्सार जा रही हूँ.... अपने अड्मिशन का पता करने........ 2 दिन के लिए!"

अगले दिन दोनो मुस्टंडे नहा धोकर गाँव के बाहर बस स्टॅंड पर खड़े बार बार उस गली को घूर रहे थे जिधर निशा का घर पड़ता था. इंतज़ार असहनीया था....
"भाई.. कहीं आज भी...?" दिनेश ने अपना संशय राकेश के सामने प्रकट किया.
"साले.. भूट्नी के! शुभ शुभ बोल.. आज अगर उस रंडी को झूला नही झूला
पाया तो तेरा खंबा काट दूँगा" राकेश ने इश्स अंदाज में दिनेश को दुतकारा मानो दिनेश निशा का दलाल हो और राकेश से पैसे अड्वान्स ले रखे हों.
"तू चिंता मत कर भाई.. दोनो ही उसको झूला झूलाएँगे.. एक साथ. बस एक बार आ जाए!" दिनेश ने पॅंट के अंदर लंबी साँसे ले रहे अपने हथोड़े जैसे मुँह वाले लंड को चेक किया. सब कुच्छ ठीक था...

कहते हैं इंतज़ार का फल मीठा होता है. दोनों के मुँह में एक साथ पानी आ गया. निशा जैसे ही चटख लाल रंग के घुटनो से नीचे तक के स्कर्ट और बदमाई रंग का स्लीव्ले कमीज़ पहने गली से आती दिखाई दी दोनो के चेहरे खिल उठे. लाल रंग की चुननी जो निशा के गदराये वक्षों के कंपन को ढके हुए थी, अगर सिर पर होती तो कोई भी उसको दुल्हन समझने की भूल कर सकता था.
निशा ने दोनो को तिरच्ची निगाहों से घायल किया और उनसे ज़रा आगे खड़ी होकर बस का इंतज़ार करने लगी. स्कर्ट के अंदर उसके नितंब बड़ी मुश्किल से आ पाए होंगे.. भारी भरकम हो चुके नितंबों में बड़ी मीठी सी थिरकन थी. लंबी छोटी दोनो नितंबों के बीच की कातिल दरार के बीचों बीच लटक रही थी. बस स्टॅंड पर खड़े सभी छ्होटे बड़ों की आँखों में उस हसीन कयामत को देख वासना के लाल डोरे तैरना स्वाभाविक था. पर दिनेश और राकेश आज बड़ी शराफ़त से पेश आ रहे तहे. हुस्न का ये लड्डू आज उन्ही के मुँह जो लगने वाला था.

बस के आते ही उन्न दो शरीफों को छ्चोड़ सभी में निशा के पिछे लगने की होड़ शुरू हो गयी. सीट ज़्यादातर पहले ही भरी हुई थी सो खड़ा तो सबको ही होना था पर आलम ये था की बस में खड़ा होने की प्रयाप्त जगह होने के बावजूद निशा के आगे पिछे धक्का मुक्की जारी थी. कुच्छ खुसकिस्मत थे जो निशा के गोरे बदन से अपने आपको घिसने में कामयाब हो गये. उनको घर जाकर अपना पानी निकालने लायक भरपूर खुराक मिल गयी.
सब मनचलों को तड़पाती हुई निशा भीड़ में से खुद को आज़ाद कर पिछे की तरफ जाकर खड़ी हो गयी.. दिनेश और राकेश आसचर्यजनक ढंग से अपनी सहनशीलता का परिचय देते हुए दूर खड़े उसको निहारते रहे..

कुच्छ देर बाद तीनों भिवानी बस-स्टॅंड पर थे. यहीं से हिसार के लिए बस मिलनी थी. निशा को भी अब लोक लाज का ज़्यादा भय नही रहा..

किसी भी जान पहचान वाले को आसपास ना पाकर राकेश और दिनेश का धैर्या जवाब दे गया. दोनो झट से निशा के पास पहुँच गये..
"हम भी तुम्हारे साथ हैं निशा रानी", राकेश ने धीरे से जुमला निशा की और उच्छाला.
निशा ने कोई जवाब नही दिया. मन ही मन मुश्कूराते हुए इठलाती हुई निशा दूसरी और देखने लगी. उसको क्या पता नही था की दोनो उसी के पीछे आए हैं. एक माँगा और दो मिले. निशा को उपर से नीचे तक गुदगुदी सी हो रही थी.. आज दो का मज़ा मिलेगा.. बारी बारी... उसको मालूम नही था की दोनो फक्कड़ उस्ताद इकट्ठे ही उसको नापने की तैयारी में आयें हैं.
"कहो तो टॅक्सी कर लें... कहाँ गर्मी में परेशान होंगे बस में." दिनेश काफ़ी देर से यही कहने की सोच रहा था जो अब जाकर उसके मुँह से निकला.
निशा ने एक पल सोचने जैसा मुँह बनाया पर कोई प्रतिक्रिया नही दी....
"क्या सोच रही हो जाने मंन? मेरे पास बहुत पैसे हैं.. ऐश करते चलेंगे.. तुम्हारे लिए ही झूठ बोल कर घर से लाया हूँ.. 2 दिन का फुल्तू ऐश का समान है मेरे पास... अगर मंजूर हो तो हम आगे आगे चलते हैं.. हमारे पिछे पिछे आ जाओ" राकेश ने निशा के नितंबों का साइज़ अपनी आँखों से मापते हुए दिनेश के प्लान पर अपनी मोहर लगा दी.. क्या माल थी निशा..
कोई जवाब ना मिलने पर भी पूरी उम्मीद के साथ दोनो बस-स्टॅंड से बाहर निकल गये.. कुच्छ देर विचार करने के बाद निशा को भी सलाह पसंद आ गयी..

Friday, 26 September 2014

masti ki pathsala - 35

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-35

नीरू, अपनी तेज तर्रार ज़ुबान, शानदार व्यक्तित्व के कारण 'अद्वितीया सुंदरता के बावजूद' अपने आपको 'प्रेम निगाहों' से बचाकर रखने वाली नीरू ये समझ ही नही पा रही थी की उसके साथ हो क्या रहा है. वासू का चेहरा ख़यालों में आते ही उसका अंग अंग अंगड़ाई ले बैठता.. वासू के भोले चेहरे के पीछे छिपी मर्दान'गी की वो दीवानी हो उठी थी और दिन रात वासू को एक नज़र देखने के लिए व्याकुल रहती. उसकी निगाहों में अचानक नारी सुलभ विनम्रता झलकने लगी, उसके अंगों में यौवन की मिठास भर उठी.
वह छुट्टियाँ ख़तम होने के इंतजार नही कर सकती थी.. एक दिन अचानक शाम के करीब 5 बजे एक कॉपी और 2 बुक्स एक पॉली थिन में डाली और दिशा के घर की और चल दी....

दिशा और वाणी दोनो ही घर के आँगन में बैठी बतिया रही थी. नीरू को देखते ही दिशा प्रेमभाव से उठी और नीरू का अभिवादन किया," दीदी, आप?"
"हां दिशा! क्या सर उपर हैं....?"
'सर' सुनते ही दिशा के मन में शमशेर की तस्वीर उभर आई.. अपने होंठो को गोले करके तिरछी निगाहें करके थोड़ा अचरज से पूछा,"क्यूँ?"
अपने आपको इस नज़र से दिशा को घूरते पाकर नीरू मन में छिपाकर रखी गयी भावनाओ के चलते थोड़ा सा सहम गयी....," नही.. बस कुछ पूछना था.. कोई ऐतराज है..?"
दिशा को अपनी ग़लती का अहसास हुआ," अरे नही दीदी! मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी.. हाँ उपर ही होंगे.. बड़े अजीब से नेचर के हैं.. शायद ही कभी अपने रूम से बाहर झँकते हों... आ बैठ.. तुझे शिकंजी पिलाती हूँ.."
वाणी उसको घूर कर देख रही थी.. जैसे उसकी नज़रों की बेकरारी को पहचान गयी हो..की... एक और गयी काम से!

कुछ देर नीचे बैठे रहने के बाद नीरू ने उपर का रुख़ किया.. उसकी छातियों का कसाव बढ़ गया.. दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था. उपर का दरवाजा बंद था. नीरू ने बंद खिड़की की झिर्री से अंदर झाँका. आलथी-पालती मारे, कमर सीधी करके बैठे हुए वासू जी कुछ पढ़ रहे थे.. नीरू ने अपने कपड़ों को ठीक किया और दरवाजे पर दस्तक दी....
"कौन है?" वासू की विनम्र आवाज़ नीरू के कानो में पड़ी.
"सर.. मैं हूँ.. नीरू!"
वासू को कुछ पल के बाद याद आया की नीरू से वो मिल चुका है....
"क्या प्रायोजन है देवी? मैं ज़रा अध्ययन कर रहा था.."
"सर! मुझे कुछ सम्स करने थे!" नीरू को अपने स्वागत का तरीका नही भाया..
"पर मैं लड़कियो को अकेले में नही पढ़ाता देवी.. अपने साथ किसी को लाई हो..!"
"नही सर... पर आप एक बार दरवाजा तो खोल दिजेये.." हताश नीरू ने कहा...
"एक मिनिट!" कहकर वासू ने अपनी पुस्तक एक तरफ रखी और दरवाजे की तरफ आया....

दरवाजा खोलकर बाहर ही खड़ी नीरू को उसने प्रवचन देना शुरू कर दिया," देवी! नारी के चरित्रा की सोलह कलाओं में से एक ये है की उसको अपने पिता, भाई, और मर्द के अलावा किसी पुरुष की संगति में अकेले गमन नही करना चाहिए.. चरित्रा बड़ा ही अनमोल और नाज़ुक गुण है जो किसी भी क्षण मर्यादाओं को लाँघते ही छिन्न भिन्न हो सकता है...नारी का चरित्रा..."

नीरू ने वासू को बीच में ही टोक दिया," पता है सर.. पर मुझे ये सवाल समझने बहुत ही ज़रूरी थे.. इसीलिए..!"

"अक्सर मैं लड़कियों को दुतकार देता हूँ.. पर तुमने मेरी चंद असामाजिक तत्त्वों से उलझने से बचाने की पूरी कोशिश की थी.. इसीलिए तुम्हारा मुझ पर अहसान है.. अंदर आ जाओ.." कहकर वासू पीछे हट गया..

नीरू अंदर आकर दरवाजा ढालने के लिए मूडी तो वासू तुनक पड़ा," नही नही देवी.. दरवाजा खुला छ्चोड़िए.. बुल्की दोनो कपाट खोलिए.. अच्च्ची तरह से... हां ऐसे... आ जाओ!"
नीरू को वासू की बातें सुनसुनकर पसीने आने लगे.. वह बेड के पास आकर खड़ी हो गयी..
"बैठ जाओ.."
जैसे ही नीरू बेड पर बैठने लगी.. वासू ने उसको फिर रोक दिया," बिस्तेर पर तो मैं बैठा हूँ.. आप वो कुर्सी ले आइए प्लीज़..

नीरू आनमने मॅन से कमरे के कोने में रखी कुर्सी उठा कर लाई और बेड के साथ रखकर उसस्पर बैठ गयी. हल्क नीले रंग के बड़े गले वाला कमीज़ पहने हुए नीरू के कंधों पर उसकी ब्रा की सफेद पत्तियाँ उसके उभारों को संभाले हुए थी. गला बड़ा होने की वजह से नीरू के मदमस्त उभारों के बीच की घाटी काफ़ी गहराई लिए हुए दिखाई दे रही थी. नीरू ने शायद जानबूझ कर अपनी चुननी को थोड़ा सा नीचे खींच रखा था, ताकि उसको दीवानी करने वाले
बुद्धू के मॅन में प्रेम-रस की उमंगें उपज सकें.

"लाओ! कौनसे सवाल हैं...?"
"सर.. ये! " नीरू ने आगे झुकते हुए जब बुक वासू के आगे बेड पर रखी तो वासू की नज़र उसके यौवन फलों के बीच अंजाने में ही जाकर अटक गयी... वासू को अचानक ही हनुमान जी याद आ गये..," हे राम!"
वासू ने शर्मा कर अपनी नज़रें घुमा ली.
"क्या हुआ सर?" नीरू वासू के मॅन में उठे भंवर को समझ गयी, पर हिम्मत करके अंजान बनी रही....
"कककुच्छ नही...! एक मिनिट रूको.." वासू ने उसके इष्टदेव 'हनुमान' की और देखा. उन्होने तो आँखें बंद कर रखी थी.. पर पास ही 'श्री राम जी' मंद मंद मुस्कुरा रहे थे, मानो कह रहे हों " बहुत हुआ वत्स! तपस्या पूर्ण हुई... उठो; आगे बढ़ो और ब्रह्मचर्या के व्रत का निस्पादन करो...."

पर शायद वासू, श्री राम की मुस्कान का अर्थ समझ नही पाए.. वासू ने संभालने की कोशिश की, पर कहीं ना कहीं उन्न भरवाँ उरोजो के वजन तले वो बेचैनी महसूस कर रहा था," नही.. ऐसा करो; तुम उपर ही आ जाओ देवी! वहाँ से मुझे 'असहज' महसूस होता है.."
नीरू हुल्की शरारती मुस्कान के साथ उठ कर उपर बैठ गयी और वासू के सामने आलथी-पालती मार कर बैठ गयी.
छातियाँ अब भी ऐसे ही सीना ताने खड़ी थी, पर एक और हद हो गयी.. नीरू की उसकी जांघों से चिपकी हुई सलवार नीरू के उपर से नीचे तक 'ख़तरनाक' ढंग से मादक होने का सबूत दे रही थी.
वासू शास्त्री विचलित हुए बिना नही रह सका. उसको अपने आपको 'गिरने' से बचाने का एक ही रास्ता सूझा," य्य्ये.. सवाल मुझे नही आते!"
"क्यूँ सर जी! आप तो मथ्स के ही टीचर है ना..." नीरू ने मॅन मसोस कर कहा..
"हां.. पर....!" वासू के माथे पर पसीना छलक आया.. अब वो नीरू को कैसे बताता की उसको देखकर उसका मॅन डोलने लगा था...
"पर क्या सर????" नीरू वासू को अपने से नज़रें हटाए देख समझ गयी....
"कककुच्छ नही... फिर कभी समझा दूँगा.. आज मेरी तबीयत ठीक नही है..." वासू की तबीयत सचमुच पहली बार खराब होने लगी थी.
नीरू.. वहीं बैठी रही.. और शरारत से वासू के हाथ को अपनी कोमल उंगलियों में पकड़ लिया..," सर! आपका बदन तो तप रहा है.. क्या में आपका सिर दबा दूँ..."

वासू को कुच्छ समझ ही नही आ रहा था..," नही.. रहने दो.. तुम्हारे जाने के बाद ठीक हो जाएगा..!"
"तो क्या मैं जाउ सर?"
"हां! तुम्हारा जाना ही उचित रहेगा.. तुम चली ही जाओ.!" वासू का दिल और दिमाग़ एक दूसरे का साथ नही दे रहे थे...
नीरू बुरा सा मुँह बनाकर उठ गयी.. अचानक ही एक आइडिया उसके दिमाग़ में आया," सर! आपने मुझे योग और आसन सिखाने का वादा किया था.."
"कब..!" वासू ने अधखिले दिल से नीरू की और देखा..
"जब हम शहर गये थे सर...!"
"क्या सच में.. मुझे तो याद नही आ रहा.. और फिर ... अकेले क्या तुम्हारा रोज़ आना ठीक रहेगा??"
"हां. सर! आपने वादा किया था.. प्लीज़ सर.. आपने ही तो कहा था.. योग से बढ़कर इश्स दुनिया में कुच्छ नही.."
"वो तो ठीक है.. पर.."
"पर क्या सर.. प्लीज़.. मुझे योग सीखना है.. प्लीज़ सर प्लीज़.." वासू को हथियार डालते देख नीरू ने मचल कर उसका हाथ पकड़ लिया...
पौरुष के चलते एक हसीन जवान लड़की की इश्स तरह अनुनय के चलते वासू बुरी तरह उखड़ गया... लड़की भोग बन'ने को लालायित थी.. अब इज़्ज़त वासू के हाथ में ही थी.. अपनी भी और नीरू की भी....
कुच्छ पल विचर्मग्न होने के बाद वासू ने मॅन ही मॅन इज़्ज़त को ताक पर रखने का फ़ैसला कर लिया..," ठीक है नीरू.. कल सुबह 4:30 पर आ जाओ!"
नीरू ख़ुसी के मारे उच्छल पड़ी..," थॅंक यीयू सर.." और खुशी से मचलती हुई वहाँ से विदा ले गयी...

आज तक अपने आपको संभाले हुए दोनो' आज जाने कैसे एक दूसरे को समर्पण करने को तैयार थे.....

"मम्मी! मुझे सुबह 4:00 बजे उठा देना; टूवुशन पढ़ने जाना है." नीरू का दिल बल्लियों पर टंगा था.
"अरे. कोई ढंग का टाइम नही मिला.. 4:00 बजे का टाइम भी कोई टाइम होता है; घर से बाहर निकालने का.." मम्मी ने कपड़े रस्सी पर सूखाने के लिए डालते हुए कहा.

"वो.. उसके बाद सर के पास टाइम नही है.. दिन में उनको और बच्चों को भी टूवुशन देना होता है.. फिर 5 बजे तो दिन निकल ही जाता है..." नीरू ने ये नही बताया की वो टूवुशन किस चीज़ का पढ़ने जाएगी...

"अरे दिन निकलने की बात नही है बेटी.. गाँव में हर किसी को पता है.. इश्स नये सर से शरीफ इंसान शायद ही कोई हो.. उसको किसी ने आजतक नज़रें उठाए भी नही देखा.. बस मैं तो यूँही कह रही थी... की सुबह उनको परेशानी नही होगी क्या?"

"उन्होने खुद ही तो ये टाइम दिया है मम्मी.. आप क्यूँ परेशान होती हैं..?" कह कर नीरू अपने कमरे में चली गयी.." वासू पूरी तरह उसके दिलो-दिमाग़ पर छा चुका था.....

अगली सुबह नीरू ठीक 4:30 पर दिशा के घर के सामने थी.. घर का मुख्य द्वार अंदर से बंद था.. नीरू ने आवाज़ लगाई तो वाणी उंघाती हुई बाहर आई..
"कौन है?"
"मैं हूँ, नीरू! दरवाजा खोलो वाणी.."

"क्या हुआ दीदी? इतनी सुबह..." वाणी ने दरवाजा खोलते हुए अचरज से पूचछा..
"वो... वाणी.. मैने योगा सीखना शुरू किया है.. सर से! " फिर हिचकते हुए कहा..," तू भी सीख ले.. बहुत ही फ़ायदेमंद होता है..."
" ठीक है दीदी.. मैं अभी दीदी को कहकर आती हूँ..." वाणी तुरंत तैयार हो गयी..
नीरू के तो मानो अरमानो पर पानी फिर गया.. उसने तो यूँ ही कह दिया था.. उसको मालूम नही था की वाणी तैयार हो जाएगी... अब ना वो वासू पर खुलकर डोरे डाल पाएगी.. और ना ही वासू खुलकर उसको दिल की बात कह सकेगा.. कितनी तैयारी करके आई थी वा.. पतला सा लोवर और एक टी-शर्ट डालकर आई थी वह.. टी-शर्ट उसके मद-मस्त फिगर पर टाइट थी, जिस-से उसके अंगों की लचक कपड़े में छिप नही पा रही थी. लोवर भी घुटनो से उपर उसके शरीर से चिपका हुआ था.. जांघें योनि से थोड़ा सा नीचे एक दूसरी से चिपकी हुई थी और योनि का उभर मखमली से कपड़े में से अजीब सा नशा पैदा कर रहा था.... सचमुच नीरू के रूप में 'मेनका' ने वासू जैसे विश्वामित्रा की तपस्या भंग करने की ठान रखी थी.. पर अब.. वाणी.. सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा....

नीरू अपने दिल में मधुर सी कशिश लिए सीढ़ियों पर चढ़ि. बदन में अजीब सी कसक थी जो नीरू के अंग अंग को किसी खास आनंद से अलंकृत कर रही थी. गाँव का हर लड़का यही कहता था की ना जाने नीरू कौनसी मिट्टी की बनी हुई है जो किसी मनचले या दिलजले पर उसकी नज़रें इनायत नही होती. पर आज ये मिट्टी वासू के खास अंदाज, मृदुल स्वाभाव, मर्दाना ताक़त के ताज मात्रा से ही भरभरा उठी थी.. वासू के दुनिया से हटकर चरित्रा को देखकर जाने कौनसी खास घड़ी में कामदेव ने उसस्पर प्रेमबाण चला दिया की वा सब कुच्छ भूल कर, सारी मर्यादायें त्याग कर क्रिशन की मीरा की तरह उस्स इंसान की दीवानी हो गयी..... उसने पिच्छले 15 दिन बड़ी मुश्किल से काटे थे, वासू के साथ एकांत की तमन्ना लिए और आज उसकी इच्च्छा पूरी होने ही वाली थी की वाणी ने तूसारा पात कर दिया...

वह उपर चढ़ि ही थी की पिछे वो अनोखी गुड़िया रूपी हरमन प्यारी वाणी भागती हुई सी उपर आ चढ़ि... वाणी का यौवन दिन प्रतिदिन चमेली के फूल की भाँति निखरता जा रहा था... उसके हरपल खिलखिलाते स्वाभाव के अलावा उसके बदन में से लगातार उत्सर्जित होने वाली सम्मोहित कर देने वाली मादक महक हर किसी को एक ही बात कहने पर मजबूर कर जाती थी...'काश!' उसके रूप और अल्हाड़ता के तो कहने ही क्या थे.. मनु का खुमार उसके दिल से निकल चुका थे और वो जी भर कर अपने घर उच्छलती कूदती छुट्टियो का आनंद ले रही थी, और दे रही थी; उस्स'से रूबरू होने वाले हर शख्स के दिल को अजीब सी ठंडक.....

वाणी अपने नाइट सूट में ही उपर आई थी..... नीरू दरवाजे पर खड़ी कुच्छ सोच रही थी.. की वाणी ने आकर उसकी कलाई को अपने कोमल हाथ से पकड़ लिया," मेरा इंतजार कर रही हो दीदी.."
"दरवाजा खटखटा ना!" नीरू ने वाणी से अनुरोध किया...

वाणी ने झट से दरवाजे पर दस्तक दी...

"वही रूको.. बाहर! मैं वही आ रहा हूँ.."

वासू आज रात ढंग से सो भी ना पाया.. यूँ तो उसको लड़कियों से कभी लगाव नही रहा.. पर आज पहली बार किसी लड़की को योगा सीखने के नाम से ही बदहज़मी सी हो रही थी.. कोई और इंसान होता तो शायद नीरू को अंदर बुलाकर बेड पर ही सारे आसान सीखा देता.. पर वासू तो वासू था...

वासू 2 चटाई उठाए बाहर निकला.. और एक की जगह 2 कन्याओं को देखकर अचंभित हो गया," वाणी तुम????"

"हां सर जी! मैं भी योग सीखूँगी..." वाणी उत्सुकता से बोली.

"चलो! एक से भली दो" वासू ने लुंबी साँस ली और चटाईयां आमने सामने बिच्छा दी.. बाहर छत पर ही.. नीरू प्रेमपुजारीन की तरह एकटक उसके चेहरे को देखे जा रही थी..

वासू एक चटाई पर स्वयं बैठ गया और उन्न दोनो को अपने सामने दूसरी चटाई पर बैठने का निवेदन किया," बैठ जाओ.." जाने क्यूँ आज उसने उनमें से किसी को भी 'देवी' नही बोला......

वाणी नीरू के मॅन में हो रही हुलचल से अंजान, यूँही, बेपरवाह सी चटाई पर बैठ कर उत्सुकता से वासू की और देखने लगी. वाणी के अंगों की मस्त भूल भुलैया उसके अस्त व्यस्त कपड़ों में से किसी को भी अपनी और खीच सकती थी... सर से पैर तक गदराई हुई वो जवानी की देवी वासू की तरह ही कमर सीधी करके, सीना तान कर चटाई पर विराजमान थी.

नीरू 'योगा' के लिए खास तैयारी करके आई थी. उसके वक्षों से चिपकी हुई उसकी टी-शर्ट फट पड़ने को बेताब थी.... अफ! इतनी टाइट! इतनी सेक्सी!
नीरू ने अपनी टी शर्ट को नीचे खींचा, पहले से ही उस्स में घुटन महसूस कर रहे यौवन फल कसमसा उठे और उच्छल कर अपना प्रतिरोध जताते हुए शर्ट को वापस उपर खींच लिया.. टी- शर्ट के उपर उतने से नीरू का चिकना पेट अनावृत हो उठा.. ऐसी सुन्दर नाभि देख कर भी वासू ने आह नही भरी तो कोई क्या करे....

"सबसे पहले आप मेरी तरह आसान लगाकर बैठ जायें.....

........ आज के लिए इतना ही प्रयाप्त है.. हम धीरे धीरे योग चक्र की आवृति बढ़ाते जाएँगे.." करीब 15 मिनिट तक कुँवारी कलियों के कमसिन बदन को तोड़ मरोड़ सीखा कर वासू अपने आसान से उठ बैठा..

उसने ऐसा कुच्छ नही किया जिस'से नीरू को उम्मीद की कोई किरण दिखाई दे...

वासू के कहते ही वाणी नीचे चली गयी.. पर नीरू कुच्छ कदम वाणी का साथ देकर वापस पलट आई...," सर!"
"बोलो देवी!" वासू फिर से देवी पर आ गया..
"वो.. कुच्छ नही सर!" नीरू से बोला ना गया..

"कोई बात नही!"
वासू के मॅन में ज़रा सी भी उत्सुकता ना देखकर नीरू मन मसोस कर रह गयी...
"सर...!"
"हां.. ?" कमरे में जा रहे वासू ने पलट कर फिर से जवाब दिया..
"मेरे पेट में दर्द हो रहा है.. ज़्यादा!" नीरू ने बहाना बनाया..
"क्या तुम शौच आदि से निवृत हो ली थी.." वासू के चेहरे पर शंका के भाव उभर आए...
"और नही तो क्या?" नीरू ने झेंपटे हुए कहा...

"लगता है तुमने आलोम विलोम करते हुए उदर पर अधिक दबाव डाल दिया.. ज़रा ठहरो.. मैं तुम्हे एक विशेष चाय पिलाता हूँ.. अस्मिक भस्म वाली.." वासू ने नीरू को अंदर आने का इशारा किया..

पर नीरू तो किसी और चीज़ की प्यासी थी.. उसका रोग तो प्रेम रोग था, जो जड़ी बूटियों का नही, वासू की कृपा द्रस्टी का दीवाना था.. पर चलो, कुच्छ भी नही से कुच्छ ना कुच्छ ही सही," ठीक है सर..." कह कर नीरू कमरे में आ गयी..

"अगर पीड़ा अधिक है तो लेट जाओ...!"

नीरू अपनी दोनो बाहें पिछे करके बेड पर कमर के बल लेट गयी... वह क्या आसान था, छ्चातियाँ कसमसा कर तन गयी.. नीरू का गोरा मुलायम पेट नाभि से उपर तक अपनी झलक दिखाने लगा.. नीरू आँखें बंद करके इश्स कल्पना में डूब गयी की वासू जी उसके बदन को देखकर पागल हो गये होंगे....

पर वासू तो निसचिंत होकर चाय बना रहा था, अपनी प्रेम पुजारीन के लिए.. अश्मिक भस्म वाली!

चाय बनाकर जैसे ही वह कमरे में आया, नीरू की स्थिति देखकर एक बार को उसके कानो में से हवा निकल गयी.. चाय गिरते गिरते बची और कुच्छ पल के लिए वासू एक टक इश्स अभूतपूर्व सौंदर्या प्रतिमा को देखता रह गया......

Thursday, 25 September 2014

masti ki pathsala - 34

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-34
टफ का दिल प्यार के गहरे समंदर में हिलौरे मार रहा था.. उसका दिल ऐसे धड़क रहा था मानो किसी नाज्नीन' से पहली बार रूबरू होने जा रहा हो. जैसे ही टफ बेड पर सीमा के पास जाकर बैठा; वह किसी च्छुई मुई की तरह अपने ही पहलू में सिमट गयी.. मानो मुरझा जाने के डर से पहले ही कुम्हला गयी हो.. या शायद इस रात के एक एक पल को अपनी साँसें रोक देने के लिए मजबूर कर रही हो...

टफ ने सीमा का दाहिना हाथ अपने हाथ में ले लिया," सीमा! मुझे अभी तक विस्वास नही हो रहा, मैं इतना खुसकिस्मत हूँ."

सीमा कुछ ना बोली; सिर्फ़ टफ के हाथ को हुल्के से दबा दिया, मानो उसको विस्वास दिला रही हो ' जान! ये सपना नही; हक़ीकत है. '

टफ ने सीमा के हाथ को प्यार से उपर उठाया और चूम लिया.

सीमा सिहर उठी. उसका प्यार, उसकी चाहत उसके सामने थी. पर वो हिचक रही थी, अपने अरमानो की सेज़ पर बैठी सीमा उन पलों को सदा के लिए अपने पहलू में सज़ा लेना चाहती थी.. पर हया की झीनी चादर ने उसको रोक रखा था.. उसने हुल्की सी नज़र इनायत करके टफ को देखने की चेस्टा की.. वो मुस्कुरा रहा था; फूला नही समा रहा था, अपनी किस्मत पर.
टफ ने सीमा की ठोडी पर हाथ रख कर उसका चेहरा उपर उठा दिया; और सीमा की कजरारी आँखें शर्म से झुकती चली गयी.. चेहरा सुर्ख लाल हो गया. सीमा के चेहरे से उसकी बेकरारी सॉफ झलक रही थी.
टफ थोड़ा सरक कर उसके और पास बैठ गया और उसकी बाहों के नीचे से अपने हाथ निकाल कर उसको आमंत्रित किया; सीमा बिना एक पल भी गवाए उस'से लिपट गयी," आइ लव यू, अजीत"
टफ सीमा के कान के पास अपने होंठ लेजाकार हौले से बरसा," आइ.. लव यू टू जान!"
सीमा ने टफ को कसकर थाम लिया.. कानो से होती हुई टफ की आवाज़ सिहरन बनकर सीमा के सारे शरीर में तेज सुगंध की तरह फैल गयी.. उसका बदन अकड़ने लगा; और शरीर में वर्षों से सॅंजो कर रखी गयी प्रेम की अग्नि दाहक उठी...

सीमा ने अपने आपको समर्पित कर दिया; टफ को कसकर अपने प्रेम पीपासु सीने से लगा लिया.

टफ को अहसास हुआ, प्यार करना.. सेक्स करने से कहीं ज़्यादा रोमांचक है.. सीमा के छाऱ हरे बदन की गंध ने टफ को सम्मोहित कर दिया. अपना चेहरा पीछे करके टफ ने एक बार सीमा को गौर से देखा और उसके सुलगते लबों पर अपने लारजते होंठ रख दिए. सीमा तो दहक्नी थी ही, टफ को भी यूँ अहसास हुआ मानो उसने अंगारों पर होंठ रख दिए हों. टफ के सारे 'पाप' भस्म होते चले गये...

"क्या मैं तुम्हे छू सकता हूँ?" टफ ने करीब 2 मिनिट बाद कुछ कहने के लिए अपने होंठो को आज़ाद किया.
सीमा ने अपनी नज़रें झुका कर टफ के हाथों पर अपने कोमल हाथों की जकड़न को हूल्का सा कस दिया, ये उसकी स्वीकृति ही तो थी... जिसको टफ समझ ना पाया या फिर जान बूझ कर नही समझा," बोलो ना!"
सीमा ने शर्मा कर अपना सिर टफ की सुडौल छाती पर टीका दिया और अपना शाऱीऱ ढीला छोड़ कर आँखें बंद कर ली.... अब भी कोई ना समझे तो ना समझे.. बस!

पर टफ भी एक नंबर का खिलाड़ी था.. आज पर्मिशन लिए बिना आगे बढ़ने में क्या मज़ा था.. उसने सीमा को प्यार से अपने से थोड़ा दूर हटा कर पूछा..," अब कब तक शरमाती रहोगी? बताओ भी.. तुमको छू लूँ क्या?"
"छोड़ो भी.. मुझे तुम्हारे दिल की धड़कन सुन'ने दो..." कहकर सीमा फिर उसकी छाती से लिपट गयी.... अपने यौवन फलों को टफ के शरीर से सटा कर...
टफ ने सीमा को कस कर अपने सीने से लगा लिया.. और एक प्यार भरी मोहर उसके माथे पर लगा दी," क्या बात है? कोई परेशानी है क्या?"
सीमा आज टफ के साथ एक सार होने को मारी जा रही थी," मुझे नही पता था की तुम इतने बुद्धू हो" कहकर सीमा ने शरारत से टफ को चिकौती काट ली...
"अऔच!" टफ को सिग्नल मिल गया था.. टफ ने लेट कर करवट बदल ली और सीमा का जिस्म टफ के नीचे आ गया.
सीमा ने एक हुल्की सी 'आह' भरकर मुस्कुराहट के साथ अपनी बेकरारी जाहिर की.. टफ ने उसके दोनो हाथों को अपने हाथों में पीछे ले जाकर दबोच लिया और उसकी गालों और गले को बेतहाशा चूमने लगा..

सीमा आगे बढ़ने को लालायित थी, टफ के बेतहाशा चुंबनो का जवाब वो अपनी शरमाई हुई सी आवाज़ में आहों के साथ देने लगी...
टफ ने थोड़ा सा पीछे हटकर सीमा के कमसिन पेट पर अपना हाथ रख दिया और सूट के उपर से ही सीमा के तन में हुलचल पैदा करने लगा.. हाथ धीरे धीरे उपर आता गया और सीमा बेकाबू होती चली गयी..," आइ लव यू अजीत.. आह" हाथ ज्यों ज्यों उपर सरकता गया, सीमा के शरीर की ऐंठन बढ़ती गयी..
अचानक टफ के हाथों को उनकी पहली मंज़िल मिल ही गयी.. टफ ने सीमा के गोले स्तनो पर हाथों से सिहरन पैदा करनी शुरू की तो सीमा आपे में ना रह पाई..," आआआः अजीत... प्लीसेस्स!"
ये 'प्लीज़' टफ को रोकने के लिए नही था.. उसको आगे बढ़ने को प्रेरित करने के लिए था.. जल्दी से! कुँवारी सीमा की तड़प हर छूआन के साथ बढ़ती चली गयी..




टफ ने सीमा को बैठाया और उसकी कमीज़ को उपर उठाने लगा....
सीमा ने कमीज़ के पल्लू पकड़ लिए,"लाइट बंद कर दो प्लीज़!" उसकी आँखें एक बार फिर बंद थी..
"क्यूँ?" टफ उसको जी भर कर देखना चाहता था..
"मुझे शर्म आ रही है...प्लीज़ कर दो ना" सीमा ने अपने होंठ टफ के कानो से छुआ कर कहा...
टफ अपनी जान की इतने प्यार से कही गयी बात को कैसे टाल देता.. देख तो वो फिर कभी भी सकता था.... टफ ने उठ कर लाइट ऑफ कर दी!

उसके बाद सीमा की तरफ से कोई प्रतिरोध नही हुआ.. उसका हर वस्त्रा टफ उसके शरीर से अलग करता चला गया...

और अब अंधेरे में ही सीमा के अद्वितीया शरीर की आभा ने जो छटा बिखेरी, टफ दीवाना हो गया.. सीमा के गालों से शुरू करके टफ ने नीचे आते हुए उसके शाऱीऱ के हर हिस्से में कंपन सा पैदा कर दिया, कसक सी भर दी.. ज्यों ही टफ का हाथ सीमा की अनन्य कोमल सुडौल जांघों के बीच आया.. सिसकती हुई सीमा ने उसके हाथ को पकड़ लिया," आआह... जीईएट!"
टफ तो पहले ही अपनी सुध बुध खो चुका था..," प्लीज़ सीमा.. मत रोको अब.. हो जाअने दो. जाने कितना इंतजार किया है.. इस रात का... प्लीज़.. अब और ना तड़पाओ..!"
सीमा तो खुद तड़प रही थी.. इस 'खास' पल के लिए.. वह बहक सी गयी..," आइ लव यू जान!"
"आइ लव यू टू स्वीट हार्ट!" कहते हुए टफ ने सीमा के सीने के एक उभार पर मस्ती से हाथ फेरा और दूसरे पर मोती की तरह टीके हुए दाने को अपने होंठो की प्यास से वाकिफ़ कराया.. दोनो की साँसे दाहक रही थी.. साँसों की थिरकन भारी आवेशित आवाज़ से माहौल संगीत मेय हो गया.. और दोनो उस झंकार में डूबते चले गये....

उसके बाद जो कुछ भी हुआ.. ना टफ को याद रहा. ना सीमा को बस दोनो एककार होकर एक दूसरे में समाने की कोशिश करते रहे.. शुरुआत में सीमा की पीड़ा को टफ ने अपने चुंबनो से हूल्का किया और जब सीमा टफ को 'सारा' अपने अंदर झेलने के काबिल हो गयी तो टफ ने अपने कसरती बदन का कमाल दिखना शुरू किया.. हर धक्के के साथ सीमा प्यार से आ भर उठती.. दर्द अब कहीं आसपास भी नही था.. सिर्फ़ आनद था.. प्रेमानंद!

आख़िरकार जब टफ ने अपने सच्चे प्यार की फुहारों से सीमा के गर्भ को सींचा तो सीमा भी प्रतिउत्तर में रस से टफ की मर्दानगी को नहलाने लगी..

दोनो पसीने में नहा उठे थे.. दोनो ने कसकर एक दूसरे को पकड़ा और स्वर्णिम सुहाग्रात के बाद काफ़ी देर तक एक दूसरे को 'आइ लव यू' बोलते रहे.. हर स्पंदन के साथ.....

निर्वस्त्रा सीमा से लिपटा हुआ टफ अपने को दुनिया का सबसे सौभाग्या शालि इंसान समझ रहा था. ऐसी नज़ाकत, ऐसी मोहब्बत, ऐसा
प्यार और इतना हसीन शरीर हर किसी को नसीब नही होता. प्यार के तराजू के दोनो पलड़े अब बराबर थे, सीमा को टफ मिल
गया और टफ को सीमा... हमेशा के लिए!!!

टफ की जिंदगी में सीमा रूपी फ़िज़ा ने ऐसी छटा बिखेरी की उसकी जिंदगी गृहस्थी की पटरी पर सरपट दौड़ने लगी, उधर सिद्धांतों के शास्त्री वासू की जीवन रूपी रेल पटरी से उतरने वाली थी.....
 

Tuesday, 23 September 2014

masti ki pathsala - 33

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-33
विकी यूनिवर्सिटी के गेट के बाहर गाड़ी में बैठा था.. किसी शिकार के इंतजार में..
दोस्तो विकी नाम का ये किरदार भी अब इस कहानी का हिस्सा बन गया है वैसे तो विकी अपने अजीत यानी टफ ओर शमशेर का स्कूल के जमाने का दोस्त है ओर आज कल सीमा के कोलेज के चक्कर किसी नयी लड़की को फसाने
के लिए लगा रहा था
उसकी आँखें रात को ज़्यादा शराब पीने की वजह से अब भी लाल थी.. जाने कितनी लड़कियों को वा अपने बिस्तेर तक ले जा चुका था.. अपने पैसे, सूरत और जवान मर्द जिस्म की वजह से.... उसका अंदाज निराला था लड़की को सिड्यूस करने का.. कोई खूबसूरत लड़की उसको दिख जाती तो वा उसको नंगी करके ही दम लेता.. 2-4 दिन उसके पीछे चक्कर लगाता.. पट जाती तो ठीक वरना पहले ही उसको अपना 'सब कुछ' दे चुकी लड़कियों को उसके पीछे लगा देता.. उसके बारे में हर बात जान लेता.. फिर उसकी दुखती राग पर चोट करता.. आम तौर पर लड़की भावनाओं में बहकर उसकी बाहों में आ ही जाती थी... और फिर वो खुल कर उसके शरीर और उसकी भावनाओ से खेलता... कोठी पर ले जाकर...

ऐसी भी लड़कियों की कमी नही थी जो उसकी हसियत से प्रभावित होकर अपने उल्टे सीधे अरमान पूरे करने के लिए उसकी रखैल बन जाती...
विकी एक घंटे से किसी नयी चिड़िया के लिए जाल बिछाए बैठा था.. पर आज लगता है उसका दिन खराब था..
नही... ! आज का दिन तो उसके लिए जाने कितनी बड़ी सोगात लेकर आया था.. बॅक व्यू मिरर में उसने देखा.. एक मस्त फिगर वाली लड़की अपनी छाती से किताबें चिपकाए, अपने हाथ से हवा में ऊड रहे बालों की लट सुलझती बड़ी शराफ़त से चलती उसकी गाड़ी की और आ रही थी... थोड़ा पास आने पर वो चौंक गया.. इतनी खूबसूरत लड़की उसने आज तक देखी ही नही थी.. मोटी आँखें.. भरे भरे गाल.. गोले चेहरे.. चेहरे पर जहाँ भर की मासूमियत लिए.. वो नज़रें झुकायं चली आ रही थी..

जैसे ही लड़की अगली खिड़की के पास आई.. विकी ने अंजान बनकर खिड़की अचानक खोल दी.. लड़की टकराते टकराते बची," उप्पप्प्स.."
"सॉरी मिस...? मैं पीछे देख नही पाया.. आइ आम टू सॉरी" विकी ने अपनी आँखों से 'रेबन' का ड्युयल पोलेराइज़्ड गॉगल्स उतारते हुए कहा.
"इट'स ओके!" लड़की ने बिना उसको देखे अपना रास्ता बदला और आगे चल दी..
"ओह माइ गॉड! क्या लड़की है यार... आज से पहले मुझे ये क्यूँ नही दिखी" लड़की के कुल्हों के बीच जीन्स में बनते बिगड़ते कयामत ढा ते भंवर को देखकर विकी ने सोचा....
"सुनिए मिस...!" विकी ने स्टाइल में उसको पुकार कर रोका...
"जी.. मैं?" लड़की आवाज़ सुनकर पलटी..
"जी.. नाम तो बताती जाइए.. दुनिया इतनी छोटी है.. जाने कब कहाँ मुलाक़ात हो जाए.. कूम से कूम आपका नाम तो याद रख ही सकता हून...!" विकी ने अपना पहला दाँव खेला...
"नही! मेरी दुनिया इतनी छोटी नही की उसमें हर टकराने वेल से मुलाक़ात होती रहे.." लड़की ने रूखा जवाब दिया...
"देखिए.. मैं यहाँ नया हूँ.. मुझे यूनिवर्सिटी लाइब्ररी में किसी से मिलना है.. अगर आप रास्ता बताने की कृपा कर सकें तो...?"
"यहाँ से अंदर जाकर रोज़ पार्क से लेफ्ट हो जाइए... लाइब्ररी पहुँच जाएँगे.." कहते ही लड़की ने चलना शुरू किया...
"नाम तो बताते जाइए..." विकी पीछे ही पड़ गया..
लड़की को विकी बातों से शरीफ आदमी जान पड़ा," सीमा.. सीमा ढनखाड़!... अब खुश?"
"आक्च्युयली.. मुझे लाइब्ररी नही जाना.. मैं भी आगे ही जा रहा हूँ.. अगर आप मेरी लिफ्ट कबूल कर लें.. तो मेरा आहो भाग्या होगा!" राजनीति में विकी किस समय पर कौनसी बात करनी है, सब जान गया था...
"अजीब आदमी हैं आप... पीछे ही पड़ गये.." कहकर सीमा अपने रास्ते चल दी...

सीमा के कुल्हों की कातिल लचक देखकर विकी अपने दिल पर हाथ रख कर खड़ा हो गया," जाएगी कहाँ जान... आज नही तो कल.. तू मेरी बाहों में आएगी ही.....


गर्ल्स स्कूल पार्ट --24

 आज सीमा का आख़िरी पेपर था और टफ सुबह सुबह ही नहा धोकर रोहतक जाने के लिए निकल रहा था जब माजी ने उसको टोका," अजीत बेटा!" "हां मा!" टफ के दरवाजे के बाहर जाते कदम ठिठक गये... "वो मैं कह रही थी... अब तो उमर हो ही गयी है.. रोज़ तेरे रिश्ते वाले चक्कर काट रहे हैं.. कल ही एक बहुत अच्छा रिश्ता आया है... लड़की बहुत ही सुंदर, पढ़ी लिखी और अच्छे घर से है.. तू कहे तो मैं उनको हां कह दूं...?" "मा.. मैं बस तुम्हे बताने ही वाला था.. वो... तुम्हारे लिए मैने बहू देख ली है..." टफ ने थोड़ा शर्मा कर नज़रें झुकाते हुए कहा... "अरे... तूने बताया नही... कौन है.. कहाँ रहती है.. तू जल्दी बता दे.. मैं उनसे मिल लेती हूँ बेटा.. तेरे भैया के विदेश जाने के बाद तो मैं बहू के लिए तरस गयी हूँ... "बतावँगा मा.. बस कुछ दिन रुक जाओ!" कह कर टफ बाहर निकल गया... मा की आँखें चमक उठी.... बहू की आस में! --------------- सीमा ने एग्ज़ॅम ख़तम होते ही टफ को फोन किया..," कहाँ हो?" "सॉरी सीमा... मुझे अचानक ड्यूटी पर जाना पड़ गया.. फिर कभी मिलते हैं.." टफ की आवाज़ आई.... सीमा की शकल पर मायूसी के भाव उभर आए.. रोनी सूरत बना कर वह बोली," पर... मैं... तुम बिल्कुल गंदे हो! मैं एक एक दिन कैसे गिन रही थी.. पता है? मैने तो आज तुम्हारे साथ घूमने का प्रोग्राम बनाया था.. छोड़ो.. मैं तुमसे बात नही करती..!" "घूमने का प्रोग्राम?... सच!" टफ की बाछे खिल गयी.. "और नही तो क्या... मैं मम्मी को बोल के भी आई थी.. की लेट हो जाउन्गि.. पर तुमने तो.. तुम सच में बहुत गंदे हो..!" सीमा प्यार से लबरेज गुस्सा झलकाते बोली.. "वैसे चलना कहाँ था.. सिम्मी?" "सिम्मी...?" कहकर सीमा हँसने लगी," ऐसे तो मेरी मम्मी बुलाती है.. प्यार से!!" "तो मैं क्या तुमसे प्यार नही करता... बोलो!" टफ मस्का लगाने पर उतारू हो गया... "उम्म्म ना! करते होते तो आज यहाँ नही होते क्या..?" "यहीं समझो... तुम्हारे दिल में...!" "दिल में होने से क्या होता है...? मौसम कितना अच्छा है.." सीमा आज कुच्छ मूड में लग रही थी.. "क्यूँ इरादा क्या है..? बड़ी मौसम की बात कर रही हो.." "इरादा तो था कुच्छ... पर तुम्हारे नसीब में ही नही है तो हम क्या करें!" सीमा इतराते हुए बोलती पार्क की तरफ आ गयी... "आज अपना वादा पूरा करना था क्या?" टफ ने उसको कभी बाद में किस देने का वादा याद दिलाया.... "हां करना तो था.. पर तुम्हारी किस्मत ही खोटी है तो मैं क्या करूँ...?" "सच... सच में इरादा था..." टफ उच्छालते हुए बोला.. टफ को अपने लिए इतना मचलता देख सीमा की खुशी का ठिकाना ना रहा.. वह हँसते हुए बोली...," हां... सच्ची... इरादा था..!" "तो चलो चलते हैं....!" टफ ने पिछे से आकर उसकी कमर में हाथ डाल लिया... "ऊईीईईईईईई..." अचानक अपने बदन को छुये जाने से सीमा उच्छल पड़ी... उसको क्या पता था की टफ वहीं से उस'से बात कर रहा था..," तूमम्म!" "और क्या.. तुम्हारे उस वादे की खातिर तो हम स्वर्ग से भी वापस आ सकते हैं.." टफ ने उसकी छाती पर कोमल घूसे बरसा रही सीमा के हाथों को पकड़ते हुए कहा.. "ओह थॅंक्स.. अजीत! तुम आ गये ... मैं सच मैं बहुत नाराज़ हो गयी थी.." सीमा ने अपना सिर उसकी छाति पर टीका लिया... "अब ये बातें छ्चोड़ो और अपना वादे के बारे मैं सोचो...." 'वादे' को याद करके सीमा शर्मा कर 'च्छुई मुई' की तरह कुम्हाला कर टफ से दूर हट गयी... फ़ोन पर बात और थी.. और सामने कुच्छ और... वो शर्मा कर इधर उधर ताकने लगी... "चलो चलते हैं..." टफ ने सीमा का हाथ पकड़ते हुए कहा.. "कहाँ?" सीमा अपना ही वादा याद करके सहमी सी हुई थी.. "कहीं तो चलेंगे ही... आओ..."

 और गाड़ी 5 मिनेट में ही सीमा के घर के सामने थी... "मुझे नही पता... मैं कुछ नही बोलूँगी.. तुम खुद ही बात कर लेना.. जो करो.." सीमा ख़ुसी और शरम से मरी जा रही थी.. उसने अपनी मा को कुच्छ नही बताया था.... अभी तक.. वो बता ही नही पाई थी.. "तुम आओ तो सही..." कहकर टफ उस से पहले ही अंदर घुस गया.. सीमा की मा उसको देखकर चिंतित हो गयी.. " क्या हुआ इंस्पेक्तेर साहब?" मा ने दरवाजे की चौखट पर ही नज़रें झुकाए खड़ी सीमा को देखकर डरते हुए कहा... "कुछ नही हुआ.. माता जी..! आप आराम से बैठिए... मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है..." सीमा अंदर आकर अपने पिताजी की तस्वीर की और देख रही थी... हाथ जोड़े! "माता जी.. मैं आपकी बेटी को अपने घर ले जाना चाहता हूँ... शादी करके..!" सीमा की मा बिना पलक झपकाए उसको देखने लगी.... "वो क्या है की आप सीमा से पूच्छ लो.. वो भी यही चाहती है... अगर आप इजाज़त दें तो मैं अपनी मा को आपके पास भेज दूं... बात करने के लिए..." मा की आँखों से निर्झर अश्रु धारा निकल पड़ी.. ," बेटा! मुझे यकीन नही होता की हमारी बेटी को उसके अच्छे कर्मों का फल भगवान ने इसी जानम में दे दिया." अपनी आँखें पोन्छते हुए उसने टफ के सिर की तरफ हाथ बढ़ा दिए.... टफ ने अपना सिर झुका कर उनका आशीर्वाद कबूल किया.... "बेटी" मा ने सीमा की तरफ देखते हुए कहा.. सीमा आकर अपनी मा की छ्चाटी से लिपट कर रोने लगी.. मानो उसको आज ही विदा लेनी हो.. अपनी ससुराल जाने के लिए... "क्या हुआ बेटी तुम खुश तो हो ना शादी से..." मा बेटी को रोता देख पूच्छ बैठी.. अपने आँसुओं का ग़लत मतलब निकलता देख सीमा ने झट से अपनी टोन बदल दी...," हां मा! मैं चाय बनती हूँ.. आप लोग बैठिए..." "मैं 2 मिनट में आई बेटी" कहकर मा बाहर निकल गयी... टफ ने जाते ही सीमा के हाथ पकड़ लिए.. और गुनगुनाने लगा," जो वादा किया है वो... निभाना पड़ेगा.." वादा याद आते ही सीमा के गालों पर शरम की लाली आ बिखरी.. नज़रें झुक गयी और होन्ट लरजने लगे.... उनके मिलन की घड़ी अब दूर नही थी.... सीमा जब अपने हाथों को टफ की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करने लगी तो टफ ने उसको छ्चोड़ दिया... सीमा उसकी छ्चाटी से लिपट गयी... प्रेम बेल की तरह! विकी ने आरती को फोन किया," हां आरती! मैने तुझे वो काम करने को कहा था.. क्या रहा?" आरती: सर, मैने आपको पहले ही कहा था. वो ऐसी लड़की नही है.. मैं उसको अच्छी तरह जानती हूँ... वो जान दे देगी.. पर अपने उसूलों से नही डिगेगि... विकी: मुझे भासन मत दो... सिर्फ़ मुझे ये बताओ वो कितने में मिलेगी... आरती: सॉरी सर.. मैने हर तरह से ट्राइ किया, पर उलटा उसने मुझे खरी खोटी सुना दी... और उसकी तो शादी भी होने वाली है.. शायद अगले हफ्ते.. नो चान्स सर! विकी: साली.. रंडी.. विकी के लिए कहीं भी 'नो चान्स' नही है.. अगर मुझे वो नही मिली तो तुझे मेरे कुत्तों से चुड़वांगा... कहकर विकी ने फोन काट दिया... शराब के नशे में धुत्त उसकी लाल आँखों में एक ही चेहरा तेर रहा था... सीमा

/36 घंटे से भी कम समय में विकी ने उसके बारे में हर जानकारी हासिल कर ली थी.. पर कहीं से भी उसको पॉज़िटिव रेस्पॉन्स नही मिल रहा था.. हर किसी ने उसको 'नो चान्स' ही जवाब दिया था.... आज तक विकी जितनी लड़कियों को अपने हरम मे लाया.. वो ऐसे या वैसे सीधी हो ही गयी थी.... पर सीमा ने तो उसको पागल ही कर दिया था.... विकी को उसका अपने गोरे सुंदर चेहरे से अपनी लट हटाना.. नज़रें झुकायं... छाती पर किताब रखे उसकी ओर आना... रह रह कर याद आ रहा था.... सीमा पहली लड़की थी जिसने उसके पैसे और हसियत को इतनी जबरदस्त ठोकर मारी थी... ' नो चान्स ' विकी ने अपना गिलास खाली करके ज़मीन पर दे मारा... मानो शीशे के टूटे हुए गिलास का हर टुकड़ा उस पर हंस रहा हो... पर विकी का घमंड टूटने का नाम ही नही ले रहा था.... आइ विल रेप हर... ''आइ विल रेप हर!" विकी की हुंकार से कोठी का कोना कोना काँप उठा.. उसको खाने की पूछने आ रहा नौकर दरवाजे पर ठिठक गया... विकी ने बोतल मुँह से लगाई और एक ही साँस में बची शराब अपने गले से नीचे उतार ली... नशा हद से ज़्यादा बढ़ गया था... विकी ने दौबारा आरती को फोने लगाया, साली.. कुतिया... मुझे नो चान्स बोला... उसको तो मैं चोदुन्गा ही... तुझे अगर यूनिवर्सिटी के हर लड़के के नीचे ना लिटाया तो मेरा नाम विकी नही... नंगी करके दौडावँगा साली... और सुन ले.. उसको उसकी सुहाग रात से पहले चोदुन्गा... मैं तोड़ूँगा उसकी सील.. मैं.. विकी!" विकी के हर शब्द से उसका रुतबा.. उसका पैसा.. और उसका हाथ टपक रहा था... "प्लीज़ सर..." लड़की की आवाज़ काँप रही थी...," आप जो कहोगे.. मैं करने को तैयार हूँ... प्लीज़.. मैने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है .. मैं फिर कोशिश करूँगी.. मुझे माफ़ कर दीजिए सर..." भय के मारे वो रह रह कर अटक रही थी... "अब तू कुच्छ नही करेगी.. अब मैं करूँगा.. तू सिर्फ़ ये बता.. वो यूनिवर्सिटी आती कब है.." विकी हर शब्द को चबा चबा कर बोल रहा था.. "सर.. अब तो एग्ज़ॅम ख़तम हो गये.. शायद वो अब नही आएगी...!" "चुप.. बेहन की... तो क्या मैं उसको घर से उठा कर लवँगा... बुला उसको.. कही भी... कैसे भी..." "सस्स्सीर.. वो... मेरे कहने से नही आएगी...!" "हाआप.... मादर चोद... अगर तूने कल शाम 4 बजे तक उसको किसी भी तरह से नही बुलाया.. कही बाहर तो समझ लेना.. तू गयी..." कहकर विकी ने फ़ोन काट दिया और कपड़ों समेत ही जाकर शवर के नीचे खड़ा हो गया... उसको सीमा चाहिए थी... हर हालत में... ---------------- अपनी जिंदगी और इज़्ज़त गँवाने के डर से अगले दिन सहमी हुई आरती ने अपनी एक सहेली को कोई बहुत ज़रूरी काम कहकर लाइब्ररी बुला लिया... और उसको बोल दिया की सीमा को ज़रूर लेकर आना है..... आरती को पता था.. सीमा उस लड़की के कहने पर आ सकती है... और हुआ भी यही.... आरती के कहने पर विकी अपनी दूसरी गाड़ी लिए तैयार खड़ा था... यूनिवर्सिटी गेट से थोड़ी पहले... Z ब्लॅक कलर के शीशों वाली गाड़ी भी ब्लॅक कलर की ही होंडा सिटी थी... आरती ने विकी को बता दिया था की उनका फ़ोन आ गया है और वो बस आने ही वाली हैं....

और विकी को सीमा आती दिखाई दे गयी... उसी स्टाइल में.. अपनी लाटो को सुलझाती... नज़रें झुकाए.. फ़र्क सिर्फ़ इतना था की आज वो सामने से आ रही थी... बजाय की बॅक व्यू मिरर में दिखाई देने के... विकी पिच्छली सीट पर बैठा था.. ड्राइवर ने इशारा पाते ही गाड़ी स्टार्ट कर ली... जब करीब तीन चार कदम का ही फासला रह गया तो विकी अचानक गाड़ी से उतरा.. सीमा का ध्यान उस पर नही था... वो तो नज़रें झुकाए चल रही थी... जैसे ही वो पिछली खुली खिड़की के सामने आई.. विकी ने बिना वक़्त गवाए उसकी बाँह पकड़ी और कार के अंदर धकेल दिया.. अचानक लगे इस झटके से सीमा अपने आपको बचा ना सकी और विकी तुरंत अंदर बैठ गया.. गाड़ी चल दी... उसके साथ वाली लड़की अवाक सी खड़ी देखती रह गयी.. 2 मिनट तक उसको जैसे लकवा मार गया हो.. और जब उसको होश आया.. तो शोर मचा कर बचाने वाला कुच्छ वहाँ बचा ही ना था.....

 सीमा अचानक हुए इस हमले से हतप्रभ होकर रह गयी... पहले तो वा अपनी आँखें विस्मय से फाडे विकी को देखने लगी.. और जब होश आया तो पागल सी होकर कार के सीशों पर हाथ मार कर चिल्लाने लगी.. पर z- ब्लॅक शीशों में किसी को क्या दिखाई देना था... अंत में वा विकी को अपनी और घूरता पाकर दूसरी तरफ वाली खिड़की से चिपक कर अनुनय भारी नज़रों से विकी को देखने लगी..," य.. ये क्या कर रहे हो... प्लीज़ मुझे नीचे उतार दो...!" विकी पर उसकी याचना का कोई प्रभाव ना पड़ा... वह अपनी जीत पर गर्व से तना बैठा था... उसको लगा.. सीमा उसकी हो चुकी है... उस रात के लिए... करीब 5-6 मिनिट में ही कार कोठी के गैराज में जा रुकी... जैसे ही ड्राइवर ने चाबी निकली, 'कट' की आवाज़ के साथ खिड़किया अनलॉक हो गयी.. सीमा ने तुरंत खिड़की खोली और कार से निकल कर भागी.. विकी ने उसको रोकने की कोशिश नही की... ग़ैराज का मैं गेट बंद हो चुका था... पीछे की तरफ से 4 सीढ़ियाँ चढ़कर एक दरवाजा था... वो कहते हैं के जब मौत आती है तो गीदड़ शहर की और भागता है.. सीमा भी उसी और भागी.. रास्ता सीधा गेलरी से होकर बेडरूम में जाता था... भागती हुई सीमा को गलरी में खड़े करीब 6.5 फीट के कद्दावर बॉडीगार्ड ने पकड़ लिया... "हराम जादे... छोड़ उसे.." विकी की गुर्रति आवाज़ सुनते ही बॉडीगार्ड 2 कदम पीछे हटकर नीचे सिर करके खड़ा हो गया..," सॉरी सर!.. मैं तो आपकी खातिर..." "क्या एम.पी. साहब आए हैं?" विकी ने उसके पास आते हुए पूछा... "जी... सर.. बस अभी आए हैं...." "क्या प्रोग्राम है... ?" विकी ने पलट ते हुए बॉडीगार्ड से पूचछा.. "दिन भर यहीं हैं... शायद रात को जायेंगे.. आलाकमान के पास.. !" विकी अपनी चाल तेज करते हुए बेडरूम में घुसा.... सीमा एक कोने में डुबकी बैठी थी... मंत्री उसके पास ही खड़ा अपने गंदे दाँतों में टूतपिक फसाए.. बेशर्मी से अपना कुर्ता उपर करके पेट पर हाथ फेर रहा था...," आए हाए.. छमियां.. कितना सेक्सी गिफ्ट लेकर आया है विकी मेरे लिए... तेरे जैसी हसीन को चोदे अरसा हो गया... वैसे पहले कभी चुदवाई हो की नही..." सीमा दीवार से चिपकी ज़मीन में नज़रें गड़ाए काँप रही थी... अपने ही शहर में इन्न अंजान भेड़ियों से सीमा को रहम की कोई उम्मीद नही थी... उसकी पास कोई रास्ता नही था.. सिवाय गिड़गिदने के.....," सर.. प्लीज़... आप तो मेरे पिताजी की उमर के हैं... मुझे जाने दीजिए ना... प्लीज़... मैं आपके पैर पड़ती हूँ... उसको कहिए.. मुझे छ्चोड़ दे... आपको याद होगा.. आपने ही पिछले साल मुझे बेस्ट अथलेट का अवॉर्ड दिया था.. आन्यूयल फंक्षन में... आपने मुझे बेटी कहा था सर...." नेता शिकारी बिल्ली की तरह अपने दाँत दिखता बोला...," मैं तो बेटीचोड़ हूँ बेटी... मेरी तो समझ में ही नही आता की मैने अगर तुझे चोदे बिना तुझे अवॉर्ड दे दिया तो ये चमत्कार कैसे हो गया..... खैर.. कोई बात नही... शाम तक ब्याज समेत वसूल कर लूँगा....!" :

/"गुड मॉर्निंग सर!" विकी ने अंदर आते ही नेताजी का ध्यान अपनी और खींचा..," वेरी गुड मॉर्निंग विकी भाई... बस यूँ समझ लो.. तुम्हारी पार्टी की तरफ से इस बार एम ल ए. की उम्मीदवारी पक्की... वैसे कहाँ से ले आया इस उदंखटोले को... कितनी मासूम सी दिखाई देती है... तू भी यार कमाल कर देता है.... चल अब थोड़ी देर बाहर इंतज़ार कर...." नेता ने अपना कमीज़ उतारकर अपना पूरी बाजू वाला बनियान उतारने की तैयारी करने लगा..... विकी ने सीमा की आँखों की मासूमियत और पवित्रता को पहली बार गौर से देखा.. भय से फैली हुई बदहवास आँखों में इस वक़्त याचना के अलावा कुछ नही था.. हां... नमी भी भरपूर थी जो डर के कारण आँसू में बदल नही पा रही थी..... सीमा की नज़रें विकी की आँखों से मिलते ही उसके दिल में उतरती चली गयी... जाने क्यूँ उसका दिल चाहा की वा सीमा को यूँ ही जाने दे... पर अब वा उसके हाथ में नही था... उसका शिकार उस से भी बड़े सैयार के हाथ में था... गणपत राई के हाथों में.. वा पार्टी का एक कद्दावर नेता था, और इस बार उनकी सरकार आते ही सी.एम. की कुर्सी संभालने वाला था... और विकी को टिकेट उसके ही कहने पर मिलने वाला था... जो की विकी का राजनीति पर राज करने के सपने को पूरा करने वाला पहला कदम होता... विकी निराश होकर बाहर निकालने ही वाला था की उसके फोने पर टफ की कॉल आ गयी... विकी वहीं खड़ा होकर फ़ोन सुन'ने लगा...," हां अजीत!" अजीत शब्द सुनते ही सीमा की आँखों में दबे पड़े आँसू छलक उठे... काश! ये उसका अजीत होता....! "यार... कहाँ है तू... मैं रोहतक में ही हूँ... तुझसे मिलकर एक खुशख़बरी सुननी है.. "बोल भाई!" विकी ने आनमने मन से कहा... उसका ध्यान अब भी सीमा की और ही था... वह गणपत के अपनी और बढ़ रहे हाथों को बार बार अपने से दूर हटाने की कोशिश करती हुई इधर उधर सरक रही थी... "मैं शादी करने वाला हूँ... इसी हफ्ते... तुझे मेरी सीमा से मिलवाना था यार... पर वो पता नही क्यूँ नही आई.. आज डिपार्टमेंट में... सोचा तुम्ही को फोन लगा कर बुला लूँ तब तक...." "सीमा..?????" विकी को उन्होनी की बू आई... कहीं यही तो अजीत की सीमा....." विकी अंदर तक हिल गया.. उसने टफ की कॉल को मूट पर डाला और सीमा से मुखातिब हुआ...," क्या तुम्हारी शादी अजीत...?" अपने टॉप के गले में हाथ डाले गणपत के हाथ को अपने दोनो हाथों से पकड़े अपनी इज़्ज़त बचाने की कोशिश कर रही सीमा चिल्ला पड़ी..," हां.. हां... प्लीज़ मुझे बचाओ.. प्लीज़!" सीमा कभी विकी के चेहरे के उड़े ह रंग और कभी गणपत के पंजे को देखती चिल्लाई...! "इसको छोड़ दो सर...!" विकी ने विनम्रता से मगर आदेश देने वाले लहजे में गणपत को रोकने की कोशिश की.... "चल बे!... तू अभी तक यहीं खड़ा है... बाहर निकल जा और जब तक मैं ना कहूँ.. अंदर मत आना... बहुत गरम है साली ये तो... बहुत देर में ठंडी होगी...." "मैं कहता हूँ रुक जा गणपत! वरना अच्छा नही होगा..!" कपड़े के फटने की आवाज़ सुनकर विकी अपना आपा खो बैठा... सीमा उसके दोस्त की जान थी... "क्यूँ बे साले.. तेरी क्या बेहन लगती है.. जो इतनी फट रही है... और फिर लगती भी होगी तो क्या हुआ... मैं तुझे टिकेट दिलवाने जा रहा हूँ.. पता है ना!" कहते हुए गणपत ने एक ज़ोर का झटका देकर सीमा के अंगों को ढके हुए टॉप को चीर दिया... इसके साथ ही सीमा की चीख निकल गयी... गोली उस से 6 इंच दूरी से गुज़री थी.. सीधी गणपत के गले के आर पार... गणपत का भारी भरकम शरीर धदम से फर्श पर गिर पड़ा... सीमा अपने अंगों को अपनी हथेलियों में समेटे हुए आँखें बंद करके बैठ गयी... डरी सहमी.... गोली की आवाज़ सुनते ही बॉडी गार्ड एक पल बिना गवाए अपनी स्टेंगून ताने अंदर घुसा... और अपनी रिवॉल्वेर की नाली को देख रहे विकी पर गन तान दी... उसने देखा... गणपत को अब बॉडी गार्ड की ज़रूरत नही पड़ेगी... उसकी बॉडी में साँस बचे ही नही थे..... "साला.. अब मुझे ही आलाकमान के पास जाना पड़ेगा... टिकेट लेने के लिए..." विकी ने गार्ड को देखते हुए कहा.... गार्ड समझ गया... पॉलिटिक्स में पॉवेर आनी जानी चीज़ है...," इसका क्या करना है सिर... विकी अपने चेहरे को अपने पाक हो चुके हाथों से धक कर सोफे पर बैठ गया.. उसमें अपनी होने वाली भाभी का सामना करने की हिम्मत नही हो रही थी... गणपत को टपकाने का उसको कतई अफ़सोस नही था पर अपने जानी दोस्त की जान के साथ अंजाने में जो कुछ वा करने जा रहा था; उसके पासचताप की अग्नि ने उसकी आत्मा को बुरी तरह झुलसा दिया था... जो कुछ भी वो आज तक करता रहा था.. वह सब उसका निहायत ही बचकाना लगने लगा... उसको आज ये अहसास हो रहा था की मर्द की हवस का शिकार बन'ने वाली लड़कियाँ हमेशा ही पराया माल नही होती.. वो भी किसी ना किसी की बेहन होती होंगी, बेटी होती होंगी, जान होती होंगी.... और होने वाली भाभी होती होंगी..... सीमा ने अपने आप को जैसे तैसे संभाल कर चादर में लपेटा.. और अपना फ़ोन ढूँढने लगी... पर शायद फ़ोन गाड़ी में या कहीं सड़क पर ही गिर गया था... विकी बार बार आ रही टफ की कॉल्स उठाने की हिम्मत नही कर पा रहा था... आख़िर में उसने फोने सीमा की और बढ़ा दिया... ," हेलो!" "जी कौन?" टफ सपने में भी सीमा के वहाँ होने के बारे में नही सोच सकता था... "मैं.... मैं हूँ जान... तुम्हारी सीमा!"सीमा फुट फुट कर रोने लगी थी.. "सीमाआ???" कहाँ हो तुम?" "यहीं हूँ.. तुम्हारे दोस्त के पास... सेक 1 में..." और सीमा क्या कहती.... टफ के उपर मानो बिजली सी गिर पड़ी... पता नही एक ही पल में उसने क्या क्या सोच लिया," सीमा.... तुम भी....?" कहकर उसने फ़ोन काट दिया.. और अपने घुटने पकड़ कर बैठ गया... उसने सीमा को ग़लत समझ लिया था.... सीमा फ़ोन करती रही पर टफ ने फोने ना उठाया... उसने कोई सफाई सुन'ने की ज़रूरत ना समझी.......

सीमा असहाय होकर विकी की और देखने लगी.. उसको मालूम नही था की विकी और टफ एक दूसरे को कैसे जानते हैं.. पर इतना तो वा देख ही चुकी थी की विकी के तेवर अजीत का फोने आने के बाद अचानक बदल गये थे... उसकी आँखों की वासना हुम्दर्दि में बदल गयी थी और हुम्दर्दि ऐसी की उस पर हाथ डालने वाले के प्राण ही नोच लिए.. विकी उसकी नज़रों में अब विलेन नही था.. उसकी इज़्ज़त का रक्षक था.. सीमा ने थोड़ा हिचकते हुए विकी के कंधे पर हाथ रखा," वववू.. मेरा फ़ोन नही उठा रहे.. प्लीज़ मुझे जल्दी से वहाँ ले चलो.. मेरे अजीत के पास... मेरा दम निकल रहा है यहाँ..." रह रह कर वो फर्श पर पड़ी गणपत की लाश को देख लेती... "मैं बहुत ही बुरा आदमी हूँ सीमा जी... मैने आज तक लड़की को खिलौना ही समझा था.. मुझे नही मालूम था की ये एक दिन मेरे हाथों को खून और विस्वासघात से रंग देंगे.... पर मुझे कुछ हो जाए.. परवाह नही... मैं तुम्हारे बीच की ग़लतफहमी को दूर करके रहूँगा..." कहकर विकी ने फ़ोन उठाया और टफ के पास मेस्सेज भेज दिया..' सीमा को मैं ज़बरदस्ती उठा लाया था.. मैं बहुत शर्मिंदा हूँ भाई... तुम कोठी पर आ जाओ!' जब टफ ने अपने फोने पर ये मसेज देखा तो वा पहले ही कोठी के बाहर आ चुका था.. इंतकाम की आग में झुल्सता हुआ... बदला लेने के लिए.. सीमा और विकी दोनो से.... मसेज पढ़ने के बाद उसकी आँखें और लाल हो उठी... गेट्कीपर ने विकी के इशारे से गेट खोल दिया.. टफ दनदनाता हुआ अंदर जा घुसा... दरवाजे पर कदम रखते ही बासी होते जा रहे खून की दुर्गंध ने उसका माथा ठनका दिया.. फर्श पर पड़ी लाश... दुशाला औडे खड़ी सूबक रही सीमा और चिंतित विकी को देखकर उसको अपनी आग थोड़ी देर अपने सीने में ही दफ़न किए हुए पहले पूरी बात जान'ने को विवश कर दिया.. उसने सीधा सीमा से सवाल किया," क्या हुआ है यहाँ..?" अपने प्यार की आँखों में अपने लिए ज़रा भी हुम्दर्दि और प्यार ना पाकर सीमा अंदर तक टूट गयी... होना तो कुछ और चाहिए था..कास उसका अजीत उसको बाहों में भरकर उस मर चुके गिद्ध के हान्थो की च्छुअन से लगी कालिख को सॉफ कर देता... उसके हलाक से तड़प से भरी और मरी सी आवाज़ निकली," मैने कुछ नही किया जान.. मैं वैसी ही हूँ जैसी यहाँ लाई गयी थी.. ज़बरदस्ती.. मैने तुम्हारा फ़ोन आने तक खुद को बचाए रखा.. और बाद में इसने मुझे लूटने से बचा लिया..

 टफ को थोड़ी तसल्ली हुई.. उसने विकी के चेहरे की और देखा.. उसके चहरे पर खुद के लिए ग्लानि के भाव थे.. ," मुझे कोई कुछ बताएगा.. की आख़िर हुआ क्या है..?" विकी ने नज़रें झुआके अपने सीमा के भक्षक से रक्षक होने की पूरी दास्तान सुना दी... हालाँकि टफ के मन में अब भी विकी के लिए घृणा के भाव थे.. पर आख़िरकार उसने सीमा को लूटने से बचाया ही था.. टफ भाग कर सीमा से जाकर लिपट गया.. सीमा सिसक पड़ी.. अपने यार की बाहों में आकर.. उसके हाथ चादर में लिपटे थे ; पर उसके होन्ट आज़ाद थे.. अपना प्यार और बेगुनाही प्रदर्शित करने के लिए.. उसने टफ के गालों पर अपने होन्ट रख दिए.. अपना वादा पूरा किया.. टफ को किस करने का.. जाने कब तक वो ऐसे ही लिपटे रहे... होंटो ने होंटो को चूमा.. अपने प्यार के जिंदा होने की मोहर लगाई... टफ ने सीमा से अलग होते हुए विकी से पूचछा... ," ये क्या कर दिया? तुम इसको मारे बिना भी सीमा को बचा सकते थे..!" "पता नही.. मुझे क्या हो गया था.. मुझे एक पल भी सोचने का मौका नही मिला दोस्त..." विकी अब तक लज्जित था.. टफ से नज़रें नही मिला रहा था.. "तुम्हे पता है.. क्या होगा? अब इस 'से कैसे निपटोगे..?" "जो होगा देखा जाएगा दोस्त... पर मुझे कोई फिकर नही.. सिवाय इस बात के की क्या तुम मुझे माफ़ करोगे...!" "28 तारेख को शादी में आ जाना... अगर तब तक अंदर ना पहुँचो तो!" टफ ने रूखे शब्दों में उसको अपनी शादी का न्योता दिया और सीमा को अपने से साटा बाहर निकल गया... सीमा को सुनकर असीम सुख मिला.. '28 तारीख!' गाड़ी में बैठते ही सीमा ने टफ की और देखा," क्या तुम मुझे कुसूरवार मान रहे हो..?" टफ ने मुश्कूराते हुए सीमा की और देखा," 28 तारीख को बातौँगा.. अभी बहुत तैयारी करनी है.. आख़िर कार वो रात आ ही गयी जिस रात का टफ... ओर हां, सीमा को भी बेशबरी से इंतजार था.. बारात छ्होटी ही रखी गयी थी पर रिसेप्षन पर टफ और उसके दोस्तों ने अपने सारे शौक खुल कर पुर किए.. गाँव से वाणी और दिशा भी आई थी... शमशेर के साथ... विकी आया था मगर सीमा के सामने जाने से कतरा रहा था... टफ उसके पास जाकर बोला..," उसका क्या किया...?" "अभी तक तो उसकी लास भी नही मिली है... गार्ड को मैने 2000000 देकर देश से भगा दिया... देखते हैं क्या होगा...." विकी ने टफ से कहा... "हमारे साथ फोटो नही खिचवेयगा?"..... "मुझे माफ़ कर दे यार..." "अरे भूल जा उस बात को... वो सब अंजाने में हुआ था ना! मैने तेरी भाभी को सब बता दिया है.. वो भी तुझसे नाराज़ नही है अब... चल आ!" करीब 12:00 बजे सबने टफ और सीमा को नयी जिंदगी के लिए शुभकामनायें देकर विदा किया...

/कार में जाते हुए पिछे रखे गिफ्ट्स में से एक छोटा सा डिब्बा आगे आ गिरा... सीमा ने डिब्बे को उठाया... उस्स पर लिखा था.." हॅपी मॅरीड लाइफ!"--- विकी. "देखूं इसमें क्या है...?" "देख लो!" टफ ने कहा... "नही.. तुम गेस करो!" सीमा ने अजीत की दूरदर्शिता जान-नि चाही... "हुम्म... कोई घड़ी या फिर..... नही घड़ी ही होगी.. शुवर!" टफ ने डिब्बे का साइज़ देखकर कहा... "नही.... मुझे लगता है... इसमें कोई रिंग होनी चाहिए..! चलो शर्त लगाते हैं..." सीमा को मसखरी सूझी... "कैसी शर्त?" "जो तुम कहो..." अब सीमा को उसकी किसी शर्त से ऐतराज नही था... वो जान'ती थी की टफ कोई शरारत ही करेगा... शर्त के बहाने..! "तुम घर तक मुझे चूमती रहोगी... अगर मैं जीता तो...!" "और अगर मैं जीती तो... " सीमा ने थोड़ा सा शरमाते हुए कहा... "तो मैं तुम्हे चूमता रहूँगा...!" "ना जी ना!... फिर गाड़ी कौन चलाएगा..." "रोक देंगे!" "फिर घर कैसे पहुँचेंगे...?" "क्या ज़रूरत है...." बातों बातों में सीमा ने पॅकिंग खोल डाली.. और खोलते ही उच्छल पड़ी.." ओई मा!" और डिब्बा उसके हाथ से छ्छूट गया... टफ ने देखा... डिब्बे में 4 कॉनडम्स रखे थे... और साथ ही लिखा था... जनसंख्या बढ़ाने की जल्दी हो तो इसको यूज़ मत करना...!

टफ भी इस शैतानी पर हँसे बिना ना रह सका... 22 साल की उमर की सीमा इस गिफ्ट को देखकर शरम से लाल हो गयी... और बेचैन भी... अपनी जान की बाँहों में आने के लिए... जिसके लिए आज तक उसने अपने कौमार्या को बचाए रखा था... सीमा सुहाग सेज़ पर बैठी अपने सुहाग का इंतज़ार कर रही थी. उसका बदन पानी पानी हो रहा था.. अपनी जिन शारीरिक कामनाओ को उसने बड़ी सहजता से सालों दबाए रखा, वो आज जाने क्यूँ काबू में नही थी.. कुछ पल का इंतज़ार उसको बार बार सीढ़ियों पर 'अपने' अजीत के कदमों की आहट सुन'ने को विचलित कर रहा था... आख़िरकार उसकी खुद्दारी, सहनशीलता, और भगवान पर अटूट विस्वास ने उसको उसकी नियती से रूबरू करा ही दिया... आज वो अपने आपको अपने अजीत को सौपने वाली थी... 'तन' से! मॅन से तो वो कब की उसी की हो चुकी थी... पहला प्यार सबको इतनी आसानी से नसीब नही होता... और जिनको होता है, उनको दुनिया में किसी और की कमी महसूस नही होती.... उधर टफ का भी यही हाल था.. टफ रह रह कर उठने की कोशिश करता पर उसके दोस्त उसको तड़पने के लिए पकड़ कर 'थोड़ी देर और' कह कर बैठा लेते... आख़िर कर उन्होने उसको अपनी सुहागिनी सीमा के पास जाने की इजाज़त दे ही दी. उपर आते कदमों की आहत सुनकर सीमा का दिल धड़कने लगा.. जोरों से; मानो अपने महबूब के आने की ख़ुसी में नाच रहा हो.. टफ ने अंदर आकर दरवाजे की चितकनी लगा दी.. साडी उतारकर सलवार कमीज़ पहन चुकी सीमा के पैर जांघों समेत एक दूसरे से चिपक गये... रोमांच में... आज वो अजीत को अपना कौमार्या अर्पित करने वाली थी... आज अजीत उसको लड़की से नारी बनाने वाला था... पूर्ण पवितरा अर्धांगिनी... टफ ने देखा; सीमा सिमटी हुई है, बेड के एक कोने पर... उसकी पलकें झुकी हुई भारतिया पत्नी के सर्वश्रेस्थ अवतार को चित्रित कर रही थी.. उसके पैर का अंघूठा दूसरे पैर के अंगूठे पर चढ़ा उसके दिल की उमंगों को छलका रहा था.. उसके हाथो की उंगलियाँ एक दूसरी के गले मिलकर घुटनो पर टिकी अपनी बेशबरी दिखा रही थी.. मानो एक हाथ 'अजीत' हो और दूसरा स्वयं सीमा... उसके कोमल आधारों पर लगी सुर्ख लाल लिपस्टिक होंटो के गुलबीपन को एक नया ही रंग दे रही थी... काम तृष्णा का रंग... ऐसा नही था की टफ पहली बार किसी के साथ हुमबईस्तेर होने जा रहा था.. पर आज का हर पल उसको इस बात का अहसास करा रहा था की आज की हर बात जुदा है, अलग है.. यूँ तो वह कब का इंसान बन चुका था.. पर आभास उसको अब जाकर हुआ था की अपने 'प्यार' से प्यार करने का रोमॅन्स क्या होता है... कल तक जिस 'से बात किए बिना वा रह नही पता था.. आज उस 'से बात कहाँ से शुरू करे, टफ को समझ ही नही आ रहा था... आख़िरकार टफ जाकर सीमा के पैरों के पास पैर नीचे रखकर बैठ गया.. सफेद कुर्ते पयज़ामें में उसका लंबा चौड़ा कद्दावर शरीर शानदार लग रहा था... सीमा के अंगूठो की हुलचल तेज हो गयी.. पैर थोड़ा सा पिछे सरक गयी....