Sunday, 7 September 2014

masti ki pathsala - 42

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-42सहसा दिशा का ध्यान रह रह कर तिर्छि निगाहों से मनु की ओर झाँक रही वाणी की ओर गया.. ऐसा करते हुए दिशा को कतई विस्वास नही हुआ की वाणी वही है जिसको वो अभी तक छुटकी ही कह कर बुलाती है.. बल्कि वाणी के रूप में उसको एक ऐसी अद्वितीया सुंदरी दिखाई दी जो सत्रह बसंत पूरे करने के बाद अपने साजन को रिझाने के लिए मदहोश कर देने वाली अदाओं से अपने प्रेमपाश में बाँधने की सफल कोशिश कर रही है..
"ओह माइ गॉड.. मैं अभी तक नही समझी थी..." वाणी को एक नारी की द्रस्टी से देखते ही सारा माजरा दिशा की समझ में आ गया.. दिन में हुई एक एक गड़बड़ी का कारण समझने में उसको किंचित भी देरी ना हुई...

दिशा के मुँह से निकली बात सबके कानो में पड़ी," तीनो खास तौर पर वाणी और मनु बुरी तरह सकपका गये..
"क्क्या हुआ दीदी!" मनु ने स्वपनलोक से वापस आते हुए दिशा से सवाल किया..
वाणी भी थोड़ी सकुचकर घर की दहलीज पर आकर खड़ी हो गयी..
"आआ.. कुच्छ नही! मैं चाय बनाकर लाती हूँ.. और देवी जी! तुम्हारा स्नान पूरा हो गया होतो अंदर आकर कपड़े बदल लो.. ठंड लग जाएगी.. फिर कौन साफ करेगा तुम्हारा नाक!" दिशा ने हंसते हुए कहा और किचन में चली गयी...
"दीदी..." इठलाती हुई वाणी उसके पिछे ही भाग ली...

बाहर बैठे मनु और अमित ने एक दूसरे की आँखों में देखा और अमित बोल पड़ा..," मैने कुच्छ नही देखा भाई.... पर एक बात सच है भाई.. अगर ये तुझसे प्यार करती है तो तू धन्य हो गया.. जिंदगी सफल हो गयी तरी तो.. लाइफ बन गयी यार!"
"चुप कर ना यार! तू तो बिकुल भी शरमाता नही है... " मनु ने उसको मंद बोलने का इशारा करते हुए कहा..
"अरे.. शरमायें मेरे दुश्मन! जब भाभी जी इतनी बिंदास हैं तो हमें काहे का डर!"
"अमित के मुँह से वाणी के लिए भाभी जी शब्द मनु को इतना अच्च्छा लगा की अगर 'लड़का' नहींहोता तो उसके होंठ ही चूम लेता.... लेकिन वो उस'से हाथ मिलकर ही रह गया..

उधर किचन में दिशा ने वाणी को टटोलना शुरू किया..," वाणी तू कुच्छ बता रही थी..."
"क्या दीदी?" शरारत पूर्ण ढंग से वाणी ने दिशा के शरीर से चिपकते हुए कहा...
"वही कौन है वो.... जिसका सूनापन मैं छुट्टिया शुरू होने के समय से ही तुम्हारी आँखों में महसूस कर रही हूँ...
"क्क्क.. कोई भी तो नही दीदी! वैसे ही.. बस.. आपको यूँही लग रहा होगा.. (फिर आँखें फाड़ कर)... देखो ना.. कहाँ है सूनापन!" वाणी ने बात को टालने की कोशिश करते हुए कहा...

"वही तो मैं भी ढूँढ रही हूँ.. आज जाने कहाँ गायब हो गया वो... ऐसा लगता है तुम्हारे मंन की कोई बहुत बड़ी मुराद पूरी हो गयी हो.."

"चाय बन गयी दीदी..लाओ में दे आती हूँ..!" वाणी ने बात को टाल ने की कोशिश करते हुए कहाँ...
"हां हां.. दिन में भी तुम दो बार चाय पीला चुकी हो बेचारों को.. तुम जल्दी से कपड़े बदल लो..."

जैसे ही वाणी बाहर निकलने लगी.. दिशा ने उसको टोका..," च्छुटकी!"
"हां दीदी?" वाणी ने पलट'ते हुए पूचछा..
"अगर वो लड़का मनु है.. तो मैं बहुत खुश हूँ.. "
ये सुनते ही वाणी हक्की बक्की रह गयी.. उसके दोनो हाथ उसके चेहरे पर झलक आई शरम की लाली को च्छुपाने के लिए अपने आप उपर आ गये! एक पल को उसका दिल किया की ज़मीन पर बैठकर, मनु के आने से खिल चुके अपने अंग अंग को दीदी से छुपा ले.. फिर उसको दीदी के सीने में ही खुद को छिपाना उचित लगा.. 2 कदम आगे बढ़कर वो दिशा से लिपट गयी," आइ लव यू दीदी!"
"बस बस.. अब दीदी को मस्का मत लगा.. अब तो तू किसी और से ही प्यार करती है.. जा जाकर अपने मनपसंद कपड़े पहन ले! सारी गीली कर दी मैं भी..."

वाणी दिशा के गालों का एक जोरदार चुंबन लेकर बाथरूम में भाग गयी....

दिशा ट्रे लेकर बाहर निकली ही थी की पड़ोस में रहने वाले एक ताउ ने आवाज़ लगाई..," दिशा.. ए दिशा!"
अंदर दहलीज पर खड़ी होकर दिशा ने जवाब दिया," हां मामा जी!"
"बेटी.. वो दौलटराम के यहाँ से तुम्हारी मामी का फोने आया था.. वो बारिश की वजह से उनके घर में रुके हुए हैं.. बारिश बंद होने पर ही आएँगे.. तुम खाना वाना खा लेना टाइम से... अगर बारिश ना रुकी तो वो कल सुबह ही आएँगे.."

"अच्च्छा मामा जी...!" दौलत राम का घर खेतों में ही था..
"कोई दिक्कत हो तो आवाज़ लगा लेना बेटी..." कहकर वो चला गया....

बात सुनकर मनु का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.. आख़िर ये हो क्या रहा है आज.... हे राम!

दिशा के सामने बड़ी विकट समस्या आन खड़ी हुई.. मामा मामी आ गये तो ठीक है पर अगर.....
इनको रात को सुलाएँगे कहाँ.. दो जवान लड़कों को.. अपने साथ घर में??? ऐसा नही था की दिशा को किसी तरह का उनसे डर था.. पर समाज???? कल को अगर गाओं वालों को ये पता चलेगा की रात को दो जवान लड़के अकेली लड़कियों के साथ सोए हैं तो.. ना जी ना! उपर भी तो शास्त्री जी रहते हैं.. उनसे पूचछा जा सकता है.. हां! यही उचित है... सोचती हुई दिशा अंदर वाले कमरे में गयी.. जहाँ दिशा कपड़े बदल रही थी.. दिशा ने धीरे से वाणी को कहा," वो.. सर मान जाएँगे क्या.. इनको सुलाने के लिए.. अपने साथ.."
सुनकर वाणी का मूड ऑफ हो गया.. वो तो सोच रही थी की रात भर अपने मनु को निहरेगी जाग कर," पता नही दीदी.. पर क्या इनको अच्च्छा लगेगा.. ऐसे!"
"अच्च्छा तो मुझे भी नही लग रहा.. पर क्या करूँ.. मामा मामी को ये सब अच्च्छा नही लगेगा की वो रात भर हमारे साथ रहें.. अकेले में!"
"पर दीदी.. आपकी तो शादी हो गयी है ना.. आपको कोई क्या कहेगा? और मैं तो आपके साथ हूँ ना!" वाणी ने मासूमियत भरा तर्क दिया...
"शादी हो गयी है मतलब..?" दिशा उसका भाव समझ नही पाई...
"मतलब क्या? ... वही" कहकर वाणी शर्मा गयी!
"तू कब तक बच्चों जैसी बातें करती रहेगी.. तुझे क्या लगता है.. शादी हो गयी तो किसी के साथ भी रहने का पर्मिट मिल जाता है क्या?" दिशा ने सवाल के बदले सवाल ही किया...
"मैं वो थोड़े ही कह रही हूँ.. मैं तो.... जब आपकी शादी ही हो चुकी है तो आपके बारे में ये कौन सोचेगा... उल्टा सीधा!"
"बस तू अब फालतू मत बोल... तू क्या समझती है, शादी के बाद क्या औरतें ग़लत नही होती... बस तू मेरा दिमाग़ मत खा और कपड़े बाद में बदलना.. पहले सर से पूच्छ कर आ...."

कुच्छ देर बाद वाणी नीचे आई," दीदी! उपर तो ताला लगा हुआ है! सर शायद दिन में कहीं गये होंगे और बारिश की वजह से बाहर ही रुक गये होंगे..."
दिशा सोच में पड़ गयी.. "अब क्या करें?.. चल कोई बात नही.. तू कपड़े बदल ले.. मैं सोचती हूँ तब तक कुच्छ!"


काफ़ी देर तक सोच विचार करने के बाद दिशा को एक बात सूझी.. क्यूँ ना दोनो बहने चल कर प्रिन्सिपल मेडम के घर सो जायें.. दोनो को खाना खिला कर सुलाने के बाद चलने में क्या हर्ज़ है.. सुबह सुबह आ जाएँगे वापस..
दिशा आकर चुप चाप बैठे मनु और अमित के पास बैठ गयी," तुम दोनो चुप कैसे हो गये? मैं खाना बनती हूँ.. तब तक तुम टीवी देख लो.." दिशा के चेहरे पर चिंता की लकीरें सॉफ दिखाई देने लगी थी...
"नही.. कुच्छ नही दीदी! वो... हम सोच रहे थे की हमें चलना चाहिए.. सारा आधे घंटे का तो रास्ता है.. पहुँच जाएँगे आराम से!" मनु ने उठ'ते हुए कहा..
मनु की बात सुनकर दिशा शर्मिंदा सी हो गयी.. उसको लगा उन्न दोनो ने उनकी बातें सुन ली हैं," अरे नही नही... अब तो देर भी काफ़ी हो चुकी है.. फिर यहाँ रुकने में क्या बुराई है.. तुम आराम से टीवी देखो.. मैं खाना बना लेती हूँ...!" कह कर दिशा उठी ही थी की वाणी ने एक नये अवतार में कमरे के अंदर प्रवेश किया...
निसचीत तौर पर वाणी का वो नया अवतार ही था.. क्रीम कलर का मखमली लोवर और खुली सी उसी कपड़े की बनी टी-शर्ट पहन कर वो बाहर निकली तो मनु की साँस बीच में ही अटक गयी.. पल भर के लिए उपर से नीचे तक वाणी का कातिलाना अंदाज देखकर ही मनु के माथे पर पसीना छलक आया.. वह वापस वहीं का वहीं बैठ गया और अपने संवेगो को काबू करने की कोशिश करने लगा.. लोवर घुटनो तक उसकी मांसल चिकनी जांघों से चिपका हुआ था.. वाणी की जांघें केले का चिकना तना मालूम हो रही थी.. टी-शर्ट छ्होटी होने के कारण वाणी के पुस्त क़ातिल नितंबों को पूरा ढक नही पा रही थी, जिस'से उनकी मोटाई के बीचों बीच अनंत खाई स्पस्ट द्रिस्तिगोचर हो रही थी.. बिना बाजू की टी-शर्ट के नीचे शायद वाणी ने कुच्छ भी नही पहना हुआ था.. संतरे के आकर में सीधे तने हुए दोनो फलों के बीचों बीच महसूस हो रहे पैनी नोक वाले दाने इश्स बात का ज्वलंत सबूत थे... वाणी प्रणय की देवी बनकर प्रकट हुई थी.... सच में.. आज
कयामत आने से कोई रोक नही सकता था....

मनु को अपनी और इश्स तरह घूरता देखकर वाणी पानी पानी हो गयी और अंदर टीवी चलकर सोफे पर बैठ गयी...
"तुम दोनो भी अंदर जाकर टी.वी. देख लो.. बस में अभी खाना बना देती हूँ..." कहकर दिशा किचन में चली गयी..

"मनु!" दिशा ने अंदर जा रहे मनु को किचन से आवाज़ लगाई तो मनु को लगा उसका चोरी चोरी लार टपकाना पकड़ा गया.. थूक अंदर गटक'ते हुए मनु ने वापस मूड कर कहा," ज्जई.... दीदी!"
"एक बार फोन देना!"
"ओह्ह्ह.. ये लो!" मनु ने राहत की साँस ली और फोन दिशा को पकड़ा कर अंदर चला गया..
दिशा ने गौरी के पास फोन मिलाया..
उधर से मीठी सी आवाज़ आई.. यक़ीनन गौरी ही थी..
"गौरी.. मैं बोल रही हूँ.. दिशा!"
"हां.. दिशा.. ये आज नये नये नंबर. से फोन कैसे मिला रही हो.. जीजा जी आ गये हैं क्या?"
"नही यार.. दरअसल वो वाणी की सहेली के भैया बारिश की वजह से वापस नही जा पाए.. उनके ही फोन से फोन कर रही हूँ..."
"अच्च्छा.. और सुना.. केयी दीनो से तू आई नही हमारे घर..?"
"इन्न बातों को छ्चोड़ यार.. ये बता आज हमारे घर आ सकती है क्या?" दिशा ने मतलब की बात पर आते हुए कहा..
"उम्म्म.. आज? ..... क्या हुआ...?"
"कुच्छ नही यार.. वो मैने बताया ना.. 2 लड़के आए हुए हैं और मामा मामी शायद आज ना आ पायें... तो कुच्छ अजीब सा लग रहा है.. हम दोनो बहनो को.. सोचा 2 से भले तीन!"
"कौन? वही जो सुबह बाइक पर आए थे...? गौरी के मंन में उस नौजवान की तस्वीर उभर आई जो बेबाकी से उस'से बात कर रहा था....
"तू इन्न बातों को छ्चोड़ यार.. बोल आ सकती है या नही?" दिशा को खाना भी बनाना था...
"हुम्म आ सकती हूँ.. अगर तू मुझे लेने आ जाए तो.. बारिश हो रही है.. और अंधेरा भी हो गया है.. ऐसे में अकेली आने में डर लगेगा..!"
"पर.. मैं भी अकेली कैसे आउन्गि..?..... चल
ठीक है.. मैं आती हूँ.. उनमें से किसी एक को लेकर.."
"ओके! मैं तुम्हे तैयार मिलूँगी... पर मम्मी को मत बताना तुम दोनो अकेली हो..."
"ठीक है.. मगर क्यूँ...?"
"तू सब समझती है यार.. मम्मी क्या सोचेगी?"
"चल ठीक है.. मैं आ रही हूँ!" कहकर दिशा ने फोन काट दिया...
अंदर आकर दिशा ने मनु से कहा," मनु! एक बार तुम्हे मेरे साथ चलना पड़ेगा.. गौरी के घर..."
"गौरी का नाम सुन'ते ही अमित बिना कोई पल गँवाए खड़ा हो गया," मैं हूँ ना दीदी.. मैं चलता हूँ!"
दिशा उसकी बात सुनकर हंस पड़ी," ठीक है.. तुम चलो!" और एक छतरी उठा कर दोनो बाहर निकल गये...
कुच्छ पलों तक कमरे में टी.वी. की आवाज़ गूँजती रही.. अचानक वाणी ने टी.वी. मूट कर दिया..," इतना क्यूँ भाव खा रहे हो..? बोल नही सकते...
मनु का ध्यान तो पहले ही वाणी पर टीका हुआ था.. गला सॉफ करके बोला," क्या नही बोल सकता.. क्या बोलूं?
"क्या बोलू का क्या मतलब... बस बोलो.. कुच्छ भी!" वाणी ने उसकी नज़रों को खुद में भटक'ते हुए देखा तो इतराते हुए उसके स्वर में नारिसूलभ पैनापन आ गया..
"कुच्छ भी क्या बोलूं.. मुझे बोलना ही नही आता." मनु ने सच ही कहा था.. बोलना आता होता तो कब का बोल ही ना देता!
वाणी बात करते हुए अपने लंबे बालों को पिछे बाँधने लगी.. ऐसा करने से उसके उभारों में आगे की और कामुक उभर आ गया.. वाणी जानती थी.. मनु की नज़र कहाँ है.. आख़िरकार पहल वाणी को ही करनी पड़ी," मैने किचन से तुम दोनो की बातें सुनी थी..."
"का...कैसी बातें?"
"वही जो अमित कह रहा था.. की अगर तुझमें हिम्मत नही है तो मैं जाकर बोल देता हूँ वाणी को!"
मनु बिना बोले ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश करता रहा की वाणी ने सिर्फ़ इतना ही सुना है या और भी कुच्छ...
मनु को चुप बैठे देख वाणी को ही एक बार फिर बोलना पड़ा," क्या तुम'मे सच में ही हिम्मत नही है..?"
"किस बात की हिम्मत..?"
"मुझसे बोलने की... और क्या?"
"क्या बोलने की..!" मनु के दिल में आ रहा था की जैसे अभी बोल दे.. होंठो से... होंठो को ही.. कानो को नही!
खीज उठी वाणी ने सोफे पर रखा तकिया उठाया और मनु की तरफ फैंक दिया.. मनु ने तकिया लपक लिया....
"बोल दो ना प्लीज़..." वाणी सामने से उठकर उसके साथ वाले सोफे पर जा बैठी..
" तुम बहुत प्यारी हो वाणी... तुम्हारे जैसी मैने आज तक सपने में भी नही देखी!" मनु ने उसका हाथ अपने हाथ में लेने की कोशिश की तो वाणी शर्मकार वहाँ से उठ गयी.. और वापस पहले वाली जगह पर जाकर अपनी आँखें बंद कर ली...
"अब बोल रहा हूँ तो कोई सुन नही रहा.." कितनी हिम्मत करके मनु ने अपने दिल के अरमानों को ज़ुबान दी थी...
"फिर बोलते रहना था ना.. तुम तो मुझे छू रहे थे.." वाणी के शब्दों में हया का मिश्रण था..
"तुम्हे मेरा छूना बुरा लगा वाणी!" मनु उठकर वाणी के पास घुटने टेक कर बैठ गया.. और फिर से उसका हाथ पकड़ लिया..
वाणी की आँखें बंद हो गयी.. उसके शरीर में मीठी सी हुलचल सी हुई.. उसके अरमानों ने अंगड़ाई सी ली..," नही.. मुझे डर लग रहा है.." वाणी का शरीर भारी सा होकर उसके काबू से बाहर होता जा रहा था.. लग रहा था.. जैसे बदन अभी टूट कर मनु के आगोश में जा गिरेगा!
"डर???? ... मुझसे..." मनु उसके हाथ को अपने हाथ से सहलाने लगा..
"नही.. खुद से.. कहीं बहक ना जाऊं.." वाणी ने अपना शरीर ढीला छ्चोड़ कर नियती के हवाले कर दिया था... अपने मनु के हवाले!
"मैने सपने मैं भी नही सोचा था...." मनु की बात अधूरी ही रह गयी.. बाहर दरवाजा खुलने की आवाज़ के साथ ही वाणी ने अपना हाथ वापस खींच लिया और मनु संभालने की कोशिश करता हुआ वापस अपने स्थान पर जा बैठा.........

तीनो जब अंदर आए तो गौरी का चेहरा तमतमाया हुआ था.. हमेशा रहने वाली मधुर मुस्कान उसके चेहरे से गायब थी.. वो आई और दिशा के साथ सीधे किचन में चली गयी.
"क्या हुआ गौरी? तुम्हारा मूड अचानक खराब क्यूँ हो गया?" दिशा ने चुप चाप आकर आलू छील'ने में लग गयी गौरी की और हैरानी से देखती हुई बोली..
"कुच्छ नही हुआ.." गौरी रोनी सूरत बना कर काम में लगी रही...
"कुच्छ तो ज़रूर हुआ है.. घर से चली तब तो तू बहुत खुश थी.. अचानक तेरे बारह कैसे बज गये.." दिशा ने उसका चाकू वाला हाथ पकड़ लिया," यहाँ आकर खुश नही है क्या?"
"ऐसा कुच्छ नही है दिशा.. बस यूँ ही.. कुच्छ याद आ गया था!.. मैं ठीक हूँ!" गौरी ने अपने आपको सामान्य बना'ने की कोशिश करते हुए कहा...

तभी वाणी वहाँ आ धमकी.. उसके चेहरे से बेकरारी और प्यार की खुमारी पहचान'ना मुश्किल नही था," मैं भी हेल्प करती हूँ.. मनु को भूख लगी है.. जल्दी खाना तैयार करते हैं..."
"अच्च्छाा.. मनु को भूख लगी है.. बाकी किसी को नही!" दिशा ने चटकारे लेते हुए कहा...
वाणी किचन में बैठ कर आता गूँथ रही दिशा के पीछे से उसके गले में बाहें डाल कर लगभग उस पर बैठ ही गयी," नही दीदी.. उसने बोला है ऐसा.. की उसको भूख लगी है.."
"ठीक है ठीक है.. तू ऐसे मत लटका कर.. पता है तू कितनी भारी होती जा रही है.." दिशा का इशारा उसके वजन की और नही.. बल्कि आकर में बढ़ते जा रहे 'संतरों' की और था..
"उम्म्म 46 किलो की ही तो हूँ.." कहते हुए वाणी ने दिशा के उपर अपना वजन और बढ़ा दिया...
"ये अमित करता क्या है?" चुपचाप बैठी गौरी आख़िरकार अमित के प्रति अपनी उत्सुकता दर्शा ही बैठी..
"मैं पूच्छ कर आती हूँ..." कहकर वाणी अंदर भाग गयी...," अमित.. आप करते क्या हो.. दीदी पूच्छ रही हैं..."
"कुच्छ नही करता.. बस ऐश करता हूँ.." अमित ने शरारती मुस्कान फैंकते हुए कहा...
"अरे.. खुशख़बरी देना तो में भूल ही गया था.. हम दोनो का आइआइटी में सेलेक्षन हो गया है.. पिच्छले महीने ही रिज़ल्ट आ गया था.." मनु को अचानक याद आया...
"ये कोई खुशख़बरी हुई.. आइटीआइ तो हमारे गाओं का कल्लू भी करता है.." वाणी ने
जीभ निकाल कर मनु को चिड़ाते हुए कहा....

"पागल वो आइटीआइ है.. मैं आइआइटी की बात कर रहा हूँ.. आइआइटी की.. समझी.."
"सब पता है जी.. ज़्यादा भाव मत खाओ.. मेरा भी सेलेक्षन हो जाएगा आइआइटी में.. एक बार 12थ हो जाने दो.. और तुमसे अच्च्छा रॅंक भी आएगा.." कहकर वाणी वापस किचन में भाग गयी...

"यार ये गौरी तो बहुत गरम माल है.. दिल कर रहा है..आज रात में इसका रेप कर दूं?" अमित ने मनु के कान में फुसफुसाया..
"तुझे.. हर समय यही बातें सूझती हैं क्या?" मनु ने उसको मज़ाक में झिड़का.
"हां भाई.. हम तो ऐसी ही बातें सोच ते हैं.. हम ऐसे आशिक़ नही हैं जो अपने प्यार को सीने में च्छुपाए तड़प्ते रहें.. और मौका मिलने पर भी गँवा
दें.. ये 21वी सदी है दोस्त.. गन्ना उखाड़ो और खेत से बाहर.. समझा.. खैर मेरी छ्चोड़.. अपनी सुना.. तुझे अकेला छ्चोड़ कर गया था.. कुच्छ शुरू किया या नही.." अमित ने मनु को मॉडर्न प्यार का पुराण पढ़ाते हुए पूचछा...

"मैं तेरे जैसा बेशर्म नही हूँ.. प्यार की कदर करना जानता हूँ..." मनु अब
भी अपने विचारों पर कायम था..
" करता रह भाई.. और तब तक करते रहना जब तक वो तुझसे उम्मीद छ्चोड़ कर किसी दूसरे को ना पसंद करने लगे... फिर हिलाना अपना घंटा" दरअसल अमित उसको उकसाना चाह रहा था... अपने जिगरी दोस्त का अंदर ही अंदर कुढना उस'से देखा नही जा रहा था..
" देखते हैं.. अंजाम-ए-इश्क़ क्या होता है.." और मनु मुस्कुराता हुआ आँखें बंद करके अकेले में वाणी के साथ बिताए सुखद पलों को याद करने लगा..
"तुझे पता है मैने गौरी को क्या किया..?" अमित ने मनु को हिलाया..
"क्या किया.. कब?" मनु ने आँखें खोलते हुए उत्सुकता से पूचछा..

"जब हम वापस आ रहे थे तो उसने अंधेरे में मेरे पेट में घूसा मारा
था.. मैने उसकी वो दबा दी..." मनु ने मुस्कुराते हुए कहा...," सच में यार ऐसा लगा मानो पिघल ही जाउन्गा.. बहुत गरम चीज़ है यार.."
" 'वो'? .... क्या मतलब.." मनु ने चौकते हुए पूचछा..
"अरे अब हिन्दी में बुलवाएगा क्या?.. 'वो' मतलब उसकी गा....."
"बस बस... तू तो बहुत ही जालिम चीज़ है यार..." टीवी का वॉल्यूम बढ़ाते हुए मनु ने चेहरा उसकी और घुमा लिया...," पर उसने पहले घूँसा क्यूँ मारा..."
"मैने हौले से उसके कान में कह दिया था कुच्छ..." मनु ने कुच्छ को रहस्या ही रखा..
"कुच्छ क्या.. पूरी बता ना!" मनु उत्तेजित सा होने लगा था.. जान ना पहचान.. पहली ही मुलाकात में गान्ड पकड़ ली...
अमित ने गर्व से अपने कॉलर उपर करते हुए कहा.. "हम तो बंदे ही ऐसे हैं भाई.. फ़ैसला ऑन दा स्पॉट..."
"तू बता ना.. कहा क्या था तूने.." मनु जान'ने के लिए तड़प रहा था..
"बस यही की तुमसे ज़्यादा सेक्सी लड़की मैने आज तक नही देखी.." अमित ने बता ही दिया..
"दिशा ने नही सुना...?" मनु उसको आँखें फाड़ कर देख रहा था..
"नही.. दिशा अलग च्छतरी लेकर चल रही थी.. मैं जान बूझ कर उसकी च्छतरी में आया था... धीरे से कहा था.. उसके कान में"
"साले.. पर तेरी इतनी हिम्मत कैसे हो गयी..?" मनु हैरत में था.. अब तक..
"तभी तो कह रहा हूँ.. अपना गुरु बना ले.. सब कुच्छ सीखा दूँगा.. वो मुझे देखकर मुस्कुराइ थी... और बंदे के लिए इतना काफ़ी था.. उसका हाल-ए-दिल जान'ने के लिए.. वो प्यार की मारी हुई लड़की है जानी.. और हमसे अच्च्छा प्यार आख़िर कौन दे सकता है.. बहुत गरम छ्होरी है यार.. जान भी दे दूँगा.. 'उसकी' लेने के लिए.....

 

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