निशा की इश्स तड़प भारी चीख ने राकेश की मस्ती और बढ़ा दी... उसने पूरी जीभ बाहर निकाल कर अपने हाथो में दबोचे हुए स्तनों पर घुमानी शुरू कर दी.. थूक से गीली होकर चुचियाँ चमकने लगी.. निशा आधी आँखें बंद किए हुए बदहवास सी होकर अपने हाथों को मर्द की प्यासी अपनी योनि तक पहुँचने
की कोशिश करने लगी.. राकेश को अब जाकर ख़याल आया की उपर लटक रहे प्रेम फलों में ही वो इतना मदहोश हो गया की नीचे का खजाना याद तक नही रहा.. राकेश अपनी ग़लती का अहसास होते ही निशा की चूचियों को छ्चोड़ उसकी सलवार के नाडे की और लपका पर दोस्तो हाए री बाद किस्मती....
दरवाजे पर बेल बजी...
एक पल को राकेश चौका फिर ये सोच कर की वेटर आया होगा फिर से निशा पर टूट पड़ा.....
"खाट खाट खाट...." अबकी बार दरवाजे पर ज़ोर से दस्तक दी गयी....
"तुम ऐसे ही लेटी रहो मेरी जान.. मैं अभी उसको सबक सिखाता हूँ.." राकेश उठ कर खड़ा हुआ,"कौन है बे भूट्नी के... यहाँ दोबारा खाट खाट की तो साले तेरी मा....." राकेश को आगे बोलने का मौका ही नही मिला.. दरवाजा खोलते ही सामने दो पोलीस वालों और पोलीस वाली को देख कर उसका पेशाब नीचे उतर आया..," आअ.. वुवू.. मैं.... "
दो स्टार वाले पोलीस जी ने उसकी बातों पर ध्यान ना देकर पहले अंदर बैठी नायाब कली के हुष्ण का दीदार करने की सोची.. उसने राकेश की छाती में धक्का सा मारा और एक पल में अंदर घुस गया..
पोलीस आई देख निशा थर थर काँपने लगी.. पहले उसका ध्यान अपनी सलवार पर गया.. वो अभी तक उसकी 'चिड़िया' को ढके हुए थी.. हड़बड़ाहट में एक हाथ से अपने दोनो रसीले फलों को ढकने की नाकाम कोशिश करते हुए उसने इधर उधर से अपने कपड़े उठाने की कोशिश करी.. पर वो तो फर्श पर बिखरे पड़े थे...
निशा का दूसरा हाथ भी इज़्ज़त बचाने में पहले हाथ की मदद करने पहुँच गया... पर तब तक जितना उस सब-इनस्पेक्टर ने देख लिया था.... उसको पागल बना'ने के लिए काफ़ी था....
"क्या तीतर मारा है साले...!" सब.इनस्पेक्टर. ने होंठों पर जीभ फिराते हुए कहा.....
पोलीस में भी अच्छे इंसान होते हैं.. निशा को पहली बार तब पता चला जब उस नौ-जवान पोलीस वाली ने अंदर आकर फर्श पर बिखरे कपड़े उठाए और निशा की तरफ उच्छाल कर उसके आगे खड़ी हो गयी," कपड़े पहन लो!" हालाँकि उसके स्वर में कोई हमदर्दि नही थी....
"एस.एच.ओ. साहब को तुम्ही मिली थी क्या.. मेरे साथ राइड पर भेजने के लिए... देख भी नही सकता क्या जी भर कर...." एस.आइ. गुस्से से तमतमा गया...
"दिस ईज़ माइ जॉब सर... यू प्लीज़ हॅंडल दट गे!" अब भी उस पोलीस वाली की आवाज़ उतनी ही निर्दयी थी...
"ठीक है भगवान! लगता है सारी उमरा तुमसे ही गुज़ारा करना पड़ेगा..." एस.आइ. ने खिसियया हुआ सा मज़ाक किया...
"नीलम के चेहरे पर एक पल के लिए मुस्कान बिखरी," इधर उधर मुँह मारना था तो फेरे क्यूँ लिए थे..." फिर निशा की तरफ मुखातिब हुई," चलो.. थाने चलते हैं...."
"नही.. मेडम.. प्लीज़.... वो.. ये मुझे ज़बरदस्ती लेकर आया थ..." निशा ने कांपति आवाज़ में अपनी सफाई दी...
"ज़्यादा बकवास की ना तो एक झापड़ दूँगी खींच के... शरम नही आती ऐसे होटलों में गुलच्छर्रे उड़ाते हुए... अरे तुम जैसी लड़कियों ने ही तो नारी के नाम पर ऐसा कलंक लगाया है की उनको सिर्फ़ भोग की वस्तु समझा जाता है... क्या सोच कर जी लेती हो तुम... हां? शरीर की हवस क्या तुम्हारी खुद की और तुम्हारे घर वालों की इज़्ज़त से बढ़कर है..? चली आती हो मर्द के हाथों का खिलौना बन'ने... इससके अलावा भी कुच्छ सोचा है या नही जिंदगी में....?" नीलम तमतमा उठी थी...
"बस भी करो अब.. बच्ची है... तुम तो कहीं भी भसंबाज़ी शुरू कर देती हो...!"
"तुम चुप करो जी! कल को अगर हमारे बच्च्चे ऐसा करेंगे.. तो भी क्या तुम यही कह कर संतोष कर लोगे... मैं इन्नके पेरेंट्स को बुलाए बगैर इनको नही छ्चोड़ूँगी... चल खड़ी हो जल्दी....." नीलम ने हाथ से पकड़ कर निशा को खींचा....
बेचारे पातिदेव के पास बोलने को कुच्छ बचा ही नही था.. राकेश को कॉलर से पकड़ा और बाहर खींच ले गया....
निशा बुरी तरह बिलख रही थी.... ये क्या हो गया उस'से? घर वालों को कैसे मुँह दिखाएगी...
नीलम लगभग घसीट'ती हुई उसको बाहर ले गयी.
"हूंम्म... कहाँ की रहने वाली हो?" नीलम अभी तक गुस्से में थी...
"ज्ज्ज..जी वो...." निशा गाँव का नाम लेने से हिचक रही थी....
"मैं तुम्हे ऐसे ही छ्चोड़ने की ग़लती नही करने वाली हूँ... किसी ना किसी को तो तुम्हे बुलाना ही पड़ेगा.. समझी..! बोलो किसको बुलवाना है...?"
"प्लीज़ मेडम.. मैं आइन्दा कभी ऐसा नही करूँगी.. मुझे माफ़ कर दो.. मैं अंधी हो गयी थी..." निशा बुरी तरह गिडगिडाने लगी...
"एक झापड़ दिया ना तो सारी आक्टिंग भूल जाएगी.. ये सब वादे अपने घर वालों के सामने करना.. हो सकता है उन्हे तुम पर विस्वास हो जाए... जल्दी बताओ.. कोई नंबर. बताओ मैं डाइयल करती हूँ..." नीलम पर निशा के गिड़गिदाने का कोई प्रभाव नही पड़ा...
"नंबर. की बात सुनते ही निशा के दिमाग़ में वो मोबाइल नंबर. कौंध गया जो उसने राका की फॅक्टरी के बाहर बोर्ड पर पढ़ा था.. आगे की कुच्छ ना सोचते हुए उसने नीलम को वही नो. बता दिया....
नीलम ने नंबर. डाइयल किया.. खुसकिस्मती से नंबर. राका का ही था..," हेलो!"
"दिस ईज़ एस.आइ. नीलम स्पीकिंग फ्रॉम सिटी थाना हिस्सर.. हियर ईज़ वन ऑफ उर रिलेटिव सिट्टिंग व्ड मी.. प्लीज़ कम सून अदरवाइज़ शी माइट बे इन ट्रबल.."
"वॉट नॉनसेन्स यू आर टॉकिंग? हू ईज़ शी...?" राका अचंभे में पड़ गया...
"उम्म्म्म.." कहते हुए नीलम ने निशा से पूचछा..," तुम्हारा नाम क्या है लड़की?"
"ज्ज्जिई.. मैं बात कर लूँ..." निशा ने अनुनायपूर्वक नीलम की और देखा..
"ओ.के..." फिर फोन पर राका से मुखातिब हुई," आस्क हर..!" और फोन निशा को दे दिया..
सब कुच्छ अच्च्छा ही हो रहा था.. नीलम के लिए बाहर से आवाज़ आई और वो उठ कर बाहर चली गयी...
"हेलो सर.. म्माई वही लड़की हूँ.. जो दो लड़कों के साथ आपकी गाड़ी में बैठकर आई थी... प्लीज़ मुझे बचा लीजिए सर.. वरना मैं मर जाउन्गि...." निशा धीरे से गिड़गिडाई...
राका को माजरा समझते देर ना लगी... कार
में ही वो उनकी हरकतों से काफ़ी कुच्छ समझ गया था," पर तुम्हे मेरा नंबर. कहाँ से मिला?"
"वो मैं बाद में बता दूँगी.. प्लीज़ सर आप आ जाइए.."
राका ने बिना कुच्छ कहे फोने डिसकनेक्ट कर दिया...
निशा रो पड़ी... शायद कोई उम्मीद नही थी....
"हां... आ रहा है क्या कोई.." करीब 4 मिनिट बाद नीलम अंदर आई...
निशा ने यूँही हां में सिर हिला दिया... और बिलख पड़ी....
"अगर तुम्हे पता है की ये बातें इतनी शर्मिंदगी की हैं तो पहले कभी क्यूँ नही सोचा..... अब अगर में. तुम्हे यूँही छ्चोड़ देती तो तुम 2-4 दिन में ही सब कुच्छ भूल जाती... उम्मीद करती हूँ की आइन्दा तुम ऐसा काम नही करोगी.... कितनी देर
मे आ रहे हैं वो... क्या लगते हैं तुम्हारे?"
निशा कुच्छ ना बोली.. बस आँसू टपकाती रही..... नीलम ने भी जान'ने में ज़्यादा दिलचस्पी नही दिखाई....
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