Monday, 8 September 2014

masti ki pathsala - 23

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-23

 शिव फार्म हाउस के बाहर रोड पर बने अपने ऑफीस में बैठा था.. जब ओम की कार सामने आकर रुकी.
अंदर आते ही ओम ने उसको घूरा.. "यार तेरी ये आइयशियों ने मरवा दिया... अब कुछ सोचा है क्या करना है.."
"अभी तक तो कुछ भी समझ में नही आ रहा भाई... वैसे में उसके दिमाग़ में डर बैठाने की कोशिश कर रहा हूँ.. ताकि उसको अगर जिंदा छोड़ना पड़े तो वो मुँह खोलती हुई घबराए... " शिव ने टेबल पर आयेज झुकते हुए कहा...
"वो कैसे? उसके साथ और कुछ मत करना भाई..." ओम ने उसको समझने की कोशिश की..
"अरे नही... कहते हैं की मार से मार का डर ज़्यादा होता है... मैने रास्ते में आते हुए ही प्लांनिंग कर ली थी.. और फोने पर इशारों में ही मेरी सेक्रियेट्री को सब समझा दिया था.. यहाँ पर आने पर शिवानी को हर चीज़ से ऐसा ही लगा होगा की हमारा कोई बहुत ही ख़तरनाक गॅंग है... सब नौकरानियाँ और सीक्रेटरी अंदर उसके सामने नंगी ही घूम रही हैं... और तो और मैने सीक्रेटरी को उसके सामने ही चोद दिया.... वो डरी हुई है.. बस उसके डर को इतना बढ़ा देना है की वापस घर जाने पर वा कुछ बताने से पहले 100 बार सोचे..."

"हां ये बात तो काम आ सकती है.. उसका इलाज करवाया क्या?" ओम ने पूछा.
"अरे इलाज क्या करवाना है.. चूत में लंड ही दिया था... कोई चाकू नही घोंपा.. यार इसकी गांद और मारने का दिल कर रहा है... क्या मस्त माल है.."
"इतनी बार समझाया है इन्न कामो से दूर रहकर अपना धंधा संभाल ले... और तेरी भाभी के काई फोने आ चुके हैं... मैने उठाया नही..."
"यार तू पागल है क्या? बेवजह शक करवाएगा... चल फोन मिला और बात कर.." शिव ने नेवी कट को मुँह में लगाते हुए कहा.....
अंजलि ने वाइब्रट कर रहा अपना फोने उठाया... ओम का फोने था
अंजलि: हेलो!
ओम: हां अंजलि. क्या कह रही थी..
अंजलि उठ कर दूसरे कमरे में चली गयी," कहाँ है आप?"
"क्या मतलब है... बताया तो था किसी काम से देल्ही जा रहा हूँ..." ओम को अंजलि की आवाज़ से लग रहा था की कुछ तो ज़रूर हो गया है..

"वो... क्या शिवानी आपके आगे यहाँ आई थी"
ओम ने अपने माथे पर झलक आया पसीना पूछा,"... नही तो .. वो कहाँ है.. ठीक तो होगी.." अगर टफ ने ये बात सुनी होती तो तुरंत उसकी गर्दन पकड़ लेता...
अंजलि ने चिंतित स्वर में जवाब दिया," हमारी तो कुच्छ समझ में नही आ रहा.. शिवानी घर जाने को बोल कर गयी थी... कल यहाँ उसका मोबाइल और वो सूट मिला है जिसको वो पहन कर गयी थी....!"
"ओह माइ गॉड!" ओमपारकश अंदर तक सिहर गया.. शिव उसके चेहरे के बदलते रंग को देख कर विचलित हो गया...
"क्या हुआ? कुछ पता है क्या?" अंजलि ने उसको असचर्या व्यक्त करते देख सवाल किया. ...
"तुम पागल हो गयी हो क्या... मुझे क्या पता" झूठ बोलते हुए अचानक ही ओम की आवाज़ तेज़ हो गयी...
"फिर आपने ओह माइ गॉड क्यूँ बोला?" अनजली ने सवाल किया..
"ज़्यादा जासूसा मत बनो... अब मुझे क्या चिंता नही होगी. कोई हादसा ना हो गया हो!"
अंजलि ने राज की बात खोल दी," अब पता नही हादसा हुआ है या नही... पर एक बात और सामने आई है..."
ओम का गला बैठ गया," क्या?"
राज ने शिवानी के घर फोने किया था... वो घर पर तो गयी ही नही... ना ही उसको किसी ने बुलाया था... अब हमारी समझ में ये नही आ रहा वो झूठ बोल कर क्यूँ गयी.. और अगर गयी भी तो कहाँ गयी थी... और फिर अचानक घर आई और फिर गायब हो गयी..."
ओम का चहा खिल गया... उसके भाव बदलने के साथ ही अब तक साँस रोके सुन रहा शिव भी कुर्सी से कमर टीका कर पीछे हो गया..

"अच्छा वो ऐसी तो नही दिखती थी... और मैं तो रात 12 बजे घर पहुँचा था.." कह कर उसने फोने काट दिया और ख़ुसी से उछालने लगा...
"अरे भाई... मुझे भी तो बताओ.. आख़िर हुआ क्या है..." शिव कोई खुशख़बरी सुन-ने के लिए बेचैन हो रहा था...
"चॉड साली को... मारले उसकी गेंड... साली रंडी है... झूठ बोल कर कहीं गयी होगी अपने यार से मिलने... अब वो कभी हम पर शक नही कर सकते... फँसेगा तो वो फँसेगा जिससे चुड कर वो आई थी.... चोद भाई .. जी भर कर चोद...! मैं भी घर वापस जा रहा हूँ... तुझे खबर देता रहूँगा..." ओम को लगा अब कुछ नही हो सकता...

वा बाहर निकला और अपनी गाड़ी स्टार्ट करके वापस चल दिया...

ये बात सुन कर शिव की खुशी का ठिकाना ना रहा.. उसने तुरंत ऑफीस को लॉक किया और अंदर पहुँच गया... प्राची बाहर ही मिल गयी... क्या हुआ सर? मैं तो अभी बाहर ही आ रही थी... आज तो आपने दिन भर हमको नंगा रखा... क्या वजह थी सर..?"
शिव ने उसकी बात पर ध्यान नही दिया," वो क्या कर रही है?"
"अभी मैने आपके कहे अनुसार उसको नींद का इंजेक्षन दे दिया था... सो रही है..."
प्राची की बात सुनकर शिव उपर ही लिविंग रूम मैं बैठ गया...," चलो! अभी सोने दो.. रात को मिलता हून... खा पीकर...!"
उधर टफ भिवानी जा चुका था... गौरी स्कूल में जा चुकी थी... अंजलि और राज घर पर अकेले थे....
राज अपने माथे पर हाथ रखे सोफे पर पड़ा था.. आज वो और अंजलि स्कूल नही गये थे और इश्स अजीब पहेली की गूतियाँ सुलझाने की सोच रहे थे...
अंजलि ने पास बैठकर राज के कंधे पर हाथ रखा," सब ठीक हो जाएगा राज! यूँ दुखी होने से क्या क्या फायडा... आ जाएगी"
राज गुस्से से भभक पड़ा," आ जाएगी की तो बाद की बात है... आख़िर वो गयी कहाँ थी झूठ बोल कर!" राज भी वही सोच रहा था जो बाकी सब के मॅन में था... अजीब समाज है... आदमी लाख जगह मुँह मार ले, वो कभी भी नही सोचता की आख़िर औरत भी उस्स पर अपना.. सिर्फ़ अपना अधिकार चाहती है... और औरत का उसकी चारदीवारी के बाहर बेपर्दा तक होना उसको सहन नही होता..
अंजलि राज की स्थिति को समझ रही थी.. उसने प्यार से उसके गले में बाहें डाल कर उसको अपनी और खींचने की कोशिश करी... पर राज को आज कुछ भी अच्छा नही लग रहा था... उसने अपने को छुड़ाया और दूसरे कमरे में चला गया... राज को अब शिवानी की चिंता नही थी... उसको उसके किसी यार की बाहों में होने की जलन थी...
टफ भिवानी जाते ही सीधा एस.पी. ऑफीस में गया... शमशेर भी पता लगते ही वहीं आ चुका था.. " नमस्ते भाई साहब!"
शमशेर ने उससे हाथ मिलाया...," कुछ पता लगा.."
"अभी देखते हैं... वा ऑफीस में बनी कंप्यूटर लब में गया...," हन.. नंबर. का कुच्छ पता चला!"
"सिर! वो नंबर. किसी सीमा नाम की औरत का था... उसका कहना है की वो एस.टी.डी. चलाती है.. और अपने मोबाइल से फोने करवा देती है काई बार जब लॅंड लाइन की लाइन खराब होती है.. "
टफ ने गुस्से से कहा," उठा के ना लयाए साली ने! (उठा कर नही लाए साली को)"
कंप्यूटर पेर बैठे पॉलिसीए ने कहा," थाना सदर पोलीस में बिठा रखा है साहब!"
टफ और शमशेर पोलीस ज़ीप में बैठे और सदर में पहुँच गये. सीमा करीब 23-24 साल की लड़की थी... उसकी मा उसके साथ आई हुई थी और बाहर बैठी थी. जाते ही टफ ने एक जोरदार तमाचा सीमा के गाल पर रसीद कर
दिया... उसके बॉल बिखर गये.. अपने चेहरे पर हाथ रख कर दीवार के साथ चिपक गयी," मेरा कुसूर क्या है सिर? क्या सिर्फ़ यही की मैं अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए एस.टी.डी. चलाती हून!"
टफ ने गुस्से से उसकी और देखा और गुर्रा कर बोला," ज़्याड्डा सुधी बनान की ज़रूरत ना से.. बना दूँगा मदर इंडिया!" ( ज़्यादा शरीफ बन-ने का नाटक करने की ज़रूरत नही है... एमोशनल होना सीखा दूँगा!)

शमशेर एंक्वाइरी पूरी करके उसको बताने की बात कह कर चला गया... टफ को पता था इसके साथ ज़रूर कोई आया होगा..," तेरे साथ कौन है?"
"मेरी मा है.. सर!" सीमा ने सहमी हुई आवाज़ में ही जवाब दिया..
टफ थाने के एस.एच.ओ. के पास गया और उसके द्वारा की गयी एंक्वाइरी के बारे में पूछा..!"
"ऐसा है भाई साहब! हुमने आस पड़ोस में छान बिन की थी... वो तो सब मा बेटी को शरीफ ही बता रहे हैं.. रही उस्स फोने की बात.. तो लड़की कह रही है.. पक्का तो नही याद, पर उस्स दिन शायद एक युवक और एक औरत उसकी एस.टी.डी. में आए थे.. उसके फोने की लाइन खराब थी तो उसने अपना मोबाइल दे दिया था... लड़का उस्स औरत को आंटी कह रहा था... उससे पहले उसने कभी उस्स लड़के को वहाँ नही देखा था..
"एस.टी.डी. कहाँ है?"
"रोहतक!"
"कहाँ पर?"
"ये तो मैने नही पूछा?"
टफ वापस मुड़ते हुए बोला," घंटा एंक्वाइरी करते हो यार... मैं इन्न मा बेटी को लेकर जा रहा हून..."
टफ ने उन्न दोनो को अपनी ज़ीप में बिठाया और थाने से निकल गया........

टफ दोनो को शमशेर के घर ले गया... दिशा और वाणी अभी स्कूल से नही आई थी... उसने दरवाजे के साथ बनी स्लॅब के उपर रखी ईंट के नीचे से चाबी निकली और दरवाजा खोल कर उनको अंदर ले गया... दोनो बुरी तरह डारी हुई थी.. टफ ने उनको सोफे पर बैठने का इशारा किया.. दोनो एक दूसरी से चिपक कर बैठ गयी... सीमा की टांगे काँप रही थी...
टफ ने लड़की को उठने को कहा और बेडरूम में चला गया.. सीमा पीछे पीछे चली आई... उसकी मा रह रह कर सोफे से उठकर उनको देखने की कोशिश कर रही थी... टफ ने लड़की को उपर से नीचे तक देखा... पढ़ी लिखी और सभ्या सी मालूम होती थी.. उसके हर अंग में कसाव बता रहा था की उसने अभी प्यार करना सीखा नही है.. बहुत ही सुंदर लड़कियों में उसको गिना जा सकता था... दोनो अभी तक खड़े ही थे...
"हां! शुरू हो जाओ!" टफ ने उसकी कामपति हुई टाँगों पर डंडा रखते हुए कहा...
"सीमा का गला सूख रहा था और होतो की लाली उडद सी गयी थी... उसने वो सब कुछ दोहरा दिया जो टफ को पहले कंप्यूटर ऑपरेटर ने और बाद में एस.एच.ओ. ने बताया था...
"कभी डलवाया है?"
"क्या सिर?" वो समझ ना पाई...
"अगर मैं डाल दूँगा तो कोई साइज़ फिट नही आएगा.. समझी..!"
अब भी सीमा की समझ में कुछ ना आया... पर बाहर बैठी उसकी मा सब समझ रही थी... उसको पोलीस वालों की तमीज़ का पता था...

"एस.टी.डी. कहाँ है?"
"सर रोहतक में ही!" सीमा को ये बात तो समझ में आ गयी थी...
"तेरी मा की... बंदूक!... अरे मैं पूछ रहा हूँ रोहतक में कहाँ पर है..." टफ उसको डरा कर तोड़ देना चाहता था... ताकि अगर उसके अंदर कुछ हो तो बाहर निकल आए...
"सर.. वो तिलक नगर में.. देल्ही रोड पर ही हमारा घर है... उस्स में ही आगे दुकान निकाल रखी है... वही है!"
टफ ने उसकी जाँघ पर डंडा रख दिया.. वो घबरा कर थोड़ा सा साइड में होने लगी.. तो टफ ने उसकी जीन्स के उपर से ठीक उसके पॉइंट का आइडिया लगा कर वहाँ पर डंडे की नौक टीका दी... सीमा ने नेजरें नीची कर ली... असहाय सी होकर उसका हाथ डंडे की नौक के पास चला गया ताकि अगर वो दबाव डाले तो अपनी चिड़िया को बचा सके...
"क्या करती हो?"
"ज़्ज्जीइ .. पढ़ती हूँ!"
"कहाँ?"
"यूनिवर्सिटी में!"
"क्या?"
"जी एकनॉमिक्स से एम.ए. कर रही हूँ.." उसकी बेचैनी सवालों से नही बुल्कि उस्स डंडे से बढ़ रही थी..."
"उनको पहले कभी देखा है!"
"ज्ज्जीइ... किनको?"
"अपनी मा के यार को... ज़्यादा स्मार्ट ना बने! (ज़्यादा स्मार्ट मत बन)"
सीमा समझ गयी...," ज्जीइ... कभी भी नही!"
"घर में कौन कौन है?"
"जी... बस में और मेरी मा!"
"क्यूँ पापा फौज में हैं क्या?"
सीमा की आँखों से आँसू टपक पड़े......
टफ को अपनी ग़लती का अहसास हुआ.... उस्स को डरा कर उगलवाने की कोशिश में शायद वा इंसानियत ही भूल गया...था!
"सॉरी... शायद..."
"कोई बात नही सर... हम मा- बेटी सीख चुके हैं.. पड़ोसियों का झगड़ना... लड़कों की फब्तियाँ... कभी कबार बिना खाए सोना... और पापा का फोटो पर तंगी माला देखकर रोना.... हम सीख चुके हैं सर... कोई बात नही.." टफ की सहानुभूति मिलते ही उसकी आँखों से अवीराल अश्रु धारा बह निकली.. डंडा पीछे हो गया...
"चलो बाहर आ जाओ!"
सीमा ने अपने आँसू पोंछे और बाहर आकर अपनी मा की गोद में सिर रखकर
फिर से रोने लगी... ज़ोर ज़ोर से...
"देखिए.. माता जी! हम पोलीस वाले अपनी भासा को लेकर बदनाम हैं... पर हमें ये सब करना पड़ता है... सामने वाले से कुछ उगलवाने के लिए... अगर वा कुछ छिपा रहा है तो... पर मैं आपसे दिल से माफी माँगता हूँ... आइ आम रियली वेरी वेरी सॉरी!"
मा ने सिर्फ़ इतना ही कहा " तो हम जाए साहब!"
तभी दरवाजे पर वाणी प्रकट हुई... अपनी वाणी!

"हेलो अजीत भैया! कब....." तभी वाणी को अपने आँसू पूछते हुए सीमा दिखाई दी... उसने अपनी बात बीच में ही छोड़ दी...
"देख छोटी! बहुत बार कहा है.. मुझे भैया मत कहा कर... आइन्दा कभी.."
"कहूँगी... भैया! भैया! भैया" और फिर टफ के कान के पास होन्ट ले जाकर बोली," ये सुंदर सी लड़की कौन है? पसंद कर ली क्या?" सीमा को भी बात समझ में आ गयी... उसने अपनी आँखों को रुमाल से ढाका हुआ था...
"तो हम जायें साहब?" सीमा की मया ने फिर से सवाल पूछा..
वाणी ने जाकर सीमा का हाथ पकड़ लिया...," ऐसे नही जाने दूँगी दीदी को, पहले चाय पिलावँगी.. फिर बातें करूँगी... फिर देखूँगी.. जाने देना है या नही!" उसकी आवाज़ में इतनी मिठास थी की सीमा अपने आप को रोक ना सकी... दुखों के पहाड़ से उबरने की कोशिश में उसने वाणी को ही छाती से लगा लिया और फिर से सुबकने लगी..

वाणी अपने कोमल हाथों से उसके प्यारे प्यारे गालों से उसका पानी समेटने लगी..," क्या हुआ दीदी.. प्लीज़.. चलो चाय बनाते हैं!" वाणी की बात को तो शायद एक बार भगवान भी टालते हुए सोचे... सीमा ने उसका हाथ पकड़ा और उसके साथ किचन में चली गयी...

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