करीब सुबह 9 बजे टफ यूनिवर्सिटी के गेट नंबर. 2 पर खड़ा था.. सीमा को सर्प्राइज़ देने के लिए... ऑटो से उतारकर प्रिया को अपनी और आते देख टफ भौचक्का रह गया.. वह दूसरी तरफ घूम गया ताकि अगर प्रिया ने उसको ना देखा हो तो वो उस'से बच सके.. पर प्रिया तो उसको देखकर ही उतरी थी.. वरना तो उसको अगले गेट पर जाना था..," हे फ्रेंड! कैसे हो?" प्रिया उसके आगे आकर खड़ी हो गयी.. टफ ने अब और तब में उसमें बहुत फ़र्क देखा.. तब वह पैसों की खातिर बिकने वाली एक वेश्या लग रही थी और अब अपने करियर के लिए यूनिवर्सिटी आने वाली एक सभ्या लड़की...," ठीक हूँ... जाओ यहाँ से...!" "हां हां! जा रही हूँ.. एक रिक्वेस्ट करनी थी.." प्रिया ने टफ की तरफ प्यासी निगाहों से देखा.. "जल्दी बोलो.. मुझे यहाँ पर ज़रूरी काम है.." टफ ने अपनी बेचैनी दर्शाई... "वो... सर आप बड़े लोग हैं... आपके लिए पैसा कोई मायने नही रखता होगा... मेरे जैसी घरों की लड़कियों को पैसे की बहुत ज़रूरत होती है.... अपने और परिवार के सपनो को जिंदा रखने के लिए... उम्मीद है आप समझ रहे होंगे... बदले में हमारा शरीर ही होता है.. आप बड़े लोगों का दिल बहलाने के लिए......" "अपनी चौन्च बंद करो और भागो यहाँ से..!" टफ गुस्से से दाँत पीस रहा था... सीमा के आने का टाइम हो चुका था... "सॉरी टू डिस्टर्ब... बट कभी आप अपनी सेवा का मौका दे सकें तो... प्लीज़ आप अपना नंबर. दे दीजिए......." तभी मानो टफ पर आसमान टूट पड़ा...," अरे प्रिया! तुम इनको कैसे जानती हो? ... और आप यहाँ कैसे..?" सीमा की आवाज़ सुनकर टफ पलटा... उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया... "मैं तो बाद में बतावुँगी.. पहले तुम बताओ.. तुम इनको कैसे जानती हो?" प्रिया ने सीमा के गले मिलते हुए कहा... "बस यूँही... आप यहाँ कब आए... बताया भी नही... अच्छा मैं अभी आती हूँ.. 1 घंटे में... मुझे ज़रूरी एषाइनमेंट्स जमा करना हैं... मिलेंगे ना..! मैं जल्द से जल्द अवँगी..." अपने सपनो के राजकुमार को देखकर उसने लाइब्ररी जाने का प्लान कॅन्सल कर दिया था... "सीमा.. एक मिनिट! सुनो तो सही...!" टफ का गला भर आया.. "मैं बस अभी आई.." कहती हुई सीमा प्रिया का हाथ पकड़ कर खींचती हुई ले गयी.. टफ अपने माथे पर हाथ लगा वहीं घुटनों के बाल बैठ गया... सीमा और प्रिया के गले मिलने को देखते हुए ये अंदाज़ा लगाना बिल्कुल आसान था की दोनो पक्की सहेलियाँ थी.... सीमा ने अंजलि से पूछा," तूने बताया नही.. अजीत को कैसे जान'ती है..?" प्रिया ने टालने की कोशिश की," यार.. बस ऐसे ही एक फ्रेंड के दोस्त के पास मुलाक़ात हो गयी थी..." "चल छोड़! ये बता.. कैसा लगा तुझे ये.." सीमा ने अपनी पसंद पर मोहर लगवानी चाही... "रॉकिंग मॅन! कुछ भी तो कमी नही है... पर तू ये बता तू ऐसा क्यूँ पूच रही है..?" प्रिया ने शंकित निगाहों से सीमा की और देखा... "बस ऐसे ही.. चल छोड़.. जल्दी चल.. लेट हो रहे हैं!" अब की बार सीमा ने टालने की कोशिश करी.... "नहिी ! तुम्हे बताना पड़ेगा... मेरी कसम!" प्रिया को दाल में कुछ काला सा लगा.. "वो.. ये.. अजीत मुझसे प्यार करता है..." "Wहाआआआआत?" प्रिया ने ऐसे रिक्ट किया मानो 'प्यार' शब्द प्यार ना होकर कोई बहुत बड़ी गाली हो... "क्या हुआ?" प्रिया का रिएक्शन देखकर सीमा की धड़कन बढ़ गयी.... "तू बहुत ग़लत कर रही है सीमा! तू एक बहुत अच्छी लड़की है.. और ये प्यार व्यार तेरे लिए नही बना." प्रिया ने लुंबी साँस लेते हुए कहा.... "अच्छी हूँ तो इसका ये मतलब तो नही की मैं शादी के सपने भी ना देख सकूँ!..." सीमा ने प्रिया से सवाल किया... "तो तू ये समझती है की ये लड़का तुझसे शादी करेगा... है ना?" प्रिया उसको इशारों में समझना चाहती थी... टफ जैसों की तासीर. "तू पहेलियाँ क्यूँ बुझा रही है... खुल कर बता ना.. क्या बात है?" प्रिया बताती भी तो क्या बताती.. वो सीमा के पड़ोस में रहती थी.. उनकी भी कॉलोनी में उतनी ही इज़्ज़त थी.. जितनी सीमा और उसकी मा की.. पर वो सीमा को इश्स दलदल में नही जाने देना चाहती थी... और सीमा पर भरोसा भी कर सकती थी.. उसका काला 'सच' छुपा कर रखने के लिए...," तू एषाइनमेंट दे आ सीमा.. मैं तुझे सब बताती हूँ..." "ओ.के... मैं अभी आई" सीमा ने बेचैन निगाहों से प्रिया को देखते हुए कहा.. उसका दिल बैठा जा रहा था.. जाने.. प्रिया उसको क्या बताएगी.... सीमा जितनी जल्दी हो सका; वापस आ गयी.. प्रिया के पास.. उसके कॉमेंट ने सीमा के दिल की धड़कन बढ़ा दी थी..," हाँ प्रिया.. जल्दी बता दे.. तू कहना क्या चाहती है..?" प्रिया उसका हाथ पकड़ कर रोज़ पार्क में ले गयी... "देख सीमा! मैं तुझको जो बताने जा रही हूँ.. वो बताने लायक नही है.. हम दोस्त हैं.. इसीलिए मैं तुझे इश्स प्यार के गटर में ढकेले जाने से बचना चाहती हूँ.. और जो कुछ मैं बतावुँगी.. सुनकर तुझे एक नही दो झटके लगेंगे... प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना.. और मेरी मजबूरी समझने की कोशिश करना.." "यार तू डरा मत प्लीज़.. मेरी जान निकली जा रही है..." सीमा सुन'ने से पहले ही कुछ कुछ समझने लगी थी.. "मुझे पता है.. पर तुझे सुन ही लेना चाहिए...!.. तरुण पढ़ाई में बहुत अच्छा है.. तुझे पता है.. पर कॉंपिटेशन के जमाने में सिर्फ़ इंटेलिजेन्सी से काम नही चलता... उसकी कोचैंग के लिए 50000 रुपए चाहियें... घर वालों ने उसको बी.एस सी. करने को कहकर अपने हाथ उठा लिए हैं..." "तू सीधी सीधी असली बात पर क्यूँ नही आती?" सीमा ना चाहकर भी वो सुन'ने के लिए बेचैन थी... क्या पता उसका अंदाज़ा ग़लत ही निकल जाए... प्रिया ने थूक गटकते हुए अपनी बात जारी रखी," बता तो रही हूँ... मेरा भाई डॉक्टर बन'ना चाहता है.. और मैं जान'ती हूँ वो बनेगा..." प्रिया का गला भर आया... आँखों में आँसू आ गये," और मैने फ़ैसला किया की उसको डॉक्टर बना'ने के लिए मैं अपना जिस्म बेच दूँगी!" कह कर वो फुट फुट कर रोने लगी.. सीमा की छाती पर सिर रखकर वो झार झार बरसने लगी... "ये क्या कह रही है तू प्रिया" सीमा ने कसकर उसको अपने सीने से भींच लिया... पर उसको पता था ये बेहन का प्यार है... कुछ भी कर गुजरेगा.. अपने भाई के सपने को पूरा करने की खातिर... करीब पाँच मिनिट तक दोनो में चुप्पी छाई रही.. सीमा की हिम्मत ना हुई; प्रिया के बलिदान की आँच पर अपनी जिगयसा की रोटियाँ सेकने की... प्रिया ने खुद ही अपने आपको संभाला और आगे बोलना शुरू किया..," मैने एक डील करी... 5 रातों के बदले 50000... ... और कल में पहली रात बिता कर आ चुकी हूँ..." "क्या? ... किसके साथ..?" "तुम्हारे इश्स अजीत के साथ.... सीमा सुनते ही सब कुछ भूल गयी... बस याद रहा तो टफ का वो खत जिसने उसको सपना दिखाया था.. जिसने उसको जीना सिखाया था.. सपने के साथ.. सीमा को लगा जैसे पार्क में खिले गुलाब उसकी हँसी उड़ा रहे हैं.. उसको सब कुछ घूमता सा लगा... सपनें पिघल कर लुढ़क आए... उसके गालों पर.. प्रिया उसको एकटक देखे जा रही थी... सीमा को अब भी विस्वास सा नही हुआ.. क्या आदमी की जात इतनी घटिया भी हो सकती है..," क्या सच में इसने तुम्हारे साथ...." "नही.. इसने नही.. पर ये भी था किसी दूसरी के साथ.. नाम बताना नही चाहती... खुद पर लांछन लगा कर तुमको रास्ता दिखाने से मुझे कोई हर्ज़ नही.. पर हुमने एक दूसरी को वादा किया है.. नाम ना बताने का.. सॉरी..!" प्रिया ने अपने आँसू पोछते हुए कहा... सीमा के पास अब जैस उसका कहने को कुछ बचा ही ना था... वह प्रिया का धन्यवाद करना भी भूल गयी... उसको इस गर्त में गिरने से बचाने के लिए...... उसके मनमोहक चेहरे पर चाँदी सी नफ़रत तैरने लगी.. वह उठी और टफ के पास जाने लगी... पीछे पीछे उसकी सहेली प्रिया चल दी... हर बात के सबूत के तौर पर...... टफ अपनी गाड़ी से कमर लगाए खड़ा था... सीमा की सूरत देखकर ही वो समझ गया... सीमा ने पास आते ही भर्रय हुई आवाज़ में उसको जाने क्या का कहना शुरू कर दिया," तुमको तो जीना आ गया है ना.. तुम तो मुझे देखकर ही पागल हो गये थे.. तुमने.... कहा था ना... कहा था ना तुमने की... मेरे बिना जी नही पाओगे... ये जीना है तुम्हारा.." टफ कुछ बोल नही पा रहा था.. और ना ही कुछ सुन पा रहा था.. बस जैसे सब कुछ लूट चुका हो.. और वो चुपचाप खड़ा अपनी बर्बादी के जनाज़े में शामिल हो.. सीमा की बड'दुआयं जारी थी," तुम बड़े लोग.. लड़की को समझते क्या हो.. सिर्फ़ सेक्स पूर्ति का साधन.. मुझमें तुम्हे कौनसी बात लगी की मुझे भी खिलौना समझ बैठे... क्यूँ दिखाए मुझे सपने.. क्यूँ रुला मुझे... बोलते क्यूँ नही..!" आँखों में आँसू लिए सीमा ने टफ के कंधे को पकड़ कर हिलाया और सिसकती हुई नीचे बैठ गयी... उसमें खड़ा रहने की हिम्मत ही ना बची थी... टफ ने बड़ी कोशिश के बाद अपने मुँह से शब्द टुकड़ो के रूप में निकले..," सी..मा ( गला सॉफ करके)... उससे एक बार पूछ तो लो.. सीमा!" प्रिया पास खड़ी सब सुन रही थी... "क्या पूछ लूँ... की कैसे तुमने उस्स बेचारी की मजबूरी का फयडा उठाया होगा.. की कैसे तुमने उसको रौंदा होगा... क्या पूछ लू हां.... सीमा खड़ी हुई और अपनी बहती आँखों से एक बार देख कर पलट कर जाने लगी.. प्रिया का हाथ पकड़ कर.. धीरे धीरे! टफ का रोम रोम काँप उठा... उस्स'से ये क्या हो गया... अपने ही अरमानो के तले उस्स'ने अपने सपनो का गला घोंट दिया... वह गाड़ी में बैठ गया.. और अपने मर्दाना आँसू निकालने लगा.. जी भर कर... प्रिया को टफ की एक बात बार बार कौंध रही थी.. " उस्स'से एक बार पूछ तो लो.. सीमा!" "सीमा! मैं अगर तुम्हे उस्स लड़की से मिलवा दू तो तुम उसकी बात को राज रख सकती हो ना?" "क्या करना है अब मिलकर..? बचा ही क्या है मिलने को.." "नही प्लीज़.. एक बार.. मैं उसको फोन लगती हूँ.. प्रिया ने अपना फोन निकाला और स्नेहा का नंबर. डाइयल कर दिया... लाउडस्पिकर ऑन करके.. "हेलो!" "स्नेहा?" "हां प्रिया बोलो....." स्नेहा शायद घर पर ही थी.... "यार कल रात से रिलेटेड एक बात पूछनी थी..." "मैं तुम्हे दो मिनिट में फोन करती हूँ..." स्नेहा ने कहकर फोन काट दिया... प्रिया और सीमा एक दूसरी को देखने लगी.. मानो उम्मीद की कोई किरण नज़र आ ही जाए.. 2 मिनिट से कम समय में ही स्नेहा का फोन आ गया," हां प्रिया! बोलो.." "यार वो जो कल दूसरा लड़का नही था.. शरद के साथ.. वो आज रात के लिए बुला रहा है.. क्या करूँ?.. जाऊं क्या?" प्रिया ने सही तरीका अपनाया था बात शुरू करने का... सीमा साँस रोके सब सुन रही थी..... "कौन? अजीत जी!" स्नेहा ने प्रिया से पूछा.. "हां हां.. ज़्यादा तंग तो नही करता ना?" प्रिया ने उसको उकसाया.. "तुम अब 4 दिन बाद एप्रिल फूल बना रही हो क्या.. या मुझे जला रही हो!" स्नेहा ने स्टीक उत्तर दिया.. "क्या मतलब?" प्रिया ने चौंकते हुए से पूछा.. "मतलब क्या? उनके जैसा देवता इंसान तो मैने आज तक देखा ही नही... वो किसी की मजबूरी का फयडा उठाने वालों में से नही है... जाने कैसे वो शरद के साथ आ गया.." सीमा की आँखें चमक उठी.. दिल फिर से धड़क उठा.. अपने अजीत के लिए..... "तुम थोड़ा खुलकर नही बता सकती क्या?" प्रिया सबकुछ जान'ना चाहती थी... "यार उस्स आदमी से तो मुझे प्यार सा हो गया है.. अगर कहीं मिल गया तो... पर यार मैं अब इश्स लायक कहाँ हूँ... खैर.. तुम्हे याद होगा जब शरद ने उसको कहा था.... "यार! तुम्हारा मूड खराब लग रहा है.. कोई इचा भी है या दोनो को मैं ही संभालू" ऐसा करके कुछ!" "हां हां! याद है.." प्रिया ने याद करते हुए बताया... "तो वो मुझे उठाकर बेडरूम में ले गया था.. क्यूंकी शरद ने कहा था की उसको तुम पसंद हो.." "हां हां.." "अंदर जाते ही उसने मुझे चादर औधा दी थी.. और सॉरी बोला था.. और ये भी कहा था की मुझे वहाँ ना लाता तो तुम भी बर्बाद हो जाती..... उसने सारी रात मेरी और देखा तक नही.. छूना तो दूर की बात है यार... सच ऐसे आदमी भी होते हैं दुनिया में..." सीमा का हर शक़ दूर हो गया था.. पर प्रिया के मॅन में संशय बाकी था," पर यार मैने देखा था.. जब वो बाहर आया था तो उसने अपनी ज़िप बंद करी थी.." प्रिया ने सीमा से शरमाते हुए से ये बात कही.. "हो सकता है.. इसका मुझे नही पता.. हां शायद उसने मुझको कहा था की अगर शरद पूछे तो उसको ये नही बताना है की मैने कुछ नही किया... वरना वो मुझको बाहर ले जाएगा... शायद शरद को दिखाने के लिए ऐसा कहा हो... उसने तो यार अपना नंबर. भी नही दिया... भगवान बस एक बार उससे मिलवा दे..." "ठीक है स्नेहा! मैं तो एप्रिल फूल ही बना रही थी.. पर मुझे क्या पता था.. एनीवेस थॅंक्स...." स्नेहा हँसने लगी.. और फोन कट गया......
गर्ल'स स्कूल --22
सीमा फोने काटते ही बाद हवस सी होकर भाग ली गेट की तरफ.. अपने प्यार के लिए.. उसको नही पता था टफ वहाँ मिलेगा या नही.... पर उसको भगवान पर भरोसा था.. फोन करना भी ज़रूरी नही समझा.....
गेट पर आते ही उसको टफ की गाड़ी दिखाई दे गयी.. वह भागती हुई ही ड्राइवर सीट के बाहर पहुँची.. उसने देखा टफ की बंद आँखों में आँसू थे... उसने शीशे पर नॉक किया.. टफ ने देखा सीमा बाहर खड़ी है.. उसकी भी आँखों में आँसू थे.. दोनो के आँसू एक रंग के हो चुके थे.. प्यार के आँसू.. मिलन की तड़प के आँसू..
टफ गाड़ी से नीचे उतरा.. सीमा उससे लिपट गयी.. बिना उसकी इजाज़त लिए... कभी ऐसा भी होता है क्या.. पहल तो लड़का करता है... पर कहानी उलट गयी थी.. सीमा रोड पर ही उसके अंदर घुस जाना चाहती थी.. हमेशा के लिए....," तुमने बताया क्यूँ नही?"
टफ ने उसकी कमर पर हाथ लगाकर और अंदर खींच लिया," कहा तो था जान; उससे पूछ तो लो.."
"फिर तुम इतने घबराए हुए क्यूँ लग रहे थे.." सीमा ने अपने आँसू टफ की शर्ट पर पोंछ दिए...
"वहाँ जाने की ग़लती के कारण सीमा... सॉरी.. सच में मैं तुम्हारे बिना नही रह सकता.."
"मैं भी अजीत... आइ लव यू" सीमा अपना सिर उठाकर टफ की आँखों में अपने लिए मंडरा रहा बेतहाशा प्यार ढूँढने लगी.......
दोनो गाड़ी में बैठे और चल दिए... पीछे प्रिया खड़ी अपने आँसू पॉच रही थी... काश उसकी भी ऐसी किस्मत होती..
"कहाँ चलें?" टफ ने गाड़ी रोड पर चढ़ा कर सीमा से पूछा.
"जहाँ तुम्हारी मर्ज़ी!" सीमा सीट से कमर लगाए आँखें बंद किए बैठी थी.. जाने कैसे वो यूनिवर्सिटी के बाहर टफ के सीने से जा चिपकी थी.. उस्स वक़्त उसको कतई अहसास नही हुआ की वो एक मर्द का सीना है.. उसकी ठोस छाती की चुभन अब जाकर वो अपने दिल में महसूस कर रही थी.. उसकी छातियाँ मर्द का संसर्ग पाकर उद्वेलित सी हो गयी थी... यह उसका पहला प्यार था, पहली कशिश थी.. पहली चुभन थी और पहली बार वो अपने आपको बेचैन पा रही थी; दोबारा उसके सीने में समा जाने के लिए.. उसका दिल उछल रहा था, पहले मिलन को याद करके भविस्या के सपनो में खोया हुआ!
"कहीं का क्या मतलब है? अपने घर ले चलूं क्या?" टफ ने मज़ाक में कहा..
सीमा ने अपनी मोटी आँखें खोल कर टफ की और देखा," तो क्या सारी उमर बाहर ही मिलने का इरादा है?"
"अरे मैं अभी की पूछ रहा हूँ.."
"अभी तो मंदिर मैं चलते हैं.. देल्ही रोड पर थोड़ी ही दूर सई बाबा का मंदिर है.. चलें?" सीमा ने टफ से पूछा...
"क्यूँ नही! " और टफ ने गाड़ी देल्ही की और बढ़ा दी...
करीब 15 मिनिट के बाद दोनो मंदिर के पार्क में बैठे थे," सीमा! मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ..!"
"कहो!" सीमा भी अब कुछ ना कुछ सुनना ही चाहती थी... कुछ प्यारा सा, रोमॅंटिक सा..
"सीमा! मैं अपनी बीती जिंदगी में निहायत ही आवारा टाइप का रहा हूँ.. केर्लेस और थोड़ा वल्गर भी... जैसा मैने कहा था.. तुमने मेरी जिंदगी में आकर उसको बदल दिया.. मैं मंदिर में बैठा हूँ.. आज जो चाहो पूछ लो; प्लीज़ आइन्दा कभी कोई बात सुनकर मुझसे यूँ दूर ना चली जाना जैसे आज..... मैं मर ही गया था सीमा.." टफ ने सीमा का हाथ अपने हाथों में ले लिया..
"अजीत! कल रात वाली बात का खुलासा होने पर कोई भी बहुत बड़ी बेवकूफ़ होगी जो तुम पर कभी शक करेगी... मैं तुम्हारी शुक्रगुज़ार हूँ की तुमने मुझ में प्यार ढूँढा.. तुमने मुझे अपनाया... मुझसे मिलने से पहले तुमने क्या किया है, ये मेरे . कतई मायने नही रखता... बस अब मुझे मंझदार में ना छोड़ देना... मैने बहुत सारे सपने देख लिए हैं..उनको बिखरने मत देना प्लीज़...
दोनो लगातार एक डसरे की आँखों में देखे जा रहे थे... शायद दोनो ही अपने देखे सपनो को एक दूसरे की आँखों में ढूँढ रहे थे... टफ के हाथों की पकड़ सीमा के मूलाम हाथों पर कास्ती चली गयी...
"आऔच! अब क्या मसल दोगे इनको." सीमा ने अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश करी..
"ओह सॉरी! मैं कहीं खो गया था.." टफ ने सहम्ते हुए उसका हाथ छोड़ दिया..
"अब ये अपना पुलिसिया अंदाज छोड़ दो.. मेरे साथ नही चलेगा.. अंदर कर दूँगी हां!" सीमा ने अपना हक़ जताना शुरू कर दिया था..
"कहाँ अंदर करोगी!" खिलाड़ी टफ अपने आपको रोक ही ना पाया.. द्वि- अर्थी कॉमेंट करने से...
गनीमत था सीमा उसकी बात का 'दूसरा' मतलब नही समझी... वरना वहाँ पर झगड़ा हो जाता... या क्या पता...? प्यार ही हो जाता! ," घर लेजाकार बाथरूम मे. रोक दूँगी... हमेशा के लिए!"
"अगर तुम भी मेरे साथ बंद हो जाओ तो में बाथरूम में उमर क़ैद काटने के लिए भी तैयार हूँ..." टफ ने फिर शरारत की..
"धात!.. बेशरम.." सीमा ने अपनी नज़रें झुका ली.. उसका दिल कर रहा था अजीत उसको अपनी छाती से वैसे ही चिपका ले जैसे वो रोड पर जा चिपकी थी.... उस्स मिलन की ठंडक अब तक उसकी छातियों में थी....
"चलें..... मुझे पढ़ाई करनी है.." सीमा चाह रही थी.. वो उसको कहीं ले जाए, अकेले में..!
टफ तो जैसे जोरू का गुलाम हो गया था.. ना चाहते हुए भी वो उठ गया," चलो! जैसी तुम्हारी मरजी"
अब सीमा क्या कहती.. वो उसके पीछे पीछे चल दी........
आज 10+2 के एग्ज़ॅम का तीसरा दिन था... सुबह सुबह गौरी निशा के घर पहुँच गयी," निशा! आज तू लेट कैसे हो गयी? तेरा इंतज़ार करके आई हूँ.. चल जल्दी!"
"सॉरी गौरी! मैं तुझे बताना ही भूल गयी... मेरे भैया के एग्ज़ॅम ख़तम हो गये हैं.. वो कल रात को घर आ गये थे... मैं तू बाइक पर उसी के साथ जाउन्गि.. सॉरी!" निशा गौरी को साथ लेकर नही जाना चाहती थी.. इतने में संजय बाथरूम से बाहर निकला.. उसने कमर के नीचे तौलिया बाँध रखा था.. चंडीगड़ में वह लगातार जिम जाता रहा था.. कपड़ों के उपर से गौरी उसकी मांसपेशियों के कसाव को नही देख पाई थी.. कपड़ों में वा इतना सेक्सी नही लगता था जितना आज नंगे बदन.. गौरी ने शर्मा कर नज़रें नीची कर ली...
"तो क्या हुआ निशा? ये चाहे तो हमारे साथ चल सकती है.. तीन में कोई प्राब्लम नही है" संजय ने बनियान पहनते हुए कहा..
निशा ने एक बार घूर कर संजय की और देखा फिर पलट कर निशा की और प्रेशन शूचक निगाहों से देखा...
"हां ठीक है.. अगर तीन में प्राब्लम नही है तो मैं भी चल पड़ती हूँ... तुम्हारे साथ.." गौरी को आज सच में ही संजय बहुत स्मार्ट लगा.. वह रह रह कर तिरछी निगाहों से संजय को देख रही थी....
"ठीक है.. चलो!" निशा ने बनावटी खुशी जताई.. सच तो ये था की वो संजय और गौरी को आमने सामने तक नही देखना चाहती थी.. उसको पता था की उसका भाई गौरी पर फिदा है... पर वा मजबूर हो गयी...
संजय ने बाइक बाहर निकली तो झट से निशा संजय के पीछे बैठ गयी.. संजय ने निशा की और देखा," निशा! दोनो तरफ पैर निकालने होंगे.. ऐसे नही बैठ पावगी दोनो.."
"तुम तो कह रहे थे की तीनो आराम से बैठ जाएँगे!" निशा ने मुँह बनाया और दोनो तरफ पैर करके संजय से चिपक कर बैठ गयी.. गौरी निशा के पीछे बैठ गयी.. तीनो एक दूसरे से चिपके हुए थे... संजय ने बाइक चला दी...
सलवार कमीज़ में होने के कारण निशा की चूत संजय की कमर से नीचे बिल्कुल सटी हुई थी.. संजय उसमें से निकल रही उष्मा को महसूस करके गरम होता जा रहा था.. निशा ने अपने हाथ आगे लेजकर उसकी जांघों पर रख लिए.. संजय के लंड में तनाव आने लगा...
गौरी संजय के बारे में सोच कर गरम होती जा रही थी.. उसकी जांघों की बीच की भट्टी भी सुलग रही थी.. धीरे धीरे...
अचानक रोड पर ब्रेकर आने की वजह से गौरी लगभग उछल ही गयी, उसने घबराकर निशा को पकड़ने की कोशिश करी... पर उनके बीच में तो जगह थी ही नही.. गौरी के हाथ संजय के पेट के निचले हिस'से पर जाकर जम गये..
जिस वक़्त गौरी को वो झटका लगा था.. उससे थोड़ी देर पहले ही निशा संजय का ध्यान गौरी से हटाने के लिए उसकी पॅंट के उपर से उसके लंड को सहलाने लगी थी.. संजय कोई रिक्षन नही दे पाया हालाँकि उसके लंड ने तुरंत आक्षन लिया.. ट्राउज़र के पतले कपड़े में से वो अपना सिर उठाने लगा.. निशा ने पॅंट के उपर से ही उसको मजबूती से पकड़ लिया.. संजय बेकाबू हो रहा था.. निरंतर.. निशा ने सोने पर सुहागा कर दिया.. अपनी उंगलियों से ज़िप को पकड़ा और नीचे खींच दी.. अंडरवेर का सूती कपड़ा लंड के दबाव मे. पॅंट से बाहर निकल आया... निशा उस्स पर उंगलियाँ घुमाने लगी..
सब कुछ संजय की बर्दास्त के बाहर था.. तभी अचानक निशा की बदक़िस्मती कहें या संजय की खुसकिस्मती.. अचानक वो झटका लगा और गौरी के हाथ निशा की कलाईयों के उपर से होते हुए संजय के पेट से जा चिपके..
अचानक गौरी से अंजाने में हुई इस हरकत से निशा सकपका गयी.. उसने तुरंत अपने हाथ पीछे खींच लिए...
गौरी के दिल की धड़कन बढ़ गयी.. गौरी को अहसास था की उसकी उंगलियाँ संजय के गुप्ताँग से कुछ ही इंच उपर हैं.. उसने अपने हाथ हटा लेने की सोची; पर संजय को छूने का अहसास उसको इश्स कदर रोमांच से भर गया की उसके हाथों की पकड़ वहाँ कम होने की बजाय बढ़ती चली गयी..
निशा कसमसा कर रह गयी; पर कर क्या सकती थी... उसने हाथ अपनी जांघों पर ही रख लिए...
अचानक गौरी को ध्यान आया; निशा के हाथ तो वहाँ से भी नीचे थे जहाँ से वो संजय को पकड़े हुए थी.. उसकी नाभि के भी नीचे से.. तो क्या निशा के हाथ..
ये सोचते ही गौरी को अपनी पनटी पर कुछ टपकने का अहसास हुआ.. उधर संजय का भी बुरा हाल था.. उससने एक हाथ से अपने हथियार को जैसे तैसे करके पॅंट में अंदर थूसा पर वो ज़िप बंद ना कर पाया... ऐसा करते हुए उसके हाथ गौरी के कोमल हाथों से रग़ाद खा रहे थे.. गौरी अंदाज़ा लगा सकती थी की उसके हाथ कहाँ पर हैं और वो क्या कर रहा है...
जैसे तैसे वो भिवानी एग्ज़ॅमिनेशन सेंटर पर पहुँचे.. गौरी का ध्यान उतरते ही संजय की पॅंट के उभार पर गया.. संजय की काली ट्राउज़र में से सफेद अंडरवेर चमक रहा था.. उसकी ज़िप खुली थी...
गौरी का बुरा हाल हो गया.. वह भागती हुई सी बाथरूम में गयी.. अपने रुमाल से पसीना पोछा और सलवार खोल कर रुमाल उसकी पनटी और चिकनी टपक रही चूत के बीच फँसा लिया.. ताकि सलवार भीगने से बच जाए..
जैसे ही वह बाहर आई निशा ने पैनी निगाहों से देखते हुए पूछा," क्या हो गया था; गौरी?"
"कुछ नही.. वो.. पेशाब...!" गौरी ने अपनी नज़रें झुका ली...
निशा को एक अंजान डर ने आ घेरा.. गौरी अब संजय में इंटेरेस्ट लेने लगी है.. संजय तो पहले दिन से ही उसका दीवाना था....," चल अपनी सीट पर चलते हैं.."
कुछ ही देर में पेपर शुरू हो गया.. दोनो सब कुछ भूल कर अपना पेपर करने में जुट गयी..
बाहर संजय का बुरा हाल था... गौरी के हाथों का कामुक स्पर्श अब भी उसके पाते पर चुभ रहा था.. उसकी शराफ़त जवाब देने लगी थी.. बाइक से उतरते ही उसकी पॅंट की और देखती गौरी उसकी नज़रों से हटाने का नाम नही ले रही थी.. वह अपना ध्यान हटाने के लिए इधर उधर घुमा पर उसके 'यार' का कदकपन जा ही नही रहा था... कैसे उसको अपने पीछे चिपका कर बैठाया जाए, सारा टाइम वो इसी उधेड़बुन में लगा रहा.....
कहते हैं जहाँ चाह वहाँ राह.. उसकी आँखें चमक उठी... अपना प्लान सोचकर.......
पेपर ख़तम होते ही निशा और गौरी दोनो बाहर आई..
संजय ने दोनो से मुखातिब होते हुए पूछा," कैसा पेपर हुआ?"
"बहुत अच्छा" निशा ने गौरी को ना बोलता देख बात कुछ और बढ़ा दी," दोनो का...!"
संजय ने गौरी को देखते हुए बाइक स्टार्ट की और बैठने का इशारा किया.. निशा लपक कर बीच में आ बैठी.. गौरी उसके पीछे बैठ गयी... चिपक कर!"
वो लोहरू रोड पर मुड़े ही थे की अचानक संजय ने बाइक रोक दी..," हवा कुछ कम लग रही है.. देखूं तो!"
संजय ने पिछले टाइयर की हवा आधी निकल दी थी.. तीनों बैठने पर टाइयर पिचक सा गया था...," ओहो! पंक्चर हो गया लगता है.. अब क्या करें..?"
निशा ने झुक कर टाइयर को देखा और बोली," पंक्चर लगवा लाओ; और क्या करोगे!"
"नही लग सकता ना! तभी तो परेशान हूँ..." संजय ने प्लान तैयार कर रखा था.
"क्यूँ?" निशा हैरानी से बोली...
"यहाँ किसी ऑटोपार्ट्स वाले को पोलीस ने कल बेवजह पीट दिया.. इसीलिए सभी हड़ताल पर गये हैं.. कोई भी नही मिलेगा.. अब तीन तो बैठ नही सकते.. देर मत करो.. चलो पहले गौरी को छोड़ आता हूँ.. फिर तुम्हे ले जवँगा.." संजय को लग रहा था ये तरीका काम करेगा..," हो सका तो गाँव से पंक्चर भी लगवाता आउन्गा.."
निशा उसके बिछाए जाल में फँस गयी.. उसने आव देखा ना ताव.. झट से बिके पर बैठ गयी," पहले मुझे छोड़ कर आओ" पागल ने ये नही सोचा की कोई पहले जाए या बाद में.. पर गौरी अकेली तो होगी ना उसके साथ...
"ठीक है, गौरी! मैं यूँ गया और यूँ आया.." कहकर संजय ने बाइक स्टार्ट कर दी...
तभी निशा को ध्यान आया; वो भी कितनी मूर्ख है..," संजय! तुम जान बूझ कर तो ऐसा नही कर रहे... वो जीप में भी तो आ सकती थी.."
"पागल मत बनो, निशा! क्या सोचती वो" संजय ने सपास्टीकरण दिया..
"नही! मुझे लग रहा है तुम उसके साथ अकेले आना चाहते हो.."
"ऐसा कुछ नही है निशा.. बेकार की बहस मत करो.." और संजय ने बाइक की स्पीड बढ़ा दी...
निशा ने अपना हाथ आगे लेजाकार उसके लंड को पकड़ कर भींच दिया.....
वापस आते हुए संजय ने बाइक मैं हवा भरवा ली.. वह अकेला था और उसका दिल और लंड दोनो ही गौरी को सोच सोच कर उछाल रहे थे.....
गौरी के पास पहुँच कर उसने स्टाइल से बाइक मोडी और एकद्ूम ब्रेक लगाकर गौरी के पास रोक दी," बैठो!"
गौरी मन ही मन बहुत खुश थी पर बाहर से वो शरमाई हुई लग रही थी...
वह एक ही तरफ दोनो पैर करके बैठ गयी...
"ये क्या है गौरी! आजकल की लड़किया.. दोनो और पैर करके बैठती हैं.. ये पुराना फॅशन हो गया है.. और तुम तो वैसे भी शहर से हो....
'अँधा क्या चाहे दो आँखें' गौरी झट से उतरी और अपनी एक टाँग उठाकर बाइक के उपर से घुमा कर बाइक के बीचों बीच बैठ गयी.. लेकिन संजय से दूरी बना कर..........
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