अब तीनो बस-स्टॅंड के बाहर किसी टॅक्सी की तलाश में खड़े थे.. भिवानी जैसे शहर में यूँ सड़कों पर टेकसियाँ नही मिलती थी.. पर उनपर किस्मत कुच्छ ज़्यादा ही मेहरबान थी... अचानक उनके हाथ देने पर एक लंबी सी गाड़ी आकर उनके पास रुकी. 'टॅक्सी ड्राइवर' ने शीशा नीचे किया," हां?"
"हिस्सर चलोगे क्या? हम तीन सवारी हैं.. क्या लोगे...?" सवालों की बौच्हर सी निशा की तरफ से हुई थी जिसे "ड्राइवर" ने बीच में ही काट दिया...
"आपके साथ तो जहन्नुम में भी चलूँगा.. मॅम' शाब!.. इन्न दोनो को भी डाल लेंगे.. वैसे जो देना चाहो, दे सकती हो! बंदा अभी जवान है." कहते हुए उसने अपनी एक आँख दबा दी...
"ज़्यादा बकवास मत करो.. चलो आगे...!" कहकर राकेश ने आगे बढ़ने की सोची पर निशा तो जैसे उस 'लंबी टॅक्सी' पर फिदा हो गयी थी...," तुम सच में चलोगे?"
'ड्राइवर' ने अगली खिड़की खोल दी! निशा ने पलट कर दोनो की और देखा.. राकेश को लगा मौका आज भी हाथ से निकालने वाला है.. उसने पिच्छली खिड़की खोलने का इशारा 'ड्राइवर' को किया...
खिड़की खुलते ही दिनेश गाड़ी के अंदर जा बैठा... राकेश ने आगे बैठ रही निशा को लगभग ज़बरदस्ती करते हुए पिछे डाल दिया और खुद भी उसके बाईं और जा बैठा...
उसकी इश्स हरकत पर टॅक्सी ड्राइवर मुश्कुराए बिना ना रह सका.. उसके लिए समझना मुश्किल नही था की मामला कुच्छ गड़बड़
है...
जिस नवयुवक को वो तीनो टॅक्सी ड्राइवर समझने की भूल कर बैठे थे वो दर-असल हिसार में एक बड़ी कंपनी के मालिक का बेटा था.. राका! डील डौल में उन्न दोनो से अव्वाल तो था ही.. शकल सूरत भी लुभावनी थी.. निशा को वो ड्राइवर सच में ही प्यारा लगा होगा.. नही तो भला उसकी बातों का बुरा नही मानती क्या? वो तो आगे बैठने तक को तैयार हो गयी थी अगर राकेश उसे वापस ना खींचता तो.. खैर गाड़ी चल पड़ी थी....
मर्सिडीस को सड़क पर दौड़ते करीब 5 मिनिट हो चुके थे. दिनेश और राकेश निशा से चिपके बैठे थे. दिनेश से रहा ना गया और उसने अपना हाथ निशा की मांसल जाँघ पर हल्क से रख दिया. निशा इश्स हाथ की जाने कब से प्यासी थी. उसकी जांघों में अपने आप ही दूरी बन गयी...
"तो मॅम साब! कहाँ से आ रही हो आप?" राका को भी उसी समय बातों का सिलसिला शुरू करना था..
"लोहारू से!" निशा ने टाँगें अचानक वापस भीच ली...
"बड़े अजीब से लोग हैं वहाँ के.. एक बार जाना हुआ था.. खैर हिस्सार किसलिए जा रही हैं..?" राका ने दूसरा सवाल दागा.
"तुम चुपचाप गाड़ी चलाते रहो!" निशा के बोलने से पहले ही दिनेश ने खिज कर उसको कहा. वह चाहता था की हिस्सार तक पहुँचते पहुँचते निशा इतनी गरम हो जाए की कूछ कहे बिना ही उनके पिछे पिछे चल पड़े.. ये ड्राइवर अब उसको दूध में मक्खी लगने लगा था.....
"आपकी क्या प्राब्लम है भाई साहब.. शकल से इसके भाई तो कतई नही लगते...." राका मूड में लग रहा था.
"भाई होगा तू..... तेरी प्राब्लम क्या है.. चुपचाप गाड़ी चला ना...." दिनेश ने इतना ही बोला था की राकेश ने उसका कंधा दबा दिया....," कुच्छ नही भाई साहब.. इसके लिए मैं माफी माँगता हूँ.. वैसे ये अड्मिशन के लिए हिस्सार जा रही है..." राकेश वासू की तरह यहाँ कोई पंगा नही चाहता था.
"और तुम? ..... तुम किसलिए जा रहे हो.. लगता है तुम तो किसी स्कूल के पिच्छवाड़े से भी नही गुज़रे हो आज तक." राका ने टाइम पास जारी रखा....
"व्व..वो हुमको इसके मम्मी पापा ने साथ भेजा है.. हम इसके गाँव के हैं.." राकेश ने हड़बड़ाहट में जवाब दिया...
"यूँ बीच में बैठा कर... हूंम्म्मम" कह कर राका ज़ोर से हंस पड़ा...
निशा राका की इश्स बात पर बुरी तरह शर्मिंदा हो गयी. उसने दिनेश का हाथ अपनी जांघों से हटा दिया..
"तुम्हे इश्स'से क्या मतलब है... तुम्हे तो अपने किराए से मतलब होना चाहिए.." दिनेश बौखला गया था...
"सही कहते हो.. मुझे तो किराए से मतलब होना चाहिए... तो मिस...? ... दे रही हैं ना आप......... कीराआया!"
"निशा राका की इश्स द्वियार्थी बात का मतलब भाँप कर बुरी झेंप सी गयी... उसके गोल दूध जैसे गोरे चेहरे पर लाली सी झलकने लगी... पर वो बोली कुच्छ नही.
दिनेश ने एक बार फिर निशा को छ्छूने की कोशिश की पर उसने हाथ को एक तरफ झटक दिया. दिनेश तमतमा उठा.
गाड़ी हिस्सार के करीब ही थी... राका ने स्पीड कम करते हुए निशा से मुखातिब होकर कहा," अगर आपको ऐतराज ना हो.. मिस?... तो मुझे यहाँ 5 मिनिट का काम है.... इंतज़ार कर लेंगी क्या?"
"तुम हमें यहीं उतार दो... हम कोई और गाड़ी कर लेंगे..." दिनेश उस ड्राइवर से जल्द से जल्द पिछा छुड़ाना चाहता था...
"क्या कहती हो..?" राका ने दिनेश की बात को अनसुना करते हुए फिर निशा को टोका..
निशा ने एक बार गर्दन घुमा कर दोनो का इनकार वाला चेहरा देखा और नज़रअंदाज करते हुए राका से बोली," ठीक है.. हम इंतज़ार कर सकते हैं.. तुम अपना काम कर लो.." जाने क्यूँ निशा ने उसकी बात मान ली... राकेश और दिनेश को लगा.. इश्स बार भी वो हाथ मलते ना रह जायें.. पर मरते क्या ना करते.. चुप चाप मुँह बनाकर बैठे रहे.
"गुड!" कहते हुए राका ने गाड़ी बाई और घुमा दी
एक बड़ी सी फॅक्टरी के बाहर गाड़ी रुकते ही गेट्कीपर ने दरवाजा पूरा खोल दिया पर गाड़ी रुकी देखकर लगभग भागता हुआ पिच्छली सीट की तरफ दौड़ा.. लेकिन राका को ड्राइविंग सीट से उतरते देख अदद सल्यूट ठोंक कर कहा," क्या बात है साहब? ड्राइवर कहाँ गया?"
राका बिना कोई जवाब दिए तेज़ी से अंदर बढ़ गया...
माजरा तीनों की समझ में आ गया था.. अपनी ग़लती पर वो बुरी तरह शर्मिंदा थे...
"मुझे लगता है हमें यहाँ नही रुकना चाहिए.. इतने बड़े आदमी को ड्राइवर समझ लिया..." निशा से गाड़ी में बैठा ना रहा गया और वो गाड़ी से उतार कर रोड की तरफ चल दी....
"अरे मेम'शाब कहाँ जा रही हैं..."
"कुच्छ नही.. बस यहीं तक आना था" कहकर निशा ने अपनी चल तेज़ कर दी... ये देख राकेश और दिनेश की तो बान्छे खिल गयी.. दोनो उसके पिछे तेज़ी से बढ़ गये... चलते चलते निशा ने बोर्ड पर लिखा एक मोबाइल नंबर. रट लिया... ताकि कम से कम सॉरी तो बोल सके........
बाकी का 5 मिनिट का रास्ता उन्होने 'ऑटो' से तय किया.... हिस्सार उतरने के बाद समस्या ये थी की कहाँ चला जाए..
"तुम दोनो प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो... मैं अब अपनी सहेली के घर जाउन्गि.."
"ये क्या कह रही हो.... ऐसा मज़ाक तो आज तक किसी ने भी नही किया... प्लीज़ एक घंटे के लिए ही हमारे साथ चलो!" दिनेश ठगा सा रह गया था...
"पर मेरा मूड बिल्कुल खराब है..... फिर कभी......" निशा को उनसे पिंड छुड़ाना मुश्किल हो रहा था...
"प्लीज़.. सिर्फ़ एक बार हमारे साथ चलो... हम कुच्छ नही करेंगे... बस हमें करीब से देखने देना....." कहते हुए राकेश गिड़गिदा रहा था...
निशा को उनकी दया भी आ रही थी और अपने बदन की भी...," प्रोमिसे?"
"100 बटा 100 प्रोमिसे यार... तुम चल कर तो देखो एक बार.. " राकेश ने दिनेश की तरफ हौले से आँख मारी....
"ठीक है.. पर जाएँगे कहाँ...?"
"होटेल में चलेंगे रानी... इश्स सहर के सबसे बड़े होटेल में...."
"तीनो... एक साथ?"
"उसकी तुम परवाह मत करो.. मेरे पास प्लान है..." राकेश और दिनेश निशा को राज़ी होते देख मॅन ही मॅन गदगद हो उठे...
"ठीक है.. पर आधे घंटे से ज़्यादा नही रुकूंगी.."
"ये हुई ना बात" दिनेश ने कहा और एक ऑटो वाले को रोक कर विक्रांत होटेल चलने को कहा......
होटेल के पास पहुँच कर तीनो कुच्छ पल के लिए रुके...," दिनेश तुम बाद में आकर अलग कमरा बुक कर लेना.. मैं तुम्हे फोने करके हमारा रूम नंबर. बता दूँगा.... ठीक है ना भाई" दिनेश ने पहली बार राकेश के मुँह से भाई शब्द सुना था... ना चाहते हुए भी उसको हामी भरनी पड़ी....
अगली 10 मिनिट में राकेश और निशा होटेल के डेलक्स रूम में था... अब राकेश को दिनेश का इंतज़ार व्यर्थ लग रहा था.. उसने अपना फोन स्विच्ड ऑफ कर दिया.....
गर्ल्स स्कूल--27
"चलो.. जल्दी से कपड़े निकालो!" राकेश अब तक अपनी शर्ट निकाल चुका था और पॅंट खोलने की तैयारी में था....
"दिनेश को तो आ जाने दो... बार बार....." निशा ने बेड पर बैठते हुए कहा...
"साले की मा की चूत... पैसे में लगाउ.. और मज़े वो लूटे.. जल्दी करो मेरी जान.. मैने फोन ऑफ कर दिया है.. अब वो भूट्नी का बाहर ही इंतज़ार करेगा.. उसको देनी हो तो गाँव में दे देना... चल जल्दी दिखा अपना माल!" राकेश ने अपनी पॅंट निकाल दी थी.. उसका लंड कच्च्चे को फाड़ने को बेताब था!
निशा राकेश की गाली गलोच सुनकर हक्की बक्की रह गयी," तुम ऐसे क्यूँ बोल रहे हो.. उस बेचारे को भी बुला लो ना" दरअसल निशा ने आज तक दिनेश के जितना मोटा लंड देखा नही था.. और वो उसको करीब से देखना चाहती थी...
"बेचारे की बेहन चोदुन्गा आज.. चल अब निकाल भी दे.. क्यूँ टाइम वेस्ट कर रही है..."
"नही.. उसके आने से पहले मैं कपड़े नही निकालूंगी.." डरी सहमी सी निशा ने हूल्का सा विरोध दिखाने की चेस्टा की.....
"अब ये तेरे बाप का घर नही है साली... तुझे पता नही कितना इंतज़ार किया है तेरा... अब जल्दी से कपड़े निकाल कर कुतिया बन जा.. नही तो खींच कर निकाल दूँगा.. आए हाए.. मुझे तो यकीन ही नही था.. तेरी चूत मारने को मिल जाएगी..." राकेश ने अपना लंड अंडरवेर से बाहर निकाल कर लहराया...
" पर तुमने तो सिर्फ़ देखने की बात की थी.. ज़बरदस्ती करोगे तो मैं शोर मचा दूँगी..." निशा बुरी तरह काँप उठी...
"शोर मचाएगी साली बहनचोड़... चल मचा शोर.. सारा होटेल पहले तुझे चोदेगा और फिर पूछेगा.. यहाँ क्या अपनी मा चुदवाने आई थी..." कहते हुए राकेश ने निशा के पास जाकर एक हाथ उसकी कमर के पिछे लगाया और दूसरी हाथ से उसकी चूची को बड़ी मुश्किल से अपने हाथ में पकड़ कर मसल दिया..," क्या मस्त चूचियाँ हैं तेरी... सारी रात इनका रस पियुंगा जाने मॅन.."
"रूको! मैं निकालती हूँ... पर प्लीज़ आधे घंटे में मुझे यहाँ से जाने देना..." निशा की आँखों में आँसू आ गये थे.. जवानी के जोश में वो ये क्या कर बैठी थी...
"2000 रुपए मैने तेरी नंगी मूर्ति देखने के लिए खर्च नही किए.. तेरी चूत का मुरब्बा निकालना है सारी रात.. तुझे कपड़ों में देखकर ही जाने कितनी बार अपना लंड ठंडा किया है मैने.. आज तो जी भर कर चोदुन्गा तुझे मेरी रानी.." कहते हुए राकेश ने स्कर्ट के अंदर हाथ डाल कर उसकी जांघों तक पहुँचा दिया.. निशा को झुरजुरी सी आई और उसने आनमने मंन से अपनी योनि को जांघें भींच कर च्छूपा लिया...
"खोल रही है की फाड़ डालूं तेरे कपड़ों को.. देख प्यार से मान जा वरना....."
निशा समझ गयी थी.. ऐसे या वैसे आज तो राकेश से मरवा कर ही पीचछा छूटेगा.. फिर अब तक वो पिच्छली बातों को भूल कर अपने रंग में आना शुरू हो गयी तही....," एक मिनिट रूको तो सही.. निकालती हूँ ना..."
"ना.. अब निकालूँगा मैं.. तू तो मेरे लौदे से खेल" कह कर राकेश ने अपना लंड निशा के हाथ में पकड़ा दिया...
हालाँकि राकेश का हथियार दिनेश वाले के सामने कहीं नही ठहरता था पर जो दो आज तक उसने चखे थे, उनसे तो बड़ा ही था... निशा ने लंड को अपनी मुट्ही में भींचने की कोशिश की पर वो पूरा नही समा पाया.. निशा जाने क्या सोचते हुए राकेश के लंड के सुपादे को निहारने लगी...
"सोच क्या रही है मेरी जान... अपने होंठों से चखकर देख इसको.... आइस्क्रीम की तरह चूस और केले की तरह खा.. बड़ा मज़ा आएगा." कहते हुए राकेश ने एक पल को उसके हाथ उपर कराए और कमीज़ खींच कर निकाल दिया..
समीज़ के अंदर से नज़र आ रही चूचियों का आकर और उनके बीच का कटाव इतना मनमोहक था की कुच्छ पल के लिए राकेश उनको अपलक निहारता रहा.. दूध जैसा सफेद रंग और कसे हुए ढाँचे में ढले सेब के आकर की तनी तनी चुचियाँ किसी को भी पागल बना'ने के लिए काफ़ी थी.. चुचियों पर गुलाबी दाने समीज़ के अंदर से ही अपनी हुल्की झलक दिखाकर राकेश को अपने होश खोने पर मजबूर कर रहे थे," तू तो इंपोर्टेड आइटम लगती है रे!" राकेश ने समीज़ के अंदर हाथ डाल कर निशा की छ्चातियों की गर्मी और कसाव मापते हुए सिसकारी सी लेकर कहा.. निशा ने फिर से उसके तने हुए लंड को अपनी मुट्ही में लेने की कोशिश शुरू कर दी..
"एक मिनिट शांति तो कर ले रंडी..." और राकेश ने उसका समीज़ भी निकाल कर हवा में उच्छल दिया...
समीज़ की क़ैद से आज़ाद होते ही निशा का यौवन इतरा उठा... दोनो चुचियाँ पेंडुलम की तरह हिल हिल कर अपनी मस्ती का प्रदर्शन करने लगी.. राकेश ने झट से निशा को धक्का देकर बेड पर लिटा दिया.. लेकिन उनकी उँचाई पहले की तरह यथावत रही.. हां छेड़ छाड़ से दानो की उँचाई और मोटाई ज़रूर बढ़ गयी और वो पहले से भी ज़्यादा गुलाबी हो उठे.....
राकेश ने निशा के निप्पल्स को अपनी उंगलियों में पकड़ा और धीरे धीरे मसल्ने लगा.. निशा की आँखें बंद हो गयी और वो सिसकारी भरने लगी.. उसके हाथ एक बार फिर बिना इजाज़त लिए राकेश के लंड तक जा पहुँचे...
"खेली खाई लगती है साली... तुझमें तो ज़रा भी शरम नही है.... ये ले..." राकेश उसकी छाती पर चढ़ बैठा और अपना तननाया हुआ लंड उसके गुलाबी होंठों पर रख दिया.. निशा तो मदहोश थी ही.. अपने होंठो को खोलकर उसने तीसरे मर्द के लंड पर अपनी जीभ फिराई... थोड़ी तडी ज़बरदस्ती नॉर्मल सेक्स से कहीं ज़्यादा मज़ा देती है...
शुपाडे पर जीभ लगते ही राकेश सीत्कार उठा... इतनी सुंदर लड़की उसके लंड को चूसेगी... राकेश पागल सा हो गया और एक झटके के साथ आधा लंड निशा के हुलक में उतार दिया...
निशा इसके लिए तैयार नही थी.. वह गला रुकने की वजह से अचानक बेचैन सी हो गयी और अपने हाथ हिलाकर रहम की भीख माँगी.. शुक्रा है राकेश ने लंड वापस खींच लिया...
"मेरी जान निकल जाती.. गले में फँस गया था"
"ऐसी जान नही निकलती रानी... अँग्रेज़ी फिल्मों में देखा नही क्या.. तुमने तो आधा ही अंदर लिया है.. वो तो पूरा का पूरा गले में उतार लेती हैं.." कहकर राकेश उसकी छाती से नीचे उतर गया और दोनो हाथों में उसकी चूचियाँ पकड़ कर अपनी जीभ से बारी बारी चाटने लगा...
आनंद में पागल सी हो चुकी निशा बिस्तेर की चादर को अपने हाथो में पकड़ कर खींचने लगी........ कमरा मादक सिसकारियों से भर उठा....
उधर एक घंटा बीत चूकने पर भी राकेश का फोन ना आने पर दिनेश गुस्से से लाल हो उठा... "साला दगाबाज.. फोन ऑफ कर दिया... अब क्या करूँ.. मैं तो उस'से पैसे लेने भी भूल गया की रूम लेकर खुद ही ढूँढ लेता सालों को..." सोचते हुए गुस्से में तमतमा रहे दिनेश ने बदला लेने की नीयत से 100 नो. डाइयल कर दिया और पोलीस को होटेल में चल रही मस्ती की सूचना दे दी.......
गुलाबी रंगत में रंगते जा रहे निशा की चुचियों के निप्पल्स मादक करारी मस्ती से सराबोरे होते जा रहे थे.. अब सहन करना ना इसके वश में था ना उसमें.. राकेश ने एक निप्पल को अपने दाँतों के बीच दबाया जैसे काट ही डाला...
"ऊऊऊईीईई मुंम्म्ममय्ययी!" दर्द निशा के लिए असहनीया था....
No comments:
Post a Comment