Thursday, 18 September 2014

masti ki pathsala - 30

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग30
 और वासू ने पुर 10 मिनट बाद ही दरवाजा खोला..," कहिए श्रीमान... देखिए मैं बार बार हाथ जोड़ कर विनती कर चुका हूँ की मैं मार जवँगा पर नारी जाती को टशन हरगिज़ नही पढ़ौँगा... जाने ये सरकार किस बात का बदला वासू शास्त्री से ले रही है की मुझे यहाँ नारियों के विद्यालया में पढ़ाने भेज दिया.. मैने उनको कितना समझाया की नारी नरक का द्वार है.. क्यूँ मुझे धकेल रहे हो.. पर माने ही नही.. कहने लगे की आप जैसे मास्टर की ही तो लड़कियों को ज़रूरत है... चलो सरकार के आगे तो मैं क्या करूँ.. पर टशन पढ़ाना ना पढ़ाना तो मेरे हाथ में है ना.. सो मैने कह दिया.. नो टूवुशन फॉर गर्ल्स... और शाम को केबल टीवी पर अड्वरटाइज़ भी पढ़ लेना.. वासू शास्त्री नारी को नरक का द्वार मानता.. है.. ओक!"
कहते ही वासू ने दरवाजा बंद करने की कोशिश की.. शमशेर ने अपना हाथ दरवाजे पर लगा कर बोला," शास्त्री जी..हमारी भी तो सुनिए ज़रा.... ये इस घर की बेटी है.. और मैं यहाँ का दामाद..."

वासू की उमर कोई 25 साल .. चेहरे से दुनिया भर की शराफ़त यूँ टपक रही थी मानो बहुत ही ज़्यादा हो गयी हो. उसके कंधे को छू रहे घने बालों से उसकी चोटी 2 कदम आगे ही थी... आँखों पर लगे .5 के गोले चस्में उसकी शराफ़त में इज़ाफा ही कर रहे थे.. स्वेत कुर्ता पयज़ामा पहने शास्त्री जी कुछ विचलित से दिखाई दिए; शमशेर की बात सुनकर..," ये बात कतई विस्वास के लायक नही है की ये देवी आपकी बीवी...."
"ये मेरी साली है बंधु!" शमशेर ने उसी के लहजे में उसकी शंका का समाधान कर दिया..
"तब ठीक है श्रीमान.. पर कुछ तुछ व्यक्ति साली को.. आधी.... समझ रहे होंगे आप मेरी व्यथा को... मैं आज के युग में पैदा होने पर शर्मिंदा हूँ.. शुक्रा है गाँधी जी आज जीवित नही हैं.. नही तो..."
"छोड़िए ना शास्त्री जी.. अंदर आने को नही कहेंगे..!" शमशेर उसकी बातों से पाक सा गया था...
"देखो मित्रा... मुझे ना तो आपको यहाँ से भगाने का हक़ है.. और ना ही अंदर आने की इजाज़त देने का अधिकार.. मैं तो अंजलि जी की कृपा से यहाँ मुफ़्त में ही रह रहा हूँ.." वासू ने नाक पर चस्मा उपर चढ़ते हुए उनको अंदर आने का रास्ता दे दिया...
शमशेर ने अंदर आते ही उसकी टेबल पर दीवार से लगाकर रखी हुई हनुमान जी की मूर्ति देखी.. वासू पूरा ब्रहंचारी मालूम होता था..."क्या पढ़ाते हैं आप.?"
"गणित पढ़ाता हून श्रीमान.. वैसे मुझे याज्याविद्या भी आती है.. मैं शुरू से ही गुरुकुल में पढ़ा हूँ.."
"ओहो... तो ये बात है.." शमशेर ने वाणी का हाथ दबा कर उसको ना हँसने का इशारा किया.. वाणी अपनी हँसी नही रोक पा रही थी..
तभी दिशा चाय लेकर उपर आ गयी," गुड आफ्टरनून सर!" दिशा ने वासू को विश किया..
"प्रणाम!.. तो श्रीमान ये आपकी दूसरी साली है.." वासू ने दोनो एक जैसी जानकार सवाल किया..
"जी नही शास्त्री जी.. ये मेरी बीवी है.. और मुझे शमशेर कहते हैं.. श्रीमान नही.."

शायद दिशा को देख कर एक बार को वासू का ईमान भी डोल गया था.... पर उसको तुरंत ही अपनी ग़लती के लिए हनुमान जी की और हाथ जोड़ कर माफी माँगी...
"चाय लीजिए ना शास्त्री जी.." शमशेर ने कप वासू की और बढ़ा दिया..
"क्षमा करना शमशेर बंधु! मैं बाहर का कुछ नही ख़ाता.. और अगर आपको ना पता हो तो चीनी को सॉफ करने के लिए हड्डियों का प्रयोग किया जाता है.. अगर आप भी मेरी तरह शाकाहारी हैं तो कृपया आज से ही चीनी का प्रयोग बंद कर दें.." वासू ने एक बर्तन से गुड निकल कर शमशेर को दिखाया..," इसका प्रयोग कीजिए.. शुद्ध शाकाहार..! कहकर एक पतीले में ज़रा सा पानी डाल कर गुड उसमें डाल दिया और अपनी चाय गॅस पर बन'ने के लिए चढ़ा दी..
"अच्छा शास्त्री जी! फिर मिलते हैं.. अभी तो मुझे वापस जाना है.. और हन.. यहाँ की कन्याओं से बचके रहना.. सभी नों-वेग हैं.."

"मित्रा! मेरे साथ मेरे हनुमान जी हैं.. लड़कियाँ मेरे पास आते ही भस्म हो जाएँगी.. आप चिंता ना करें... आप कभी वापस आईएगा तो मुझसे ज़रूर मिलीएगा!"
"अच्छा अभी चलता हूँ.." कहकर शमशेर वाणी के साथ बाहर निकल गया..," ये क्या चाकर था.." वाणी ने शमशेर से पूछा.."
"बहुत ही नएक्दील इंसान है... बेचारा!" शमशेर ने वाणी की और देखते हुए कहा...
करीब आधे घंटे बाद शमशेर ने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और सबको बाइ कहा.. दिशा उसको बहुत ही कातिल नज़रों से देख रही थी.. जैसे ही शमशेर मुश्कुराया.. दिशा ने उसकी और आँख मार दी..

शमशेर को अब 1 महीना गुजारना था.. अपनी दिशा के बगैर.

संजय के साथ अंशुल को देख कर निशा ख़ुसी से उछाल पड़ी," अंशु तुउउउ!" वह अपने कमरे से भाग कर उसके पास आई..," तू तो कह रहा था.. तू अभी नही आ सकता.. मुंम्म्मिईीईई... अंशु आया है..!"
अंशुल निशा की मौसी का लड़का था.. करीब 3 साल बाद वो अंशुल से मिल रही थी.. निशा के मौसजी की नौकरी वेस्ट बेंगल में थी.. अंशुल भी वहीं रहकर पढ़ रहा था.... अब 9त के एग्ज़ॅम देकर वो अपनी मम्मी के साथ मामा के यहाँ आया हुआ था और वहीं से संजय के साथ आ गया था..
"बस आ गया दीदी.. हम तो कल वापस जाने वाले थे.. पर अब अगले हफ्ते तक यहीं हैं.. सोचा आप सबसे मिलता चलूं..." अंशुल की आवाज़ मोटी हो गयी थी.. तीन साल में..
"अरे.. तेरी तो मूँछे भी निकल आई हैं.." निशा की ये बात सुनकर अंशुल झेंप गया और अपने मुँह पर हाथ रख लिया....
"तो क्या.. मर्द को मूँछे तो आएँगी ही.. देख नही रही, तुझसे भी कितना लंबा हो गया है.. और तगड़ा भी हो गया है मेरा बेटा!" निशा की मम्मी ने अंशुल का सिर पूचकार्टे हुए कहा...
मम्मी के मुँह से 'मर्द' शब्द सुनते ही निशा की नज़र सीधी अंशुल की पंत पर गयी.. मान ही मान सोचा.. अरे हां.. ये तो पूरा मर्द हो गया है... निशा के शरीर में कुछ सोच कर सिहरन सी दौड़ गयी.. ुआकी छातियों ने अंदर ही अंदर अंगड़ाई सी ली... उसकी शानदार गांद में कंपन सा हुआ.. अंशुल मर्द हो गया है...!
निशा की अंशुल से बचपन से ही बहुत छनती थी.. वो अपनी बेहन से ज़्यादा निशा से प्यार करता था.. घर वेल भी इश्स बात को जानते थे... पर करीब 3 साल से वो एक दूसरे के संपर्क में नही आए थे.. इस दौरान निशा गद्रा कर लड़की से युवती बन गयी थी और अंशुल लड़के से मर्द!
निशा रात को राहुल के साथ प्रोग्राम को भूल कर एक नया ही प्लान सोचने लगी.....

खाना खाने के बाद अंशुल संजय के कमरे में चला गया.. जाना तो वा अपनी दीदी के पास ही चाहता था.. पर जाने क्यूँ उसको शरम सी आ रही थी.. जिस निशा से वो 3 साल पहले इतना स्नेह करता था.. आज वो अपने स्नेह का खुलकर इज़हार करने से भी संकोच कर रहा था.. तीन साल पहले तो निशा और उसमें कोई फ़र्क ही नही था.. दोनो बच्चे थे.. हन तब भी निशा की छाती पर दो नींबू ज़रूर थे.. पर इससे अंशुल और उसकी मस्तियों में कोई व्यवधान उत्तपन्न नही हुआ था.. क्यूंकी अंशुल को पता ही नाहो था की वो नींबू उगते क्यूँ हैं लड़कियों को.. पर अब की बात अलग है.. अब तो वो नींबू पाक कर मौसम्मि बन गये थे.. और अब अंशुल को पता भी था.. बेहन की मौसम्मियों पर लार नही टपकाते... उनकी और देखना भी ग़लत बात होती है.. और इसीलिए वो उस'से नज़र मिलने में भी संकोच कर रहा था....
पर निशा तो अपने मन में कुछ पका ही चुकी थी.. वा संजय के कमरे में गयी... अंशुल के पास.. संजय का मूड उखड़ा हुआ था.. दर-असल वा गौरी की याद में डूबा हुआ था...
"भैया! कुछ खेलें.. अंशुल भी आया हुआ है.." निशा ने संजय की जाँघ पर हुल्की सी चुटकी काट'ते हुए बोला...
"नही.. मेरे सिर में दर्द है.. तुम दोनो ही खेल लो.." संजय की समझ में ना आया.. निशा कौँसे खेल की बात कर रही है....
"चेस खेलें अंशुल!" निशा ने चहकते हुए अंशुल से पूछा..
"हन दीदी.. चलो खेलें.." अंशुल खुलकर बात नही कर पा रहा था.. मौसम्मियों वाली दीदी से.. रह रह कर उसका ध्यान वहाँ अटक जाता था..
"संजय! कहाँ है चेस बॉक्स?" निशा ने अपनी आँखों पर कोहनी रखे संजय से पूछा...
"शायद तुम्हारे कमरे में ही है.. और प्लीज़ सोने से पहले मेरे रूम की लाइट ऑफ कर देना...."
"ठीक है... तो हम वहीं खेल लेते हैं.. चलो अंशु!" कहते हुए निशा ने उसको चलने का इशारा किया...
निशा ने संजय के कमरे की लाइट ऑफ कर दी और दोनो निशा के कमरे की और चल दिए...
करीब करीब 9:30 बाज चुके थे, रात के!



"अंशु, तुम चेस लगाओ! मैं अभी आई." निशा ने चेस बॉक्स अंशुल को देते हुए कहा और बाथरूम में घुस गयी.
निशा ने अपनी ब्रा निकल कर कमीज़ वापस पहन लिया.. कमीज़ का गला काफ़ी खुला था और निशा उसे सिर्फ़ रात को ही पहनती थी...
"दीदी! इस घोड़े को कैसे चलते हैं..?" अंशुल ने निशा के बाहर आते ही पूछा..," मैं भूल सा गया हूँ!"
"अभी बताती हूँ.." निशा बेड पर उसके सामने आकर बैठ गयी..
निशा की चूचियों के दानों को किसी कील की भाँति उसके कमीज़ में से बाहर की और निकालने की कोशिश करते देख अंशु के सिर से लेकर गांद तक ज़ोर की लहर 'सरराटे' के साथ गुजर गयी.. दोनो कील सीधे अंशु की आँखों में चुभ रही थी.. फिर भी वह अपने आपको उनकी तरफ बार बार देखने से रोक नही पा रहा था..
निशा अंशु की गरम हो रही ख्वाइशों को ताड़ गयी..," घोड़ा टेढ़ा चलता है.. मैं तुझे सब सीखा दूँगी.. ये मैने अपना प्यादा आगे बढ़ाया.. तुम्हारी बारी.." निशा ने अपनी टाँग फैला कर पालती मारे बैठे अंशुल के घुटने से सटा दी... निशा ने पारेलेल सलवार पहन रखी थी.. टाँग फैलने से उसकी जांघों के बीच की मछली उभर कर दिखने लगी..
अंशुल ने ऐसा नज़ारा आज तक कभी देखा नही था.. जहाँ निशा की टाँग ख़तम हो रही थी, वहीं से वो फूली सी.. मादक पंखों वाली तितली का राज शुरू होता था.. अंशु के माथे पर पसीने की बूँद उभर आई.. उसने अपना हाथी उठाकर प्यादे के उपर से ही 3 खाने आगे सरका दिया..
"ये क्या कर रहा है बुद्धू.. घोड़े के अलावा कुछ भी तुम्हारे प्यादों को पार नही कर सकता..." निशा ने हाथी वापस उसकी जगह पर रख दिया...
"मुझे नही खेलना दीदी.. चलो कुछ और खेलते हैं.." सच तो ये था की उसकी जांघों के बीच उसका लंड इतनी बुरी तरह फेडक रहा था की उसको 'खिलाए' बिना दिमाग़ कही और लग ही नही सकता था..
"क्या खेलें?" निशा ने आगे झुकते हुए अपनी कोहनियाँ बेड पर टीका कर अपने चूतदों को उपर उठा लिया.. और अंशुल की साँसें उखाड़ गयी.. निशा के आम बड़े ही मादक तरीके से झूलते दिख रहे थे.. निशा की साँसों के साथ उसकी चूचियों के बीच की दूरी कम ज़्यादा हो रही थी.. और अंशु की धड़कन उपर
नीचे..
अंशुल बेड से उतार कर घूमा और अपने फनफना रहे लंड को नीचे दबाने की कोशिश की पर नाकाम रहने पर वो बाथरूम में घुस गया...
निशा अंशु के हाथ के हिलने के तरीके से समझ गयी.. की उसका जादू चल गया है...

क्या कर रहे हो अंशु? जल्दी आओ..."
निशा की आवाज़ सुनकर अचानक अंशु कल्पना के आकाश से धरती पर गिरा.. निशा की ब्रा से उसकी खुश्बू सूँघता हुआ वा अपनी मुट्ठी को निशा की चूत समझ कर चोद रहा था.. जल्दी जल्दी...! कुछ पल के लिए रुक कर वह फिर शुरू हो गया," आआय्ाआ.. दिददडी!" लंड से पैदा हुए जोरदार झटके की वजह से उसकी ज़ुबान लड़खड़ा गयी.. अंशु दीवार से सटकार हाँफने लगा..
अंशु ने जल्दी से पसीने से तर अपना चेहरा और वीरया से सन गए अपने हाथ और लंड को धोया और बाहर निकल आया....
"क्या कर रहे थे अंशु..?" निशा ने उसको छेड़ कर उकसाने की कोशिश करी..
"कुछ नही दीदी.. वो... फ्रेश होकर आया हूँ.. अब मैं सोने जा रहा हूँ दीदी.. मुझे नींद आ रही है...." अंशुल दरवाजे की और बढ़ा तो निशा को अपने अरमानो का खून होता हुआ सा लगा...," नही अंशु.. अभी मत जाओ... प्लीज़!"
"क्यूँ दीदी.. और कुछ खेलना है क्या..?"
निशा ने बात को संभाला," हां वो.. मेरा मतलब है की.. अभी तो हमें ढेर सारी बातें करनी हैं... तुम यही रुक जाओ ना.. थोड़ी देर और..."
"ठीक है दीदी.." कहकर अंशुल बेड पर लेट गया...
"अंशु तुम्हे याद है हम बचपन में कौन कौन से खेल खेलते थे..?" निशा ने उसके मुँह के पास मुँह लाकर उसकी बराबर में लेट-ते हुए अपना जादू फिर से शुरू किया... वो जान बूझ कर इस तरह से अंशु से थोड़ा नीचे होकर लेटी थी ताकि अंशु जी भरकर उसकी चूचियों का रस आँखों से पी सके..
और अंशुल कर भी यही रहा था.. उसका जी चाह रहा था की उस'से सिर्फ़ 6 इंच के फ़ासले पर स्थित इस खजाने को दोनो हाथों से लपक ले.. पर वो ऐसा कर नही सकता था.. क्यूंकी उसको अहसास नही था की निशा ने सिर्फ़ उसके लिए वो मस्तियाँ बंधन मुक्त की हैं.. सिर्फ़ उसके लिए!
"हन दीदी, याद है.. हम रेस लगते थे.. कारृूम खेलते थे और लूका छिपी भी खेलते थे.." अंशुल का दिल चाह रहा था की वा खुद को उसकी चूचियों में छिपा ले..
"तुम्हे याद है अंशु.. एक बार बाग में अमरूद के पेड से उतरते हुए तुम्हारी पॅंट फट गयी थी..और.." निशा उस'से नज़रें मिलाए बिना उसको 'काम' की बात पर ला रही थी...
"धात दीदी... आप भी.." अंशुल निशा के सीधे सीधे उसके नंगेपन पर हमले से बौखला गया.. निशा हँसने लगी..
"अच्छा अब तो बड़े शर्मा रहा है.. उस्स वक़्त तो नही शरमाया था तू!... तूने कच्चा नही पहना हुआ था ना.." निशा अंशुल से बोली...
"दीदी प्लीज़.." अंशुल ने अपना चेहरा अपने हातहों से धक लिया..," तब तो मैं कितना छोटा था...
निशा ने ज़बरदस्ती सी करके उसके हाथ चेहरे से हटा दिए... अंशुल की आँखें बंद थी..
"अच्छा.. अब तो जैसे बहुत बड़े मर्द बन गये हो.. है ना.." निशा उसके अपनी वासणपूर्ण बातों से भड़का रही थी.. पर अंशुल उस'से खुल नही पा रहा था..
हां.. निशा को अंशुल के चेहरे की मुस्कान देखकर ये तो यकीन था की उसको भी मज़ा आ रहा है.. इन्न बातों में...
"एक बात बताओगे अंशु?"
"क्या?"
"अंशु ने आँखें बंद किए किए ही जवाब दिया...
"तुम्हारे सबसे अच्छे दोस्त का क्या नाम है?"
"तारकेश्वर! वा पढ़ाई में बहुत तेज है..."
"और..?"
"और... सार्थक.."
"और..?"
"हिमांशु!"
"और?" निशा की आवाज़ गहराती जा रही थी..
"और क्या दीदी... ऐसे तो क्लास के सभी बच्चे दोस्त हैं...
"अच्छा.... कोई... लड़की भी...?" निशा ने रुक रुक कर अपनी बात पूछी...
"नही दीदी... लड़की भी कोई दोस्त होती है.." अंशुल ने छत को घूरते हुए कहा.. उसने आँखें खोल ली थी..
"क्यूँ.. लड़कियाँ क्यूँ दोस्त नही होती.. सच बताओ अंशु.. तुम्हे मेरी कसम..!"
"सच.. दीदी.. कोई नही है.. आपकी कसम!" अंशु ने उसकी छातियों में झँकते हुए उसके सिर पर हाथ रखा...
"क्यूँ नही है? क्या तुम्हे लड़कियाँ अच्छी नही लगती?"
"छोड़ो ना दीदी.. अंशुल ने शर्मकार मुँह दूसरी और कर लिया....
निशा थोडा सा उठकर उस'से जा सटी और उसके चेहरे को अपने हाथों से प्यार से सहलाते हुए बोली...," बताओ ना अंशु.. मुझसे कैसी शरम.. मैं तो तुम्हारी बहन हूँ.. बताओ ना.. क्या तुम्हे कोई लड़की पसंद नही..."
निशा की चूचियाँ अब अंशु की बाजू पर रखी थी..," ये बात दीदी से थोड़े ही की जा सकती हैं... मत पूछो दीदी प्लीज़..."
"दोस्त से तो की जाती हैं ना.. मुझे अपनी दोस्त ही मान लो....
"दीदी दोस्त कैसे हो सकती है दीदी?" अंशु को अब भी शक था.. पर मज़ा वो पूरा ले रहा था.. अपने हाथ पर रखी चूचियों का..
"क्यूँ नही हो सकती... बताओ ना.. तुम्हे लड़कियाँ अच्छी क्यूँ नही लगती?"
"लगती तो हैं दीदी.. पर बात करने से डर लगता है.." अंशुल ने अपनी व्यथा अपनी नयी दोस्त को बता दी...
"क्यूँ? डर क्यूँ लगता है..? लड़कियाँ कोई खा तो नही जाती.. मैं भी तो लड़की ही हूँ.. मैं खा रही हूँ क्या तुमको.." निशा ने बात कहते हुए अंशुल के पेट पर हाथ रख दिया.. और अपनी चूचियों का दबाव अंशु की छाती पर बढ़ा दिया..
अंशु को लगा जैसे वह लेटा नही है.. ऊड रहा है.. मस्ती की दुनिया में.. अपनी एकमत्रा दोस्त के साथ.. निशा के दाने उसकी छाती में चुभ कर मज़ा दे रहे थे...
"हां दीदी.. वो तो है.. पर.."
"पर क्या.. बोलो ना.." निशा उसको खुलते देख मचल उठी थी..
"तुम किसी को बताओगे तो नही ना दीदी.."
"मुझे दीदी नही..." निशा ने अंशुल के गालों को चूम लिया..," ...दोस्त कहो. और दोस्त कभी सीक्रेट्स लीक नही करते.. बताओ ना...!"
अंशुल ने फिर आँख बंद करके जवाब दिया," दीदी वो... "
"फिर दीदी.. अब मैं तुम्हारी दीदी नही दोस्त हूँ..."
"अच्छा..... दोस्त! वो मेरी क्लास में एक उर्वशी नाम की लड़की है... अंजाने में एक दिन मेरा हाथ उसके पीछे लग गया था.. उसने प्रिन्सिपल को शिकायत कर दी... तब से मुझे डर लगता है..." अंशुल ने अपना राज अपनी दोस्त को सुना दिया....
"हाए राम.. बहुत गंदी लड़क होगी... इतनी सी बात पर शिकायत कर दी... कहाँ पर लग गया था हाथ...!" निशा अब अंशुल को धीरे धीरे करके असली बात पर लाना चाहती थी....
"यहाँ पर.." अंशुल ने निशा के कुल्हों से उपर कमर पर हाथ लगाकर कहा... निशा को ये चुआन बड़ी मादक सी लगी...
"झूठ बोल रहे हो... यहाँ की शिकायत तो लड़की कर ही नही सकती... सच बताओ ना अंशु.. क्या तुम मुझे दोस्त नही मानते.." निशा अंशुल के कच्चे गुलाबी होंटो
पर अपनी उंगली घुमाने लगी.. अंशुल के लंड में खलबली मचने लगी थी...
"यहाँ पर दी...." अंशुल ने अपने ही चूतदों पर हाथ रखकर निशा को बताया.. वा शर्मा रहा था बुरी तरह..
"ऐसे मुझे कैसे पता लगेगा की उर्वशी को बुरा क्यूँ लगा.... मुझे लगाकर बताओ ना..." निशा ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया...
"नही दीदी.. मुझे शर्म आती है..!"
"देख लो तुम्हारी गर्लफ्रेंड तुमसे बात नही करेगी फिर.." निशा ने झूठ मूठ रूठने की आक्टिंग करी...
अंशुल के मान में तो लड्डू फुट ही रहे थे.. बाहर शर्म का एक परदा था जो धीरे धीरे फट रहा था.. उसने निशा की मादक गोल गांद की दरार के पास अपनी उंगली हल्क से रख दी..," यहाँ लगा था दी.. सॉरी दोस्त!"
"बस ऐसे ही लगा था क्या.. जैसे अभी तुमने मुझे लगाया है.. " निशा की आग भड़क गयी थी.. गांद पर उंगली रखते ही...
"नही दीदी... थोड़ी सी ज़्यादा लगी थी..."
"तो बताओ ना यार.. तभी तो मुझे अहसास होगा की उसको बुरा क्यूँ लगा.. बिल्कुल वैसे ही करके दिखाओ.. तुम्हे मेरी कसम...!"
अंशुल ने अपनी हथेली पूरी खोलकर निशा के बायें चूतड़ पर रख दी.. उसकी उंगलियों के सिरे दरार के पार दूसरे चूतड़ से लगे हुए थे.. निशा की आ निकल गयी......
"क्या हुआ दीदी.. बुरा लगा..." अंशुल ने अपना हाथ हटा लिया...
"नही रे! दोस्त की बात का बुरा नही मानते.. तू रखे रह.. छेड़ पूरी रात.. तू यहीं सो जा..... निशा ने उसका हाथ वापस और अच्छी तरह से अपनी गॅंड पर टीका लिया....
तभी दरवाजे पर नॉक हुई...
"अंशुल तू सोने की आक्टिंग कर ले... मुझे अभी तुझसे बहुत बात करनी हैं.. नही तो तुझे संजय के पास जाना पड़ेगा....." निशा ने धीरे से अंशुल को कहा और उठकर दरवाजा खोल कर इस तरह खड़ी हो गयी... जैसे वो नींद से उठकर आई हो....
बाहर उसकी मम्मी खड़ी थी..," ले बेटी दूध पी ले.. अरे! ये यहीं सो गया.. चल कोई बात नही.. मैं इसका दूध भी यही दे जाती हूँ.. इसको पीला देना उठाकर...."

जब उसकी मम्मी संजय के कमरे में दूध देने गयी तो संजय ने कहा..," मम्मी अंशुल का दूध?"
"वो तो वहीं सो गया.. निशा के पास.. मैं वहीं दे आई.. निशा पीला देगी...
संजय का माता ठनका... कहीं.. वो अंशुल.. वह उठा और निशा के कमरे में गया..

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