Monday, 15 September 2014

masti ki pathsala - 28

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-28

संजय ने सब कुछ प्लान कर रखा था.. उसने बाइक की स्पीड तेज की और अचानक ही ब्रेक लगा दिए," संभालना गौरी!"
संभालने का टाइम मिलता तब ना.. झटके के साथ ही गौरी की चूचियाँ तेज़ी के साथ संजय की कमर से टकराई.. संजय तो मानो उस्स एक पल में ही स्वर्ग की सैर कर आया.. गौरी की मस्त चूचियाँ बड़ी बहरहमी से संजय की कमर से लग कर मसली सी गयी.. अचानक हुए इश्स दिल को हिला देने वेल 'हादसे' से गौरी की साँसे उखाड़ गयी..
"सॉरी गौरी! आगे गढ़ा था.." संजय ने बाइक रोक कर गौरी की और देखा....
गौरी की शकल देखने लायक हो गयी थी.. उसकी समझ में नही आ रहा था वा दर्द के मारे रो पड़े; या आनंद के मारे झूम उठे.. उसने नज़रें झुका ली..
"बहुत दर्द हुआ क्या?" संजय ने गौरी को लगभग छेड़ते हुए कहा....
गौरी क्या बोलती.. उसने नज़रें झुकाई.. मिलाई और फिर झुककर अपनी गर्दन हिला दी.. गर्दन का इशारा भी कुछ समझ में आने वाला नही था.. ना तो हां थी.. और ना ही ना..
"तुम आगे होकर मुझे कसकर पकड़ लो! सारा रास्ता ही खराब है.." संजय ने आँखों से झूठी सराफ़ात टपकाते हुए कहा...
"गौरी का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था.. एक ही रास्ता था उसकी धड़कन को कम करने का... और उसने ऐसा ही किया.. अपनी छाती को संजय की कमर से सटकर बैठ गयी.. अपने हाथ उसकी छाती पर कस दिए.....

दोनो एक ही बात सोच रहे थे.. अब कंट्रोल होना मुश्किल है.. पर दोनो ही ये बात एक दूसरे के लिए सोच रहे थे.. किसी में भी पहल करने की हिम्मत ना थी..
संजय धीरे धीरे बाइक चला रहा था.. गौरी की मस्टाई गड्राई और गोलाई वाली छातियाँ अपनी कमर से सटा देख संजय ने खुद को पीछे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया.. गौरी एक बार तो पिछे की और हुई.. फिर संजय को जानबूझ कर ऐसा करते देख उसने भी आगे की तरफ दबाव डालना शुरू कर दिया.. आलम ये था की चूचियों की ऊँचाई आधी रह गयी थी.. दोनो की ज़िद के बीच में पीस कर..
कोई हां नही कर रहा था, कोई ना नही कर रहा था.. कोई हार नही मान रहा था... गौरी को असहनीया आनंद की प्राप्ति होने लगी... गौरी नीचे से भी संजय के कमर के निचले हिस्से से सॅट गयी.. उसकी जांघें भींच गयी.. संजय धन्य हो गया...पर जब तक बात और आगे बढ़ती.. उनका गाँव आ गया...
गौरी का हाल संजय से भी बुरा था.. किसी मर्द के इतने करीब वा पहली बार आई थी.. वो भी उस्स मर्द के करीब जो उसको बेहद पसंद था...
"संजय उसके दिल का हाल उसके गुलाबी हो चुके गालों से जान गया था...," कल मैं तुम्हे अकेला लेकर जाउ क्या? पहले जल्दी से निशा को छोड़ आउन्गा.. उसको बोल देना तुम अलग आओगी... क्या कहती हो?"

गौरी नीचे उतरी; नीचे गर्दन करके मुस्कुराइ और घर भाग गयी... संजय गौरी के भागते हुए नितंबों की थिरकन देखकर मदहोश हो गया... उसने किक लगाई और घर की और चल दिया..," हँसी मतलब........!"

गौरी जैसे सेक्स करके थक गयी हो.. उसकी साँसे अभी भी उखड़ी हुई थी... उसका दिल अब भी धड़क रहा था.. ज़ोर से...!

संजय के घर पहुँचते ही निशा ने उसको घूरा," क्या चक्कर है? उसको लाने में इतनी देर कैसे?"
"तुम भी ना निशा... वो मैं पंक्चर लगवाने लग गया था गाँव में....
निशा ने उसको धक्का देकर बेड पर गिरा दिया और उसके उपर सवार हो गयी......

अगले दिन वही हुआ... संजय कहीं जाने की बात कहकर करीब 2 घंटे पहले ही निशा को सेंटर पर छोड़ आया.. निशा गौरी को जाते हुए बता आई थी की आज मैं जल्दी जा रही हूँ....
निशा भी खुश थी.. उसकी जान; उसका भाई गौरी को आज लेकर नही गया.....
अंजलि और राज स्कूल जा चुके थे.. गौरी टाइम का अंदाज़ा लगा कर घर से निकल पड़ी.... जब संजय निशा को छोड़ कर वापस आया तो गौरी सड़क पर खड़ी थी...
संजय के उसके पास बिके रोकते ही वा उस्स पर बैठ गयी... दोनो तरफ पैर करके...

गौरी ने सारी रात जाने का क्या सोचा था और संजय ने भी जाने क्या क्या! पर दोनो ही प्यार के कच्चे खिलाड़ी थे.. अपने मान की बेताबी को तो समझ रहे थे.. पर दूसरी और क्या चल रहा है.. उससे अंजान थे...
समय निकलता देख संजय ने पहल कर ही दी," आज मुझे पाक्ड़ोगी नही क्या?"
गौरी ने हल्क हाथों से उसको थाम लिया...
"बस?" संजय धीरे धीरे उसके मान की थाः ले रहा था...
"हूंम्म्म!" गौरी को शर्म आ रही थी; बिना झटका लगे अपनी छाती मसलवाने की, उसकी कमर से दबा कर..
"क्यूँ?" संजय बेचैन हो गया...

गौरी कुछ ना बोली... उस्स गढ़े को समझ लेना चाहिए था.... की हेरोइन तैयार है...
"तुम्हे पता है... तुमसे सुन्दर लड़की मैने आज तक नही देखी..." संजय ने प्रशंसा के फूल उस्स पर न्योछावर कर दिए.. गौरी मन ही मन खिल उठी...

"मैने निशा से कुछ कहा था; तुम्हारे बारे में.. क्या उसने नही बताया..?" संजय उस्स'से कुछ ना कुछ तो आज सुन ही लेना चाहता था....
"उम्म्म!" गौरी का फिर वही जवाब....
"उम्म्म्म क्या?" संजय ने कहा..
"बताया था!" गौरी मानो हवा में ऊड रही हो.. वो अपने आपे में नही थी.. संजय को पहल करते देख...
"क्या बताया था?" संजय ने पूछा..
गौरी कुछ ना बोली.. अपने गाल संजय की कमर पर टीका दिए.. हाथों का संजय की छाती पर कसाव थोडा सा बढ़ गया.. पर छातियों की कमर से दूरी अभी बाकी थी...
"बताओ ना प्लीज़... क्या बताया था...?" संजय को मामला फिट होता लग रहा था....
"यही की...... की तुम मुझसे ... प्प्पयार करते हो.." गौरी ने आँखे बंद करके लरजते गुलाबी होंटो से कहा...
"और तुम?" संजय ने प्यार का जवाब माँगा...
गौरी इससे बेहतर जवाब क्या देती.. अपने आपको आगे करके संजय से सटा लिया.. हाथों का घेरा उसकी छाती पर कस दिया और अपनी छातियों को जैसे संजय के अंदर ही घसा दिया..... ये कच्ची उमर के प्यार की स्वीकारोक्ति थी... सीमा और टफ के प्यार से बिल्कुल अलग... गौरी बाइक पर संजय से चिपकी हुई काँप रही थी..
उसके रोम रोम में लहर सी उठ गयी... भिवानी आ गया था.. संजय ने गौरी को कहा," पेपर के बाद किसी भी तरह से यहीं रुक जाना.. निशा बस में जाएगी.....

गौरी तो संजय के प्रेम की दासी हो चुकी थी... कैसे उसका कहा टालती.....

पेपर ख़तम होने के करीब आधे घंटे बाद संजय सेंटर पर गया... उसकी प्रेम पुजारीन वहीं खड़ी थी.. अकेली......

निसचिंत होकर वह संजय के पीछे बैठ गयी... अंग से अंग लगाकर....
"होटेल में चलें...!" संजय ने गौरी से पूछा...
"लेट हो जाएँगे...!" हालाँकि इस बात में 'ना' बिल्कुल नही थी... संजय भी जानता था...
" कुछ नही होता... कुछ बहाना बना देंगे..." संजय ने बाइक हाँसी रोड पर दौड़ा दी...
कुछ हो या ना हो... जो दोनो की मर्ज़ी थी वा तो हो ही जाएगा.....
एक घटिया से टाइप के होटेल के आगे संजय ने बाइक लगा दी.. गौरी बाहर ही खड़ी रही...
"रूम चाहिए!" संजय ने वहाँ बैठे आदमी से कहा..
आदमी ने बाहर खड़ी बाला की सेक्सी गौरी को देखकर अपने होंटो पर जीभ फिराई," कितनी देर के लिए?" होटेल शायद इन्ही कामो के लिए उसे होता था...
"2 घंटे!"
"हज़ार रुपए!" इस वक़्त का फयडा कौन नही उठाता...
संजय ने पर्स से 1500 रुपए निकल कर उसको दिए..," हूमें डिस्टर्ब मत करना"
"सलाम साहब!"
संजय ने गौरी के हाथ में हाथ डाला और उनको दिए कमरे में घुस गया...

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