Thursday, 18 September 2014

masti ki pathsala - 29

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-29
 होटेल का कमरा कुछ खास नही था, अंदर जाते ही संजय को कॉंडम की सी गंध आई.. गद्दों पर बेडशीट तक नही थी.. पर ये वक़्त इंटीरियर डिज़ाइनिंग के बारे में सोचने का नही था...
उसने पलट कर गौरी की और देखा.. अपने राइटिंग बोर्ड से अपना सीना छिपाए खड़ी गौरी नज़रें झुकायं जाने क्या सोच रही थी..
"इधर आओ गौरी!" संजय ने मदहोश आवाज़ में हाथ फैलाकर गौरी को अपनी बाहों में आने को कहा...
जाने किस कसंकस में एक कदम पीछे हटकर दीवार से सटकार खड़ी हो गयी.. उसकी पलकों ने शरमाती आँखों को धक लिया..

संजय खुद ही 4 कदम चलकर उसके करीब, उसके सामने जाकर खड़ा हो गया... उसने गौरी के बेमिसाल शरीर पर एक नज़र डाली...

सच में गौरी किसी हसीन कयामत से कम नही थी.. उसका सुंदर मासूम सा लगने वाला गौरा चेहरा हर तरह से सौंदर्या की कसौटी पर नंबर 1 था.. उसकी पतली लंबी सुरहीदार गर्दन उसके ऊँचे ख्वाबों को दर्साति थी.. गर्दन से नीचे प्रभु की कला की 2 अनुपम कृतियाँ; किसी भी मर्द को उसके कदमों में सबकुछ लूटा देने को बद्धया कर सकती थी.. छातियों से नीचे पेट का पटलापन और नाभि से नीचे शुरू होने वाला उठान उसकी मस्त चिकनी जांघें उसके नितंबों के बीच की अंतहीन गहराई को बरबस ही उजागर कर देती थी....
संजय तो पहले से ही बेकाबू था.. वह थोड़ा सा झुका और एक हाथ से गौरी के कानो पर गिरी उसकी लट को पीछे करके गालों पर अपने होन्ट रख दिया..
"आआह!" इश्स आवाज़ से गौरी के समर्पण का बोध संजय को हुआ..
उसने गौरी के हाथों को पकड़ा और उन्हे उसकी छातियों से हटा दिया.. हुल्की सी हिचकिचाहट के साथ गौरी अपने हाथों को अपने मोटे कुल्हों के पास ले गयी...
संजय उससे सटकार खड़ा हो गया.. गौरी की चूचियाँ संजय की छाती के निचले हिस्से को छू रही थी; हूल्का हूल्का.. गौरी की साँसे गरम होती जा रही थी.. संजय अपने गले से उन्न सांसो की गरमाहट महसूस कर रहा था...
संजय झुका और अपने होन्ट गौरी के पतले मुलायम होंटो पर बिछा दिए.. और थोड़ा सा आगे होकर उसकी छातियों को अपने भर से दबा दिया.. गौरी के हाथ उपर उठकर संजय के बालो में अपनी उंगलियाँ फँसा दी.. उसके होन्ट संजय का सहयोग करने लगे..
संजय ने गौरी की कमर में हाथ डाल दिया और सहलाने लगा.... उसके हाथ धीरे धीरे नीचे की और जा रहे थे.
गौरी के नितंब को मजबूती से पकड़कर संजय ने अपनी और खींच लिया... गौरी बहाल सी हो गयी.. उसने अपने होंटो को अलग किया और ज़ोर ज़ोर से हाँफने लगी.. उसकी छातियाँ अब भी संजय के सीने में गाड़ी हुई थी..
गौरी को अपनी चूत से थोडा सा उपर संजय का लंड गड़ता हुआ महसूस हुआ.. वा अपने आपको पीछे हटाने लगी.. डर से..
पर संजय ने उसके नितंब को पूरी सख्ती से अपनी और खींच कर रखा था.. गौरी को अपनी चूत में जलन सी होने लगी... उसने अपना हाथ अपनी चूत और संजय के लंड के बीच में फँसा दिया.. संजय ने थोड़ा पीछे हटकर अपनी चैन खोली और अंडरवेर में से ताना हुआ अपना लंड निकाल कर गौरी के हाथों में दे दिया...
गौरी, नारी के लिए बेमिशाल उफार यूयेसेस लंड को अपने हाथ में पकड़ कर अपनी चूत को बचा रही थी...
संजय ने गौरी की गांद के नीचे से अपना हाथ लेजकर उसकी चूत की पत्तियॉं पर रख दिया.. गौरी उछाल पड़ी... उसका मौन टूट गया," याइयीई... ये क्या कर रहे हो?"
उसकी साँसे किसी भट्टी से निकली आँच की तरह गरम थी....
"जान वही कर रहा हूँ; जिसके लिए हम यहाँ आए हैं... प्यार!"
"नही! मैं ऐसा नही कर सकती.." गौरी ने पूरी तरह खुद को संजय से छुड़ा लिया..
"क्क्या? क्या कह रही हो तुम... जो अभी तक कर रही थी.. वो क्या था?" संजय के साथ कलपद हो गयी..( क्यूँ??)
गौरी पूरी तरह अपने आपको संभाल चुकी थी..," ये सच है संजय की मुझे तुम बहुत अच्छे लगते हो... जब तुमने कहा की तुम मुझसे प्यार करते हो तो मैं तुम्हारे करीब आकर तुम्हे जान'ने को मचल उठी.. मैं तुमसे प्यार करती हूँ.. बट मैं नही जान'ती हमारा प्यार किसी मुकाम तक पहुँचेगा या नही...
सॉरी! संजय; मैं शादी से पहले अपना शरीर तुम्हे नही सौंप सकती.. किसी भी हालत में.. गौरी ने एक बार फिर अपनी नज़रें झुका ली थी.."
संजय सुनकर हक्का बक्का रह गया.. उसका दिल किया की उसका रेप कर डाले.. पर वह इतनी प्यारी थी की कूम से कूम कोई इंसान तो उसको घायल कर ही नही सकता था.. और संजय शैतान नही था...
बेचारे का लोडेड हथियार बगैर अनलोड हुए ही क्रॅश हो गया..
संजय के चेहरे से बे-इंतहा गुस्सा झलक रहा था... उसने फाटक से दरवाजा खोला और बाहर निकल गया... गौरी उसके पीछे दौड़ी....
संजय ने बाइक स्टार्ट कर दी.. गौरी जाकर उसके पीछे बैठ गयी....
"एक तरफ पैर करो!" संजय की हालत सब समझ सकते हैं....
सहमी हुई गौरी उतरी और उसके कहे अनुसार बैठ गयी... वह लज्जित थी... उसने संजय को हर्ट किया था......

संजय ने गौरी को गाँव के अड्डे पर ही उतार दिया..," यहाँ से पैदल चली जाओ... लोग सोचेंगे.. इज्ज़ात गावा कर आई है.." संजय ने व्यंगया कसा!
बेचारी गौरी क्या करती... उसका क्या मालूम था की प्यार में इंटेरवाल नही होता... जब भी होता है.. पूरा ही करना होता है... उसका चेहरा उतार गया था.. संजय ने बाइक आगे बढ़ा दी... गौरी थके हुए से कदमों से घर की और बढ़ गयी.

गौरी अजीब कसमकस में थी.. सच था की वो मन ही मन संजय को बहुत चाहने लगी थी.. आख़िर लड़की को चाहिए क्या होता है किसी लड़के में, अच्छा करेअर, सुंदर चेहरा, और तगड़ा बदन. ये सभी कुछ उसको संजय में मिल सकता था. बहुत कम लोग होते हैं जिनमें ये सारी खूबियाँ एक साथ मिल जायें.. पर गौरी को एक चीज़ और चाहिए थी.. जीवन भर साथ निभाने का विस्वास. वो कहाँ से लाती, विस्वास किसी की शकल से नही टपकता;, साथ रहने से, एक दूसरे को जान'ने से आता
है.. गौरी भी अपने हर अंग में सिहरन महसूस कर रही थी, जब संजय ने उसको जगह जगह हाथ लगाया.. एक लड़के के हाथ में और खुद के हाथ में कितना फ़र्क होता है, ये गौरी जान गयी थी.. और संजय के हाथ ने अब तक उसके दिमाग़ में खलबली मचा रखी थी.. वह जल्द से जल्द संजय को जान लेना चाहती थी... ताकि... उसको हां कर दे... उस्स पर क़ब्ज़ा जमाने के लिए... ताकि उसको हां कर दे... अपने हर अंग को झकझोरने के लिए..

जब गौरी से रुका ना गया तो वो निशा के घर जा पहुँची... करीब 6 बजे शाम को...

निशा गौरी को देख कर भुन सी गयी," क्या बात है गौरी? आजकल..."
"कुछ नही.. बस घर पर दिल नही लग रहा था... और सुना.. कल के पेपर की तैयारी कैसी है?"
तभी संजय अपने रूम से बाहर आ गया.. उसने तिरछी नज़र से गौरी को देखा.. गौरी ने नेजरें झुका ली...
"चल तू मेरे कमरे में आ जा!" निशा जितना हो सकता था, गौरी को संजय से दूर रखना चाहती थी..
"निशा! मैं तुझसे एक बात बोलना चाहती हूँ...!" गौरी ने उसका हाथ पकड़ कर कहा..
"क्या?" निशा को गौरी का अंदाज कुछ राज बताने वाला सा लगा....
"वो.. तू कह रही थी.. की संजय.... मुझसे प्यार करता है.... क्या घर वाले.. हमारी शादी को मान जाएँगे?"
"नही! घर वाले तो दूर की बात है.. संजय ही नही मानेगा..!" निशा की बात सुनकर गौरी को सदमा सा लगा..
"क्यूँ?"
"क्यूँ क्या! मैं अपनने भाई को नही जानती क्या.. उसने चंडीगड़ भी एक लड़की से चक्कर चला रखा है... पर मुझे पता है.. वो शादी तो उसी से करेगा....!"
गौरी अवाक रह गयी.. उससे फिर वहाँ रुका ना गया.. वो तुरंत अपने घर वापस आ गयी..

घर आते आते गौरी का संजय के ख़यालों में उलझे उलझे बुरा हाल हो गया था.. पहली बार उसने किसी को दिल दिया था.. पहली बार उसको किसी ने शारीरिक और मानसिक तौर पर अंदर तक छुआ था.. और पहली बार में ही उसका दिल चलनी हो गया, ना वा संजय को देखती, ना संजय से दिल लगाती और ना ही ऐसा होता.. गौरी बाथरूम में जाकर अपने आप को शीशे में देखने लगी.. क्या वा ऐसी नही है की सारी उमर किसी को अपने से बँधसके... संजय को! क्या वो सिर्फ़ उससे खेलना चाहता था.. उसके साथ जीना नही.. ऐसा कैसे हो गया? उसने तो जब भी देखा,, संजायकी आँखों में प्यार ही देखा था.. उसके लिए.. या फिर ये मेरा भ्रम है... ख़यालों में खोए खोए ही वो होटेल के कमरे में जा पहुँची.. कैसे संजय ने उसके रोम रोम को आहलादित कर दिया था.. कैसे संजय के होंटो ने उसके होंटो को पहली बार मर्दाना गर्मी का अहसास कराया था.. पहली बार वो पागल सी हो गयी थी.. जाने कैसे वो खुद को काबू में कर पाई.. नही तो संजय उसके दिल के साथ उसके सरीर को भी भोग चुका होता...
गौरी के हाथ अपनी जांघों के बीच वहीं पहुँच गये जहाँ कल संजय पहुँच गया था.. उसने अपनी पट्टियों को वैसे ही कुरेड कर देखा... पर अब वो मज़ा नही था जो पहले आता था गौरी को," संजय ने ये क्या कर दिया... नही... मैं ऐसा नही होने दूँगी... मैं संजय को अपने पास लेकर अवँगी.. जिंदगी भर के लिए.. चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े..."
सोचते सोचते गौरी बाहर आई और किताबें उठा ली.. पर आज उस'से पढ़ा ही नही जा रहा था.. उसके दिल में ख़ालीपन सा घर कर गया.. शरीर में भी...

अगले दिन जब वा एग्ज़ॅम सेंटर पहुँची तो संजय गेट पर ही खड़ा था.. निशा अंदर जा चुकी थी..
"संजय!" गौरी ने उसके पास खड़ी होकर दूसरी और देखते हुए उसको आवाज़ लगाई..
"अब क्या रह गया है!" संजय अभी तक उस 'से नाराज़ था..
"मैं तुमसे बात करना चाहती हूँ! अपने बारे में.. नही... हम दोनो के बारे में..." गौरी ने आ रही एक लड़की को देखते हुए कहा..
"बोलो!" बाहर से संजय रूखा होने की भरपूर कोशिश कर रहा था... पर उसके दिल की खुशी उसकी आवाज़ से झलक उठी थी... वो भी तो हमेशा के लिए गौरी को अपना बना लेना चाहता था...
"अभी नही! कल हमारे पेपर्स ख़तम हो जाएँगे... तुम कल रात 11 बजे हमारे घर आना.. चुप चाप.. फिर बात करेंगे.." कहने के बाद गौरी ने ज्वाब का इंतज़ार नही किया... वो जान'ती थी.. संजय ज़रूर आएगा...

संजय जाती हुई गौरी के कुल्हों की लचक को देखकर तड़प गया.. रात को बुलाने का मतलब! .... अपने आप ही मतलब निकल कर उसकी आँखें चमक उठी...." बस अब सिर्फ़ कल का इंतज़ार है.. कल रात 11 बजे का...

दिशा और वाणी के दो दिन बाद पेपर ख़तम होने वाले थे.. वो उसके बाद घर जाने वाली थी... महीने भर के लिए.. यूँ तो उनकी मम्मी पापा से लगभग रोज़ ही बात हो जाती थी... पर फोन पर वो लाड प्यार कहाँ था जो वाणी को और दिशा को घर पर मिलता था.. उसकी मम्मी उनसे बात करते करते काई बार रो उठी थी.. वाणी को अब जल्द से जल्द घर जाना था.. बस एक बार पेपर ख़तम हो जायें.," दीदी! मैं अपनी हाफ पॅंट बॅग में रख लूँ..."
"ना वाणी! गाँव में बुरी लगेगी..."
"लेने दो ना दीदी.. मुझे बहुत अच्छी लगती है.. अपनी सहेलियों को दिखावँगी..!"
"मुझे पढ़ने दे.. जो मर्ज़ी कर ले, मेरा दिमाग़ मत खा बस.."

"दीदी! मैं भी तो रात को पढ़ती हूँ.. तुम भी पढ़ लेना. रात को ही..." वाणी ने गर्दन नीची करके.. अपनी आँखों को शरारती ढंग से उपर उठा कर दिशा को देखते हुए कहा!
"बताऊं क्या तुझे?" और दिशा की हँसी छूट गयी.. वाणी को मालूम था.. आज तीसरा दिन था और रात को शमशेर दिशा को पढ़ने नही देगा... वैसे भी 2 दिन बाद दिशा शमशेर को अकेला छोड़कर गाँव जा रही है...
वाणी ने दिशा को चिडाने वाला वही पुराना तराना छेड़ दिया...," तुम्हारे सिवा कुछ ना..."
दिशा चप्पल उठा कर वाणी को सबक सिखाने दौड़ी.. पर वो कहाँ हाथ आने वाली थी.. दरवाजा खोल कर जैसे ही वाणी बाहर निकालने को हुई बाहर से आ रहे टफ से टकरा गयी... भिड़ंत जबरदस्त थी.. वाणी सहम गयी," देखो भैया दिशा... नही! मैं तो आपसे बात ही नही करती.." वाणी अब संभाल गयी थी..
"क्यूँ बात नही करती वाणी.. और दिशा को क्या देखूं.." टफ ने अंदर आते हुए वाणी से पूछा....
"कुछ नही.. वाणी शरारती हो गयी है.." दिशा ने पानी के गिलास वाली ट्रे टफ की और बढ़ते हुए कहा.....
वाणी ने ब्लॅकमेलिंग चालू कर दी," मुझे सबका पता है.. कौन शरारत करता है.. मैं कुछ नही बोलती तो इसका मतलब मुझे ही शरारती साबित करदोगे सब.. मैं सबका रेकॉर्ड रखती हूँ.. हां!"
"जा वाणी चाय बना ले.. तुझे पढ़ना तो है नही.." टफ ने कहा और वाणी चाय बनाए किचन में चली गयी.. शमशेर के आने का समय हो गया था...

"मम्मी! मैं ज़रा विनय के पास जा रहा हूँ" अगर ज़्यादा लेट हो गया तो शायद वहीं सो जवँगा... चिंता मत करना!" अगले दिन रात के करीब 9:00 संजय ने नहा धोकर तैयार होते हुए कहा.

"खाना तो खा जा!" मम्मी की किचन से आवाज़ आई...
"नही! मम्मी, मैं वही खा लूँगा" संजय को पता था; अगर उसके पापा आ गये तो इश्स वक़्त उसको निकलने नही देंगे..
"भैया! ज़रा ये क़ुईसचन तो समझाना एक बार!" निशा ने अपने बेडरूम से आवाज़ दी..
"आता हूँ.." संजय उसके रूम की और बढ़ा...
निशा दरवाजे के पीछे खड़ी हो गयी... जैसे ही संजय कमरे में घुसा.. निशा ने दरवाजा बंद किया और उस 'से चिपक गयी... उसने ब्रा नही पहनी हुई थी.... उसकी चूचियों के निप्पल संजय को अपनी कमर में तीर की भाँति लग रहे थे," छोड़ो निशा! ये क्या हर वक़्त पागलपन सवार रहता है तुम पर.. प्लीज़.. मुझे जाना है....
निशा ने उसकी एक ना सुनी.. अपनी पकड़ और मजबूत करते हुए निशा ने अपने दाँत संजय की कमर में ज़ोर से गाड़ा दिए..
"आ.. मार गयाआ!" संजय ने घूम कर अपने को चुडवाया..," निशा हद होती है.. बेशर्मी की.. तुम्हे पता है.. ये ग़लत है.. फिर भी!"
निशा ने उस पर ताना कसा..," उस्स दिन ग़लत नही था; जब तुमने पहली बार मुझको
नंगा किया था और...."
"मत भूलो निशा.. उस्स दिन तुमने मुझे उकसाया था.." संजय ने अपना बचाव करने की कोशिश की....
निशा ने गुस्से में अपनी नाइटी उतार फैंकी.. उसका एक एक अंग' प्यार की आग में झुलस रहा था.. उसकी चूचियाँ पहले से कुछ मोटी और सख़्त हो गयी थी.. उसके भाई के प्यार से खिली वो काली अब गुलाब से भी मादक हो चुकी थी..," लो आज फिर उकसा रही हूँ... आज क्यूँ नही करते!" उसने दरवाजे की और देखा.. कुण्डी उसने लगा दी थी.. उसकी चूचियाँ उसकी आवाज़ की ताल से ताल मिला कर नाच रही थी..
"पर अब मुझे अहसास हो गया है निशा.. मैं ग़लत था.. मुझे माफ़ कर दो.. मुझे जाना है.." संजय ने अपने हाथ जोड़ कर निशा से कहा..
"ये क्यूँ नही कहते की अब तुम्हे तुम्हारी 'गौरी' मिल गयी है.... मैं किसके पास जाउ.. बोलो.. मेरे यहाँ आग लगती है.. मेरे यहाँ आग लगती है...." निशा ने अपनी पनटी और अपनी छातियों पर हाथ रखकर कहा...," तुमने ही मुझे ये सब सिखाया है.. अब वापस कैसे आ सकते हैं संजय!.. मैं तुमसे प्यार करती हूँ..." निशा की आँखें भर आई....
"निशा.. प्लीज़.. हम इस बारे में कल बात करते हैं.. अभी मुझे जाने दो प्लीज़.." संजय भी जानता था की वो बराबर का.. बुल्की निशा से कहीं ज़्यादा इस हालत के लिए दोषी है..
निशा ने सुबक्ते हुए अपनी आँखों से आँसू पोंछे और अपनी नाइटी उठा कर संजय को रास्ता दे दिया....
संजय ने बेचारी निगाहों से एक बार निशा को उपर से नीचे देखा और बाहर निकल गया......

संजय के बाहर जाते ही निशा फफक फफक कर रो पड़ी.. आख़िर उसके भाई ने ही उसको इश्स आग में झोंका था.. उसने रह रह कर फेडक रही अपनी चूचियों को अपने हाथ से ही गुस्से से मसल दिया.. पर चैन कहाँ मिलता.. इनकी आग तो कोई मर्द ही बुझा सकता था.. उसके दिमाग़ में हलचल मची हुई थी.. अपनी आग बुझाने के लिए.." मैं क्या कर सकती हूँ..." उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई.. टेबल पर 10 रुपए वाली मोटी मोमबत्ती रखी थी.. उसने मोमबत्ती उठा कर अपनी उंगलियों का घेरा उस्स मोमबत्ती पर बनाया.. मोटी तो उसके भाई के लंड से ज़्यादा ही थी..," क्या ये
काम कर सकती है..?" उसको उस्स पल के लिए वही बेहतर लगा.. पढ़ाई गयी भाड़ में.... वा बाहर गयी," मम्मी मैं सो रही हूँ.. सुबह जल्दी उतूँगी.."
"ठीक है बेटी.. मैं उठा दूँगी.. 4 बजे.. ठीक है?"
"अच्छा मम्मी.." निशा ने अंदर आते ही दरवाजा लॉक कर लिया.. अपनी निघट्य और पनटी उतार दी.. ड्रेसिंग टेबल को खींच कर बेड के सामने कर दिया.... एक रज़ाई को गोल करके उससे अपनी कमर सटा कर मिरर के सामने बैठ गयी..
निशा ने अपनी टाँगों को खोल कर ड्रेसिंग टेबल पर मिरर के दोनो और रख लिया....
उसकी नज़र अपनी आज तक 2 बार ही शेव की गयी चूत पर पड़ी... चूत तो पहले ही जलते कोयले की तरह गोरी से लाल हो चुकी थी.. उसकी खूबसूरती देखकर उसका चेहरा भी लाल हो गया...
मोमबत्ती कुछ जली हुई थी.. वा उठी और टेबल के ड्रॉयर से ब्लेड निकल लाई.. बड़ी मेहनत से उसने मोमबति के अगले भाग को तराश कर सूपदे जैसा सा बना लिया.. वासना की आती देखिए की उसने उस 'सूपदे' में आगे एक प्यारा सा छेद भी बना दिया, मानो उस्स छेद में से रस निकल कर उसकी चूत को ठंडक देगा.... उसने उसके इस कामचलू लंड को गौर से देखा... ऐसा वो पहली बार कर रही थी..
निशा मोम के लंड को अपनी टाँगों के बीच ले आई और चूत के उपर लगाकर शीशे में देखने लगी.... "ये चिकना कैसे हो?..
निशा ने अपनी उंगलियों पर ढेर सारा थूक लगाया और उसको मोम्लंड पर लगाने लगी.. उसकी चूत उसी को देख कर पिघलने लगी.... मोमबत्ती के लंड को उसने अपनी छातियों पर रगड़ा.... मज़ा आया.. वो फीलिंग ले रही थी.. जैसे उसने अपने भाई का लंड उधार ले लिया हो..
निशा उठी और घूम कर अपनी गांद की रखवाली कर रहे अपने मोटे मोटे चूतदों और उनके बीच में कसी हुई गहरी घाटी को देखने लगी.. ये लंड सिर्फ़ उसी का था.. उसने अपने चूतदों के बीच 'लंड' फसा दिया और अपना हाथ हटाकर उसको देखने लगी.. लंड कसी हुई फांकों के बीच में टंगा रह गया.. निशा खुद पर मुश्कुराइ.. वा बेड के उपर झुक कर कुतिया बन गयी.. उसकी चूत की रस भारी पत्तियाँ उभर आई.. बाहर की और...
शीशे में देखते हुए ही उसने अपनी चूत के मुँह पर उसका अपना लंड रखा और उसको रास्ता बताने लगी.. चूत की पत्तियाँ उसके स्वागत में खुल गयी.. निशा ने अपने हाथ से दबाव डाला.. चूत एक बार हुल्की सी बरस कर तरीदार हो चुकी थी... दबाव डालने के साथ साथ वो अंदर होता चला गया.. निशा ने अपने मुँह से हुल्की सी सिसकी निकाली.. ताकि चूत को बेवकूफ़ बना सके.. की लंड ओरिजिनल है.. पर कहाँ.. उसमें वो मज़ा कहाँ था.. चूत ने कोई खास खुशी नही जताई.. पर काम तो पूरा करना ही था... निशा सीधी हो गयी..
फिर से रज़ाई के साथ अपनी कमर लगा कर उसने टांगे खोली और कामचलू हथियार अपनी चूत में फँसा दिया..
निशा ने अपनी आँखें बंद की और अपने भाई को याद करके वो खिलौना अंदर बाहर करने लगी.. ज़ोर ज़ोर से... सिसकियाँ लेलेकर... अब उसको शीशे की ज़रूरत नही थी.. अब उसके सामने उसका भाई था.. उसकी बंद आँखों से वो देख रही थी..
निशा की स्पीड बढ़ती चली गयी.. और करीब 3 मिनिट बाद उस लंड को अपनी चूत में पूरा फँसा कर अकड़ कर सीधी लेट गयी.. आख़िर कार उसने चूत को आज तो बेवकूफ़ बना ही दिया.. पर उसको ओरिजिनल लंड की सख़्त ज़रूरत थी.. चाहे किसी का भी मिले...
रस बहने के काफ़ी देर बाद उसने मोमबत्ती को बाहर निकाला.. और किताबों के पीछे रख दिया... अब वो कम से कम आज तो चैन से सो ही सकती थी.......

करीब 10:50 पर गौरी धीरे से उठी और लिविंग रूम की लाइट ऑन कर दी... उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था.... जाने क्या होने वाला था.. पर गौरी फाइनल कर चुकी थी.. संजय को अपनी दुनिया में लाकर रहेगी.. चाहे उसको कुछ भी करना पड़े...
गौरी ने दोनो बेडरूम्स के दरवाज़ों पर कान लगा कर देखा.. कोई आवाज़ नही आ रही थी.... कुछ निसचिंत होकर गौरी ने जाली वाले दरवाजे से अपने दोनों हाथों को सेटाकर उनके बीच से बाहर देखने की कोशिश की...

करीब 1 घंटे से दीवार फाँद कर चारदीवारी के अंदर आ चुका संजय लाइट ऑन होते ही चौकस हो चुका था.. वह कार के पीछे अंधेरे में बैठा था और जैसे ही उसने गौरी को दरवाजे से झँकते देखा.. उसने आगे उजाले में अपना हाथ हिलाया..
"संजय आया हुआ है.. ये देखकर गौरी का दिल और ज़ोर से धड़कने लगा... अभी तक उसको पूरा विस्वास नही था की संजय आएगा भी या नही....
वा बिना आवाज़ किए दरवाजा खोल कर बाहर निकली और घर की दीवार के साथ साथ थोड़ा आगे अंधेरे में जाकर खड़ी हो गयी...
हरी झंडी मिलते ही संजय झुक कर बाउंड्री के साथ साथ गौरी की और बढ़ गया.. और उससे करीब एक फुट जाकर खड़ा हो गया," हां! क्यूँ बुलाया था..?"
गौरी ने मुड़कर दरवाजे की और देखा," मुझे डर लग रहा है संजय.."
"तो वापस जाओ ना.. जाओ?" संजय अब की बार अपनी तरफ से पहल नही करना चाह रहा था........
"क्या हुआ? अभी तक नाराज़ हो क्या.." रात के सन्नाटे में सिर्फ़ कानो तक पहुँचने वाली आवाज़ भी ऐसी लग रही थी मोनो सबको जगा देगी...
"सुनो! .. वो.. क्या घफ़ के पीछे वाली साइड में चलें... वहाँ एक कमरा सा है.." गौरी ने संजय को जी भर कर देखते हुए कहा..
संजय उसकी और देखता रहा.. गौरी ने उसका हाथ पकड़ा और अपने पीछे खींचा...
चोरों की तरह चूपते छुपाते घर के पीछे वाले एक बेकार से कमरे में पहुँच गये.. शायद ये कमरा पहले जानवरों के लिए प्रयोग किया जाता होगा... अब वो पहले से अधिक सेफ थे.. और घर वालों से दूर भी...
संजय ने फिर सवाल किया..," जल्दी बोलो! क्यूँ बुलाया था.. या मैं जाउ..." गौरी को बाहों में लपेटने की इच्छा वो जाने कैसे दबा पा रहा था...
"वो चंडीगड़ वाली कौन है..?" गौरी ने संजय की आँखों में देखते हुए अपने नाख़ून कुतरने शुरू कर दिए..
"चंडीगड़ वाली..?... कौन चंडीगड़ वाली..." संजय की कुछ समझ में ना आया..
"मुझे उल्लू ना बनाओ.. निशा ने सब बता दिया है..." गौरी ने अपना गुस्सा दिखाया..


क्याअ?.! निशा ने तुमको ऐसा कहा.." असचर्या की लकीरें संजय के माथे पर छा गयी.. अपनी वफ़ा दिखाने के लिए संजय ने गौरी के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले लिया...
"क्यूँ क्या ये झूठ है?.. उसने तो मुझे ये भी बताया था की तुम मुझसे शादी करने के बारे में सोच भी नही सकते..!" गौरी ने संजय को थोड़ा और झटका दिया...
"तुम्हे क्या लगता है गौरी.. मेरी आँखों में एक बार देखो तो सही..!" पिछे वाली गली में लगी स्ट्रीट लाइट की रोशनी उनको एक दूसरे की आँखों में झाँकने का मौका दे रही थी...
"मुझे तो नही लगता.. की.. निशा को मुझसे झूठ बोल कर कोई फयडा होगा..!" गौरी की बात में तो डम था.. पर संजय समझ चुका था की निशा ऐसा क्यूँ कर रही है.......
संजय के हाथो से अनायास ही गौरी के हाथ फिसल गये.. कुछ ना बोल कर वा सोचता ही रहा की उसकी ग़लती उसको आज कितनी महनगी पड़ रही है.. बेहन से संबंध बनाने की ग़लती....
"सोच क्या रहे हो.. क्या तुम सिर्फ़ मेरे शरीर से प्यार करते हो..?" गौरी अपनी बात का जवाब हर हालत में चाहती थी...
"गौरी...! अगर मुझे सिर्फ़ तुम्हारे शरीर से प्यार होता तो मैं आज यहाँ ना आता.. ये जानते हुए भी की तुम मुझे हाथ तक नही लगाने दोगि... मैं तुमसे प्यार करता हूँ गौरी.. इसीलिए एक घंटे से यहाँ बैठा हुआ हूँ.. 11 बजने का इंतज़ार मुझसे नही हो सका..
"क्या सच में?" गौरी के चेहरे पर संतोष और प्यार के भाव आसानी से पढ़े जा सकते थे...," पर निशा ने ऐसा क्यूँ कहा?"
गौरी की बात का जवाब संजय के पास था.. पर वह बोलता भी तो क्या बोलता...
"मैं तुम्हे कुछ देना चाहती हूँ.. संजय! इश्स वादे के साथ की अगर तुम हर हालत में मेरे साथ जीने की कसम खाओ तो मैं अपने आपको दुनिया की सबसे ख़ुसनसीब लड़की समझूंगी..."
"मुझे नही पता ऐसा क्यूँ है.. पर मैं तुमको पाने के लिए दुनिया से भीड़ सकता हूँ... दुनिया को झुका सकता हूँ या दुनिया छोड़ सकता हूँ.. मैं तुमसे प्यार करता हूँ गौरी..! दिल से....
गौरी भावुक हो गयी.. उसने अपने गुलाब की पंखुड़ी जैसे सुर्ख लाल होन्ट संजय के गाल पर टीका दिए.. संजय ने कुछ नही किया.. बस आँखें बंद कर ली...
"क्या आज मुझे गले से नही लगाओगे..?" गौरी ने संजय को अपनी बाहों में आने का निमंत्रण दिया..
"नही.. गौरी.. मैं तुम्हे यकीन दिलाना चाहता हूँ की मैं तुम्हारे शरीर से नही.. बुल्की तुम्हारे कोमल दिल से प्यार करता हूँ..."
"आ जाओ ना..!" कहते हुए गौरी ने संजय को अपनी छातियों से चिपका लिया.. संजय ने अपनी बाहें गौरी की कमर में डाल दी.... और उसको अपनी और खींच लिया..
आज गौरी को शरीर में अजीब सी बेचैनी का अहसास हो रहा था.. वह मन ही मन संजय को अपना सब कुछ सौप देना चाहती थी..
"मुझे परसों की तरह पकड़ लो ना... संजू!" गौरी की साँसों से मदहोशी की बू आ रही थी..
"कैसे?"
"जैसे होटेल में..." गौरी ने अपनी छातियों का दबाव बढ़ा दिया....
"पर वो तो तुम्हे पसंद ही नही है.." संजय अपना हाथ गौरी की कमर में फिरा रहा था.. पर कमर से नीचे जाने की उसकी हिम्मत नही हो रही थी....
"मुझे कुछ नही पता.. तुम करो... जैसा तुम चाहते हो तुम करो... मुझे हर जगह से छू लो संजू.. मुझे पूरी कर दो..." गौरी निस्चय कर चुकी थी.. उसको संजय को अपना सब कुछ देकर उसका सब कुछ सिर्फ़ अपने लिए रख लेना है..
"काबू करने की भी तो कोई हद होती है.. और अब तो गौरी का ही निमंत्रण मिल गया था....
संजय के हाथ उसके कमाल से भी ज़्यादा सेक्सी चूटरों की दरार पर अपनी दस्तक देने लगे...
"आ संजू..." गौरी ने अपनी एडियीया उठा ली, ताकि संजय के हाथ जहाँ जाना चाहें वहाँ तक जा सकें... उसने संजय के होंटो को अपने होंटो की तपिश का अहसास कराया....
संजय ने जीभ उसके मुँह में डाल दी.. और उंगलियाँ उसकी गांद में.. उसकी चूत के द्वार तक..
"गौरी मदहोशी में उछाल पड़ी... उसकी आइडियान और उपर उठ गयी.. उसकी टाँगें और ज़्यादा खुल गयी....
"कौन है?" अचानक राज ने पिछे से आकर दोनो के होश उड़ा दिए... राज ने संजय का गला पकड़ लिया.....
"गौरी की घिग्गी बाँध गयी.. संजय ने एक ज़ोर का झटका राज के हाथों को दिया.. और एक ही झटके में दीवार कूद कर भाग गया........

राज ने गौर से गौरी को देखा.. उस्स प्यार की प्यासी गौरी के लाल चहरे का रंग.. अचानक ऊड गया... वह नज़रें झुका कर नीचे देखने लगी.......
"वह उतनी शर्मिंदा नही थी.. जितना राज उसको करने की सोच रहा था.....
"शरम नही आई तुझे रात को..... ऐसे बाहर आकर.." राज ने अपना दाँव लगाने की सोची..
"नही.. मुझे उतनी शर्म नही आई.. जितनी आपको आनी चाहिए.. अपनी बीवी के होते हुए अंजलि दीदी के साथ ग़लत होने के लिए.." गौरी ने नहले पर दहला मारा और वहाँ से बाहर निकल गयी.......
पर उसको अचंम्बुआ था... दुनिया से भिड़ने की कसम खाने वाला संजय.. एक आदमी के सामने भी ठहर ना पाया....
"निशा सही कह रही थी... वो ऐसा ही है... गौरी को रोना सा आ गया... वह अपने बिस्तेर पर गिरकर सोचने लगी..

मनु 2 दिन बाद भी वाणी की खुमारी को अपने दिमाग़ से नही निकल पा रहा था.. रह रह कर उसकी हँसी उसके कानो में गूँज उठती.. और इसके साथ ही अकेले बैठे मनु के होंटो पर मुस्कान तेर जाती.. क्या बकरा बना था वो उस्स दिन..
मनु किताब बंद करके चेर से अपना सिर सटा कर बैठ गया.. आज तक उसने कभी किसी लड़की में रूचि नही दिखाई थी.. स्कूल की लगभग सभी लड़कियाँ उसके लिए दीवानी थी.. उसका दिमाग़ जो इतना तेज था.. यहाँ तक की स्कूल के टीचर उसको मिस्टर.
माइंड बुलाते थे... उसके चेहरे से भोलापन और शराफ़त एक राह चलते को भी दिख जाती थी... सुंदर गोल चेहरा.. गोरा रंग.. मोटी मोटी आँखें और हर दिल अज़ीज स्वाभाव उसकी विशेषतायें थी जो हर किसी को उसका दोस्त बना देती थी.. पहली नज़र में ही हर लड़की उसको देखकर उसको हेलो बोलने को तरस जाती थी.. फिर. स्कूल की तो बात ही कुछ और थी.. सब उसके ईईटिअन बन'ने की बात ज़ो रहे थे....
कोई लड़की उसके पढ़ाई के प्रति जुनून को नही डिगा सकी थी.. सिवाय वाणी के...
"मानी!" मनु ने मानसी को पुकारा.
"आई भैया!" मानी अगले मिनिट ही उसके कमरे में थी..
"यहाँ बैठहो, मेरे पास!" मनु ने साथ रखी चेर की तरफ इशारा किया..
मानसी कुर्सी पर बैठ कर मनु के चेहरे को देखने लगी," क्या है भैया?"
"मानी! क्या ... वो कल सच में ही मैं बहुत बुरा लग रहा था.. उल्टी शर्ट में..
"नही तो.. मुझे तो नही लगे.. क्यूँ?" मानसी की समझ ना आया.. मनु कल की बात आज क्यूँ उठा रहा है..
"नही.. बस ऐसे ही..... फिर वो लड़की ऐसे क्यूँ हंस रही थी.. घर में तो किसी से भी चूक हो सकती है.. आक्च्युयली मैने रूम में वो शर्ट..."
"ओह! छोड़ो भी.. वो तो ऐसे ही है.. स्कूल में भी सारा दिन ऐसे ही खुश रहती है.. वो तो मौका मिलने पर टीचर्स तक को नही बक्षति.. पर पता नही.. फिर भी उससे सभी इतना प्यार करते हैं.. कोई भी बुरा नही मानता उसकी बात का..." मानसी पता नही वाणी का गुणगान कर रही थी या उसकी आलोचना... पर मनु उसके बारे में सब जान लेना चाहता था..," कहाँ रहती है.. वाणी..?"
"अरे यही तो रहती है.. सेक. 1 में ही... अगले रोड पर 1010 उन्ही का तो घर है.. वो कोने वाला! पर क्यूँ पूछ रहे हो?" मानसी ने अपने कमीज़ के कोने को मुँह से चबाते हुए तिरछी नज़र से मनु को देखा.. उसकी समझ में कुछ कुछ आ रहा था...
"नही.. कुछ नही.. मुझे क्या करना है उसके घर का.. मैं तो बस ऐसा ही पूछ बैठा था.." मनु अपनी बेहन को अपने दीवानेपन से रूबरू कैसे करता..

"ठीक है भैया! अब मैं जाउ..?" मानसी ने खड़े होते हुए पूछा..
"ठीक है.. जाओ.."
"एक मिनिट रूको...! वो आएगी क्या फिर कभी.... यहाँ?"मनु वाणी को एक बार और देखना चाहता था...
"नही तो.. वो तो आज अपने घर जा रही है.. हमारे एग्ज़ॅम ख़तम हो गये ना...!"
"क्या?.." फिर मनु अपने आपको संभालता हुआ बोला," तुम मिलॉगी नही क्या उससे जाने से पहले?"
"क्यूँ?" मानसी समझ रही थी.. वाणी का जादू उसके भाई पर भी छा गया है.."
"अरे हर बात में क्यूँ क्यूँ करती रहती है.. इतने दीनो बाद आएगी वापस.. तुम्हे मिलकर आना चाहिए...
आख़िर तुम्हारी दोस्त है वो..."
"फिर क्या हुआ भैया? हम आज ही तो मिले थे.. हुँने तो एक महीने के लिए एक दूसरे को गुड बाइ बोल भी दिया है... मुझे नही जाना.. अब मैं जाउ..?"
"जा... ख्हम्ख मेरा टाइम वेस्ट कर दिया.." खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे के अंदाज में मनु बड़बड़ा उठा...
मानसी बाहर चली गयी.. बाहर जाते ही उसको वाणी का प्यारा चेहरा याद आ गया... उसका भाई उसका दीवाना हो गया लगता था.. वाणी के बारे में पूछते हुए उसकी आँखों में चमक और चेहरे पर शरम का अहसास इश्स हक़ीकत को बयान कर रही थी की कुछ तो ज़रूर है उसके दिल में...
सोचकर मानसी मुस्कुरा पड़ी.. कितनी अच्छी जोड़ी लगती है दोनो की... वा उल्टे पाँव मनु के कमरे में गयी..," भैया मुझे वाणी से मिलने जाना है.. एक बार साथ चल पड़ोगे क्या??"
"कक्यू..न मैं क्या करूँगा..?" फ्री में लगी जैसे लाखों की लॉटरी के बारे में सोचकर उसकी ज़ुबान फिसल गयी.. जो उसका दिल कहना चाह रहा था, कह नही पाई...
"अकेली तो मैं नही जवँगी.. उनके कुत्ते से मुझे बड़ा दर लगता है... ठीक है रहने दो.. कोई खास काम भी नही था..."
मानसी के मुड़ते ही मनु ने उसको रोका," मैं तोड़ा नही लून... !"
"अरे नहाए धोए तो बैठे हो...!"
"नही प्लीज़.. बस 10 मिनिट लगवँगा.. मुझे उससे बहुत डर लगता है.. जाने क्या कह देगी.."
"ओ.क.!" मानसी हँसने लगी.....

दिशा और वाणी अपना समान पॅक करके बैठी थी...," वाणी! जल्दी से नहा ले नही तो उनके आने के बाद देर लगेगी.. तेरा दिल नही कर रहा क्या घर जाने का?" दिशा ने वाणी के कंधे पर हाथ रखा...
वाणी अपना कंधा उचका कर खड़ी हो गयी..," कर रहा है दीदी... बहुत मन कर रहा है.. पर जीजू अब्भी तक नही आए..!"
"तू नहा तो ले पहले.. और वो अभी आने ही वाले होंगे... आते ही निकल पड़ेंगे..." दिशा ने उसको बाथरूम में धक्का दे दिया....
तभी दिशा का मोबाइल बाज उठा... शमशेर का फोन था..
"क्या बात है आना नही क्या?" दिशा ने मीठा गुस्सा करते हुए बोली..
"आ रहा हूँ ना मेरी जान.. थोड़ा फँस गया हूँ.. एक घंटा लगेगा. वो तुम्हे अपना समान लेना था ना... सॉरी.. अगर बुरा ना मानो तो तुम खुद ही ले आओ तब तक.. नही तो और लेट हो जवँगा.."
"पहले कभी लाए हो.. जो आज लाओगे.. मैं क्या तुम्हारी शेविंग क्रीम नही लाती.. ठीक है.. फोने रखो.. मैं अभी ले आती हूं जाकर.."
"बाइ जान.." कहकर शमशेर ने फोने काट दिया..

दिशा ने दरवाजा खोलही था की दरवाजे पर मानसी और एक लड़के को देखकर चौंक पड़ी..," मानसी तुम!"
"हां दीदी.. मुझे वाणी से मिलना था.. फिर तो ये चल! जाएगी.. ये मेरे भैया हैं..!"
मनु ने दिशा को दोनो हाथ जोड़कर नमस्ते किए.. हालाँकि वो उससे करीब साल भाई छोटी थी.. पर मेक उप में वो कुछ बड़ी लग रही थी...
दिशा ने मनु को गौर से देखा.. बड़ा ही भोला और शकल से ही किताबी कीड़ा लग रहा था..
"मानसी! मेरे साथ एक बार मार्केट तक चलेगी क्या..?"
"क्यूँ नही दीदी.. भैया बाइक लेकर आए हैं.. इनको ले चलें.."
"दिशा ने मानसी का हाथ दबा कर कहा," नही! बस दो मिनिट में आ जायेंगे... आप अंदर बैठो तब तक.. हम अभी आए..." दिशा ने मनु की और देखकर कहा और मानसी का हाथ पकड़ कर खींच ले गयी...
"दीदी.. भैया को ले ही आते..!"
"अरे कुछ पर्सनल सामान लाना है... समझा कर...

मनु की ब्चैन निगाहे कमरे के कोने कोने तक अपने होश उड़ाने वाली की तलाश में भटकने लगी.. पर उसको दीवार पर टाँगे वाणी के 24'' बाइ 36'' के मुस्कुराते हसीन फोटो के अलावा कोई निशान दिखाई ना दिया.. वाणी मनु की और ही देख रही थी.. मानो कह रही हो," मैं तुम्हारी ही तो हूँ..."
मनु उसकी बिल्लौरी आँखों में झँकते हुए सपनों की दुनिया में खो गया," आइ लव यू वाणी!" उसके मुँह से अनायास ही निकल पड़ा.. इसके साथ जिंदगी के हसीन सपनो में खोने को मिल जाए तो कोई कुछ भी खोने को तैयार हो सकता है.. कुछ भी.. वाणी मानो एक खूबसूरत लड़की ही नही थी.. कोयल जैसी आवाज़, अपनी सी लगने वाली आँखें, चिर परिचित मुस्कान, खालिस दूध जैसा रंग और सुबह गुलाब पर पड़ी ओस की बूँदों की रंगत वाले दानेदार लज़ीज़ होंटो की मल्लिका; वाणी सिर्फ़ एक सपनो की राजकुमारी ही नही थी.. एक जादूगरनी थी, जिसका जादू सब पर छाया था; किसी ना किसी रूप में.. सबको अपनी पहली मुस्कुराहट से अपना बना लेने वाली वाणी को अब अजीब नही लगता था जब कोई उसमें यूँ डूब जाता.. उसकी तो आदत सी हो गयी थी.. सबको अपना मान कर मज़ाक करना.. किसी की आँखों का बुरा ना मान'ना; चाहे वो आँखें प्यार की हों या हवस के भूखे सैयार की.. कुछ लड़के तो उसकी उनकी तरफ उछली गयी एक प्यारी मुस्कान को ही अब तक सीने में छिपाए बैठे थे, और मान रहे थे की उनके लिए कोई चान्स है शायद; रास्ते बंद नही हुए हैं.. और बेचारा मनु भी इसी विस्वास की ज्योत मान में जगाए.. यहाँ आया था!
एक और बात वाणी में खास थी.. जाने क्या बात थी की यूयेसेस पर कभी कोई ताना नही मारता था.. आते जाते.. उसका जादू ही ऐसा था की उसके बारे में मान में चाहे कोई कुछ सोच भी लेता.. पर अपनी आरजू को कभी गालियों की शकल दे कर बाहर नही निकल पता था.. सब भीगी बिल्ली बन जाते थे.. ऊस शेरनी को देख कर....
अचानक गोली सी आवाज़ सुनकर वाणी के फोटो के पास खड़ा मनु गिरते गिरते बचा..
" डीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई"

आवाज़ सुनते ही मनु तस्वीर से निकल कर वापस लौट आया.. हक़ीकत की दुनिया में.. पर उसके हलक से आवाज़ ही ना निकली.. आवाज़ कहाँ से आई है वो तभी समझ सका जब आवाज़ ने उसके कानो में मिशरी सी घोल दी...
"दी... टॉवेल दे दो जल्दी.. मैं ले कर आना भूल गयी थी.."
मनु की नज़र कमरे के साथ दूसरे कमरे के दरवाजे पर गयी थी.... आवाज़ शर्तिया उसी हसीना की थी....
पर मनु क्या कहता.. वो क्या करता.. वाणी की आवाज़ सुनते ही उसका गला बैठ गया.. उसको सामने से देखने के एक बार फिर मिले चान्स ने उसको असमंजस में डाल दिया...
"दीदी! देख लो.. मैं ऐसे ही आ जाउन्गि बाहर.. नंगी.. मुझे फिर ये मत कहना की इतनी बड़ी हो गयी.. अककाल नही आई.. मैं आ जाउ.. ऐसे ही..."

ये बात वाणी के मुँह से सुनकर मनु की कमर में पसीने की लहर करेंट के झटके की तरह दौड़ गयी.... क्या वाणी सचमुच ऐसे ही आ जाएगी.. नही नही..! मैं उसको शर्मिंदा होते नही देख सकता..," तुम्हारी दीदी यहाँ नही है वाणी...!"
"कौन?.. दीदी कहाँ है....."
कुछ जवाब ना मिलता देख वाणी शुरू हो गयी..," बचाओ! बचाओ!... चोर... चोर.. चोर!"
मनु को उसकी इश्स बात पर गुस्सा भी आया.. और हँसी भी.."
"मैं हूँ वाणी... मनु.." फिर धीरे से बड़बड़ाया.. तुम्हारा मनु.. वाणी!"
"मनु... कौन मनु.. दीदी कहाँ हैं.." वाणी अभी तक बाथरूम के अंदर ही थी...
मनु दरवाजे के करीब जा कर बोला..," मानसी का भाई! मानसी लेकर आई थी.. वो और तुम्हारी दीदी बाहर गयी हैं..." अपना नाम तक याद ना रखने पर मनु की सूरत रोने को हो गयी...
"मानसी! .... कौन मानसी.?" कहक्र वाणी खिलखिला कर हंस पड़ी....," मुझे पता है बुधहू! मनु.. उल्टी शर्ट पहन'ने वाला मनु.." कहकर फिर वाणी ने मनु पर बिजली सी गिरा दी.. हंस कर...
"बाहर टवल पड़ा होगा.. दे दोगे प्लीज़!" वाणी ने अपना हाथ बाहर निकलते हुए कहा..
"क..क्कऔन?... मैं.." मनु सच में पसीना पसीना हो गया.. क्या मैं उसको टवल दूँगा!
"नही नही.. तुम क्यूँ दोगे? मैं तो अपने कुत्ते हार्डी को बोल रही हूँ.. ज़रा जाकर उसकी चैन खोल दो.. बेचारा आकर टवल दे जाएगा..
बात मनु के दिल पर लगी.. जब वाणी को शरम नही आ रही तो मैं क्यूँ शरमओन.. उसने बालकोने से टवल उतारा और कमरे में घुस गया...
"इधर मत देखना.. इधर मत देखना..!" वाणी ने प्यार भारी वाणी में मनु को निर्देश दिया..
मनु की तो घिग्घी बँधी हुई थी.. ये लड़की है या शैतानी की पूडिया..," लो नही देख रहा.." कहकर उसने अपना मुँह फेरा और बाथरूम के दरवाजे की और अपना हाथ बढ़ा दिया.. वाणी ने अपनी एक आँख से बाहर देखा और झटके के साथ तौलिया अंदर खींच लिया....
पर किस्मत को कहें आ भगवान को.. दोनो को उनकी ये दूरी शायद मंजूर नही थी.. तौलिया बाहर लगी वॉशबेसिन के साथ हॅंगर पर गाड़ि एक कील में उलझ गया था... जैसे ही वाणी ने टवल को अपनी और खींचा वाणी को एक झटका सा लगा और वो पैर फिसल कर बाथरूम में धदाम से गिर पड़ी.. और दर्द के मारे उसकी चीख निकल गयी.. चीख में अत्यंत ही पीड़ा भारी वेदना थी.. लगभग एक मिनिट तक तो वाणी को साँस ही ना आया.. चीख लगातार चालू थी..
मनु का दिमाग़ सुन्न हो गया.. क्या करूँ.. किसको बोलूं... वा दरवाजे के बाहर ही ठिठक कर तड़प्ता हुआ बोला," वाणी.. क्या हुआ?? ठीक तो हो ना....?
गर्ल्स स्कूल--23

वाणी ने मनु की बात पर कोई ध्यान नही दिया.. वा दर्द से कराह रही थी..," मुम्मय्ीईईईईईई..." वाणी के कूल्हे पर चोट लगी थी..
वाणी की कराह सुनकर मनु सब कुछ भूल गया.. उसने बाथरूम का दरवाजा खोल दिया.. वाणी दरवाजे के पास ही पड़ी.. आँखें बंद किए वेदना से तड़प रही थी.. उसके शरीर पर कोई वस्त्रा नही था.. सिवाय उके हाथ से लिपटे तौलिए के अलावा..
मनु ने उसके हाथ से तौलिए लिया.. जितना उसको धक सकता था.. ढाका और अपनी बाहों में उठाकर बाहर ले आया..
धीरे से मनु ने वाणी को बिस्तेर पर लिटाया और उसके माथे पर हाथ रख लिया.. वाणी की गीली छातियों से वह अपनी नज़र चुराने की पूरी कोशिश कर रहा था...
"वाणी! एक बार कपड़े पहन लो.. कोई आ जाएगा.." मनु की आवाज़ उस्स बेपर्दा हुषण के सामने काँप रही थी..
वाणी को अब तक कोई होश ही नही था की वा किस हालत में है और किसके सामने है.. और जब अहसास हुआ तो सारा दर्द भूल कर बिस्तेर पर पड़ी चादर में अपने को समेटने की कोशिश करने लगी.. मनु खड़ा हुआ और वाणी की करोड़ों की इज़्ज़त को चादर में लपेटने में मदद करने लगा..," सॉरी वाणी.. मैं..."
"मेरे कपड़े दो जल्दी.." दर्द में लिपटी शर्म की आँच ने वाणी को पानी पानी कर दिया था.." वो टँगे हुए है.. हॅंगर पर".. वाणी ने अपन आँखों से इशारा किया..
मनु ने कपड़े उसके पास रख दिए और बेचैनी से उसको देखने लगा...
"बाहर जाआआओ!" दर्द कूम होते होते वाणी शरम की गर्त में डूबती जा रही थी..
"ओह हां... सॉरी" कहकर मनु बाहर निकल गया और सोफे पर जाकर बैठ गया...
कुछ देर बाद मनु ने वाणी को पुकारा...," वाणी ठीक हो ना..?"
"हूंम्म्म.." अंदर से वाणी इतना ही बोल सकी...
मनु के दिल को सुकून मिला.. उसने आँखें बंद कर ली.. उसकी आँखों के सामने वाणी का बेदाग बेपर्दा हुषण सजीव सा हो गया..
उस्स वक़्त मनु सिवाय वाणी की हालत पर हुंदर्दी के, कुछ सोच ना पाया था.. पर अब.. करीब 5 मिनिट बाद उसके शरीर में भी हलचल होने लगी..
उसने वाणी को देखा था.. वो भी बिना कपड़ों के.. अगर उस वक़्त सिर्फ़ वाणी के चेहरे के एक्सप्रेशन को भूल जायें तो हर अंग पागल करने की हद तक खिला हुआ था... उसकी सेब के खोल जैसे ढाँचें में ढली मांसल मजबूत छातियों पर पानी की चंद बूँदें ठहरी हुई थी... यहाँ वहाँ.. निप्पल्स दर्द से सिकुड से गये थे.. उसकी नाभि से नीचे तक का पेट किसी सिक़ुरकर बोतल के मध्य भाग की तरह ढलान और उठान लिए हुए था.. उसकी छोटी सी चिड़िया को एक तरफ फैली हुई टाँग ने प्रदर्शित कर रखा था.. उस्स बेपनाह खूबसूरत अंग के बाई और की पंखुड़ी पर बना छोटा सा कला तिल अब मनु के मर्डाने को जगा रहा था.. उसकी फाँकें बड़ी ही कोमल थी.. बड़ी ही प्यारी.. बड़ी ही मादक...
जब मनु ने उससे उठाया था तो उसको ऐसा लगा था जैसे रेशम में लिपटी कपास को उठा लिया हो.. इतनी हल्की.. मनु का नीचे वाला हाथ वाणी के पिछले उभारों को समेटे हुए था.. वाणी की आँखें बंद थी.. उसका चेहरा रोता हुआ कितना मासूम लग रहा था.. जैसे कोई 10 साल की गुड़िया हो.. पारी लोक से आई हुई..
वाणी का चेहरा याद आते ही मनु प्यारी उड़ान से अचानक वापस आया.. अंदर से कोई आवाज़ नही आ रही थी..
"वाणी..!" मनु ने उसको पुकारा..
कोई जवाब ना आने पर उसने उसके कमरे का दरवाजा खोल दिया..
"नही... प्लीज़.. यहाँ मत आओ! मुझे शरम आ रही है.. बाहर जाओ.." वाणी ने अपना चहरा टवल से धक लिया.. वाणी के लिए अब समस्या यही थी की उस्स उल्टी शर्ट वाले लड़के के मज़े कैसे लेगी...
मनु बाहर वापस आ गया.. उसने वाणी के चेहरे की मुस्कान और हया दोनो को देख लिया था.. अब वा कुछ निसचिंत था.. तभी दिशा और मानसी कमरे में आए.. दिशा ने वाणी को अंदर वाले कमरे में डुबके पाया तो जाकर उसको हिलाते हुए बोली..," चाय वग़ैरह पिलाई या नही.. मनु को!"
"नही दीदी..!"
"तू कभी नही सुधार सकती.. बेचारा तब से अकेला ही बैठा है.. चल उठ कर बाहर आजा.." दिशा ने वाणी को डांटा..
"नही दी.. मुझे नींद आ रही है.." वाणी सोच रही थी की मनु के सामने जाए तो जाए कैसे..
"खड़ी हो ले जल्दी.. चलना नही है क्या.. और ये पुराने कपड़े क्यूँ पहन लिए..?" दिशा ने वाणी को ज़बरदस्ती उठा कर फर्श पर खड़ा कर दिया...
वाणी लंगड़ाकर अपने नये कपड़ों की और चली...
"क्या हुआ वाणी..? क्या हुआ तेरे पैर को" हुल्की सी लचक देखकर ही दिशा घबरा गयी..
"कुछ नही दीदी.. वो.. गिर गयी थी..!"
"कहाँ.. कैसे?.. दिखा क्या हुआ है.." अचानक ही दिशा ने ढेरों सवाल उस पर दाग दिए..
अब तक मानसी को बोलने का मौका ही नही मिला था..," अच्छा वाणी! मैं तो तुमसे मिलने आई थी.. जल्दी आना..!"
वाणी भी जल्दी मनु को भेज देना चाहती थी.. ताकि बाहर आकर चलने की तैयारी कर सके.. अच्छा मानसी.. सॉरी! मुझे दर्द है.."

घर से निकलते ही मानसी ने मनु से पूछा..," वाणी बोली थी क्या तुमसे..?"
"ना!" मनु मन ही मन सोच रहा था.. यहाँ आकर तो बिना बोले ही वाणी ने जाने क्या दे दिया था उसको.. उसने बाइक स्टार्ट कर दी और चल पड़ा........

निशा कुल मिला कर अब तक चार बार मोमबत्ती से अपनी आग बुझाने की कोशिश कर चुकी थी.. पर आग बुझाने की बजे हर बार बढ़ जाती.. भूख तो सिर्फ़ अब आदमी ही मिटा सकता है.. सेक्स की.. अपने अंगों को खुज़ला खुज़ला कर निशा पागल हुई जा रही थी.. अब यूस्क कोई शिकारी चाहिए था.. खुद शिकार होने के लिए.. बेचैन निशा तिलमिलती हुई छत पर आ चढ़ि..
निशा की आँखों के सामने हर उस्स साख़्श का चेहरा घूम रहा था, जिसने कभी ना कभी, कहीं ना कहीं उसको दूसरी नज़र से घूरा था.. अब चाहे कोई भी हो, पर उसको अपनी चूत के लिए कोई लंड वाला दिलदार चाहिए ही था... कोई भी!
पड़ोसियों की छत की और नज़र दौड़ते हुए अचानक अपने से तीन घर छोड़ कर छत पर खाली कच्चे में खाट पर पड़े राहुल पर जा जमी.. उसका मुँह दूसरी तरफ था और वा कुछ पढ़ रहा था..
राहुल राकेश के गॅंग का निहायत ही आवारा लड़का था.. वा कॉलेज जाता तो था पर पढ़ाई करने नही, खाली बस में आते जाते लड़कियों के साइज़ की पमाइश करना.. और अगर कोई फँस जाती तो उसको शहर में किराए पर लिए हुए अपने कमरे में ले जाकर उसको कली से फूल या फूल से गुलदस्ता बना देने के लिए... निशा ने उसके बारे में काइयों से सुन रखा था...
अचानक राहुल की हरकत देखकर निशा पागल सी हो गयी...
राहुल का एक हाथ किताब खोले खोले ही अपने कच्चे में घुस गया और उपर नीचे होने लगा... निशा सीत्कार उठी.. जिस चीज़ को वो अपनी जांघों के बीच गुम कर लेना चाहती थी.. वो तो राहुल अकेला बैठा हुआ ही बाहर हिला रहा है....
निशा ने बेशर्म होकर एक छोटा सा पत्थर उठाया और उसकी खत के पास फैंक दिया.. आवाज़ सुनते ही राहुल चौंक कर पलटा.. उसका हाथ बाहर निकल आया था.. लंड को अंदर ही छोड़ कर..
जैसे ही राहुल ने पलट कर देखा.. निशा ने अपनी गर्दन घुमा ली.. पर वा मुंडेर के साथ ही खड़ी रही..
राहुल ने इधर उधर चारों और नज़र दौड़ाई.. पर निशा के अलावा उसको कोई छत पर नही दिखा...
राहुल सोच में पड़ गया.. ये आइटम तो कभी किसी के काबू में ही नही आया था.. वो खुद भी एक बार उसके हाथ से करारा तपद खा चुका था.. क्या.. सचमुच इसी ने.. नही नही... बापू तक बात पहुँच गयी तो जान से मार देगा.. ये सोचकर राहुल अपनी खाट पर वापस आकर लेट गया.. किताब उसने तकिये के नीचे रख दी.. और निशा की तरफ मुँह करके लेट गया.. बिना कोई हलचल किए.. वो रह रह कर तिरच्चि नज़रों से अपनी और देख रही निशा को ही घूरता रहा...
थोड़ी देर बाद राहुल ने कुछ सोचकर वापस मुँह दूसरी और कर लिया.. और अपने कच्चे में फिर से हाथ डाल लिया...
कुछ ही सेकेंड बाद राहुल की खत के पास एक और पत्थर आकर गिरा.. राहुल ने गौर किया.. पत्थर पिछे से ही आया था..
राहुल को अब किसी इशारे की ज़रूरत नही थी...
राहुल निशा की और मुँह करके बैठ गया और एक चादर से अपने दायें बायें को ढाका...
फिर निशा की और देखते हुए उसने अपना लंड निकाल कर उसके सामने कर दिया...
पहले जो निशा उसको तिरछी निगाहों से ही देख रही थी.. इश्स हरकत पर कूद पड़ी.. उसने सीधे उसकी और मुँह करके उसके लंड पर अपनी आँखें गाड़ा ली...
लूम्बाई का पता नही चल रहा था पर मोटा बहुत था... काले साँप जैसा.. उसके भाई से करीब 3/2 गुना मोटा... निशा का हाथ मुंडेर से नीचे अपनी चूत को छेड़ने लगा...
इस तरह बेहिचक निशा को अपनी और देखता पाकर राहुल फूला नही समा रहा था.. उसने खड़े होकर अपना कच्चा जांघों तक सरका दिया.. अब निशा की सीटी बजने की बरी थी... जिसको वो काले साँप जैसा सोच रही थी.. वो तो सच में ही कला साँप निकला.. राहुल ने अपने लंड को हाथ से उठाकर अपने पाते से लगाया था.. वो यूस्क नाभि तक छू रहा था.. निशा को पता नही क्या हुआ.. घबरा कर छत पर बने कमरे में घुस गयी...
नही वा घबराई नही थी.. अंदर जाते ही उसने सबसे पहले अपनी उखाड़ चुकी साँसों को नियंत्रण में किया और फिर दरवाजा बंद करके खिड़की खोल दी.. खिड़की से राहुल छत पर खड़ा सॉफ दिखाई दे रहा था.. पर उसका साँप पीटरे में घुस गया था.. और पिटारा आगे से बिल्कुल सीधा उठा हुआ था.. मानो निशा पर निशाना लगा रहा हो...
निशा ने अपने कमरे की लाइट जला दी.. राहुल उसको कमरे के अंदर से अपनी और देखते पाकर खुस हो गया.. उसने अपना लंड एक बार फिर आज़ाद कर दिया..
निशा सोच रही थी की उसको कैसे बताउ.. उसका साँप मुझे चाहिए है.. और जो तरकीब उसने सोची.. उसने तो राहुल के छक्के छुड़ा दिए..
निशा ने एक ही झटके में अपना कमीज़ उतार दिया.. अगर ब्रा ना होती तो राहुल को अटॅक ही आ जाता.. वो तो निशा को बंद प्रॉजेक्ट मान चुका था अपने लिए, थप्पड़ खाने के बाद.. आज ये घटा उस्स पर कैसे बरसी.. लाइट में राहुल निशा की नाभि से उपर का ढाँचा अपनी आँखों से देखकर व्याकुल हो उठा.. उसने अपनी आँखें मसली.. मानो फोकस चेंज करके सीधा निशा के पास ले जाना चाहता हो... अपनी नज़रों को... पर दूर से भी नज़ारा घायल करने लायक तो था ही.. निशा ने अपने हाथ अपनी ब्रा में फँसा लिए थे.. इशारा राहुल को सपस्त था.. की उसको क्या चाहिए...
राहुल को अपनी और पागलों की तरह देखता पाकर निशा के हॉंसले और बढ़ गये... उसने ब्रा के बाट्टों खोल दिए और अपनी गोरी, गोलाइयों के साक्षात दर्शन ही राहुल को करा दिया..
राहुल का हाथ मशीन की तरह अपने लंड पर चलने लगा.. वा बिना टिकेट मिले इस मौके का हाथों हाथ फयडा उठा रहा था..
राहुल के लगातार फूल रहे लंड को देखकर निशा सिहर गयी... उसकी उंगली भी बिना बताए ही अपने काम पर जुट गयी.. उसका दूसरा हाथ निशा की चूचियों को बारी बारी हिला रहा था... दबा रहा था.. और मसल रहा था...
राहुल के लंड से तेज पिचकारी सी निकल कर उससे करीब 2 फीट दूर रस की बोचर फर्श पर जा गिरी... राहुल मस्ती और रोमांच की अधिकता में सीधा खाट पर जा गिरा... पर निशा तो अब भी भूखी ही रह गयी... उसने उसी वक़्त एक कागज पर कुछ लिखा और अपने कपड़े पहन कर बाहर निकल आई.. कागज को एक पत्थर में लपेटा और राहुल वाली छत पर फाँक दिया...
राहुल ने पर्चा खोला.. उसकी लॉटरी निकली थी.. आज रात 11 बजे की.. निशा के उपर वाले कमरे में..
राहुल ने निशा की और एक किस उछली और अपने कमरे में चला गया... निशा भी रात के इंतज़ार में खुश होकर नीचे चली गयी...

राहुल ने राकेश के पास फोने मिलाया," आबे साले! तुझे ऐशी खबर सूनवँगा.. की तेरा लंड खड़ा हो जाएगा..."
"और तेरी मा की गांद में घुस जाएगा.. आबे.. अपने बाप से तमीज़ से बात किया कर.. आज कल खड़ा ही रहता है अपना.. साली कोई मिलती ही नही... बैठने वाली.." राकेश ने बात पूरी की..
"आब्बी.. सुन तो ले.. तेरी गंद ना फट जाए तो मुझे कह देना..." राहुल उत्तेजित होकर बोल रहा था..
"अच्छा.. तो ले फाड़ मेरी गांद.. देखूं.. तेरे लौदे में कितना दूं है...?"
"आज तेरी नही.. निशा की गांद फाड़ेंगे.. 11 बजे बुलाया है.. रात को!"
"क्य्ाआआआ!" सच में ही फट सी गयी थी राकेश की.

शमशेर ने वाणी को सारे रास्ते गुमसूँ बैठे देख पूछा," क्या बात है मेरी जान! आज ये फूल मुरझाया सा क्यूँ है?"
वाणी कुछ ना बोली, बाहर की और मुँह करके उल्टे भाग रहे पेड़ों को देखने लगी...
गाँव आ गया था.. गाड़ी की रफ़्तार मंद हो गयी..
वाणी और दिशा कितने दीनो से घर आने की राह देख रही थी.. उत्साह तो वाणी में अब भी था.. पर मनु उसके दिमाग़ से निकालने का नाम ही नही ले रहा था.. आख़िर उसने निर्वस्त्रा वाणी को अपनी गोद में जो उठाया था...
गाड़ी के घर के बाहर पहुँचते ही वाणी की मम्मी भागी हुई आई.. और वाणी और दिशा के नीचे उतरते ही दोनो को अपनी छाती से लगा कर सूबक पड़ी.. यूँ तो वो 2 टीन बार शहर जाकर उनसे मिलकर आ चुकी थी.. पर उनको घर आया देख उसकी पूरण यादें ताज़ा हो गयी," क्या हो गया मेरी लड़ली को.. ऐसे क्यूँ खोई सी है.. क्या अब शहर के बिना दिल नही लगता तेरा.." मम्मी ने वाणी के वीरान से चेहरे को देखकर कहा...
"मामी जी ये उपर कैसा म्यूज़िक बाज रहा है...?"
उपर चल रहे लता राफ़ की आवाज़ में मधुर गीत को सुनकर दिशा ने मामी से हैरत में पूछा...
"बेटी! ये तुम्हारे स्कूल के नये मास्टर जी हैं.. अंजलि मेडम के कहने पर हुँने सोचा, चलो ख़ालीपन तो नही रहेगा घर में.. बहुत ही शरीफ और नएक्दील लड़का है बेचारा.... मम्मी ने शमशेर को पानी देते हुए कहा...
"मैं मिलकर आता हूँ... कहकर शमशेर खड़ा हो गया..
"मैं भी चलूं..." शमशेर की बाँह पाकर कर वाणी बोली...
"तू अब भी इनकी पूंछ ही बनी रहती है क्या?" मम्मी ने हंसते हुए वाणी को कहा...
वाणी बिना कोई जवाब दिए शमशेर के साथ उपर चढ़ गयी...
शमशेर ने उपर जाकर दरवाजा खटखटाया...
"ठहरिए... अभी आता हूँ 10 मिनिट में...
शमशेर ने वाणी की और देखा और दोनो हंस पड़े...," कैसी गधे की दूं है... दरवाजा खोलने में 10 मिनिट लगाएगा...

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