मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी भाग-59
स्नेहा की जगह उसकी मादक साँसों से जवाब मिलता देख विकी बेकाबू हो गया," अगर मैं तुम्हे छू लूँ तो तुम्हे कोई दिक्कत तो नही है.....
छ्छू तो रखा था.. और कैसे च्छुना चाहता है.. सुनकर स्नेहा का अंग अंग चरमरा उठा... बोली कुच्छ नही; बस अपने हाथ से उपर सरकती जा रही स्कर्ट की सिलवटें दूर की और शरम से निहाल होकर अपना चेहरा तकिये में च्छूपा लिया... ये अदा... इशारा ही तो था!
"बोल ना... अब क्यूँ शर्मा रही है... मैं तुम्हे पसंद हूँ ना?" सब कुच्छ जानते हुए भी विकी अभी तक भी संयम का परिचय दे रहा था...
"मुझे नही पता... गुदगुदी हो रही है...!" लज्जा और शुकून की गहरी साँस छ्चोड़ते हुए सानू एक दम सिमट सी गयी और अपनी उपर वाली टाँग घुटने से मोड़ कर आगे की तरफ खींच ली...
उफफफफ्फ़... ऐसा करने से एक अच्छे ख्हासे तरबूज के बीच की एक फाँक निकाल देने जैसे आकर के उसके गोलाकार नितंब उभर आए... 2 मिनिट पहले ही खींच कर ज़बरदस्ती नीचे की गयी उसकी स्कर्ट फिर से सिकुड गयी... विकी का दमदार हथ्हियार सही जगह से थोड़ा सा पिछे बुरी तरह तननाया हुआ तैनात था...
विकी उसकी गोरी जांघों से और उपर का दीदार करने को लालायित हो उठा... तरीका एक ही था.. अपना तकिया उठाया और स्नेहा के पैरों की और रखकर लेट गया..," मैं उस तरफ लेट रहा हूँ... इधर बाजू में दर्द हो रहा है..."
उस वक़्त विकी के दूसरी और सिर करके लेटने का असली कारण स्नेहा ना समझ पाई... चुभन का मीठा सा अहसास अचानक गायब होने से स्नेहा तड़प सी उठी.. सिर उठाकर एक बार विकी को घूर कर देखा; फिर गुस्सा सा दिखाती हुई अपने सिर को झटक कर वापस लेट गयी.....
स्कर्ट के नीचे से लुंबी, गड्राई, गोरी और मांसल जांघों की गहराई में झाँकते ही विकी के चेहरे पर जो भाव उभरे वो अनायास ही किसी अंधे को दिखने लग जाए; ऐसे थे.. आँखें बाहर निकल कर गिरने को हो गयी..," उम्म्म्म.. मैं इसको छ्चोड़ने की सोच रहा था.. हे राम!" विकी मंन ही मंन बुदबुडाया...
घुटना मुड़ा होने की वजह से स्नेहा की स्कर्ट के नीचे पहनी हुई सफेद पॅंटी का सपस्ट दीदार हो रहा था.. जांघों से चिपकी हुई पॅंटी पर बीचों बीच एक छ्होटा सा गुलाबी फूल बना हुआ था.. जो गीला होकर और भी गाढ़ी रंगत पा चुका था.. निचले हिस्से में पॅंटी योनि की फांकों का हूबहू आकर प्रद्राशित कर रही थी... उत्तेजना के कारण दोनो फाँकें आकड़ी हुई सी थी... और पॅंटी उनके बीच हुल्की सी गहराई लिए हुए थी...
" स्नेहा!" विकी लरजती हुई सी आवाज़ में बोला...
स्नेहा ने कोई उत्तर ना दिया...
विकी पॅंटी के उतार चाढ़वों में इतना उलझा हुआ था की दोबारा पुकारना ही भ्हूल गया....
"क्या है?" विकी की तरफ से फिर आवाज़ आने की प्रतीक्षा करके करीब 3-4 मिनिट के बाद अचानक स्नेहा बैठ गयी," बोलो ना.. क्यूँ परेशान कर रहे हो...
"क्कुच्छ नही... क्या..." विकी को लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो.... जैसे अभी डाँट पड़ेगी... प्यार भरी...
"क्यूँ.. अभी तो पुकारा था.. मेरा नाम...!" थोड़े से झिझकते हुए स्नेहा ने भी अपना सिर विकी की और ही कर लिया और लेट गयी.......
"बोलो ना! क्या कह रहे थे मोहन?" स्नेहा ने अपना हाथ विकी के हाथ पर रख दिया..
"कुच्छ नही... बस... पता नही क्यूँ बेचैनी सी हो रही है... नींद नही आ रही.." विकी ने अपने हाथ को छुड़ाने की इस बार कतई कोशिश नही की..
"हूंम्म्म.. मैं कुच्छ करूँ...?" विकी की नज़रों को अपने अंदर घुसने की कोशिश करते देख स्नेहा बाग बाग हो गयी..," आइ मीन... सिर दबा दूं.. या कुच्छ और"
बातों ही बातों में स्नेहा ने अपना घुटना आगे करके विकी की जाँघ से सटा दिया... घुटने से करीब 4 इंच उपर स्नेहा की जाँघ पर काला सा तिल था...
"नही.. कुच्छ नही.. एक बात बोलूं सानू!" विकी की आवाज़ में अजीब सी खुमारी भर गयी थी...
"पुछ्ते क्यूँ हो? कुच्छ भी बोलो ना...!" स्नेहा की हालत भी बस डाँवाडोल ही थी.. बस इशारा करने की देर थी...
"उम्म्म्मम..." विकी ने बात कहने से पहले पूरा समय लिया," तुम्हारी जांघें बहुत सुंदर हैं... अब मेरी क्या ग़लती है जो मैं वहाँ इनको छ्छूने से अपने आपको रोक नही पाया...
दिल में तो स्नेहा के भी कुच्छ ऐसे ही अरमान थे.. पर विकी को सीधा हमला करते देख वो हड़बड़ा गयी... बिना वक़्त गँवायें हाथ नीचे ले जाकर अपनी स्कर्ट को नीचे खींचने की कोशिश की.. पर वह तो थी ही छ्होटी... अपनी अमानत को च्छूपा पाने में सफल ना होने पर स्नेहा ने अपना हाथ उपर लाकर विकी की आँखों पर रख दिया," ऐसे क्यूँ देख रहे हो! मुझे शरम आ रही है..." और अपना हाथ वहीं रखे रही.. विकी ने भी हटाने की कोशिश ना की.. उसके होंठो पर अजीब सी मुस्कान तेर गयी.....
"क्या है?" विकी को हंसते देख स्नेहा पूच्छ बैठही," अब हंस क्यूँ रहे हो?"
"मैं तुम्हे समझ नही पाया सानू.. एक तरफ तो तुम इतनी बोल्ड हो.. और दूसरी तरफ इतनी शर्मीली.. इतनी....." विकी बोला....
"आए.. मैं कोई शर्मीली वारमीली नही हूँ.. हाआअँ! मैं तो बड़ी मुँहफट हूँ.. जो जी मैं आए कह देती हूँ.. जो जी मैं आए कर लेती हूँ... मैं किसी बात से नही डरती... समझे मिस्टर्र्र्ररर..!"
"अच्च्छा.. ऐसा है तो मेरे लिप्स पर किस करके दिखाओ... मान लूँगा की तुम शर्मीली नही हो..!" विकी ने पासा फैंका...
स्नेहा को तो मानो मॅन माँगी मुराद मिल गयी.. कितनी देर से उसके होंठ अपनी मिठास बाँटने को व्याकुल थे.. प्यासे थे.. पर उसके लिए पहल करना आसान भी नही था....," यूँ मैं इतनी बेशर्म भी नही हूँ...!" विकी की आँखों पर उसके कोमल हाथो का परदा होने के बावजूद वह अपनी आँखें खुली ना रख पाई.. पर आवेश में उसके दाँतों ने नीचे वाले होंठ को काट खाया....
"इसमें बेशरम होने वाली क्या बात है.. अगर मैं तुम्हे अच्च्छा लगता हूँ.. और तुम इतनी बोल्ड हो तो इतना तो कर ही सकती हो.." विकी के होंठो पर अब भी शरारती मुस्कान तेर रही थी....
"तूमम्म.... तुम कर लो.. बात तो एक ही है..!" कहकर स्नेहा ने विकी के चेहरे से हाथ हटाया और शरम से गुलाबी हो चुके अपने चेहरे को ढक लिया...
"मैं.. मैं तो कुच्छ भी कर सकता हूँ.. मेरा क्या है.. मैं तो मर्द हूँ...!" विकी ने कहा और अपने हाथ से पकड़कर उसके हाथो को चेहरे से जुदा कर दिया...
स्नेहा की साँसों में गर्मी आनी एक बार फिर शुरू हो गयी थी... आँखें बंद थी.. और होंठ धीरे धीरे काँप रहे थे," तो कर के दिखाओ ना.."
अब विकी कहाँ शरमाता.. झट से अपना चेहरा आगे किया और स्नेहा का उपर वाला होंठ अपने होंठो में दबा लिया.. और चूसने लगा.. स्नेहा की हालत खराब हो गयी.. साँसे धौकनी की तरह चलने लगी.. आख़िर में जब शरम और संयम की सारी हदें पार हो गयी तो स्नेहा के हाथ अपने आप विकी के चेहरे पर चले गये और उसने विकी के नीचे वाले होंठ को अपने होंठो में दबा लिया... और अपनी पकड़ मजबूत करती चली गयी...
बहुत ही रसभरा दृश्या था.. होंठो को एक दूसरे की क़ैद में लिए विकी और स्नेहा हर पल पागल से होते चले गये.. जैसे सब कुच्छ आज ही निचोड़ लेंगे.. स्नेहा की टाँग किसी अनेइछिक मांसपेशी की तरह काम करती हुई विकी की कमर पर चढ़ गयी.. दोनो एक दूसरे से जोंक की माफिक चिपके हुए थे.. स्नेहा की चूचियाँ विकी की ठोस छाती में गढ़ी हुई थी.. पर इश्स वक़्त किसी को होंठों से ही फ़ुर्सत नही थी...
अचानक स्नेहा को लगा जैसे वह कहीं उँचाई से नीचे गिर रही है.. उसका सारा बदन सूखे पत्ते की तरह काँप उठा और महसूस हुआ जैसे उसका पेशाब निकल गया...
कहीं दूसरे लोक की सैर करके वापस आई स्नेहा एकदम से ढीली पड़ गयी और एक झटके के साथ विकी से दूर हो गयी...
वह सीधी हो गयी थी.. टाँगों को एक दूसरी के उपर चढ़हा लिया था.. और अपनी चूचियों पर हाथ रखकर उनको शांत करने की कोशिश कर रही थी...
वह कुच्छ ना बोली.. 4-5 मिनिट के असीम लूंबे इंतज़ार के बाद विकी को ही चुप्पी तोड़नी पड़ी..," क्या हुआ..?"
"कुच्छ नही..एक मिनिट" स्नेहा ने कहा और उठकर बाथरूम में चली गयी...
विकी इसी ताक में था.. झट से अपना फोन वीडियो रेकॉर्डिंग पर सेट किया और बेड की तरफ अड्जस्ट करके टेबल पर अश्-ट्रे के साथ रख दिया...
स्नेहा करीब 7-8 मिनिट बाद वापस आई... बाहर निकली तो विकी उसको देखकर मुस्कुरा रहा था...
"क्या है.. ? क्यूँ हंस रहे हो?" स्नेहा ने अपने बॅग को टटोलते हुए पूचछा...
बॅग से 'कुच्छ' निकल कर वापस जा रही स्नेहा का विकी ने हाथ पकड़ लिया," क्या ले जा रही हो.. यूँ छुपा कर"
"कुच्छ नही.. छ्चोड़ो ना.." स्नेहा ने दूसरा हाथ अपनी कमर के पिछे छुपा लिया..," छ्चोड़ो ना.. प्लीज़!"
"बताओ तो सही.. ऐसा क्या है..?" विकी ने उसको अपनी तरफ खींच कर उसके दूसरे हाथ को पकड़ने की कोशिश की...
"आआह.." सिसकारी स्नेहा के मुख से निकली थी.. विकी ने उसके हाथ को पकड़ने की कोशिश में अंजाने में ही नितंब पकड़ लिया.. पहले से ही कमतूर स्नेहा के नितंब थिरक उठे.. वासना उसके चेहरे पर उसकी आ के साथ छलक उठी.. गीली हो चुकी पॅंटी को वो बाथरूम में निकल आई थी.. इसलिए स्पर्श और भी अधिक आनंदकारी रहा... हाथों में जैसे जान बची ही नही और पहन-ने के लिए लेकर जा रही 'दूसरी' पनटी उसके हाथ से छूट कर फर्श पर जा गिरी...
"श.. सॉरी!" कहकर विकी ने अपना हाथ एक दम वापस खींच लिया.. पर करारे नितंब की गर्मी उसको अब भी महसूस हो रही थी... फर्श पर पड़ी पॅंटी को देखते ही उसको माजरा समझने में देर ना लगी..," सॉरी.. वो.. मैं..."
आगे स्नेहा ने उसकी कुच्छ ना सुनी.. शरमाई और सकूचाई सी स्नेहा ने झुक कर अपनी पॅंटी उठाई और बाथरूम में भाग गयी...
वापस आने पर भी वह लज़ाई हुई थी.. दोनो को पता था.. अब सब कुच्छ होकर रहेगा.. पर विकी इन्न पलों को रेकॉर्ड कर रहे होने की वजह से स्नेहा की पहल का इंतजार कर रहा था... और स्नेहा शर्म की चादर में लिपटी विकी का इंतजार करती रही... अपना 'घूँघट' उठ वाने के लिए.. यूँही करीब 15 मिनिट और बीत गये...
"तुमने आज से पहले किसी लड़की को ऐसे किया है?" स्नेहा से ना रहा गया...
"कैसा?" विकी ने भोला बनते हुए कहा..
"ऐसा.. जैसा आज मेरे साथ किया है...!" स्नेहा ने अपना चेहरा दूसरी और घुमा लिया...
"उम्म्म.. नही..! कभी नही.." क्या झूठ बोला विकी ने!
"पता नही.. मुझे कैसा लग रहा है.. शरीर में कुच्छ अजीब सा महसूस हो रहा है.." स्नेहा अब भी नज़रें च्छुपाए हुए थी...
"कैसा.. कुच्छ गड़बड़ है क्या.. ? क्या हो गया सानू..?" विकी ने भोला बनते हुए कहा..." कहते हुए विकी ने उसके कंधे पर हाथ रख लिया...
" पता नही.. पर जब भी तुम मुझे छूते हो तो पता नही कैसा महसूस होता है....?"
"कहाँ..?"
"हर जगह... जहाँ भी छूते हो.. कहीं भी हाथ लगाते हो तो लगता है जैसे..." स्नेहा बीच में ही चुप हो गयी..
"कैसा लगता है? बताओ ना.. मुझे भी बहुत मज़ा मिलता है तुम्हे छ्छू कर.. तुम्हे भी मज़ा आता है क्या..?" विकी ने उसके कहने के मतलब को शब्द देने की कोशिश की....
"हूंम्म..." दूसरी और मुँह किए लेटी स्नेहा ने अपनी चिकनी जांघों के बीच जैसे कुच्छ ढ़हूंढा और अपनी जांघें कसकर भीच ली...
"छुओ ना एक बार और..! मज़ा आता है.. बहुत!"
"कहाँ पर.. बताओ...... बोलो ना..?" विकी ने कंधे पर रखा अपना हाथ सरका कर उसकी कमर पर रख दिया...
"जहाँ तब लगाया था...!"
"कब..?"
"अब बनो मत... जब मैं खड़ी थी.. अभी.. बाथरूम जाने से पहले..!" स्नेहा के मुँह से एक एक शब्द हया की चासनी में से छन कर बाहर निकल रहा था..
"यहाँ..?" कहकर विकी ने अपना हाथ कमर से उठाकर उसके गोल नितंब पर जमा दिया... उसकी हथेली स्नेहा की पॅंटी के किनारों को महसूस कर रही थी.. और उंगलियाँ हाथ लगते ही कस सी गयी उसकी मस्त गान्ड की दरारों के उपर थी...
"आआआः.... हाआँ.. " स्नेहा एकद्ूम से उचक कर कसमसा उठी...
"तुम्हारी 'ये' बहुत प्यारी है सानू!"
"क्या?" मुस्किल से अपने को संभालती हुई स्नेहा पूच्छ बैठी.. पता होने के बावजूद...
विकी समझा नाम पूच्छ रही है..," तुम्हारी.. गान्ड!"
"छ्ह्ही.. क्या बोल रहे हो..? मैने कोई नाम लेने को थोड़े ही बोला था..." नाम में भी क्या जादू था.. सुनते ही स्नेहा पिघलने सी लगी...
"सॉरी.. ये.." कहते हुए विकी ने उसके मोटे खरबूजे जैसे दायें नितंब पर अपने हाथ की जकड़न बढ़ा दी... रसीले आनंद की मीठी सी लहर स्नेहा में दौड़ गयी.. आनंद से दोहरी सी होकर उसने अपने नितंबों को कस लिया.. और ढीला छ्चोड़ दिया...
"अयाया.. बहुत मज़ा आ रहा है.. और करो ना..!" स्नेहा धीरे धीरे खुलती जा रही थी....
"मज़ा तो मुझे भी बहुत आ रहा है... तुम लोग इसको क्या बोलते हो???
"नही.. में नही लूँगी.. मुझे शरम आ रही है....!"
"शरम करने से क्या मिलेगा.. अगर नाम लोगि तो और मज़ा आएगा.. लेकर तो देखो.." विकी ने पॅंट के अंदर फदक रहे अपने 'यार' को मसल कर 'प्लान' की खातिर कुच्छ देर और सब्र करने की दुहाई दी..
"नही.. मुझसे नही होगा.. तुम ले लो.. मैं नही रोकूंगी.."
"क्या ले लूँ... इसका नाम?" कहते हुए विकी ने उंगलियों को कपड़ों के उपर से ही उसकी गांद की दरार में फँसा सा दिया.. और वहाँ पर हल्क हल्क कुच्छ कुरेदने सा लगा...
"अयाया.. बहुत मज़ा आ रहा है.. मैं तो मर ही जाउन्गि.. " कहते हुए स्नेहा ने अपनी गांद को और बाहर की और निकाल दिया.. लग रहा था जैसे वह बिस्तेर से उठाए हुए है...
"नाम लेकर तो देखो.. कितना मज़ा आएगा.." अब विकी का हाथ शरारत करते हुए स्कर्ट के नीचे घुस गया और पॅंटी के उपर से बारी बारी 'दोनो' को सहलाने लगा.. रह रह कर उसका हाथ स्नेहा की नंगी रानो को स्पर्श कर रहा था...
"ले लूँ..?" स्नेहा की साँसें फिर से तेज हो चली थी..," हँसना मत..!"
"हँसूँगा क्यूँ.. देखना फिर तुम्हे मैं एक सर्प्राइज़ दूँगा...!"
"उम्म्म.. हम होस्टल में इसको वो नही कहते.. हम तो......" स्नेहा की साँसे तेज होती जा रही थी...
"तो क्या कहती हो...?"
"बट्स!" स्नेहा ने बावली सी होकर अपनी गांद को पिछे सरका दिया.. विकी की तरफ.. वह हाथ को और भी अंदर महसूस करना चाहती थी...
"नही.. हिन्दी में बताओ..!" विकी का हाथ अब खुल चुकी जांघों के बीच खुला घूम रहा था.. पर पॅंटी के उपर से ही...
"वो.. हम बोलते नही हैं.. पर मुझे एक और नाम पता है.... हाई राम!" स्नेहा की जांघों में लगातार हुलचल हो रही थी...
"बताओ ना.. मज़ा आ रहा है ना..?"
"हां.. बहुत! इनको चू.. ताड़ भी कहते हैं ना...." स्नेहा नाम लेते हुए उस हालत में भी हिचक रही थी....
"हाए सानू.. मज़ा आया ना.. तुम्हारे मुँह से नाम सुनकर मुझे तो बहुत आया.." कहते हुए विकी अपनी एक उंगली को पॅंटी के उपर से ही योनि पर रगड़ने लगा...
"आ.. बहुत.. मज़ा आ रहा है... करते रहो.... आअहह.. मुंम्म्मी!"
"पर मज़ा तो आगे है.. अगर तुम इजाज़त दो तो!" विकी अपना हर शब्द नाप तौल कर बोल रहा था...
"हां.. करो ना.. प्लीज़.. मुझे और भी मज़ा चाहिए... कुच्छ भी करो.. मेरी जान ले लो चाहे.. पर ये तड़प सहन नही होती.. आआअहह.. तेज नही.. सहन नही होती.." स्नेहा बावरी सी हो गयी थी.... अचानक पलट कर विकी की छाती से चिपक गयी...
"चलो.. निकालो कपड़े..." विकी ने लोहा गरम देखकर चोट की...
"पर...........!" स्नेहा सब समझती थी.. हॉस्टिल में लड़कियों में अक्सर ऐसे किससे बड़े चाव से सुने सुनाए जाते थे.. पर ये राज उसने ना उगला,".. पर कपड़े निकाल कर क्या करोगे.. मुझे शरम आ रही है...!"
"शरमाने से क्या होगा?",विकी ने स्नेहा का हसीन चेहरा अपने हाथो में ले लिया," जब उपर से इतना आनंद आ रहा है तो सोच कर देखो... जब हमारे बदन बिना किसी पर्दे के एक दूसरे के शरीर से चिपकेंगे तो क्या होगा... शरम करोगी तो बाद में हम दोनो पछ्तायेन्गे... ना ही तुम्हे और ना ही मुझे फिर कभी ऐसा मौका मिलेगा... सोच लो.. मर्ज़ी तुम्हारी ही है...!"
स्नेहा पलकें झुकाए विकी की हर बात को अपने दिल के तराजू में तौल रही थी..," पर कुच्छ हो गया तो??"
"क्या होगा? कुच्छ नही.. तुम खम्ख्वह घबरा रही हो....!"
"बच्चा...!" कहते हुए स्नेहा की धड़कन तेज हो गयी...
"अरे.. बच्चा ऐसे थोड़े ही हो जाता है... तुम भी ना सानू....!" विकी मरा जा रहा था....
"पर मैने तो सुना है की जब लड़का और लड़की नंगे होकर 'कुच्छ' करते हैं तो बच्चा हो जाता है..." स्नेहा ने एक बार अपनी पलकें उठाकर विकी की आँखों के भाव परखे...
"हे भगवान.. कितनी भोली है तू... जब तक हम नही चाहेंगे.. बच्चा थोड़े ही होगा.. वो तो 'करने' से होता है..."
"क्या करने.. ओह.. लगता है मेरा मोबाइल बज रहा है... बॅग में..!" स्नेहा ने उतने की कोशिश की तो विकी ने उसको पकड़ लिया," रहने दे सानू.. बाद में देख लेंगे...
"नही... पापा का फोन हो सकता है.. मैं एक बार देखती हूँ..." कहकर स्नेहा उठकर टेबल के पास चली गयी," अरे हां.. पापा का ही है... क्या करूँ...?"
"फोन मत उठाना.. देख लो सानू.. मैने पहले ही कहा था.."
पर असमन्झस में खड़ी स्नेहा ने फोन उठा ही लिया और कान से लगा लिया," पापा...!" उसकी आँखों में कड़वाहट भरे आँसू आ गये.... उसने मुँह पर उंगली रख कर विकी को चुप रहने का इशारा किया.... और रूम से बाहर निकल गयी....
विकी का तो एकदम मूड ही ऑफ हो गया.. अब उसकी पोल खुलनी तय थी... ' साली का रेप ही करना पड़ेगा अब तो..' मन ही मन विकी उबल पड़ा.. जल्दी जल्दी में एक पटियाला पैग बनाया और अपने गले में उतार लिया...
"बेटी... कहाँ हो तुम... ठीक तो हो ना... मेरी तो जान ही निकाल दी तूने बेटी....." मुरारी की आवाज़ लड़खड़ा सी रही थी.. दारू के नशे में....
"जहाँ.. आपने भेजा है.. वहीं हूँ पापा... आपने एक बार भी ये नही सोचा...." स्नेहा की आवाज़ में रूखापन भी जायज़ था.. और गुस्सा भी....
"क्या??? तुम मोहन के साथ हो..... सच!" मुरारी के आसचर्या का ठिकाना ना रहा..
"मुझे 'किडनॅप' करने वालों ने तो बहुत कोशिश की.. पर मेरा 'मोहन' ही था जो मुझे सही सलामत बचा लाया..." स्नेहा ने 'किडनॅप' और 'मेरा मोहन' शब्दों पर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर दिया.. पर मुरारी उसके व्यंगया को समझ ना पाया...
अपनी जवान बेटी के मुँह से ड्राइवर के नाम के साथ 'मेरा' शब्द जोड़ना मुरारी को गंवारा नही हुआ... किसी भी बाप को ना होता.. अपने दाँत पीसते हुए गुर्राया," कहाँ है वो हरामजादा.. बात कराना मेरी.. फोन भी ऑफ कर रखा है... मादार.. तू मेरी बात करा उस'से..."
स्नेहा खून का घूँट पीकर रह गयी.. उसको अपने पापा का गुस्सा अपनी असफलता पर खीज का परिणाम लगा..," वो इश्स वक़्त यहाँ नही है...? उसके फोन की बॅटरी ऑफ है..."
"पर तुमने भी फोन नही उठाया बेटी.. मैं यहाँ कितना परेशान हो रहा था.. "
"हां.. मेरा फोन साइलेंट पर था..." स्नेहा ने रूखा सा जवाब दिया...
"मेरी तो जान में जान आ गयी बेटी.. पर जो होता है अच्छे के लिए ही होता है.. तू कहाँ है अभी..?" मुरारी के दिमाग़ में भी इश्स 'किडनॅपिंग' की झूठी खबर से फ़ायदा उठाने की उठापटक चल पड़ी... उसने मीडीया को दिए अपने बयानों में मुखिया और विकी पर जो अनाप-शनाप आरोप लगाए थे.. अब उसकी किरकिरी होने वाली थी... अगर ये बात सामने आ गयी की किडनॅपिंग हुई ही नही...," बता ना बेटी.. कहाँ है अभी तू..."
"जहाँ पर भी हूँ... ठीक ही हूँ.. आप चिंता ना करें.. आपकी बेटी अब बड़ी हो गयी है.. सब समझती है..." स्नेहा के हर बोल में बग़ावत थी...
मुरारी को स्नेहा का अंदाज अजीब सा लगा.. पर इश्स वक़्त तो वो किन्ही और ही ख़यालों में खोया हुआ था...," ओके बेटा.. जहाँ भी है.. ऐश कर... बस एक बात का ध्यान रखना.. जब तक मैं ना कहूँ.. वापस मत आना.. और अपनी पहचान च्छूपा कर रखना..."
"आपने ऐसा क्यूँ किया पापा.. अपनी अयाशियों के लिए मुझे हमेशा घर से दूर रखा और अब कुर्सी के लिए मुझे ही दाँव पर लगा दिया..." स्नेहा कहते हुए भभक कर रो पड़ी...
मुरारी एक पल के लिए शर्मिंदा हो गया... पर राजनीति के उल्टे घड़े पर शरम का पानी कब तक ठहरता....," बेटी.... मैं तुम्हे सब समझा दूँगा.. बस ध्यान रखना मेरे कहे बिना वापस मत आना.. कहीं दूर निकल जा...!"
"मैं वापस कभी नही आउन्गि पापा..!" स्नेहा ने रोते हुए कहा और गुस्से में अपना फोन ज़मीन पर दे मारा... फोन टूट गया....
अपने आँसू पौंचछते हुए स्नेहा अंदर घुसी ही थी की विकी को देखकर चौंक पड़ी," ये... ये क्या कर रहे हो...?"
विकी जल्दी जल्दी आधी बोतल गटक चुका था.. अब वो अपना प्लान बदलने की तैयारी में था.. फोन से की गयी रेकॉर्डिंग उसने डेलीट कर दी थी...," दिखता नही क्या? शराब पी रहा हूँ..." स्नेहा को अब वह ऐसे घूर रहा था जैसे भाड़े पर लाया हो.....
स्नेहा को लगा वो नशे में बहक गया है.. ऐसा में उसको विकी का अजीबोगरीब जवाब भी बड़ा प्यारा लगा.. वह अपने आपको खिलखिलाकर हँसने से ना रोक सकी...
"हंस क्यूँ रही है...?" विकी को अब उस'से किसी अपनेपन की उम्मीद ना थी.. इसीलिए हैरान होना लाजिमी ही था... वह गिलास रखकर खड़ा हो गया...
"तुम्हारी शकल देखकर हंस रही हूँ.. लग ही नही रहा की तुम पहले वाले 'मोहन' हो.. ऐसे क्या देख रहे हो अब...? मैने पापा को नही बताया की हम कहाँ है.. और ना ही ये की मुझे तुमने सब कुच्छ बता दिया है... नाराज़ क्यूँ हो रहे हो.." कहते हुए स्नेहा अपने दोनो हाथ बाँधकर उसके सामने जाकर खड़ी हो गयी...
"क्या?.. बात हो गयी तुम्हारे पापा से... क्या कह रहे थे...?" विकी की जान में जान आ गयी..
स्नेहा मायूस हो गयी.. कुच्छ देर चुप रहकर बोली," कहना क्या था.. कह रहे थे.. जब तक मैं ना कहूँ.. वापस मत आना... तुम्हारा सोचना सही निकला मोहन.. वो मुझे 'यूज़' कर रहे हैं...."
" तो... तुमने क्या सोचा है फिर...?" विकी मॅन ही मॅन उच्छल पड़ा...
" मैं कभी वापस नही जाउन्गि... ?" स्नेहा ने अपने इरादे जता दिए....
" तो फिर?..... और कहाँ जाओगी..?" विकी ने उसको हैरानी से देखा...
स्नेहा कुच्छ ना बोली.. बस पलकें उठाकर विकी की आँखों में आँखें गढ़ा ली.. और जाने किस गहराई में उतर गयी... जैसे वहीं अपना संसार ढ़हूंढ रही हो...
काश विकी उसके दिल के इरादे जान गया होता," अब क्या हुआ...?"
" कुच्छ नही...!" स्नेहा ने हौले से कहा और आगे बढ़कर विकी की छाती से लिपट गयी.. अपनी दोनो बाहें उसकी कमर में डालकर...
शराब और शबाब से मस्त हो चुका विकी अब कहाँ चुप रहने वाला था.. अपने हाथो को स्नेहा के पिछे ले जाकर उसकी मस्त गांद को सहलाने लगा... स्नेहा ने सिर उठाकर विकी की आँखों में आँखें डाल ली... विकी भी बिना पालक झपकाए स्नेहा को देखते हुए उसकी गांद को दबाता हुआ उसको अपनी तरफ खींचने लगा... स्नेहा की साँसे विकी के फैफ़ड़ों से होती हुई उसके खून को गरम करने लगी.. स्नेहा पर एक बार फिर से मस्ती छाने लगी.. आँखें बंद होने लगी... जैसे ही विकी ने अपना सिर थोड़ा सा नीचे झुकाया; स्नेहा अपनी आइडियों के बल खड़ी हो गयी और होंठो के बीच की दूरी को नाप दिया....
अपने रसीले होंठों को विकी के होंठों में और 38" की उन्छुयि गांद को उसके हाथो बेदर्दी से रगडे जाने पर स्नेहा ज़्यादा देर तक आपे में ना रह सकी," उम्म्म्मम... आआआआहह!" अपने होंठों को बड़ी मुश्किल से विकी की 'क़ैद' से आज़ाद करा स्नेहा ने लुंबी और गहरी सिसकारी ल्ली.. विकी के हाथ उसकी स्कर्ट को उपर उठा उसकी पॅंटी में घुस चुके थे.. और विकी लगातार अपनी उंगलियों का जादू उसकी गांद की दरार में गहराई तक दिखा रहा था.. स्नेहा की टाँगें अपने आप ही खुल गयी थी..
अगले हिस्से में विकी के हथ्हियार की लंबाई को अपनी जांघों के बीच महसूस करके तो स्नेहा फिर से सातवें आसमान पर जा बैठही... वह उस'से 'खुद को बचाना भी चाहती थी.. और दूर भी नही होने देना चाहती थी.. विकी ने जैसे ही पिछे से उसकी गांद की फांकों में अपने हाथ फँसा कर उसको उपर खींचा तो वह फिर से एडियीया उठाने को मजबूर हो गयी... साँसों की गर्माहट और सिसकियों की कसमसाहट बढ़ती ही जा रही थी... विकी ने उसको इसी हालत में उपर उठा लिया और ले जाकर बेड पर लिटा दिया.. स्नेहा की आँखें खुल ही नही पा रही थी.. बेड पर गिरते ही उससने अपने हाथ पीछे फैला दिए .. स्कर्ट उपर उठी हुई थी और नीले रंग की पॅंटी में छिपि कामुक तितली का मादक आकार उपर से ही स्पस्ट दिखाई दे रहा था...
"मज़ा आ रहा है ना.." विकी अपने हाथ से स्नेहा की जांघों को सहलाने लगा..
बदहवास सी स्नेहा के होंठों पर तेर गयी कमसिन मुस्कुराहट ने जवाब दिया.. स्नेहा ने टाँगें चौड़ी करके जांघें खोल दी.. खुला निमंत्रण था....
विकी उसकी जांघों पर झुक गया और अपने होंठ पॅंटी के किनारे जाँघ पर टीका दिए....
"उफफफफफ्फ़... क्या.. कर्रहे.. हो.. मैं मर जाउन्गि..." स्नेहा तड़प उठी... स्नेहा बीच भंवर में फाँसी हुई थी... हर पल में इतना आनंद था की पिछे हटने के बारे में सोचा ही नही जा सकता था... और पहली बार के इश्स अनोखे आनंद को समेटना भी मुश्किल था... स्नेहा ने सिसकते हुए अपनी जांघें कसकर भींच ली....
पर विकी कहाँ मान'ने वाला था.. हूल्का सा ज़ोर लगाकर उसने स्नेहा की जांघों को पहले से भी ज़्यादा खोल दिया.. पॅंटी फैल गयी और उसके साथ ही स्नेहा की चिकनी पतली उँच्छुई चूत के आकर में भी परिवर्तन सा आ गया.. चूत के होंठ थोड़े से फैल गये लगते थे...," आह मम्मी.. मर गयी.."
लगभग मर ही तो गयी थी स्नेहा.. जालिम विकी ने पॅंटी के उपर से ही चूत के होंठों पर अपने होंठ रख कर जैसे उसके शरीर के अंग अंग को फड़कने पर मजबूर कर दिया... स्नेहा की साँसे जैसे रुक सी गयी.. आँखें पथ्राने सी लगी.. पर जांघें और ज़्यादा खुल गयी... अपनी मर्ज़ी से! और एक लुंबी साँस के साथ उसके होंठों से निकले," हयीईएय्य्ये मोहाआन्न्न्न्न्न.. मार गेयीयियीयियी मुम्म्म्म्म..."
आँखों और होंठों से पहले विकी की उंगली ने उस लज़ीज़ रसीली और हुल्के बालों वाली रस से सराबोर योनि को छुआ... विकी ने एक उंगली पॅंटी में घुसा दी.. स्नेहा की चूत गीली होकर भी प्यासी लग रही थी.. मर्द की च्छुअन से स्नेहा के रौन्ग्ते खड़े हो गये.. इतना आनंद.. !
"निकाल दूं..?" विकी ने उपर उठकर स्नेहा के चेहरे की और देखा..
नेकी और पूच्छ पूच्छ.. स्नेहा तो कब से नंगी होने को तैयार हो चुकी थी.. बिना कुच्छ बोले ही उसने अपनी फैली हुई जांघों को समेटकर अपने 'चूतड़' उपर उठा दिए.. इस'से बेहतर जवाब वो क्या देती..
विकी ने भी एक पल की भी देरी ना की.. दोनो हाथों से पॅंटी को निकल कर उसको अनावृत कर दिया...
लड़कियों के मामले में रेकॉर्ड बना चुके विकी के लिए यह पहला अनुभव था.. स्नेहा को बाहर से देखकर उसने उसके अंगों की जो कीमत आँकी थी.. उस'से कयि गुना लाजवाब थी.. स्नेहा की.....! इतनी करारी चूत को देखते ही विकी मर मिटा. स्नेहा को आगे खींच कर उसकी जांघों को बेड के किनारे लेकर आया और फर्श पर घुटने टेक दिए और वहाँ..... अपने होंठ!
स्नेहा का तो बुरा हाल पहले ही हो चुका था.. अब तो उसकी होश खोने की बारी थी... नीचे की सिहरन उसकी रसीली चुचियों तक जा पहुँची.. मस्त मस्त आवाज़ें निकालती हुई स्नेहा अपनी चूचियों को अपने ही हाथो से मसल्ने लगी...
"हाए.. मैं इनको कैसे भ्हूल गया..." कहते हुए विकी ने स्नेहा को फर्श पर खड़ी कर दिया और पूरी 10 सेकेंड भी नही लगाई उसको जनम्जात जैसी करने में.. अपने पैरों पर स्नेहा उतने टाइम भी खड़ी ना रह सकी... विकी की बाहों में झहूल गयी...
"ओह्ह्ह.. कितनी प्यारी हैं..." विकी के मुँह से अनायास ही निकल गया.. जब उसने स्नेहा की चूचियों को छ्छू कर देखा.... उनका आकार नागपुरी संतरों जैसा था.. मोटी मोटी.. नरम नरम.. तनी तनी!
विकी ने स्नेहा को फिर से उसी अंदाज में लिटा दिया.. लिटाने पर भी उभार ज्यों के त्यों थे.. अपने हाथो से उन्न फलों को हूल्का हूल्का मसल्ते हुए वो उस कच्ची कली का रस चूसने लगा...
सब कुच्छ स्नेहा के बर्दास्त से बाहर हो चुका था.. वह रह रह कर अपनी गांद को उचका रही थी.. और रह रह कर अपनी जांघों को भींच लेती.. जब सहन करना मुश्किल हो जाता...
जी भरकर जीभ से चूत को चाटने के बाद विकी फिर से उंगली को उसकी फांकों के बीच लेकर आया.. और उनके बीच उंगली को आगे पिछे करके योनि छिद्रा तलाशने लगा...
हर पल स्नेहा को एक नया अनुभव हो रहा था.. पहले से ज़्यादा मीठा.. और पहले से ज़्यादा मस्ती भरा.. अचानक स्नेहा हूल्का सा उच्छली.. उसने सिर उठाकर देखा.. उंगली ने 'ओम गणेशाय नमः:' कर दिया था.. आधी उंगली बाहर थी.. आनंद के मारे पागल सी हो चुकी स्नेहा कोहनी बेड पर टीका कर उपर उठ गयी और बड़े चाव से उंगली को धीरे धीरे आते जाते देखने लगी... उसका सारा बदन साथ ही झटके खा रहा था.. चूचियाँ..दायें बायें और उपर नीचे हो रही थी.. स्नेहा की आँखों में उसके बदन की बढ़ती प्यास आसानी से महसूस की जा सकती थी..
चूचियों को इश्स कदर मस्ती से झ्हूम्ते देख विकी खुद को रोक ना पाया.. उंगली को 'अंदर' ही रखते हुए वह आगे झुका और उसकी बाई चूची के नन्हे से गुलाबी निप्पल को अपनी जीभ से एक बार चाटा और होंठो में दबा लिया...
"आआआअहह... मुझे... इतने.. मज़े क्यूँ. आअ रहे हैं... मोहन.. तुम्हे भी आ रहे हैं क्या... मुझे पता नही क्या हो रहा है.. "
" हाँ जान.. मुझे भी हो रहा है... तुम सच में सबसे निराली हो... सबसे प्यारी.." विकी ने अपनी उंगली निकाल ली.. और अपनी शर्ट निकाल कर अपनी पॅंट उतारने लगा...
स्नेहा शर्मा गयी और लेट कर अपनी आँखें बंद कर ली.. उसको पहली बार उसका दीदार होने वाला था.. जिसके बारे में अक्सर लड़कियों में चर्चा होती थी... होस्टल में... स्नेहा को आज 'उसका हिस्सा' मिलने वाला था...
"क्या हुआ..?" विकी ने मुस्कुराते हुए शर्मकार आँखें बंद किए और जांघों को भीचे लेटी हुई स्नेहा से पूचछा..
पोच्छने पर स्नेहा और भी शर्मा गयी और पलट कर उल्टी लेट गयी...
क्या सीन था.. पतली नाज़ुक सी कमर से नीचे किसी गुंबद की तरह उठी हुई गांद की फाँकें और उनके बीच कसी हुई सी आकर्षक दरार.. पहले ही 7.5" हो चुके विकी के लंड ने एक और अंगड़ाई ली.. और अंडरवेर का एलास्टिक उसके पेट से दूर हो गया.. वो तना ही इतना हुआ था की अगर अंडरवेर को चीर भी देता तो कोई ताज्जुब की बात नही होती...
विकी ने उसकी जांघों पर हाथ रखकर प्यार से सहलाते हुए उसकी गांद पर ले आया और फिर आगे झुकते हुए स्नेहा की गर्दन पर एक चुंबन देकर उसके साथ लेट गया.. स्नेहा के स्मनान्तर..
" क्या हुआ.. शर्मा क्यूँ रही हो.." विकी ने उसके कान के पास अपने होंठ लेजाकार कामुकता से कहा..
स्नेहा ने जवाब फिर भी नही दिया.. अचानक पलटी और विकी की छाती में अपना चेहरा घुसा दिया.. और सिमट कर अपने आपको विकी में ही छिपाने की कोशिश करने लगी...
"आँखें खोलो... देखो तो सही.. क्या दिखाता हूँ..." विकी ने हंसते हुए स्नेहा से कहा...
"नही.. मुझे नही देखना..." स्नेहा को मानो डर लग रहा हो.. इश्स अंदाज में बोली..
"अब ये तो चीटिंग है... मैं कब से तुम्हारी सेवा कर रहा हूँ.. और तुम देख भी नही सकती...." विकी ने उलाहना सा दिया..
"पर्ररर... तुम्हे पता है ना.. मुझे शरम आ रही है...." स्नेहा हल्के से बुदबुदाई...
"ऐसे शरमाती रहोगी तो... बाद में पछ्ताओगि... सोच लो..."
"ओकके.. हुन्हु... क्या देखना है.. बताओ...?" शरारत भरी आवाज़ में स्नेहा ने आँखें खोलकर विकी की आँखों में झाँका...
"यही.. जो तुम्हे प्यार सिखाएगा... और मज़े भी देगा..." विकी ने स्नेहा का हाथ पकड़ कर अंडरवेर की साइड से अंदर घुस्वा दिया....
" ओह्ह गॉड.. इतना मोटा!" लाजाते हुए भी स्नेहा अपने आपको ना रोक पाई.. अपने आसचर्या को ज़ुबान तक लाने में...
" इतनी हैरान क्यूँ हो.. लगता है.. तुम्हे पता है.. इसका क्या करते हैं... एक्सपीरियन्स है क्या..?" विकी ने यूँही मज़ाक में कह दिया...
स्नेहा ने गुस्सा सा दिखाते हुए अपने कोमल हाथ का घूँसा बनाकर विकी की छाती में दे मारा..," ओये.. मेरी कौनसा शादी हुई है...?"
"शादी तो अब भी नही हुई है..... फिर?" विकी ने उसकी चूची को अपने हाथ में दबा लिया....
" हो जाएगी...! तुम मुझे जानते नही हो.." स्नेहा ने तो यही सोचा होगा की मोहन तो उस'से शादी करके अपने आपको खुशकिस्मत ही समझेगा....
जाने क्यूँ विकी इश्स बात पर अपनी नज़रें चुराने लगा.. उसने बात बदल दी," तो तुम्हे पता है.. इसका क्या करते हैं..."
"हूंम्म!" स्नेहा अब अपने आपको थोड़ा सहज पा रही थी.. अपने दिल की बात कह कर... वह बड़े प्यार से बिना शरमाये अंडरवेर के अंदर ही विकी के लंड को सहला रही थी...
"इसको इसमें डालते हैं" स्नेहा ने दूसरा हाथ अपनी जांघों पर रख दिया...
"तो डालूं...?" विकी ने जैसे ही अपना अंडरवेर निकाला.. 'लंड' तन्ना कर स्नेहा के हाथ से छ्छूट गया...
" नही.. अभी नही.. बच्चा हो जाएगा.. मुझे पता है.. इसमें डालने से ही बच्चा बनता है......"
" ये भी कोई बात हुई.. तुम्हे आधा पता है.. और आधा नही..." विकी घुटनो के बल बैठ गया..उसका लंड अब ठीक स्नेहा की आँखों के सामने हिलौरे ले रहा था.... स्नेहा ने आँखें बंद करके उसको फिर हाथ में पकड़ लिया," अच्च्छा जी.. क्या नही पता...?"
"सिर्फ़ डालने से बच्चा नही होता.. खैर छ्चोड़ो.. मुँह में ले सकती हो ?"
"मुँह में.... ये कोई कुलफी है जो मैं मुँह में लूँगी... कहकर स्नेहा हुँसने लगी... उसने आँखें खोल दी थी.. और बड़े प्यार से लंड के चिकने सूपदे को देख रही थी....
"लेकर तो देखो... अगर अच्च्छा ना लगे तो कहना..."
"तुम्हे कैसे पता.. कोई एक्सपीरियन्स है क्या?" स्नेहा ने हंसते हुए उसी की टोन में पूचछा...
"न्न्नाही.. ववो.. दोस्त बता देते हैं ना.. लड़कियों को क्या क्या अच्च्छा लगता है...."
"पर मुझे तो नही बताया.. मेरी सहेलियों ने..." हालाँकि उसकी तरफ निहारते हुए स्नेहा के मुँह में पानी आ चुका था...
" यार.. तुम लेकर तो देखो.. कह तो रहा हूँ.. निकाल देना.. अगर अच्च्छा ना लगे तो.." कहकर विकी उसकी छाती के दोनो ओर पैर करके आगे की और झुक कर बैठ गया.. अब स्नेहा के होंठों और विकी के 'औजार' में इंच भर का फ़र्क था
थोड़ा सा हिचकते हुए स्नेहा ने अपने हाथ में पकड़े लंड को नीचे झुकाया और अपने होंठो से छुआ दिया.. और फिर होंठों पर जीभ फेरते हुए उसको दूर कर दिया...
"क्या हुआ?" विकी तड़प सा उठा और खुद ही नीचे झुक कर वापस उसके होंठो से भिड़ाने की कोशिश करने लगा..
"कुच्छ नही.. अजीब सा लग रहा है..." अब स्नेहा खुल गयी थी.. पूरी तरह...
" अच्च्छा नही लग रहा क्या..?" बेचैनी से विकी ने पूछा...
बिना कोई जवाब दिए.. स्नेहा ने अपने होंठो को आधा खोला और सुपादे के अगले भाग को होंटो में दबा लिया.. और विकी की और देखने लगी..
विकी को पहली बार इतना आनंद आया था की उसकी आँखें बंद हो गयी..," अयाया.. "
"अच्च्छा लग रहा है...?" अब की बार स्नेहा ने पूचछा...
"हाआँ..." जीभ निकाल कर चाटो ना.. प्लीज़..." विकी कराह उठा.. आनंद के मारे..
स्नेहा को कोई ऐतराज ना हुआ.. उसको ये जानकार बहुत खुशी हुई की विकी को अच्च्छा लग रहा है.. अपनी जीभ निकाली और लंड की जड़ से लेकर सुपादे तक नीचे से चाट'ती चली गयी...
"आआहह.. मार डालोगी.. तुम तो.. ऐसे ही करो.. और इसको मुँह के अंदर लेने की कोशिश करो..."
स्नेहा तो मस्त होती जा रही थी... उसको भी बहुत मज़ा आ रहा था..
विकी ने देखा स्नेहा अपने हाथ को उसकी टाँगों के बीच से निकालकर नीचे ले जाने की कोशिश कर रही है.. विकी को समझते देर ना लगी... वो भी तो तड़प रही होगी," एक मिनिट.. कहकर विकी घूम गया और झुकते हुए अपनी कोहनियाँ स्नेहा की जांघों के बीच टीका दी.. स्नेहा की चिकनी चूत अब उसकी पहुँच में थी..
स्नेहा के लिए भी अब आसान हो गया.. लंड उसके मुँह के उपर सीधा लटक रहा था.. उसने अपने होंठ जितना हो सकता था उतने खोले और सूपदे को मुँह में भर लिया...
दोनो 69 की स्थिति में थे.. स्नेहा तो स्नेहा; विकी भी मानो आनंद के असीम सागर में तेर रहा हो.. बड़ी ही नाज़ूक्ता से उसने स्नेहा की जांघों को अपने हाथो से दबाया.. और एक हाथ की उंगली से उसकी चूत की कुँवारी फांकों को अलग करके उनके बीच छुपे हुए छ्होटे से दाने को देखा.. मस्ती से अकड़ा हुआ था.. चूत का रंग अंदर से स्नेहा के होंठो जैसा ही था.. एकद्ूम गुलाबी रंगत लिए हुए.
वह झुका और स्नेहा के 'दाने' को चूसने लगा..
स्नेहा एकद्ूम उच्छल सी पड़ी और इस उच्छलने में लंड सूपदे से कहीं ज़्यादा दूर उसके मुँह में हो आया...
स्नेहा इतनी उत्तेजित होने के बावजूद उसके सबसे अधिक संवेदनशील अंग के साथ छेड़ छाड सहन नही कर पा रही थी.. मस्ती से वा अपनी गांद को इधर उधर मटकाने लगी.. विकी ने भी उसको कसकर दबोच लिया.. और एक मुश्त कयि मिनूटों तक स्नेहा को जन्नत के प्रॅथम दर्शन कराता रहा...
दोनो ही बावले से हो चुके थे.. दोनो एक दूसरे का भरपूर साथ दे रहे थे.. की अचानक एक बार फिर स्नेहा के साथ वही स्थिति एक बार फिर उभर आई.. उसकी टाँगें काँपने लगी.. सारा बदन अकड़ सा गया और अपनी जांघों में उसने विकी का सिर जाकड़ लिया..
विकी को भी हटने की जल्दी ना थी.. स्नेहा की बूँद बूँद को वह मदहोशी के आलम में ही अपने गले में उतार गया...
उधर स्नेहा भी उसके लंड के साथ अब तक बुरी तरह व्यस्त थी... चाट चाट कर, चूस चूस कर... काट काट कर उसने सूपड़ा लाल कर दिया था...
स्नेहा के ढीली पड़ते ही विकी 'अपना' हाथ में लेकर घुटनो के बाल उसके मुँह के पास बैठ गया," तुम्हे भी पीना पड़ेगा...?"
"क्या?" स्नेहा के चेहरे से असीम तृप्ति झलक रही थी...
"यही.. इसका रस.. जो अभी निकलेगा..." विकी का हाथ बड़ी तेज़ी से चल रहा था..
"नही... रहने दो ना... प्लीज़.." स्नेहा ने रिक्वेस्ट की..
" रहने कैसे दूँ.. मुझे भी तो पीला दिया.. ज़बरदस्ती.. टाँगों में सिर भींच कर.."
उन्न पलों को याद करके स्नेहा बाग बाग हो गयी.. फिर शरारत से मुँह बनाते हुए बोली.. "ठीक है... लाओ पिलाओ.." कह कर उसने अपना मुँह खोल लिया...
उसके बाद तो 2 ही मिनिट हुए होंगे.. अचानक विकी रुका और स्नेहा के खुले होंठो में लंड जितना आ सकता था फँसा दिया.. रस की धारा ने स्नेहा का पूरा मुँह भर दिया.. आख़िर कार जब बाहर ना निकल पाई तो मुस्कुराते हुए गटक लिया...
विकी धन्य हो गया... हटा और बेड पर धदाम से गिर पड़ा.. स्नेहा उठी और अपनी चूचियों को विकी की छाती पर दबा कर उसके होंठों को चूमने लगी.. अजीब सी क्रितग्यता उसके चेहरे से झलक रही थी...
इतनी हसीन और कमसिन लड़की को अपनी बाहों में पाकर नशे में होने के बावजूद तैयार होने में विकी को 3-4 मिनिट ही लगे... वह अचानक उठा और स्नेहा को अपने नीचे दबोच लिया.. उसकी आँखों में फिर से वही भाव देखकर स्नेहा मुस्कुराइ," अब क्या है..?"
"अब अंदर..." कहते हुए. विकी ने फिर उसकी जांघें खोल दी.. और हौले हौले टपक रही चूत पर नज़र गढ़ा दी... और एक बार फिर उसको तैयार करने के लिए उंगली और होंठो को काम पर लगा दिया...
स्नेहा भी जल्द ही फिर से फुफ्कारने लगी... लुंबी लुंबी साँसे और योनि छिद्र में फिर से चिकनाई उतर आना इस बात का सबूत था की वो उस असीम आनंद को दोबारा पाने के लिए पहली बार होने वाले दर्द को झेल सकती है...
विकी पंजों के बल बैठ गया और स्नेहा के घुटनो के नीचे से बेड पर हाथ जमकर उसकी जांघों को उपर उठा सा दिया... चूत हूल्का सी रास्ता दिखाने लगी.. विकी ने सूपड़ा 'सही' सुराख पर सेट किया और स्नेहा के चेहरे की और देखने लगा..," एक बार दर्द होगा.. सह लोगि ना...?"
"तुम्हारे लिए...." स्नेहा हमला झेलने के लिए तैयार हो चुकी थी.. अपने पहले प्यार की खातिर...
विकी के भी अब बात बर्दास्त के बाहर थी.. ज़्यादा इंतज़ार वो कर नही सकता था.. सो स्नेहा की जांघों को पूरी तरह अपने वश में किया.. और दबाव अचानक बढ़ा दिया...
स्नेहा के मुँह से तो चीख भी ना निकल सकी.. एक बार में ही सूपड़ा अपना रास्ता अपने आप बनाता हुआ काफ़ी अंदर तक चला गया था.. स्नेहा ने पहले ही अपने मुँह को अपने ही हाथो से दबा रखा था... लंड सर्दियों में जमें हुए मक्खन में किसी गरम चम्मच की तरह घुस गया था.. कुच्छ देर तक विकी ना खुद हिला और ना ही स्नेहा को हिलने दिया.. और आगे झुक कर स्नेहा की छातियो को दबाते हुए उसको होंठो को भी अपने होंठों की गिरफ़्त में ले लिया..
धीरे धीरे 'चम्मच' की गर्मी से 'चूत' का जमा हुआ 'मक्खन' पिघल कर बहने सा लगा.. इश्स चिकनाहट ने दोनो के अंगों को तर कर दिया.. स्नेहा को लगा.. अब हो सकता है तो उसने अपनी गांद उचका कर विकी को सिग्नल दिया...
विकी ने थोड़ा पिछे हट'ते हुए एक बार और प्रहार किया.. इश्स बार अंदर लेने में स्नेहा को उतनी पीड़ा नही हुई..
करीब 5 मिनिट बाद स्नेहा सामान्य हो गयी और अजीब तरह की आवाज़ें निकालने लगी.. ऐसी आवाज़ें जो कामोत्तेजना को कयि गुना बढ़ा दें...
अब दोनो ही अपनी अपनी तरफ से पूरा सहयोग कर रहे थे.. विकी उपर से आता और आनंद की कस्ति पर सवार स्नेहा की गांद नीचे से उपर की और उच्छलती और दोनो की जड़ें मिल जाती.. दोनो एक साथ आ कर बैठते...
आख़िरकार स्नेहा आज तीसरी बार 'आ' गयी... विकी भी आउट ऑफ कंट्रोल होने ही वाला था.. उसने झट से अपना लंड बाहर निकाला और फिर स्नेहा के मुँह के पास जाकर बैठ गया.. जैसे वहाँ कोई स्पर्म बॅंक खोल रखा हो...
स्नेहा ने शरारत से एक बार अपने कंधे 'ना' करने की तरह उचकाए.. और फिर मुस्कुराते हुए अपने होंठ खोल दिए.. उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी... पहले प्यार की चमक!
सुबह विकी उठा तो स्नेहा उसके कंधे पर सिर रखे उसके बलों में हाथ फेरती हुई उसकी ही और देख रही थी.. अपलक!
"तुम कब जागी?" विकी ने हुल्की सी मुस्कान उसकी और फैंकते हुए पूचछा...
"मैं तो सोई ही नही.. नींद ही नही आई..?" नींद और पहले प्यार की खुमारी उसकी आँखों में हुल्की सी लाली के रूप में चमक रही थी.. और उसके चेहरे पर कली से फूल बन'ने का बे-इंतहा नूर था.. विकी ने उसकी आँखों में आँखें डाली तो स्नेहा ने पलकें झुका ली..
"कैसा रहा रात का अनुभव?" विकी ने उसकी और करवट लेते हुए स्नेहा की कमर में हाथ डाल कर अपनी और खींच लिया.. और स्नेहा मुस्कुरा कर उस'से चिपक गयी.....
" हम कहाँ रहेंगे मोहन?" स्नेहा ने उसके गले में अपनी गोरी बाँहें डाल दी..
" मतलब? " विकी ने नज़रें चुरा ली...
"मैं वापस हॉस्टिल नही जाना चाहती.. यहीं रहना चाहती हू.. तुम्हारे साथ.."
विकी ने बात टालने के इरादे से अपने एक हाथ से उसकी चूची को दबाया और उसके होंठो को अपने होंठो में लेने के लिए अपना चेहरा उसकी तरफ बढ़ा दिया..
कामुकता भरे आनंद की लहर स्नेहा के पुर बदन को दावादोल सा कर गयी.. पर वह अगले कदम के बारे में जान'ने को चिंतित थी.. उसने अपना चेहरा सिर झुका कर विकी की छाती में छुपा लिया," बताओ ना मोहन.. अब हम क्या करेंगे.. मुझे वापस तो नही भेजोगे ना? मुझे अब तुमसे दूर नही जाना.."
विकी एक पल के लिए असमन्झस में पड़ गया.. इश्स वक़्त उसको स्नेहा को वादों के जाल में उलझाए ही रखना था.. पर जाने क्यूँ.. स्नेहा के सीधे सवाल का टेढ़ा जवाब देने से वह कतरा रहा था..," पर तुम्हारे पापा.. उनका क्या करोगी..? विकी ने सवाल का जवाब सवाल से ही दिया...
स्नेहा का उम्मीदों से भरा मॅन क्षणिक कड़वाहट से भर उठा..," पापा! हुन्ह... उनकी पैदाइश होने के अलावा हमारा रिश्ता ही क्या रहा है.. मैं 8 साल की तही जब उन्होने मुझे हॉस्टिल में डाल दिया.. आज 11 साल होने को आ गये हैं.. और मुस्किल से 11 बार ही मैने उनका चेहरा देखा है.. मैं उनसे बहुत प्यार करती थी.. हमेशा उनसे मिलने को.. घर जाने को तड़पति रहती थी.. पर उन्होने.. पता नही क्यूँ.. मुझे प्यार दिया ही नही.. कभी हॉस्टिल से घर लेने भी आता तो उनका ड्राइवर.. घर जाकर पता चलता.. देल्ही गये हैं.. बाहर गये हैं.. और मुझे तकरीबन उसी दिन शाम को या अगले दिन वापस भेज हॉस्टिल में फैंक दिया जाता" स्नेहा की आँखों में अतीत में मिली प्यार के अभाव की तड़प के छिपे हुए आँसू जिंदा हो उठे..," सब फ्रेंड्स के मम्मी पापा.. उनसे मिलने आते.. उनको घर लेकर जाते और वो लड़कियाँ आकर घर जाकर की गयी मस्ती को सबको बताती.. सोचो.. मेरे दिल पर क्या बीत-ती होगी.. लड़कियाँ मुझे 'अनाथ' तक कह देती थी.. अगर पापा ऐसे ही होते हैं तो सबके क्यूँ नही होते मोहन.. हम अपने बच्चे को हॉस्टिल नही भेजेंगे.. अपने से कभी दूर नही करेंगे मोहन... मैने महसूस किया है.. बिना अपनों के साथ के जिंदगी कैसी होती है.. फिर भी मैं हमेशा यही सोचती थी की पापा बिज़ी हैं.. पर प्यार तो करते ही होंगे... पर कल तो उन्होने दिखा ही दिया की... मैं सच मैं ही 'अनाथ' हूँ.." कहते हुए स्नेहा का गला बैठ गया.. और दिल की भादास विलाप के रूप में बाहर निकालने लगी...
विकी से उसका रोना देखा ना गया.. चेहरा उपर करके उसके आँसू पौंच्छने लगा... पर दिल उसका भी ज़ोर से धड़क रहा था.. उसके रोने के पिछे असली कारण वही था," अब.. रोने से क्या होगा सानू? सम्भालो अपने आपको... " विकी ने उसको अपनी छाती से चिपका लिया....
" बताओ ना.. हम कहाँ रहेंगे.. कहाँ है अपना घर?" स्नेहा पूरी तरह से विकी के लिए समर्पित हो चुकी थी.. उसके घर को अपना घर मान'ने लगी थी...
" उस'से पहले तुम्हे मेरी मदद करनी पड़ेगी... सानू..!"
" मैं क्या मदद कर सकती हूँ..? मैं खुद अब तुम्हारे हवाले हूँ..!"
" वो तो ठीक है.. पर अगर तुम्हारे पापा को पता चल गया तो मेरी जिंदगी ख़तरे में पड़ जाएगी.. अब तक तो फिर भी हो चुकी होगी... ये पता चलते ही की मैं ठीक ठाक हूँ और तुम मेरे साथ हो.. पोलीस मुझे उठा लेगी.. उसके बाद तुम फिर अकेली हो जाओगी... मुझे जैल मैं भेज देंगे.. और तुम्हारे पापा कभी सच्चाई को सामने नही आने देंगे...." विकी ने अपनी अगले प्लान की भूमिका बाँधी....
स्नेहा सुनकर डर गयी.. उसके पापा 'पॉवेरफूल थे.. और सच में ऐसा कर सकते थे.. स्नेहा के लिए तो विकी उसके बाप का एस.ओ. ही था..," फिर.. अब हम क्या करें मोहन!"
"सिर्फ़ एक ही रास्ता है.. तुम पहले मीडीया में जाकर सच्चाई बता दो.. की तुम्हारे बाप ने ही ये सब किया है.. और ये भी कहना की तुम अब वापस नही जाना चाहती.. फिर कुच्छ दिन तुम्हे छिप कर रहना पड़ेगा..!" विकी ने स्नेहा को वो रास्ता बता दिया जो उसको मंज़िल तक ले जाने के लिए काफ़ी था..
"उसके बाद तो सब ठीक हो जाएगा ना?"स्नेहा को अब भी चिंता सता रही थी..
"हाँ.. उसके बाद हम साथ रह सकते हैं.. खुलकर.." स्नेहा की सहमति जानकर विकी खिल उठा और उसने अपना हाथ स्नेहा की जांघों के बीच फँसा दिया...," पर याद रखना.. तुम्हे मेरा कहीं जिकर नही करना है.. यही कहना की मैं किसी तरह उनके चंगुल से बचकर अपनी किसी सहेली के घर चली गयी थी.. अगर मेरा नाम आया तो वो मुझे ढ़हूंढ लेंगे...!"
"आआहह.. ये मत करो.. मुझे कुच्छ हो रहा है.." अपनी पॅंटी में विकी की उंगलियाँ महसूस करके तड़प उठी...
"तुमने सुन लिया ना..." विकी ने अपना हाथ बाहर निकाल लिया..
"हां.. बाबा! सुन लिया.. कब चलना है.. मीडीया के सामने..?"
"मैं नही जाउन्गा.. तुम्हे किसी दोस्त के साथ भेज दूँगा.. चिंता मत करो.. मैं आसपास ही रहूँगा.." कहकर विकी उठ गया...
"अब कहाँ भाग रहे हो.. मुझे छेड़ कर..!" स्नेहा ने विकी को बेड पर वापस गिरा लिया और उसके उपर आ चढ़ि... अपनी टाँगें विकी की जांघों के दोनो तरफ रखकर 'वहाँ' बैठ गयी और सामने की और झुक कर अपनी चूचियों विकी की छाती पर टीका दी....
नया नया खून मुँह लगा था.. ये तो होना ही था...
कुच्छ ही देर बाद दोनो के कपड़े बेड पर पड़े थे और दोनो एक दूसरे से 'काम-क्रीड़ा' कर रहे थे.. स्नेहा की आँखों में अजीब सी तृप्ति थी.. 'अपनी मंज़िल' को प्राप्त करने की खुशी में वो भाव विभोर हो उठी थी.. प्यार करते हुए भी उसकी आँखों में नमी थी... खुशी की!