Friday, 31 October 2014

masti ki pathsala - 59


मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-59
स्नेहा की जगह उसकी मादक साँसों से जवाब मिलता देख विकी बेकाबू हो गया," अगर मैं तुम्हे छू लूँ तो तुम्हे कोई दिक्कत तो नही है.....
छ्छू तो रखा था.. और कैसे च्छुना चाहता है.. सुनकर स्नेहा का अंग अंग चरमरा उठा... बोली कुच्छ नही; बस अपने हाथ से उपर सरकती जा रही स्कर्ट की सिलवटें दूर की और शरम से निहाल होकर अपना चेहरा तकिये में च्छूपा लिया... ये अदा... इशारा ही तो था!
"बोल ना... अब क्यूँ शर्मा रही है... मैं तुम्हे पसंद हूँ ना?" सब कुच्छ जानते हुए भी विकी अभी तक भी संयम का परिचय दे रहा था...
"मुझे नही पता... गुदगुदी हो रही है...!" लज्जा और शुकून की गहरी साँस छ्चोड़ते हुए सानू एक दम सिमट सी गयी और अपनी उपर वाली टाँग घुटने से मोड़ कर आगे की तरफ खींच ली...
उफफफफ्फ़... ऐसा करने से एक अच्छे ख्हासे तरबूज के बीच की एक फाँक निकाल देने जैसे आकर के उसके गोलाकार नितंब उभर आए... 2 मिनिट पहले ही खींच कर ज़बरदस्ती नीचे की गयी उसकी स्कर्ट फिर से सिकुड गयी... विकी का दमदार हथ्हियार सही जगह से थोड़ा सा पिछे बुरी तरह तननाया हुआ तैनात था...
विकी उसकी गोरी जांघों से और उपर का दीदार करने को लालायित हो उठा... तरीका एक ही था.. अपना तकिया उठाया और स्नेहा के पैरों की और रखकर लेट गया..," मैं उस तरफ लेट रहा हूँ... इधर बाजू में दर्द हो रहा है..."
उस वक़्त विकी के दूसरी और सिर करके लेटने का असली कारण स्नेहा ना समझ पाई... चुभन का मीठा सा अहसास अचानक गायब होने से स्नेहा तड़प सी उठी.. सिर उठाकर एक बार विकी को घूर कर देखा; फिर गुस्सा सा दिखाती हुई अपने सिर को झटक कर वापस लेट गयी.....

स्कर्ट के नीचे से लुंबी, गड्राई, गोरी और मांसल जांघों की गहराई में झाँकते ही विकी के चेहरे पर जो भाव उभरे वो अनायास ही किसी अंधे को दिखने लग जाए; ऐसे थे.. आँखें बाहर निकल कर गिरने को हो गयी..," उम्म्म्म.. मैं इसको छ्चोड़ने की सोच रहा था.. हे राम!" विकी मंन ही मंन बुदबुडाया...

घुटना मुड़ा होने की वजह से स्नेहा की स्कर्ट के नीचे पहनी हुई सफेद पॅंटी का सपस्ट दीदार हो रहा था.. जांघों से चिपकी हुई पॅंटी पर बीचों बीच एक छ्होटा सा गुलाबी फूल बना हुआ था.. जो गीला होकर और भी गाढ़ी रंगत पा चुका था.. निचले हिस्से में पॅंटी योनि की फांकों का हूबहू आकर प्रद्राशित कर रही थी... उत्तेजना के कारण दोनो फाँकें आकड़ी हुई सी थी... और पॅंटी उनके बीच हुल्की सी गहराई लिए हुए थी...
" स्नेहा!" विकी लरजती हुई सी आवाज़ में बोला...
स्नेहा ने कोई उत्तर ना दिया...
विकी पॅंटी के उतार चाढ़वों में इतना उलझा हुआ था की दोबारा पुकारना ही भ्हूल गया....
"क्या है?" विकी की तरफ से फिर आवाज़ आने की प्रतीक्षा करके करीब 3-4 मिनिट के बाद अचानक स्नेहा बैठ गयी," बोलो ना.. क्यूँ परेशान कर रहे हो...
"क्कुच्छ नही... क्या..." विकी को लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो.... जैसे अभी डाँट पड़ेगी... प्यार भरी...
"क्यूँ.. अभी तो पुकारा था.. मेरा नाम...!" थोड़े से झिझकते हुए स्नेहा ने भी अपना सिर विकी की और ही कर लिया और लेट गयी.......

"बोलो ना! क्या कह रहे थे मोहन?" स्नेहा ने अपना हाथ विकी के हाथ पर रख दिया..
"कुच्छ नही... बस... पता नही क्यूँ बेचैनी सी हो रही है... नींद नही आ रही.." विकी ने अपने हाथ को छुड़ाने की इस बार कतई कोशिश नही की..
"हूंम्म्म.. मैं कुच्छ करूँ...?" विकी की नज़रों को अपने अंदर घुसने की कोशिश करते देख स्नेहा बाग बाग हो गयी..," आइ मीन... सिर दबा दूं.. या कुच्छ और"
बातों ही बातों में स्नेहा ने अपना घुटना आगे करके विकी की जाँघ से सटा दिया... घुटने से करीब 4 इंच उपर स्नेहा की जाँघ पर काला सा तिल था...
"नही.. कुच्छ नही.. एक बात बोलूं सानू!" विकी की आवाज़ में अजीब सी खुमारी भर गयी थी...
"पुछ्ते क्यूँ हो? कुच्छ भी बोलो ना...!" स्नेहा की हालत भी बस डाँवाडोल ही थी.. बस इशारा करने की देर थी...
"उम्म्म्मम..." विकी ने बात कहने से पहले पूरा समय लिया," तुम्हारी जांघें बहुत सुंदर हैं... अब मेरी क्या ग़लती है जो मैं वहाँ इनको छ्छूने से अपने आपको रोक नही पाया...
दिल में तो स्नेहा के भी कुच्छ ऐसे ही अरमान थे.. पर विकी को सीधा हमला करते देख वो हड़बड़ा गयी... बिना वक़्त गँवायें हाथ नीचे ले जाकर अपनी स्कर्ट को नीचे खींचने की कोशिश की.. पर वह तो थी ही छ्होटी... अपनी अमानत को च्छूपा पाने में सफल ना होने पर स्नेहा ने अपना हाथ उपर लाकर विकी की आँखों पर रख दिया," ऐसे क्यूँ देख रहे हो! मुझे शरम आ रही है..." और अपना हाथ वहीं रखे रही.. विकी ने भी हटाने की कोशिश ना की.. उसके होंठो पर अजीब सी मुस्कान तेर गयी.....
"क्या है?" विकी को हंसते देख स्नेहा पूच्छ बैठही," अब हंस क्यूँ रहे हो?"
"मैं तुम्हे समझ नही पाया सानू.. एक तरफ तो तुम इतनी बोल्ड हो.. और दूसरी तरफ इतनी शर्मीली.. इतनी....." विकी बोला....
"आए.. मैं कोई शर्मीली वारमीली नही हूँ.. हाआअँ! मैं तो बड़ी मुँहफट हूँ.. जो जी मैं आए कह देती हूँ.. जो जी मैं आए कर लेती हूँ... मैं किसी बात से नही डरती... समझे मिस्टर्र्र्ररर..!"
"अच्च्छा.. ऐसा है तो मेरे लिप्स पर किस करके दिखाओ... मान लूँगा की तुम शर्मीली नही हो..!" विकी ने पासा फैंका...
स्नेहा को तो मानो मॅन माँगी मुराद मिल गयी.. कितनी देर से उसके होंठ अपनी मिठास बाँटने को व्याकुल थे.. प्यासे थे.. पर उसके लिए पहल करना आसान भी नही था....," यूँ मैं इतनी बेशर्म भी नही हूँ...!" विकी की आँखों पर उसके कोमल हाथो का परदा होने के बावजूद वह अपनी आँखें खुली ना रख पाई.. पर आवेश में उसके दाँतों ने नीचे वाले होंठ को काट खाया....
"इसमें बेशरम होने वाली क्या बात है.. अगर मैं तुम्हे अच्च्छा लगता हूँ.. और तुम इतनी बोल्ड हो तो इतना तो कर ही सकती हो.." विकी के होंठो पर अब भी शरारती मुस्कान तेर रही थी....
"तूमम्म.... तुम कर लो.. बात तो एक ही है..!" कहकर स्नेहा ने विकी के चेहरे से हाथ हटाया और शरम से गुलाबी हो चुके अपने चेहरे को ढक लिया...
"मैं.. मैं तो कुच्छ भी कर सकता हूँ.. मेरा क्या है.. मैं तो मर्द हूँ...!" विकी ने कहा और अपने हाथ से पकड़कर उसके हाथो को चेहरे से जुदा कर दिया...
स्नेहा की साँसों में गर्मी आनी एक बार फिर शुरू हो गयी थी... आँखें बंद थी.. और होंठ धीरे धीरे काँप रहे थे," तो कर के दिखाओ ना.."
अब विकी कहाँ शरमाता.. झट से अपना चेहरा आगे किया और स्नेहा का उपर वाला होंठ अपने होंठो में दबा लिया.. और चूसने लगा.. स्नेहा की हालत खराब हो गयी.. साँसे धौकनी की तरह चलने लगी.. आख़िर में जब शरम और संयम की सारी हदें पार हो गयी तो स्नेहा के हाथ अपने आप विकी के चेहरे पर चले गये और उसने विकी के नीचे वाले होंठ को अपने होंठो में दबा लिया... और अपनी पकड़ मजबूत करती चली गयी...

बहुत ही रसभरा दृश्या था.. होंठो को एक दूसरे की क़ैद में लिए विकी और स्नेहा हर पल पागल से होते चले गये.. जैसे सब कुच्छ आज ही निचोड़ लेंगे.. स्नेहा की टाँग किसी अनेइछिक मांसपेशी की तरह काम करती हुई विकी की कमर पर चढ़ गयी.. दोनो एक दूसरे से जोंक की माफिक चिपके हुए थे.. स्नेहा की चूचियाँ विकी की ठोस छाती में गढ़ी हुई थी.. पर इश्स वक़्त किसी को होंठों से ही फ़ुर्सत नही थी...
अचानक स्नेहा को लगा जैसे वह कहीं उँचाई से नीचे गिर रही है.. उसका सारा बदन सूखे पत्ते की तरह काँप उठा और महसूस हुआ जैसे उसका पेशाब निकल गया...
कहीं दूसरे लोक की सैर करके वापस आई स्नेहा एकदम से ढीली पड़ गयी और एक झटके के साथ विकी से दूर हो गयी...
वह सीधी हो गयी थी.. टाँगों को एक दूसरी के उपर चढ़हा लिया था.. और अपनी चूचियों पर हाथ रखकर उनको शांत करने की कोशिश कर रही थी...
वह कुच्छ ना बोली.. 4-5 मिनिट के असीम लूंबे इंतज़ार के बाद विकी को ही चुप्पी तोड़नी पड़ी..," क्या हुआ..?"
"कुच्छ नही..एक मिनिट" स्नेहा ने कहा और उठकर बाथरूम में चली गयी...

विकी इसी ताक में था.. झट से अपना फोन वीडियो रेकॉर्डिंग पर सेट किया और बेड की तरफ अड्जस्ट करके टेबल पर अश्-ट्रे के साथ रख दिया...

स्नेहा करीब 7-8 मिनिट बाद वापस आई... बाहर निकली तो विकी उसको देखकर मुस्कुरा रहा था...
"क्या है.. ? क्यूँ हंस रहे हो?" स्नेहा ने अपने बॅग को टटोलते हुए पूचछा...

बॅग से 'कुच्छ' निकल कर वापस जा रही स्नेहा का विकी ने हाथ पकड़ लिया," क्या ले जा रही हो.. यूँ छुपा कर"
"कुच्छ नही.. छ्चोड़ो ना.." स्नेहा ने दूसरा हाथ अपनी कमर के पिछे छुपा लिया..," छ्चोड़ो ना.. प्लीज़!"
"बताओ तो सही.. ऐसा क्या है..?" विकी ने उसको अपनी तरफ खींच कर उसके दूसरे हाथ को पकड़ने की कोशिश की...
"आआह.." सिसकारी स्नेहा के मुख से निकली थी.. विकी ने उसके हाथ को पकड़ने की कोशिश में अंजाने में ही नितंब पकड़ लिया.. पहले से ही कमतूर स्नेहा के नितंब थिरक उठे.. वासना उसके चेहरे पर उसकी आ के साथ छलक उठी.. गीली हो चुकी पॅंटी को वो बाथरूम में निकल आई थी.. इसलिए स्पर्श और भी अधिक आनंदकारी रहा... हाथों में जैसे जान बची ही नही और पहन-ने के लिए लेकर जा रही 'दूसरी' पनटी उसके हाथ से छूट कर फर्श पर जा गिरी...
"श.. सॉरी!" कहकर विकी ने अपना हाथ एक दम वापस खींच लिया.. पर करारे नितंब की गर्मी उसको अब भी महसूस हो रही थी... फर्श पर पड़ी पॅंटी को देखते ही उसको माजरा समझने में देर ना लगी..," सॉरी.. वो.. मैं..."
आगे स्नेहा ने उसकी कुच्छ ना सुनी.. शरमाई और सकूचाई सी स्नेहा ने झुक कर अपनी पॅंटी उठाई और बाथरूम में भाग गयी...

वापस आने पर भी वह लज़ाई हुई थी.. दोनो को पता था.. अब सब कुच्छ होकर रहेगा.. पर विकी इन्न पलों को रेकॉर्ड कर रहे होने की वजह से स्नेहा की पहल का इंतजार कर रहा था... और स्नेहा शर्म की चादर में लिपटी विकी का इंतजार करती रही... अपना 'घूँघट' उठ वाने के लिए.. यूँही करीब 15 मिनिट और बीत गये...
"तुमने आज से पहले किसी लड़की को ऐसे किया है?" स्नेहा से ना रहा गया...
"कैसा?" विकी ने भोला बनते हुए कहा..
"ऐसा.. जैसा आज मेरे साथ किया है...!" स्नेहा ने अपना चेहरा दूसरी और घुमा लिया...
"उम्म्म.. नही..! कभी नही.." क्या झूठ बोला विकी ने!
"पता नही.. मुझे कैसा लग रहा है.. शरीर में कुच्छ अजीब सा महसूस हो रहा है.." स्नेहा अब भी नज़रें च्छुपाए हुए थी...
"कैसा.. कुच्छ गड़बड़ है क्या.. ? क्या हो गया सानू..?" विकी ने भोला बनते हुए कहा..." कहते हुए विकी ने उसके कंधे पर हाथ रख लिया...
" पता नही.. पर जब भी तुम मुझे छूते हो तो पता नही कैसा महसूस होता है....?"
"कहाँ..?"
"हर जगह... जहाँ भी छूते हो.. कहीं भी हाथ लगाते हो तो लगता है जैसे..." स्नेहा बीच में ही चुप हो गयी..
"कैसा लगता है? बताओ ना.. मुझे भी बहुत मज़ा मिलता है तुम्हे छ्छू कर.. तुम्हे भी मज़ा आता है क्या..?" विकी ने उसके कहने के मतलब को शब्द देने की कोशिश की....
"हूंम्म..." दूसरी और मुँह किए लेटी स्नेहा ने अपनी चिकनी जांघों के बीच जैसे कुच्छ ढ़हूंढा और अपनी जांघें कसकर भीच ली...
"छुओ ना एक बार और..! मज़ा आता है.. बहुत!"
"कहाँ पर.. बताओ...... बोलो ना..?" विकी ने कंधे पर रखा अपना हाथ सरका कर उसकी कमर पर रख दिया...
"जहाँ तब लगाया था...!"
"कब..?"
"अब बनो मत... जब मैं खड़ी थी.. अभी.. बाथरूम जाने से पहले..!" स्नेहा के मुँह से एक एक शब्द हया की चासनी में से छन कर बाहर निकल रहा था..
"यहाँ..?" कहकर विकी ने अपना हाथ कमर से उठाकर उसके गोल नितंब पर जमा दिया... उसकी हथेली स्नेहा की पॅंटी के किनारों को महसूस कर रही थी.. और उंगलियाँ हाथ लगते ही कस सी गयी उसकी मस्त गान्ड की दरारों के उपर थी...
"आआआः.... हाआँ.. " स्नेहा एकद्ूम से उचक कर कसमसा उठी...
"तुम्हारी 'ये' बहुत प्यारी है सानू!"
"क्या?" मुस्किल से अपने को संभालती हुई स्नेहा पूच्छ बैठी.. पता होने के बावजूद...
विकी समझा नाम पूच्छ रही है..," तुम्हारी.. गान्ड!"
"छ्ह्ही.. क्या बोल रहे हो..? मैने कोई नाम लेने को थोड़े ही बोला था..." नाम में भी क्या जादू था.. सुनते ही स्नेहा पिघलने सी लगी...
"सॉरी.. ये.." कहते हुए विकी ने उसके मोटे खरबूजे जैसे दायें नितंब पर अपने हाथ की जकड़न बढ़ा दी... रसीले आनंद की मीठी सी लहर स्नेहा में दौड़ गयी.. आनंद से दोहरी सी होकर उसने अपने नितंबों को कस लिया.. और ढीला छ्चोड़ दिया...
"अयाया.. बहुत मज़ा आ रहा है.. और करो ना..!" स्नेहा धीरे धीरे खुलती जा रही थी....
"मज़ा तो मुझे भी बहुत आ रहा है... तुम लोग इसको क्या बोलते हो???
"नही.. में नही लूँगी.. मुझे शरम आ रही है....!"
"शरम करने से क्या मिलेगा.. अगर नाम लोगि तो और मज़ा आएगा.. लेकर तो देखो.." विकी ने पॅंट के अंदर फदक रहे अपने 'यार' को मसल कर 'प्लान' की खातिर कुच्छ देर और सब्र करने की दुहाई दी..
"नही.. मुझसे नही होगा.. तुम ले लो.. मैं नही रोकूंगी.."
"क्या ले लूँ... इसका नाम?" कहते हुए विकी ने उंगलियों को कपड़ों के उपर से ही उसकी गांद की दरार में फँसा सा दिया.. और वहाँ पर हल्क हल्क कुच्छ कुरेदने सा लगा...
"अयाया.. बहुत मज़ा आ रहा है.. मैं तो मर ही जाउन्गि.. " कहते हुए स्नेहा ने अपनी गांद को और बाहर की और निकाल दिया.. लग रहा था जैसे वह बिस्तेर से उठाए हुए है...
"नाम लेकर तो देखो.. कितना मज़ा आएगा.." अब विकी का हाथ शरारत करते हुए स्कर्ट के नीचे घुस गया और पॅंटी के उपर से बारी बारी 'दोनो' को सहलाने लगा.. रह रह कर उसका हाथ स्नेहा की नंगी रानो को स्पर्श कर रहा था...
"ले लूँ..?" स्नेहा की साँसें फिर से तेज हो चली थी..," हँसना मत..!"
"हँसूँगा क्यूँ.. देखना फिर तुम्हे मैं एक सर्प्राइज़ दूँगा...!"
"उम्म्म.. हम होस्टल में इसको वो नही कहते.. हम तो......" स्नेहा की साँसे तेज होती जा रही थी...
"तो क्या कहती हो...?"
"बट्स!" स्नेहा ने बावली सी होकर अपनी गांद को पिछे सरका दिया.. विकी की तरफ.. वह हाथ को और भी अंदर महसूस करना चाहती थी...
"नही.. हिन्दी में बताओ..!" विकी का हाथ अब खुल चुकी जांघों के बीच खुला घूम रहा था.. पर पॅंटी के उपर से ही...
"वो.. हम बोलते नही हैं.. पर मुझे एक और नाम पता है.... हाई राम!" स्नेहा की जांघों में लगातार हुलचल हो रही थी...
"बताओ ना.. मज़ा आ रहा है ना..?"
"हां.. बहुत! इनको चू.. ताड़ भी कहते हैं ना...." स्नेहा नाम लेते हुए उस हालत में भी हिचक रही थी....
"हाए सानू.. मज़ा आया ना.. तुम्हारे मुँह से नाम सुनकर मुझे तो बहुत आया.." कहते हुए विकी अपनी एक उंगली को पॅंटी के उपर से ही योनि पर रगड़ने लगा...
"आ.. बहुत.. मज़ा आ रहा है... करते रहो.... आअहह.. मुंम्म्मी!"
"पर मज़ा तो आगे है.. अगर तुम इजाज़त दो तो!" विकी अपना हर शब्द नाप तौल कर बोल रहा था...
"हां.. करो ना.. प्लीज़.. मुझे और भी मज़ा चाहिए... कुच्छ भी करो.. मेरी जान ले लो चाहे.. पर ये तड़प सहन नही होती.. आआअहह.. तेज नही.. सहन नही होती.." स्नेहा बावरी सी हो गयी थी.... अचानक पलट कर विकी की छाती से चिपक गयी...
"चलो.. निकालो कपड़े..." विकी ने लोहा गरम देखकर चोट की...
"पर...........!" स्नेहा सब समझती थी.. हॉस्टिल में लड़कियों में अक्सर ऐसे किससे बड़े चाव से सुने सुनाए जाते थे.. पर ये राज उसने ना उगला,".. पर कपड़े निकाल कर क्या करोगे.. मुझे शरम आ रही है...!"

"शरमाने से क्या होगा?",विकी ने स्नेहा का हसीन चेहरा अपने हाथो में ले लिया," जब उपर से इतना आनंद आ रहा है तो सोच कर देखो... जब हमारे बदन बिना किसी पर्दे के एक दूसरे के शरीर से चिपकेंगे तो क्या होगा... शरम करोगी तो बाद में हम दोनो पछ्तायेन्गे... ना ही तुम्हे और ना ही मुझे फिर कभी ऐसा मौका मिलेगा... सोच लो.. मर्ज़ी तुम्हारी ही है...!"

स्नेहा पलकें झुकाए विकी की हर बात को अपने दिल के तराजू में तौल रही थी..," पर कुच्छ हो गया तो??"
"क्या होगा? कुच्छ नही.. तुम खम्ख्वह घबरा रही हो....!"
"बच्चा...!" कहते हुए स्नेहा की धड़कन तेज हो गयी...
"अरे.. बच्चा ऐसे थोड़े ही हो जाता है... तुम भी ना सानू....!" विकी मरा जा रहा था....
"पर मैने तो सुना है की जब लड़का और लड़की नंगे होकर 'कुच्छ' करते हैं तो बच्चा हो जाता है..." स्नेहा ने एक बार अपनी पलकें उठाकर विकी की आँखों के भाव परखे...
"हे भगवान.. कितनी भोली है तू... जब तक हम नही चाहेंगे.. बच्चा थोड़े ही होगा.. वो तो 'करने' से होता है..."
"क्या करने.. ओह.. लगता है मेरा मोबाइल बज रहा है... बॅग में..!" स्नेहा ने उतने की कोशिश की तो विकी ने उसको पकड़ लिया," रहने दे सानू.. बाद में देख लेंगे...
"नही... पापा का फोन हो सकता है.. मैं एक बार देखती हूँ..." कहकर स्नेहा उठकर टेबल के पास चली गयी," अरे हां.. पापा का ही है... क्या करूँ...?"
"फोन मत उठाना.. देख लो सानू.. मैने पहले ही कहा था.."
पर असमन्झस में खड़ी स्नेहा ने फोन उठा ही लिया और कान से लगा लिया," पापा...!" उसकी आँखों में कड़वाहट भरे आँसू आ गये.... उसने मुँह पर उंगली रख कर विकी को चुप रहने का इशारा किया.... और रूम से बाहर निकल गयी....
विकी का तो एकदम मूड ही ऑफ हो गया.. अब उसकी पोल खुलनी तय थी... ' साली का रेप ही करना पड़ेगा अब तो..' मन ही मन विकी उबल पड़ा.. जल्दी जल्दी में एक पटियाला पैग बनाया और अपने गले में उतार लिया...

"बेटी... कहाँ हो तुम... ठीक तो हो ना... मेरी तो जान ही निकाल दी तूने बेटी....." मुरारी की आवाज़ लड़खड़ा सी रही थी.. दारू के नशे में....
"जहाँ.. आपने भेजा है.. वहीं हूँ पापा... आपने एक बार भी ये नही सोचा...." स्नेहा की आवाज़ में रूखापन भी जायज़ था.. और गुस्सा भी....
"क्या??? तुम मोहन के साथ हो..... सच!" मुरारी के आसचर्या का ठिकाना ना रहा..
"मुझे 'किडनॅप' करने वालों ने तो बहुत कोशिश की.. पर मेरा 'मोहन' ही था जो मुझे सही सलामत बचा लाया..." स्नेहा ने 'किडनॅप' और 'मेरा मोहन' शब्दों पर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर दिया.. पर मुरारी उसके व्यंगया को समझ ना पाया...
अपनी जवान बेटी के मुँह से ड्राइवर के नाम के साथ 'मेरा' शब्द जोड़ना मुरारी को गंवारा नही हुआ... किसी भी बाप को ना होता.. अपने दाँत पीसते हुए गुर्राया," कहाँ है वो हरामजादा.. बात कराना मेरी.. फोन भी ऑफ कर रखा है... मादार.. तू मेरी बात करा उस'से..."
स्नेहा खून का घूँट पीकर रह गयी.. उसको अपने पापा का गुस्सा अपनी असफलता पर खीज का परिणाम लगा..," वो इश्स वक़्त यहाँ नही है...? उसके फोन की बॅटरी ऑफ है..."
"पर तुमने भी फोन नही उठाया बेटी.. मैं यहाँ कितना परेशान हो रहा था.. "
"हां.. मेरा फोन साइलेंट पर था..." स्नेहा ने रूखा सा जवाब दिया...
"मेरी तो जान में जान आ गयी बेटी.. पर जो होता है अच्छे के लिए ही होता है.. तू कहाँ है अभी..?" मुरारी के दिमाग़ में भी इश्स 'किडनॅपिंग' की झूठी खबर से फ़ायदा उठाने की उठापटक चल पड़ी... उसने मीडीया को दिए अपने बयानों में मुखिया और विकी पर जो अनाप-शनाप आरोप लगाए थे.. अब उसकी किरकिरी होने वाली थी... अगर ये बात सामने आ गयी की किडनॅपिंग हुई ही नही...," बता ना बेटी.. कहाँ है अभी तू..."
"जहाँ पर भी हूँ... ठीक ही हूँ.. आप चिंता ना करें.. आपकी बेटी अब बड़ी हो गयी है.. सब समझती है..." स्नेहा के हर बोल में बग़ावत थी...
मुरारी को स्नेहा का अंदाज अजीब सा लगा.. पर इश्स वक़्त तो वो किन्ही और ही ख़यालों में खोया हुआ था...," ओके बेटा.. जहाँ भी है.. ऐश कर... बस एक बात का ध्यान रखना.. जब तक मैं ना कहूँ.. वापस मत आना.. और अपनी पहचान च्छूपा कर रखना..."
"आपने ऐसा क्यूँ किया पापा.. अपनी अयाशियों के लिए मुझे हमेशा घर से दूर रखा और अब कुर्सी के लिए मुझे ही दाँव पर लगा दिया..." स्नेहा कहते हुए भभक कर रो पड़ी...
मुरारी एक पल के लिए शर्मिंदा हो गया... पर राजनीति के उल्टे घड़े पर शरम का पानी कब तक ठहरता....," बेटी.... मैं तुम्हे सब समझा दूँगा.. बस ध्यान रखना मेरे कहे बिना वापस मत आना.. कहीं दूर निकल जा...!"
"मैं वापस कभी नही आउन्गि पापा..!" स्नेहा ने रोते हुए कहा और गुस्से में अपना फोन ज़मीन पर दे मारा... फोन टूट गया....

अपने आँसू पौंचछते हुए स्नेहा अंदर घुसी ही थी की विकी को देखकर चौंक पड़ी," ये... ये क्या कर रहे हो...?"
विकी जल्दी जल्दी आधी बोतल गटक चुका था.. अब वो अपना प्लान बदलने की तैयारी में था.. फोन से की गयी रेकॉर्डिंग उसने डेलीट कर दी थी...," दिखता नही क्या? शराब पी रहा हूँ..." स्नेहा को अब वह ऐसे घूर रहा था जैसे भाड़े पर लाया हो.....
स्नेहा को लगा वो नशे में बहक गया है.. ऐसा में उसको विकी का अजीबोगरीब जवाब भी बड़ा प्यारा लगा.. वह अपने आपको खिलखिलाकर हँसने से ना रोक सकी...
"हंस क्यूँ रही है...?" विकी को अब उस'से किसी अपनेपन की उम्मीद ना थी.. इसीलिए हैरान होना लाजिमी ही था... वह गिलास रखकर खड़ा हो गया...
"तुम्हारी शकल देखकर हंस रही हूँ.. लग ही नही रहा की तुम पहले वाले 'मोहन' हो.. ऐसे क्या देख रहे हो अब...? मैने पापा को नही बताया की हम कहाँ है.. और ना ही ये की मुझे तुमने सब कुच्छ बता दिया है... नाराज़ क्यूँ हो रहे हो.." कहते हुए स्नेहा अपने दोनो हाथ बाँधकर उसके सामने जाकर खड़ी हो गयी...
"क्या?.. बात हो गयी तुम्हारे पापा से... क्या कह रहे थे...?" विकी की जान में जान आ गयी..
स्नेहा मायूस हो गयी.. कुच्छ देर चुप रहकर बोली," कहना क्या था.. कह रहे थे.. जब तक मैं ना कहूँ.. वापस मत आना... तुम्हारा सोचना सही निकला मोहन.. वो मुझे 'यूज़' कर रहे हैं...."
" तो... तुमने क्या सोचा है फिर...?" विकी मॅन ही मॅन उच्छल पड़ा...
" मैं कभी वापस नही जाउन्गि... ?" स्नेहा ने अपने इरादे जता दिए....
" तो फिर?..... और कहाँ जाओगी..?" विकी ने उसको हैरानी से देखा...
स्नेहा कुच्छ ना बोली.. बस पलकें उठाकर विकी की आँखों में आँखें गढ़ा ली.. और जाने किस गहराई में उतर गयी... जैसे वहीं अपना संसार ढ़हूंढ रही हो...
काश विकी उसके दिल के इरादे जान गया होता," अब क्या हुआ...?"
" कुच्छ नही...!" स्नेहा ने हौले से कहा और आगे बढ़कर विकी की छाती से लिपट गयी.. अपनी दोनो बाहें उसकी कमर में डालकर...
शराब और शबाब से मस्त हो चुका विकी अब कहाँ चुप रहने वाला था.. अपने हाथो को स्नेहा के पिछे ले जाकर उसकी मस्त गांद को सहलाने लगा... स्नेहा ने सिर उठाकर विकी की आँखों में आँखें डाल ली... विकी भी बिना पालक झपकाए स्नेहा को देखते हुए उसकी गांद को दबाता हुआ उसको अपनी तरफ खींचने लगा... स्नेहा की साँसे विकी के फैफ़ड़ों से होती हुई उसके खून को गरम करने लगी.. स्नेहा पर एक बार फिर से मस्ती छाने लगी.. आँखें बंद होने लगी... जैसे ही विकी ने अपना सिर थोड़ा सा नीचे झुकाया; स्नेहा अपनी आइडियों के बल खड़ी हो गयी और होंठो के बीच की दूरी को नाप दिया....
अपने रसीले होंठों को विकी के होंठों में और 38" की उन्छुयि गांद को उसके हाथो बेदर्दी से रगडे जाने पर स्नेहा ज़्यादा देर तक आपे में ना रह सकी," उम्म्म्मम... आआआआहह!" अपने होंठों को बड़ी मुश्किल से विकी की 'क़ैद' से आज़ाद करा स्नेहा ने लुंबी और गहरी सिसकारी ल्ली.. विकी के हाथ उसकी स्कर्ट को उपर उठा उसकी पॅंटी में घुस चुके थे.. और विकी लगातार अपनी उंगलियों का जादू उसकी गांद की दरार में गहराई तक दिखा रहा था.. स्नेहा की टाँगें अपने आप ही खुल गयी थी..
अगले हिस्से में विकी के हथ्हियार की लंबाई को अपनी जांघों के बीच महसूस करके तो स्नेहा फिर से सातवें आसमान पर जा बैठही... वह उस'से 'खुद को बचाना भी चाहती थी.. और दूर भी नही होने देना चाहती थी.. विकी ने जैसे ही पिछे से उसकी गांद की फांकों में अपने हाथ फँसा कर उसको उपर खींचा तो वह फिर से एडियीया उठाने को मजबूर हो गयी... साँसों की गर्माहट और सिसकियों की कसमसाहट बढ़ती ही जा रही थी... विकी ने उसको इसी हालत में उपर उठा लिया और ले जाकर बेड पर लिटा दिया.. स्नेहा की आँखें खुल ही नही पा रही थी.. बेड पर गिरते ही उससने अपने हाथ पीछे फैला दिए .. स्कर्ट उपर उठी हुई थी और नीले रंग की पॅंटी में छिपि कामुक तितली का मादक आकार उपर से ही स्पस्ट दिखाई दे रहा था...
"मज़ा आ रहा है ना.." विकी अपने हाथ से स्नेहा की जांघों को सहलाने लगा..
बदहवास सी स्नेहा के होंठों पर तेर गयी कमसिन मुस्कुराहट ने जवाब दिया.. स्नेहा ने टाँगें चौड़ी करके जांघें खोल दी.. खुला निमंत्रण था....
विकी उसकी जांघों पर झुक गया और अपने होंठ पॅंटी के किनारे जाँघ पर टीका दिए....
"उफफफफफ्फ़... क्या.. कर्रहे.. हो.. मैं मर जाउन्गि..." स्नेहा तड़प उठी... स्नेहा बीच भंवर में फाँसी हुई थी... हर पल में इतना आनंद था की पिछे हटने के बारे में सोचा ही नही जा सकता था... और पहली बार के इश्स अनोखे आनंद को समेटना भी मुश्किल था... स्नेहा ने सिसकते हुए अपनी जांघें कसकर भींच ली....
पर विकी कहाँ मान'ने वाला था.. हूल्का सा ज़ोर लगाकर उसने स्नेहा की जांघों को पहले से भी ज़्यादा खोल दिया.. पॅंटी फैल गयी और उसके साथ ही स्नेहा की चिकनी पतली उँच्छुई चूत के आकर में भी परिवर्तन सा आ गया.. चूत के होंठ थोड़े से फैल गये लगते थे...," आह मम्मी.. मर गयी.."
लगभग मर ही तो गयी थी स्नेहा.. जालिम विकी ने पॅंटी के उपर से ही चूत के होंठों पर अपने होंठ रख कर जैसे उसके शरीर के अंग अंग को फड़कने पर मजबूर कर दिया... स्नेहा की साँसे जैसे रुक सी गयी.. आँखें पथ्राने सी लगी.. पर जांघें और ज़्यादा खुल गयी... अपनी मर्ज़ी से! और एक लुंबी साँस के साथ उसके होंठों से निकले," हयीईएय्य्ये मोहाआन्न्न्न्न्न.. मार गेयीयियीयियी मुम्म्म्म्म..."
आँखों और होंठों से पहले विकी की उंगली ने उस लज़ीज़ रसीली और हुल्के बालों वाली रस से सराबोर योनि को छुआ... विकी ने एक उंगली पॅंटी में घुसा दी.. स्नेहा की चूत गीली होकर भी प्यासी लग रही थी.. मर्द की च्छुअन से स्नेहा के रौन्ग्ते खड़े हो गये.. इतना आनंद.. !
"निकाल दूं..?" विकी ने उपर उठकर स्नेहा के चेहरे की और देखा..
नेकी और पूच्छ पूच्छ.. स्नेहा तो कब से नंगी होने को तैयार हो चुकी थी.. बिना कुच्छ बोले ही उसने अपनी फैली हुई जांघों को समेटकर अपने 'चूतड़' उपर उठा दिए.. इस'से बेहतर जवाब वो क्या देती..
विकी ने भी एक पल की भी देरी ना की.. दोनो हाथों से पॅंटी को निकल कर उसको अनावृत कर दिया...
लड़कियों के मामले में रेकॉर्ड बना चुके विकी के लिए यह पहला अनुभव था.. स्नेहा को बाहर से देखकर उसने उसके अंगों की जो कीमत आँकी थी.. उस'से कयि गुना लाजवाब थी.. स्नेहा की.....! इतनी करारी चूत को देखते ही विकी मर मिटा. स्नेहा को आगे खींच कर उसकी जांघों को बेड के किनारे लेकर आया और फर्श पर घुटने टेक दिए और वहाँ..... अपने होंठ!
स्नेहा का तो बुरा हाल पहले ही हो चुका था.. अब तो उसकी होश खोने की बारी थी... नीचे की सिहरन उसकी रसीली चुचियों तक जा पहुँची.. मस्त मस्त आवाज़ें निकालती हुई स्नेहा अपनी चूचियों को अपने ही हाथो से मसल्ने लगी...
"हाए.. मैं इनको कैसे भ्हूल गया..." कहते हुए विकी ने स्नेहा को फर्श पर खड़ी कर दिया और पूरी 10 सेकेंड भी नही लगाई उसको जनम्जात जैसी करने में.. अपने पैरों पर स्नेहा उतने टाइम भी खड़ी ना रह सकी... विकी की बाहों में झहूल गयी...
"ओह्ह्ह.. कितनी प्यारी हैं..." विकी के मुँह से अनायास ही निकल गया.. जब उसने स्नेहा की चूचियों को छ्छू कर देखा.... उनका आकार नागपुरी संतरों जैसा था.. मोटी मोटी.. नरम नरम.. तनी तनी!
विकी ने स्नेहा को फिर से उसी अंदाज में लिटा दिया.. लिटाने पर भी उभार ज्यों के त्यों थे.. अपने हाथो से उन्न फलों को हूल्का हूल्का मसल्ते हुए वो उस कच्ची कली का रस चूसने लगा...
सब कुच्छ स्नेहा के बर्दास्त से बाहर हो चुका था.. वह रह रह कर अपनी गांद को उचका रही थी.. और रह रह कर अपनी जांघों को भींच लेती.. जब सहन करना मुश्किल हो जाता...
जी भरकर जीभ से चूत को चाटने के बाद विकी फिर से उंगली को उसकी फांकों के बीच लेकर आया.. और उनके बीच उंगली को आगे पिछे करके योनि छिद्रा तलाशने लगा...
हर पल स्नेहा को एक नया अनुभव हो रहा था.. पहले से ज़्यादा मीठा.. और पहले से ज़्यादा मस्ती भरा.. अचानक स्नेहा हूल्का सा उच्छली.. उसने सिर उठाकर देखा.. उंगली ने 'ओम गणेशाय नमः:' कर दिया था.. आधी उंगली बाहर थी.. आनंद के मारे पागल सी हो चुकी स्नेहा कोहनी बेड पर टीका कर उपर उठ गयी और बड़े चाव से उंगली को धीरे धीरे आते जाते देखने लगी... उसका सारा बदन साथ ही झटके खा रहा था.. चूचियाँ..दायें बायें और उपर नीचे हो रही थी.. स्नेहा की आँखों में उसके बदन की बढ़ती प्यास आसानी से महसूस की जा सकती थी..
चूचियों को इश्स कदर मस्ती से झ्हूम्ते देख विकी खुद को रोक ना पाया.. उंगली को 'अंदर' ही रखते हुए वह आगे झुका और उसकी बाई चूची के नन्हे से गुलाबी निप्पल को अपनी जीभ से एक बार चाटा और होंठो में दबा लिया...
"आआआअहह... मुझे... इतने.. मज़े क्यूँ. आअ रहे हैं... मोहन.. तुम्हे भी आ रहे हैं क्या... मुझे पता नही क्या हो रहा है.. "
" हाँ जान.. मुझे भी हो रहा है... तुम सच में सबसे निराली हो... सबसे प्यारी.." विकी ने अपनी उंगली निकाल ली.. और अपनी शर्ट निकाल कर अपनी पॅंट उतारने लगा...
स्नेहा शर्मा गयी और लेट कर अपनी आँखें बंद कर ली.. उसको पहली बार उसका दीदार होने वाला था.. जिसके बारे में अक्सर लड़कियों में चर्चा होती थी... होस्टल में... स्नेहा को आज 'उसका हिस्सा' मिलने वाला था...
"क्या हुआ..?" विकी ने मुस्कुराते हुए शर्मकार आँखें बंद किए और जांघों को भीचे लेटी हुई स्नेहा से पूचछा..
पोच्छने पर स्नेहा और भी शर्मा गयी और पलट कर उल्टी लेट गयी...
क्या सीन था.. पतली नाज़ुक सी कमर से नीचे किसी गुंबद की तरह उठी हुई गांद की फाँकें और उनके बीच कसी हुई सी आकर्षक दरार.. पहले ही 7.5" हो चुके विकी के लंड ने एक और अंगड़ाई ली.. और अंडरवेर का एलास्टिक उसके पेट से दूर हो गया.. वो तना ही इतना हुआ था की अगर अंडरवेर को चीर भी देता तो कोई ताज्जुब की बात नही होती...





विकी ने उसकी जांघों पर हाथ रखकर प्यार से सहलाते हुए उसकी गांद पर ले आया और फिर आगे झुकते हुए स्नेहा की गर्दन पर एक चुंबन देकर उसके साथ लेट गया.. स्नेहा के स्मनान्तर..
" क्या हुआ.. शर्मा क्यूँ रही हो.." विकी ने उसके कान के पास अपने होंठ लेजाकार कामुकता से कहा..
स्नेहा ने जवाब फिर भी नही दिया.. अचानक पलटी और विकी की छाती में अपना चेहरा घुसा दिया.. और सिमट कर अपने आपको विकी में ही छिपाने की कोशिश करने लगी...
"आँखें खोलो... देखो तो सही.. क्या दिखाता हूँ..." विकी ने हंसते हुए स्नेहा से कहा...
"नही.. मुझे नही देखना..." स्नेहा को मानो डर लग रहा हो.. इश्स अंदाज में बोली..
"अब ये तो चीटिंग है... मैं कब से तुम्हारी सेवा कर रहा हूँ.. और तुम देख भी नही सकती...." विकी ने उलाहना सा दिया..
"पर्ररर... तुम्हे पता है ना.. मुझे शरम आ रही है...." स्नेहा हल्के से बुदबुदाई...
"ऐसे शरमाती रहोगी तो... बाद में पछ्ताओगि... सोच लो..."
"ओकके.. हुन्हु... क्या देखना है.. बताओ...?" शरारत भरी आवाज़ में स्नेहा ने आँखें खोलकर विकी की आँखों में झाँका...
"यही.. जो तुम्हे प्यार सिखाएगा... और मज़े भी देगा..." विकी ने स्नेहा का हाथ पकड़ कर अंडरवेर की साइड से अंदर घुस्वा दिया....
" ओह्ह गॉड.. इतना मोटा!" लाजाते हुए भी स्नेहा अपने आपको ना रोक पाई.. अपने आसचर्या को ज़ुबान तक लाने में...
" इतनी हैरान क्यूँ हो.. लगता है.. तुम्हे पता है.. इसका क्या करते हैं... एक्सपीरियन्स है क्या..?" विकी ने यूँही मज़ाक में कह दिया...
स्नेहा ने गुस्सा सा दिखाते हुए अपने कोमल हाथ का घूँसा बनाकर विकी की छाती में दे मारा..," ओये.. मेरी कौनसा शादी हुई है...?"
"शादी तो अब भी नही हुई है..... फिर?" विकी ने उसकी चूची को अपने हाथ में दबा लिया....
" हो जाएगी...! तुम मुझे जानते नही हो.." स्नेहा ने तो यही सोचा होगा की मोहन तो उस'से शादी करके अपने आपको खुशकिस्मत ही समझेगा....
जाने क्यूँ विकी इश्स बात पर अपनी नज़रें चुराने लगा.. उसने बात बदल दी," तो तुम्हे पता है.. इसका क्या करते हैं..."
"हूंम्म!" स्नेहा अब अपने आपको थोड़ा सहज पा रही थी.. अपने दिल की बात कह कर... वह बड़े प्यार से बिना शरमाये अंडरवेर के अंदर ही विकी के लंड को सहला रही थी...
"इसको इसमें डालते हैं" स्नेहा ने दूसरा हाथ अपनी जांघों पर रख दिया...
"तो डालूं...?" विकी ने जैसे ही अपना अंडरवेर निकाला.. 'लंड' तन्ना कर स्नेहा के हाथ से छ्छूट गया...
" नही.. अभी नही.. बच्चा हो जाएगा.. मुझे पता है.. इसमें डालने से ही बच्चा बनता है......"
" ये भी कोई बात हुई.. तुम्हे आधा पता है.. और आधा नही..." विकी घुटनो के बल बैठ गया..उसका लंड अब ठीक स्नेहा की आँखों के सामने हिलौरे ले रहा था.... स्नेहा ने आँखें बंद करके उसको फिर हाथ में पकड़ लिया," अच्च्छा जी.. क्या नही पता...?"
"सिर्फ़ डालने से बच्चा नही होता.. खैर छ्चोड़ो.. मुँह में ले सकती हो ?"
"मुँह में.... ये कोई कुलफी है जो मैं मुँह में लूँगी... कहकर स्नेहा हुँसने लगी... उसने आँखें खोल दी थी.. और बड़े प्यार से लंड के चिकने सूपदे को देख रही थी....
"लेकर तो देखो... अगर अच्च्छा ना लगे तो कहना..."
"तुम्हे कैसे पता.. कोई एक्सपीरियन्स है क्या?" स्नेहा ने हंसते हुए उसी की टोन में पूचछा...
"न्न्नाही.. ववो.. दोस्त बता देते हैं ना.. लड़कियों को क्या क्या अच्च्छा लगता है...."
"पर मुझे तो नही बताया.. मेरी सहेलियों ने..." हालाँकि उसकी तरफ निहारते हुए स्नेहा के मुँह में पानी आ चुका था...
" यार.. तुम लेकर तो देखो.. कह तो रहा हूँ.. निकाल देना.. अगर अच्च्छा ना लगे तो.." कहकर विकी उसकी छाती के दोनो ओर पैर करके आगे की और झुक कर बैठ गया.. अब स्नेहा के होंठों और विकी के 'औजार' में इंच भर का फ़र्क था
 


 थोड़ा सा हिचकते हुए स्नेहा ने अपने हाथ में पकड़े लंड को नीचे झुकाया और अपने होंठो से छुआ दिया.. और फिर होंठों पर जीभ फेरते हुए उसको दूर कर दिया...
"क्या हुआ?" विकी तड़प सा उठा और खुद ही नीचे झुक कर वापस उसके होंठो से भिड़ाने की कोशिश करने लगा..
"कुच्छ नही.. अजीब सा लग रहा है..." अब स्नेहा खुल गयी थी.. पूरी तरह...
" अच्च्छा नही लग रहा क्या..?" बेचैनी से विकी ने पूछा...
बिना कोई जवाब दिए.. स्नेहा ने अपने होंठो को आधा खोला और सुपादे के अगले भाग को होंटो में दबा लिया.. और विकी की और देखने लगी..
विकी को पहली बार इतना आनंद आया था की उसकी आँखें बंद हो गयी..," अयाया.. "
"अच्च्छा लग रहा है...?" अब की बार स्नेहा ने पूचछा...
"हाआँ..." जीभ निकाल कर चाटो ना.. प्लीज़..." विकी कराह उठा.. आनंद के मारे..
स्नेहा को कोई ऐतराज ना हुआ.. उसको ये जानकार बहुत खुशी हुई की विकी को अच्च्छा लग रहा है.. अपनी जीभ निकाली और लंड की जड़ से लेकर सुपादे तक नीचे से चाट'ती चली गयी...
"आआहह.. मार डालोगी.. तुम तो.. ऐसे ही करो.. और इसको मुँह के अंदर लेने की कोशिश करो..."
स्नेहा तो मस्त होती जा रही थी... उसको भी बहुत मज़ा आ रहा था..
विकी ने देखा स्नेहा अपने हाथ को उसकी टाँगों के बीच से निकालकर नीचे ले जाने की कोशिश कर रही है.. विकी को समझते देर ना लगी... वो भी तो तड़प रही होगी," एक मिनिट.. कहकर विकी घूम गया और झुकते हुए अपनी कोहनियाँ स्नेहा की जांघों के बीच टीका दी.. स्नेहा की चिकनी चूत अब उसकी पहुँच में थी..
स्नेहा के लिए भी अब आसान हो गया.. लंड उसके मुँह के उपर सीधा लटक रहा था.. उसने अपने होंठ जितना हो सकता था उतने खोले और सूपदे को मुँह में भर लिया...
दोनो 69 की स्थिति में थे.. स्नेहा तो स्नेहा; विकी भी मानो आनंद के असीम सागर में तेर रहा हो.. बड़ी ही नाज़ूक्ता से उसने स्नेहा की जांघों को अपने हाथो से दबाया.. और एक हाथ की उंगली से उसकी चूत की कुँवारी फांकों को अलग करके उनके बीच छुपे हुए छ्होटे से दाने को देखा.. मस्ती से अकड़ा हुआ था.. चूत का रंग अंदर से स्नेहा के होंठो जैसा ही था.. एकद्ूम गुलाबी रंगत लिए हुए.
वह झुका और स्नेहा के 'दाने' को चूसने लगा..
स्नेहा एकद्ूम उच्छल सी पड़ी और इस उच्छलने में लंड सूपदे से कहीं ज़्यादा दूर उसके मुँह में हो आया...
स्नेहा इतनी उत्तेजित होने के बावजूद उसके सबसे अधिक संवेदनशील अंग के साथ छेड़ छाड सहन नही कर पा रही थी.. मस्ती से वा अपनी गांद को इधर उधर मटकाने लगी.. विकी ने भी उसको कसकर दबोच लिया.. और एक मुश्त कयि मिनूटों तक स्नेहा को जन्नत के प्रॅथम दर्शन कराता रहा...
दोनो ही बावले से हो चुके थे.. दोनो एक दूसरे का भरपूर साथ दे रहे थे.. की अचानक एक बार फिर स्नेहा के साथ वही स्थिति एक बार फिर उभर आई.. उसकी टाँगें काँपने लगी.. सारा बदन अकड़ सा गया और अपनी जांघों में उसने विकी का सिर जाकड़ लिया..
विकी को भी हटने की जल्दी ना थी.. स्नेहा की बूँद बूँद को वह मदहोशी के आलम में ही अपने गले में उतार गया...
उधर स्नेहा भी उसके लंड के साथ अब तक बुरी तरह व्यस्त थी... चाट चाट कर, चूस चूस कर... काट काट कर उसने सूपड़ा लाल कर दिया था...
स्नेहा के ढीली पड़ते ही विकी 'अपना' हाथ में लेकर घुटनो के बाल उसके मुँह के पास बैठ गया," तुम्हे भी पीना पड़ेगा...?"
"क्या?" स्नेहा के चेहरे से असीम तृप्ति झलक रही थी...
"यही.. इसका रस.. जो अभी निकलेगा..." विकी का हाथ बड़ी तेज़ी से चल रहा था..
"नही... रहने दो ना... प्लीज़.." स्नेहा ने रिक्वेस्ट की..
" रहने कैसे दूँ.. मुझे भी तो पीला दिया.. ज़बरदस्ती.. टाँगों में सिर भींच कर.."
उन्न पलों को याद करके स्नेहा बाग बाग हो गयी.. फिर शरारत से मुँह बनाते हुए बोली.. "ठीक है... लाओ पिलाओ.." कह कर उसने अपना मुँह खोल लिया...
उसके बाद तो 2 ही मिनिट हुए होंगे.. अचानक विकी रुका और स्नेहा के खुले होंठो में लंड जितना आ सकता था फँसा दिया.. रस की धारा ने स्नेहा का पूरा मुँह भर दिया.. आख़िर कार जब बाहर ना निकल पाई तो मुस्कुराते हुए गटक लिया...
विकी धन्य हो गया... हटा और बेड पर धदाम से गिर पड़ा.. स्नेहा उठी और अपनी चूचियों को विकी की छाती पर दबा कर उसके होंठों को चूमने लगी.. अजीब सी क्रितग्यता उसके चेहरे से झलक रही थी...
इतनी हसीन और कमसिन लड़की को अपनी बाहों में पाकर नशे में होने के बावजूद तैयार होने में विकी को 3-4 मिनिट ही लगे... वह अचानक उठा और स्नेहा को अपने नीचे दबोच लिया.. उसकी आँखों में फिर से वही भाव देखकर स्नेहा मुस्कुराइ," अब क्या है..?"
"अब अंदर..." कहते हुए. विकी ने फिर उसकी जांघें खोल दी.. और हौले हौले टपक रही चूत पर नज़र गढ़ा दी... और एक बार फिर उसको तैयार करने के लिए उंगली और होंठो को काम पर लगा दिया...
स्नेहा भी जल्द ही फिर से फुफ्कारने लगी... लुंबी लुंबी साँसे और योनि छिद्र में फिर से चिकनाई उतर आना इस बात का सबूत था की वो उस असीम आनंद को दोबारा पाने के लिए पहली बार होने वाले दर्द को झेल सकती है...
विकी पंजों के बल बैठ गया और स्नेहा के घुटनो के नीचे से बेड पर हाथ जमकर उसकी जांघों को उपर उठा सा दिया... चूत हूल्का सी रास्ता दिखाने लगी.. विकी ने सूपड़ा 'सही' सुराख पर सेट किया और स्नेहा के चेहरे की और देखने लगा..," एक बार दर्द होगा.. सह लोगि ना...?"
"तुम्हारे लिए...." स्नेहा हमला झेलने के लिए तैयार हो चुकी थी.. अपने पहले प्यार की खातिर...
विकी के भी अब बात बर्दास्त के बाहर थी.. ज़्यादा इंतज़ार वो कर नही सकता था.. सो स्नेहा की जांघों को पूरी तरह अपने वश में किया.. और दबाव अचानक बढ़ा दिया...
स्नेहा के मुँह से तो चीख भी ना निकल सकी.. एक बार में ही सूपड़ा अपना रास्ता अपने आप बनाता हुआ काफ़ी अंदर तक चला गया था.. स्नेहा ने पहले ही अपने मुँह को अपने ही हाथो से दबा रखा था... लंड सर्दियों में जमें हुए मक्खन में किसी गरम चम्मच की तरह घुस गया था.. कुच्छ देर तक विकी ना खुद हिला और ना ही स्नेहा को हिलने दिया.. और आगे झुक कर स्नेहा की छातियो को दबाते हुए उसको होंठो को भी अपने होंठों की गिरफ़्त में ले लिया..
धीरे धीरे 'चम्मच' की गर्मी से 'चूत' का जमा हुआ 'मक्खन' पिघल कर बहने सा लगा.. इश्स चिकनाहट ने दोनो के अंगों को तर कर दिया.. स्नेहा को लगा.. अब हो सकता है तो उसने अपनी गांद उचका कर विकी को सिग्नल दिया...
विकी ने थोड़ा पिछे हट'ते हुए एक बार और प्रहार किया.. इश्स बार अंदर लेने में स्नेहा को उतनी पीड़ा नही हुई..
करीब 5 मिनिट बाद स्नेहा सामान्य हो गयी और अजीब तरह की आवाज़ें निकालने लगी.. ऐसी आवाज़ें जो कामोत्तेजना को कयि गुना बढ़ा दें...
अब दोनो ही अपनी अपनी तरफ से पूरा सहयोग कर रहे थे.. विकी उपर से आता और आनंद की कस्ति पर सवार स्नेहा की गांद नीचे से उपर की और उच्छलती और दोनो की जड़ें मिल जाती.. दोनो एक साथ आ कर बैठते...
आख़िरकार स्नेहा आज तीसरी बार 'आ' गयी... विकी भी आउट ऑफ कंट्रोल होने ही वाला था.. उसने झट से अपना लंड बाहर निकाला और फिर स्नेहा के मुँह के पास जाकर बैठ गया.. जैसे वहाँ कोई स्पर्म बॅंक खोल रखा हो...
स्नेहा ने शरारत से एक बार अपने कंधे 'ना' करने की तरह उचकाए.. और फिर मुस्कुराते हुए अपने होंठ खोल दिए.. उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी... पहले प्यार की चमक!
सुबह विकी उठा तो स्नेहा उसके कंधे पर सिर रखे उसके बलों में हाथ फेरती हुई उसकी ही और देख रही थी.. अपलक!
"तुम कब जागी?" विकी ने हुल्की सी मुस्कान उसकी और फैंकते हुए पूचछा...
"मैं तो सोई ही नही.. नींद ही नही आई..?" नींद और पहले प्यार की खुमारी उसकी आँखों में हुल्की सी लाली के रूप में चमक रही थी.. और उसके चेहरे पर कली से फूल बन'ने का बे-इंतहा नूर था.. विकी ने उसकी आँखों में आँखें डाली तो स्नेहा ने पलकें झुका ली..
"कैसा रहा रात का अनुभव?" विकी ने उसकी और करवट लेते हुए स्नेहा की कमर में हाथ डाल कर अपनी और खींच लिया.. और स्नेहा मुस्कुरा कर उस'से चिपक गयी.....
" हम कहाँ रहेंगे मोहन?" स्नेहा ने उसके गले में अपनी गोरी बाँहें डाल दी..
" मतलब? " विकी ने नज़रें चुरा ली...
"मैं वापस हॉस्टिल नही जाना चाहती.. यहीं रहना चाहती हू.. तुम्हारे साथ.."
विकी ने बात टालने के इरादे से अपने एक हाथ से उसकी चूची को दबाया और उसके होंठो को अपने होंठो में लेने के लिए अपना चेहरा उसकी तरफ बढ़ा दिया..
कामुकता भरे आनंद की लहर स्नेहा के पुर बदन को दावादोल सा कर गयी.. पर वह अगले कदम के बारे में जान'ने को चिंतित थी.. उसने अपना चेहरा सिर झुका कर विकी की छाती में छुपा लिया," बताओ ना मोहन.. अब हम क्या करेंगे.. मुझे वापस तो नही भेजोगे ना? मुझे अब तुमसे दूर नही जाना.."
विकी एक पल के लिए असमन्झस में पड़ गया.. इश्स वक़्त उसको स्नेहा को वादों के जाल में उलझाए ही रखना था.. पर जाने क्यूँ.. स्नेहा के सीधे सवाल का टेढ़ा जवाब देने से वह कतरा रहा था..," पर तुम्हारे पापा.. उनका क्या करोगी..? विकी ने सवाल का जवाब सवाल से ही दिया...
स्नेहा का उम्मीदों से भरा मॅन क्षणिक कड़वाहट से भर उठा..," पापा! हुन्ह... उनकी पैदाइश होने के अलावा हमारा रिश्ता ही क्या रहा है.. मैं 8 साल की तही जब उन्होने मुझे हॉस्टिल में डाल दिया.. आज 11 साल होने को आ गये हैं.. और मुस्किल से 11 बार ही मैने उनका चेहरा देखा है.. मैं उनसे बहुत प्यार करती थी.. हमेशा उनसे मिलने को.. घर जाने को तड़पति रहती थी.. पर उन्होने.. पता नही क्यूँ.. मुझे प्यार दिया ही नही.. कभी हॉस्टिल से घर लेने भी आता तो उनका ड्राइवर.. घर जाकर पता चलता.. देल्ही गये हैं.. बाहर गये हैं.. और मुझे तकरीबन उसी दिन शाम को या अगले दिन वापस भेज हॉस्टिल में फैंक दिया जाता" स्नेहा की आँखों में अतीत में मिली प्यार के अभाव की तड़प के छिपे हुए आँसू जिंदा हो उठे..," सब फ्रेंड्स के मम्मी पापा.. उनसे मिलने आते.. उनको घर लेकर जाते और वो लड़कियाँ आकर घर जाकर की गयी मस्ती को सबको बताती.. सोचो.. मेरे दिल पर क्या बीत-ती होगी.. लड़कियाँ मुझे 'अनाथ' तक कह देती थी.. अगर पापा ऐसे ही होते हैं तो सबके क्यूँ नही होते मोहन.. हम अपने बच्चे को हॉस्टिल नही भेजेंगे.. अपने से कभी दूर नही करेंगे मोहन... मैने महसूस किया है.. बिना अपनों के साथ के जिंदगी कैसी होती है.. फिर भी मैं हमेशा यही सोचती थी की पापा बिज़ी हैं.. पर प्यार तो करते ही होंगे... पर कल तो उन्होने दिखा ही दिया की... मैं सच मैं ही 'अनाथ' हूँ.." कहते हुए स्नेहा का गला बैठ गया.. और दिल की भादास विलाप के रूप में बाहर निकालने लगी...
विकी से उसका रोना देखा ना गया.. चेहरा उपर करके उसके आँसू पौंच्छने लगा... पर दिल उसका भी ज़ोर से धड़क रहा था.. उसके रोने के पिछे असली कारण वही था," अब.. रोने से क्या होगा सानू? सम्भालो अपने आपको... " विकी ने उसको अपनी छाती से चिपका लिया....
" बताओ ना.. हम कहाँ रहेंगे.. कहाँ है अपना घर?" स्नेहा पूरी तरह से विकी के लिए समर्पित हो चुकी थी.. उसके घर को अपना घर मान'ने लगी थी...
" उस'से पहले तुम्हे मेरी मदद करनी पड़ेगी... सानू..!"
" मैं क्या मदद कर सकती हूँ..? मैं खुद अब तुम्हारे हवाले हूँ..!"
" वो तो ठीक है.. पर अगर तुम्हारे पापा को पता चल गया तो मेरी जिंदगी ख़तरे में पड़ जाएगी.. अब तक तो फिर भी हो चुकी होगी... ये पता चलते ही की मैं ठीक ठाक हूँ और तुम मेरे साथ हो.. पोलीस मुझे उठा लेगी.. उसके बाद तुम फिर अकेली हो जाओगी... मुझे जैल मैं भेज देंगे.. और तुम्हारे पापा कभी सच्चाई को सामने नही आने देंगे...." विकी ने अपनी अगले प्लान की भूमिका बाँधी....

स्नेहा सुनकर डर गयी.. उसके पापा 'पॉवेरफूल थे.. और सच में ऐसा कर सकते थे.. स्नेहा के लिए तो विकी उसके बाप का एस.ओ. ही था..," फिर.. अब हम क्या करें मोहन!"
"सिर्फ़ एक ही रास्ता है.. तुम पहले मीडीया में जाकर सच्चाई बता दो.. की तुम्हारे बाप ने ही ये सब किया है.. और ये भी कहना की तुम अब वापस नही जाना चाहती.. फिर कुच्छ दिन तुम्हे छिप कर रहना पड़ेगा..!" विकी ने स्नेहा को वो रास्ता बता दिया जो उसको मंज़िल तक ले जाने के लिए काफ़ी था..
"उसके बाद तो सब ठीक हो जाएगा ना?"स्नेहा को अब भी चिंता सता रही थी..
"हाँ.. उसके बाद हम साथ रह सकते हैं.. खुलकर.." स्नेहा की सहमति जानकर विकी खिल उठा और उसने अपना हाथ स्नेहा की जांघों के बीच फँसा दिया...," पर याद रखना.. तुम्हे मेरा कहीं जिकर नही करना है.. यही कहना की मैं किसी तरह उनके चंगुल से बचकर अपनी किसी सहेली के घर चली गयी थी.. अगर मेरा नाम आया तो वो मुझे ढ़हूंढ लेंगे...!"
"आआहह.. ये मत करो.. मुझे कुच्छ हो रहा है.." अपनी पॅंटी में विकी की उंगलियाँ महसूस करके तड़प उठी...
"तुमने सुन लिया ना..." विकी ने अपना हाथ बाहर निकाल लिया..
"हां.. बाबा! सुन लिया.. कब चलना है.. मीडीया के सामने..?"
"मैं नही जाउन्गा.. तुम्हे किसी दोस्त के साथ भेज दूँगा.. चिंता मत करो.. मैं आसपास ही रहूँगा.." कहकर विकी उठ गया...
"अब कहाँ भाग रहे हो.. मुझे छेड़ कर..!" स्नेहा ने विकी को बेड पर वापस गिरा लिया और उसके उपर आ चढ़ि... अपनी टाँगें विकी की जांघों के दोनो तरफ रखकर 'वहाँ' बैठ गयी और सामने की और झुक कर अपनी चूचियों विकी की छाती पर टीका दी....
नया नया खून मुँह लगा था.. ये तो होना ही था...
कुच्छ ही देर बाद दोनो के कपड़े बेड पर पड़े थे और दोनो एक दूसरे से 'काम-क्रीड़ा' कर रहे थे.. स्नेहा की आँखों में अजीब सी तृप्ति थी.. 'अपनी मंज़िल' को प्राप्त करने की खुशी में वो भाव विभोर हो उठी थी.. प्यार करते हुए भी उसकी आँखों में नमी थी... खुशी की!

masti ki pathsala - 59


मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-59
विकी ने उसकी जांघों पर हाथ रखकर प्यार से सहलाते हुए उसकी गांद पर ले आया और फिर आगे झुकते हुए स्नेहा की गर्दन पर एक चुंबन देकर उसके साथ लेट गया.. स्नेहा के स्मनान्तर..
" क्या हुआ.. शर्मा क्यूँ रही हो.." विकी ने उसके कान के पास अपने होंठ लेजाकार कामुकता से कहा..
स्नेहा ने जवाब फिर भी नही दिया.. अचानक पलटी और विकी की छाती में अपना चेहरा घुसा दिया.. और सिमट कर अपने आपको विकी में ही छिपाने की कोशिश करने लगी...
"आँखें खोलो... देखो तो सही.. क्या दिखाता हूँ..." विकी ने हंसते हुए स्नेहा से कहा...
"नही.. मुझे नही देखना..." स्नेहा को मानो डर लग रहा हो.. इश्स अंदाज में बोली..
"अब ये तो चीटिंग है... मैं कब से तुम्हारी सेवा कर रहा हूँ.. और तुम देख भी नही सकती...." विकी ने उलाहना सा दिया..
"पर्ररर... तुम्हे पता है ना.. मुझे शरम आ रही है...." स्नेहा हल्के से बुदबुदाई...
"ऐसे शरमाती रहोगी तो... बाद में पछ्ताओगि... सोच लो..."
"ओकके.. हुन्हु... क्या देखना है.. बताओ...?" शरारत भरी आवाज़ में स्नेहा ने आँखें खोलकर विकी की आँखों में झाँका...
"यही.. जो तुम्हे प्यार सिखाएगा... और मज़े भी देगा..." विकी ने स्नेहा का हाथ पकड़ कर अंडरवेर की साइड से अंदर घुस्वा दिया....
" ओह्ह गॉड.. इतना मोटा!" लाजाते हुए भी स्नेहा अपने आपको ना रोक पाई.. अपने आसचर्या को ज़ुबान तक लाने में...
" इतनी हैरान क्यूँ हो.. लगता है.. तुम्हे पता है.. इसका क्या करते हैं... एक्सपीरियन्स है क्या..?" विकी ने यूँही मज़ाक में कह दिया...
स्नेहा ने गुस्सा सा दिखाते हुए अपने कोमल हाथ का घूँसा बनाकर विकी की छाती में दे मारा..," ओये.. मेरी कौनसा शादी हुई है...?"
"शादी तो अब भी नही हुई है..... फिर?" विकी ने उसकी चूची को अपने हाथ में दबा लिया....
" हो जाएगी...! तुम मुझे जानते नही हो.." स्नेहा ने तो यही सोचा होगा की मोहन तो उस'से शादी करके अपने आपको खुशकिस्मत ही समझेगा....
जाने क्यूँ विकी इश्स बात पर अपनी नज़रें चुराने लगा.. उसने बात बदल दी," तो तुम्हे पता है.. इसका क्या करते हैं..."
"हूंम्म!" स्नेहा अब अपने आपको थोड़ा सहज पा रही थी.. अपने दिल की बात कह कर... वह बड़े प्यार से बिना शरमाये अंडरवेर के अंदर ही विकी के लंड को सहला रही थी...
"इसको इसमें डालते हैं" स्नेहा ने दूसरा हाथ अपनी जांघों पर रख दिया...
"तो डालूं...?" विकी ने जैसे ही अपना अंडरवेर निकाला.. 'लंड' तन्ना कर स्नेहा के हाथ से छ्छूट गया...
" नही.. अभी नही.. बच्चा हो जाएगा.. मुझे पता है.. इसमें डालने से ही बच्चा बनता है......"
" ये भी कोई बात हुई.. तुम्हे आधा पता है.. और आधा नही..." विकी घुटनो के बल बैठ गया..उसका लंड अब ठीक स्नेहा की आँखों के सामने हिलौरे ले रहा था.... स्नेहा ने आँखें बंद करके उसको फिर हाथ में पकड़ लिया," अच्च्छा जी.. क्या नही पता...?"
"सिर्फ़ डालने से बच्चा नही होता.. खैर छ्चोड़ो.. मुँह में ले सकती हो ?"
"मुँह में.... ये कोई कुलफी है जो मैं मुँह में लूँगी... कहकर स्नेहा हुँसने लगी... उसने आँखें खोल दी थी.. और बड़े प्यार से लंड के चिकने सूपदे को देख रही थी....
"लेकर तो देखो... अगर अच्च्छा ना लगे तो कहना..."
"तुम्हे कैसे पता.. कोई एक्सपीरियन्स है क्या?" स्नेहा ने हंसते हुए उसी की टोन में पूचछा...
"न्न्नाही.. ववो.. दोस्त बता देते हैं ना.. लड़कियों को क्या क्या अच्च्छा लगता है...."
"पर मुझे तो नही बताया.. मेरी सहेलियों ने..." हालाँकि उसकी तरफ निहारते हुए स्नेहा के मुँह में पानी आ चुका था...
" यार.. तुम लेकर तो देखो.. कह तो रहा हूँ.. निकाल देना.. अगर अच्च्छा ना लगे तो.." कहकर विकी उसकी छाती के दोनो ओर पैर करके आगे की और झुक कर बैठ गया.. अब स्नेहा के होंठों और विकी के 'औजार' में इंच भर का फ़र्क था
 


 थोड़ा सा हिचकते हुए स्नेहा ने अपने हाथ में पकड़े लंड को नीचे झुकाया और अपने होंठो से छुआ दिया.. और फिर होंठों पर जीभ फेरते हुए उसको दूर कर दिया...
"क्या हुआ?" विकी तड़प सा उठा और खुद ही नीचे झुक कर वापस उसके होंठो से भिड़ाने की कोशिश करने लगा..
"कुच्छ नही.. अजीब सा लग रहा है..." अब स्नेहा खुल गयी थी.. पूरी तरह...
" अच्च्छा नही लग रहा क्या..?" बेचैनी से विकी ने पूछा...
बिना कोई जवाब दिए.. स्नेहा ने अपने होंठो को आधा खोला और सुपादे के अगले भाग को होंटो में दबा लिया.. और विकी की और देखने लगी..
विकी को पहली बार इतना आनंद आया था की उसकी आँखें बंद हो गयी..," अयाया.. "
"अच्च्छा लग रहा है...?" अब की बार स्नेहा ने पूचछा...
"हाआँ..." जीभ निकाल कर चाटो ना.. प्लीज़..." विकी कराह उठा.. आनंद के मारे..
स्नेहा को कोई ऐतराज ना हुआ.. उसको ये जानकार बहुत खुशी हुई की विकी को अच्च्छा लग रहा है.. अपनी जीभ निकाली और लंड की जड़ से लेकर सुपादे तक नीचे से चाट'ती चली गयी...
"आआहह.. मार डालोगी.. तुम तो.. ऐसे ही करो.. और इसको मुँह के अंदर लेने की कोशिश करो..."
स्नेहा तो मस्त होती जा रही थी... उसको भी बहुत मज़ा आ रहा था..
विकी ने देखा स्नेहा अपने हाथ को उसकी टाँगों के बीच से निकालकर नीचे ले जाने की कोशिश कर रही है.. विकी को समझते देर ना लगी... वो भी तो तड़प रही होगी," एक मिनिट.. कहकर विकी घूम गया और झुकते हुए अपनी कोहनियाँ स्नेहा की जांघों के बीच टीका दी.. स्नेहा की चिकनी चूत अब उसकी पहुँच में थी..
स्नेहा के लिए भी अब आसान हो गया.. लंड उसके मुँह के उपर सीधा लटक रहा था.. उसने अपने होंठ जितना हो सकता था उतने खोले और सूपदे को मुँह में भर लिया...
दोनो 69 की स्थिति में थे.. स्नेहा तो स्नेहा; विकी भी मानो आनंद के असीम सागर में तेर रहा हो.. बड़ी ही नाज़ूक्ता से उसने स्नेहा की जांघों को अपने हाथो से दबाया.. और एक हाथ की उंगली से उसकी चूत की कुँवारी फांकों को अलग करके उनके बीच छुपे हुए छ्होटे से दाने को देखा.. मस्ती से अकड़ा हुआ था.. चूत का रंग अंदर से स्नेहा के होंठो जैसा ही था.. एकद्ूम गुलाबी रंगत लिए हुए.
वह झुका और स्नेहा के 'दाने' को चूसने लगा..
स्नेहा एकद्ूम उच्छल सी पड़ी और इस उच्छलने में लंड सूपदे से कहीं ज़्यादा दूर उसके मुँह में हो आया...
स्नेहा इतनी उत्तेजित होने के बावजूद उसके सबसे अधिक संवेदनशील अंग के साथ छेड़ छाड सहन नही कर पा रही थी.. मस्ती से वा अपनी गांद को इधर उधर मटकाने लगी.. विकी ने भी उसको कसकर दबोच लिया.. और एक मुश्त कयि मिनूटों तक स्नेहा को जन्नत के प्रॅथम दर्शन कराता रहा...
दोनो ही बावले से हो चुके थे.. दोनो एक दूसरे का भरपूर साथ दे रहे थे.. की अचानक एक बार फिर स्नेहा के साथ वही स्थिति एक बार फिर उभर आई.. उसकी टाँगें काँपने लगी.. सारा बदन अकड़ सा गया और अपनी जांघों में उसने विकी का सिर जाकड़ लिया..
विकी को भी हटने की जल्दी ना थी.. स्नेहा की बूँद बूँद को वह मदहोशी के आलम में ही अपने गले में उतार गया...
उधर स्नेहा भी उसके लंड के साथ अब तक बुरी तरह व्यस्त थी... चाट चाट कर, चूस चूस कर... काट काट कर उसने सूपड़ा लाल कर दिया था...
स्नेहा के ढीली पड़ते ही विकी 'अपना' हाथ में लेकर घुटनो के बाल उसके मुँह के पास बैठ गया," तुम्हे भी पीना पड़ेगा...?"
"क्या?" स्नेहा के चेहरे से असीम तृप्ति झलक रही थी...
"यही.. इसका रस.. जो अभी निकलेगा..." विकी का हाथ बड़ी तेज़ी से चल रहा था..
"नही... रहने दो ना... प्लीज़.." स्नेहा ने रिक्वेस्ट की..
" रहने कैसे दूँ.. मुझे भी तो पीला दिया.. ज़बरदस्ती.. टाँगों में सिर भींच कर.."
उन्न पलों को याद करके स्नेहा बाग बाग हो गयी.. फिर शरारत से मुँह बनाते हुए बोली.. "ठीक है... लाओ पिलाओ.." कह कर उसने अपना मुँह खोल लिया...
उसके बाद तो 2 ही मिनिट हुए होंगे.. अचानक विकी रुका और स्नेहा के खुले होंठो में लंड जितना आ सकता था फँसा दिया.. रस की धारा ने स्नेहा का पूरा मुँह भर दिया.. आख़िर कार जब बाहर ना निकल पाई तो मुस्कुराते हुए गटक लिया...
विकी धन्य हो गया... हटा और बेड पर धदाम से गिर पड़ा.. स्नेहा उठी और अपनी चूचियों को विकी की छाती पर दबा कर उसके होंठों को चूमने लगी.. अजीब सी क्रितग्यता उसके चेहरे से झलक रही थी...
इतनी हसीन और कमसिन लड़की को अपनी बाहों में पाकर नशे में होने के बावजूद तैयार होने में विकी को 3-4 मिनिट ही लगे... वह अचानक उठा और स्नेहा को अपने नीचे दबोच लिया.. उसकी आँखों में फिर से वही भाव देखकर स्नेहा मुस्कुराइ," अब क्या है..?"
"अब अंदर..." कहते हुए. विकी ने फिर उसकी जांघें खोल दी.. और हौले हौले टपक रही चूत पर नज़र गढ़ा दी... और एक बार फिर उसको तैयार करने के लिए उंगली और होंठो को काम पर लगा दिया...
स्नेहा भी जल्द ही फिर से फुफ्कारने लगी... लुंबी लुंबी साँसे और योनि छिद्र में फिर से चिकनाई उतर आना इस बात का सबूत था की वो उस असीम आनंद को दोबारा पाने के लिए पहली बार होने वाले दर्द को झेल सकती है...
विकी पंजों के बल बैठ गया और स्नेहा के घुटनो के नीचे से बेड पर हाथ जमकर उसकी जांघों को उपर उठा सा दिया... चूत हूल्का सी रास्ता दिखाने लगी.. विकी ने सूपड़ा 'सही' सुराख पर सेट किया और स्नेहा के चेहरे की और देखने लगा..," एक बार दर्द होगा.. सह लोगि ना...?"
"तुम्हारे लिए...." स्नेहा हमला झेलने के लिए तैयार हो चुकी थी.. अपने पहले प्यार की खातिर...
विकी के भी अब बात बर्दास्त के बाहर थी.. ज़्यादा इंतज़ार वो कर नही सकता था.. सो स्नेहा की जांघों को पूरी तरह अपने वश में किया.. और दबाव अचानक बढ़ा दिया...
स्नेहा के मुँह से तो चीख भी ना निकल सकी.. एक बार में ही सूपड़ा अपना रास्ता अपने आप बनाता हुआ काफ़ी अंदर तक चला गया था.. स्नेहा ने पहले ही अपने मुँह को अपने ही हाथो से दबा रखा था... लंड सर्दियों में जमें हुए मक्खन में किसी गरम चम्मच की तरह घुस गया था.. कुच्छ देर तक विकी ना खुद हिला और ना ही स्नेहा को हिलने दिया.. और आगे झुक कर स्नेहा की छातियो को दबाते हुए उसको होंठो को भी अपने होंठों की गिरफ़्त में ले लिया..
धीरे धीरे 'चम्मच' की गर्मी से 'चूत' का जमा हुआ 'मक्खन' पिघल कर बहने सा लगा.. इश्स चिकनाहट ने दोनो के अंगों को तर कर दिया.. स्नेहा को लगा.. अब हो सकता है तो उसने अपनी गांद उचका कर विकी को सिग्नल दिया...
विकी ने थोड़ा पिछे हट'ते हुए एक बार और प्रहार किया.. इश्स बार अंदर लेने में स्नेहा को उतनी पीड़ा नही हुई..
करीब 5 मिनिट बाद स्नेहा सामान्य हो गयी और अजीब तरह की आवाज़ें निकालने लगी.. ऐसी आवाज़ें जो कामोत्तेजना को कयि गुना बढ़ा दें...
अब दोनो ही अपनी अपनी तरफ से पूरा सहयोग कर रहे थे.. विकी उपर से आता और आनंद की कस्ति पर सवार स्नेहा की गांद नीचे से उपर की और उच्छलती और दोनो की जड़ें मिल जाती.. दोनो एक साथ आ कर बैठते...
आख़िरकार स्नेहा आज तीसरी बार 'आ' गयी... विकी भी आउट ऑफ कंट्रोल होने ही वाला था.. उसने झट से अपना लंड बाहर निकाला और फिर स्नेहा के मुँह के पास जाकर बैठ गया.. जैसे वहाँ कोई स्पर्म बॅंक खोल रखा हो...
स्नेहा ने शरारत से एक बार अपने कंधे 'ना' करने की तरह उचकाए.. और फिर मुस्कुराते हुए अपने होंठ खोल दिए.. उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी... पहले प्यार की चमक!
सुबह विकी उठा तो स्नेहा उसके कंधे पर सिर रखे उसके बलों में हाथ फेरती हुई उसकी ही और देख रही थी.. अपलक!
"तुम कब जागी?" विकी ने हुल्की सी मुस्कान उसकी और फैंकते हुए पूचछा...
"मैं तो सोई ही नही.. नींद ही नही आई..?" नींद और पहले प्यार की खुमारी उसकी आँखों में हुल्की सी लाली के रूप में चमक रही थी.. और उसके चेहरे पर कली से फूल बन'ने का बे-इंतहा नूर था.. विकी ने उसकी आँखों में आँखें डाली तो स्नेहा ने पलकें झुका ली..
"कैसा रहा रात का अनुभव?" विकी ने उसकी और करवट लेते हुए स्नेहा की कमर में हाथ डाल कर अपनी और खींच लिया.. और स्नेहा मुस्कुरा कर उस'से चिपक गयी.....
" हम कहाँ रहेंगे मोहन?" स्नेहा ने उसके गले में अपनी गोरी बाँहें डाल दी..
" मतलब? " विकी ने नज़रें चुरा ली...
"मैं वापस हॉस्टिल नही जाना चाहती.. यहीं रहना चाहती हू.. तुम्हारे साथ.."
विकी ने बात टालने के इरादे से अपने एक हाथ से उसकी चूची को दबाया और उसके होंठो को अपने होंठो में लेने के लिए अपना चेहरा उसकी तरफ बढ़ा दिया..
कामुकता भरे आनंद की लहर स्नेहा के पुर बदन को दावादोल सा कर गयी.. पर वह अगले कदम के बारे में जान'ने को चिंतित थी.. उसने अपना चेहरा सिर झुका कर विकी की छाती में छुपा लिया," बताओ ना मोहन.. अब हम क्या करेंगे.. मुझे वापस तो नही भेजोगे ना? मुझे अब तुमसे दूर नही जाना.."
विकी एक पल के लिए असमन्झस में पड़ गया.. इश्स वक़्त उसको स्नेहा को वादों के जाल में उलझाए ही रखना था.. पर जाने क्यूँ.. स्नेहा के सीधे सवाल का टेढ़ा जवाब देने से वह कतरा रहा था..," पर तुम्हारे पापा.. उनका क्या करोगी..? विकी ने सवाल का जवाब सवाल से ही दिया...
स्नेहा का उम्मीदों से भरा मॅन क्षणिक कड़वाहट से भर उठा..," पापा! हुन्ह... उनकी पैदाइश होने के अलावा हमारा रिश्ता ही क्या रहा है.. मैं 8 साल की तही जब उन्होने मुझे हॉस्टिल में डाल दिया.. आज 11 साल होने को आ गये हैं.. और मुस्किल से 11 बार ही मैने उनका चेहरा देखा है.. मैं उनसे बहुत प्यार करती थी.. हमेशा उनसे मिलने को.. घर जाने को तड़पति रहती थी.. पर उन्होने.. पता नही क्यूँ.. मुझे प्यार दिया ही नही.. कभी हॉस्टिल से घर लेने भी आता तो उनका ड्राइवर.. घर जाकर पता चलता.. देल्ही गये हैं.. बाहर गये हैं.. और मुझे तकरीबन उसी दिन शाम को या अगले दिन वापस भेज हॉस्टिल में फैंक दिया जाता" स्नेहा की आँखों में अतीत में मिली प्यार के अभाव की तड़प के छिपे हुए आँसू जिंदा हो उठे..," सब फ्रेंड्स के मम्मी पापा.. उनसे मिलने आते.. उनको घर लेकर जाते और वो लड़कियाँ आकर घर जाकर की गयी मस्ती को सबको बताती.. सोचो.. मेरे दिल पर क्या बीत-ती होगी.. लड़कियाँ मुझे 'अनाथ' तक कह देती थी.. अगर पापा ऐसे ही होते हैं तो सबके क्यूँ नही होते मोहन.. हम अपने बच्चे को हॉस्टिल नही भेजेंगे.. अपने से कभी दूर नही करेंगे मोहन... मैने महसूस किया है.. बिना अपनों के साथ के जिंदगी कैसी होती है.. फिर भी मैं हमेशा यही सोचती थी की पापा बिज़ी हैं.. पर प्यार तो करते ही होंगे... पर कल तो उन्होने दिखा ही दिया की... मैं सच मैं ही 'अनाथ' हूँ.." कहते हुए स्नेहा का गला बैठ गया.. और दिल की भादास विलाप के रूप में बाहर निकालने लगी...
विकी से उसका रोना देखा ना गया.. चेहरा उपर करके उसके आँसू पौंच्छने लगा... पर दिल उसका भी ज़ोर से धड़क रहा था.. उसके रोने के पिछे असली कारण वही था," अब.. रोने से क्या होगा सानू? सम्भालो अपने आपको... " विकी ने उसको अपनी छाती से चिपका लिया....
" बताओ ना.. हम कहाँ रहेंगे.. कहाँ है अपना घर?" स्नेहा पूरी तरह से विकी के लिए समर्पित हो चुकी थी.. उसके घर को अपना घर मान'ने लगी थी...
" उस'से पहले तुम्हे मेरी मदद करनी पड़ेगी... सानू..!"
" मैं क्या मदद कर सकती हूँ..? मैं खुद अब तुम्हारे हवाले हूँ..!"
" वो तो ठीक है.. पर अगर तुम्हारे पापा को पता चल गया तो मेरी जिंदगी ख़तरे में पड़ जाएगी.. अब तक तो फिर भी हो चुकी होगी... ये पता चलते ही की मैं ठीक ठाक हूँ और तुम मेरे साथ हो.. पोलीस मुझे उठा लेगी.. उसके बाद तुम फिर अकेली हो जाओगी... मुझे जैल मैं भेज देंगे.. और तुम्हारे पापा कभी सच्चाई को सामने नही आने देंगे...." विकी ने अपनी अगले प्लान की भूमिका बाँधी....

स्नेहा सुनकर डर गयी.. उसके पापा 'पॉवेरफूल थे.. और सच में ऐसा कर सकते थे.. स्नेहा के लिए तो विकी उसके बाप का एस.ओ. ही था..," फिर.. अब हम क्या करें मोहन!"
"सिर्फ़ एक ही रास्ता है.. तुम पहले मीडीया में जाकर सच्चाई बता दो.. की तुम्हारे बाप ने ही ये सब किया है.. और ये भी कहना की तुम अब वापस नही जाना चाहती.. फिर कुच्छ दिन तुम्हे छिप कर रहना पड़ेगा..!" विकी ने स्नेहा को वो रास्ता बता दिया जो उसको मंज़िल तक ले जाने के लिए काफ़ी था..
"उसके बाद तो सब ठीक हो जाएगा ना?"स्नेहा को अब भी चिंता सता रही थी..
"हाँ.. उसके बाद हम साथ रह सकते हैं.. खुलकर.." स्नेहा की सहमति जानकर विकी खिल उठा और उसने अपना हाथ स्नेहा की जांघों के बीच फँसा दिया...," पर याद रखना.. तुम्हे मेरा कहीं जिकर नही करना है.. यही कहना की मैं किसी तरह उनके चंगुल से बचकर अपनी किसी सहेली के घर चली गयी थी.. अगर मेरा नाम आया तो वो मुझे ढ़हूंढ लेंगे...!"
"आआहह.. ये मत करो.. मुझे कुच्छ हो रहा है.." अपनी पॅंटी में विकी की उंगलियाँ महसूस करके तड़प उठी...
"तुमने सुन लिया ना..." विकी ने अपना हाथ बाहर निकाल लिया..
"हां.. बाबा! सुन लिया.. कब चलना है.. मीडीया के सामने..?"
"मैं नही जाउन्गा.. तुम्हे किसी दोस्त के साथ भेज दूँगा.. चिंता मत करो.. मैं आसपास ही रहूँगा.." कहकर विकी उठ गया...
"अब कहाँ भाग रहे हो.. मुझे छेड़ कर..!" स्नेहा ने विकी को बेड पर वापस गिरा लिया और उसके उपर आ चढ़ि... अपनी टाँगें विकी की जांघों के दोनो तरफ रखकर 'वहाँ' बैठ गयी और सामने की और झुक कर अपनी चूचियों विकी की छाती पर टीका दी....
नया नया खून मुँह लगा था.. ये तो होना ही था...
कुच्छ ही देर बाद दोनो के कपड़े बेड पर पड़े थे और दोनो एक दूसरे से 'काम-क्रीड़ा' कर रहे थे.. स्नेहा की आँखों में अजीब सी तृप्ति थी.. 'अपनी मंज़िल' को प्राप्त करने की खुशी में वो भाव विभोर हो उठी थी.. प्यार करते हुए भी उसकी आँखों में नमी थी... खुशी की!

Thursday, 30 October 2014

masti ki pathsala - 58

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-58
 स्नेहा बाथरूम से नहा धोकर निकली.. विकी भी फोन करके लगभग तभी कमरे में आया था...इश्स नये अवतार में स्नेहा को देखते ही विकी की आँखें उस पर जम सी गयी.. चाहकर भी वो अपनी नज़रों को इश्स कातिल नज़ारे से दूर ना कर सका.. स्नेहा ने शायद अब ब्रा नही पहनी थी.. इसीलिए उसकी सेब जैसी चुचियाँ हल्का सा झुकाव ले आई थी.. पर तनी अब भी हुई थी.. सामने की और.. स्कर्ट नीचे घुटनो से कुच्छ उपर तक था.. मांसल लंबी जांघों का गोरापन और गड्रयापन विकी की सहनशीलता के परखच्चे उड़ाने के लिए काफ़ी था..
स्नेहा ने विकी को घूरते देख एक बार नीचे की और देखा," क्या हुआ.. ? आच्छि नही लग रही क्या..?"
विकी जैसे किसी सपने से बाहर निकला..," श.. नही.. ऐसी बात नही है.. मैं तो बस यूँही.. किसी ख़याल में खोया हुआ था...!"
"सपनो से बाहर निकलो जी और खाने का ऑर्डर दे दो.. बहुत भूख लगी है.." कहकर स्नेहा ने टी.वी. ओन कर दिया और 'हरयाणा न्यूज़' सर्च करने लगी....

जिस बात का अंदेशा विकी ने जताया था.. वही हुआ.. 'हरयाणा न्यूज़' की टीम मुरारी के बंगले के बाहर का कवरेज ले रही थी.. करीब 500 के करीब कार्यकर्ता विरोधी पार्टी के खिलाफ नारे लगाने में अपना पसीना बहा रहे थे... तभी स्क्रीन पर न्यूज़ रीडर की तस्वीर उभरी....
"जैसा की हम आपको बता चुके हैं.. आज शाम पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री. मुरारी लाल की इकलौती बेटी का कथित रूप से अपहरन हो गया.. पोलीस से मिली जानकारी के मुताबिक उस कार को बरामद कर लिया गया है जिसमें स्नेहा जी सवार होकर जा रही थी... घटनास्थल के आसपास खून बिखरा पाया गया है.. इश्स'से पोलीस अंदाज़ा लगा रही है की खून ड्राइवर मोहन का हो सकता है.. पोलीस को आशंका है की कहीं ड्राइवर की हत्या ना कर दी हो.. क्यूंकी उसकी भी अभी तक कोई खबर नही है... इसके अलावा पोलीस इश्स मामले में कुच्छ नही कर पाई है.. श्री मुरारी लाल जी ने आरोप लगाया है की ये
विरोधी पार्टी में उनके कट्टर प्रतिद्विंदी श्री. माखन लाल' और उनके दाहिने हाथ
माने जाने वाले विकी की शाजिस है.... उन्हे तोड़ने के लिए.... ताकि वो आगामी
लोकसभा चुनावों में ना खड़े हों.. कहा ये भी गया है की उनसे 50 करोड़ की
फिरौती माँगी गयी है......"

विकी मामले में अपना नाम सुनकर एक पल को सकपका गया... शुक्रा है उसने अपना नाम 'मोहन' ही बताया था... स्नेहा बेचैनी से खबर में डूबी हुई थी...

रीडर का बोलना जारी था...," हमारे संवाद-दाता ने श्री. मुरारी लाल से संपर्क करने की कोशिश की.. पर वो अवेलबल नही हुए.. हालाँकि फोन पर उनसे बात हुई.. आइए आपको सुनते हैं.. उन्होने क्या कहा:
स्नेहा ने रिमोट फैंकर अपने कान पूरी तरह से टी.वी. पर लगा लिए..
"देखिए.. मैं सबको बार बार बता चुका हूँ कि इश्स घृणित कार्य में माखन और विकी जैसे घटिया आदमी का हाथ है.. विकी ने खुद मुझे फोन करके 50 करोड़ की फिरौती माँगी है... वो लोग मुझे अगले एलेक्षन से हटने की धमकी भी दे रहे हैं.. पर मुझे प्रसाशन पर पूरा यकीन है..मेरी बेटी मुझे जल्द से जल्द वापस मिलेगी.. और जनता इन्न चोर लुटेरों, उठाईगीरों को एलेक्षन में सबक ज़रूर सिखाएगी.."
स्नेहा का सिर फट पड़ने को हो गया... उसके पापा उस वक़्त भी नशे में ही थे.. बातों से सॉफ पता चल रहा था.. अब स्नेहा को यकीन हो गया था की सिर्फ़ अपने राजनीतिक लालच के लिए ही उन्होने इतना घटिया गेम खेला है.... वो सुबकने लगी.. आँखों से अविरल आँसू बहने लगे... विकी ने पास बैठकर उसके कंधे पर हाथ रख दिया...," तुम रो क्यूँ रही हो.. तुम तो सही सलामत हो ना!"
"क्या सबके पापा ऐसे ही होते हैं...? उन्हे मेरी कोई फिकर नही... सिर्फ़ अपने और अपनी अयाशियों के लिए जीने वाले बाप को क्या 'बाप' कहलाने का हक़ है..." स्नेहा रोती हुई विकी से अपने सवाल का जवाब माँग रही थी...

"हमनें श्री मुररीलाल जी से मिलने की कोशिश की.. पर उन्होने बताया की वो किसी ज़रूरी मीटिंग में व्यस्त हैं... अभी नही मिल सकते...."

"मुझे पता है.. उनकी ज़रूरी मीटिंग क्या होती है.." कहते हुए स्नेहा का क्रंदन और बढ़ गया....
"अब चुप भी हो जाओ.. सब ठीक हो जाएगा..." विकी से स्नेहा का रोना देखा नही जा रहा था..
"क्या ठीक हो जाएगा, मोहन.. क्या? क्या मैं सिर्फ़ इश्स बात की सज़ा भुगत रही हूँ की मेरे पिता एक बड़े पॉलिटीशियन है.. ना मैं घर जा सकती हूँ.. ना मैं खुलकर घूम सकती हूँ.. ना मैं जी सकती और ना ही मर सकती... "
टी.वी. की और देख कर रो रही स्नेहा को अचानक विकी ने अपनी बाजुओं में समेत कर अपनी छाती से चिपका लिया.. और उसके बालों में हाथ फेरता हुआ उसको सहलाने, दुलार्ने लगा...
सहानुभूति की शरण में जाकर स्नेहा और भी भावुक हो गयी और उसकी छाती से चिपक कर ज़ोर ज़ोर से रोने लग गयी....

कारण ये नही था की विकी के ज़ज्बात बहक गये थे.. या कुच्छ और.. बुल्की कारण था.. अचानक टी.वी. की स्क्रीन पर माखन और उसकी तस्वीर का आना... अगर स्नेहा वो तस्वीर देख लेती तो किया धारा सब बेकार हो जाता.....

"हमने इश्स बारे में माखन जी से संपर्क करने की कोशिश की तो उन्होने अपने उपर लगे सभी आरोपों को खारिज करके इसको राजनीति से प्रेरित बताया.. हालाँकि वो इश्स बात का जवाब नही दे पाए की आगामी विधानसभा एलेक्षन
में उनकी पार्टी के उम्मीदवार अचानक विदेश क्यूँ चले गये..."

यही वो पल था जब स्क्रीन पर विकी की क्लोसप फोटो दिखाई गयी थी... जान बची सो लाखों पाए....
विकी ने टी.वी. बंद कर दिया.. तभी खाना आ गया... और स्नेहा को अपने आँसू खुद ही पोंच्छ कर सामानया होना पड़ा... वह विकी की छाती से चिपकने का एक बहुत ही सुखद अहसास लेकर बाथरूम में चली गयी.. और विकी ने दरवाजा खोल दिया....

"मैं क्या करूँ मोहन? कहाँ जाऊं?.. क्या मेरा अलग संसार नही हो सकता...?" हालाँकि खाना खाने के बाद स्नेहा काफ़ी हद तक सामानया हो चुकी थी.. पर वो अपने बदन में विकी की चौड़ी छाती से अलग होने के बाद रह रह कर उठ रही कसक को एक बार फिर से मिटा लेना चाहती थी.. अपनी मनभावनी आँखों से विकी के सीने में अपना संसार ढूँढने की कोशिश कर रही थी... वहीं नज़र गड़ाए हुए...
"सब ठीक हो जाएगा.. सानू! मेरा भी दिमाग़ खराब हो गया है.. तुम कहो तो.. थोड़ी सी पी लूँ?" विकी ने झिझकते हुए स्नेहा से पूचछा...
"क्या?" स्नेहा समझ नही पाई थी.. विकी क्या पीने की इजाज़त माँग रहा है...
"वो..!" विकी ने टेबल पर साज़ी बोटेल की और इशारा किया...
"नहिईए.. तुम बहुत अच्छे हो.. मेरे पापा जैसे मत बनो.. प्लीज़!" सानू ने प्यार से कहा...
"ओके!" पूरे भगत बने विकी ने मुस्कुरकर अपने कंधे उचका दिए....
"मुझे नींद आ रही है.. तुम कहाँ सोवोगे..?" स्नेहा के इश्स प्रशन ने तो विकी को हिला ही दिया.. अगर वो ना पूछती तो बिना सोचे ही विकी को बेड पर ही सोना था.. बिना कहे....
"म्म्मै..? मैं कहाँ सोउंगा..? मतलब यहाँ सो जाउन्गा..." हड़बड़ाते हुए विकी ने टेबल की तरफ हाथ कर दिया...
स्नेहा खिलखिला उठी.. ज़ोर का ठहाका लगाया..," तुम इश्स टेबल पर सोवोगे? काँच की टेबल पर...?"
"नही.. मेरा मतलब है कि इसको एक तरफ करके.. नीचे सो जाउन्गा...!" विकी को कुच्छ बोलते ना बन रहा था..
स्नेहा अभी तक हंस रही थी.. एक दम संजीदा हो गयी," तुम ऐसे नही हो 'मोहन' जैसा मैं लोगों को समझा करती थी... तुम बहुत अच्छे हो.. एक दम पर्फेक्ट!" स्नेहा ने वैसा ही उंगली और अंगूठे का घेरा बनाकर कहा.. जैसा गाड़ी में विकी ने उसको देखकर बोला था...
"थॅंक्स...!" विकी ने ज़बरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की...
"व्हाट थॅंक्स..! हम दोनो यहीं सो सकते हैं.. बेड पर.. काफ़ी चौड़ा है.... आइ मीन.. मुझे कोई प्राब्लम नही है.. तुम्हारे साथ सोने में...!" स्नेहा के बदन में कहते हुए गुदगुदी सी हो रही थी...
"देख लो!" विकी ने चेतावनी दी...
"उम्म्म...देख लिया.. आ जाओ.. सो जाओ!" स्नेहा एक तरफ को हो गयी...," पर चादर तो एक ही है.."
विकी ने बेड पर रखा तकिया ठीक किया और स्नेहा के बाजू में लेट गया.. ," कोई बात नही.. तुम्हारा इतना ही रहम बहुत है..... गुड नाइट!"
"पर मुझे नींद नही आ रही..." स्नेहा उसकी और करवट लेकर लेट गयी...
"अभी तो कह रही थी.. अब क्या हुआ...?"
"हां.. तब आ गयी थी.. अब चली गयी.." ये सब तो होना ही था... पहली बार किसी मर्द के साथ बिस्तेर सांझा हुआ था.. नींद तो भागनी ही थी...
सो तो विकी भी कैसे सकता था.. कयनात का हुश्न जब बाजू में बिखरा पड़ा हो.. समेटने के लिए...
"एक बात पूच्छू.. सच सच बतओगि ना..!" विकी ने भी उसकी तरफ करवट ले ली.. दोनो आमने सामने थे..
"पूच्छो..!"
"तुम्हारा कोई बाय्फ्रेंड नही है क्या..?"
"नही.. उसका क्या करना है...!" स्नेहा शरारत से बोली.. बदन में अरमान अंगड़ाई लेने लगे थे.. बाय्फ्रेंड के लिए...
विकी कुच्छ ना बोला.....
"क्यूँ पूच्छ रहे हो...?"
"बस ऐसे ही पूच्छ लिया... और कोई बात ही नही सूझी....
"क्या अब भी दर्द है!" स्नेहा ने था सा आगे सरक कर विकी के दायें कंधे पर अपना हाथ रख दिया...

विकी की समझ में नही आ रहा था की वह अब अपने दिल की सुने या दिमाग़ की.. घायल होने को बेकरार हुश्न उसकी पहुँच में था.. सिर्फ़ करीब एक फुट का ही फासला था.. दोनो के बीच.. कसंकस में उलझा हुआ बेचारा दिल को लाख समझाने की कोशिश बार बार कर रहा था.. पर सानू के 'हाथ' ने सारी कोशिशों को सरेआम कतल कर ही दिया था.. उसके हाथ की च्छुअन उसको अपनी जांघों के बीच तक महसूस हुई.... पर प्लान की कामयाबी के लिए ज़रूरी था की उन्न दोनो में कोई संबंध ना बने.. क्यूंकी अगर बाद में अगर स्नेहा के विचार सच का पता लगने के बाद बदल जाते हैं.. तो उसका मेडिकल एग्ज़ॅमिनेशन हर झूठह से परदा उठा सकता है..," सोने दो स्नेहा.. नींद आ रही है...!"
"अरे.. यहाँ मेरा किडनॅप हो गया है.. और तुम्हे सोने की पड़ी है..." शरारती स्नेहा ने अपना हाथ कंधे से आगे सरका कर उसकी छाती पर रख दिया...
झटके तो विकी को पहले से ही लग रहे थे.. इश्स बार वाला 440 वॉल्ट का था.. स्नेहा थोड़ी और आगे की और झुक गयी थी.. और उसका हाथ विकी की छाती पर किसी नागिन की तरह रेंग रहा था... उसकी मर्दानगी को चुनौती देता हुआ.. स्नेहा की साँसों में रमाइ हुई उसकी कुंवारेपन की बू.. विकी के फेफड़ों से होती हुई सारे शरीर में हुलचल मचा रही थी..
विकी ने अचानक उसकी कमर में हाथ डालकर उसको अपनी तरफ खींच लिया..," आख़िर चाहती क्या हो अब.. सोने भी नही दोगि क्या..? प्राब्लम क्या है?..... सोने दो ना यार.. प्लीज़!"

विकी द्वारा रूखी आवाज़ में कही गयी पहले वाली पंक्तियाँ स्नेहा के दिल में गहरे तक चुभ गयी.. उसने आख़िर ऐसा किया ही क्या था.. सिर्फ़ छाती पर हाथ ही तो रखा था.. उसके चेहरे के भाव अचानक बदल गये.. खुद को बे-इज़्ज़त सा महसूस करके स्नेहा की आँखें नम हो गयी.. उसकी छाती में धड़क रहे 'कुंवारे' दिल की धड़कन विकी को अपनी छाती में महसूस हो रही थी.. स्नेहा की छातियाँ विकी की छाती में गढ़ी हुई थी.. उस बेचारी को कुच्छ और ना सूझा.. सिवाय अपने को छुड़ाकर करवट बदलने और रोना शुरू कर देने के..
"सॉरी सानू! मेरा ये मतलब नही था.. सच में....!" विकी ने करवट लेकर रो रही सानू के हाथ पर हूल्का सा अपने हाथ से स्पर्श किया...
स्नेहा ने झटका मार कर अपना हाथ आगे कर लिया.. और और तेज़ी से सूबक'ने लगी.....

"ये क्या है स्नेहा.. मैने तो बस सोने के लिए रिक्वेस्ट्की थी.... सॉरी बोला ना..." विकी का दिल पिघल रहा था.. और जांघों के बीच वाला 'दिल' जम कर ठोस होता जा रहा था.. और अधिक ठोस...
"हाँ हाँ.. तुमने तो बस सोने की रिक्वेस्ट की है.. अगर सोना ही था तो जाने देते मुझे.. उन्न दरिंदों के साथ.. तब क्यूँ बचाया था.." स्नेहा अपनी आँखें पोंचछते हुए फिर से करवट लेकर सीधी हो गयी.. उसके कातिल उभार कपड़ा फाड़ कर बाहर छलक्ने को बेताब लग रहे थे... और खास बात ये थी की अपनी दाई और करवट लेकर कोहनी के बल सर रखकर अधलेटे विकी के 'खूनी' जबड़े से सिर्फ़ इशारा करने भर की दूरी पर थे... उसके उभार..
"वो.. दरअसल.. स्नेहा.. बुरा मत मान'ना.. पर जब तुम्हारा हाथ.. मेरी छाती पा लगा तो पता नही अचानक मुझे क्या हुआ.. लगा जैसे मैं बहक रहा हूँ.. सॉरी..!"
"अच्च्छा! तुमने जो मेरे यहाँ पर हाथ रख दिया था... गाड़ी में.. सिर्फ़ तुम्ही बहक सकते हो क्या..?" स्नेहा ने रोना छ्चोड़ खुलकर बहस करने की ठान ली...
"पर... हाँ.. पर मुझे तुम बहुत अच्च्ची लगी थी यार..." सानू ने उसके रेशमी बालों में हाथ फेरा....
"मुझे भी तो तुम अच्छे लगते हो.... तो क्या मैं तुम्हे नही छ्छू सकती...!" स्नेहा ने कहते हुए.. झिझक के मारे अपनी आँखें बंद कर ली...
स्नेहा के मुँह से ऐसी बात सुनकर विकी का सारा खून उबाल खा गया..," सच.. तुम्हे में अच्च्छा लगता हूँ क्या...?"

अब की बार स्नेहा बोल ना पाई.. जाने कैसे बोल गयी थी...
"बोलो ना सानू.. प्लीज़!" विकी ने स्नेहा की दूसरी और वाली बाजू अपने हाथ में पकड़ ली.. उसका हाथ सानू के पेट को हल्का सा छ्छू रहा था.. जो आग भड़काने को काफ़ी था...
कुच्छ देर बाद की चुप्पी के बाद अचानक स्नेहा पलटी और लगभग उसकी पूरी जवानी विकी की बाहों में समा गयी...," और नही तो क्या.. अगर अच्छे नही लगते तो क्या मैं किडनॅपिंग का खुलासा होने के बाद भी तुम्हारे साथ आने को राज़ी होती.... तुम बहुत अच्छे हो 'मोहन' बहुत अच्छे... दिल करता है.. हमेशा तुम्हारी छाती से लिपटी रहू.. मैं वापस नही जाना चाहती.. मुझे अपने घर ले चलो... अपने पास..." कहते हुए स्नेहा अपने बदन में हुलचल महसूस कर रही थी.. वह विस्मयकारी थी.. उसकी जांघों के पास.. कोई ठोस सी चीज़ उसके बदन में गढ़ी जा रही थी.. पर हैरानी की बात ये थी की ये चुभन स्नेहा को बहुत अच्च्ची लग रही थी.. वह सरक कर विकी के और ज़्यादा करीब हो गयी.. उसकी साँसें धौकनी के माफिक चल रही थी.. तेज तेज... गरम गरम....
शब्र रखने की भी तो कोई हद होती है ना.. विकी की हद टूट चुकी थी.. स्नेहा का चेहरा अपने हाथों में पकड़ा और होंठो पर एक रसीला चुंबन रसीद कर दिया...," तुम.. तुम मुझे छ्चोड़ कर तो नही जाओगी ना..."
रठाने मनाने तक तो सब ठीक था.. पर इश्स चुंबन की गरमाहट कच्ची उमर की स्नेहा सहन ना कर सकी.. बदहवास सी होकर अचानक पलट गयी और दूसरी और मुँह करके और लंबी साँसे लेने लगी... उसके गुलाबी होंठ खुले थे.. शायद विकी की दी हुई छाप को एक दूसरे से चिपक कर मिटाना नही चाहते थे...
मुँह फेर कर लेटी स्नेहा के नितंबों का उभार वासना की चर्बी चढ़कर इतना उभर चुका था की बीच रास्ते वापस लौटना किसी 'ब्रह्मचारी' के लिए भी असंभव था.. सारा प्लान विकी को ध्वस्त होता नज़र आने लगा... विकी को लगा ... अगर 2 और पल दूरी रही तो वह फट जाएगा... जांघों के बीच से...
बिना देर किए विकी थोड़ा खुद आगे हुआ और थोड़ा सा स्नेहा की कमर से चिपके पेट पर हाथ रखकर उसको अपनी और खींच लिया.. रोमांच और पहले अनुभव के कामुक धागे से बँधी स्नेहा खींची चली आई.. और दोनो अर्धनारीश्वर का रूप हो गये.. बीच में हवा तक को स्थान नही मिला.. अंग से अंग चिपका हुआ था..
"अब क्या हुआ..?" विकी ने उसके गालों पर जा बिखरे बालों को अपने बायें हाथ से ही जैसे तैसे हटा कर उसके गालों को च्छुआ...
अपने नरित्व में मर्दानी चुभन को महसूस करके स्नेहा पागल सी हो गयी थी.. आँखें जैसे पथरा सी गयी थी.. आधी खुली हुई... लगता था.. वह यहाँ है ही नही.. मॅन सांतवें आसमान में कुलाचें भर रहा था......


हसीन अदाओ का जब जाल बिछ जायेगा
तेरा पूरा वजूद जलवों के जाल में फस जायेगा
कातिल निगाहों का जादू काली घटा बन कर
तेरी अखियों के रस्ते तेरी रग-रग में असीम नशा भर जायेगा
बाहों की सलाखों का मखमली पिंजरा जब बदन पे कब्जा जमायेगा
शरीर का कतरा-कतरा भूकम्प के झटके खायेगा
तू लाख कोशिश कर ले मर्दानगी का हर जज्बा दम तोड़ जायेगा
हर लम्हा अरे पगले वही दफन हो जायेगा
कब्र में दफन एहसास को केवल यही याद आयेगा
जान मेरी कर दो रहम इस बीमार पर
ये उबलता ज्वालामुखी बिना फटे नही रह पायेगा
जिन्दगी वीरान है बिन तेरे
हूँ गुलाम तेरे प्रेम का तेरे अहसासों के सजदे करता चला जायेगा
 




Tuesday, 28 October 2014

masti ki pathsala - 57

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-57
 "अब वह कैसे मान गया...?" लिफ्ट से उपर आते हुए स्नेहा ना विकी से पूचछा...
"कुच्छ नही.. थोड़ी टिप देनी पड़ी..!"

उपर पहुँचे तो वेटर उनकी जी हजूरी के लिए दरवाजे पर खड़ा था... जैसे ही दोनो रूम में घुसे विकी का माथा ठनका गया... अंदर बेड को किसी सुहाग की सेज़ की तरह सजाया हुआ था.. पूरा कमरा फूलों की प्राकृतिक खुश्बू से महक रहा था.. टेबल पर जोह्नी वॉकर की बोटेल, दो गिलास और आइस क्यूब्स रखे थे.. स्नेहा सजावट को देखकर खिल सी गयी थी...
"एक मिनिट.. तुम फ्रेश हो लो.. मैं अभी आया..." कहकर गुस्से से भनभनाया हुआ विकी नीचे चला गया...

"साले.. कुत्ते की पूच्छ.. तुझमें दिमाग़ है या नही.. मेरा बॅंड बजा दिया तूने.." विकी ने 2 झापड़ मॅनेजर को मारे और सोफे पर बैठकर अपना सिर पकड़ लिया....
"पर हुआ क्या भाई साहब.. क्या कमी रह गयी..? मैने तो अपनी तरफ से जी जान लगाई है..."
"यार तू अपन तरफ से जी जान क्यूँ लगाता है.. जितना बोला गया उतना क्यूँ नही करता... तू आदमी है या घंचक्कर... साला.."
"ववो.. माधव भाई ने बोला था की आपको पहचान'ना नही है.. और कोई लड़की साथ आएगी.. तो मैने सोचा खास ही होगी..."
"तू अब दिमाग़ मत खा.. मेरे साथ चल और सॉरी बोल की रूम ग़लती से दे दिया.. और 2 मिनिट में दूसरी अड्जस्टमेंट कर..."
"ठीक है.. भाई साहब.. मैं अभी चलता हूँ..!" मॅनेजर के चेहरे पर 12 बजे लग रहे थे....

"सॉरी.. मेडम.. वो ग़लती से आपको ग़लत नंबर. दे दिया.. आक्च्युयली ये किसी वेड्डिंग कपल के लिए है.. आइए.. आपका सामान शिफ्ट करा देता हूँ..." विकी मॅनेजर के साथ नही आया था.... जानबूझकर!
"वो कहाँ हैं..?" स्नेहा सुनकर मायूस सी हो गयी...
"वो कौन..?" मॅनेजर का दिमाग़ भनना रहा था...
"वो.. मेरे पति! और कौन?" कहते हुए स्नेहा का दिल धड़क रहा था.. कितना प्यारा अहसास था स्नेहा के लिए.. विकी जैसा पति!
"ववो.. आते ही होंगे.... लीजिए आ गये...!"
"क्या बात है..?" विकी ने अंजान बनते हुए कहा...
"आक्च्युयली सर....." और मॅनेजर को स्नेहा ने बीच में ही टोक दिया...," देखिए ना मोहन! ये हमारा रूम नही है.. मुझे भी बिल्कुल ऐसा ही चाहिए.... कह रहे हैं.. ये तो किसी वेड्डिंग कपल के लिए है.. जैसे हम बूढ़े हो गये हों.. जैसे हमारी शादी ही ना हुई हो... मुझे नही पता.. मुझे यही रूम चाहिए..."
विकी को उसकी बातों पर यकीन ही नही हुआ.. वो तो ऐसे बोल रही थी जैसे सचमुच की पत्नी हो.. बिल्कुल वाइफ वाले नखरे दिखा रही थी..
"तुम्हारी प्राब्लम क्या है मॅनेजर.. हमें यही कमरा चाहिए.. समझ गये.." विकी ने तुरंत पाला बदल लिया....
"जी सर.. समझ गया.. सॉरी!" कह कर मॅनेजर स्नेहा की और अदब से झुका और बाहर निकलगया.. जैसे मंदिर से निकला हो!"
"ये हुई ना बात.. हमें निकाल रहा था.. कितना प्यारा रूम है... जैसे...." आगे स्नेहा शर्मा गयी...
"तुम्हे सच में यहाँ कुच्छ ग़लत नही लगा..?" विकी का ध्यान रह रह कर टेबल पर साज़ी बॉटले और गिलासों पर जा रहा था....
"यहाँ क्या ग़लत है..?" स्नेहा ने एक बार और जन्नत की तरह सजे कमरे में नज़रें दौड़ाई....
"ये शराब...?????" विकी ने ललचाई आँखों से बोतल की और देखा.. बहुत दिल कर रहा था....
"नही तो.. आदमी तो पीते ही हैं..." स्नेहा किंचित भी विचलित ना हुई.....
"अच्च्छा.. तुमने किसको देखा है..?"
"पापा को.. वो तो हमेशा ही पिए रहते हैं..... अरे हां.. टी.वी. ऑन करो.. देखें पापा क्या नाटक कर रहे हैं...." स्नेहा एक बार फिर मुरझा गयी....

"तुम तब तक टी.वी. देखो.. मैं इसका कुच्छ करके आता हूँ.." विकी स्विच ऑन करने के लिए टी.वी. की और बढ़ा...
"ओह माइ गॉड! मैं तो भूल ही गयी थी.. सॉरी.. पर इश्स वक़्त डॉक्टर कहाँ
मिलेगा...?" स्नेहा ने सूख चुके खून से सनी शर्ट की और देखते हुए कहा...
"अरे डॉक्टर की क्या ज़रूरत है... नीचे फर्स्ट एड पड़ी होगी.. सफाई करके पट्टी बँधवा लेता हूँ... मैं अभी आया 5-7 मिनिट में..."
"वो तो मैं कर दूँगी.. तुम फर्स्ट एड बॉक्स मंगवा लो.. यहीं पर... तुम्हारे बिना मेरा दिल नही लगेगा... डर सा भी लगता है..." स्नेहा ने प्यार भरी निगाहों से विकी की और देखा...
विकी जाकर बेड पर स्नेहा के पास बैठ गया..," इसमें डरने की क्या बात है..? तुम क्यूँ परेशान होती हो... ज़्यादा टाइम नही लगाउन्गा.. ठीक है..?" विकी को माधव के पास फोन करना था..
स्नेहा ने घुटनो के बाल बैठते हुए विकी की बाँह पकड़ ली..," अच्च्छा.. मैं परेशान हो जाउन्गि.. तुमने जो मेरे लिए इतना किया है.. वो? नही तुम कहीं मत जाओ.. मत जाओ ना प्लीज़.. मुझे ये सब करना आता है.."
इश्स हसीन खावहिश पर कौन ना मार मिटे... विकी ने रूम सर्विस का नो. डाइयल
करके फर्स्ट एड बॉक्स के लिए बोल दिया.. स्नेहा की और वो अजीब सी नज़रों से देख रहा था.. नज़रों में ना तो पूरी वासना झलक रही थी.. और ना ही पूरा प्यार ही..
"मैं तब तक कपड़े चेंज कर लेती हूँ.. कहकर स्नेहा ने बॅग से कुच्छ कपड़े निकाल कर बेड पर फैला दिए..," कौनसा पहनु?"
विकी असमन्झस से स्नेहा को घूर्ने लगा.. जैसे कह रहा हो..' मुझे क्या पता...'
"बताओ ना प्लीज़.. नही तो बाद में कहोगे.. 'ये ऐसे हैं.. ये वैसे..' "
"नही कहूँगा.. पहन लो.. कोई भी.." विकी स्नेहा को देखकर मुस्कुराया और बेड पर रखे एक पिंक कलर के सिंगल पीस स्कर्ट टॉप पर नज़रें जमा ली.. यूँ ही.
"ये पहनु? .. पर ये तो पूरा घुटनो तक भी नही आता.. बाद में बोलना मत..." स्नेहा ने विकी की द्रिस्ति को ताड़ लिया.... कहते हुए लज्जा का महीन आवरण उसके चहरे पर झिलमिला रहा था...
"मुझे नही पता यार.. कुच्छ भी पहन लो..." हालाँकि विकी ये सोच रहा था कि उस ड्रेस में वो कितनी सेक्सी लगेगी...
"ठीक है.. मैं यही डाल लेती हूँ..." स्नेहा ने बोला ही था कि वेटर ने बेल बजाई...
"लगता है.. फर्स्ट एड आ गयी.. ले लो.. मैं बाद मैं चेंज करूँगी.. पहले तुम्हारी पट्टी कर देती हूँ..."
--------
"शर्ट तो निकाल दो... पहले.." स्नेहा ने बॉक्स खोलते हुए विकी से कहा...
विकी का दिमाग़ भनना रहा था.. आज तक वो लड़कियों को निर्वस्त्रा करता आया था.. पर आज उसकी जिंदगी की सबसे हसीन लड़की उसको खुद शर्ट निकालने को बोल रही है.. क्या वो झिझक रहा था? हां.. उसके चेहरे के भाव यही बता रहे थे...

"तुम तो ऐसे शर्मा रहे हो.. जैसे तुम कोई लड़की हो.. और मैं लड़का..!" कहकर स्नेहा खिलखिला उठी.. अपने चेहरे की शर्म को छिपाने के लिए उसने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया.. हंसते हुए.. हमेशा वो ऐसा ही करती थी..
विकी की नज़र उसके हिलने की वजह से फड़फदा रहे कबूतरों पर पड़ी.. बिना सोचे हाथों में पकड़ कर मसल देने लायक थे.. फिर जाने वो क्या सोच रहा था.. और क्यूँ सोच रहा था...
"निकालो!" स्नेहा के बोल में अधिकार भारी मिठास थी.. और कुच्छ नही...
"निकलता हूँ ना...!" कहते हुए विकी ने एक एक करके अपनी शर्ट के सारे बटन खोल दिए.. जैसे ही वो बाई बाजू से शर्ट निकालने की कोशिश करने लगा.. दर्द से बिलबिला उठा..," अयाया...!"
"रूको.. मैं निकलती हूँ.. आराम से..!" कहकर एक बार फिर स्नेहा उसके सामने आ गयी... घुटनो के बल होकर.. बड़ी नाज़ूक्ता से एक हाथ विकी के दूसरे कंधे पर रखा और दूसरे हाथ से धीरे धीरे शर्ट को निकालने लगी," दर्द हो रहा है?"

दर्द तो हो रहा था.. पर उतना नही.. जितना मज़ा आ रहा था.. विकी आँखें बंद किए अपनी जिंदगी के सर्वाधिक कामुक क्षनो को अपनी साँसों में उतारता रहा.. सच इतना मज़ा कभी उसको सेक्स में भी नही आया था.. स्नेहा के कमसिन अंगों की महक निराली थी.. जिसे वो गुलबों की तेज खुश्बू के बीच भी महसूस कर रहा था.. उसकी 'मर्दानगी' अकड़ने लगी... दिल और दिमाग़ में अजेब सा युद्ध छिड़ा हुआ था..
इश्स बार भी दिमाग़ ही जीत गया.. विकी ने अपने तमाम आवेगो को काबू में रखा.. हालाँकि 'काबू' में रखने की इश्स कोशिश में उसके माथे पर पसीना छलक आया.. ए.सी. के बावजूद...
"उफफफफफ्फ़.. घाव तो बहुत गहरा है... मुझसे देखा नही जा रहा.." स्नेहा ने शर्ट निकालते हुए घाव को देखते ही आह भरी...
"लो निकल गयी... ! चलो बाथरूम में.. इसको धो देती हूँ..." स्नेहा का दूसरा हाथ अब भी उसके कंधे पर ही था.. और वो यूँही विकी के चेहरे को एकटक देख रही थी.. प्यार से...

पट्टी करने के पूरे प्रकरण के दौरान जहाँ भी स्नेहा ने उसको स्पर्श किया.. मानो वही अंग खिल उठा.. आज तक कभी भी विकी को इश्स तरह की अनुभूति नही हुई थी.. वो तो बस आनंद के सागर में गहरी डुबकी लगाकर अपने हिस्से के मोती खोजता रहा....

प्यार और वासना में सदियों से मुकाबला होता आया है.. कुच्छ लोग 'प्यार' होने को सिर्फ़ 'आकर्षण' और 'वासना' मानते हैं.. पर सच तो ये है की वासना प्यार के अनुपम अहसास के आसपास भी कभी फटक नही सकती.. वासना आपको 'खाली' करती है.. वहीं प्यार आपको तृप्त... जहाँ लगातार 'सेक्स' भी हरबार आपको एक सूनेपन और बेचैनी से भर देता है, वहीं आपके यार का प्यार भरा एक हूल्का सा स्पर्श आपको उमर भर के लिए ऐसी मीठी यादें दे जाता है.. जिसके सहारे आप जिंदगी गुज़ार सकते हैं.. यार के इंतज़ार में..

विकी शायद आज पहली बार 'प्यार' के स्पर्श को महसूस कर रहा था.. हॅव यू एवर?

Monday, 27 October 2014

masti ki pathsala - 56

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-56

 "पर्रर.. हमें कैसे पता लगेगा की अब पापा क्या करेंगे..?" स्नेहा ने ठीक ही पूचछा था.. वो ना भी पूछती तो विकी उसको बताने वाला था...

"सिर्फ़ एक ही तरीका है... हूमें किसी होटेल में रुकना पड़ेगा... वहाँ टी.वी. पर हम सब कुच्छ देख सकते हैं.. हरयाणा न्यूज़ पर तो ये खबर च्छाई होगी... क्यूंकी पोलीस वाले की बातों से साफ है कि तुम्हारे पापा ने नाटक शुरू कर दिया है...!" विकी ने तिर्छि नज़रों से उसके मंन के भाव पढ़ने की कोशिश की...
स्नेहा व्यथित थी.. जैसा भी था.. था तो उसका बाप ही.... क्यूँ उसने अपनी ही बेटी को घटिया राजनीति के लिए प्रयोग किया.. रही सही कसर उसने सानू को उन्न दरिंदों के हवाले करने की बात सोच कर पूरी कर दी... 7 दिन! वो 7 दिन उसकी जिंदगी के सबसे बदनसीब दिन होते.. अगर 'मोहन' उसको ना बचाता तो...
"कहा खो गयी सानू!" अब विकी को भी सानू के बदन से ज़्यादा इश्स खेल में मज़ा आने लगा था.. सच में दिल कभी दिमाग़ से नही जीत सकता.. दिल जीत कर भी हमेशा हारता ही है....
"कुच्छ नही.. पर आसपास होटेल कौनसा है..? जहाँ हम रुक सकें.....!" सानू ने रिश्तों के भंवर से निकलते हुए विकी की और देखा....
"होटेल तो बहुत हैं.. पर समस्या ये है कि इन्न कपड़ों में......" विकी ने उसकी स्कर्ट की और देखा....
और सानू शर्मा गयी.. पहली बार उसको अपने जवान होने का और अपने कपड़ों के छ्होटे होने का अहसास हुआ.. नज़रें नीची करके उसने अपनी नंगी जांघों को अपने हाथों से ढकने की कोशिश की... और साथ ही अपनी जांघें भीच ली...

आज तक स्नेहा गर्ल'स हॉस्टिल में रहकर ही पढ़ती आई थी.. और वहाँ रहकर स्वच्छन्द सी हो गयी थी... पर विकी की नज़रों ने उसको नारी होने की मर्यादाओं से अवगत करा दिया था.. और अब उसके इन्न कपड़ों के बारे में सीधे कॉमेंट ने तो उसको सोचने पर मजबूर कर ही दिया था... क्या 'मोहन' के उसकी जांघों पर हाथ रखने में अकेले 'मोहन' की ही ग़लती थी...

"अरे.. मेरे कहने का ये मतलब नही था.. मतलब हम वहाँ अपना रिश्ता क्या बताएँगे..." विकी ने उसके भावों को पढ़ते हुए अपनी बात सपस्ट की...
कुच्छ देर की चुप्पी के बाद स्नेहा बोल ही पड़ी," वही कह देना.. जो वहाँ.. पोलीस वाले को कही थी..." सानू कहते हुए लजा गयी...
"क्या?"
"अंजान मत बनो.. तुमने ही तो कही थी..." सानू सिर नीचे किए मुस्कुरा रही थी...
"कि तुम मेरी वाइफ हो.. यही?"
सानू शर्म से लाल हो गयी... बच्ची थोड़े ही थी जो 'वाइफ' होने का मतलब ना समझती हो... पर उसने 'हाँ' में सिर तो हिला ही दिया...

"वहाँ हम कार में थे.. पर होटेल में लोग किसी की वाइफ को इन्न कपड़ों में दिखने को हजम नही करेंगे.... वैसे भी तुम इन्न कपड़ों में 'वाइफ' नही.. गर्ल फ्रेंड ही लगती हो.." कहकर विकी मुस्कुरा दिया...
"मेरे बॅग में एक डिज़ाइनर सलवार कमीज़ है.... वो चलेंगे?" स्नेहा ने उत्सुकता से विकी की और देखा...
"बिल्कुल.. तुम कपड़े बदल लो.." कहकर विकी ने गाड़ी रोक दी... और स्नेहा के मासूम और कमसिन चेहरे को निहारने लगा...
"उतरोगे तभी तो बदलूँगी.. चलो बाहर निकल कर गाड़ी लॉक कर दो.. मैं बस 10 मिनिट लगाउन्गि..!" कहकर स्नेहा विकी की छाती पर हाथ लगाकर उसको बाहर की और धकेलने लगी...
एक झुरजुरी सी विकी के बदन में दौड़ गयी.. शहद जैसा मीठा हुश्न उसके सामने था.. और वह...
खैर विकी बाहर निकल गया.......

बाहर जाते ही विकी ने अपना फोन ऑन किया और माधव से बात करने लगा," हां.. क्या चल रहा है..?"
"सब ठीक है भाई.. पर उनमें से एक की हालत खराब है.. आपने उसकी जांघों में लात जमा दी.. बेचारा कराह रहा है.. अभी तक!" माधव बोला..
"अरे.. बहनचोड़ ने मुझे असली में ही चाकू बैठा दिया... पता नही कितना खून बह गया है... मैने तो देखा भी नही.. खैर रेस्पॉन्स क्या रहा...?"
"पागला गया है साला..! मुखिया पर इल्ज़ाम लगा रहा है... साला सब टीवी वालों को इंटरव्यू दे रहा है.. उसने तो ये भी कह दिया की 50 करोड़ माँगे हैं.. फिरौती
के...!"
"तू छ्चोड़.. अभी मुखिया को कुच्छ मत बताना.. और सुन.. सूर्या होटेल में फोन करवा दे.. कोई मुझे पहचाने ना.. साला जाते ही पैरों की और भागता है.."
"तू अभी तक यहीं है भाई.. बाहर निकल जा.. प्राब्लम हो सकती है.. तेरा भी नाम ले सकता है साला...!"
"तू चिंता मत कर छ्होटे.. उसकी मा बेहन एक हो जाएगी.. तू एक दो दिन बाद झटका देखना....!" विकी के जबड़े भिच गये...
"ले ली या नही.. उसकी लड़की की!" माधव ने दाँत निकाले होंगे ज़रूर.. कहकर...
"नही यार.. दिल ही नही करता.. बेचारी बहुत भोली है.. मासूम सी.. और तुझे तो पता ही है.. मैं रेप नही करता!" विकी मुस्कुराया..
"क्या हुआ.. थर्ड क्लास आइटम है क्या? आपका दिल नही करता तो मुझे ही चान्स दे दो.. यहाँ भी सूखा पड़ा है..!"
"साले की बत्तीसी निकाल दूँगा.. ज़्यादा बकवास की तो.." विकी खुद हैरान था.. वह ऐसा कह कैसे गया... जाने कितनी ही लड़कियाँ उन्होने आपस में बाँटी थी...
"सॉरी भाई.. हां एक बात और.. सलीम और इरफ़ान पर पोलीस ने 7/15 और 420 लगा दी है... अंदर गये.. उनकी भी जमानत करवानी पड़ेगी.."
"क्यूँ.. उन्होने क्या किया..?"
"वो साले आपकी गाड़ी जाने के बाद वहीं बैठकर दारू पीने लगे.. नाका लगाए हुए.. और असली पोलीस आ गयी.. उनको भी रोक लिया नशे में...."
"चल कोई बात नही.. राणा को फोन कर देना.. अपने आप जमानत करवा लेगा..."
"कर दिया है भाई.. 2 दिन लगेंगें..."
"चल रखता हूँ अब... होटेल में याद करके बोल देना.." कहकर विकी ने फोन काटा और वापस गाड़ी के पास पहुँच गया..
वापस आकर विकी ने स्नेहा को देखा तो उसका मुँह खुला का खुला रह गया," सानू! ये तुम हो?"
और स्नेहा मुस्कुरा पड़ी," क्यूँ? जाँच नही रहा क्या?"
"जाँच नही रहा..? तूने तो मेरी फाड़ ही दी.... " ये क्या बोल गया विकी.. खुद वो भी समझ नही पाया.. अब स्नेहा के कपड़े उसके व्यक्तिताव को सही परिभासित कर रहे थे.. एक दम सौम्या.. अद्भुत रूप से मासूम और एक भारतिया आदर्श लड़की की छवि में.. जिसको कोई भी अपनी जिंदगी से जुदा ना करना चाहे.. अब उसके चेहरे का भोलापन और निखरकर आ रहा था.. हालाँकि खुले कपड़ों में उसके कामुक उतार चढ़ाव और गोलाइयाँ छिप सी गयी थी...
"कैसी लगी.. बताओ ना.. मैने पहली बार ऐसे कपड़े पहने हैं.. मेरी सहेली ने गिफ्ट किए थे..."
विकी ने हाथ बढ़कर उसके गले में लटकी चुननी को सरकाकर उसके सिर पर कर दिया और फिर अंगूठे और उंगली को मिलाकर छल्ला बनाते हुए बोला," पर्फेक्ट! मैने तुम्हे पहले क्यूँ नही देखा!"
"क्या मतलब?" अपनी तारीफ़ सुनकर भावुक हो उठी स्नेहा के अधरों पर आई मुस्कान दिल को घायल करने वाली थी...
"कुच्छ नही.. चलते हैं..." विकी ने गाड़ी स्टार्ट कर दी....
"बताओ ना.. ऊई मा.. ये क्या है.." जैसे ही स्नेहा ने उसके कंधे को पकड़ कर उसको हिलाने की कोशिश की.. वो काँप उठी.... उसकी उंगली कटी शर्ट में से बाहर निकल आए माँस के लोथडे पर जा टिकी... और खून से गीली हो गयी...
"आउच.. कुच्छ नही.. हूल्का सा जखम है.. ठीक हो जाएगा.." स्नेहा की उँगली लगने से उसका दर्द जाग उठा.. पर विकी ने सहन करते हुए उसका हाथ हटा दिया...
"नही.. दिखाओ.. क्या हुआ है..? " कहते हुए स्नेहा ने कार की अंदर की लाइट ऑन कर दी.. और उसके हाथ उसके मुँह पर जा लगे..," ओ गॉड! ये कब हुआ..? तुमने बताया भी नही.. " घाव काफ़ी गहरा प्रतीत होता था.. शर्ट के उपर से ही देखने मात्रा से स्नेहा सिहर उठी...
"कुच्छ नही है.. होटेल में चलकर देखते हैं...!" विकी ने गाड़ी की रफ़्तार और तेज कर दी...
स्नेहा फटी आँखों से विकी के चेहरे और घाव को देखती रही.. विकी के चेहरे से पता ही नही चलता था की उसके शरीर का एक हिस्सा इश्स कदर घायल है.. विकी की मर्दानगी का जादू स्नेहा के सिर चढ़कर बोलने लगा... उसके प्रति स्नेहा के भाव पल पल बदलते जा रहे थे...

करीब 15 मिनिट बाद गाड़ी सूर्या होटेल पहुँच गयी... विकी ने गाड़ी पार्किंग में पार्क की और स्नेहा ने अपना बॅग संभाल लिया..," चलें!" विकी का घाव देखकर उसके चेहरे पर उभरी व्याकुलता अभी तक ज्यों की त्यों थी...

विकी की बाई बाजू खून से सनी पड़ी थी.. हालाँकि वो अब सूख चुका था.. जैसे ही मॅनेजर की नज़र विकी की इश्स हालत पर पड़ी वा दौड़कर उसके पास आने से खुद को ना रोक सका..," ययएए क्या हुआ.. भा.. मतलब... बाहर कुच्छ हुआ क्या.. सर?" वो माधव की दी हुई इन्स्ट्रक्षन को भूल ही गया था.. पर विकी ने जब उसको घूरा तो उसने भाई साहब से बदल कर बाहर कह दिया!
"कुच्छ नही.. हमें सूयीट चाहिए.. रात भर के लिए...!" विकी ने अंजान बनते हुए कहा...
"देखिए सर.. हम आपको रूम प्रवाइड नही करा सकते.. जब तक की साथ आने वाली लड़की आपके फॅमिली रीलेशन में ना पड़ती हो... सॉरी..!" कहते हुए मॅनेजर ने आँखें दूसरी और घुमा ली थी.. भाई की आँखों में आँखें डाल कर नखरे करने की उसमें हिम्मत ना थी...
"ये मेरी वाइफ है...!"
"बट.. हम कैसे माने.. ना इनके मान्थे पर सिंदूर है... ना गले में मंगल सुत्र.. और ना ही....."
"चलो.. हम कहीं और रह लेंगे..!" स्नेहा ने पकड़े जाने के डर से विकी को बोला...
"एक मिनिट.... आप मेरे साथ एक तरफ आएँगे मिस्टर. मॅनेजर...!" गुस्से को छिपाने की कोशिश में विकी एक एक शब्द को दाँत पीस पीस कर बोल रहा था...

"पर्र.....!" मॅनेजर आगे कुच्छ बोल पता.. इश्स'से पहले ही विकी ने उसकी बाँह पकड़ी और लगभग खींचते हुए उसको बाहर ले गया....," साले..!"
"पर भाई साहब.. मैने सोचा लड़की को शक नही होना चाहिए कि हम आपको जानते हैं..." कहकर मॅनेजर ने बतीसि निकाल दी... उसको उम्मीद थी की विकी उसकी पीठ थपथपाएगा..
"तेरी मा तो मैं चोदुन्गा साले.. डरा दिया ना उसको.. अब क्या तेरी मा की चूत में लेकर जाउ उसको..."
"स्स्सोररी.. भाई.. सह.. आप ले लीजिए रूम..."
"ना ना.. मत दे.. चुपचाप चल और एंट्री कर.. मोहन नाम है मेरा.. अपना दिमाग़ मत लगाना फिर से..."
"ओ.के. सिर.. !"

Sunday, 26 October 2014

masti ki pathsala - 55

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-55
 " स्नेहा जी.. हमें आगे से दूसरी गाड़ी लेंगे!" विकी ने सहज भाव से कहा...
"क्यूँ?" स्नेहा के पल्ले बात नही पड़ी...
"आपके पापा का आदेश है..." विकी ने बिना कोई भाव चेहरे पर लाए कहा...
"पर क्यूँ.. व्हाई दा हेल वी.... दिस कार इस सो कंफर्टबल यू नो..." स्नेहा को सौ सौ कोस तक भी अंदाज़ा नही था की फिलहाल कुच्छ भी उसके पापा की मर्ज़ी से नही हो
रहा है....
" अब मैं तो पॉलिटिक्स में नही हूँ ना.. स्नेहा जी! उनकी बातें.. वही जाने.."
" तुम्हारी कितनी उमर है....?"
"27 साल!"
"मैं तुमसे 8 साल छ्होटी हूँ.. ये नाम के साथ आप और जी लगाना बंद करो.. नही तो में तुम्हे अंकल जी कहना शुरू कर दूँगी.. समझे!" शरारती मुस्कान पल भर के लिए स्नेहा के कमनीया और मासूम से चेहरे पर दौड़ गयी..
" ओके! तो फिर क्या बोलूं..? तुम ही बता दो..." विकी ने भी स्टाइल मारने में देर नही लगाई...
"स्नेहा! ... चाहो तो सानू भी बोल सकते हो.. मेरी फ्रेंड्स मुझे यही कहती हैं.. मुझे बड़ा अच्च्छा लगता है..." स्नेहा अगली सीट के साथ सर टिका कर विकी को निहारने लगी...
"ओक.. सानू! बहुत प्यारा नाम है.. सच में..." विकी ने नज़र भर कर सानू की और देखा.. और तुरंत गाड़ी एक इमारत के साथ रोक दी...
"क्या हुआ... ?" स्नेहा की आवाज़ में अब कुच्छ ज़्यादा ही मिठास आ गयी थी...
तभी अंधेरे को चीरती हुई एक लंबी सी गाड़ी वहाँ आकर रुकी.. कौनसी थी.. ये दिखाई नही दिया...
स्नेहा के लिए वो जगह बिल्कुल अंजानी थी.. और वो चेहरे भी.. जो गाड़ी से उतरे.. एकद्ूम काले कलूटे.. बेढंगे से.. स्नेहा उनको देखकर सहम सी गयी.. वो तीनो उन्ही की और बढ़े आ रहे थे...
"ये कौन हैं.. ये सब क्या है..?" भय के मारे स्नेहा खिड़की से जा चिपकी...

पर विकी के बोलने से पहले ही स्नेहा को जवाब मिल गया..
उन्न तीनो में से एक ने विकी की खिड़की खोली...," लड़की को उतार दो... तुम्हारा काम ख़तम हुआ..."
स्नेहा को काटो तो खून नही.. इसकी तो उसने कभी कल्पना भी नही की थी...
"सोनू! तुम्हे अब इनके साथ जाना होगा... साहब का यही आदेश था...!" विकी ने पिछे देखते हुए कहा...
"नही.. मैं नही जाउन्गि.. मुझे नही जाना कहीं... मुझे वापस छ्चोड़ आओ.. हॉस्टिल में.." स्नेहा के दिल में उन्न चेहरों को देखकर ही इतना डर समा गया था की उसने अपने दोनो हाथ प्रार्थना की मुद्रा में जोड़ लिए...
" ठीक है.. मैं बात करके देखता हूँ.. " कहकर विकी नीचे उतर गया...
" स्नेहा तुम लोगों के साथ नही जाना चाहती.. मैं उस गाड़ी में ले जाता हूँ.. स्नेहा को.. तुम लोग ये ले जाओ..." विकी की ये बात सुनकर स्नेहा के दिल में हुल्की सी ठंडक पहुँची.. पर वो ज़्यादा देर तक कायम ना रह सकी...
" तुम अपनी नौकरी करो.. और हमें हमारा काम करने दो... हमें लड़की को उठाकर ले जाने के पैसे मिले हैं.. गाड़ी को ले जाने के नही.. अब चलो फूटो यहाँ से..." तीनो में से एक ने कहा...
स्नेहा थर थर काँप रही थी... क्यों हुआ.. कैसे हुआ.. इसकी उसको फिकर नही थी.. बस जान बच जाए; बहुत था.. उसने खिड़की खोली और विकी से जाकर चिपक गयी.. ," नही.. प्लीज़.. मुझे मत भेजना.. छ्चोड़कर मत जाना... मैं मार जाउन्गि..." स्नेहा ने अपनी आँखें बंद कर ली थी...

आआअह... विकी के लिए ये सब किसी हसीन सपने से कम नही था.. स्नेहा के जिस्म का कतरा कतरा अपनी महक विकी में छ्चोड़ रहा था.. सब कुच्छ विकी के प्लान के मुताबिक ही हो रहा था.. पर ये वक़्त कुच्छ करने का था..," नौकरी गयी भाड़ में... अगर सानू कह रही है कि उसको तुम्हारे साथ नही जाना.. तो मैं इसको नही भेजूँगा.. जाकर साहब को बता देना.... कि स्नेहा ने मना कर दिया... चलो अब भागो यहाँ से...."
" ऐसे कैसे भाग जायें.. अभी तो सिर्फ़ पैसे लिए हैं... इसकी भी तो लेनी है अभी.. 7 रातों की बात हुई है हमारी.. इसको कुँवारी थोड़े रहने देंगे.. चोद..." कहते हुए जैसे ही उनमें से एक आदमी ने अपना हाथ स्नेहा की और बढ़ाया.. विकी ने अपनी दाहिनी तरफ सानू को अपने आगोश में समेटे बायें हाथ की मुठ्ठी कसी और ज़ोर से एक दमदार घूँसा उसकी ओर लपक रहे आदमी को जड़ दिया...
नाटक चल रहा था.. पर शायद घूँसा असली था.. उस आदमी के पैर उखड़ गये और अपनी नानी को याद करता हुआ वो शक्श पीठ के बल ज़मीन पर जा गिरा..," आयाययू!"
स्नेहा अब और भी डर गयी.. क्या छाती क्या जांघें.. सब छुप जाना चाहते थे.. विकी में समा जाना चाहते थे..
गिरा हुआ आदमी उठ नही पाया... दूसरे ने चाकू निकाल लिया.. लूंबे फन वाला... धारदार!
"ओह्ह्ह..." ये क्या हुआ.. रिहर्सल की कमी थी.. उस आदमी को चाकू मारना था और विकी को उसको बीच में ही लपकना था... पर बायें हाथ की वजह से वो चूक गया और चाकू करीब एक इंच विकी के कंधे में जा बैठा.....
"साले.. तेरी मा की.. मुझे चाकू मारा.." दर्द से बिलबिला उठा विकी कुच्छ पल के लिए नाटक वाटक सब भूल गया.. स्नेहा को झटके के साथ अपने से दूर किया और उन्न दोनो पर पिल पड़ा.. तीन चार मिनिट में ही उनको इतने ज़्यादा लात घूँसे जमा दिए की उनको लगा अब भाई के सामने ठहरना बेकार है.. तीनो ने अपनी लंगोटी संभाली और नौ दो ग्यारहा हो गये.. गाड़ी वाडी सब वहीं छ्चोड़कर.....

अब जाकर विकी को स्नेहा का ख़याल आया.. वो आँखें फाडे विकी के इश्स प्रेपलन्नेड़ कारनामे को देख रही थी... जैसे ही विकी उसकी और घूमा.. वो दौड़ कर उस'से आ लिपटी.. इश्स बार डर से नही.. खुशी से..!
" जल्दी करो स्नेहा.. हमें अपना सारा समान दूसरी गाड़ी में डालना है...."

"पर... ये सब क्या है मोहन..? मेरी कुच्छ समझ नही आ रहा..."
" बताता हूँ.. अब तो सब कुच्छ बताना ही पड़ेगा... तुम जल्दी उस गाड़ी में बैठो...." विकी ने उसकी कमर सहलाते हुए बोला...
" नही.. मुझे डर लग रहा है.. तुमसे दूर नही जाउन्गि... एक पल के लिए भी....
"ओक.. तुम मेरे साथ ही रहो.." विकी ने स्नेहा के गालों पर हाथ फेरा और उसको बगल में दबाए.. गाड़ी से समान उतारने लगा...

"चलो बैठ जाओ...!" विकी ने पिच्छली खिड़की खोलते हुए स्नेहा को इशारा किया...
स्नेहा की जांघों में चीटियाँ सी रेंग रही थी.. उसको पता नही था की क्यूँ बस दिल कर रहा था की एक बार फिर से वैसे ही अपने 'मोहन' से चिपक जाए.. एक दम से वो उसकी पुजारीन सी बन गयी थी.. कुच्छ पहले तक उसको अपने बाप की जागीर समझने वाली स्नेहा अब खुद को उसकी जागीर बना बैठी थी.. और उसको अपनी तकदीर.. लड़कीपन ने अपना रंग दिखाना शुरू किया..," नही.. मैं भी आगे ही बैठूँगी.. मुझे डर लग रहा है पिछे बैठते हुए..." मानो विकी का साथ अब सबसे सुरक्षित था दुनिया में....
"ओ.के. सोनू मॅ'मसाहब! आ जाओ.." विकी मुस्कुराया...
विकी की मुस्कुराहट का जवाब सानू ने जीभ निकाल कर दिया.. और आगे जा बैठी...

गाड़ी चल चुकी थी.. प्लान के अगले पड़ाव की ओर..

"बताओ ना.. ये सब क्या था.. मुझे तो चक्कर आ रहे हैं... सोचकर ही.." स्नेहा सीट से उचकी और उसकी जांघों को नितंबों तक अनावृत करके पिछे सरक गयी अपनी मिनी स्कर्ट को दुरुस्त किया...
विकी संजीदा अंदाज में इश्स कपोल कल्पित रहस्या पर से परदा उठाने लगा," देखो सानू.. मैने जो कुच्छ भी कर दिया है.. उस'से मेरी नौकरी ही नही..जान भी ख़तरे में पड़ गयी है... और अब में जो कुच्छ बताने जा रहा हूँ.. उस'से पहले तुम्हे एक वादा करना होगा..."
"वादा किया!" सानू ने गियर पर रखे विकी के हाथ पर अपना हाथ रख दिया...
"पहले सुन तो लो.. क्या वादा करना है..?"
"नही.. मैने अभी जो कुच्छ भी देखा है.. उसके बाद तुम पर विस्वास ना करना.. मैं सोच भी नही सकती.. इतना तो कोई किसी अपने के लिए भी नही करता.... मैने वादा किया.. जैसा कहोगे.. वैसा करूँगी.. पर प्लीज़.. मुझे छ्चोड़ कर ना जाना.. अब!" स्नेहभावुक हो गयी...
"कभी भी?" वी की के दिल में गुदगुदी सी होने लगी... उसने एक पल के लिए स्नेहा की और देखा...
स्नेहा की आँखें झुक गयी.. पर झुकने से पहले बहुत कुच्छ कह गयी थी.. विकी के हाथ पर बढ़ गयी उसके हाथ की कसावट आँखों की भाषा को समझने की कोशिश कर रही थी....
"सब तुम्हारे पापा ने करवाया है....! तुम्हारी किडनॅपिंग का नाटक..!" विकी ने एक ही साँस में स्नेहा को बोल दिया...
अजीब सी बात ये रही की स्नेहा को इश्स पर उतना अचरज नही हुआ.. जितना होना चाहिए था," हाँ.. एक पल को सारी बातें मेरे जहाँ में घूम गयी थी.. पापा ने खुद ही मुझे घूम कर आने को कहा.. जबकि उन्होने मुझे स्कूल की लड़कियों के साथ भी जाने नही दिया.. 2 दिन पहले.. मुझसे ढंग से बात तक नही की.. फिर पापा ने गाड़ी बदलने की बात कही.. फिर ये लोग....!"
"... पर ऐसा किया क्यूँ उन्होने.... क्या चाहते हैं वो.. ऐसा करके.."
"पता नही.. पर जहाँ तक मेरा ख़याल है.. वो ऐसा करके एलेक्षन में लोगों की सहानुभूति बटोरना चाहते होंगे.. क्या पता मरवा भी देते..." विकी ने अपना नज़रिया उसको बताया...
सानू का चेहरा पीला पड़ गया... मुत्ठियाँ भिच गयी," पर इश्स'से उनको मिलेगा क्या..? लोगों की सहानुभूति कैसे मिलेगी...?" वो विकी के मुँह से निकली हर बात को पत्थर की लकीर समझ रही थी...
"ये राजनीति चीज़ ही ऐसी है सानू.. जाने क्या क्या करना पड़ता है...! हो सकता है की विरोधी पार्टी के लोगों पर आरोप लगायें.... एक मिनिट.. आगे पोलीस का नाका लगा हुआ है शायद.. तुम कुच्छ भी मत बोलना.. बस अपने चेहरे पर मुस्कान लाए रखना.. ध्यान रखना.. कुच्छ भी मत बोलना...."
"ओके! " कहकर सानू मुस्कुराने लगी.....

पोलीस वाले ने बॅरियर रोड पर आगे सरका दिया. विकी ने गाड़ी पास ले जाकर रोक दी... ," क्या बात है भाई साहब?"
"कुच्छ नही...! कहकर वो गाड़ी के अंदर टॉर्च मार कर आगे पिछे देखने लगा...," ये लड़की कौन है?"
"मेरी बीवी है.. क्यूँ?" विकी ने सानू को आँख मारी.. सानू को अहसास हुआ मानो आज वो सच में ही दुल्हन बन'ने जा रही हो.. अपने 'मोहन' की....
"सही है बॉस.. चलो!" पोलीस वाले ने हाथ बाहर निकाल लिया...
"अरे बताओ तो सही क्या हुआ...?" विकी ने अपना सिर बाहर निकाल कर पूचछा...
"क्या होना है यार.. वो ससुरे मुरारी की लड़की भाग गयी होगी.. कह रहे हैं किडनप हो गयी है.. है भला किसी की इतनी हिम्मत की उस साले की लौंडिया को उठा ले जाए.. हमारी नींद हराम करनी थी .. सो कर रखी है..."
स्नेहा का मुँह खुला का खुला रह गया.. वो बोलना चाहती थी.. पर उसको 'मोहन' की इन्स्ट्रक्षन्स याद आ गयी...
विकी ने गाड़ी चला दी....," सच में.. पॉलिटिक्स बड़ी कुत्ति चीज़ है.. कहकर विकी ने स्नेहा का फोन निकाल कर उसको दे दिया....
"ययए.. तुम्हारे पास...???" सानू चौंक गयी...
"क्या करें सानू जी.. साहब का हुक़ुम जो बजाना था.. उनको लगा होगा की कहीं तुम फोन करके उनकी प्लांनिंग ना बिगाड़ दो.. उन्होने ही बोला था.. तुमसे लेकर फैंक देने के लिए.. पर मैने चुरा लिया.. अब जो तुम्हारे पापा चाहते थे.. वो मेरे दिल को अच्च्छा नही लगा.. भला कोई कैसे अपनी बेटी को बलि की बकरी बना सकता है...!" विकी का हर पैंतरा सही बैठ रहा था..
"मैं उनको अभी मज़ा चखाती हूँ.... कहकर वो पापा का नंबर. निकालने लगी....
"नही सानू.. प्लीज़.. मैने वादा लिया था ना.. यही वो वादा है की मेरे कहे बिना वहाँ फोन नही करोगी... मेरे घर वालों की जान पर बन आएगी.. उनको यही लगना चाहिए की तुम्हे कुच्छ नही पता.... बस.. मेरे कहे बिना तुम किसी को कोई फोन नही करोगी...." विकी ने अपनी बातों के जाल में सानू को उलझा लिया...
"ठीक है.. पर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है...!"
"तुम्हारा गुस्सा जायज़ है.. सानू.. पर उनको सबक सीखना ज़रूरी है.. उनकी इश्स चाल को नाकामयाब करके तुम उन्हे रास्ते पर ला सकती हो.." विकी ने किसी दार्शनिक के अंदाज में कहा...
"सही कहते हो.. पर कैसे.. मैं कैसे नाकामयाब करूँ... आइ हेट हिम!" जाने कब की दबी कड़वाहट सानू के मुँह से निकल ही गयी...
"मेरे पास एक प्लान है.. पर उस'से पहले ये जान'ना ज़रूरी है कि वो अब करते क्या हैं..... फिर देखते हैं...."
सानू ने सहमति में अपना सिर हिलाया... उसको विस्वास हो चुका था.... हर उस बात पर जो विकी के मुँह से निकली थी.....

Saturday, 25 October 2014

masti ki pathsala - 54

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-54

 "हेलो!"
"जी मुरारी जी हैं?"
"तू कौन बे?"
"नमस्ते मुरारी जी.. मैं सिटी थाना इंचार्ज विजेंदर बोल रहा हूँ.." विजेंदर की आवाज़ घिघियाई हुई थी...
"हां... खन्ना! तेरी बक्शीश मिली नही क्या..." मुरारी ने लहज़ा नरम किया..
"वो बात नही है भाई साहब.... ववो.. विकी आया था.. काफ़ी बुकबुक करके गया है.. कह रहा था.." विजेंदर की बात अधूरी ही रह गयी...
"उस साले का नाम मेरे सामने मत ले.. अगर उस तरफ नज़र उठा कर भी देखा तो मार दूँगा साले को.. समझा चुका हूँ.. अगर वो ऐसे ही धमकी गिरी करता रहा तो जान से जाएगा.. मैं एलेक्षन्स की वजह से चुप हूँ.. वरना उसकी.. में ठुकवा देता.. समझा उसको.. कल का लौंडा है.. ज़्यादा गर्मी दिखाएगा तो महनगा पड़ेगा.."
"मैने उसको बोल दिया है.. बाकी आप देख लेना... कुच्छ ज़्यादा ही बोल रहा था.. मेरे तो दिल में आया था की उठाकर साले को अंदर कर दूँ.. पर आपकी वजह से ही चुप रहा.. कहीं आप पर बेवजह आरोप ना लगें..."
"तूने ठीक ही किया खन्ना.. एक बार एलेक्षन हो जाने दे.. फिर तू देखना.. मैं उसका क्या करता हूँ... अच्च्छा अब फोन रख.. कोई फोने आ रहा है वेटिंग में..." कहकर मुरारी ने दूसरी कॉल रिसीव की," हां मेरी गुड़िया रानी.. कैसी है मेरी बच्ची...."
"कितनी बार बताउ पापा.. मुझे गुड़िया नाम अच्च्छा नही लगता.. अब में बच्ची नही रही.. 19 की हो चुकी हूँ....!" उधर से कोमल सी आवाज़ आई..
"पर मेरे लिए तो तू गुड़िया ही रहेगी ना.. बोल कैसे याद किया.. पापा को अभी बहुत काम है....

"क्या पापा! मेरी सारी छुट्टियाँ ख़तम हो गयी... आप मुझे घर क्यूँ नही आने देते.. अब फिर स्कूल से बच्चे टूर पर चले गये हैं.. आपने मुझे वहाँ भी नही जाने दिया....मैं यहाँ अकेली बोर हो रही हूँ..."

"बेटा.. तू समझती नही है.. मुझे अक्सर बाहर ही रहना पड़ता है.. और फिर यहाँ भी तुम अकेली बोर ही होवॉगी... चल मैं तेरा पर्सनल तौर का इंतज़ाम करता हूँ.. अब तो खुश!"
"ओह थॅंक्स पापा.. यू आर सो ग्रेट.. उम्म्म्ममचा! कब भेज रहे हो गाड़ी..."
"कल ही भेज देता हूँ.. मेरी बच्ची.."
"ओकी पापा.. बाइ!"
"बाइ बेटा!"
मुरारी ने एक और फोने मिलाया..," हां मोहन!"
"येस सर!"
"कल ही मर्सिडीस लेकर होस्टल पहुँच जाओ.. 5-7 दिन...जहाँ भी वह कहे.. उसको घुमा लाना.. हर तरह का ख्याल रखना..
"ओके सर!"
मुरारी ने कॉल डिसकनेक्ट करते ही वहाँ निर्वस्त्रा लेती उसकी बेटी की ही उमर की लड़की की
चुचियों में सिर घुसा दिया....
गर्ल्स स्कूल पार्ट --35



विकी खिड़की में खड़ा होकर घूमड़ आए बादलों को देख रहा था.. किसी गहरी सोच में.. जो प्लॅनिंग वह कर रहा था.. वह घातक थी.. खुद के लिए भी और उसके करियर के लिए भी.. हालाँकि राजनीति में उसकी गहरी पैठ थी... पर इसकी गलियाँ कितनी बेवफा और हरजाई होती हैं.. विकी को अहसास था.. मुरारी की बेटी को अगवा करना खुद सीयेम को चोट पहुँचाने के बराबर था.. पर नफ़रत की आग होती ही ऐसी है.. इसमें खुद के नुकसान या फ़ायदे के बारे में नही सोचा जाता.. बल्कि दुश्मन की तबाही ही अहम होती है.. फिर चाहे जान ही क्यूँ ना चली जाए..
मुरारी का चेहरा जहाँ में आते ही जैसे उसका मुँह कड़वा हो गया.. अधजाली सिगेरेत्टे को बाहर फैंका और थूक दिया," साला भड़वा! कितनी कुत्ती चीज़ है.."
विकी ने बुदबुडाया...
"भाई.. अगर तू मज़ाक कर रहा है तो बता दे.. वरना मेने तो स्विट्ज़र्लॅंड का टूर प्लान कर लिया है.. मैं ख़ुदकुशी नही कर सकता.. सच्ची बोलता हूँ..." काफ़ी देर से सोफे पर खामोश बैठे माधव ने कहा...


"अबे जा साले! तू भाग जा.. ये गेम तुझ जैसे गांडुओं के लिए नही है.. अब मुरारी 10 करोड़ देगा और मल्टिपलेक्स का मालिक मैं बनूंगा... अब की बार पिच्छला सारा हिसाब चुकता हो जाएगा..." ,विकी ने हंसते हुए कहा...
"पर यार .. तू करेगा कैसे.. क्या तू उसको खुला चलेंज देगा.... किडनॅपिंग की खबर देगा..." माधव अभी तक डिसाइड नही कर पाया था की वो क्या करेगा....
"तुझे अब इस बात से कोई मतलब नही होना चाहिए.. चल फुट ले.."
"मतलब है भाई.. तुझे पता है.. मैं तुझे नही छ्चोड़ सकता.. बता ना.. कैसे करना है..?"
"बैठकर तमाशा देखना है.. और ताली बजानी है.. छक्का कहीं का.. अब तक क्यूँ गान्ड फटी हुई थी साले..." विकी ने उसके कंधे पर हाथ मारा....
"वो बात नही है भाई.. मुझे पता है.. तू दिमाग़ से कम और दिल में उफान रहे जज्बातों से ज़्यादा काम लेता है.. बस इसीलिए.. सिर्फ़ इसी वजह से अपना 'बल्लू' मुरारी से मात खा गया.. तुझे पता है...." माधव के इतना कहते ही विकी की मुत्ठियाँ और जबड़े भिच गये.. आँखों में खून उतर गया..," इश्स बार मुरारी की गाड़ उसके ही हथियार से मारूँगा.. तू देखता रह माधो.. मैं बल्लू भाई का बदला लूँगा.. देखता रह.. अबकी बार दिल नही दिमाग़ चलेगा.. तुझे एक खुशख़बरी मिलने वाली है.. बस थोड़ी देर रुक जा..." विकी ने अपनी बात पूरी भी नही की थी की दरवाजे के पास गेट्कीपर आया," साहब! कोई मोहन आया है..!"
"यस! जल्दी भेज उसको.. " विकी के चेहरे पर कामयाबी की ख़ुसी लहरा गयी.....
"ये मोहन कौन है भाई..?" माधव भी विकी के साथ ही खड़ा हो गया...
"अभी बताता हूँ.. 2 मिनिट सब्र कर..."
"नमस्ते सर..!"
"आओ आओ मोहन कैसे हो..?" विकी ने मोहन की कमर थपथपाई...
"ठीक हूँ साहब.. ये लो गाड़ी की चाबी...! हमें बहुत डर लग रहा है साहेब.." मोहन के बिना बताए ही ये बात झलक रही थी की वो कितना डरा हुआ है...
विकी ने ड्रॉयर से निकाल कर एक थैला उसको थमा दिया..," पैसे गिन ले.. और अपना फोने मुझे दे.. पैसे घर पहुँच जाएँगे तो माधव तुम्हारी बात करा देगा.. जब तक काम पूरा नही होता.. तू यहीं रहेगा... समझा.."

"ठीक है साहब.. पर मेरे घर वालों पर कोई आँच..."

"तू परवाह मत कर.. मैं देख लूँगा.. पीछे वाले कमरे में जा और दारू शारू गटक जी भर कर.. मलिक की तरह रह..! ऐश कर..."

"ठीक है साहब.." बॅग में 500 की गॅडडीया देखकर मोहन की आँखें चमक उठी," साहब.. वहाँ आज ही जाना है.. मॅ'म साहब को लेने..."
"यार.. मेरा एक काम कर देगा..प्लीज़!"... राज ने स्कूल आते हुए वीरेंदर से कहा...
"अगर उन्न छिपकलियो से रिलेटेड कोई काम है तो बिल्कुल नही...." वीरेंदर ने राज को शंका की द्रिस्ति से देखा...
स्कूल का तीसरा दिन था... प्रिया के करारे हुष्ण का सुरूर राज पर चढ़ता ही जा रहा था.. वीरू भी समझा समझा कर पक गया था.. पर ढाक के तो वही तीन पात...
"यार कोई ऐसा वैसा काम नही है... ज़रूरी है.. पढ़ाई से रिलेटेड..." राज के चेहरे पर गिड़गिडाहट सी उभर आई...
"बोल!" रूखा सा जवाब दिया...
"आ.. वो क्या है की.. छुट्टियों से पहले के प्रॅक्टिकल्स कॉपी करने हैं मुझे... अगर तू.... प्रिया से माँग दे तो... प्लीज़.."
"क्यूँ? प्रिया से क्यूँ.. मैं क्या मर गया हूँ साले..." वीरेंदर की आँखों से प्रतीत हो रहा था कि वो भी उस अचानक बने आशिक से हार मान चुका है... मन ही मन मुस्कुरा रहा था..
"समझा कर यार.. उसने अच्छे से लिखा होगा... माँग देगा ना यार.."
"अच्च्छा.. इश्क़ तुम फरमाओ.. और बलि पर मैं चढ़ु.. ना भाई ना.. अगर बोलने तक की हिम्मत नही है तो छ्चोड़ दे मैदान.." वीरेंदर ने राज का मज़ाक ही तो बना लिया...
"अच्च्छा .. तो तू समझता है की मैं खुद नही कर सकता..." राज ने बंदर घुड़की दी...
"तो कर ले ना यार.. मुझ पर क्यूँ चढ़ रहा है.. जा कर ले..!" वो क्लास में घुसे ही थे की वीरेंदर की करतूत ने राज का चेहरा पीला कर दिया," प्रिया! इसको तुमसे कुच्छ चाहिए...."
राज को काटो तो खून नही.. वो इसके लिए कतयि तैयार नही था.. और कोई लड़की होती तो वो बेबाक ही कह देता.. पर यहाँ तो दाढ़ी में तिनका था.. वह कभी अपनी सीट पर जा बैठे वीरेंदर को तो कभी दरवाजे की और देखने लगा....
आकर्षण की आग दूसरी तरफ थी या नही ये तो पता नही.. पर तिनका तो वहाँ भी मिल ही गया.. उठते बैठते रिया प्रिया को याद दिलाती रहती थी की राज उनकी ही और घूर रहा है.... मतलब तो वो भी समझती ही होगी.. पागलों की तरह एकटक देखते रहने का...
प्रिया ने एक बार राज की और देखा.. नज़रें झुकाई.... फिर उठाई और झुका ली... झुकाए ही रही...
"हां.. क्या चाहिए?" रिया बोल पड़ी.. हालाँकि आवाज़ बहुत मीठी थी पर राज के सीने में तीर की तरह चुभि...
"ववो.. केमिस्ट्री क्की.. प्रॅक्टिकल फाइल... एक बार चाहिए थी... एक बार.. बस!" राज को एक लाइन बोलने में इतनी मेहनत करनी पड़ी की पसीने से तर हो गया...
रिया ने प्रिया का बॅग खोला और उसमें से फाइल निकल कर देदी...
राज ने काँपते हाथो से फाइल पकड़ी और अपनी सीट की और रुख़ कर लिया...


"तूने.. मेरी फाइल क्यूँ दी.. अपनी दे देती.." प्रिया रिया के कान में फुसफुसाई...
"मुझसे थोड़े ही माँगी थी.. प्रिया से चाहिए थी ना!" कहकर रिया खिलखिला पड़ी...

राज का चेहरा देखने लायक था.. हालाँकि उसकी मंशा कामयाब हुई.. पर बे-आबरू सा होकर...
फाइल के एक एक पन्ने को राज इश्स तरह पलट रहा था.. जैसे वह गीता हो... बड़े प्यार से.. बड़ी श्रद्धा से..

ना तो प्रिया अपनी फाइल को वापस माँग पाई और ना ही उस दिन राज उसको वापस कर पाया...

चमचमाती हुई मर्सिडीस होस्टल के गेट के बाहर रुकी.. जानबूझ कर विकी ने ड्राइवर वाली ड्रेस नही डाली थी.. ब्लॅक जीन और कॉलर वाली वाइट टी-शर्ट में सरकार बदले बदले नज़र आ रहे थे.. वरना तो सफेद कुर्ता पाजामा उसकी शख्शियत की पहचान बन चुके थे.. बॅक व्यू मिरर को अड्जस्ट करके उसने एक सरसरी सी नज़र अपने ही चेहरे पर डाली.. 'वह क्या लग रहा है तू' ...विकी मॅन ही मॅन बुदबुडाया और कमर के साथ टँगी माउज़र निकाल कर सीट के नीचे सरका दी...
रेबन के पोलेराइज़्ड गॉगल्स पहने जब नीचे उतरा तो गेट्कीपर बिना सल्यूट किए ना रह सका.. वरना तो वहाँ अगर गार्जियन आते भी थे तो बॅक सीट पर बैठकर....
"सलाम साहब! गाड़ी अंदर ले जानी है तो गेट खोल दूं?"
"नही.. मिस स्नेहा को बोलो ड्राइवर आ गया है.. उसको लेने..!" विकी ने बाहें फैलाकर आसमान को निहारते हुए अंगड़ाई ली...

"ड्राइवर?????.... आप?" गेट्कीपर आसचर्या से जूतों से लेकर गॉगल्स तक पॉलिटीशियन विकी से जेंटलमेन विकी में तब्दील हुए शक्ष को घहूरता चला गया...
" 6 फीट 1 इंच!" विकी ने उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा...
"क्या?"
"मुझे लगा मेरी हाइट माप रहे हो.." विकी मुस्कुराया...
"रूम नंबर. क्या है..?
"247! जल्दी करो..." विकी को जल्दी थी.. चिड़िया को लेकर उड़ जाने की...
गेट्कीपर ने एक नंबर. डाइयल किया..," हेलो मॅ'म! रूम न. 247 से स्नेहा जी को नीचे भेज दो... ड्राइवर जी... सॉरी.. आ.. उनका ड्राइवर लेने आया है.." वह अब भी फटी नज़रों से विकी को निहार रहा था....

"ओ तेरी.. क्या पीस है???" दूर से एक लड़की को आते देख विकी की हड्डियाँ तक जम गयी.. 'नही नही.. ये तो स्नेहा हो ही नही सकती.. कहाँ वो बदसूरत मुरारी.. और कहाँ ये हुश्न की परी... वो तो शायद अपने दोनो हाथ उठाकर भी इसकी उँचाई को नही छ्छू सकता... पर विकी खुदा की उस हसीन कृति से नज़रें ना हटा सका...
ज्यों ज्यों लड़की करीब आती गयी.. उसके छ्होटे कपड़ों में छिपे अनमोल खजाने को विकी अपनी पारखी नज़रों से परखने लगा..
करीब 5'8" की हाइट होगी.. कमर तो मानो थी ही नही.. 26" की कमर भी कोई कमर होती है.. उसकी जैसे दूधिया रंग में पूती जांघों पर फँसी हुई गुलाबी रंग की मिनी स्कर्ट पीछे से उसको मुश्किल से ही ढक पा रही होगी... उपर सफेद रंग की चादर सी सिलवटों से भरी पड़ी थी.. उसको क्या कहते हैं.. विकी को अंदाज़ा नही था.. पर वो सिलवटें भी शानदार उभारों का साइज़ च्छुपाने में सक्षम नही थी.. वहाँ से कपड़ा टाइट था.. एकद्ूम.. चलने के साथ ही उसके लूंबे बॉल इधर उधर लहरा रहे थे.....
अचानक विकी का कलेजा मुँह को आ गया जब उस लड़की की मीठी सी आवाज़ उसके कानो में पड़ी...,"कहाँ है.. ड्राइवर?"
गेट्कीपर बिना कुच्छ बोले विकी की और देखने लगा..
"ड्राइवर??? आप.." लगभग वही प्रतिक्रिया स्नेहा की थी.. जो कुच्छ देर पहले गेट्कीपर प्रदर्शित कर चुका था... फिर संभालते हुए उसने अपनी गाड़ी को पहचाना और बोली," गाड़ी अंदर ले आओ..!"

विकी ने गाड़ी स्नेहा के बताए अनुसार ले जाकर रोक दी और बाहर निकल कर खड़ा हो गया...
"समान कौन रखेगा..??"
"क्या ? ओह सॉरी.." विकी को बात सुनकर एकबार गुस्सा आया पर अगले ही पल वो संभाल गया..," कहाँ है..?"
"लगता है.. एक्सपीरियन्स नही है.. आओ.." और कहकर स्नेहा अंदर से लाकर समान रखवाने में उसकी मदद करने लगी....

"आ.. तुमने कब से नौकरी जाय्न की है..?" स्नेहा ने चहकते हुए पूचछा...
"पैदाइशी नौकर हूँ...!" विकी ने तल्ख़ लहजे में जवाब दिया.... दोनो हॉस्टिल से करीब 5 कि.मी आ चुके थे.. जब स्नेहा से चुप ना रहा गया...
"शकल से लगते नही हो.. अब तक तो पापा खूसट ड्राइवर रखा करते थे...!"
"हूंम्म!" विकी ने उसी रफ़्तार से गाड़ी चलाना जारी रखा...
"वैसे हम जा कहाँ रहे हैं.." स्नेहा ने आगे वाली सीट की और झुकते हुए कहा...
"जहाँ कहो...!" विकी अपने प्लान पर काम कर रहा था.. मंन ही मंन.. उसको यकीन नही हो रहा था की वो इतनी आसानी से पहली सीढ़ी पार कर लेगा...
"माउंट आबू चलो.. हमारे स्कूल की ट्रिप वहीं गयी है.."
"नही.. मुझे वो जगह पसंद नही है... कहीं और बोलो..." विकी भला उसके स्कूल की ट्रिप में उसको शामिल कैसे करता...
"व्हाट डू यू मीन बाइ तुम्हे पसंद नही है.. डोंट फर्गेट यू आर ए ड्राइवर... चलो! हम वहीं चलेंगे..."
"नही.. जहाँ मेरा मॅन नही मानता; वहाँ में नही जाता.. कहो तो वापस हॉस्टिल छ्चोड़ दूं...." विकी ने अपने कंधे उचका कर अपना इरादा बता दिया...
"बड़े ईडियट किस्म के ड्राइवर हो.. अगर पापा कहते तो भी नही जाते क्या..?" स्नेहा के माथे की थयोरियाँ पर बल पड़ गये...
"उस.. उनकी बात और है... मैं उनका ड्राइवर हूँ.." कहते हुए विकी का जबड़ा भिच गया था..
"तो मेरे क्या हो?"
"मोहन... मेरा नाम है.... बाकी जो तुम कहो..!" विकी ने रेस पर से दबाव हटाते हुए बोला....
"हे! तुम्हे नही लगता तुम कुच्छ ज़्यादा ही बोलते हो..... एर्र्ररर.. ये गाड़ी क्यूँ रोक दी..?" स्नेहा को अब हर बात अजीब लग रही थी....
"पेशाब करना है.. तुम भी कर सकती हो.. सुनसान जगह है...!" विकी ने खिड़की खोली और बाहर निकल गया....
स्नेहा निरुत्तर हो गयी.. उस'से इतनी बदतमीज़ी से बात करने की हिम्मत आज तक किसी में नही थी..
विकी सड़क किनारे चलता हुआ करीब 10 ही कदम आगे गया होगा... उसने अपनी ज़िप सर्काई और अपना 'लंबू' बाहर निकाल लिया.. वो तो तब से ही बाहर आने को तड़प रहा था.. जब उसने गेट की तरफ मादक अंदाज में मटकती आ रही स्नेहा को देखा था.. बाहर आते ही 2-3 बार उपर नीचे हुआ..
विकी ने जानबूझ कर अपने आपको इश्स पोज़िशन में खड़ा किया था की अगर चाहे तो आसानी से स्नेहा उस भारी भरकम 'जुगाड़' को देख सके...

विकी वापस आया तो स्नेहा का चेहरा तपते अंगारे की तरह लाल हो चुका था.. मानो उसने कोई अनोखी चीज़ देख ली हो.. नज़रें लजाई हुई थी.. जांघे एक दूसरी के उपर चढ़ि थी.. और होंठ तर हो चुके थे.. शायद जीभ घूमकर गयी
होगी...
विकी ने वापस आने पर हर एक चीज़ नोट की थी.. पर रेप उसके प्लान में नही
था.. स्नेहा को इश्स कदर पागल कर देना था की वो कुँवारी हो या रंडी बन चुकी हो.. पके हुए फल की तरह उसकी गोदी में आ गिरे....
"तो बताया नही.. कहाँ चलें...?" विकी ने सीट पर बैठकर गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा...
"जहन्नुम में..." कहकर स्नेहा ने अपना मुँह बाहर की और कर लिया....
"वो भी मुझे पसंद नही... मैं तो जन्नत में रहता हूँ.. ऐश करता हूँ!"
विकी की इश्स हाज़िरजवाबी पर स्नेहा मुस्कुराए बिना ना रह सकी... ," ठीक है फिर.. वहीं चलो!"
"कहाँ?"
"जन्नत में.. और कहाँ..."
"नही.. तुम अभी उस लायक नही हो...!"
"आ तुम पागल हो क्या? एक भी बात का सीधा जवाब नही देते.. मैं तो खुश हो गयी थी.. तुम्हे देखकर.. की पहली बार कोई ढंग का ड्राइवर भेजा है.... तुम हो की.......," ओईईईई मुंम्मी.... ये यहाँ कैसे...?"
विकी ने गाड़ी रोक दी.... पलटा तो चौंक गया..," ययए मुझे दो..!"
"पर ये गाड़ी में कैसे रह गयी... इसको तो पापा के पास होना चाहिए..." स्नेहा हैरत से माउज़र को देख रही थी...," मैं पापा के पास फोन करती हूँ.."
"न्नाही.. कोई ज़रूरत नही है.. ये मेरी है.. पर तुम्हे कैसे मिली.." विकी ने उसके हाथ से माउज़र ले ली...
"ववो.. मैने अपनी टाँग सीधी की तो मेरी सेंडल सीट में फँस कर निकल गयी.. उसको निकाल रही थी तो... पर तुम्हारे पास माउज़र.. तुम सच में अजीब आदमी हो.. इतने महँगे शौक!" स्नेहा उसको अजीब तरीके से देख रही थी....
"वो दरअसल मैं ड्राइवर नही हूँ.. एस.ओ. हूँ तुम्हारे पापा का...!" विकी तब तक सँभाल गया था...
"श.. ई सी!" स्नेहा के भाव विकी के लिए अचानक बदल गये...," सॉरी.. मैने आपसे ग़लत सुलूक किया हो तो..."
"कहाँ चलें...?" विकी ने सवाल किया...
"कहीं भी.. जहाँ तुम चाहो.. बस मुझे खुली हवा में साँस लेनी है.. आप सच में ही कमाल के हो... उ हूऊऊऊऊओ.." स्नेहा ने शीशा नीचे करके बाहर मुँह निकाला और ज़ोर की चीख मारी.. आनंद और लापरवाही भरी चीख....

विकी कुच्छ ना बोला... उसके प्लान का दूसरा हिस्सा कुच्छ ज़्यादा ही जल्दी कामयाब हो गया... स्नेहा का विस्वास जीतने वाला हिस्सा...
गाड़ी सड़क पर एक बार फिर तेज़ गति से दौड़ पड़ी....