"एक मिनिट रोकोगे प्लीज़.. "
"क्या हुआ..?"
"ओहो.. रोको भी..."
"बताओ तो सही.. हुआ क्या है आख़िर..."
"लड़कियाँ लड़कों की तरह बेशर्म नही होती... जल्दी रोको प्लीज़.." स्नेहा के चेहरे पर बेचैनी सॉफ झलक रही थी...
"श.." कहते हुए विकी ने ब्रेक लगा दिए....
स्नेहा गाड़ी से नीचे उतरते ही तेज कदमों से पास की झाड़ियों की तरफ चल दी.. उसकी गान्ड की लचकान देखकर विकी आह भर उठा.. पर कंट्रोल ज़रूरी था... दिमाग़ से काम लेना था इश्स बार!
नज़रों से औझल होते ही विकी ने उसके पर्स में हाथ मारा.. मोबाइल उपर ही मिल
गया.. विकी ने उसको साइलेंट करके अपनी पॅंट की जेब में डाल लिया...
स्नेहा की पेशाब करने की प्यारी आवाज़ ने विकी की धड़कने और बढ़ा दी.. स्नेहा कुँवारी थी.. बिल्कुल कुँवारी.. विकी पेशाब करने की आवाज़ से ही इश्स बारे में कन्फर्म्ड हो गया.. हाथ के इशारे से उसने पॅंट में कुलबुला रहे यार को शांत रहने की नसीहत दी....
स्नेहा वापस आई तो उसकी आँखों में लज्जा सी थी.. एक अपनापन सा था.. एक चान्स था!
"मैं आगे बैठ जाउ?" पेशाब करके वापस आई स्नेहा के मंन में अब आदेश नही.. आग्रह था...
"क्यूँ नही..!" कहकर विकी ने अगली खिड़की खोल दी..
"श थॅंक्स... एक बात बोलूं?" स्नेहा ने अपने आपको अगली सीट पर अड्जस्ट किया...
"हूंम्म... बोलो!" विकी ने हुल्की सी मुस्कान उसकी और फैंकी.. दरअसल वो उस अधनंगे कमसिन बदन को देखकर बड़ी मुश्किल से अपनी बेकरारी छिपा पा रहा था.. चिकनी जांघें बेपर्दा सी उसकी नज़रों के सामने थी.... एक दूसरी से चिपकी हुई!
"मुझे शुरू में ही शक़ था की तुम ड्राइवर तो कम से कम नही ही हो.. तुम तो एकदम हीरो लगते हो...!" स्नेहा अपनी शर्ट को नीचे खींचती हुई बोली.. जो सिमट कर उसकी नाभि तक पहुँच गयी थी...
"हूंम्म.. बिना हेरोयिन के भी कोई हीरो होता है भला..." जाने विकी बात को कहाँ घुमा रहा था...
"मतलब!" क्या सच में वो मतलब नही समझ पाई होगी...?
"कुच्छ नही.. बस ऐसे ही...!"
"मतलब तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नही है.. है ना?" स्नेहा ने हुल्की सी मुस्कान उसकी तरफ फैंक दी...
गर्ल फ.... सुनते ही अनगिनत सुंदर चेहरों की कतार सी विकी की आँखों में घूम गयी.. पर प्रत्यक्ष में वो कुच्छ और ही बोला..," कुच्छ ऐसा ही समझ लो..! कोई मिलती ही नही...!"
"उदास क्यूँ होते हो.. जब तक हम हैं.. हूमें ही समझ लो.." स्नेहा ने कातिल मुस्कान उसकी और फैंकते हुए कहा...
"सच!" मानो विकी को बिन माँगे ही मोती मिल गया हो.. इतनी देर से उस पर टूट पड़ने को बेताब विकी का हाथ एक दम से उसकी जांघों पर जाकर चिपक गया...
"आएययी.. ऊउउउउ..." स्नेहा ने एक दम से उसका हाथ दूर पटक दिया," स्टॉप दा कार... आइ सेड स्टॉप दा कार...!" अचानक से स्नेहा का चेहरा तमतमा उठा...
विकी के दिल में आया की गाड़ी रोक कर अभी उसको अपनी गोद में बैठकर झूला दे.... उसको लगा मामला तो बिगड़ ही गया है.. पर फिर भी उसने संयम रखा और गाड़ी रोक दी....
"तूमम.. तुम बहुत बदतमीज़ हो.. तुमने किस बात का क्या मतलब निकाल लिया.." कहते हुए स्नेहा ने गुस्से से खिड़की पटकी और पीछे जाकर बैठ गयी... उसकी आँखों में आँसू थे....
उसके बाद करीब 2 मिनिट तक गाड़ी में कोई हुलचल नही हुई... आख़िरकार विकी को ही चुप्पी तोड़नी पड़ी..," चलें?"
स्नेहा कुच्छ ना बोली... अपनी आँखें मसल मसल कर वो लाल कर चुकी थी...
विकी किसी भी तरह बात को संभाल लेना चाहता था..," सॉरी... वो... मैं समझा की........"
"क्या समझे तुम... हां.. क्या समझे..? यही की मैं कोई आवारा लड़की हूँ... यही की लड़की के लिए उसकी इज़्ज़त.. उसकी आबरू कोई मायने नही रखती.. बोलो!" स्नेहा का ये रूप विकी के लिए किसी आठवे अजूबे से कम नही था.. उसकी आँखों से विकी के प्रति क्षणिक घृणा और ग्लानि भभक रही थी," सारे मर्द भेड़िए होते हैं.. मैने हंसकर दो बात क्या कर ली... तुम जैसे लोगों के लिए गर्लफ्रेंड का एक ही मतलब होता है....!" स्नेहा का हर अंग एक ही भाषा बोल रहा था.. तिरस्कार तिरस्कार और तिरस्कार....
विकी की तो बोलती ही बंद हो गयी.. हालाँकि उसकी शरारती आँखें पूच्छ रही थी..," देवी जी! ऐसे कपड़ों में कोई नारी को पूज तो नही सकता!" पर मामला और बिगड़ सकता था.. इसीलिए आँखों की बात ज़ुबान तक वो लेकर नही आया..," मैने बोला ना सॉरी! आक्च्युयली तुम ऐसी... हो की मैं रह ना सका.. मेरे ज़ज्बात काबू में ना रहे.. अब तो माफ़ कर दो...!"
नारी की सबसे बड़ी कमज़ोरी.. खुद को शीशे में देखकर इतराना और खुद की प्रसंशा सुनकर सब कुच्छ भुला देना.. स्नेहा भी अपवाद नही थी.. विकी की इश्स बात से उसके कलेजे को अजीब सी ठंडक पहुँची जिसकी खनक उसके अगले ही बोल में सुनाई दी," अब चलो भी... अंधेरा हो रहा है.. रात भर यहीं पड़े रहोगे क्या...?" स्नेहा ने अपने आँसू पोंच्छ दिए या हुश्न की तारीफ़ की लेहायर उन्हे उड़ा ले गयी.. पता ही नही चला.. आँखों में आँसुओं का स्थान अब चिरपरिचित चमक ने ले लिया था... गाड़ी फिर दौड़ने लगी....
"अब मौन व्रत रख लिया है क्या? कुच्छ बोलते क्यूँ नही..." लड़की थी.. भला चुप कैसे रहती... 10 मिनिट की चुप्पी ने ही स्नेहा को बोर कर दिया...
विकी कुच्छ नही बोला.. नारी की हर दुखती राग को वह पहचानता था...
"श गॉड! लगता है फोन हॉस्टिल में ही रह गया...! मुझे पापा को फोन करना था...!" स्नेहा अपने पर्स को खंगालने लगी... पर फोन मिलना ही नही था.. वो तो विकी की जेब में पड़ा था.. साइलेंट!
"एक बार अपना फोन देना...!" स्नेहा ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया...
विकी ने मोहन वाला फोन निकल कर स्नेहा को पकड़ा दिया.....
करीब 3 बार फोन करने के बाद मुरारी ने फोने उठाया," साले.. पिल्ले के बच्चे.. कितनी बार बोला है..... रंग में भंग मत डाला कर...!"
स्नेहा को उसके पापा के पास दो लड़कियों के हँसने खिलखिलाने की आवाज़ सुनाई दी..," ओह डार्लिंग! यू आर सो हॅंडसम.. मुऊऊउऊन्हा!"
स्वेता का दिल बैठ गया," पापा! ... मैं हूँ...!" अपने पापा का रंगीलापन देख उसका नरित्व शर्मसार हो गया....
"ओह्ह्ह.. मेरी बच्ची! कैसी हो.. मोहन पहुँच गया ना...!"
"हां पापा.. मैं फोने रखती हूँ..." कहकर उसने फोन काटा और गुस्से से पटक दिया....
"क्या हुआ?" विकी ने अचरज भरी नज़रों से मिरर में देखा...
"कुच्छ नही.. बस बात मत करो.. मेरा मूड खराब है!"
"हुआ क्या है?... अगर मुझे बताने लायक हो...." विकी ने गाड़ी की रफ़्तार धीमी कर दी...
"बोला ना, कुच्छ नही.. पर्सनल बात थी.... तुम बताओ.. तुम कहाँ के हो.. इश्स'से पहले कहाँ थे.. वग़ैरह वग़ैरह...." स्नेहा ने बात को टालते हुए कहा...
"हमारा क्या है मेडम..! रोटी के लिए आज यहाँ कल वहाँ... जिंदगी तो तुम जैसे बड़े लोगों की होती है.. ऐश ही ऐश.. ना कोई चिंता.. ना फिकर.. !" विकी ने अपने पत्ते फैक्ने शुरू कर दिए थे.....
"ऐसा क्यूँ कहते हो...? क्या मेरी एक भी बात से तुम्हे लगा की मुझ में बड़े होने का कोई गुमान है.. मैने तो जब से होश संभाला है.. बस इश्स अनाथाश्रम जैसे हॉस्टिल में ही रह रही हूँ... पापा कभी मुझे घर लेकर ही नही जाते.. ले भी गये तो दिन के दिन वापस..." स्नेहा की आँखें सूनी हो गयी.. मानो अपनेपन की तलास में भटक भटक कर थक गयी हों...
"पर... ये तो बहुत जाना माना हॉस्टिल है.. अनाथाश्रम कैसे?.. और आप भी तो.. एक्दुम परियों के जैसे रहती हो.. बेइंतहा कर..." विकी ने बात को आगे बढ़ाया!
"अनाथ उसी को कहते हैं ना... जो बिना मा-बाप के रहता हो! मम्मी को तो कभी देखा ही नही.. बस पापा हैं... वो भी.." कहते हुए स्नेहा का गला रुंध गया... जिसके अपने 'अपने' नही होते... वह सबको अपना मान'ने लगता है.. किसी को भी!
"आप ऐसा क्यूँ कह रही हैं मॅम साहब!.. आप तो...."
"ये मेमसाहब मेमसाहब क्या लगा रखा है.. मैं स्नेहा हूँ.. मुझे मेरे नाम से बुलाओ!"
विकी जानता था.. लड़कियाँ ऐसा ही बोलती हैं.. जब कोई उनको अच्च्छा लगने लग जाए..," पर मॅम.. सॉरी.. पर मैं तो आपका नौकर हूँ ना!"
"नौकरी गयी तेल लेने... मुझे अब और घुटन नही चाहिए.. मैं जीना चाहती हूँ.. कम से कम.. जब तक तुम्हारे साथ हूँ.. ओके? कॉल मी स्नेहा ओन्ली.. वी आर फ्रेंड्स!" कहकर स्नेहा ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.. फ्रेंडशिप का प्रपोज़ल देकर...
विकी ने स्नेहा का कोमल हाथ अपने बायें हाथ में लपक सा लिया,"मैं.. अब क्या कहूँ.. आप को समझ ही नही पा रहा.. इतनी जल्दी गुस्सा हो जाती हैं.. तो उतनी ही जल्दी फिर से...!"
"सच बताओ.. मैं तुम्हे गुस्सैल दिखती हूँ... वो.. उस समय तो... खैर.. हम चल कहाँ रहें हैं.. ये तो बताओ..." स्नेहा धीरे धीरे लाइन पर आ रही थी...
"एक मिनिट..." कहते हुए विकी ने गाड़ी रोकी और बाहर निकल गया.. घना अंधेरा असर दिखाने लगा था... रात हो गयी थी...
"हेलो.. माधव!"
"हां भाई..? सब ठीक तो है ना.. कहाँ हो.. तुम्हारा फोन भी ऑफ आ रहा है..." माधव चिंतित लग रहा था...
"अरे मैं बिल्कुल ठीक हूँ.. और वो मेरे साथ ही है.. सब तरीके से हो रहा है.. किसी बूथ से फोन करवा मुरारी को.. बोल दे की उसकी बेटी किडनॅप हो गयी है.. जल्दी करना.. अब रखता हूँ.. हां.. मोहन को संभाल कर रखना.. उसको टी.वी से दूर रखना...." कहकर विकी ने फोन काट दिया.... और ऑफ कर दिया...!
वापस आया तो स्नेहा बेचैनी से उसकी राह देख रही थी...," कहाँ चले गये थे.. मुझे डर लग रहा था.."
विकी अपनी अनामिका (छ्होटी उंगली) खड़ी करके मुस्कुराया और गाड़ी में बैठ गया...
"तुम भी ना.. इतनी जल्दी!" कहकर स्नेहा खिलखिलाने लगी.. विकी ने भी हँसने में उसका साथ दिया.. सुर मिलने लगे थे.. दूरियाँ कम होने लगी.. एक अपनापन सा अंगड़ाई लेने लगा.....
गाड़ी फिर चल दी.... पता नही कौन्से रोड पर गाड़ी चल रही थी.. स्नेहा को जान'ने की कोई जल्दी नही थी.. पर विकी को फिकर थी.. अब गाड़ी जल्द से जल्द बदलना ज़रूरी हो गया था.....
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