मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी भाग-49
"पर.. मैं तेरे सामने कपड़े निकालू क्या?" कामिनी ने अपने साथ कोठरे में खड़ी चंचल से कहा..
"और क्या करें.. मजबूरी है.. तू मेरी तरफ कमर करके निकाल दे.. मैं तुझे अपना समीज़ निकाल कर देती हूँ.." चंचल थोड़ी सी खुले विचारों की थी..
"नही... मुझसे नही होगा.. मैने तो कभी मम्मी के सामने भी नही बदले.." कामिनी शर्मकार हँसने लगी....
"ओये होये.. बड़ी आई शरमाने वाली.. ठीक है.. तू बाहर जा.. मैं समीज़ निकाल कर यहाँ रख देती हूँ.. फिर पहन लेना.. अब तो ठीक है ना मेरी शर्मीली.."
"हां.. ये ठीक है.. कहते हुए कामिनी बाहर निकल कर खड़ी हो गयी..
"अरे.. इसमें तो कोई कुण्डी ही नही है.." चंचल ने दरवाजा अंदर से बंद करने की सोची थी..." खैर तू जा बाहर.. ध्यान रखना.."
"ठीक है.. जल्दी कर.." कहकर कामिनी बाहर निकली ही थी की मानो उसको साँप सूंघ गया.. उसकी ज़ुबान हिली तक नही.. दरवाजे के बाहर खड़े सुरेश और राज शायद सब सुन रहे थे..
"वववो... कपड़े..." बड़ी मुश्किल से कामिनी इतना ही बोल पाई थी की सुरेश ने दरवाजा खोल दिया.. चंचल अचानक हुए इश्स 'हादसे' के कारण सहम गयी.. वह अपना समीज़ निकाल चुकी थी और कमीज़ डालने की तैयारी में थी.. घुटनों के बल बैठ कर उसने अपनी सौगातों को छिपाने की कोशिश की.. इस'से उसके उभार तो छिप गये पर उनके बीच की खाई और गहरी होकर सुरेश को ललचाने लगी.. शराब के साथ ही शबाब का सुरूर भी उस पर छाने लगा..
झट से अपना मोबाइल निकाला और चंचल की 2-4 तस्वीरें उतार ली....
"याइयीई.. क्क्या कर रहे हो?.. कामिनियैयियी...." चंचल बुरी तरह सहम गयी थी.. रोने लगी....
राज जो अब तक मौन ही खड़ा था.. अपने आपको 'नारी-दर्शन' से रोक ना सका.. वा भी अंदर आ गया.. चंचल का शरीर देखने लायक था भी...,"ये क्या कर रही हो तुम?"
"लड़की लड़की खेल रहे थे.. और क्या?" कहकर सुरेश ने दाँत निकाल दिए..," अरे कामिनी.. तू तो सच्ची में ही जवान लौंडिया हो गयी रे..." कामिनी के उभारों के उपर नज़र आ रहे नन्हे उभारों पर नज़र गड़ाए सुरेश बोला..," कोई लड़का नही मिल रहा क्या तुम्हारे को.. हम हैं ना.." कहते हुए सुरेश ने चंचल से उसके दोनो कपड़े झपट लिए....
"नही नही.. प्लीज़.. हमारे कपड़े दे दो.. वो इसका कमीज़ भीग गया था.. इसलिए.." कक्कर चंचल बिलख पड़ी...
"देख लौंडिया.. कपड़े तो माखन चोर भी चुराते थे... देखने के लिए.. फिर ये कोठरा किसी के बाप की जागीर नही.. हमारा है... यहाँ मेरी मर्ज़ी चलेगी.. मैं अभी गाँव वालों को इकट्ठा करता हूँ.. यहीं पर.. और उनको बताता हूँ की तेजू की छ्छोकरी यहाँ 'लड़की-लड़की' खेल रही थी.." कहते हुए सुरेश का जबड़ा भिच गया..
"नही नही.. बाबूजी..ऐसा ना करो.. हम आपके पाँव पकड़ते हैं.." मासूम कामिनी घुटनो के बल आ गयी...
"क्यूँ ना करूँ छ्होरी.. तुझे याद है ना.. 2 साल पहले कीही बात हैं.. गाँव का एक लड़का रात में तुम्हारे घर घुस गया था.. याद है ना.. तब क्या हुआ था..!" सुरेश गुस्से का झूठहा दिखावा कर रहा था..
"याद है बाबू जी.. हमें माफ़ कर दो.. कपड़े दे दो हमारे.. हम चले जाएँगे.."
"उस बख़त (वक़्त) तू कौनसी क्लास में थी..?" सुरेश ने उसकी बात पर ध्यान नही दिया..
"जी सातवी (सेवेंत) में.." कामिनी सूबक रही थी..
"अब नवी 9थ में होगी...है ना?"
"जी..."
"क्या कुसूर था.. उस लड़के का.. तेरी मा बेहन ने बुलाया होगा.. तभी गया होगा ना.... और पंचायत ने उसको 5 जूते मारे.. क्यूँ? तेरी मा बेहन को क्यूँ नही मारे..? क्यूंकी लड़का तुम्हारे घर फँस गया था.. वैसे ही जैसे ये हमारे यहाँ फँस गयी है.. मैं अभी गाँव वालों को बुलाता हूँ.." कहते हुए सुरेश ने बिना कॉल किए ही फोन कान से लगा लिया..
ये सब देख कर चंचल अपना नन्गपन भूल कर खड़ी हुई और सुरेश से फोने छ्चीन'ने की नाकामयाब कोशिश करने लगी.. उसका बदन कमाल का था..एक दम छरहरा बदन पर चूचियाँ काफ़ी सुडौल और मस्ती भरी थी.. फोने छ्चीन'ने की कोशिश में जब वो रह रह कर सुरेश की छाती से टकराई तो वो निहाल हो गया.. खून उबाल खाने लगा..
अलग थलग खड़े राज को अब इसमें मज़ा आने लगा था...
"ठीक है.. नही बुलाउन्गा.. पर एक शर्त पर.." चंचल से अलग हट कर उसने 2-4 बार और कैमरे का बटन क्लिक कर दिया.. और चंचल फिर से घुटनो के बल आ गयी..
"क्कैसी शर्त.. बाबूजी.. बताइए..." किसी उम्मीद में कामिनी भी खड़ी हो गयी..
"मैं तुमसे कुच्छ पूच्हूंगा.. बताउन्गा?" सुरेश के मॅन में जाने क्या सूझा..
"पूच्हिए बाबूजी.. हम बताएँगे.. पर किसी को ना बुलाना.. हुमारी बड़ी बेइज़्ज़ती होगी.....
"पर.. मैं तेरे सामने कपड़े निकालू क्या?" कामिनी ने अपने साथ कोठरे में खड़ी चंचल से कहा..
"और क्या करें.. मजबूरी है.. तू मेरी तरफ कमर करके निकाल दे.. मैं तुझे अपना समीज़ निकाल कर देती हूँ.." चंचल थोड़ी सी खुले विचारों की थी..
"नही... मुझसे नही होगा.. मैने तो कभी मम्मी के सामने भी नही बदले.." कामिनी शर्मकार हँसने लगी....
"ओये होये.. बड़ी आई शरमाने वाली.. ठीक है.. तू बाहर जा.. मैं समीज़ निकाल कर यहाँ रख देती हूँ.. फिर पहन लेना.. अब तो ठीक है ना मेरी शर्मीली.."
"हां.. ये ठीक है.. कहते हुए कामिनी बाहर निकल कर खड़ी हो गयी..
"अरे.. इसमें तो कोई कुण्डी ही नही है.." चंचल ने दरवाजा अंदर से बंद करने की सोची थी..." खैर तू जा बाहर.. ध्यान रखना.."
"ठीक है.. जल्दी कर.." कहकर कामिनी बाहर निकली ही थी की मानो उसको साँप सूंघ गया.. उसकी ज़ुबान हिली तक नही.. दरवाजे के बाहर खड़े सुरेश और राज शायद सब सुन रहे थे..
"वववो... कपड़े..." बड़ी मुश्किल से कामिनी इतना ही बोल पाई थी की सुरेश ने दरवाजा खोल दिया.. चंचल अचानक हुए इश्स 'हादसे' के कारण सहम गयी.. वह अपना समीज़ निकाल चुकी थी और कमीज़ डालने की तैयारी में थी.. घुटनों के बल बैठ कर उसने अपनी सौगातों को छिपाने की कोशिश की.. इस'से उसके उभार तो छिप गये पर उनके बीच की खाई और गहरी होकर सुरेश को ललचाने लगी.. शराब के साथ ही शबाब का सुरूर भी उस पर छाने लगा..
झट से अपना मोबाइल निकाला और चंचल की 2-4 तस्वीरें उतार ली....
"याइयीई.. क्क्या कर रहे हो?.. कामिनियैयियी...." चंचल बुरी तरह सहम गयी थी.. रोने लगी....
राज जो अब तक मौन ही खड़ा था.. अपने आपको 'नारी-दर्शन' से रोक ना सका.. वा भी अंदर आ गया.. चंचल का शरीर देखने लायक था भी...,"ये क्या कर रही हो तुम?"
"लड़की लड़की खेल रहे थे.. और क्या?" कहकर सुरेश ने दाँत निकाल दिए..," अरे कामिनी.. तू तो सच्ची में ही जवान लौंडिया हो गयी रे..." कामिनी के उभारों के उपर नज़र आ रहे नन्हे उभारों पर नज़र गड़ाए सुरेश बोला..," कोई लड़का नही मिल रहा क्या तुम्हारे को.. हम हैं ना.." कहते हुए सुरेश ने चंचल से उसके दोनो कपड़े झपट लिए....
"नही नही.. प्लीज़.. हमारे कपड़े दे दो.. वो इसका कमीज़ भीग गया था.. इसलिए.." कक्कर चंचल बिलख पड़ी...
"देख लौंडिया.. कपड़े तो माखन चोर भी चुराते थे... देखने के लिए.. फिर ये कोठरा किसी के बाप की जागीर नही.. हमारा है... यहाँ मेरी मर्ज़ी चलेगी.. मैं अभी गाँव वालों को इकट्ठा करता हूँ.. यहीं पर.. और उनको बताता हूँ की तेजू की छ्छोकरी यहाँ 'लड़की-लड़की' खेल रही थी.." कहते हुए सुरेश का जबड़ा भिच गया..
"नही नही.. बाबूजी..ऐसा ना करो.. हम आपके पाँव पकड़ते हैं.." मासूम कामिनी घुटनो के बल आ गयी...
"क्यूँ ना करूँ छ्होरी.. तुझे याद है ना.. 2 साल पहले कीही बात हैं.. गाँव का एक लड़का रात में तुम्हारे घर घुस गया था.. याद है ना.. तब क्या हुआ था..!" सुरेश गुस्से का झूठहा दिखावा कर रहा था..
"याद है बाबू जी.. हमें माफ़ कर दो.. कपड़े दे दो हमारे.. हम चले जाएँगे.."
"उस बख़त (वक़्त) तू कौनसी क्लास में थी..?" सुरेश ने उसकी बात पर ध्यान नही दिया..
"जी सातवी (सेवेंत) में.." कामिनी सूबक रही थी..
"अब नवी 9थ में होगी...है ना?"
"जी..."
"क्या कुसूर था.. उस लड़के का.. तेरी मा बेहन ने बुलाया होगा.. तभी गया होगा ना.... और पंचायत ने उसको 5 जूते मारे.. क्यूँ? तेरी मा बेहन को क्यूँ नही मारे..? क्यूंकी लड़का तुम्हारे घर फँस गया था.. वैसे ही जैसे ये हमारे यहाँ फँस गयी है.. मैं अभी गाँव वालों को बुलाता हूँ.." कहते हुए सुरेश ने बिना कॉल किए ही फोन कान से लगा लिया..
ये सब देख कर चंचल अपना नन्गपन भूल कर खड़ी हुई और सुरेश से फोने छ्चीन'ने की नाकामयाब कोशिश करने लगी.. उसका बदन कमाल का था..एक दम छरहरा बदन पर चूचियाँ काफ़ी सुडौल और मस्ती भरी थी.. फोने छ्चीन'ने की कोशिश में जब वो रह रह कर सुरेश की छाती से टकराई तो वो निहाल हो गया.. खून उबाल खाने लगा..
अलग थलग खड़े राज को अब इसमें मज़ा आने लगा था...
"ठीक है.. नही बुलाउन्गा.. पर एक शर्त पर.." चंचल से अलग हट कर उसने 2-4 बार और कैमरे का बटन क्लिक कर दिया.. और चंचल फिर से घुटनो के बल आ गयी..
"क्कैसी शर्त.. बाबूजी.. बताइए..." किसी उम्मीद में कामिनी भी खड़ी हो गयी..
"मैं तुमसे कुच्छ पूच्हूंगा.. बताउन्गा?" सुरेश के मॅन में जाने क्या सूझा..
"पूच्हिए बाबूजी.. हम बताएँगे.. पर किसी को ना बुलाना.. हुमारी बड़ी बेइज़्ज़ती होगी.....
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