"कपड़े... नही.. मैं कपड़े नही निकालूंगी...." वाणी की साँसें हर गुजरें पल के साथ बहकति ही जा रही थी.. उसका पूरा बदन थरथराने वाला था..
"क्यूँ..? क्या प्यार करने का मंन नही करता.." मनु ने उसको और सख्ती के साथ जाकड़ लिया.. अपनी बाहों में..
"करता है.. बहुत करता है.. जाने कितने दीनो से मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी.. जाने कितने युगों से.." वाणी कसमसाते हुए अपनी जाँघ मनु के शरीर से रगड़ने लगी..
"तो फिर शरम कैसी.. कपड़े निकल दो ना.." मनु झुक कर उसकी गर्दन पर अपने दाँत गाड़ने लगा..
"तुम्ही निकल दो ना.. कह तो रही हून.... सब कुच्छ तुम्हारा ही है.." वाणी ने अंगड़ाई लेते हुए अपनी बाहें उपर उठा दी.. वाणी के दिल के उपर उठने के साथ ही मनु का कलेजा बाहर निकालने को हो गया... वाणी का यौवन छलक्ने को बेताब था.. अपने यार के पहलू में...
"ओह.. हमें अंदर चलना पड़ेगा.. बारिश तेज़ हो गयी है.." मनु ने वाणी को कहा..
"नही.. मैं कहीं नही जाउन्गि.. लेकर चलना है तो उठा लो.. मुझे तो यहीं मज़ा आ रहा है.." वाणी पूरी मस्ती में थी.. आँखें चाह कर भी खुल नही पा रही थी..
"वाणी! उठो जल्दी.. बारिश तेज़ हो गयी है.. फुहारें तुम तक आ रही है.. उठो अंदर चलो.." दिशा ने ज़बरदस्ती उसको उठा कर बैठा दिया..
"दीदी.....???????.. व्व.. वो.. मैं तो सो रही थी.. गौरी.. दी...."
"तो कौन कह रहा है.. की तुम नाच रही थी.. जल्दी चलो.. देखो सारी भीग गयी हो.."
"ओह्ह्ह.. म्म्म.. मैं सपना......"
"हां.. हाँ.. सपने अंदर लेटकर देख लेना.. ओह्हो.. अब उठो भी.."
"कितना अच्च्छा सपना आ रहा था दीदी.. ख्हाम्खा जगा दिया.. पैर पटकते हुए वाणी नींद में ही जाकर अंदर सोफे पर पसर गयी... इश्स उम्मीद में की सपना जारी रहे....
उसके बाद सारी रात वाणी सो ना सकी.. सपने के मिलन की अधूरी प्यास वह पल पल अपनी छ्होटी सी अनखुली योनि की चिपचिपाहट में महसूस करती रही.. गीली हो होकर भी वह कितनी प्यासी थी... मनु-रस की..
मनु अपनी जान की हालत से बेख़बर किन्ही दूसरे ही सपनो में खोया हुआ था.. उसको तो ये अहसास भी नही था की किसी को आज उसकी बड़ी तलब लगी हुई थी..
अमित का भी यही हाल था.. कोई आधा घंटा इंतज़ार करने के बाद ही वह सोया था.. पर गौरी को उसके दिए इशारे का आभास नही हुआ था.. नही तो.. क्या पता?
अगली सुबह वाणी की आँखें लाल थी.. कम सोने के कारण.. सभी इकट्ठे बैठकर चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे... अमित और गौरी में शुरू हुई नोक झोंक उठते ही फिर से जारी हो गयी,"ऐसे क्या देख रहे हो? कभी लड़की देखी नही क्या?" गौरी ने माथे पर लटक आई जुल्फ को हाथ का इशारा दिया..
"देखी क्यूँ नही.. पर तुम्हारे जैसी..." तभी कमरे में दिशा आ गयी और अमित के होंठ सील गये...
"क्या मेरे जैसी.. बोलो ना.. बात पूरी क्यूँ नही करते...?" गौरी को दिशा से क्या शरम.. उनमें तो बहुत से राज सांझे हुए थे...
"नही कुच्छ नही.... मैं कह रहा था.. तुम्हारे जैसी झगड़ालु लड़की आज तक नही देखी..." अमित ने बात का रुख़ पलट दिया..
"ओये.. मुझे झगड़ालु मत कहना.. खा जाउन्गि..!" गौरी कुच्छ और ही सुन'ना चाहती थी..
"ये लो! प्रत्यक्ष को प्रमाण कैसा.. देख लो दीदी.. कह रही है.. मुझे खा जाएगी.." अमित दिशा से मुखातिब हुआ..
दिशा हँसने लगी..," एक अच्च्ची खबर है.. गौरी पढ़ने के लिए भिवानी आ रही है.. और हमारे साथ ही रहेगी... क्यूँ गौरी?"
अमित की आँखें चमक उठी..
"अभी क्या पता.. मम्मी इश्स बार पापा से मिलकर आएँगी तभी फाइनल होगा..." कहते हुए गौरी ने एक नज़र अमित को देखा.. उसके हाव भाव जान'ने के लिए.. अमित ने
उसकी ओर आँख मार दी..
"तूमम्म!" गौरी एक पल के लिए लपक कर उसकी और बढ़ी.. पर तुरंत ही उसको अपने लड़की होने की मर्यादायें याद आ गयी... और वह शर्मकार वापस सोफे पर जा बैठी..
"अब हम चलेंगे दीदी.. जल्दी ही पहुँचना होगा...." मनु उठते हुए दिशा से बोला..
"ठीक है.. मिलते हैं फिर भिवानी में.. आज कल में हम भी आ ही रहे हैं..." दिशा भी उसके साथ ही खड़ी हो गयी...
"पर.... मम्मी पापा को तो आने दो!" कुच्छ देर ही सही.. पर वाणी का दिल मनु को अपने से जुदा होते नही देखना चाह रहा था...
"सॉरी.. वाणी.. मुझे थोड़ी जल्दी है.. " अमित ने जवाब दिया.. मनु तो वाणी की दबदबाई हुई आँखें भी देख नही पाया...
दोनो ने मोटरसाइकल स्टार्ट की और उन्न तीनो की आँखों से ओझल हो गये...
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