Friday, 10 October 2014

masti ki pathsala - 45

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-45
 उफफफ्फ़.. क्या कयामत ढा गयी थी वाणी पलटने के साथ ही.. मनु का बचा खुचा संयम भी दम तोड़'ने वाला था.. हुल्की रिमझिम बारिश आग में घी डाल रही थी.. मुलायम सा कपड़ा उसके रोम रोम से चिपका हुआ था.. 'रोम-रोम' से.. मनु की नज़र वाणी के योवन की दहलीज से आगे निकल जाने का प्रमाण बने दोनो वक्षों की धारदार गोलाइयों पर जाकर जम सी गयी.. यूँ तो वाणी को बिना कपड़ों के भी मनु देख चुका था.. पर वो सब विवस'ता वश हुआ था.. आज कपड़े के झीने आवरण से ढाकी वाणी का अंग अंग फेडक रहा था.. भीगे हुए उसके गुलाबी होंठों से लेकर चौड़े कुल्हों तक.. गोल लंबी जांघों तक.. और जांघों के बीच उनके मिलन बिंदु पर फुदाक रही चिड़िया तक.. वाणी का क़तरा कतरा छ्छूने लायक था... चूमने लायक
था.. और उन्न पर पागलों की तरह च्छा जाने लायक था.. मंतरा मुग्ध सा मनु कुच्छ भी बोल ना सका.. हुष्ण के मारे आशिक की तरह घूरता ही रहा.. घूरता ही रहा.. घूरता ही रहा...
मनु को मजनू की तरह एकटक उसकी और देखते पाकर वाणी बाहर से शर्मा गयी और अंदर से गद्रा गयी.. वापस पिछे घूम कर वाणी ने अपनी छातियों को देखा.. लग रहा था मानो उन्न पर कपड़ा हो ही ना.. कसमसा रही गोलाइयाँ घुटन सी महसूस कर रही थी.. छातियों के बीच में 'मोती' अपना सिर उठाए खड़े थे.. उनका पैनापन बढ़ गया था.. वाणी अपनी ही 'अनमोल जागीर' को देखकर सिहर सी गयी.. फिर कब से उनको पाने की हसरत लिए मनु का क्या हाल हुआ होगा.. ये समझना वाणी के लिए कोई कठिन काम नही होगा.. काम-कल्पना के सागर में ही मनु को इश्स कदर डूबा देखकर वाणी 'गीली' हो गयी... उसने अपनी जांघों को ज़ोर से भींच लिया.. मानो मनु के कहर से अभी बचना चाह रही हो.. पर ऐसा हो ना सका.. हो कैसे सकता था.. पिच्छवाड़ा पागलपन को और बढ़ा गया.. मनु एक कदम आगे बढ़ा और वाणी के दोनो और से अपने हाथ सीधे करके दीवार पर टीका दिए...," सचमुच! ...... तुम... बच्ची नही रही वाणी.." कहते हुए मनु के होंठ काँप उठे.. शरीर की अकड़न बढ़ गयी.. दोनो के बीच जो झिर्री भर का फासला रह गया था; उसको मनु की बढ़ती 'लंबाई' ने माप लिया..
"आआह.." इश्स 'च्छुअन' से वाणी अंजान नही थी.. महीनों पहले अंजाने में ही सही.. पर वो शमशेर की 'टाँग' से मिलने वाले इश्स अभूतपूर्व अहसास को महसूस कर चुकी थी...
आसमनझास में खड़ी वाणी ने कुच्छ समझ ना आने पर अपने अंगों को इसी हालत
में तड़प्ते रहने के लिए छ्चोड़ दिया.. 'मनु' को महसूस करते रहने के लिए..
"एक बात पूच्छू..?" मनु ने वाणी की मादक 'आह' को सुन'ने पर कहा..
"हूंम्म्म.." वाणी तो जन्नत की सैर कर रही थी.. आधी होश में थी.. आधी मदहोश.. लगातार उसकी 'दरारों' से छ्छू रहे 'मनु' के कारण वा पल पल उत्तेजित होती जा रही थी.. उपर से बरस रहे बादल उसकी हालत को और बिगड़ रहे थे...
"डू यू लव मी?"( दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा ये समझता हूँ ये आशिक भी बिल्कुल पागल होते हेँ अब इस मनु को ही लीजिए अँग्रेज़ी में पूच्छने सेशरम शायद कुच्छ कूम हो जाती होगी.. नही तो हिन्दी में ही ना पूच्छ लेता..)
वाणी कुच्छ ना बोली.. पूछते हुए मनु थोड़ा आगे की और झुका था.. 'रगड़' अति आनंदकरी थी.. शायद इसी 'रगड़ को वह फिर महसूस करना चाहती थी...
"तुमने जवाब नही दिया!" एक बार फिर मनु आगे की और झुका.. इश्स बार कुच्छ ज़्यादा..
वाणी की जांघों का कसाव बढ़ गया.. हूल्का सा खोलने के बावजूद...
"जवाब देना ज़रूरी है क्या?" वाणी ने गर्दन उपर उठाकर अंगड़ाई सी ली.. अंग अंग चटक उठा.. अंग अंग 'हां' कह उठा.. वाणी की कमर मनु की छाती से चिपक गयी...
"हां.. बहुत ज़रूरी है.. तुम नही जानती.. मैं..." मनु ने अपने हाथों से दीवार पर रखी वाणी की हथेलिया दबा ली.. थोड़ा सा और आगे होकर..
और वाणी की आवाज़ निकल ही गयी..,"मैं मर जाउन्गि!" वह अब प्रोक्श चुभन को सहन करने की स्थिति में नही थी...
बारिश की बूँदें मनु के बालों से होकर वाणी के गालों पर टपक रही थी.. जैसे कोई संदेश दे रही हों.. मिलन का.. जैसे वो भी इश्स 'उत्सव' का आनंद उठाने के लिए तरस कर बरस रही हों...
"बुरा लग रहा है क्या?" मनु थोड़ा पिछे हट गया.. कितना नालयक था 'प्रेम-गेम' में.. समझ ही नही पाया.. वाणी ने क्यूँ कहा की वो मर जाएगी...
मनु का पिछे हटना वाणी की जवानी को नागवार गुजरा.. यहाँ तक आने के बाद पिछे हटना.. सच में ही जानलेवा हो सकता था..

तुम..? तुम करते हो हमसे प्यार?" मनु के पिछे हटने से बेकरार वाणी ने अपने को और आगे की और झुका लिया.. प्रेमरस और सावन की फुहारों से वाणी की जांघें तर होकर टपक रही थी...
ये सुनकर मनु के दम तोड़ रहे हौसलों में फिर से जान आ गयी,"हां.. बहुत प्यार करता हूँ.. जब से तुम्हे देखा है.. कुच्छ और देखने का मॅन ही नही करता.. समझ नही आता.. क्या करूँ?"
जज्बातों और अरमानों के भंवर में भी ऐसा चुलबुलापन वाणी ही दिखा सकती थी..,"फिर तो पढ़ाई के 12 बज गये होंगे..!" कहकर वाणी हौले से खिलखिला पड़ी...
वाणी को 'मूड' में पाकर मनु के हौसले बढ़ गये..," आइआइटी हूँ.. समझी!" कहते हुए मनु ने अपना एक हाथ दीवार से उठा कर वाणी के कमसिन पेट पर ला रखा..
वाणी उच्छल पड़ी,"ओई मम्मी.. गुदगुदी होती है.." इसी च्चटपटाहट में मनु का हाथ उपर उठ गया.. वाणी को अपने सन्तरेनुमा अंगों में झंझनाहट सी महसूस हुई.. ये झंझनाहट का असर उसके सुगढ़ नितंबों और उनमें च्चिपी बैठी छ्होटी सी अद्भुत तितली तक अपने आप पहुँच गया.. राम जाने क्या कनेक्षन होता है.. इनमें!
मनुको लगा उस'से कोई ग़लती हो गयी.. आख़िर बिना पर्मिशन के 'नो एंट्री ज़ोन तक जो पहुँच गया था..," सॉरी! वाणी.. मैं वो..!"
"अपने आशिक की इश्स अदा पर वाणी बिना शरारत किए ना रही.. बेकरार तो वो थी ही..," तुम्हारे जितना तो लड़कियाँ भी नही शरमाती...!" कहकर वो पलट कर खड़ी हो गयी..
सच ही तो था.. लड़कियाँ भी कहाँ शरमाती हैं इतना.. वरना जिस वाणी के चेहरे भर की एक झलक पाने को लाखों दीवाने कतार में रहते थे.. वो खुद उसके आगोश में आना चाहती थी.. छ्छूने पर भी कोई शिकायत नही की.. फिर वो इंतजार किस बात का कर रहा था.. मैं होता तो..
बरसात में टपक रही वाणी का अंग अंग जैसे पारदर्शी हो चुका था.. ऐसे में वाणी से ज़्यादा लाल मनु का चेहरा था.. पर मर्दानगी का ढोल अभी भी हकलाए स्वर में पीट रहा था..,"म्म..? मैं कब.. शर्मा रहा हूँ...!"
"और नही तो क्या.. फिर सॉरी किसलिए बोला..?" वाणी को मनु की आँखों से बेताबी टपकती दिखाई दे रही थी..
"व... वो.. ग़लती से वहाँ छ्छू गया था..." मनु वाणी से नज़रें नही मिला पा रहा था...
लज्जा तो वाणी की आँखों में भी थी.. पर इतनी नही की उस लल्लू को प्यार का सबक ना सीखा सके..," तो इसमें क्या है.. लो मैने छ्छू ली.. तुम्हारी!" वाणी ने अपना हाथ उठाकर मनु की छाती पर रख दिया.. मनु का दिल ज़ोर से धड़क रहा था.. वाणी के हाथ की आँच से और तेज़ हो गया.. मनु को लगा.. अब वा अपने छिपे हुए शैतान को मैदान में कूदने से रोक नही पाएगा.. पॅंट की सिलाई उधड़ने वाली थी..
"तुझमें और मुझमें फ़र्क़ है वाणी..."
"क्यूँ क्या फ़र्क़ है? लड़कियों की तो ऐसी ही होती हैं.." नज़रें नज़ाकत से नज़रें झुकाए वाणी ने कहा... वह भी शर्मा गयी थी.. 'उनके' बारे में बोलते हुए...
"हां...... पर..... क्या मैं फिर से छ्छू लूँ?" मनु के मुँह में पानी आ गया.. नज़र भर कर उनको देखते ही...
वाणी के हाथ अनायास ही उपर उठ गये.. और दोनो संतरों को अपने ही हाथों में च्छूपा लिया.. तब जाने कैसे वह बोल गयी थी..,"इनमें क्या है?"
संसार भर का सुरूर इन्ही में तो छिपा हुआ है...
"बोलो ना वाणी.. एक बार और छ्छू लूँ क्या..?" अजीब जोड़ा था.. एक तैयार तो दूजा बीमार... अब वाणी पानी में थी...
वाणी क्या बोलती.. ये भी कोई कहने सुन'ने की बातें होती हैं...
"बोलो ना प्लीज़.. बस एक बार.." मनु ने वाणी को कंधों से पकड़ा और हूल्का सा उसकी और झुक गया..
वाणी को लगा वो अभी टूट कर गिर जाएगी.. मरती क्या ना करती.. जब मनु ने कोई पहल नही की तो अपने हाथ नीचे सरका दिए.. अपने पेट पर.. और नज़रें झुकाए साँसों को काबू करने का जतन करने लगी..
कमसिन उमर की वाणी के दोनो संतरे साँसों की उठापटक के साथ हुल्के हुल्के हिल रहे थे.. उपर.. नीचे... उपर... नीचे.. क्या मस्त नज़ारा था..
आख़िरकार मनु ने शर्म का चोला उतार ही फैंका.. अपना एक हाथ उपर उठाया और वाणी के गले से थोड़ा नीचे रख दिया जहाँ से उनकी जड़ें शुरू होती थी...," अया!"
यकीन मानिए.. ये सिसकी मनु के मुँह से निकली थी.. जितने आनंद की वह कभी कल्पना तक नही कर सकता था.. इतना आनद उसको कपड़ों के उपर से ही वाणी को छूने से मिल गया... वानिकी तो ज़ुबान जैसे जम ही गयी थी... सीने को महसूस हुई इतनी ठंडक को पाकर...
"थोड़ा और नीचे कर लूँ.. अपना हाथ!" मनु ने मनमानी जैसे सीखी ही ना थी..
वाणी ने छिड़ कर हूल्का सा घूँसा उसके पेट में मारा..,"मुझे नही पता.. जो मर्ज़ी कर लो..."
"जो मर्ज़ी!" मनु को ऐसा लगा मानो जन्नत की पॉवेर ऑफ अटयर्नी ही उसको मिल गयी हो...
वाणी के ऐसा कहने के साथ ही मनु का हाथ जैसे वरदान साबित हो रही उन्न बूँदों के साथ ही फिसल कर धक धक कर रहे बायें वक्ष पर आकर जम गया.. अब की बार सिसकी वाणी की ही निकलनी थी.. सो निकली,"आआआः.. मॅन्यूयूयूयुयूवयू"
'बड़ी' होने का अहसास होने के बाद पहली बार किसी ने उन्न फड़कते अंगों के अरमानो की अग्नि को हवा दी थी.. कामग्नी जो पहले ही सुलग रही थी; अब दहकने लगी..
वाणी के दोनो हाथ बिना एक भी पल गँवायें मनु का साथ देने पहुँच गये.. एक हाथ मनु के हाथ के उपर था.. ताकि और कसावट के साथ वो आनंद के अतिरेक में डूब सके.. दूसरा हाथ 'दूसरे' को सांत्वना दे रहा था.. ताकि उसको वहाँ सूनापन महसूस ना हो...
"हाए.. तुम तो कमाल हो वाणी.. कितना मज़ा आ रहा है.. इनको छूने से.." मनु ने यूयेसेस हाथ की जकड़न को कुच्छ और बढ़ाते हुए दूसरा हाथ वाणी की कमर में पहुँचा दिया...
वाणी का सख़्त हो चुका 'दाना' मनु के हाथों में गुदगुदी सी कर रहा था..," सच में वाणी.. मुझे नही पता था.. चूचियाँ छ्छूने में इतनी प्यारी होती हैं..
"छ्हि.. छ्ही.. इनका नाम मत लो.. मुझे शर्म आती है.." क्या बात कही थी वाणी ने.. मनु का खून उबाल खा गया..,"पर मुझे मज़ा आ रहा है.. तुम्हारी चूचियाँ संतरे जैसी हैं.. आकर में भी.. छ्छूने में भी..!"
"धात..!" और शर्मकार वाणी आगे बढ़कर मनु की छाती में दुबक गयी.. और 'संतरे' पिचके नही.. बढ़िया कंपनी की टेन्निस बॉल की तरह मनु के सीने में गड़कर अपनी गर्मी छ्चोड़ने लगे.....

"और छ्छूने दो ना प्लीज़.. इतना मज़ा आ रहा है की बता नही सकता.. तुम लाजवाब हो वाणी.." अपने बदन से शर्माकर लिपटी वाणी कामुक नज़रों से छेड़ता मनु बोला..
"अपने अंगों की इतनी प्रसंशा सुनकर वाणी ने भावुक होकर अपनी नज़रें उठाई और अपने यार की आँखों में देखा.. आँखें सब कह देती हैं.. दोनो एक दूसरे के मंतव्या को समझ गये और होंठों से होंठ जाम की तरह टकरा गये... चियर्स फॉर लव..
दोनो ही जवान थे.. और अब तक प्यार की ऊँचाइयों से अंजान थे.. अब उन्हे सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही चीज़ दिखाई दे रही थी.. एक दूसरे का बदन..
जी भर कर एक दूसरे के मुँह में 'जीभ कबड्डी' खेल कर वो हटे तो हट-ते ही मनु ने वाणी के दिल की बात कह दी,"प्यार करें?"
"कर तो रहे हैं.. और कैसे करें?" वाणी प्यार के इश्स खेल के हर भाग को जानती थी.. अपने कानो से सुन भी चुकी थी और आँखों से देख भी चुकी थी.. उसको वो मंज़र याद आ गया जब शमशेर दिशा में पूरा समा गया था और उसकी बेहन लहूलुहान हो गयी थी.. पर उसने वो पल भी देखा था जब खेल के आख़िरी पलों में उसकी दीदी धक्के मारने में शमशेर पर भी हावी हो गयी थी..
पर वह चाहती थी की मनु सब कुच्छ अपने तरीके से करे.. इसीलिए अंजान बनी रही..
"सिर्फ़ यही नही वाणी.. मैं सब कुच्छ करना चाहता हूँ.. सब कुच्छ.." मनु ने वाणी को अपने साथ मजबूती से बाँध लिया..
"और कैसे करते हैं.. सब कुच्छ.. मुझे नही पता.. पर तुम बता दो.. कर लूँगी.." मनु के सीने से अपने गाल सटाये वाणी सब कुच्छ करने को बेचैन थी....
"ठीक है.. अपने कपड़े उतारो.." अब मनु जल्दबाज़ी मैं दिखाई दे रहा था.....

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