"आ लौंडिया!" सड़क के साथ सटे बाग में शहर से आए अपने दोस्त के साथ बैठकर दारू गटक रहे सुरेश ने सड़क पर जा रही दो लड़कियों में से एक को टोका.. मौसम था भी पीने लायक..
सुर्सेश राकेश और सरिता का बड़ा भाई था.. ताउ का लड़का!!
"जी बाबू जी!" लड़कियों में से एक ने सड़क किनारे सिड्दत से खड़े होते हुए कहा.. कमसिन उमर की उस लड़की का रंग ज़रूर सांवला था.. पर नयन नक्स इतने काटिले की खड़ा करने के लिए 'और कुच्छ' देखने की ज़रूरत ही ना पड़े.. शीरत से भोली लगती थी.. और सूरत से 'ब्लॅकबेरी'; चूचियाँ अभी उठान पर ही थी... पर बिना 'सहारे' के नाच सी रही थी.. हिलते हुए! वस्त्रा फटे पुराने ही थे.. यूँ कह लीजिए.. जैसे तैसे शरीर को ढक रखा था बस!
"तू तेजू की छ्छोकरी है ना?" दोनो को टुकूर टुकूर देखते हुए सुरेश ने पूचछा...
"जी बाब..उ!" अपने शरीर में घुसी जा रही नज़रों से सिहर सी उठी लड़की ने मारे शरम के अपना सिर झुका लिया..
"तेरे बापू को कितनी बार बोला है हवेली में आने को.. आता क्यूँ नही है साला हरामी!" सुरेश की आँखों में उस भेड़िए
के समान वहशीपान छलक उठा जो मासूम मेम्ने के शिकार के लिए कोई भी रास्ता ढूँढ लेना चाहता है..
लड़की ने नज़रें झुका ली.. अब उसको बड़ों के लेनदेन का क्या पता..!
"तू तो पूरी जवान हो गयी है..कल तक तो नंगी घुमा करती थी.. क्या नाम है तेरा?" सुरेश ने अपने बोलने को पूरा 'गब्बरी' अंदाज दे दिया था..
"ज्जई.. क्कामिनी!" इश्स बात ने तो उसको पानी पानी ही कर दिया था..
उसके साथ खड़ी दूसरी लड़की को सब नागनवार लग रहा था.. उसने कामिनी का हाथ पकड़ कर खींचा," चल ना.. चलते हैं!"
"ये छिप्कलि कौन है?" सुरेशको इतनी बेबाकी से बोलते देख उसका दोस्त हैरान था..
"बाबू जी ये मेरी मासी की लड़की है, चंचल!.. हूमें देरी हो रही है.... हम जायें..?" कामिनी को ऐसी नज़रों की आदत पड़ी हुई थी.. वो कहते हैं ना.. ग़रीब की बहू.. सबकी भाभी!
"ज़रा एक मटका पानी तो लाकर रख दो.. उस ट्यूबिवेल से.. फिर चली जाना..!" सुरेश ने खड़ा होकर अपनी जांघों के बीच
खुजलाते हुए कहा..
"चल ला देते हैं.. नही तो बापू धमकाएँगे बाद में.." कामिनी ने हौले से चंचल को कहा और सड़क से नीचे उतर गयी.. चंचल ने उनको देखते हुए अपनी कड़वाहट प्रदर्शित की और कामिनी के पिछे चल पड़ी.. टुबेवेल्ल करीब आधा कीलोमेटेर दूर था...
"यार.. तुमने तो हद कर दी.. क्या गाँव में ऐसे बोलने को सहन कर लेती हैं लड़कियाँ.." अब तक चुप बैठे दोस्त ने सुरेश को ताज्जुब से देखा..
"ये ज़मीन देख रहे हो राज.. जहाँ तक भी तेरी नज़र जा रही है.. सब अपनी है.. आधे से ज़्यादा गाँव हमारे टुकड़ों पर पलता है.. यहाँ के हम राजा हैं राजा...! इसके बाप ने एक लाख रुपए लिए थे बड़ी लौंडिया की शादी में.. अब तक नही चुकाए हैं साले ने.. इसको तो मैं चाहू तो हमारे सामने सलवार खोलकर मुतवा सकता हूँ.. चल छ्चोड़.. एक पैग लेकर तो देख यार.." सुरेश ने अपना सीना चौड़ा करते हुए राज की तरफ गिलास बढ़ाया..
"तुझे पता है ना यार.. मैं नही लेता..!" राज ने रास्ते में ही सुरेश का हाथ थाम दिया..
"कोई बात नही प्यारे.. तेरे नाम का एक और सही.." कहकर अकेले सुरेश ने अद्ढा ख़तम कर दिया.. अकेले ही..
"एक बात तो है यार.. गाँवों में अब भी बहुत कुच्छ होना बाकी है..." राज को शायद सब कुच्छ पसंद नही आया था..
सुरेश को उसकी बात समझ नही आई..,"तेरे को एक तमाशा दिखाऊँ...?"
"कैसा तमाशा?" राज समझ नही पाया..
"आने दे.. इंतज़ार कर..."
"कमाल है कामिनी.. वो तुझसे इतनी बेशर्मी से बात कर रहा था और तू पानी भरने चली आई उनका.. तेरी जगह अगर मैं होती तो.." चंचल गुस्से से उबाल रही थी...
"तुझे नही पता.. एक बार मुम्मी ने इनका कोई काम करने से मना कर दिया था.. बापू ने इतनी पिटाई की थी की.. बस पूच्छ मत.. वैसे भी पानी पिलाना तो धरम का काम है.." कहते हुए कामिनी ने जैसे ही घड़े का मुँह ट्यूबिवेल के आगे किया.. पानी की एक तेज़ बौच्हर से दोनो नहा गयी...
"ऊयीई.. ये क्या किया..? सारी भिगो दी..मैं भी.." टपकती हुई चंचल ने कामिनी को देखा...
"क्या करूँ.. बातों में सही तरह से घड़े का मुँह नही लगा पाई.. कोई बात नही.. घर जाते जाते सब सूख जाएगा..
"हूंम्म कोई बात नही.. अपनी छाती तो देख ज़रा.. तूने क्या नीचे कुच्छ भी नही पहना..?" चंचल ने कामिनी को कमीज़ में से नज़र आ रहे चूचियों पर चवँनी जैसे धब्बे से दिखाते हुए कहा...
"ओई माआ.. अब क्या करूँ..? इसमें से तो सब दिख रहा है...
"तू क़ोठरे ( खेतों में बना हुआ कमरा) में चल.. और मेरा समीज़ पहन ले.. मेरी छाती सूखी हुई है..." चंचल ने रास्ता निकाला...
"हाँ ये ठीक रहेगा.. चल.. अंदर आजा..!" कहकर कामिनी चंचल को लेकर ट्यूबिवेल के साथ ही बने एक कोठरे में चली गयी...
उधर पता नही कौनसा तमाशा दिखना चाह रहे सुरेश से इतना इंतज़ार सहन नही हुआ..," चल यार.. ट्यूबिवेल पर ही चलते हैं.."
"छ्चोड़ ना यार.. सही बैठहे हैं यहीं.." राज ने कहा..
"आबे तू उठ तो सही.. वहाँ और मज़ा आएगा.. चल" कहकर सुरेश ने राजका हाथ पकड़ कर खींच लिया...
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