मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी भाग-57
"अब वह कैसे मान गया...?" लिफ्ट से उपर आते हुए स्नेहा ना विकी से पूचछा...
"कुच्छ नही.. थोड़ी टिप देनी पड़ी..!"
उपर पहुँचे तो वेटर उनकी जी हजूरी के लिए दरवाजे पर खड़ा था... जैसे ही दोनो रूम में घुसे विकी का माथा ठनका गया... अंदर बेड को किसी सुहाग की सेज़ की तरह सजाया हुआ था.. पूरा कमरा फूलों की प्राकृतिक खुश्बू से महक रहा था.. टेबल पर जोह्नी वॉकर की बोटेल, दो गिलास और आइस क्यूब्स रखे थे.. स्नेहा सजावट को देखकर खिल सी गयी थी...
"एक मिनिट.. तुम फ्रेश हो लो.. मैं अभी आया..." कहकर गुस्से से भनभनाया हुआ विकी नीचे चला गया...
"साले.. कुत्ते की पूच्छ.. तुझमें दिमाग़ है या नही.. मेरा बॅंड बजा दिया तूने.." विकी ने 2 झापड़ मॅनेजर को मारे और सोफे पर बैठकर अपना सिर पकड़ लिया....
"पर हुआ क्या भाई साहब.. क्या कमी रह गयी..? मैने तो अपनी तरफ से जी जान लगाई है..."
"यार तू अपन तरफ से जी जान क्यूँ लगाता है.. जितना बोला गया उतना क्यूँ नही करता... तू आदमी है या घंचक्कर... साला.."
"ववो.. माधव भाई ने बोला था की आपको पहचान'ना नही है.. और कोई लड़की साथ आएगी.. तो मैने सोचा खास ही होगी..."
"तू अब दिमाग़ मत खा.. मेरे साथ चल और सॉरी बोल की रूम ग़लती से दे दिया.. और 2 मिनिट में दूसरी अड्जस्टमेंट कर..."
"ठीक है.. भाई साहब.. मैं अभी चलता हूँ..!" मॅनेजर के चेहरे पर 12 बजे लग रहे थे....
"सॉरी.. मेडम.. वो ग़लती से आपको ग़लत नंबर. दे दिया.. आक्च्युयली ये किसी वेड्डिंग कपल के लिए है.. आइए.. आपका सामान शिफ्ट करा देता हूँ..." विकी मॅनेजर के साथ नही आया था.... जानबूझकर!
"वो कहाँ हैं..?" स्नेहा सुनकर मायूस सी हो गयी...
"वो कौन..?" मॅनेजर का दिमाग़ भनना रहा था...
"वो.. मेरे पति! और कौन?" कहते हुए स्नेहा का दिल धड़क रहा था.. कितना प्यारा अहसास था स्नेहा के लिए.. विकी जैसा पति!
"ववो.. आते ही होंगे.... लीजिए आ गये...!"
"क्या बात है..?" विकी ने अंजान बनते हुए कहा...
"आक्च्युयली सर....." और मॅनेजर को स्नेहा ने बीच में ही टोक दिया...," देखिए ना मोहन! ये हमारा रूम नही है.. मुझे भी बिल्कुल ऐसा ही चाहिए.... कह रहे हैं.. ये तो किसी वेड्डिंग कपल के लिए है.. जैसे हम बूढ़े हो गये हों.. जैसे हमारी शादी ही ना हुई हो... मुझे नही पता.. मुझे यही रूम चाहिए..."
विकी को उसकी बातों पर यकीन ही नही हुआ.. वो तो ऐसे बोल रही थी जैसे सचमुच की पत्नी हो.. बिल्कुल वाइफ वाले नखरे दिखा रही थी..
"तुम्हारी प्राब्लम क्या है मॅनेजर.. हमें यही कमरा चाहिए.. समझ गये.." विकी ने तुरंत पाला बदल लिया....
"जी सर.. समझ गया.. सॉरी!" कह कर मॅनेजर स्नेहा की और अदब से झुका और बाहर निकलगया.. जैसे मंदिर से निकला हो!"
"ये हुई ना बात.. हमें निकाल रहा था.. कितना प्यारा रूम है... जैसे...." आगे स्नेहा शर्मा गयी...
"तुम्हे सच में यहाँ कुच्छ ग़लत नही लगा..?" विकी का ध्यान रह रह कर टेबल पर साज़ी बॉटले और गिलासों पर जा रहा था....
"यहाँ क्या ग़लत है..?" स्नेहा ने एक बार और जन्नत की तरह सजे कमरे में नज़रें दौड़ाई....
"ये शराब...?????" विकी ने ललचाई आँखों से बोतल की और देखा.. बहुत दिल कर रहा था....
"नही तो.. आदमी तो पीते ही हैं..." स्नेहा किंचित भी विचलित ना हुई.....
"अच्च्छा.. तुमने किसको देखा है..?"
"पापा को.. वो तो हमेशा ही पिए रहते हैं..... अरे हां.. टी.वी. ऑन करो.. देखें पापा क्या नाटक कर रहे हैं...." स्नेहा एक बार फिर मुरझा गयी....
"तुम तब तक टी.वी. देखो.. मैं इसका कुच्छ करके आता हूँ.." विकी स्विच ऑन करने के लिए टी.वी. की और बढ़ा...
"ओह माइ गॉड! मैं तो भूल ही गयी थी.. सॉरी.. पर इश्स वक़्त डॉक्टर कहाँ
मिलेगा...?" स्नेहा ने सूख चुके खून से सनी शर्ट की और देखते हुए कहा...
"अरे डॉक्टर की क्या ज़रूरत है... नीचे फर्स्ट एड पड़ी होगी.. सफाई करके पट्टी बँधवा लेता हूँ... मैं अभी आया 5-7 मिनिट में..."
"वो तो मैं कर दूँगी.. तुम फर्स्ट एड बॉक्स मंगवा लो.. यहीं पर... तुम्हारे बिना मेरा दिल नही लगेगा... डर सा भी लगता है..." स्नेहा ने प्यार भरी निगाहों से विकी की और देखा...
विकी जाकर बेड पर स्नेहा के पास बैठ गया..," इसमें डरने की क्या बात है..? तुम क्यूँ परेशान होती हो... ज़्यादा टाइम नही लगाउन्गा.. ठीक है..?" विकी को माधव के पास फोन करना था..
स्नेहा ने घुटनो के बाल बैठते हुए विकी की बाँह पकड़ ली..," अच्च्छा.. मैं परेशान हो जाउन्गि.. तुमने जो मेरे लिए इतना किया है.. वो? नही तुम कहीं मत जाओ.. मत जाओ ना प्लीज़.. मुझे ये सब करना आता है.."
इश्स हसीन खावहिश पर कौन ना मार मिटे... विकी ने रूम सर्विस का नो. डाइयल
करके फर्स्ट एड बॉक्स के लिए बोल दिया.. स्नेहा की और वो अजीब सी नज़रों से देख रहा था.. नज़रों में ना तो पूरी वासना झलक रही थी.. और ना ही पूरा प्यार ही..
"मैं तब तक कपड़े चेंज कर लेती हूँ.. कहकर स्नेहा ने बॅग से कुच्छ कपड़े निकाल कर बेड पर फैला दिए..," कौनसा पहनु?"
विकी असमन्झस से स्नेहा को घूर्ने लगा.. जैसे कह रहा हो..' मुझे क्या पता...'
"बताओ ना प्लीज़.. नही तो बाद में कहोगे.. 'ये ऐसे हैं.. ये वैसे..' "
"नही कहूँगा.. पहन लो.. कोई भी.." विकी स्नेहा को देखकर मुस्कुराया और बेड पर रखे एक पिंक कलर के सिंगल पीस स्कर्ट टॉप पर नज़रें जमा ली.. यूँ ही.
"ये पहनु? .. पर ये तो पूरा घुटनो तक भी नही आता.. बाद में बोलना मत..." स्नेहा ने विकी की द्रिस्ति को ताड़ लिया.... कहते हुए लज्जा का महीन आवरण उसके चहरे पर झिलमिला रहा था...
"मुझे नही पता यार.. कुच्छ भी पहन लो..." हालाँकि विकी ये सोच रहा था कि उस ड्रेस में वो कितनी सेक्सी लगेगी...
"ठीक है.. मैं यही डाल लेती हूँ..." स्नेहा ने बोला ही था कि वेटर ने बेल बजाई...
"लगता है.. फर्स्ट एड आ गयी.. ले लो.. मैं बाद मैं चेंज करूँगी.. पहले तुम्हारी पट्टी कर देती हूँ..."
--------
"शर्ट तो निकाल दो... पहले.." स्नेहा ने बॉक्स खोलते हुए विकी से कहा...
विकी का दिमाग़ भनना रहा था.. आज तक वो लड़कियों को निर्वस्त्रा करता आया था.. पर आज उसकी जिंदगी की सबसे हसीन लड़की उसको खुद शर्ट निकालने को बोल रही है.. क्या वो झिझक रहा था? हां.. उसके चेहरे के भाव यही बता रहे थे...
"तुम तो ऐसे शर्मा रहे हो.. जैसे तुम कोई लड़की हो.. और मैं लड़का..!" कहकर स्नेहा खिलखिला उठी.. अपने चेहरे की शर्म को छिपाने के लिए उसने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया.. हंसते हुए.. हमेशा वो ऐसा ही करती थी..
विकी की नज़र उसके हिलने की वजह से फड़फदा रहे कबूतरों पर पड़ी.. बिना सोचे हाथों में पकड़ कर मसल देने लायक थे.. फिर जाने वो क्या सोच रहा था.. और क्यूँ सोच रहा था...
"निकालो!" स्नेहा के बोल में अधिकार भारी मिठास थी.. और कुच्छ नही...
"निकलता हूँ ना...!" कहते हुए विकी ने एक एक करके अपनी शर्ट के सारे बटन खोल दिए.. जैसे ही वो बाई बाजू से शर्ट निकालने की कोशिश करने लगा.. दर्द से बिलबिला उठा..," अयाया...!"
"रूको.. मैं निकलती हूँ.. आराम से..!" कहकर एक बार फिर स्नेहा उसके सामने आ गयी... घुटनो के बल होकर.. बड़ी नाज़ूक्ता से एक हाथ विकी के दूसरे कंधे पर रखा और दूसरे हाथ से धीरे धीरे शर्ट को निकालने लगी," दर्द हो रहा है?"
दर्द तो हो रहा था.. पर उतना नही.. जितना मज़ा आ रहा था.. विकी आँखें बंद किए अपनी जिंदगी के सर्वाधिक कामुक क्षनो को अपनी साँसों में उतारता रहा.. सच इतना मज़ा कभी उसको सेक्स में भी नही आया था.. स्नेहा के कमसिन अंगों की महक निराली थी.. जिसे वो गुलबों की तेज खुश्बू के बीच भी महसूस कर रहा था.. उसकी 'मर्दानगी' अकड़ने लगी... दिल और दिमाग़ में अजेब सा युद्ध छिड़ा हुआ था..
इश्स बार भी दिमाग़ ही जीत गया.. विकी ने अपने तमाम आवेगो को काबू में रखा.. हालाँकि 'काबू' में रखने की इश्स कोशिश में उसके माथे पर पसीना छलक आया.. ए.सी. के बावजूद...
"उफफफफफ्फ़.. घाव तो बहुत गहरा है... मुझसे देखा नही जा रहा.." स्नेहा ने शर्ट निकालते हुए घाव को देखते ही आह भरी...
"लो निकल गयी... ! चलो बाथरूम में.. इसको धो देती हूँ..." स्नेहा का दूसरा हाथ अब भी उसके कंधे पर ही था.. और वो यूँही विकी के चेहरे को एकटक देख रही थी.. प्यार से...
पट्टी करने के पूरे प्रकरण के दौरान जहाँ भी स्नेहा ने उसको स्पर्श किया.. मानो वही अंग खिल उठा.. आज तक कभी भी विकी को इश्स तरह की अनुभूति नही हुई थी.. वो तो बस आनंद के सागर में गहरी डुबकी लगाकर अपने हिस्से के मोती खोजता रहा....
प्यार और वासना में सदियों से मुकाबला होता आया है.. कुच्छ लोग 'प्यार' होने को सिर्फ़ 'आकर्षण' और 'वासना' मानते हैं.. पर सच तो ये है की वासना प्यार के अनुपम अहसास के आसपास भी कभी फटक नही सकती.. वासना आपको 'खाली' करती है.. वहीं प्यार आपको तृप्त... जहाँ लगातार 'सेक्स' भी हरबार आपको एक सूनेपन और बेचैनी से भर देता है, वहीं आपके यार का प्यार भरा एक हूल्का सा स्पर्श आपको उमर भर के लिए ऐसी मीठी यादें दे जाता है.. जिसके सहारे आप जिंदगी गुज़ार सकते हैं.. यार के इंतज़ार में..
विकी शायद आज पहली बार 'प्यार' के स्पर्श को महसूस कर रहा था.. हॅव यू एवर?
"अब वह कैसे मान गया...?" लिफ्ट से उपर आते हुए स्नेहा ना विकी से पूचछा...
"कुच्छ नही.. थोड़ी टिप देनी पड़ी..!"
उपर पहुँचे तो वेटर उनकी जी हजूरी के लिए दरवाजे पर खड़ा था... जैसे ही दोनो रूम में घुसे विकी का माथा ठनका गया... अंदर बेड को किसी सुहाग की सेज़ की तरह सजाया हुआ था.. पूरा कमरा फूलों की प्राकृतिक खुश्बू से महक रहा था.. टेबल पर जोह्नी वॉकर की बोटेल, दो गिलास और आइस क्यूब्स रखे थे.. स्नेहा सजावट को देखकर खिल सी गयी थी...
"एक मिनिट.. तुम फ्रेश हो लो.. मैं अभी आया..." कहकर गुस्से से भनभनाया हुआ विकी नीचे चला गया...
"साले.. कुत्ते की पूच्छ.. तुझमें दिमाग़ है या नही.. मेरा बॅंड बजा दिया तूने.." विकी ने 2 झापड़ मॅनेजर को मारे और सोफे पर बैठकर अपना सिर पकड़ लिया....
"पर हुआ क्या भाई साहब.. क्या कमी रह गयी..? मैने तो अपनी तरफ से जी जान लगाई है..."
"यार तू अपन तरफ से जी जान क्यूँ लगाता है.. जितना बोला गया उतना क्यूँ नही करता... तू आदमी है या घंचक्कर... साला.."
"ववो.. माधव भाई ने बोला था की आपको पहचान'ना नही है.. और कोई लड़की साथ आएगी.. तो मैने सोचा खास ही होगी..."
"तू अब दिमाग़ मत खा.. मेरे साथ चल और सॉरी बोल की रूम ग़लती से दे दिया.. और 2 मिनिट में दूसरी अड्जस्टमेंट कर..."
"ठीक है.. भाई साहब.. मैं अभी चलता हूँ..!" मॅनेजर के चेहरे पर 12 बजे लग रहे थे....
"सॉरी.. मेडम.. वो ग़लती से आपको ग़लत नंबर. दे दिया.. आक्च्युयली ये किसी वेड्डिंग कपल के लिए है.. आइए.. आपका सामान शिफ्ट करा देता हूँ..." विकी मॅनेजर के साथ नही आया था.... जानबूझकर!
"वो कहाँ हैं..?" स्नेहा सुनकर मायूस सी हो गयी...
"वो कौन..?" मॅनेजर का दिमाग़ भनना रहा था...
"वो.. मेरे पति! और कौन?" कहते हुए स्नेहा का दिल धड़क रहा था.. कितना प्यारा अहसास था स्नेहा के लिए.. विकी जैसा पति!
"ववो.. आते ही होंगे.... लीजिए आ गये...!"
"क्या बात है..?" विकी ने अंजान बनते हुए कहा...
"आक्च्युयली सर....." और मॅनेजर को स्नेहा ने बीच में ही टोक दिया...," देखिए ना मोहन! ये हमारा रूम नही है.. मुझे भी बिल्कुल ऐसा ही चाहिए.... कह रहे हैं.. ये तो किसी वेड्डिंग कपल के लिए है.. जैसे हम बूढ़े हो गये हों.. जैसे हमारी शादी ही ना हुई हो... मुझे नही पता.. मुझे यही रूम चाहिए..."
विकी को उसकी बातों पर यकीन ही नही हुआ.. वो तो ऐसे बोल रही थी जैसे सचमुच की पत्नी हो.. बिल्कुल वाइफ वाले नखरे दिखा रही थी..
"तुम्हारी प्राब्लम क्या है मॅनेजर.. हमें यही कमरा चाहिए.. समझ गये.." विकी ने तुरंत पाला बदल लिया....
"जी सर.. समझ गया.. सॉरी!" कह कर मॅनेजर स्नेहा की और अदब से झुका और बाहर निकलगया.. जैसे मंदिर से निकला हो!"
"ये हुई ना बात.. हमें निकाल रहा था.. कितना प्यारा रूम है... जैसे...." आगे स्नेहा शर्मा गयी...
"तुम्हे सच में यहाँ कुच्छ ग़लत नही लगा..?" विकी का ध्यान रह रह कर टेबल पर साज़ी बॉटले और गिलासों पर जा रहा था....
"यहाँ क्या ग़लत है..?" स्नेहा ने एक बार और जन्नत की तरह सजे कमरे में नज़रें दौड़ाई....
"ये शराब...?????" विकी ने ललचाई आँखों से बोतल की और देखा.. बहुत दिल कर रहा था....
"नही तो.. आदमी तो पीते ही हैं..." स्नेहा किंचित भी विचलित ना हुई.....
"अच्च्छा.. तुमने किसको देखा है..?"
"पापा को.. वो तो हमेशा ही पिए रहते हैं..... अरे हां.. टी.वी. ऑन करो.. देखें पापा क्या नाटक कर रहे हैं...." स्नेहा एक बार फिर मुरझा गयी....
"तुम तब तक टी.वी. देखो.. मैं इसका कुच्छ करके आता हूँ.." विकी स्विच ऑन करने के लिए टी.वी. की और बढ़ा...
"ओह माइ गॉड! मैं तो भूल ही गयी थी.. सॉरी.. पर इश्स वक़्त डॉक्टर कहाँ
मिलेगा...?" स्नेहा ने सूख चुके खून से सनी शर्ट की और देखते हुए कहा...
"अरे डॉक्टर की क्या ज़रूरत है... नीचे फर्स्ट एड पड़ी होगी.. सफाई करके पट्टी बँधवा लेता हूँ... मैं अभी आया 5-7 मिनिट में..."
"वो तो मैं कर दूँगी.. तुम फर्स्ट एड बॉक्स मंगवा लो.. यहीं पर... तुम्हारे बिना मेरा दिल नही लगेगा... डर सा भी लगता है..." स्नेहा ने प्यार भरी निगाहों से विकी की और देखा...
विकी जाकर बेड पर स्नेहा के पास बैठ गया..," इसमें डरने की क्या बात है..? तुम क्यूँ परेशान होती हो... ज़्यादा टाइम नही लगाउन्गा.. ठीक है..?" विकी को माधव के पास फोन करना था..
स्नेहा ने घुटनो के बाल बैठते हुए विकी की बाँह पकड़ ली..," अच्च्छा.. मैं परेशान हो जाउन्गि.. तुमने जो मेरे लिए इतना किया है.. वो? नही तुम कहीं मत जाओ.. मत जाओ ना प्लीज़.. मुझे ये सब करना आता है.."
इश्स हसीन खावहिश पर कौन ना मार मिटे... विकी ने रूम सर्विस का नो. डाइयल
करके फर्स्ट एड बॉक्स के लिए बोल दिया.. स्नेहा की और वो अजीब सी नज़रों से देख रहा था.. नज़रों में ना तो पूरी वासना झलक रही थी.. और ना ही पूरा प्यार ही..
"मैं तब तक कपड़े चेंज कर लेती हूँ.. कहकर स्नेहा ने बॅग से कुच्छ कपड़े निकाल कर बेड पर फैला दिए..," कौनसा पहनु?"
विकी असमन्झस से स्नेहा को घूर्ने लगा.. जैसे कह रहा हो..' मुझे क्या पता...'
"बताओ ना प्लीज़.. नही तो बाद में कहोगे.. 'ये ऐसे हैं.. ये वैसे..' "
"नही कहूँगा.. पहन लो.. कोई भी.." विकी स्नेहा को देखकर मुस्कुराया और बेड पर रखे एक पिंक कलर के सिंगल पीस स्कर्ट टॉप पर नज़रें जमा ली.. यूँ ही.
"ये पहनु? .. पर ये तो पूरा घुटनो तक भी नही आता.. बाद में बोलना मत..." स्नेहा ने विकी की द्रिस्ति को ताड़ लिया.... कहते हुए लज्जा का महीन आवरण उसके चहरे पर झिलमिला रहा था...
"मुझे नही पता यार.. कुच्छ भी पहन लो..." हालाँकि विकी ये सोच रहा था कि उस ड्रेस में वो कितनी सेक्सी लगेगी...
"ठीक है.. मैं यही डाल लेती हूँ..." स्नेहा ने बोला ही था कि वेटर ने बेल बजाई...
"लगता है.. फर्स्ट एड आ गयी.. ले लो.. मैं बाद मैं चेंज करूँगी.. पहले तुम्हारी पट्टी कर देती हूँ..."
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"शर्ट तो निकाल दो... पहले.." स्नेहा ने बॉक्स खोलते हुए विकी से कहा...
विकी का दिमाग़ भनना रहा था.. आज तक वो लड़कियों को निर्वस्त्रा करता आया था.. पर आज उसकी जिंदगी की सबसे हसीन लड़की उसको खुद शर्ट निकालने को बोल रही है.. क्या वो झिझक रहा था? हां.. उसके चेहरे के भाव यही बता रहे थे...
"तुम तो ऐसे शर्मा रहे हो.. जैसे तुम कोई लड़की हो.. और मैं लड़का..!" कहकर स्नेहा खिलखिला उठी.. अपने चेहरे की शर्म को छिपाने के लिए उसने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया.. हंसते हुए.. हमेशा वो ऐसा ही करती थी..
विकी की नज़र उसके हिलने की वजह से फड़फदा रहे कबूतरों पर पड़ी.. बिना सोचे हाथों में पकड़ कर मसल देने लायक थे.. फिर जाने वो क्या सोच रहा था.. और क्यूँ सोच रहा था...
"निकालो!" स्नेहा के बोल में अधिकार भारी मिठास थी.. और कुच्छ नही...
"निकलता हूँ ना...!" कहते हुए विकी ने एक एक करके अपनी शर्ट के सारे बटन खोल दिए.. जैसे ही वो बाई बाजू से शर्ट निकालने की कोशिश करने लगा.. दर्द से बिलबिला उठा..," अयाया...!"
"रूको.. मैं निकलती हूँ.. आराम से..!" कहकर एक बार फिर स्नेहा उसके सामने आ गयी... घुटनो के बल होकर.. बड़ी नाज़ूक्ता से एक हाथ विकी के दूसरे कंधे पर रखा और दूसरे हाथ से धीरे धीरे शर्ट को निकालने लगी," दर्द हो रहा है?"
दर्द तो हो रहा था.. पर उतना नही.. जितना मज़ा आ रहा था.. विकी आँखें बंद किए अपनी जिंदगी के सर्वाधिक कामुक क्षनो को अपनी साँसों में उतारता रहा.. सच इतना मज़ा कभी उसको सेक्स में भी नही आया था.. स्नेहा के कमसिन अंगों की महक निराली थी.. जिसे वो गुलबों की तेज खुश्बू के बीच भी महसूस कर रहा था.. उसकी 'मर्दानगी' अकड़ने लगी... दिल और दिमाग़ में अजेब सा युद्ध छिड़ा हुआ था..
इश्स बार भी दिमाग़ ही जीत गया.. विकी ने अपने तमाम आवेगो को काबू में रखा.. हालाँकि 'काबू' में रखने की इश्स कोशिश में उसके माथे पर पसीना छलक आया.. ए.सी. के बावजूद...
"उफफफफफ्फ़.. घाव तो बहुत गहरा है... मुझसे देखा नही जा रहा.." स्नेहा ने शर्ट निकालते हुए घाव को देखते ही आह भरी...
"लो निकल गयी... ! चलो बाथरूम में.. इसको धो देती हूँ..." स्नेहा का दूसरा हाथ अब भी उसके कंधे पर ही था.. और वो यूँही विकी के चेहरे को एकटक देख रही थी.. प्यार से...
पट्टी करने के पूरे प्रकरण के दौरान जहाँ भी स्नेहा ने उसको स्पर्श किया.. मानो वही अंग खिल उठा.. आज तक कभी भी विकी को इश्स तरह की अनुभूति नही हुई थी.. वो तो बस आनंद के सागर में गहरी डुबकी लगाकर अपने हिस्से के मोती खोजता रहा....
प्यार और वासना में सदियों से मुकाबला होता आया है.. कुच्छ लोग 'प्यार' होने को सिर्फ़ 'आकर्षण' और 'वासना' मानते हैं.. पर सच तो ये है की वासना प्यार के अनुपम अहसास के आसपास भी कभी फटक नही सकती.. वासना आपको 'खाली' करती है.. वहीं प्यार आपको तृप्त... जहाँ लगातार 'सेक्स' भी हरबार आपको एक सूनेपन और बेचैनी से भर देता है, वहीं आपके यार का प्यार भरा एक हूल्का सा स्पर्श आपको उमर भर के लिए ऐसी मीठी यादें दे जाता है.. जिसके सहारे आप जिंदगी गुज़ार सकते हैं.. यार के इंतज़ार में..
विकी शायद आज पहली बार 'प्यार' के स्पर्श को महसूस कर रहा था.. हॅव यू एवर?
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