Friday, 31 October 2014

masti ki pathsala - 59


मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-59
विकी ने उसकी जांघों पर हाथ रखकर प्यार से सहलाते हुए उसकी गांद पर ले आया और फिर आगे झुकते हुए स्नेहा की गर्दन पर एक चुंबन देकर उसके साथ लेट गया.. स्नेहा के स्मनान्तर..
" क्या हुआ.. शर्मा क्यूँ रही हो.." विकी ने उसके कान के पास अपने होंठ लेजाकार कामुकता से कहा..
स्नेहा ने जवाब फिर भी नही दिया.. अचानक पलटी और विकी की छाती में अपना चेहरा घुसा दिया.. और सिमट कर अपने आपको विकी में ही छिपाने की कोशिश करने लगी...
"आँखें खोलो... देखो तो सही.. क्या दिखाता हूँ..." विकी ने हंसते हुए स्नेहा से कहा...
"नही.. मुझे नही देखना..." स्नेहा को मानो डर लग रहा हो.. इश्स अंदाज में बोली..
"अब ये तो चीटिंग है... मैं कब से तुम्हारी सेवा कर रहा हूँ.. और तुम देख भी नही सकती...." विकी ने उलाहना सा दिया..
"पर्ररर... तुम्हे पता है ना.. मुझे शरम आ रही है...." स्नेहा हल्के से बुदबुदाई...
"ऐसे शरमाती रहोगी तो... बाद में पछ्ताओगि... सोच लो..."
"ओकके.. हुन्हु... क्या देखना है.. बताओ...?" शरारत भरी आवाज़ में स्नेहा ने आँखें खोलकर विकी की आँखों में झाँका...
"यही.. जो तुम्हे प्यार सिखाएगा... और मज़े भी देगा..." विकी ने स्नेहा का हाथ पकड़ कर अंडरवेर की साइड से अंदर घुस्वा दिया....
" ओह्ह गॉड.. इतना मोटा!" लाजाते हुए भी स्नेहा अपने आपको ना रोक पाई.. अपने आसचर्या को ज़ुबान तक लाने में...
" इतनी हैरान क्यूँ हो.. लगता है.. तुम्हे पता है.. इसका क्या करते हैं... एक्सपीरियन्स है क्या..?" विकी ने यूँही मज़ाक में कह दिया...
स्नेहा ने गुस्सा सा दिखाते हुए अपने कोमल हाथ का घूँसा बनाकर विकी की छाती में दे मारा..," ओये.. मेरी कौनसा शादी हुई है...?"
"शादी तो अब भी नही हुई है..... फिर?" विकी ने उसकी चूची को अपने हाथ में दबा लिया....
" हो जाएगी...! तुम मुझे जानते नही हो.." स्नेहा ने तो यही सोचा होगा की मोहन तो उस'से शादी करके अपने आपको खुशकिस्मत ही समझेगा....
जाने क्यूँ विकी इश्स बात पर अपनी नज़रें चुराने लगा.. उसने बात बदल दी," तो तुम्हे पता है.. इसका क्या करते हैं..."
"हूंम्म!" स्नेहा अब अपने आपको थोड़ा सहज पा रही थी.. अपने दिल की बात कह कर... वह बड़े प्यार से बिना शरमाये अंडरवेर के अंदर ही विकी के लंड को सहला रही थी...
"इसको इसमें डालते हैं" स्नेहा ने दूसरा हाथ अपनी जांघों पर रख दिया...
"तो डालूं...?" विकी ने जैसे ही अपना अंडरवेर निकाला.. 'लंड' तन्ना कर स्नेहा के हाथ से छ्छूट गया...
" नही.. अभी नही.. बच्चा हो जाएगा.. मुझे पता है.. इसमें डालने से ही बच्चा बनता है......"
" ये भी कोई बात हुई.. तुम्हे आधा पता है.. और आधा नही..." विकी घुटनो के बल बैठ गया..उसका लंड अब ठीक स्नेहा की आँखों के सामने हिलौरे ले रहा था.... स्नेहा ने आँखें बंद करके उसको फिर हाथ में पकड़ लिया," अच्च्छा जी.. क्या नही पता...?"
"सिर्फ़ डालने से बच्चा नही होता.. खैर छ्चोड़ो.. मुँह में ले सकती हो ?"
"मुँह में.... ये कोई कुलफी है जो मैं मुँह में लूँगी... कहकर स्नेहा हुँसने लगी... उसने आँखें खोल दी थी.. और बड़े प्यार से लंड के चिकने सूपदे को देख रही थी....
"लेकर तो देखो... अगर अच्च्छा ना लगे तो कहना..."
"तुम्हे कैसे पता.. कोई एक्सपीरियन्स है क्या?" स्नेहा ने हंसते हुए उसी की टोन में पूचछा...
"न्न्नाही.. ववो.. दोस्त बता देते हैं ना.. लड़कियों को क्या क्या अच्च्छा लगता है...."
"पर मुझे तो नही बताया.. मेरी सहेलियों ने..." हालाँकि उसकी तरफ निहारते हुए स्नेहा के मुँह में पानी आ चुका था...
" यार.. तुम लेकर तो देखो.. कह तो रहा हूँ.. निकाल देना.. अगर अच्च्छा ना लगे तो.." कहकर विकी उसकी छाती के दोनो ओर पैर करके आगे की और झुक कर बैठ गया.. अब स्नेहा के होंठों और विकी के 'औजार' में इंच भर का फ़र्क था
 


 थोड़ा सा हिचकते हुए स्नेहा ने अपने हाथ में पकड़े लंड को नीचे झुकाया और अपने होंठो से छुआ दिया.. और फिर होंठों पर जीभ फेरते हुए उसको दूर कर दिया...
"क्या हुआ?" विकी तड़प सा उठा और खुद ही नीचे झुक कर वापस उसके होंठो से भिड़ाने की कोशिश करने लगा..
"कुच्छ नही.. अजीब सा लग रहा है..." अब स्नेहा खुल गयी थी.. पूरी तरह...
" अच्च्छा नही लग रहा क्या..?" बेचैनी से विकी ने पूछा...
बिना कोई जवाब दिए.. स्नेहा ने अपने होंठो को आधा खोला और सुपादे के अगले भाग को होंटो में दबा लिया.. और विकी की और देखने लगी..
विकी को पहली बार इतना आनंद आया था की उसकी आँखें बंद हो गयी..," अयाया.. "
"अच्च्छा लग रहा है...?" अब की बार स्नेहा ने पूचछा...
"हाआँ..." जीभ निकाल कर चाटो ना.. प्लीज़..." विकी कराह उठा.. आनंद के मारे..
स्नेहा को कोई ऐतराज ना हुआ.. उसको ये जानकार बहुत खुशी हुई की विकी को अच्च्छा लग रहा है.. अपनी जीभ निकाली और लंड की जड़ से लेकर सुपादे तक नीचे से चाट'ती चली गयी...
"आआहह.. मार डालोगी.. तुम तो.. ऐसे ही करो.. और इसको मुँह के अंदर लेने की कोशिश करो..."
स्नेहा तो मस्त होती जा रही थी... उसको भी बहुत मज़ा आ रहा था..
विकी ने देखा स्नेहा अपने हाथ को उसकी टाँगों के बीच से निकालकर नीचे ले जाने की कोशिश कर रही है.. विकी को समझते देर ना लगी... वो भी तो तड़प रही होगी," एक मिनिट.. कहकर विकी घूम गया और झुकते हुए अपनी कोहनियाँ स्नेहा की जांघों के बीच टीका दी.. स्नेहा की चिकनी चूत अब उसकी पहुँच में थी..
स्नेहा के लिए भी अब आसान हो गया.. लंड उसके मुँह के उपर सीधा लटक रहा था.. उसने अपने होंठ जितना हो सकता था उतने खोले और सूपदे को मुँह में भर लिया...
दोनो 69 की स्थिति में थे.. स्नेहा तो स्नेहा; विकी भी मानो आनंद के असीम सागर में तेर रहा हो.. बड़ी ही नाज़ूक्ता से उसने स्नेहा की जांघों को अपने हाथो से दबाया.. और एक हाथ की उंगली से उसकी चूत की कुँवारी फांकों को अलग करके उनके बीच छुपे हुए छ्होटे से दाने को देखा.. मस्ती से अकड़ा हुआ था.. चूत का रंग अंदर से स्नेहा के होंठो जैसा ही था.. एकद्ूम गुलाबी रंगत लिए हुए.
वह झुका और स्नेहा के 'दाने' को चूसने लगा..
स्नेहा एकद्ूम उच्छल सी पड़ी और इस उच्छलने में लंड सूपदे से कहीं ज़्यादा दूर उसके मुँह में हो आया...
स्नेहा इतनी उत्तेजित होने के बावजूद उसके सबसे अधिक संवेदनशील अंग के साथ छेड़ छाड सहन नही कर पा रही थी.. मस्ती से वा अपनी गांद को इधर उधर मटकाने लगी.. विकी ने भी उसको कसकर दबोच लिया.. और एक मुश्त कयि मिनूटों तक स्नेहा को जन्नत के प्रॅथम दर्शन कराता रहा...
दोनो ही बावले से हो चुके थे.. दोनो एक दूसरे का भरपूर साथ दे रहे थे.. की अचानक एक बार फिर स्नेहा के साथ वही स्थिति एक बार फिर उभर आई.. उसकी टाँगें काँपने लगी.. सारा बदन अकड़ सा गया और अपनी जांघों में उसने विकी का सिर जाकड़ लिया..
विकी को भी हटने की जल्दी ना थी.. स्नेहा की बूँद बूँद को वह मदहोशी के आलम में ही अपने गले में उतार गया...
उधर स्नेहा भी उसके लंड के साथ अब तक बुरी तरह व्यस्त थी... चाट चाट कर, चूस चूस कर... काट काट कर उसने सूपड़ा लाल कर दिया था...
स्नेहा के ढीली पड़ते ही विकी 'अपना' हाथ में लेकर घुटनो के बाल उसके मुँह के पास बैठ गया," तुम्हे भी पीना पड़ेगा...?"
"क्या?" स्नेहा के चेहरे से असीम तृप्ति झलक रही थी...
"यही.. इसका रस.. जो अभी निकलेगा..." विकी का हाथ बड़ी तेज़ी से चल रहा था..
"नही... रहने दो ना... प्लीज़.." स्नेहा ने रिक्वेस्ट की..
" रहने कैसे दूँ.. मुझे भी तो पीला दिया.. ज़बरदस्ती.. टाँगों में सिर भींच कर.."
उन्न पलों को याद करके स्नेहा बाग बाग हो गयी.. फिर शरारत से मुँह बनाते हुए बोली.. "ठीक है... लाओ पिलाओ.." कह कर उसने अपना मुँह खोल लिया...
उसके बाद तो 2 ही मिनिट हुए होंगे.. अचानक विकी रुका और स्नेहा के खुले होंठो में लंड जितना आ सकता था फँसा दिया.. रस की धारा ने स्नेहा का पूरा मुँह भर दिया.. आख़िर कार जब बाहर ना निकल पाई तो मुस्कुराते हुए गटक लिया...
विकी धन्य हो गया... हटा और बेड पर धदाम से गिर पड़ा.. स्नेहा उठी और अपनी चूचियों को विकी की छाती पर दबा कर उसके होंठों को चूमने लगी.. अजीब सी क्रितग्यता उसके चेहरे से झलक रही थी...
इतनी हसीन और कमसिन लड़की को अपनी बाहों में पाकर नशे में होने के बावजूद तैयार होने में विकी को 3-4 मिनिट ही लगे... वह अचानक उठा और स्नेहा को अपने नीचे दबोच लिया.. उसकी आँखों में फिर से वही भाव देखकर स्नेहा मुस्कुराइ," अब क्या है..?"
"अब अंदर..." कहते हुए. विकी ने फिर उसकी जांघें खोल दी.. और हौले हौले टपक रही चूत पर नज़र गढ़ा दी... और एक बार फिर उसको तैयार करने के लिए उंगली और होंठो को काम पर लगा दिया...
स्नेहा भी जल्द ही फिर से फुफ्कारने लगी... लुंबी लुंबी साँसे और योनि छिद्र में फिर से चिकनाई उतर आना इस बात का सबूत था की वो उस असीम आनंद को दोबारा पाने के लिए पहली बार होने वाले दर्द को झेल सकती है...
विकी पंजों के बल बैठ गया और स्नेहा के घुटनो के नीचे से बेड पर हाथ जमकर उसकी जांघों को उपर उठा सा दिया... चूत हूल्का सी रास्ता दिखाने लगी.. विकी ने सूपड़ा 'सही' सुराख पर सेट किया और स्नेहा के चेहरे की और देखने लगा..," एक बार दर्द होगा.. सह लोगि ना...?"
"तुम्हारे लिए...." स्नेहा हमला झेलने के लिए तैयार हो चुकी थी.. अपने पहले प्यार की खातिर...
विकी के भी अब बात बर्दास्त के बाहर थी.. ज़्यादा इंतज़ार वो कर नही सकता था.. सो स्नेहा की जांघों को पूरी तरह अपने वश में किया.. और दबाव अचानक बढ़ा दिया...
स्नेहा के मुँह से तो चीख भी ना निकल सकी.. एक बार में ही सूपड़ा अपना रास्ता अपने आप बनाता हुआ काफ़ी अंदर तक चला गया था.. स्नेहा ने पहले ही अपने मुँह को अपने ही हाथो से दबा रखा था... लंड सर्दियों में जमें हुए मक्खन में किसी गरम चम्मच की तरह घुस गया था.. कुच्छ देर तक विकी ना खुद हिला और ना ही स्नेहा को हिलने दिया.. और आगे झुक कर स्नेहा की छातियो को दबाते हुए उसको होंठो को भी अपने होंठों की गिरफ़्त में ले लिया..
धीरे धीरे 'चम्मच' की गर्मी से 'चूत' का जमा हुआ 'मक्खन' पिघल कर बहने सा लगा.. इश्स चिकनाहट ने दोनो के अंगों को तर कर दिया.. स्नेहा को लगा.. अब हो सकता है तो उसने अपनी गांद उचका कर विकी को सिग्नल दिया...
विकी ने थोड़ा पिछे हट'ते हुए एक बार और प्रहार किया.. इश्स बार अंदर लेने में स्नेहा को उतनी पीड़ा नही हुई..
करीब 5 मिनिट बाद स्नेहा सामान्य हो गयी और अजीब तरह की आवाज़ें निकालने लगी.. ऐसी आवाज़ें जो कामोत्तेजना को कयि गुना बढ़ा दें...
अब दोनो ही अपनी अपनी तरफ से पूरा सहयोग कर रहे थे.. विकी उपर से आता और आनंद की कस्ति पर सवार स्नेहा की गांद नीचे से उपर की और उच्छलती और दोनो की जड़ें मिल जाती.. दोनो एक साथ आ कर बैठते...
आख़िरकार स्नेहा आज तीसरी बार 'आ' गयी... विकी भी आउट ऑफ कंट्रोल होने ही वाला था.. उसने झट से अपना लंड बाहर निकाला और फिर स्नेहा के मुँह के पास जाकर बैठ गया.. जैसे वहाँ कोई स्पर्म बॅंक खोल रखा हो...
स्नेहा ने शरारत से एक बार अपने कंधे 'ना' करने की तरह उचकाए.. और फिर मुस्कुराते हुए अपने होंठ खोल दिए.. उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी... पहले प्यार की चमक!
सुबह विकी उठा तो स्नेहा उसके कंधे पर सिर रखे उसके बलों में हाथ फेरती हुई उसकी ही और देख रही थी.. अपलक!
"तुम कब जागी?" विकी ने हुल्की सी मुस्कान उसकी और फैंकते हुए पूचछा...
"मैं तो सोई ही नही.. नींद ही नही आई..?" नींद और पहले प्यार की खुमारी उसकी आँखों में हुल्की सी लाली के रूप में चमक रही थी.. और उसके चेहरे पर कली से फूल बन'ने का बे-इंतहा नूर था.. विकी ने उसकी आँखों में आँखें डाली तो स्नेहा ने पलकें झुका ली..
"कैसा रहा रात का अनुभव?" विकी ने उसकी और करवट लेते हुए स्नेहा की कमर में हाथ डाल कर अपनी और खींच लिया.. और स्नेहा मुस्कुरा कर उस'से चिपक गयी.....
" हम कहाँ रहेंगे मोहन?" स्नेहा ने उसके गले में अपनी गोरी बाँहें डाल दी..
" मतलब? " विकी ने नज़रें चुरा ली...
"मैं वापस हॉस्टिल नही जाना चाहती.. यहीं रहना चाहती हू.. तुम्हारे साथ.."
विकी ने बात टालने के इरादे से अपने एक हाथ से उसकी चूची को दबाया और उसके होंठो को अपने होंठो में लेने के लिए अपना चेहरा उसकी तरफ बढ़ा दिया..
कामुकता भरे आनंद की लहर स्नेहा के पुर बदन को दावादोल सा कर गयी.. पर वह अगले कदम के बारे में जान'ने को चिंतित थी.. उसने अपना चेहरा सिर झुका कर विकी की छाती में छुपा लिया," बताओ ना मोहन.. अब हम क्या करेंगे.. मुझे वापस तो नही भेजोगे ना? मुझे अब तुमसे दूर नही जाना.."
विकी एक पल के लिए असमन्झस में पड़ गया.. इश्स वक़्त उसको स्नेहा को वादों के जाल में उलझाए ही रखना था.. पर जाने क्यूँ.. स्नेहा के सीधे सवाल का टेढ़ा जवाब देने से वह कतरा रहा था..," पर तुम्हारे पापा.. उनका क्या करोगी..? विकी ने सवाल का जवाब सवाल से ही दिया...
स्नेहा का उम्मीदों से भरा मॅन क्षणिक कड़वाहट से भर उठा..," पापा! हुन्ह... उनकी पैदाइश होने के अलावा हमारा रिश्ता ही क्या रहा है.. मैं 8 साल की तही जब उन्होने मुझे हॉस्टिल में डाल दिया.. आज 11 साल होने को आ गये हैं.. और मुस्किल से 11 बार ही मैने उनका चेहरा देखा है.. मैं उनसे बहुत प्यार करती थी.. हमेशा उनसे मिलने को.. घर जाने को तड़पति रहती थी.. पर उन्होने.. पता नही क्यूँ.. मुझे प्यार दिया ही नही.. कभी हॉस्टिल से घर लेने भी आता तो उनका ड्राइवर.. घर जाकर पता चलता.. देल्ही गये हैं.. बाहर गये हैं.. और मुझे तकरीबन उसी दिन शाम को या अगले दिन वापस भेज हॉस्टिल में फैंक दिया जाता" स्नेहा की आँखों में अतीत में मिली प्यार के अभाव की तड़प के छिपे हुए आँसू जिंदा हो उठे..," सब फ्रेंड्स के मम्मी पापा.. उनसे मिलने आते.. उनको घर लेकर जाते और वो लड़कियाँ आकर घर जाकर की गयी मस्ती को सबको बताती.. सोचो.. मेरे दिल पर क्या बीत-ती होगी.. लड़कियाँ मुझे 'अनाथ' तक कह देती थी.. अगर पापा ऐसे ही होते हैं तो सबके क्यूँ नही होते मोहन.. हम अपने बच्चे को हॉस्टिल नही भेजेंगे.. अपने से कभी दूर नही करेंगे मोहन... मैने महसूस किया है.. बिना अपनों के साथ के जिंदगी कैसी होती है.. फिर भी मैं हमेशा यही सोचती थी की पापा बिज़ी हैं.. पर प्यार तो करते ही होंगे... पर कल तो उन्होने दिखा ही दिया की... मैं सच मैं ही 'अनाथ' हूँ.." कहते हुए स्नेहा का गला बैठ गया.. और दिल की भादास विलाप के रूप में बाहर निकालने लगी...
विकी से उसका रोना देखा ना गया.. चेहरा उपर करके उसके आँसू पौंच्छने लगा... पर दिल उसका भी ज़ोर से धड़क रहा था.. उसके रोने के पिछे असली कारण वही था," अब.. रोने से क्या होगा सानू? सम्भालो अपने आपको... " विकी ने उसको अपनी छाती से चिपका लिया....
" बताओ ना.. हम कहाँ रहेंगे.. कहाँ है अपना घर?" स्नेहा पूरी तरह से विकी के लिए समर्पित हो चुकी थी.. उसके घर को अपना घर मान'ने लगी थी...
" उस'से पहले तुम्हे मेरी मदद करनी पड़ेगी... सानू..!"
" मैं क्या मदद कर सकती हूँ..? मैं खुद अब तुम्हारे हवाले हूँ..!"
" वो तो ठीक है.. पर अगर तुम्हारे पापा को पता चल गया तो मेरी जिंदगी ख़तरे में पड़ जाएगी.. अब तक तो फिर भी हो चुकी होगी... ये पता चलते ही की मैं ठीक ठाक हूँ और तुम मेरे साथ हो.. पोलीस मुझे उठा लेगी.. उसके बाद तुम फिर अकेली हो जाओगी... मुझे जैल मैं भेज देंगे.. और तुम्हारे पापा कभी सच्चाई को सामने नही आने देंगे...." विकी ने अपनी अगले प्लान की भूमिका बाँधी....

स्नेहा सुनकर डर गयी.. उसके पापा 'पॉवेरफूल थे.. और सच में ऐसा कर सकते थे.. स्नेहा के लिए तो विकी उसके बाप का एस.ओ. ही था..," फिर.. अब हम क्या करें मोहन!"
"सिर्फ़ एक ही रास्ता है.. तुम पहले मीडीया में जाकर सच्चाई बता दो.. की तुम्हारे बाप ने ही ये सब किया है.. और ये भी कहना की तुम अब वापस नही जाना चाहती.. फिर कुच्छ दिन तुम्हे छिप कर रहना पड़ेगा..!" विकी ने स्नेहा को वो रास्ता बता दिया जो उसको मंज़िल तक ले जाने के लिए काफ़ी था..
"उसके बाद तो सब ठीक हो जाएगा ना?"स्नेहा को अब भी चिंता सता रही थी..
"हाँ.. उसके बाद हम साथ रह सकते हैं.. खुलकर.." स्नेहा की सहमति जानकर विकी खिल उठा और उसने अपना हाथ स्नेहा की जांघों के बीच फँसा दिया...," पर याद रखना.. तुम्हे मेरा कहीं जिकर नही करना है.. यही कहना की मैं किसी तरह उनके चंगुल से बचकर अपनी किसी सहेली के घर चली गयी थी.. अगर मेरा नाम आया तो वो मुझे ढ़हूंढ लेंगे...!"
"आआहह.. ये मत करो.. मुझे कुच्छ हो रहा है.." अपनी पॅंटी में विकी की उंगलियाँ महसूस करके तड़प उठी...
"तुमने सुन लिया ना..." विकी ने अपना हाथ बाहर निकाल लिया..
"हां.. बाबा! सुन लिया.. कब चलना है.. मीडीया के सामने..?"
"मैं नही जाउन्गा.. तुम्हे किसी दोस्त के साथ भेज दूँगा.. चिंता मत करो.. मैं आसपास ही रहूँगा.." कहकर विकी उठ गया...
"अब कहाँ भाग रहे हो.. मुझे छेड़ कर..!" स्नेहा ने विकी को बेड पर वापस गिरा लिया और उसके उपर आ चढ़ि... अपनी टाँगें विकी की जांघों के दोनो तरफ रखकर 'वहाँ' बैठ गयी और सामने की और झुक कर अपनी चूचियों विकी की छाती पर टीका दी....
नया नया खून मुँह लगा था.. ये तो होना ही था...
कुच्छ ही देर बाद दोनो के कपड़े बेड पर पड़े थे और दोनो एक दूसरे से 'काम-क्रीड़ा' कर रहे थे.. स्नेहा की आँखों में अजीब सी तृप्ति थी.. 'अपनी मंज़िल' को प्राप्त करने की खुशी में वो भाव विभोर हो उठी थी.. प्यार करते हुए भी उसकी आँखों में नमी थी... खुशी की!

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