Sunday, 5 October 2014

masti ki pathsala - 42

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-42
 गौरी ने किसी अश्लील किताब में '69' पोज़िशन के बारे में पढ़ा था.. बात सुनते ही उसके गाल लाल हो गये.. जांघों के बीच पनिया सी गयी और चेहरे की हालत तो देखते ही बनती थी.. बड़ी मुश्किल से खाने का नीवाला गले के नीचे उतरा..

" '69' का आकड़ा...?" दिशा और वाणी दोनो एक साथ बोल पड़ी..,"वो क्या होता है..?"
"क्कुच्छ नही.. मैं भीखारी हूँ ना... '69' का आकड़ा देने लेने वालों के......"
"खाना खाने दे ना यार.. " मनु को डर था.. अमित का कोई भरोसा नही.. कब क्या बोल दे...!"
"कोई खाने देगा तब ना...." अमित का इशारा गौरी की और था...
"हां हां.. रोटी तो मेरी उठा ही ली..तुम्हे अपने हाथ से खिलवँगी अब..." गौरी तब तक संभाल चुकी थी और फिर से मैदान में थी...
"सच.. मैं धन्य हो जवँगा.. अगर एक बार खाली चखा भी दी तो.." अमित पिछे हटने वालों में से नही था...
दिशा और वाणी दोनो इश्स मीठी झड़प का आनंद ले रहे थे.. वो समझ नही पाई थी की रह रह कर अमित बात को कहाँ लेकर जा रहा है..
"ये ले....!" अमित की हर बात का मतलब समझ रही गौरी के लिए वहाँ बैठना सहन नही हो रहा था... वह उठकर जाने लगी तो वाणी ने उसका हाथ पकड़ लिया..," बैठो ना दीदी.. ऐसे मज़ाक में भी कोई रोता है...!"
दिशा के और कहने पर बड़ी मुश्किल से गौरी वापस वही बैठ गयी...
"अगर तुम्हे मेरी बात से बुरा लगा है तो.... सॉरी" अमित ने उसका हाथ ही तो पकड़ लिया..
गौरी की हालत बिन जल मच्चली की तरह होती जा रही थी.... हाथ छुड़ाने की हल्की सी कोशिश के बाद उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान तेर गयी," अच्च्छा बाबा! अब हाथ तो छ्चोड़ दो.. खाना तो खाने दो!"..
"ये लो.. मैने कौनसा जीवन भर के लिए पकड़ा है.." अमित ने उसके हाथ को ज़ोर से दबाया और छ्चोड़ दिया...
अमित की इश्स बात पर सभी ज़ोर ज़ोर से हंस पड़े....
सकपकाई हुई गौरी ने फिर अमित पर ताना मारा," जीवन भर के लिए कोई बेवकूफ़ ही अपना हाथ तुम्हे सौपेगी..." बहस अब गरम होती जा रही थी.. पर अमित एकदम ठंडा था.. कूल मॅन!
" और तुम्हे वो लेवेल अचीव करने के लिए काई जनम लग जाएँगे... इतनी बेवकूफ़ होने तक की कोई तुम्हारा हाथ पकड़ने की सोचे... जीवन भर के लिए...! तुम्हारा तो चेहरा देखते ही मैं समझ गया था... " अमित को पता था.. उसकी आख़िरी लाइन गजब का असर करेगी.. किसी भी लड़की पर..
"क्या समझ गये थे.. मेरा चेहरा देखते ही..." गौरी ने खाना छ्चोड़ कर उस'से पूचछा.. उसके स्वर में नर्मी थी.. इश्स बार.

"कुच्छ नही.. खाना खा लो!" कहते ही अमित अपना खाना ख़तम करके उठ गया.....

"तुम अंदर बेड पर सोना पसंद करोगे या तुम्हारी भी बाहर चारपाई डालूं.. बारिश थम गयी है.. बाहर बहुत अच्छि हवा चल रही है..." दिशा ने बर्तन सॉफ करके अंदर आते ही मनु और अमित से सवाल किया...
"हां.." मनु आगे बोलने ही वाला था की अमित ने उसका हाथ दबा दिया,"हम अंदर ही सो जाएँगे.. मेरी तबीयत कुच्छ ढीली सी है..!"

मनु कुच्छ ना बोला.. उसने सच में ही अमित को अपना लवगुरु मान लिया था...
"जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.. हम लड़कियाँ तो बाहर मज़े से सोएंगी..."दिशा ने अपनी राय जाहिर की..
"हम भी यहीं सो जाते हैं ना दीदी... अभी तो बहुत बातें भी करेंगे.. अमित और गौरी दी की लड़ाई भी देखनी है..!" वाणी की आखरी लाइन से शरारत भले ही झलक रही हो.. पर उसकी आँखों के भाव मनु से वियोग ना सह सकने की तड़प बयान कर रहे थे...
"तुझे पता भी है.. 11:30 हो गये हैं.. सुबह उठ कर ही बातें करना अब.. देख लो गौरी.. कितने मज़े ले रहे हैं लोग.. तुम दोनो की लड़ाई के!"

गौरी भले ही उपर से अमित से चिडने का दिखावा कर रही हो.. पर अमित ने उसके पहले असफल प्यार की याद ताज़ा करा दी थी.. कुच्छ पलों के दरमियाँ ही उसको अमित में अपनापन सा झलकने लगा था.. नौकझौंक भी तो अपनो में ही होती है.. फिर अमित की आँखों में उसको अपने लिए काफ़ी आकर्षण देखा था.. सुंदर सजीला तो वो था ही.. हाज़िर जवाबी भी कमाल की थी.. और बेबाकी के तो क्या कहने.. गौरी उसकी उस बात को कैसे भूल सकती थी जो उसने उसके कानो में कही थी," तुम बड़ी सेक्सी हो..!" और फिर जहाँ पर उसने हाथ मारा था.. उसकी तो जान ही निकल गयी होती.. उस सुखद अनुभूति को याद करके रह रह कर उसकी जांघों के बीच उफान आ रहा था..," पर दिशा.. मुझे लगता है हमें भी अंदर ही सो जाना चाहिए.. रात को बारिश फिर आ सकती है.. बेवजह नींद खराब होगी.."

"ठीक है.. फिर बरामदे में डाल लेते हैं... ठीक है?" दिशा ऊँच नीच को समझती थी..
अब इश्स बात को काटने के लिए गौरी क्या तर्क लाती...," ठीक है.. पर कुच्छ देर तक तो टी.वी. देख ही लेते हैं..."
"जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.. मैं तो सोने जा रही हूँ.. जब नींद आए तब आकर सो जाना.. बिस्तेर लगा देती हूँ" कहकर दिशा बाहर निकल गयी....

मनु और अमित बेड पर जाकर पसार गये.. वाणी की खुशी का कोई ठिकाना नही था.. अब वो कम से कम कुच्छ समय और मनु का प्यारा चेहरा देख सकती है.. वो सामने वाले सोफे पर जाकर बैठ गयी.. टी.वी. देखना तो एक बहाना था.. रह रह कर उनकी नज़रें मिलती और दिल झंझणा उठते.. आँखों ही आँखों में वो बातें भी हो रही थी.. जिस डर में दिशा ने चारपाई बाहर डाली थी!

"अब बताओ.. तुमने ऐसा क्यूँ बोला था!" गौरी ने अमित को फिर ललकारा.. वजह सिर्फ़ एक ही
थी.. उस'से बातें करने में गौरी को मज़ा आ रहा था...
"क्या बोला था?" अमित ने ऐसा नाटक किया मानो वा सब कुच्छ भूल चुका हो..
"यही की तुम्हारा हाथ पकड़ने के लिए मुझ जैसी लड़की को काई जनम लग जाएँगे..!" गौरी की आँखों में एक आग्रह सा था.. की कड़वा जवाब ना दे.. वो इश्स जुंग को ख़तम करके एक नयी शुरुआत करना चाहती थी.
"मैने ऐसा तो नही बोला?" अमित भी और ज़्यादा बात बढ़ाने के मूड में नही था..
"जो कुच्छ भी बोला था.. पर मतलब तो यही था ना?"
मनु और वाणी को उनकी बहस से अब कोई मतलब नही था.. वो तो अब एक दूसरे में ही खोए हुए थे....
"कुच्छ भी कहो.. पर सच वो था जो मैने तुमसे रास्ते में कहा था.. वो भी तुम्हे बुरा लगा...!" अमित ने करवट लेकर उसकी और चेहरा कर लिया...
"गौरी एक पल के लिए शर्मा सी गयी.. अपने गुलाबी होंठों पर जीभ घुमाई और फिर नज़रें मिलते हुए बोली," पर तुमने हाथ क्यूँ मारा.?"
"कहाँ?" अमित शरारती ढंग से मुस्कुराया..
"तुम सब जानते हो?"
"तुमने भी तो घूँसा मारा था!"
"पर मैने तो पेट में मारा था.. हूल्का सा!" गौरी ने उस पल को याद करके अपनी टाँगें भींच ली... जब अमित ने मजबूती से उसके शरीर के सबसे मस्त हिस्से को एक पल के लिए मजबूती से जाकड़ लिया था..
"आगे पीछे में क्या फ़र्क़ है..?"
"अच्च्छा जी.. कुच्छ फ़र्क़ ही नही है..!" गौरी ने उस'से नज़रें मिलाई पर लज्जावाश तुरंत ही नज़रें हटा ली.. उसके शारीरिक हाव भाव से अमित को पता चल चुका था की वो क्या चाहती है...
"बहुत हो गया.. अब दोस्ती कर लेते हैं.." अमित ने अपना हाथ लेटे लेटे ही उसकी ओर फैला दिया..
"दोस्ती का मतलब समझते हो..?" गौरी की बेकरारी बढ़ती जा रही थी..
"हां.. लड़कियों के मामले में.. गन्ना उखाड़ो और खेत से बाहर!"
"मतलब?" गौरी सच में ही इश्स देसी मुहावरे का मतलब समझ नही पाई...
"कुच्छ नही बस ऐसे ही बोल दिया.. जाओ अब सोने दो!" अमित जान'ता था.. अब वो बात को बीच में नही छ्चोड़ेगी...
"सच में नींद आ रही है क्या?" गौरी का अच्च्छा सा नही लगा..," क्या मैं बहुत बोरिंग हूँ?"
"मैने बताया तो था.. तुम कैसी हो?"

"अब आ भी जाओ.. वाणी.. सुबह उठना भी है.." बाहर से दिशा की आवाज़ आई..
गौरी मायूस होकर उठ गयी.. जाने कैसी ऊटपटांग बातें करती रही.. क्यूँ नही कह पाई अपने दिल की बात.. की.. उसको अमित बहुत अच्च्छा लगा...
बाहर निकलते हुए अचानक वह कुच्छ सोच कर वापस मूडी और अपना हाथ बढ़ा दिया..," दोस्ती?"
अमित ने लपक कर उसका हाथ पकड़ लिया..,"पक्की!"
"एक बात कहूँ?.. मुझे वो बात बुरी नही लगी थी.." कहते हुए गौरी की आँखें लज्जावाश अपने आप ही झुक गयी..
"कौनसी बात?" अमित ने अंजान बनते हुए कहा..
"वही.. जो तुमने रास्ते में कही थी.. और तुम भी वैसे ही हो!" कहकर गौरी ने अपना हाथ झटक लिया और बाहर भाग गयी.. शर्माकर!

वाणी ने अपनी आँखें बंद करके सोने की आक्टिंग कर ली.. उसको पता था.. की सोती हुई 'छुटकी' को दीदी कभी तंग नही करेगी.. वरना उसका मनु से दूर होना तय था.. रात भर के लिए....

"वाणी.. जल्दी बाहर आ जाओ.. सोना नही है क्या?" दिशा ने एक बार फिर पुकारा..
"ये तो सोफे पर ही पसारकार सो गयी.." मनु ने अपनी आवाज़ तेज़ रखी ताकि उसकी झूठ पकड़ी ना जाए..

"ये भी ना.." दिशा उठकर अंदर आ गयी," वाणी.. वाणी!.. उठ रही है या पानी डालूं?" दिशा ने वाणी को पकड़ कर हिलाया..

पर वाणी तो प्रेमसागर में डुबकी लगा रही थी.. पानी की कैसी धमकी.. वो हिली तक नही..

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