Saturday, 18 October 2014

masti ki pathsala - 51

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-51
 जिन कपड़ों को वापस पाने की खातिर वो इतना रोई थी.. इतना गिड़गिडाई थी.. उनकी दुर्गति पूच्छने वाला अब कोई नही था.. दोनो के कपड़े यहाँ वहाँ कमरे में बिखरे पड़े थे..
चंचल ने कामिनी की छ्होटी छ्होटी चुचियों को मुँह में दबाया और उसकी गांद की दरार में अपनी उंगलियाँ घुमाने लगी.. कामिनी आनंद के मारे रह रह कर उच्छल रही थी.. आँखें बंद करके ज़्यादा से ज़्यादा चूची उसके मुँह में घुसेड़ने का प्रयास कर रही थी..
"मुझे कौन करेगा?" चंचल ने अचानक हट'ते हुए गुस्से से कहा..
"क्या?" कामिनी समझी नही...
"वही जो मैं कर रही हूँ बेवकूफ़.. मेरी गांद को सहला.. और ये ले.. अब मेरी चूची को तू चूस.."
बड़ा ही अनोहारी दृश्या था.. पास ही बेड पर सुरेश सोया पड़ा था.. और अब तक इज़्ज़त बचाने की जद्दोजहद से जूझ रही लड़कियाँ एक दूसरी को सांत्वना देने की होड़ में भिड़ी हुई थी.. एक दूसरी की 'इज़्ज़त' को दोनो हाथों से.. और होंठों से चूम रही थी.. चूस रही थी.. फाड़ रही थी.. नोच रही थी और लूट रही थी....
कुच्छ देर बाद चंचल ने कामिनी को ज़मीन पर लिटा और उल्टी तरफ होकर उसके उपर चढ़ गयी.. कामिनी की चूत पड़ी प्यारी थी.. हल्क हल्क बालों वाली.. छ्होटी सी.. चंचल ने अपनी जीभ निकाली और कामिनी की चूत की पतली सी दरार को अपनी उंगलियों से चौड़ा करके उसमें अपनी जीभ घुसेड दी.. कामिनी आनंद के मारे लाल हो उठी..," आआआआअहह मम्मी मैं मरी..."
"अकेली क्यूँ मर रही है रंडी? मेरी भी मार ना.. तेरे मुँह पर रखी है मेरी चूत.. चाट इसको.. उंगली घुसा के पेल.." चंचल की वासना ने रौद्रा रूप धारण कर लिया था.. उसकी साँसे उखड़ी हुई थी.. पर हौंसले बुलंद थे..
कामिनी को अब बारबार सीखने की ज़रूरत नही पड़ी.. बस जैसे जैसे चंचल उसको कर रही थी.. वैसे वैसे ही कामिनी भी करती जा रही थी.. दोनो अब तेज तेज आवाज़ें निकाल रही थी...

अपने भाई को घर बुलाने आया राकेश काफ़ी दीनो के बाद इतना प्यारा मादक संगीत सुनकर भाव विभोर हो गया..
दरवाजे की दरार से झाँक कर देखने की उसने कोशिश की पर सफल ना हुआ.. शब्र का बाँध टूट ही गया तो उसने एक झटके के साथ दरवाजा खोल दिया..
शुरू में लड़कियाँ चौंकी नही.. उनको राज के आने की उम्मीद थी.. पर राकेश को देखकर उनकी घिग्गी बाँध गयी..," वववो.. म्‍म्माइन.... हूंम्म्म.."
"ष्ह.. कुच्छ मत बोलो.. ऐसे ही लेटी रहो.. शोर मचाया तो दोनो को ऐसे ही घसीट'ता गाँव ले जाउन्गा.." और एक दूसरी ब्लॅकमेलिंग शुरू हो गयी.. पर इश्स वक़्त उन्न दोनो को इसकी ही सबसे अधिक ज़रूरत थी...
"इस्सको कहते हैं बिल्ली के भागों छ्चीका टूटना.." राकेश को पका पकाया माल खाने को मिल गया..
"ले मेरा लंड चूस कामिनी.. बहुत दीनो से सूखा ही घूम रहा हूँ.." राकेश ने भी बिना देर किए अपने कपड़े उतार फैंके...
राकेश का लंड मुँह में लेने में कामिनी को ज़्यादा मस्सकत नही करनी पड़ी.. थोड़ी ही कोशिश के बाद राकेश का आधा लंड कामिनी के गले में ठोकरे मार रहा था...
"ये चिकनी चूत कौन है.. पहचान में नही आई..." राकेश ने कामिनी के मुँह के उपर रखी चंचल की चूत में उंगली घुसेड दी.. उंगली घुसेड़ने का तरीका इतना जंगली था की चंचल बिलख पड़ी..," ओई माआ.."
"मा को क्यूँ पुकार रही है.. उसकी भी मर्वानी है क्या..!" मस्ती से भरे राकेश ने 'पुच्छ' की आवाज़ के साथ अपना लंड कामिनी के होंठों से जुदा किया और चंचल की थूक और रस से चिकनी हो चुकी चूत को दो उंगलियों से खोलकर वहाँ टीका दिया..
"कामिनी.. इसकी गांद को दोनो हाथों से कसकर पकड़ ले.. नही तो ये बिलबिलाएगी.. पहली बार लग रहा है.. आई है किसी लंड के सामने.."
कामिनी ने वैसा ही किया.. और वैसा ही हुआ जैसा राकेश ने कहा था.. चंचल चिंहूक उठी.. हालाँकि बिलबिलने वाली बात नही थी... पर अभी सूपड़ा ही अंदर गया था.....
जब एक के साथ एक फ्री मिल रही हो तो कोई दोनो के ही मज़े लेगा.. एक के क्यूँ.. सूपदे को चिकनी कुँवारी चूत का स्वाद चखाकर राकेश ने 'अपना' वापस खींच लिया और फिर से उसको कामिनी ने मुँह पर रख दिया.. कामिनी को इश्स मादक द्रिव्या को चटकार सॉफ करने में चाँद सेकेंड ही लगे.. राकेश ने ऐसा अनोखा मज़ा कभीलिया नही था सो उच्छल उच्छल कर दोनो के मज़े ले रहा था...
एक बार फिर सूपदे समेत लंड आधा चूत द्वार के पार हो गया.. आनंद की पराकास्था में अब चंचल खुद भी धक्के लगा रही थी.. हानफते हुए.. पीछे की ओर..
और चंचल ने वासना के सागर में अंतिम साँस ली.. इसी एक पल में उसने अपनी जीभ गोल करके कामिनी की चूत में घुसा दी और निढाल हो गयी..
राकेश ने जब अपना लंड बाहर निकाला तो वह पहले से ज़्यादा खड़ा, पहले से ज़्यादा चिकना और पहले से ज़्यादा ख़तरनाक लग रहा था...

पाला बदल कर वह चंचल के मुँह की और जा पहुँचा.. कामिनी की चूत की और.. जो उसका बेशबरी से इंतज़ार कर रही थी.. फूल कर मोटी हो चुकीचूत की दरार भी भी अब पहले से चौड़ी लग रही थी.. पर योनि द्वार उतना ही था.. पेन्सिल की नोक भी घुसना असमभव लगता था..
पर इरादे मजबूत थे..," कसकर टाँगें पकड़ना डार्लिंग.. यहाँ मामला मुश्किल लगता है....
"कर दो.. मैने पकड़ रखी हैं.." चंचल कामिनी को ऐसे कैसे जाने देती.. टाँगों को मजबूती से दबाते हुए उन्हे और चौड़ा किया और सुपाडे को अपने होंठों से चूमा.. मानो विजय सूचक तिलक कर रही हो लंड के माथे पर..
च्छेद पर हूल्का सा दबाव बनते ही कामिनी बिलबिला उठी.. लंड को इधर उधर का रास्ता दिखाने की कोशिश के साथ ही कामिनी ने इस जानलेवा प्रहार से बचना चाहा.. पर..
अचानक ऐसी आवाज़ हुई जैसे कोई वाल्व फट गयी हो.. और खून की एक पतली सी धारा राकेश के लंड को वापस खींचने के साथ ही बह निकली..," वाह.. इसको कहते हैं असली कुँवारा माल.. क्या सील टूटी है आज.." राकेश को कामिनी की छट पटाहट से कोई लेना देना नही था... तो बस रोंडता ही चला गया.. घुसता ही चला गया..
कामिनी के आँसू किसी ने पौन्छे नही.. अपने आप ही रुके जब उसको दर्द के असहनीया अहसास के साथ आनंद की मिठास की खुश्बू आने लगी.. फिर ये तो होता ही है.. हाए, आह में बदल जाती है.. वही अब तक कुँवारी कामिनी के साथ भी हो रहा था...
राकेश को अब खूब सहयोग सहयोग दोनो तरफ से मिल रहा था.. जब भी उसका लंड हाँफने के लिए बाहर निकालता.. चंचल के होंठ उसको अपनी गिरफ़्त में ले लेते.. और चूम चाट कर दोबारा तरोताजा करके.. उसके लिए मिन्नटें कर रही कामिनी की चूत में वापस धकेल देते.. कामिनी भी ज़्यादा देर ना ठहरी और एक बार फिर से छ्चोड़ देने के लिए गिड़गिदाने लगी..
अब राकेश का भी वक़्त आ गया था.. उसके बाहर निकलते ही ज्यूँ ही इश्स बार चंचल ने उसको लपका.. राकेश ने लंड उसके मुँह में ही कसकर दबा लिया.. चंचल च्चटपटाने लगी.. लंड उसके गले में फँसा हुआ था..
और वीरया की एक गढ़ी धार चंचल के गले में उतरती चली गयी.. बिना स्वाद का अहसास कराए...

कुच्छ देर बाद जब सब कपड़े पहन कर खड़े हुए तो राकेश ने हंसते हुए कहा," इश्स मूसलचंद को कहाँ फँस गयी थी तुम.. इश्स'से तो 2-2 बच्चों वाली भी डरती हैं.. अगर ये कर देता तो यहाँ से सीधे हॉस्पिटल ही जाती तुम....

खैर जो हुआ.. अच्च्छा ही हुआ!!!!!
गर्ल्स स्कूल पार्ट --34


मोटी सी एक करीब 40 साल की औरत गुस्से से तमतमाति हुई अपने घर से बाहर निकली
"तुम लफंगों को शरम नही आती... भला ये भी कोई तरीका है?"
"सीसी..क्या हुआ आंटी जी?" राज ने जब उस औरत के शब्डबानो को खुद की और आते देखा तो विचलित सा हो गया..
"हुउऊउ.. क्या हो गया आंटी जी?" आंटी जी ने मुँह फुलाते हुए राज की नकल उतारी," यहाँ हमारे घर के बाहर बैठहे तुम्हे आधा घंटा हो गया है.. घर में कोई काम नही है क्या? बेशार्मों की तरह दूसरों के घरों में झाँकते हो....."
"पर.... पर मैने तो कुच्छ नही किया आंटी जी.. आप खामखाँ नाराज़ हो रही हैं..." राज को कुच्छ समझ ना आया...
"तुम चुपचाप यहाँ से दफ़ा होते हो की नही.. अब अगर यहाँ खड़े रहे तो मुझसे बुरा कोई ना होगा... मेरे पति थानेदार हैं.. एक फोन करूँगी ना..!" औरत का गुस्सा शांत होने का नाम नही ले रहा था...
"आ..आप क्या बकवास कर रही हैं... क्या मैं अपने रूम के बाहर भी नही बैठ सकता...!" राज के सब्र का बाँध भी टूट'ता जा रहा था...
सुनकर औरत एक पल के लिए सकपका गयी," तुम्हारा कमरा?"
"हाँ.. कल ही किराए पर लिया है...!" राज ने मुँह फूला लिया...
"तो कमरा ही किराए पर लिया होगा ना.. पूरी कॉलोनी तो नही खरीद ली.. यहाँ बाहर आकर इश्स... नेकर में बैठ गये... कमरा लिया है तो कमरे में ही रहा करो.. यहाँ बेहन बेटियाँ भी रहती हैं.. समझे" हालाँकि औरत को अपनी ग़लती का अहसास हो गया था.. उसने तो सोचा था की कहीं से कोई लफंगा आकर उसकी बेटी पर लाइन मार रहा है.. पर थानेदारनी 'सॉरी' कैसे बोलती...
राज ने गुस्से से पैर पटका और अंदर चला गया..

"यार.. ये कहाँ पागल लोगों के बीच फँसा दिया यार.. ये कोई जगह है.. अब बाहर भी नही बैठ सकते.. हुउन्ह!" राज ने अंदर लेते हुए वीरेंदर को अपना बरमूडा दिखाते हुए कहा..
"क्या हुआ?" वीरेंद्र ने चौंकते हुए कहा...
"हुआ क्या यार.. ये सामने वाली आंटी......." राज ने सारा किस्सा वीरेंद्र को सुना दिया....
"हाहहः... हाहहाहा... हाहहाहा.... तू उसके सामने ऐसे चला गया... " कहकर वीरेंदर पेट पकड़ कर हँसने लगा...
"अब इसमें हँसने वाली क्या बात है..." राज का पहले से ही खराब मूड और खराब हो गया...
"बुरा मत मान'ना यार.. पर इश्स औरत से सम्भल कर रहना.... पर उसकी भी क्या ग़लती हो.. जिसकी पटाखे जैसी 2-2 जवान बेटियाँ हों.. उसका ऐसा व्यवहार लाजिमी ही है.. दोनो मस्त माल हैं यार.. जुड़वा हैं... देखते ही बेहोश ना हो जाओ तो कहना.. एक दम मक्खन के माफिक बदन है.. तू देखना उनको.. पर टोकने की गुस्ताख़ी मत करना.. और आइन्दा ऐसे बाहर मत बैठना कभी..." वीरेंद्र ने सीरीयस होते हुए कहा...
"पर यार.. बेटियाँ हैं तो हैं.. इसमें हमारी नाक में दम कर देना.. ये कहाँ जायज़ है..." राज को बात हजम नही हुई...

"कह तो तू ही ठीक रहा है.. पर एक तो थानेदारनी की चौधर.. दूसरा शक्की मिज़ाज.. बाप भी ऐसा ही है... हालत यहाँ तक है की लड़कियों को स्कूल लाने ले जाने तक के लिए एक बुड्ढे सिपाही की ड्यूटी लगा रखी है.. चल छ्चोड़.. आ खाना खाकर आते हैं....


"क्या हुआ मम्मी..?" बाहर शोर शराबा सुनकर मुम्मी के घर के अंदर आते ही प्रिया ने सवाल किया...
"क्या बताऊं..? आज कल के लड़के भी इतने लुच्छे लफंगे हैं... तेरे पापा देख लेते तो उसकी तो खाल ही खींच लेते.. और ज़ुबान इतनी चलाता है की बस.. हे राम!"
"पर हुआ क्या मम्मी.. कौन था?" प्रिया को जानने की जिगयसा हो उठी..
"अरी.. यहीं.. सामने वाले मकान में रूम लिया होगा.. बाहर बैठा था.. कच्च्छा पहने.. चल तू पढ़ाई कर ले.. छुट्टियों का काम रहता होगा.. देख रिया पढ़ रही है की नही...
"क्या..???? कच्च्छा पहनकर.." प्रिया ने अपने मुँह पर हाथ रखकर अपनी शरम छिपाइ.. बड़ा बदतमीज़ होगा कोई.."
"चल तू अपना काम कर ले.. तेरे पापा आते ही होंगे... उनको मत बताना.. याद है ना.. पिच्छले लड़के को कितना मारा था....

राज की आँखों में कल गाँव वाला मंज़र जीवंत हो उठा.. वो लड़की कैसे अपनी देह को छिपाने की कोशिश कर रही थी.. ना चाहकर भी रह रह कर राज का ध्यान यहाँ वहाँ से छलक रही छातियों पर जा रहा था.. नंगा बदन देख कर कैसे उसके दिलो दिमाग़ में उथल पुथल सी होने लगी थी.. और जब वो अचानक अपने आपको मोबाइल में क़ैद किए जाने पर खड़ी हुई थी... अफ.. कैसे मैस्तियों का जाम सा उसकी नशों को नशे में तर कर गेया था.. भगवान ने भी क्या चीज़ बनाई है.. 'नारी'.. अगर वा वहाँ से बाहर नही जाता तो शायद ज़ज्बात इंसानियत पर हावी हो जाते.. और वह भी अपनी पौरुष्टा को उस लड़की के 'खून' में रंग चुका होता.. उसका कुन्नवारापन भंग हो गया होता...
राज ने अभी तक की अपनी पढ़ाई हिंदू बाय्स स्कूल, सोनीपत में होस्टल में की थी.. इसीलिए लड़कियों के 'सुरूर' से अभी तक अंजान ही था.. पर अब 12थ में उसके दोस्त वीरेंदर ने उसको रोहतक बुला लिया था.. घर वाले भी मान गये.. क्यूंकी होस्टल से कोचैंग क्लासस के लिए बाहर जाने की अनुमति नही थी.. यहाँ का स्कूल को-एड था..

"कहाँ खो गये भाई?" वीरेंद्र ने राज के कंधे को दबाया...
"उउउन्ह.. कहीं नही.. बस ऐसे ही.. यार में कभी लड़कियों के साथ नही पढ़ा हूँ.. हम तो वहाँ खुल कर हंसते खेलते थे.. यहाँ पर तो बड़ी बंदिशें होंगी...." राज ने अपनी किताब निकालते हुए पूचछा....
"अरे यार.. तू भी ना.. खामखाँ की टेन्षन क्यूँ ले रहा है.. को-एड के अपने ही मज़े होते हैं... पढ़ने में भी मज़ा आता है... और.."
"यार.. वो देख.. सामने वाले घर से कोई झाँक रहा है.. खिड़की में से.." राज ने वीरेंद्र को बीच में ही रोक दिया....
"कौन?.. अरे उधर मत देख यार.. नज़रों में चढ़ गये तो बेवजह टेन्षन हो जाएगी.. इधर आ जा... लगता है ये रूम छोड़ना ही पड़ेगा.." वीरेंदर ने राज को खींचने की कोशिश की...
पर राज तो जैसे जड़ सा हो गया था.. सम्मोहित सा.. सामने वाली खिड़की से उन्ही की और देख रहा चेहरा इश्स कदर हसीन था की राज वहाँ से अपनी नज़रें ना हटा पाया.. एक दम ताजे गुलाब जैसी नज़ाकत उस चेहरे से टपक रही थी.. रसीलापन इतना की फलों का राजा 'आम' भी शर्मा जाए.. आँखों में तूफान को भी अपने अंदर समा लेने की तड़प थी.. होंठ ऐसे की जैसे गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगा रखी हो...
"आई मम्मी!" कहकर वह नीचे भाग गयी..
आवाज़ भी इश्स कदर सुरीली थी जैसे सातों सुर स्वारबद्ध होकर अपना जादू बिखेरने लगे हों.. वह करीब 10 सेकेंड खिड़की पर रही.. इतने में ही जाने सुंदरता के जाने कितने अलंकरण राज ने अपने दिल से उसको दे दिए..
"यह लड़की तो बड़ी प्यारी है यार..!" राज ने खिड़की पर से नज़र हटा'ते हुए कहा. उसकी की आँखों से सौंड्राया दर्शन की तृप्ति झलक रही थी..
"तो मैं क्या दोपहर को बीन बजा रहा था.. बताया तो था.. दोनो बहनें लाखों में एक हैं..." वीरेंदर किताब उठा कर पढ़ने बैठ गया..
"ये कौनसी थी..? बड़े वाली की छ्होटी.."
"यार.. दोनो जुड़वा हैं.. मैं तो आज तक पहचान नही पाया हूँ.. तू पहचान सके तो पहचान लेना.. पर यहाँ नही.. कल स्कूल में.. अब पढ़ने दे..!" वीरेंदर बोला..
"सच... क्या ये हमारे ही स्कूल में प्पढ़ती हैं.. यकीन नही होता यार.. यकीन नही होता..."
"अरे ओ भाई.. माफ़ कर.. ये लड़किया दूर से ही प्यारी दिखाई देती हैं.. तू कभी साथ रहा नही ना.. धीरे धीरे सब समझ आ जाएगा.. कम से कम इनके चक्कर में मत पड़ना.. लेने के देने पड़ जाएँगे..."
"मैं तो बस ऐसे ही पूच्छ रहा था यार..." राज ने मायूस होते हुए जवाब दिया..
"चल ठीक है.. आजा.. अब खिड़की बंद कर... और पढ़ ले!"

और उस रात राज पढ़ ना पाया.. दिमाग़ में खिड़की में खड़ी होकर झाँक रही वही दो आँखें घूमती रही.... खुमारी भर देने वाली आँखें....

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