Thursday, 16 October 2014

masti ki pathsala - 50

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-50
 "वो लड़का तुम्हारे घर में किसके पास आता था.. तुम्हारी बेहन के.. या तुम्हारी मा के..?" सुरेश शायद अब भी सीधे मतलब की बात पर आने से हिचक रहा था..
"किसी के पास नही आता था.. वो तो चोरी करने आया था.. हमारे घर.." कामिनी ने नज़रें चुराते हुए कहा..
"तू मुझे चूतिया समझती है क्या?" सुरेश ने बालों के नीचे उसकी गर्दन में हाथ फेरा... कामुकता की अंजनी सी तरंग एक दम से कामिनी के पूरे बदन में दौड़ गयी.. संभवतया सर्वप्रथम!
चंचल ने अपने आपको एक कोने में दुब्का लिया था.. शर्म से और अनहोनी के डर से...
"बुलाऊं अभी फोने करके.. गाँव वालों को.. ?" सुरेश ने बंदर घुड़की दी...
"मेरी बेहन के पास..." चंचल के आगे इश्स स्वीकारोक्ति से लज्जित सी हो गयी कामिनी अपने दोनो हाथ आगे बँधे सिर झुकाए खड़ी थी..
"रहने दो ना यार.. बहुत हो गया.. अब जाने दो बेचारियों को.." राज से उनके आँसू देखे नही जा रहे थे...
"तुम बीच में मत बोलो राज.. तुम्हे नही पता.. वो लड़का मेरा गहरा दोस्त था.. आज मौका मिला है मुझे.. कुच्छ साबित करने का.. मैं तुम्हे बाद में समझा दूँगा..."
"पर यार.. कम से कम उस बेचारी के कपड़े तो दे दो.. उसका क्या कुसूर है..?" इन्ही अवसरों पर पहचान होती है.. इंसान की.. और हैवान की.. मर्द तो सभी होते हैं.. राज भी था
"चलो.. दे देता हूँ.. पर याद रखना.. मैने फोटो खींच ली हैं.. ज़्यादा नखरे किए तो.. समझ गयी ना.." कहते हुए सुरेश ने उसकी और कपड़े उच्छल दिए..
चंचल की नज़रों में राज के लिए अतः क्रितग्यता झलक रही थी.. जाने कैसे वह बदला चुका पाएगी....
सुरेश फिर से कामिनी की और घूम गया," वहाँ आ जाओ दोनो..." और कहकर दीवार के साथ लगे फोल्डिंग पर बैठ गया.. दोनो चुपचाप जाकर उसके सामने खड़ी हो गयी..
"मैं बाहर बैठता हूँ यार.. तू कर ले अपनी इन्वेस्टिगेशन.. जल्दी जाने देना यार.." कहकर राज बाहर निकल गया...
"हां तो किसके पास आता था सन्नी.." सुरेश फिर से टॉपिक पर आ गया..
".... बेहन!" कामिनी ने हौले से बुदबुडाया.. इश्स वक़्त चंचल को इश्स बात पर चौंकने से ज़्यादा अपनी जान के लाले पड़े हुए थे..
"क्यूँ आता था..?"
"पता नही बाबूजी.. हमें जाने दो ना प्लीज़.. मम्मी बहुत मारेंगी.." कामिनी ने गिडगीडा कर एक आख़िरी कोशिश की.. पिच्छा छुड़ाने की..
सुरेश ने पास पड़ी एक लुंबी सी च्छड़ी उठाई और उसकी नोक को कामिनी के गले पर रख दिया.. फिर धीरे धीरे उसको उसकी चुचियों के उपर से लहराता हुआ उसके पाते और फिर जांघों पर जाकर रोक दिया," नही पता..?"
"ज्जई.. गंदा काम करने....... आता था.." बिल्कुल सही जगह के करीब च्छड़ी रखने से उत्तेजना की जो लहर कामिनी के बदन में उपजी.. उसने सवाल का जवाब देना थोड़ा आसान कर दिया..
"क्या गंदा काम करने...? सीधे जवाब नही दोगि तो मैं सवाल पूच्छना बंद करके फोन घुमा दूँगा..." सुरेश इश्स हथियार को अचूक मान रहा था.. और बदक़िस्मती ये की.. लड़कियाँ भी!
"जी.. वो कपड़े निकाल कर...." आगे कामिनी बोलने की हिम्मत ना जुटा पाई....
"जैसे अभी तुम निकाल रही थी.. है ना..!" सुरेश ने फिर से उनको याद दिलाया की उनको उसने क्या करते पकड़ा था...
"नही बाबू जी.. हम तो बस... बदल रहे थे..." आगे कामिनी का बोल अटक गया.. सुरेश ने च्छड़ी का दबाव उसकी जांघों के बीच बढ़ा दिया था.. चुलबुलाहट सी हुई.. कामिनी के बदन में.. और वो पिछे हट गयी..
"वहीं खड़ी रहो.. हिलो मत.. आगे आओ.. क्या कह रही थी तुम..?"
"कामिनी ने अक्षरष: सुरेश की आग्या का पालन किया.. वो आगे आ गयी.. च्छड़ी उसकी सलवार और पॅंटी पर अपना दबाव बढाने लगी...," जी.. हम तो बस कपड़े बदल रहे थे...
"तो वो क्या करते थे.. कपड़े निकाल कर.. बोलो..?" सुरेश च्छड़ी को वहीं पर टिकाए घुमा रहा था.. कामिनी को अजीब सा अहसास हो रहा था.. उसकी पॅंटी के अंदर.. पहली बार.. चीटियाँ सी रैंग रही थी.. और लग रहा था..च्छड़ी में से वो चीटियाँ निकल निकल कर उसके 'वहाँ' से उसके सारे शरीर में फैल रही हैं...
"ज्जई.. वो.. प्यार करते थे.." जाने कहाँ से कामिनी ने सुना था.. ' इसे प्यार कहते हैं..
"अच्च्छा.. और कैसे करते हैं प्यार..?" सुरेश के 'औजार' को शायद अहसास हो गया था की उसका इस्तेमाल होने वाला है.. रह रह कर वो पयज़ामे में फुनफना रहा था.. और इश्स फंफनहट से हुई बेचैनी चंचल को अपने शरीर में भी महसूस होने लगी थी..
"ज्जई... वो कपड़े निकाल कर... " कामिनी फिर अटक गयी..
"हां हां.. बोलो.. कपड़े निकाल कर.. क्या करते थे बोलो!" सुरेश ने उकसाया..
"जी.... वो.. सू.. सू.. में.." लगता था जैसे किसी ने कामिनी की ज़ुबान को बाँध रखा हो.. हर शब्द अटक अटक कर बाहर आ रहा था....
"आख़िरी बार पूचहता हूँ.. सीधे सीधे बता रही हो या नही.." अब सुरेश से भी ये अनोखा साक्षात्कार सहन नही हो रहा था..
" ज्जजई.. वो च.. चुदाई.. करते थे.." बोलते हुए कामिनी का अंग अंग सिहर उठा...
"अच्च्छा चुदाई करते थे.. ऐसे बोलो ना.. इसमें मुझसे शरमाने की क्या बात है.. मैने भी बहुतों की चुदाई की है.. अपने लंड से.. जब चूत में लंड डालता है तो लड़कियाँ पागल हो जाती हैं.. तुमने डलवाया है कभी लंड.." जाने क्या क्या सुरेश एक ही साँस में बोल गया था..
दोनो लड़कियाँ सिर नीचे झुकायं ज़मीन में गाड़ि जा रही थी.. शर्म के मारे..
"बताओ ना.. तुम्हे चोदा है कभी.. किसी ने... तुम्हारी चूत को फाडा है कभी..?"
चंचल का सिर ना में हिल गया.. पर कामिनी तो जैसे सुन्न हो गयी थी...
"इसका मतलब कामिनी को चोदा है.. कामिनी.. तू तो छुपि रुस्तम निकली.. तू तो सच में ही जवान है रानी.. किसने चोदा है तुझे.." सुरेश को इश्स कामुक वार्तालाप में अत्यधिक आनंद आ रहा था..
अनायास ही कामिनी के मुँह से निकल पड़ा,"मैने तो आज तक देखा भी नही बाबूजी.. देवी मैया की कसम..!" फिर ये सोचकर की क्या बोल गयी.. शरम से हाथों में अपना मुँह छिपा लिया..
"चूचूचूचु.. आज तक देखा भी नही.. आजा.. इधर आ .. दिखाता हूँ...... आती है की नही..." सुरेश ने जब धमकी सी दी तो कामिनी की हिम्मत ना रही की उसके आदेश का पालन ना करे.. वह आगे आकर उसकी टाँगों के पास खड़ी हो गयी...
"बैठ जा..." सुरेश के कहते ही वह घुटनों के बल ज़मीन पर आ गयी..
"ले..! मेरा नाडा (स्ट्रिंग टू होल्ड पयज़ामा) खोल.." सुरेश ने अपनी टाँगें चौड़ी करके अपना कुर्ता उपर उठा दिया... पयज़ामा जांघों के बीच में एक पोल की तरह उठा हुआ था..,"जल्दी खोल.." सुरेश के इश्स आदेश में उत्तेजना और अधीरता दोनो थे..
मरती क्या ना करती.. अभागन मासूम कामिनी ने नाडे को पकड़ा और आँखें बंद करके खींच लिया.. अंदर बैठा अजगर शायद इसी इंतज़ार में था.. कामिनी की आँखें बंद थी.. लेकिन चंचल जो इश्स सारे घटनाक्रम को बड़ी उत्सुकता से देखने लगी थी.. उसका कलेजा लंड का आकर देखकर मुँह को आ गया.. हैरत से उसने अपने होंठों पर हाथ रख लिया.. नही तो शायद चीख निकल जाती..
सुरेश का ध्यान चंचल की और गया.. जिस तरह की प्रतिक्रिया चंचल ने दी थी.. उस'से सपस्ट था की उसको बहकाना कामिनी के मुक़ाबले ज़्यादा आसान है..
"तुम भी इधर आकर बैठ... इसको हाथ में लो.."
चाहते हुए या ना चाहते हुए.. पर चंचल को 'उस' के करीब आने में कामिनी से कम समय लगा... आहिस्ता से डरती सी हुई चंचल ने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया और उसको एक उंगली से च्छुने लगी.. मानो चेक कर रही हो.. कहीं गरम तो नही..
"ऐसे क्या कर रही हो.. मुट्ठी में पाकड़ो ना.." सुरेश उत्तेजना के मारे अकड़ सा गया था...
और चंचल ने अपने हाथ को सीधा करके लंड पर रखा और मुट्ही बंद करने की कोशिश करने लगी.. बहुत गरम था.. बहुत ठोस था.. और बहुत मोटा भी.. मुट्ही बंद नही हुई..
चंचल बड़े गौर से 'उसको' देख रही थी.. जैसे कभी पहले ना देखा हो.. देखा भी होगा तो ऐसा नही देखा होगा.. जाने अंजाने जीभ बाहर निकाल कर उसके होंठों को तर करने लगी..
"तुम भी पाकड़ो ना.. देखो इसने पकड़ लिया है.. मज़ा आ रहा है ना" नशे और उत्तेजना में रह रह कर सुरेश की आँखें बंद हो रही थी..
कामिनी ने धीरे से पलकें खोली.. आधे से थोडे ज़्यादा लंड पर अपनी बेहन के कोमल हाथों का घेरा देखा.. और फिर तिर्छि नज़रों से सम्मोहित सी हो चुकी चंचल को देखा.. कामिनी को पता हो ना हो.. की लंड बहुत कमाल का है.. पर उसकी चूत एक नज़र देखते ही समझ गयी.. एक दम से पानी छ्चोड़ दिया.. आनंद के मारे.. एक बार फिर कामिनी ने आँखें बंद करके अपनी जांघें भीच ली..
सुरेश तो निहाल हो गया था," इसको अपने मुँह में लेकर देखो.. सच में बड़ा मज़ा आता है.. सारी लड़कियाँ लेती हैं.." सुरेश के आदेश अब प्रार्थना सी में तब्दील होते जा रहे थे..
पहल चंचल ने ही की.. अपने गुलाबी होंठ खोले और झुक कर उसके सूपदे पर रख दिए.. सुरेश आनंद के मारे सिसकार उठा..
समा ही कुच्छ ऐसा बन गया था.. डर की जगह अब उत्सुकता और आनंद ने ले ली थी.. कामिनी का हाथ अपने आप उठकर चंचल के हाथ के नीचे लंड पर जाकर जाम गया.. अब भी सूपड़ा बाहर झाँक रहा था.. दो कमसिन कलियों के पाश में बँधा हुआ..
चंचल तो अब इश्स काद्रा बदहवास हो गयी थी की अगर उसको रोका भी जाता तो शायद वह ना रुकती.. अपना हाथ नीचे सरककर उसने कामिनी के हाथ को हटाया और पूरा मुँह खोल कर सूपदे को निगल गयी.. आँखें बंद की और किसी लोलीपोप की तरह मुँह में ही चूसने लगी.. सुरेश पागल सा हो गया.. अपने हाथों को चंचल के सिर पर रखा और नीचे दबाने लगा.. पर जगह थी ह कहाँ.. और अंदर लेने के लिए..
"मुझे भी करने दो..!" और कामिनी का संयम और शर्म एक झटके में ही बिखर गये..
चंचल ने अपना मुँह हटा कर लंड को कामिनी की और घुमा दिया..
अजीब नज़ारा था.. ब्लॅकमेलिंग से शुरू हुआ खेल ग्रुप सेक्स में तब्दील हो जाएगा... खुद सुरेश को भी इतनी उम्मीद ना थी.. रह रह कर तीनों की दबी हुई सी आनंदमयी लपड चापड़ और सिसकियाँ कमरे के माहौल को गरम से गरम करती रही.. इसका पटाक्षेप तब हुआ जब सुरेश दो कलियों के बीच शुरू हुए इश्स आताम्चेट युध को सहन नही कर पाया और छ्चोड़ दिया... ढेर सारा.. दोनो के चेहरों पर गरम वीरा की बूंदे और लकीरें छप गयी.. दोनो तड़प रही थी.. लेने को.. डलवाने को!

दोनो जाने कितनी देर तक ढहीले पड़ गये लंड को उलट पलट कर सीधा करने की कॉसिश करती रही.. पर सुरेश शराब के कारण अपने होश कायम नही रख पाया था.. एक बार के ही इश्स चरमानंद ने उसको गहरी नींद में सुला दिया..
जब कामिनी ने सुरेश के खर्राटे भरने की आवाज़ को सुना तो वो मायूस होकर चंचल से बोली..," पता नही क्या हो रहा है.. मैं मर जवँगी.. कुच्छ करो.."
"जाओ.. बाहर उस दूसरे लड़के को देखकर आओ.. तब तक मैं इसका पयज़ामा उपर करती हूँ..." चंचल का भी यही हाल था..
"वो यहाँ नही है दीदी..! मैं बाहर सड़क तक देख आई.." वापस आकर कामिनी ने बदहवासी सी अपनी जांघों के बीच उंगलियों से खुरचते हुआ कहा..
"तुम एक काम करो.. कपड़े निकालो जल्दी.." चंचल के पास एक रास्ता और था..

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