मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी भाग-40
गौरी आज यूँही बाल्कनी में आ गयी थी. काफ़ी दीनो से उसकी जिंदगी में वीरानी सी छाई थी. उस रात के बाद जब राज शर्मा ने गौरी को संजय के साथ पकड़ लिया था; तब से लेकर आज तक संजय ने कभी उसका हाल जान'ने की कोशिश नही की थी... मोहब्बत की शमा दोनो के बीच जलते जलते रह गयी और गौरी के दिल में अब संजय से नफ़रत की आग ज़ोर पकड़'ने लग गयी थी.. फिर भी पहला प्यार कहते हैं भूलना आसान नही होता.. चाहकर भी गौरी संजय को भूला नही पाई थी.
गौरी के तिलिस्मि यौवन के दीदार से गाँव के लड़के आजकल वंचित ही थे.. स्कूल की छुट्टियाँ चल रही थी इसीलिए उसका बाहर निकलना कोई मजबूरी भी नही था.. ज़्यादातर टाइम वा लिविंग रूम में टी.वी. देखते हुए या फिर अपने बिस्तेर पर लेट कर कभी संजय को कोस'ने और कभी अपनी ही गद्रयि जवानी को देखकर आह भरकर संजय को याद करने में गुज़रता था..
जब तक गौरी संजय से नही मिली थी उसने भी गाँव के लड़कों को खूब तरसया था टाइट और छ्होटे कपड़ों में अपना यौवन छल्का छल्का कर... पर उसका मकसद सिर्फ़ लड़कों को अपनी और देखकर आहें भरते पाकर आत्म्सन्तुस्ति पाना होता था.. संजय पर वो सच में मर मिटी थी और उसके लिए अपना 19 सालों से कुँवारा ही संभाल कर रखा जिस्म बिना कपड़ों के उसके आगोश में समर्पित करने को तैयार भी हो गयी थी.. कितनी बड़ी बड़ी बातें कही थी संजय ने.. पर सुनील से सामने से दूम दबा कर ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सिर से सींग....
अंजलि भी गौरी से ज़्यादा अपनी प्यासी जवानी की चिंता में डूबी रहती थी.. शमशेर उसकी जिंदगी में जो हुलचल मचा कर गया था वो अब तक उसी भंवर में फँसी हुई थी... उसके काम चलाऊ पातिदेव की अब तक जमानत ना हुई थी और राज शर्मा भी
अब पूरा पत्निवरता बन चुका था.. ऐसे में 28 वें साल में चल रही अंजलि की तड़प भी जायज़ ही थी.. आख़िर उसने काम सुख लिया ही कितना था...
खैर उन्न बातों को अब 2 महीने से उपर हो चला था और कुच्छ ही दिन बाद स्कूल भी खुलने वाले थे... आज सुबह सुबह अपने दिल को समझा बुझा कर गौरी बाल्कनी में आकर खड़ी हो गयी... शायद एक नयी तलाश में...
गौरी उस वक़्त बाल्कनी में ही खड़ी थी जब शहरी से दिखने वाले 2 लड़के बाइक पर आकर स्कूल के बाहर रुके.. गौरी ने एक नज़र भर कर दोनो को गौर से देखा.. दोनो ही दिखने में बहुत स्मार्ट और सुन्दर लग रहे थे.. पीछे बैठे लड़के को देख कर गौरी को संजय की याद आ गयी.. लगभग उतने ही डील डौल वाला वो लड़का उस'से कहीं ज़्यादा स्मार्ट था.. तीखे नयन नक्स उसको शरारती लड़के के रूप में प्रचारित कर रहे थे.. हालाँकि दोनो ही लड़के गोरे चिट थे.. पर आगे वाला लड़का भोला सा और लड़कियों के माम'ले में अनाड़ी सा प्रतीत हो रहा था.. निशा रेलिंग पर हाथ रख कर उन्न'पर नज़रें गड़ाए रही.......
"अब घर किस'से पूच्छे यार अमित; यहाँ बाहर कोई नज़र ही नही आ रहा.. कैसा गाँव है..." आगे बैठे लड़के ने बाइक से उतर'ते हुए पिछे वाले लड़के से कहा.. उसका नाम अमित था.
"अबे, शराफ़त के चस्में उतार कर देखेगा तभी तो कोई दिखेगा.. वो देख.. क्या आइटम है यार..!" अमित ने बाल्कनी में खड़ी गौरी की और उंगली उठा कर कहा!
"तुझे तो और कोई काम है ही नही.. जहाँ देखी वहीं शुरू...! किसी घर में चल कर पूछ्ते हैं.." दूसरे लड़के ने अमित को प्यार से झिड़का..
"अबे देवदास की औलाद.. भूल गया खुद किस लिए आया है यहाँ गाँव में.... तेरे साथ मुझे भी खींच लाया.. अब टाइम पास तो मुझे भी चाहिए ना.." अमित की इश्स बात ने दूसरे लड़के को निरुत्तर कर दिया...
"ज़्यादा बकवास मत कर.. वहीं पूच्छना है तो जा.. अकेला ही पूच्छ कर आ.. मैं नही जाउन्गा!"
"देख ले बेटा! मैं तेरे लिए शहर से गाँव आ सकता हूँ और तू मेरे लिए 2 कदम भी नही चल सकता..." अमित ने गौरी पर नज़रें गड़ाए कहा..," देख ली तेरी दोस्ती.. ठीक है बेटा! मैं ही जाता हूँ.."
अमित को अपनी ओर मुस्कुराते हुए आते देख गौरी रेलिंग पर झुक गयी.. लो कट टी-शर्ट में से उसकी दूधियाँ चूचियाँ बाहर सिर निकालने लगी..
"हाई ब्यूटिफुल!" घर के बाहर नीचे आकर खड़े हुए अमित ने गौरी की और शरारतपूर्ण ढंग से हाथ हिलाया..
गौरी बोली तो कुच्छ नही पर उसकी इश्स बेबाक हरकत पर मुस्कुराए बिना ना रह सकी.. अपनी हँसी छिपाने के लिए गौरी ने अपने चेहरे को एक हाथ से छिपा लिया और बिना कुच्छ बोले वहीं खड़ी रही...
"सही कहते हैं.. गाँव की लड़कियों का शहर की लड़कियाँ मुकाबला नही कर सकती. मैं तो गाँव में ही शादी कर्वाउन्गा!" गौरी की हँसी को रज़ामंदी मानते हुए अमित ने धीरे से उस'पर लाइन मारी...
उसकी इश्स बात पर गौरी खिलखिला कर हँसे बिना ना रह सकी... शायद उस रात के बाद गौरी पहली बार हँसी थी...," मैं गाँव की नही हूँ..!"
"ओह शिट! मैं भी यही कहने वाला था.. तुम गाँव की हो ही नही सकती.. तुम्हे देखकर ही दरअसल मेरा विचार बदला था... वैसे तुम्हारा नाम क्या है.. स्वीटी!" आँख मारते हुए अमित ने गौरी से परिचय बढ़ने की कोशिश की..
इश्स हरकत पर गौरी शर्मा गयी और अंदर भाग गयी..
"ओये.. सुन तो!.. सोणिये अड्रेस तो बताती जा एक!....."
गौरी के वापिस ना आने पर अमित अपना सा मुँह लेकर वापिस आ गया..
"कहाँ बताया घर..." दूसरे लड़के ने उत्सुकता से पूचछा..
"कहाँ बताया यार.. उसने तो अपना नाम भी नही बताया.." बॅग से लेज़ का पॅकेट निकलते हुए अमित ने कहा और बाइक की सीट पर बैठ गया..
"यार तू भी ना.. घर पूच्छने गया था या नाम पूच्छने.. "
"अबे साले.. नाम बता देती तो फिर तो कुच्छ भी बता देती.. मैने सोचा स्टेप वाइज़ चलना चाहिए... पर यार... लड़की क्या है.. कयामत है कयामत.. उपर से नीचे तक गरमा गरम.. चल उसी घर में जाकर फिर पूछ्ते हैं..."
"अब तू मेरा और ज़्यादा दिमाग़ खराब ना कर.. मैं ही पूच्छ कर आता हून कहीं..." दूसरे लड़के ने कहा और दूर एक घर के बाहर बैठे आदमी को देख कर उस ओर चल पड़ा...
गौरी आज यूँही बाल्कनी में आ गयी थी. काफ़ी दीनो से उसकी जिंदगी में वीरानी सी छाई थी. उस रात के बाद जब राज शर्मा ने गौरी को संजय के साथ पकड़ लिया था; तब से लेकर आज तक संजय ने कभी उसका हाल जान'ने की कोशिश नही की थी... मोहब्बत की शमा दोनो के बीच जलते जलते रह गयी और गौरी के दिल में अब संजय से नफ़रत की आग ज़ोर पकड़'ने लग गयी थी.. फिर भी पहला प्यार कहते हैं भूलना आसान नही होता.. चाहकर भी गौरी संजय को भूला नही पाई थी.
गौरी के तिलिस्मि यौवन के दीदार से गाँव के लड़के आजकल वंचित ही थे.. स्कूल की छुट्टियाँ चल रही थी इसीलिए उसका बाहर निकलना कोई मजबूरी भी नही था.. ज़्यादातर टाइम वा लिविंग रूम में टी.वी. देखते हुए या फिर अपने बिस्तेर पर लेट कर कभी संजय को कोस'ने और कभी अपनी ही गद्रयि जवानी को देखकर आह भरकर संजय को याद करने में गुज़रता था..
जब तक गौरी संजय से नही मिली थी उसने भी गाँव के लड़कों को खूब तरसया था टाइट और छ्होटे कपड़ों में अपना यौवन छल्का छल्का कर... पर उसका मकसद सिर्फ़ लड़कों को अपनी और देखकर आहें भरते पाकर आत्म्सन्तुस्ति पाना होता था.. संजय पर वो सच में मर मिटी थी और उसके लिए अपना 19 सालों से कुँवारा ही संभाल कर रखा जिस्म बिना कपड़ों के उसके आगोश में समर्पित करने को तैयार भी हो गयी थी.. कितनी बड़ी बड़ी बातें कही थी संजय ने.. पर सुनील से सामने से दूम दबा कर ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सिर से सींग....
अंजलि भी गौरी से ज़्यादा अपनी प्यासी जवानी की चिंता में डूबी रहती थी.. शमशेर उसकी जिंदगी में जो हुलचल मचा कर गया था वो अब तक उसी भंवर में फँसी हुई थी... उसके काम चलाऊ पातिदेव की अब तक जमानत ना हुई थी और राज शर्मा भी
अब पूरा पत्निवरता बन चुका था.. ऐसे में 28 वें साल में चल रही अंजलि की तड़प भी जायज़ ही थी.. आख़िर उसने काम सुख लिया ही कितना था...
खैर उन्न बातों को अब 2 महीने से उपर हो चला था और कुच्छ ही दिन बाद स्कूल भी खुलने वाले थे... आज सुबह सुबह अपने दिल को समझा बुझा कर गौरी बाल्कनी में आकर खड़ी हो गयी... शायद एक नयी तलाश में...
गौरी उस वक़्त बाल्कनी में ही खड़ी थी जब शहरी से दिखने वाले 2 लड़के बाइक पर आकर स्कूल के बाहर रुके.. गौरी ने एक नज़र भर कर दोनो को गौर से देखा.. दोनो ही दिखने में बहुत स्मार्ट और सुन्दर लग रहे थे.. पीछे बैठे लड़के को देख कर गौरी को संजय की याद आ गयी.. लगभग उतने ही डील डौल वाला वो लड़का उस'से कहीं ज़्यादा स्मार्ट था.. तीखे नयन नक्स उसको शरारती लड़के के रूप में प्रचारित कर रहे थे.. हालाँकि दोनो ही लड़के गोरे चिट थे.. पर आगे वाला लड़का भोला सा और लड़कियों के माम'ले में अनाड़ी सा प्रतीत हो रहा था.. निशा रेलिंग पर हाथ रख कर उन्न'पर नज़रें गड़ाए रही.......
"अब घर किस'से पूच्छे यार अमित; यहाँ बाहर कोई नज़र ही नही आ रहा.. कैसा गाँव है..." आगे बैठे लड़के ने बाइक से उतर'ते हुए पिछे वाले लड़के से कहा.. उसका नाम अमित था.
"अबे, शराफ़त के चस्में उतार कर देखेगा तभी तो कोई दिखेगा.. वो देख.. क्या आइटम है यार..!" अमित ने बाल्कनी में खड़ी गौरी की और उंगली उठा कर कहा!
"तुझे तो और कोई काम है ही नही.. जहाँ देखी वहीं शुरू...! किसी घर में चल कर पूछ्ते हैं.." दूसरे लड़के ने अमित को प्यार से झिड़का..
"अबे देवदास की औलाद.. भूल गया खुद किस लिए आया है यहाँ गाँव में.... तेरे साथ मुझे भी खींच लाया.. अब टाइम पास तो मुझे भी चाहिए ना.." अमित की इश्स बात ने दूसरे लड़के को निरुत्तर कर दिया...
"ज़्यादा बकवास मत कर.. वहीं पूच्छना है तो जा.. अकेला ही पूच्छ कर आ.. मैं नही जाउन्गा!"
"देख ले बेटा! मैं तेरे लिए शहर से गाँव आ सकता हूँ और तू मेरे लिए 2 कदम भी नही चल सकता..." अमित ने गौरी पर नज़रें गड़ाए कहा..," देख ली तेरी दोस्ती.. ठीक है बेटा! मैं ही जाता हूँ.."
अमित को अपनी ओर मुस्कुराते हुए आते देख गौरी रेलिंग पर झुक गयी.. लो कट टी-शर्ट में से उसकी दूधियाँ चूचियाँ बाहर सिर निकालने लगी..
"हाई ब्यूटिफुल!" घर के बाहर नीचे आकर खड़े हुए अमित ने गौरी की और शरारतपूर्ण ढंग से हाथ हिलाया..
गौरी बोली तो कुच्छ नही पर उसकी इश्स बेबाक हरकत पर मुस्कुराए बिना ना रह सकी.. अपनी हँसी छिपाने के लिए गौरी ने अपने चेहरे को एक हाथ से छिपा लिया और बिना कुच्छ बोले वहीं खड़ी रही...
"सही कहते हैं.. गाँव की लड़कियों का शहर की लड़कियाँ मुकाबला नही कर सकती. मैं तो गाँव में ही शादी कर्वाउन्गा!" गौरी की हँसी को रज़ामंदी मानते हुए अमित ने धीरे से उस'पर लाइन मारी...
उसकी इश्स बात पर गौरी खिलखिला कर हँसे बिना ना रह सकी... शायद उस रात के बाद गौरी पहली बार हँसी थी...," मैं गाँव की नही हूँ..!"
"ओह शिट! मैं भी यही कहने वाला था.. तुम गाँव की हो ही नही सकती.. तुम्हे देखकर ही दरअसल मेरा विचार बदला था... वैसे तुम्हारा नाम क्या है.. स्वीटी!" आँख मारते हुए अमित ने गौरी से परिचय बढ़ने की कोशिश की..
इश्स हरकत पर गौरी शर्मा गयी और अंदर भाग गयी..
"ओये.. सुन तो!.. सोणिये अड्रेस तो बताती जा एक!....."
गौरी के वापिस ना आने पर अमित अपना सा मुँह लेकर वापिस आ गया..
"कहाँ बताया घर..." दूसरे लड़के ने उत्सुकता से पूचछा..
"कहाँ बताया यार.. उसने तो अपना नाम भी नही बताया.." बॅग से लेज़ का पॅकेट निकलते हुए अमित ने कहा और बाइक की सीट पर बैठ गया..
"यार तू भी ना.. घर पूच्छने गया था या नाम पूच्छने.. "
"अबे साले.. नाम बता देती तो फिर तो कुच्छ भी बता देती.. मैने सोचा स्टेप वाइज़ चलना चाहिए... पर यार... लड़की क्या है.. कयामत है कयामत.. उपर से नीचे तक गरमा गरम.. चल उसी घर में जाकर फिर पूछ्ते हैं..."
"अब तू मेरा और ज़्यादा दिमाग़ खराब ना कर.. मैं ही पूच्छ कर आता हून कहीं..." दूसरे लड़के ने कहा और दूर एक घर के बाहर बैठे आदमी को देख कर उस ओर चल पड़ा...
No comments:
Post a Comment