Tuesday, 8 April 2014

masti ki pathsala - 10

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-10



     दिशा ने उसको हिलाकर कहा," वाणी".... वो ना उठी... वो बोलना ही ना चाहती थी..
    दिशा ने सोचा वो सो गयी है.. मिलन की घड़ी करीब आ गयी... दिशा का गला सूख गया...
    शमशेर ने उसको फिर इशारा किया, आने का.... आज वो बहुत सुंदर लग रहा था.... उसके सपनों के राजकुमार जैसा!
    वो धीरे से उठी ताकि वाणी जाग ना जाए... दरवाजे की और बढ़ी; पर उसके कदमों ने जवाब दे दिया... जैसे किसी ने बाँध दिए हों... शरम और डर की बेड़ियों से!
    वो आगे ना चल पाई और अपनी खाट पर लेट गयी... उसकी तो अब आँखें भी हिम्मत हार गयी... वो मारे शर्म के बंद हो गयी... पहले शमशेर को वो तो छू रही थी... उसकी आँखें....!
    शमशेर से अब और सहन नही हो रहा था वो धीरे से उठा और दिशा की चारपाई के पास जा पहुँचा... दिशा आहट सुनकर चारपाई से चिपक गयी... पता नही अब क्या होगा... उसने आँखें बंद कर ली थी... उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था... वा समर्पण को तैयार थी; पूरी तरह... उसने तंन-मॅन से शमशेर को अपना मान चुकी थी सिर्फ़ अपना
    शमशेर उसकी चारपाई के पास बैठ गया, दिशा उल्टी लेटी हुई थी उसके बदन की पिछली गोलाई और उसका मछली जैसा बदन कहर ढ़ा रहा था; वो उसको भोगने को लालायित था... जो उसका ही हो जाना चाहता था... जिंदगी भर के लिए... शमशेर का ये कोई पहला अनुभव नही था, फिर भी उसके हाथ काँप रहे थे उस को छुते हुए!
    शमशेर ने अपना एक हाथ दिशा की कमर पर टीका दिया और झुक कर उसकी गर्दन से उसके रॅश्मी लंबे बॉल हटाए और वहाँ अपने होंट रख दिए; दिशा शर्म के मारे मरी जा रही थी... उसके मुँह से निकला,"इस्शह!" शमशेर कपड़ों के उपर से ही उसको महसूस करने लगा... उसकी नाज़ुक कमर... कमर से नीचे सूरमाई कटाव...
    कटाव से नीचे... उस अद्भुत प्रतिमा की गोलाइया... या हमारी भाषा में......
    उसकी गांड़... जैसे वहाँ आकर सब कुछ ख़तम हो जाएगा... जैसे उन गोलाइयों पर 'जीनीन पार्ट' की मोहर लगी हो... शमशेर तप गया... उनकी आँच में!
    शमशेर ने दिशा को अपने हाथ से पलट दिया... और वो पलट गयी...जैसे पलटना ही चाहती थी... शमशेर की नज़र वाणी पर गयी... वो सो रही थी... चेहरा दूसरी तरफ किए.. शमशेर उसके अगले हिस्सों पर अपनी काँपति अँगुलिया चलाने लगा... जैसे वीणा के तार छेड़ रहा हो... उस वीणा में से निकली धुन अद्भुत थी... "आहह...आहह...आहह....!" दिशा के जिस्म पर जिस अंग पर शमशेर का हाथ चलता... दिशा को महसूस होता जैसे वो कट-कर गिर जाएगा... शमशेर के साथ जाने के लिए... उससे जुदा होकर! दिशा के लबों की लरज अत्यंत कमनीया थी... वो फडक रहे थे... दिशा चाहती थी शमशेर उनको काबू में कर ले... और शमशेर ने काबू कर लिए... अपने होंटो से... दिशा के होंट... दिशा में से मादक महक निकल कर शमशेर में समाती जा रही थी.. उसने अपने दोनों हाथ शमशेर के चेहरे पर लगा दिए... ये दिखाते हुए की हां... वो तैयार है... उसकी दुल्हन बनने के लिए.... आज ही... आज नही; अभी, इसी वक़्त! शमशेर ने अपनी बाहें दिशा की कमर और उसकी चिकनी जांघों के नीचे लगा दी... और सीधा खड़ा हो गया... वो उसकी बाहों में समर्पण कर चुकी थी... वो दूसरे कमरे में चले गये... और वाणी को दूसरे कमरे में क़ैद कर दिया... अकेलापन पाने के लिए...
    शमशेर दिशा को बाहों में उठाए-उठाए ही देखता रहा; उपर से नीचे तक... उसकी आँखें बंद थी... उसका चेहरा गुलाबी हो चुका था... उसके सुर्ख लाल होंट प्यासे लग रहे थे... उसकी छातिया ज़ोर ज़ोर से धड़क रही थी उसके दिल के साथ... कुल मिलकर दिशा का हर अंग गवाही दे रहा था... वो समर्पण कर चुकी थी...
    शमशेर ने धीरे से उसको बेड पर लिटा दिया... और आखरी बार उसको निहारने लगा... अब उन्हें लंबी उड़ान पर निकलना था... प्यार की उड़ान पर...
    शमशेर उसके साथ लेट गया, उसके कान के पास अपने होंट ले गया और धीरे से बोला," दिशा"... उसकी आवाज़ में वासना और प्यार दोनो थे!
    दिशा जैसे तड़प रही थी इस तरह शमशेर के मुँह से अपना नाम सुनने को; वो पलट कर उससे लिपट गयी... वाणी की तरह नही; दिशा की तरह!
    पर शमशेर इस खेल को लंबा खींचने का इच्छुक था... उसने प्यार से दिशा को अपने से अलग किया और फिर से दिशा के कान में बोला," क्या मैं तुम्हे छू सकता हूँ".... आवाज़ अब की बार भी वैसी ही थी.. प्यार और वासना से भारी... पर अब की बार दिशा की हिम्मत ना हुई; अपना जवाब उससे लिपट कर देने की, वो खामोश रही... मानो कहना चाहती हो... बात मत करो... जल्दी से मुझे छू दो... मुझे अमर कर दो!
    शमशेर ने उसके पेट पर हाथ रख दिया... उसमें कयामत की कोमलता थी... कयामत की लचक... कयामत का कंपन!
    दिशा कराह उठी... उससे इंतज़ार नही हो रहा था... पता नही उसका यार उसको क्यूँ तड़पा रहा है!
    शमशेर ने उसके पेट पर से उसका कमीज़ हटा दिया... फिर उसका समीज़... शमशेर जन्नत की सुंदरता देख रहा था... उसके सामने... उसके लिए.... सिर्फ़ उसके लिए!
    दिशा की नाभि का सौंदर्या शमशेर के होंटो को अपने पास बुला रहा था... चखने के लिए... और वे चले गये... दिशा सिसक उठी... वा अपने हाथो से चादर को नोच रही थी... मचल रही थी... आगे बढ़ने के लिए.....!
    शमशेर ने उसको अपने हाथ का सहारा देकर बैठा दिया... उसका हाथ दिशा की कमर में था... समीज़ के नीचे! दिशा हर पल मरी जा रही थी... आगे बढ़ने के लिए! उसकी आँखें अब भी बंद थी; पर होंट खुल गये थे... खेल शुरू होने से पहले ही वह हार गयी... उसकी योनि द्रवित हो उठी! उसने शमशेर को कसकर पकड़ लिया... वो उसी पल उसमें समा जाना चाहती थी...! शमशेर ने अपने गले से लगाकर उसका कमीज़ निकल दिया और समीज़ भी... वो इसी का इंतज़ार कर रही थी!

    फिर से शमशेर ने उसको सीधा लिटा दिया... उसकी छातिया मचल रही थी.. वो शमशेर के हाथों का इंतज़ार कर रही थी... पर शमशेर ने उनको कुछ ज़्यादा ही दे दिया.... उसने दिशा के दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ा और उसकी एक छाति पर अपने होंट टीका दिए! "हाइयी, ऐसा पहले क्यूँ नही हुआ... इतना आनंद आता है क्या कभी किसी बात में... शमशेर उसकी छाति पर लगे अद्भुत, गुलाबी सख़्त हो चुके मोती से दूध पीने की कोशिश करने लगा... दिशा छ्टपटा रही थी बुरी तरह; उसकी टाँगों के ठीक बीच में एक भट्टी सुलग रही थी... दिशा को सब और स्वर्ग दिखने लगा... उसकी आँखें आधी खुली आधी बंद... वो नशे में लग रही थी प्यार के नशे में... उससे रहा ना गया, बिलख उठी, " मुझे मार डालो जान! शमशेर ने अपनी पॅंट उतार दी... अपने अंडरवेर की साइड से अपना अचूक हथियार निकाल और दिशा को दे दिया; उसके हाथ में...
    "ये इतना बड़ा हो जाता है क्या, बड़ा होने पर," वो सोच रही थी.... उसकी सखतायी, लंबाई और मोटाई को अपने हाथों से सहलाकर महसूस करने लगी! शमशेर के होंट अभी भी उसका दूध पी रहे थे; जो उन मादक छातियो में था ही नही...
    अचानक दोनों पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा... दरवाजे के उस तरफ से आवाज़ आई,"
    दीदी; सरजी; मुझे भी खेलना है... मुझे नींद नही आ रही... दरवाजा खोलो....
    वो दोनों जैसे पत्थर हो गये... खेल उल्टा पड़ गया था.......दोनों कभी एक दूसरे को कभी दरवाजे के पार झिर्री में से दिख रही वाणी की आँख को देखते रहे!
    शमशेर और दिशा वाणी को जगा देख सुन्न हो गये एक पल को तो उन्हे कोई होश ही नही रहा दिशा को अपने नंगे बदन का अहसास होते ही वो दीवार की तरफ भागी.. उसने दोनों हाथो से अपने को ढ़क लिया और फर्श की और देखने लगी.... 'ये क्या हुआ!'
    शमशेर दिशा के मुक़ाबले शांत था उसने अपने को ठीक किया और दिशा के कपड़े लेकर उसके पास गया... दोनों हाथो से उसके कंधों को थाम लिया,"कपड़े पहन लो जान कुछ नही होगा!"... दिशा को इस बात से सहारा मिला! उसने जल्दी से कपड़े पहन लिए और दरवाजा खोल कर वाणी की तरफ पीठ करके खड़ी हो गयी... पहली बार जिंदगी में वो किसी से नज़रें चुरा रही थी... वो भी अपनी बेहन वाणी से!
    वाणी ने कमरे में आते ही कहा," दीदी मुझे भी खिलाओ ना अपने साथ.... उस कातिल पर मासूम हसीना को ये मालूम नही था की.... ये खेल अच्छे घरों में छुपकर खेला जाता है... किसी तीसरे के सामने यूँ खुले-आम नही!
    दिशा कुछ ना बोली... कोई जवाब ना मिलते देख उसने इंतजार करना ठीक नही लगा... झट से बिना शरम अपना कमीज़ उतार दिया... जो खेल उसकी इतनी अच्छी दीदी खेल सकती है, उस खेल में शरम कैसी; फिर मज़ा भी तो बहुत था. उस खेल में...
    वाणी उस रूप में सेक्स की देवी लग रही थी.. उसका यौवन समीज़ में से ही कहर ढा रहा था... उसकी छतियो के बीच की घाटी जानलेवा थी... दिल थाम देने वाली... 'कातिल घाटी'
    जैसे ही दिशा को अपनी 'जवान' हो चुकी बेहन की स्थिति का पता चला; उसने मूड कर उसको बाहों में भर लिया... उसके मदमस्त यौवन को छूपा लिया... अपने यार की नज़रों से... और अपने से सटा उसको दूसरे कमरे में ले गयी... शमशेर मूक बना रहा... सिर्फ़ दर्शक और फिर दर्शक भी नही रहा... दरवाजा बंद हो गया....
    "दीदी, तुम मुझे यहाँ क्यूँ ले आई!" चलो ना खेलते हैं"
    दिशा को कुछ बोलते ही ना बना.. वो नज़रें झुकाए रही.
    वाणी बेकरार थी शमशेर के साथ 'खेलने' को," मैं खेल आऊँ दीदी!"
    दिशा ने मुश्किल से ज़बान हिलाई,"ये........ ये कोई खेल नही है वाणी" अब वाणी छुटकी नही रही!
    वाणी: खेल क्यूँ नही है दीदी... कितना मज़ा आता है इसमें...!
    दिशा: वाणी; ये ऐसा खेल नही है जो कोई भी किसी के साथ खेल ले!.... वो भावुक हो गयी.
    वाणी के पास इस बात की भी काट थी," पर तुम भी तो खेल रही थी दीदी.... सर के साथ! मैं सोई नही थी... मैने सब देखा है!
    दिशा: मैं उनसे प्यार करती हूँ वाणी..... ये बात उसने गर्व के साथ कही!
    वाणी: तो क्या मैं सर से प्यार नही करती .... मैं सबसे ज़्यादा सर को प्यार करती हूँ... तुमसे भी ज़्यादा... और सर भी मुझसे बहुत प्यार करते हैं... बेशक उनसे पूछ लो
    उस को ये भी मालूम नही था की प्यार... प्यार के अनेक रंग होते हैं... और ये रंग सबसे जुदा है... ये रोशनी से डरता है... और शादी से पहले... इस समाज से भी
    दिशा: वाणी, मैं उनसे शादी करना चाहती हूँ! दिशा ने आखरी तीर छोड़ा!
    वाणी ने एक पल के लिए कुछ सोचा," दीदी मैं भी उनसे शादी कर लूँगी!
    दिशा उसकी बात पर मुस्कुराए बिना ना रही... कितनी नादान और पवित्र है वाणी!
    दिशा: पागल; तू अभी बहुत छोटी है
    वाणी: आप कौनसा बहुत बड़ी हैं दीदी, मुझसे 1 साल ही तो बड़ी हैं!
    दिशा के पास अब बोलने के लिए कुछ नही बचा, सिवाय उसको बिना वजह बतायें ढँकने के लिए," चुप हो जा वाणी, तू बहुत बोलने लगी है... देख ऐसा कुछ नही हो सकता; कुछ नही होगा!"
    वाणी जैसे कामातूर होकर बागी हो गयी," ठीक है दीदी मत खिलवाओ.... मैं कल राकेश के साथ खेलूँगी.."
    दिशा क्या करती," ठीक है वाणी... मैं तुम्हारे साथ खेलूँगी... आ जाओ!"
    वाणी थोड़ी नरम पड़ी," पर दीदी पूरा खेल तो लड़के के साथ ही खेला जाता है ना....
    दिशा ने उसको आगे बोलने का मौका ही नही दिया.... उसके जालिम होंटो पर अपने रसीले होंट टीका दिया.... जैसे दो बिजलियाँ आसमान में टकराई हों........
    दोनों एक दूसरे से चिपक गयी... दिशा सिर्फ़ उसको खुश कर रही थी. पर वाणी का जोश देखने लायक था... वो इस तरह दिशा को चूम रही थी जैसे वो बरसों से ही अपनी दीदी को भोगने का सपना देख रही हो... दिशा भी गरम होती जा रही थी... उसने वाणी को अपने उपर लिटा लिया और समीज़ के नीचे से अपने हाथ वाणी की कमर में पहुँचा दिए... वाणी भी पीछे नही थी... अपने होंटो की दिशा के बदन पर जगह जगह छाप छोड़ रही थी.. हर छाप के साथ दिशा की सिसकिया बढ़ती गयी... उसके सामने लगातार शमशेर का चेहरा घूम रहा था... वो भी उत्तेजित होती गयी... दिशा ने वाणी के कमाल के चिकने चूतड़ो को अपने हाथों में पकड़ कर दबा दिया... दिशा की आँखें बंद हो गयी... उसने रेएक्ट करना बंद कर दिया... और नीचे लुढ़क गयी और वाणी को अपने उपर खींचने लगी... दिशा और वाणी को इस खेल का आगे का ज्ञान अपने आप होता गया..
    उन्होने अपने अपने कपड़े उतार फैंके... शरम और झिझक वासना की गोद में जाकर कहाँ टिकती है
    दिशा ने वाणी की चूची पर एक हाथ रखकर उसके होंटो में जीभ घुसा दी एक युद्ध सा चल रहा था; दो वासनाओ का... दो सग़ी वासनाओ का...
    वाणी ने भी दिशा की चूचियों को सहलाना, दबाना और मसलाना शुरू कर दिया... दिशा ने अपना हाथ नीचे ले जाकर वाणी की चिर यौवन चूत की फांकों मे दस्तक दी... वाणी की आँखें पथारा गयी... ऐसा अहसास वाणी को पहले भी हो चुका था... सर की 'टाँग' पर...
    उसने दिशा की जीभ से अपने होंटो को आज़ाद किया और अपने दाँत दिशा की चूचियों पर गाड़ा दिए... जैसे वो पिएगी नही... खा जाएगी उनको...
    ऐसा करते ही दिशा की 'शमशेर प्यासी' चूत फिर फेडक उठी... उसने वाणी का मुँह पीछे कर दिया, अपनी चूत के सामने... और उसकी निराली, अद्वितीया चूत पर किस करने लगी, बेतहाशा!.... 1 साल पहले उसकी भी तो वैसी ही थी... अब थोड़ा रंग बदल गया... अब थोड़े बॉल आ गये..
    वाणी को भी अपनी चूत पर हमला होते देख... बदला लेने में वक़्त ना लगा... उसने दिशा की चूत के दाने को होंटो में लेकर सुलगा दिया अब दोनों के हाथ एक दूसरे की गंदों पर रेंग रहे थे... दोनों के होंट एक दूसरे की चूत को चूस रहे थे... जो एक कर रही थी दूसरी भी वही कर रही थी... इसको कहते हैं... 'पर्फेक्ट 69'.... कयामत की रात थी... बार-बार योनि में रस की बरसात होने पर भी वो लगी रहती... जब तक एक का काम तमाम होता... दूसरी भड़क जाती और सिलसिला करीब आधा घंटा चलता रहा...
    उधर शमशेर उसी छेद से आँख लगाए, अपनी बारी की प्रतीक्षा करता रहा... इस रासलीला में शामिल होने के लिए... वो बिल्कुल शांत था... बिल्कुल......निशचिंत!
    दिशा के बदन की प्यास शमशेर को अपने में सामने के लिए बढ़ती जा रही थी... पर वाणी के लिए तो यह सब सिर्फ़ एक खेल था... सबसे ज़्यादा मज़ा देने वाला खेल....
    दिशा ने सिसकती हुई आवाज़ में अपने यार को पुकारा," शमशेर्र्ररर!"
    वाणी ने दिशा को सर का नाम लेने पर एक बार हैरत से देखा और फिर से 'खेल' में जुट गयी!
    शमशेर ने अंजान बन'ने का नाटक किया," वाणी सो गयी क्या; दिशा!"
    "कुछ नही होता; तुम जल्दी आ जाओ!" दिशा की आवाज़ में तड़प थी
    शमशेर ने दरवाजा खोला," मानो स्वर्ग पहुँच गया हो... स्वर्ग की दो अप्सराए उसके सामने कहर ढा रही थी... एक दूसरी पर...
    दिशा शमशेर के सामने जाते ही वाणी को भूल गयी, वो उठी और शमशेर से चिपक गयी... वाणी इंतज़ार कर रही थी... देख रही थी... आगे कैसे खेला जाता है... फिर उसको भी खेलना था... वो भी नंगी ही शमशेर को निहार रही थी.... उसको दोनों का ये मिलन बड़ी खुशी दे रहा था..
    शमशेर ने फिर से दिशा को उठा लिया और बेड पर लिटा दिया... वाणी बोली, मुझे भी लेकर जाओ सर जी; ऐसे ही... शमशेर ने एक पल दिशा को देखा... उसकी आँखों में कोई शिकायत नही थी... थी तो बस... जल्दी से औरत बन-ने की तमन्ना..
    शमशेर ने वाणी को ऐसे ही गोद में उठा लिया... दिशा मुस्कुरा रही थी... आँखें बंद किए!


    दिशा से इंतजार नही हो रहा था; उसने शमशेर की पॅंट पर हाथ लगा दिया.. अपने यार के हथियार को मसालने लगी!
    शमशेर ने देर नही की... वो भी कब से तड़प रहा था... आख़िर कंट्रोल की भी हद होती है...
    शमशेर ने जल्दी से अपनी पॅंट उतरी और अपना ताना हुआ 8" लंड उसको दे दिया...
    वाणी की आँखें फट गयी," सर जी का नूनी... इतना लंबा! ... इतना मोटा! और उसका मुँह खुला का खुला रह गया... अभी तो उसको उसका प्रयोग भी नही पता था...!
    दिशा के मॅन की झिझक अब आसपास भी नही थी... उसने शमशेर के लंड को अपने हाथ से उपर नीचे किया और उसके होंटो को खाने लगी!
    वाणी ने भी उसको छू कर देखा... बहुत गरम था!
    शमशेर ने देर ना करते हुए; अपना लंड दिशा के होंटो पर रख दिया... पर दिशा इशारा ना समझी... बस उसको चूम लिया
    शमशेर ने अपने कसमसाते लंड को देखा और बोला," इसको मुँह में लो, इसको चूसो, इसको चॅटो!
    "क्या?" दिशा शमशेर को देखती कभी उसके लंड को!
    "प्लीज दिशा और मत तड़पाओ!"
    दिशा ने अपने यार की लाज रख ली... उसने उसको मुँह में लेने की कोशिश की... पर वा कहाँ घुसता... वो उसको उपर से नीचे तक चाटने लगी!
    वाणी को हँसी आ रही थी... ये कोई कुलफी है क्या...
    पर जैसे ही उसने दिशा की आँखों को बंद होते देखा वो भी बीच में कूद पड़ी..."मैं भी चूसूंगई!" दिशा कुछ ना बोली...
    वाणी ने शमशेर के लंड पर अपनी जीभ फिरानी शुरू की... एक तरफ दिशा... दूसरी
    तरफ वाणी... दोनों आनंद में पागल थी... और तीसरा तो सेक्स का ये रूप देखकर अपने आपे में ही नही था... उन दोनों के हाथ अपनी-अपनी चूतो पर थे और शमशेर उनकी चूचियों से खेल रहा था
    दिशा ने कोशिश करके शमशेर के सुपारे को अपने मुँह में भर लिया... उसके निकलते ही वाणी ने भी कोशिश की पर बीच में ही हार मान ली... हां मज़ा उसको भी दिशा जितना आया था!
    अब सहना शमशेर को ग्वारा ना था.. उसने दिशा की टाँगों को फैलाया और उनमे अपना मुँह घुसा दिया... वाणी सर की टाँगो के बीच मुँह ले गयी... और अपनी कुलफी चूस्ति रही.. मदमस्त बड़ी कुलफी..
    दिशा की आँखे बंद होने लगी... एक बार फिर उसका वक़्त आ गया... उसने शमशेर का सर अपने हाथो में पकड़ा और उसको अपनी चूत पर दबा दिया.. उसने पानी फिर छोड़ दिया...
    शमशेर को लगा सही वक़्त है और उसने जल्दी से वाणी को दूर हटाकर दिशा की मस्त जांघों को फैलाया और वाणी की कुल्फि दिशा की योनि में ठेल दी.. "एयाया!" दिशा की आवाज़ उसके गले में ही रह गयी जब शमशेर ने उसके मुँह को सख्ती से दबा दिया...
    दिशा की आँखों से आँसू बह निकले... वो फिर से चीखना चाहती थी पर चीख ना सकी.... शमशेर ने चीखने ना दिया... अभी तो सिर्फ़ सूपड़ा ही अंदर फँसा था... बाकी तो इंतज़ार कर रहा था... दिशा के शांत होने का...
    वाणी दिशा को देखकर डर गयी..." दीदी ठीक कह रही थी मैं तो अभी छोटी हूँ! खेल का दूसरा भाग मेरे लिए नही है... उसका गला सूख गया था... अचानक उसकी नज़र अपनी दीदी की चूत पर पड़ी... वो घायल हो चुकी थी... अंदर से!
    सर दीदी को छोड़ दो... बाहर निकल लो! वो मर जाएगी... प्लीज़ सर... मेरी दीदी को छोड़ दो... हमें नही खेलना खेल... हमें माफ़ कर दो सर! उसकी आँखों में भय था...
    शमशेर ने उसको अपने से सटा लिया... पर उसको अब मज़ा नही आ रहा था... हां दिशा ज़रूर शांत हो गयी थी.. शमशेर का एक हाथ दिशा की मस्त जवानियों से खेल रहा था और दूसरा हाथ वाणी की कमर से लिपटा हुआ था...
    दिशा अपनी गांड़ को उचकाने लगी... और शमशेर ने भी मौका देखकर दबाव बढ़ा दिया... और दिशा तृप्त होती चली गयी... स्खलन के बाद वो और भी रसीली हो गयी... अब धक्के लगाए जा सकते थे और शमशेर ने धक्के शुरू कर दिए... दिशा का बुरा हाल था... वो हर धक्के के साथ मानो स्वर्ग की सैर कर रही थी... वो चीख-चीख कर कहना चाहती थी... और ज़ोर से ... और ज़ोर से.. पर उसने अपनी पागल भावनाओ को काबू में रखा...
    वाणी ने देखा... दीदी के चेहरे पर अब शांति है... उसके चेहरे को देखकर सॉफ दिख रहा था की उसको दर्द नही मज़ा आ रहा है... अपनी दीदी से निशचिंत होकर वाणी ने अपने सर के होंटो को अपने लाल सुर्ख होंटो से चूमने लगी.... उत्तेजना की हद हो चुकी थी... ऐसा लगता था जैसे तीनों के तीनों सेक्स के लिए ही बनाए गये थे... जो बात दिशा में नही थी वो वाणी में थी और जो बात वाणी में नही थी वो दिशा में थी... शमशेर झटके खाने लगा और हांफता हुआ दिशा के उपर गिर गया... दिशा औरत बन चुकी थी...
    वाणी ने दोनों को प्यार से एक दूसरे की और देखा और शमशेर के उपर गिर पड़ी... उसको भी शमशेर से प्यार था... जिसका रूप बदल रहा था!
    शमशेर उठा और साइड में सीधा होकर गिर पड़ा... ऐसी संतुष्टि की उसने कल्पना भी नही की थी कभी... उसके दोनों और दो दुनिया की सबसे हसीन नियामते लेटी थी.... एक शमशेर की औरत बन चुकी थी दूसरी बनना चाहती थी....
    वो ऐसे ही सो गयी..... शमशेर की बाहों में...! शमशेर की आँखों में आँसू आ गये... मारे खुशी के या फिर पश्चाताप के...... ये वो क्या कर रहा है!
    करीब 5:00 बजे शमशेर की आँख खुली... उसके दोनो और यौवन से लदी 2 हसीन कयामतें उससे चिपकी पड़ी थी... बिल्कुल शांत; बिल्कुल निसचिंत और एक तो.... बिल्कुल निर्वस्त्रा... मानो अभी अभी जनम लिया हो; सीधे जवान ही पैदा हुई हो.... सीधे उसकी की गोद में आकर गिरी हो;.....ऐसा नयापन था उसके चेहरे में उसने दूसरी और देखा, वो अभी भी कुँवारी थी... शमशेर के कंधे पर सिर टिकाए, उसके शरीर से खुद को सताए मानो अभी जनम लेने को तैयार है.... एक नया जनम.... शमशेर के हाथो!
    शमशेर ने उसका माथा चूम लिया... और उसने नींद में ही... अपने हुस्न को और ज़्यादा सटा लिया... वह शमशेर की छाति पर हाथ रखे, ऐसे पकड़े हुई थी की सर कहीं भाग ना जायें, उसको पूरा किए बगैर; उसको औरत बनाए बगैर...
    शमशेर ने कुछ सोचा और उससे दूसरी तरफ मुँह कर लिया... उसकी 'औरत की तरफ....
    शमशेर ने उसको खींच कर अपने से सटा लिया और उसके होंटो... शमशेर ने दिशा को खींच कर उसकी छातियो को अपनी छाति से सटा दिया... और उसके होंटो को अपने होंटो से 'थॅंक्स' कह दिया... उसकी हो जाने के लिए... दिशा ने तुरंत आँखें खोल दी.... नज़रों से नज़रें मिली और 'औरत' की नज़र शर्मा गयी... रात को याद करके दिशा ने खुद को शमशेर में छिपा लिया... और उसके अंदर घुसती ही चली गयी... शमशेर भी उसमें समा गया 'पूरा' का 'पूरा'... इस दौर में दिशा को इतना आनंद आया की उसकी सारी थकान दूर हो गयी...
    कुछ देर शमशेर के उपर पड़े रहने के बाद वह उठी और उसने कपड़े पहन लिए... वह बिना बात ही मुस्कुरा रही थी... रह-रह कर; बिना बात ही शर्मा रही थी... रह-रह कर... वह वापस अपने यार के पास आ लेटी... उसको समझ नही आ रहा था शमशेर को क्या कह कर संबोधित करे; सर या शमशेर... इसी कसंकश में उसने दोनो को ही छोड़ दिया," कल रात को मैं कभी नही भूल पाउन्गि... जी!" जैसे सुहगरात के बाद शायद पत्नी कहती है!..."लेकिन इस शैतान का क्या करें... ये मानेगी नही इतनी आसानी से... बहुत जिद्दी है... मुझे डर है... कहीं ये बहक ना जाए..." और शमशेर किस्मत की देन उसकी नादान प्रेमिका को देखने लगा...!
    सुबह स्कूल जाने से पहले नहाते हुए दोनो को अपने अंगों में परिवर्तन महसूस कर रही थी. दिशा को अपने पूर्ण होने का अहसास रोमांचित कर रहा था तो वाणी को उसके बदन की तड़प विचलित कर रही थी.... वाणी के मॅन में दुनिया की सबसे अच्छी दीदी से ईर्ष्या होने लगी... उसके बाद उसने कभी दिशा और शमशेर को कभी अकेला नही छोड़ा... सोते हुए वो शमशेर को अपने हाथ और पैर से इस तरह कब्जा लेती की जैसे कहना चाहती हो... ये किसी और का नही हो सकता; 'सर' मेरा है... सिर्फ़ मेरा.... 'अपने' सर वाणी को 'सिर्फ़ अपने' लगने लगे....
    ऐसा नही था की शमशेर की दूसरी बाजू अकेली हो, वो दिशा को समेटे रहती, पर जब भी कभी वाणी को लगता की सर उससे मुँह घुमा रहे हैं... तो नींद में ही उठ बैठती और शमशेर के उपर चढ़ कर लेट जाती.... दिशा और वाणी में दूरियाँ बढ़ने लगी.... शमशेर के कारण! ऐसे ही 5-7 दिन बीत गये.... अगले दिन अंजलि की शादी थी... वो घर चली गयी... शमशेर को टीचर्स-इनचार्ज बना कर!
    शमशेर को डी.ओ. ऑफिस जाना था; कुछ कागजात लेन के लिए, क्यूंकि अंजलि छुट्टी पर थी... वो लैब से निकलने ही वाला था की नेहा ने प्रयोगशाला में प्रवेश किया; सेक्स लेबोरेट्री में, "मे आई कॉम इन सर?"
    शमशेर: एस, कॉम इन!
    नेहा आकर शमशेर के साथ खड़ी हो गयी; शमशेर को जब भी मौका मिलता था, नेहा के पिछवाड़े पर हाथ साफ़ कर देता... और उसको फिर अपनी प्यास बुझाने बाथरूम जाना पड़ता... आज नेहा फैसला कर के आई थी; आर या पार," सर, आप ऐसे मत किया करें!
    शमशेर: कैसे ना किया करुँ?
    नेहा: वो सर... वो आप ... यूँ... यहाँ हाथ लगा देते हो; नेहा ने अपनी गांड की तरफ इशारा करके कहा; वो हजारों में एक थी... अभी तक कुँवारी!
    शमशेर: ठीक है; सॉरी, आइंदा नहीं करूँगा!
    नेहा: नहीं सर, मैं आपको ऐसा नहीं कह रही.
    शमशेर मुस्कुराया," तो कैसा कह रही हो नेहा?" उसने नेहा के एक चूतड़ को अपने हाथ से मसल दिया!
    "आह...सर!"
    शमशेर: क्या?... शमशेर ने फिर वैसी ही हरकत की; बल्कि इस बार तो उसने अपनी उंगली उसकी चूत के 'बॉर्डर' तक पहुंचा दी...
    नेहा: प्लीस.. सर, मैं बेकाबु हो जाती हूँ, मेरा ध्यान हमेशा आप पर ही रहता है... कुछ करिये ना... इसका इलाज!... उसके पैर खुल गये थे.. और ज्यादा मजा लेने को.
    शमशेर को जल्दी निकलना था," ओके. कल छुट्टी के बाद यहीं मिलना... कर देता हूँ इसका इलाज.." शमशेर बाहर चला गया और नेहा अन्दर.... बाथरूम में!"

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