मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी भाग-19
कुछ देर ऐसे ही लेटे रहने के बाद उनको ठंड फिर से लगने लगी.. चारों ने अपने कपड़े पहने... कपड़े पहनते हुये..
तीनो सुनील को अपनी मादक नजरों से धन्यवाद् बोल
रही थी... सुनील उनको अपने से चिपका कर बस
की तरफ चल दिया... तीनो लड़कियाँ अलग-अलग बस
के पास गयी... सुनील बस से पहले ही कहीं बैठ गया.. कुछ
देर बाद जाने के लिये... अब मुस्कान को अदिति से कोई जलन नहीं थी... वो हँसती हुयी बस में
चढ़ी तो कविता बड़े इत्मिनान से पिछली सीट पर
अपनी टाँगें फैलाये सो रही थी.....
उधर सुनील के जाने के बाद टफ की नजरें सरिताको ढूंढ़
रही थी करीब सुनील के जाने के १० मिनट बाद..
टफ, प्यारी और सरिता में से किसी एक की ताक में
बैठा था पर प्यारी तो अंजलि के पास थी.. मजबूरी मैं.. !
टफ अगर टीचर होता तो किसी भी लड़की के
हाथों सरिता को बुला लेता.. अचानक ही उसको एक आईडिया आया.. वह अंजलि और प्यारी मैडम के पास
ही जाकर खड़ा हो गया...
अंजलि ने उसको देखकर पुछा, "सुनील जी कहाँ गये ?"
वह भी प्यारी को छोड़ कर कब की २ पल के लिए
सुनील की बाँहों में जाना चाहती थी....
"यहीं होंगे ! शायद बस के दूसरी तरफ बैठे हो" टफ को पता था सुनील किसी कबूतरी के साथ गया है.. पर
उसने जान बूझ कर झूठ बोला, "वो भी आपको ही ढूंढ़ रहे
थे !"
टफ के मुँह से ये सुनकर अंजलि खुश हो गयी,"हाँ मुझे
भी उनसे बात करनी थी.. मैं अभी आती हूँ.." कहकर
वो चली गयी अंजलि के जाते ही टफ ने प्यारी के चूतडों पर
चुटकी काट ली.., "अपने खटमल के डंक
को भी नहीं पहचानती"
प्यारी भी शाम से ही अपनी गांड की खुजली मिटाने
की जुगत में थी.., "ये साली प्रिंसिपल
मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही.. कब से पानी टपक रहा है अन्दर से, पता है तेरे को.. कुछ हो नहींसकता क्या ?"
टफ ने नपे तुले शब्दों में कहा, "अगर चुदवानी है तो उस
तरफ अँधेरे में चली जाओ.. मैं यहाँ सब सेट करके आता हूँ..
प्यारी देवी मुस्कुरायी और जाकर अँधेरे में खड़ी हो गयी
.. जिस तरफ गौरी गयी थी..
उसके जाते ही टफ ने सरिता को ढूंढा.. और उसके सामने जाकर खड़ा हो गया.. सरिता उसको अकेला देखते ही बस
में जा चढ़ी मरवाने के लिए..
टफ ने भी दाँयें-बाँयें देखा और उसके पीछे बस में जा चढ़ा..,
"अरे बुलबुल ! कहाँ उड़ गयी थी.. उसने जाते
ही सरिता की दोनों चुचियों को पकड़ा और
उनको मसलने लगा.. सरिता ने दर्द के मारे अपनी एडियाँ उठा ली.., "क्या कर रहा है.. जल्दी पीछे
आजा.. कर दे..
टफ ने रहस्यमयी मुस्कान उसकी तरफ फैंकी..,"ऐसे
नहीं करूँगा मेरी रानी.. आज तेरे को बहुत बड़ा सर्प्राइस
दूँगा.."
"क्या ?" सरिता उत्सुक हो गयी..
टफ ने सर खुजाते हुए कहा, "तेरी मम्मी को चोदुंगा पहले
!"
"क्या.. ?" सरिता ने हैरानी से कहा, "हाँ.. मुझे पता है
वो ऐसी हैं.. पर किसी अनजान के साथ..! "नहीं ये
नहीं हो सकता !"
टफ ने सरिता की जाँघों में हाथ डालते हुए कहा, "मैं उसकी गांड भी मार चूका हूँ.. समझी.. बोल
तमाशा देखना है.. ?
सरिता ने अविश्वास के साथ अपने मुँह पर हाथ रख
लिया.. पर तमाशा तो उसको देखना ही था..
अपनी माँ को चुदते हुए देखने का तमाशा, "हाँ !दिखाओ..
कहाँ है मम्मी ?" सरिता ने उसकी चूत को मसल रहे हाथ को हटाते हुए कहा..
मैंने उसको आगे भेज दिया है वो कुछ दूर जाकर
खड़ी होगी मैं भी जा रहा हूँ.. मैं उसको पीछे नहीं देखने
दूँगा तुम बगैर आवाज किये पीछे-पीछे आ जाना....
कहकर टफ बस से उतर कर उसी और चल दिया, जिस
और उसने प्यारी को भेजा था.. सरिता बस के दूसरी और से घूमकर आयी और उससे दूरी बना कर चलने लगी..
अपनी मम्मी को चोदते हुए टफ को देखने
की इच्छा बलवती होती गयी.....
टफ जल्द ही प्यारी के पास पहुँच गया उसने जाते
ही प्यारी के कंधे पर अपनी बाँह रख दी, ताकि वो पीछे
देखने ना पाए.. , "बहुत देर लगा दी ! कहाँ रह गया था ?" प्यारी रोमांचसे भरी हुयी थी ठंडीवादियों में चुदने के
रोमांच से..
टफ ने कोई जवाब नहीं दिया और उसको ऐसे ही दबाये
आगे चलने लगा..
सरिता ने भी पीछे-पीछे चलना शुरू कर दिया चुपके-
चुपके.... ! गौरी छुपती छुपाती उस साये के पीछे जाती रही..
साया कुछ दूर जाने के बाद ठिठका, उसको अहसासहुआ
की उसके पीछे कोई है.. जाने क्या सोचकर
वो साया चलता रहा.. गौरी उसके पीछे-पीछे थी..
वो दोनों काफी दूर निकल आये..
जब वो बस से करीब आधा किलोमीटर नीचे की और आ गये तो अचानक वो साया पीछे भागा और उसने
गौरी को दबोच लिया.. गौरी कसमसाई.. अचानक हुए
इस हमले में वो हडबडा कर कुछ कर नहीं पाई.. उसने
कम्बल ओढे उस शख्स की आँखों में झाँका..
गौरी उस कन्डक्टर के शिकंजे में अपने आपको पाकर
बहुत डर गयी.. कन्डक्टर भी उसको देखकर हैरानथा.. उसने राकेश को कविता की और इशारा करके जाते
देखा था और वो इसीलिए राकेश के पीछे
गया था की अगर वो दोनों कुछ करेंगे तो थोड़ा प्रसाद
उसको भी जरूर मिलेगा.. रँगे हाथों पकड़ लेने पर.. पर
उसको राकेश कहीं दिखाई ही नहीं दिया इतनी दूर
आने पर.....
पर जब उसने कविता की जगह गौरी को देखा तो एक
बार वो ठिठक गया.. गौरी उसकी बाँहों की कैद से
निकलने के लिए छटपटा रही थी.. कन्डक्टर ने उसके
चेहरे से हाथ हटा लिया..
गौरी को थोड़ी सी राहत मिली, "तुम.. ? छोड़ो मुझे.."
वो डरी हुयी थी, उसको अपनी जाँघों पर कन्डक्टर का लंड चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था....
उसको डर से काँपते देख कन्डक्टर का होंसला बढ़ गया,
उसने सोच लिया था.. चाहे यहाँ से ही वापस भागना पड़े,
इस हूर.. को चोदे बिना नहीं रहूँगा.., ज्यादा चिक-
चिक करी तो जान से मार कर पहाड़ी से फैंक दूँगा साली
.. ! यहाँ क्या अपनी माँ चुदाने आई थी मेरे पीछे... ? गौरी उस पल को कोस रही थी जब उसके दिमाग में
राकेश और कविता का लाइव मैच देखने की खुरापात
उभरी.. वो डर से काँप रही थी.. वो कन्डक्टर से
याचना करने लगी.. मरी सी आवाज में, "प्लीस भैया मुझे
छोड़ दो.." मैं तो कविता समझ कर आपके पीछे आई थी..
मैं ऐसी लड़की नहीं हूँ.. मुझे जाने दो प्लीस.. मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूँ..
तू अपनी बकवास अपने पास ही रख.. कविता को देखने
आई थी.. साली.. बहनचोद.. मैं ६ फ़ुट का तुझे
कविता दिखता हूँ ! अभी दिखाता हूँ तुझे अपना,
कन्डक्टर ने अपना तना हुआ लंड उसकी जाँघों पर और
ज्यादा चुभा दिया.. गौरी को वो लंड किसी पिस्टल से कम नहीं लग रहा था.. जितना डर गन का गर्दन पर
रखे जाने से लगता है.. लगभग यही हाल उसकी चूत के पास
जाँघ पर गढ़े हुए लंड को महसूस करके गौरी का हो रहा था
.., "नहीं.. ! मैं मर जाऊँगी भैया.. प्लीस मुझ पर रहम करो
..."
कन्डक्टर ने दुसरे रास्ते से उसको लाइन पर लाने की सोची, "एक शर्त पर तुझे कुँवारी छोड़ सकता हूँ.. ?"
गौरी उसकी हर शर्त से मना करके उसके मुँह पर
थूकना चाहती थी.. पर उसके पास और कोई चारा ही ना था
..., "क.. कैसी शर्त.... ?"
गौरी उसकी बाँहों में ही कसमसा रही थी..
उसकी चूचियाँ कन्डक्टर की छाती से लगी हुयी थी.... "तुमको एक बार अपने सारे कपड़े निकालने होंगे..... !"
कन्डक्टर की शर्त सुनते ही गौरी सिहर गयी.. उसके
सामने कपड़े निकालना तो अपनी इज्ज़त लुटाने
जैसा ही था.. माना वो थोड़ी सी ठरकी और सेक्सी टाइप
की थी पर आज तक कभी उसने सोचा तक ना था की कोई
यूँ उसके कपड़े निकालने को कह देगा.. वो तो हमेशा ही एक राजकुमारी की तरह
सोचा करती थी.. की कोई राजकुमार आयेगा और
उसको लेकर जायेगा.. ये शर्त वो अपनी मर्ज़ी से
कभी भी नहीं मान सकती थी, "नहीं.. ! मैं ऐसा नहीं कर
सकती !" कन्डक्टर के नरम पड़ जाने पर उसके जवाब में
भी थोड़ी सी कठोरता आ गयी थी..
"तो क्या कर सकती हो..? कपड़े सारे नहीं निकाल
सकती तो कम से कम कमीज ही निकाल दो..."
कन्डक्टर गौरी का गदराया जवान जिस्म देखकर
पिघलता जा रहा था...
नहीं.. प्लीस.. मुझे जाने दो... अभी नहीं.. मनाली जाने के
बाद.. पक्का.. ! कन्डक्टर को भी लग रहा था की वो कुछ कर नहीं पायेगा
.. एक तो डर था.. दुसरे रोड पर.. और तीसरा.. गौरी के
जिस्म की गर्मी से उसका रस निकालने के लिए तड़प
रहा था..," ठीक है.. बस एक काम कर दो.."
"क्या.... ?"
"तुम नीचे बैठ जाओ !" कन्डक्टर ने अपना लंड सहलाते हुए कहा...
"क्यूँ.. ?" गौरी ने इंग्लिश फिल्मों में गर्ल्स को लंड
चूसते देखा था उसका भी बहुत मन था ऐसा करने का पर
अपने राजकुमार के साथ, और कन्डक्टर में से
तो उसको वैसे भी बदबू आ रही थी..
अब मैंने तुमको ना चोदने की बात मान ली है.. तो ये मत सोचो की मैं शरीफ हूँ, याद रखना अगर एक बार भी अब
मैंने तुम्हारे मुँह से और 'ना' या 'क्यूँ' सुना तो नीचे फैंक
दूँगा साली.., कन्डक्टर फिर उफन गया..
गौरी सहम गयी, वो तो भूल ही गयी थी की वो एक
गहरी खायी के पास खड़ी है और ये कन्डक्टर कुछ
भी कर सकता है.. वो कन्डक्टर के चेहरे की और देखती हुयी सी नीचे बैठ गयी.. कन्डक्टर की पैंट
का उभार उसकी आँखों के सामने था..
कन्डक्टर ने झट से अपनी पैंट की जिप खोल दी.. कच्छे
में से सांप की तरह फुंकारता हुआ काला लंड
गौरी की आँखों के सामने झूल गया.. गौरी डरकर पीछे
गिर गयी.., "बैठो !" कन्डक्टर ने आदेश सा दिया.. गौरी मरती क्या ना करती वो फिर से बैठ गयी, पर
उसने मुँह दूसरी और घुमा लिया..
कन्डक्टर का काम अब होने ही वाला था.. उसको लंड हाथ
में लेते ही महसूस होने लगा था की अब वो पल दो पल
का ही खिलाड़ी है.. इतनी हसीन लड़की को अपने
सामने घुटनों के बल बैठा देख कर ही उसकी नसों में उफान सा उठने लगा.. और अचानक ही उसने एक तरफ होकर
अपने लंड से तेज पिचकारी छोड़ दी, "उफ़..
आआअह्ह्ह्ह........"
कन्डक्टर शर्मिंदा सा हो गया.. उसने चुपचाप अपनी पैंट
की जिप बंद की और कहते हुए निकल गया,
"अभी छोड़ रहा हूँ.. अपना वादा याद रखना.." गौरीकी जान में जान आई और वो बस की और भागी.....
कन्डक्टर आराम से बस की और चलता जा रहा था.. वह
सोच ही रहा था की वापस जाये या नहीं.. गौरी उससे
काफी आगे निकल चुकी थी.. वो बस में जाकर
बाकि लोगों को बता भी सकती थी.. अचानक
उसको सड़क से कुछ ही दूरी पर एक आदमी और एक
औरत की हँसने की आवाज सुनी.. उत्सुकतावश वह पगडंडी से दिखाई दे रहे रास्ते पर उतर गया.. कुछ नीचे
उतरने पर आवाजें इस्पष्ट होने लगी.. साली उसदिन
तेरी गांड का जो हाल किया था उसको भूल गयी, आज
तेरी माँ दादी बेटी सब एक साथ कर दूँगा.. "टफ
प्यारी देवी से कह रहा था.."
करदे ना मेरे राजा.. ! सारी रात निकल गयी.. उस बहनचोद अंजलि की गांड ना आती तो साथ में.. ! तो मैं
तेरी गोद में ही बैठकर आती.. "कहकर प्यारी ने टफ
का लंड मुँह में ले लिया..
कन्डक्टर की तो जैसे उस दिन लॉटरी लगनी ही थी..
उसने देखा.. एक औरत उनको छुपकर देख रही है.. सब
करते हुए.. दबे पाँव उसने जाकर देखा.. ये तो कोई लड़की है..
कन्डक्टर ने उस लड़की को ही अपना शिकार बनाने
की सोची.. धीरे से पीछे जाकर उसने लड़की के मुँह
को दबा लिया.. पर उसका हाथ उसके मुँह की बजाय उसके
नाक के ऊपर रख गया.., "ऊयीई माँ.. !"
सरिता की अचानक की गयी इस हारकर से चीख निकलगयी.....
टफ और प्यारी दोनों चौंक पड़े.. प्यारी ने
अपनी बेटी की आवाज पहचान ली.. टफ ये सोच
रहा था की आखिर सरिता ने चीख क्यूँ मारी.. सब
समझाया तो था की कब आना है.. कन्डक्टर बेचारा यहाँ से
भी भाग गया.. "आ जाओ सरिता.. !" टफ ने सरिता को पास
बुला लिया.. सरिता को जैसे पता नहीं क्या मिल
गया हो.. , "मम्मी आप.. !"
प्यारी को कुछ कहते नहीं बन पा रहा था..,"बेटी वो ये
साला मुझे जबरदस्ती घसीट लाया.. !"
"हाँ वो तो मुझे दिख ही रहा है.. मम्मी... !" "देख सरिता ! मैंने तेरी इतनी बातें छुपायी हैं अब अगर
तू.... !"
"मैं कुछ नहीं बताऊँगी मम्मी.... बस मैं तो.... !"
"आजा तू भी आजा.. ! जब आ गयी है तो..
चलो अब कुछ नहीं होगा.. वो साला कौन था पता नहीं..
हमें जल्दी से बस के पास चलना चाहिए ! क्या पता किसको ले आये.., टफ ने अपनी पैंट ऊपर
की और प्यारी को भी उठा दिया.. दोनों बुत बनी उसके
पीछे चलती गयी.....
बस के पास ही आग जली हुयी थी और सब ठंड में उसके
चारों और बैठ कर किसी तरह रात काट रहे थे....
तभी गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज हुयी.. ड्राईवर ने नीचे आकर कहा, "गाड़ी ठीक हो गयी है.. जल्दी बैठो.. !"
सभी खुश होकर बस में बैठ गये.. पर अब की बार कुछ
सीटों की अदला-बदली हो गयी थी..
चलते-चलते करीब सुबह के ४:३० बजे गाड़ी होटल के
सामने रुकी..
सभी नींद में डूबे हुए थे.. सुनील ने १३ कमरों की पेमेंट करी सभी को उनके कमरे दिखा दिये.. एक कमरे में ४
लड़कियाँ थी.. अंजलि और प्यारी का रूम अलग था..
सुनील और टफ का अलग और राकेश का अलग.. सुनील ने
जानबूझ कर राकेश को अलग कमरा दिलवा दिया..
ड्राईवर और कन्डक्टर के रूम की बराबर में.. इस तरह कुल
१५ कमरे बुक हो गये ३ दिन के लिए.. सभी अपने अपने कमरों में जाकर सो गये..
टफ ने उठकर टाइम देखा, सुबह के १० बज चुके थे..
टफ: अभी भी सो रहा है.. उसने सुनील को उठाया.. सुनील
ने जोर की जम्हाई लेते हुए आँखे खोली..
सुनील ने उठकर पर्दा हटाया.. दूर चोटियों पर
जमी बर्फ सूर्य की रौशनी से चमक रही थी..
सुबह उठकर सब नाश्ते के बाद मनाली घूमने चले गये.. करीब १२ बजे तक सभी नहा धोकर तैयार हो चुके थे..
बाहर मस्ती करने जाने के लिए..
दिन भर सबने खूब मजा लिया मनाली में घूमने का और
मार्केट में खरीदारी करने का..
पहले शाम तक मार्केट में घूमें और हिडिम्बा का मंदिर
देखा... उसके बाद वो सब होटल में लौटे और खाया पिया..
सभी लड़कियाँ जो पहली बार बाहर घुमने निकली थी..
बड़ी ही खुश थी...
टफ ने मौका देखकर सुनील से पूछा, "यार.. ! तुझे मजा आ
रहा है ?"
सुनील ने सामान्य बनने की एक्टिंग करते हुए कहा, "हाँ.. ! आ रहा है ! क्यूँ... ?
"क्यूँ झूठ बोल रहा है यार.. !" मुझे सब पता है..
तेरा अंजलि मैडम के साथ कुछ सीन है....
सुनील ने लम्बी साँस लेते हुए कहा, "नहीं यार.. मतलब
हाँ है.. पर क्या हो सकता है.. ?"
टफ ने लगभग उछलते हुए कहा, "हो सकता है मेरे यार.. तू आज रात अंजलि को अपने पास बुला ले.. !"
सुनील ने गौर से टफ को देखा, "और प्यारी मैडम
का क्या करेंगे.. ?"
अबे मैं प्यारी के लिए ही तो यहाँ आया हूँ.. सोच ले
मेरा भी काम हो जायेगा तेरा भी..
सुनील बहुत खुश हुआ.. तुने तो कमाल कर दिया यार, ये हुयी ना बात.. अब आयेगा टूर का मजा !" और फिर
प्रोग्राम सेट हो गया..
शाम होने से पहले ही टफ ने सरिता को भी सब कुछ
समझा दिया..
उधर सुनील ने मौका देखकर गौरी को रोका,"गौरी;
लाइव मैच देखना है तो रात को मेरे कमरे में आ जाना १० बजे के बाद.. !"
गौरी ने हिचकिचाते हुए पूछा, "किसके साथ... ?"
"वही... तेरी दीदी(माँ).. अंजलि के साथ.. !" सुनील
मुस्कुराया...
गौरी इतनी खुश हुयी की वो उछल पड़ी.. "ओके सर.... मैं
१० बजे के बाद आ जाऊँगी.... "
रात को गौरी अपने कमरे से छुप कर बाहर
निकली ही थी की सामने से आ रहे राकेश ने उसका हाथ
पकड़ लिया, "गौरी.. !" गौरी ने अपना हाथ झटका और
तुनकते हुए जवाब दिया, "तुमने क्या मुझे, 'फॉर सेल'
समझ रखा है.. "गौरी कहते हुए आगे बढ़ने को हुयी.. पर
जाने क्या सोच कर वापस अपने कमरे की और चली गयी.. "रात को लाइव मैच देखने के लालच ने
उसको फँसा ही दिया था" अब वह राकेश की नजरों के
साने सुनील के कमरे में जाने का खतरा मोल नहीं लेना चाह
रही थी शायद.. !
राकेश पछता रहा था.. पर वो उसको जाते देखता रहा, और
वो कर भी क्या सकता था इसके सिवाय.. लगभग बाकि सभी सो चुके थे.. होटल में सारे कमरे
वो बुक कर चुके थे.. चोकीदार नीचे लेटा हुआ था..
"नो रूम्स एवेलेबल" का बोर्ड होटल के बाहर लटक
रहा था...
उधर जैसे ही अंजलि सुनील के कमरे में
गयी वो दरवाजा बंद करना ही भूल गयी.. कब से अपने नये यार से मजे लेने को उसका बदन तैयारहो चूका था.. वह
भागती हुयी सी आयी और बेड पर लेटे सुनील के ऊपर
गिर पड़ी.., "कितना तड़पी हूँ में तुम्हारे लिए.." उसने
सुनील के होंटो को अपनी जीभ से तर कर दिया और
फिर उनको चूसने लगी.. सुनील ने अपने हाथ
उसकी गांड के मस्त उभारों पर चलाने शुरू कर दिये.. अंजलि ने ऊपर चढ़े-चढ़े ही अपनी टाँगे मोड़ कर
अपनी गांड को और उभार लिया.. ताकि सुनील और
अन्दर तक उसको छू सके....
जब गौरी कमरे में अचानक घुसी तो सुनील और
अंजलि एक दुसरे को चूम रहे थे बुरी तरह.. अंजलि एक
दम चौंकी.. पर सुनील ने उसको अपने ऊपर से उठने ना दिया, "ये अन्दर कैसे आयी... ?"
"तुमने ही दरवाजा खुला छोड़ दिया !" सुनील उसके
शरमाये हुये चेहरे को अपने हाथों में पकड़े बोला..
गौरी दरवाजा बंद कर चुकी थी..
अपनी जिंदगी का पहला लाइव मैच देखने के लिए..
शायद खेलने के लिए नहीं.. किसी तरह से मचल कर अंजलि ने आपने
आपको सुनील की बाँहों से आजाद कराया और अपना सर
नीचा करके बैठ गयी..
गौरी उसके पास आयी और बोली, "कोई बात
नहीं दीदी.. ! मुझे बुरा नहीं लगता..
बल्कि अच्छा लगता है... "आप ऐसे क्यूँ मुँह लटकाएँ बैठी हैं.. ?"
"नहीं, कुछ नहीं.. !" अंजलि के पास इससे ज्यादाबोलने
को कुछ था ही नहीं..
सुनील गौरी के उभारों को गौर से देख रहा था.. आज
ही नई खरीदी, घुटनों से भी ऊपर तक की नाईटी में
वो गजब ढ़ा रही थी.. सुनील जल्दी से उसको खेल दिखा कर गरम करना चाहता था, ताकि वो भी खेल में
शामिल हो सके, "अंजलि.. ! सब तुम्हारी गलती है.., अब
हमें गौरी के आगे ही..."
"नहीं प्लीस.. गौरी !" अंजलि ने गौरी की और
याचना की द्रिष्टि से देखा.. जैसे
वो बड़ी नहीं बल्कि गौरी से भी छोटी हो..
गौरी तो माँ बनाकर आयी थी.., "ये गलत है दीदी.. !
आपने प्रोमिस किया था.. और आज तो मैं आपको रँगे
हाथो पकड़ चुकी हूँ... आपका और सुनील सर का मैच तो मैं देखकर ही रहूँगी....
"क्यूँ जिद कर रही हो... देखने दो ना... और फिर ये
तो लड़की ही तो है... जब मुझे शर्म नहीं आती तो तुम्हे
क्यूँ आ रही है...?"
अंजलि सर झुकाये बैठी रही... उसको अब लग रहा था,
अपनी बेटी के आगे नंगा होना पड़ेगा.... गौरी बेड के साथ रखी एक कुर्सी को खींच कर बेड के
सामने ले आयी और उस पर बैठ गयी.. बैठने की वजह से
उसकी पतले कपड़े की नाईटी ऊपर सरक आयी.. सुनील
की नजर उसकी चिकनी शायद वैक्स
की हुयी दमकती जाँघों पर पड़ी.. इतनी सुन्दर
मखमली जाँघे सुनील ने कभी देखि नहीं थी.. बैठने की वजह से उसके पुठ्ठे कातिल तरीके से बाहर की और
उभर आये.. गौरी ने जब इतने बुरे तरीके से उसके नीचे
की और झाँक रहे सुनील को देखा तो वह
सकपका गयी और अपनी टाँगों को सीधा करके बेड के
नीचे सरका दिया और अपनी नाईटी ठीक करी,
"चलो अब शुरू हो जाओ.. ! बड़ा मजा आयेगा.. !" सुनील ने अंजलि को अपने पास खींच लिया और
उसकी नाईटी उतारने लगा.. पर अंजलि ने
अपनी नाईटी को नीचे से कसकर पकड़ लिया.., "पहले
तुम उतारो.... !"
सुनील ने झट से अपनी शर्ट उतार कर बेड पर फैंक दी..
उसको क्या अपने घुँघरू टूटने का डर था.. वह अंजलि की और बढा तो उसने फिर उसको बीच में
ही टोक दिया, "नीचे से भी... !"
"चलो ठीक है.. ये भी सही.. !" सुनील ने अपनी पैंट
भी उतार दी.. अब वह सिर्फ अंडरवियर में था जिसमें
से उसके तने हुये लंड के साफ महसूस होने ने,
गौरी को भी शर्माने पर मजबूर कर दिया उसकी धड़कने तेज़ हो गयी.. सुनील ने गौरी की और देखा तो वो दाँयें-
बाँयें नजरे चुराने लगी.. सुनील ने अंजलि कोकहा, "अब
तो ठीक है.."
"नहीं; ये भी उतारो.. !" अंजलि सुनील को ऐसे गौरी के
सामने देखकर अपनी हँसी पर मुश्किल से काबू
पा रही थी.. वो जैसे तैसे टाइम ही गुजार रही थी ताकि गौरी खुद शर्मा कर भाग जाये..
उसका सोचना सही था पर सुनील ने
इसका मौका ही नहीं दिया.., अब ये गलत बात है.. खुद पूरे
कपड़े पहन रखे हैं.. और मुझे ही नंगा कर रही हो.., "क्यूँ
गौरी.. ! सही कह रहा हूँ ना"
गौरी शर्मा गयी.. नजरें नीची करके अपना सर हिला दिया.., "लाइव मैच देखना कोई" पाँचवी पास से
तेज" वाला गेम नहीं था.. इसमें तो बड़ी-बड़ी बेशर्म और
बेबाक लड़कियाँ भी मैदान छोड़ कर भाग जाती हैं
या फिर मैच में शामिल हो जाती हैं.. अब
गौरी को महसूस हो रहा था की ये शर्त खुद उसके लिए
कितनी मुश्किल थी.. पर हिम्मत करके बिना देखे उसने सुनील की बात का जवाब जरूर दिया था.. हाँ में.. !
सुनील अंजलि पर झपट गया और उसके विरोध के
बावजूद उसकी नाईटी खींच कर निकल दी.. वह सिर्फ
ब्रा और एक सफेद पैंटी में ही रह गयी थी.. गौरी ने देखा,
पैंटी नीचे से गीली थी.. तभी उसको लगा उसकी चूत
भी चूने लगी है धीरे-धीरे..
अंजलि सिमट कर बेड के सिरहाने जा लगी,
जितना अधिक हो सकता था उसने अपने आपको छुपाने
की कोशिश करी.. अपने पैर मोड़ लिए और आगे झुक
गयी.. उसको सुनील से नहीं बल्कि गौरी के आगे
सुनील से शर्म आ रही थी.. गौरी नहीं होती तो वो कब
का गेम पूरा भी कर चुके होते... सुनील ने अंजलि को अपनी और खींच लिया और कमर
के उस पार हाथ फँसा कर ब्रा का हूक खोल दिया..
ब्रा खुलते ही अंजलि बेड पर पेट के बल गिर पड़ी और
अपनी चूचियों को चादर में छुपा लिया...
गौरी जैसी क़यामत की चीज भी अंजलि की मस्त
चूतडों की गोलाईयाँ देख कर आह.. किये बिना ना रह सकी.. उसकी गांड मस्त सॉलिड थी और गांड से नीचे
उसकी जाँघों के बीच चिपकी हुयी उसकी पैंटी में से
उसकी फाँकों की मोटाई झलक रही थी..
गौरी ने अपने आपको संभाला और गीली होने की वजह
से चिपक चुकी उसकी पैंटी को अपनी गांड पर से
हटाया, अपना हाथ नीचे ले जाकर.. अब सुनील का ध्यान भी गौरी से हटकर अंजलि की जाँघों पर ही अटका हुआ
था.. थोड़ी साँवली पर चिकनी मस्त जाँघे उसके सौंदर्य
का बखान कर रही थी.......
अंजलि का ध्यान अपने पिछवाड़े पर नजरें गड़ाए हूई
गौरी पर पड़ी.. उसको अचानक ही अपने
चूतडों का ख्याल आया और वह एक दम से उठकर गौरी से जा चिपकी, "खेल देखना है तो तुझे भी मेरी तरह
होना पड़ेगा.. गौरी हडबडा कर कुर्सी से पीछे गिर
पड़ी.. पीछे होने की वजह से सुनील को, उसकी माँसल
जाँघों की जड़ में छुपी बैठी उसकी पैंटी और चूत के उभार
के दर्शन हो गये.. सुनील धन्य हो गया... गौरी को भोगने
की उसकी इच्छा और बलवती हो गयी.. गौरी ने उठने की कोशिश की पर अंजलि ने
उसको वही दबोच लिया और उसकी नाईटी ऊपर
सरका कर उसको पेट तक ला दिया.. दोनों हँस
भी रही थी और शर्मा भी रही थी.. गौरी की गोरी और
साफ पेट देखकर सुनील अपने लंड को पकड़ कर बैठ
गया गौरी की नाभि और उसका कमसिन पतला पेट गजब ढा रहा था.. सच ही उसका नाम गौरी था.. गोरी... !
तभी अंजलि उसको पकड़े-पकड़े ही सुनील को कहने
लगी, "इधर आओ ना.., मेरी मदद करो इसके भी कपड़े
उतरने चाहिये ना.. फ्री में ही मजे ले रही है..!"
"नहीं सर.. प्लीस.. मैं मर जाऊँगी... !" गौरी अपने हाथ से
पकड़ कर अपनी नाईटी को और ऊपर उठने से रोक रही थी.. उसकी हँसी कम होती जा रही थी और उसके
चेहरे पर शर्म की चादर चेहरे पर, पैर
पसारती जा रही थी...
सुनील ने झुक कर गौरी को अपनी बाँहों में उठा लिया..
गौरी ने कुर्सी को पकड़ कर अपने
आपको उसको बाँहों में जाने से रोकने की कोशिश की पर कुर्सी भी साथ ही उठती चली गयी...
सुनील ने अंजलि से पूछा, "क्या करना है अब इसका... ?"
अंजलि मुस्कुरायी और गौरी के चेहरे पर प्यार से हाथ
फेरते हुये बोली, "नंगा.. !" अब वह अपने नंगेपनको भूल
कर गौरी की इज्जत उतरवाने पर उतारू हो गयी....
शर्म से पानी-पानी हो चुकी गौरी ने
अंजलि को अपनी बाँहों का घेरा डाल कर पकड़ लिया,
"दीदी... प्लीस.. !" छोड़ दो ना.. !" उसने गौरी को कसकर पकड़ लिया... सुनील ने
तो गौरी को पकड़ा ही हुआ था... दोनों बेड पर जाकर बैठ
गये.. गौरी उन दोनों के बीच झूलती हूई बेड पर
जा टिकी....
सुनील का एक हाथ गौरी की जाँघों पर था... उसने हाथ
को बातों-बातों में थोड़ा सा और ऊपर करके उसकी पैंटी के ऊपर रख दिया.. वहाँ उसने
गौरी को कसकर पकड़ा हुआ था.....
अंजलि उसकी गर्दन को अपनी गोद में रखे उसके
हाथों को पकड़े हुये थी...
मैच देखने आयी गौरी की हालत पतली हो गयी... पर
उसको लग रहा था वो सुरक्षित हाथों में है... अपनी मम्मी और अपने सर के हाथों में... इसीलिये
ठोड़ा सा निश्चिंत थी...
लेकिन अब गौरी की हालत पतली होती जा रही थी..
मर्द के हाथ उसकी चूत के पास होने से वो लाख चाह कर
भी अपने आपको बेचैन सा महसूस कर रही थी... उधर
अंजलि उसके कपड़े उतारने पर आमादा थी.. सुनीलचुपचाप उसकी छातियों का उठना बैठना देख रहा था..
जब सीधी ऊँगली से ही घी निकल
रहा हो तो टेढ़ी करके क्या फायदा... वो इंतजार कर
रहा था की कब अंजलि उसको नंगा करे और कब वो उस
बेमिसाल हुस्न की मल्लिका के दीदार कर सके...
गौरी के लाख कोशिश करने पर भी जब अंजलि ने उसके हाथों को नहीं छोड़ा तो उसने अपना सर
अंजलि की गोद में घुसा दिया.. अंजलि की रस से
भरी पैंटी की भीनी-भीनी खुश्बू उसका विरोध लगातार
ढीला करती चली गयी... अंजलि ने पहले ही पेट तक आ
चुकी उसकी नाईटी को उसकी ब्रा के ऊपर तक
सरका दिया.. वो मचलती रही... पर अब मचलना पहले जैसा नहीं था... शायद दिखावा ज्यादा था... वो सेक्स के
प्रति मानवीय कमजोरी से टूटती जा रही थी लगातार...
सुनील उसके अकल्पनीय यौवन को देखकर पत्थर
सा हो गया... वो सोच रहा था, सुंदर
तो उसकी बीवी भी बहुत है... पर क्या १८ साल और २२
साल में इतना फर्क आ जाता है.. या फिर पराया माल कुछ ज्यादा ही अच्छा और प्यारा लगता है.... उसका हाथ
उसकी जाँघ से ऊपर उठकर उसके पेट पर ब्रा से
ठोड़ा सा नीचे जाकर जम गया... क्या चीज है यार.. !
अंजलि ने थोड़ी सी कोशिश और की और नाईटी उसके
हसीन बदन से अलग होकर बेड के सिराहने पर जाकर
टंग गयी...
गौरी का दिल इतनी तेजी से धड़क
रहा था की उसकी धक्-धक् बिना स्टेथोस्कोप के
अंजलि और सुनील को सुनाई दे रही थी.. सुनील
का दिल उसकी छातियों की ताल से ताल मिला कर
धड़क रहा था.. अपनी कोहनी से अपनी आँखों को ढके
गौरी ये सोच रही थी की जब उसको कुछ नहीं दिखता तो औरों को भी नहीं दिखता होगा, ठीक
उस कबूतर की तरह जो बिल्ली को आया देख आँखेंबंद
करके गुटरगू करता रहता है उड़ने की बजाय..
गौरी को नहीं पता था की सुनील की आँखें
बिल्ली की तरह ही उसकी घात लगाये बैठी हैं..
उसका शिकार करने के लिए, अंजलि के मन में भी उसको सुनील की जाँघों पर सवार करने का कोई
इरादा नहीं था वो तो बस अपनी झिझक दूर करने के
लिए ही उसको शर्म से पानी-पानी कर
देना चाहती थी... जब अंजलि ने सुनील
को उसकी पैंटी और ब्रा पर नजर घुमाते
देखा तो वो सुनील का आशय समझ गयी.. उसने गौरी को छोड़ दिया, "जा उठकर अपने कपड़े पहन ले...
अब तो समझ आ गया होगा की कितनी शर्म आती है..
अगर तू सच में दिल से मुझे दीदी कहती है तो प्लीस
यहाँ से चली जा...
गौरी को अपनी गलती का अहसास हो गया था पर
उसको इस कदर गरम करके सुनील की बाँहों से उठा देना उसको अजीब सा लगा.. पर अपने आपको उसने
संभाला और अपनी नाईटी पहन ली.. वह आकर
अपनी दीदी माँ से लिपट गयी, "आई लव यू मम्मी..!"
पहली बार गौरी को अहसास हुआ की नारी चाहे
सगी माँ हो या सौतेली, पर माँ तो माँ ही होती है...
पहली बार उसने अंजलि को माँ कहा.. दोनों की आँखें छलक आयी.......
अचानक गौरी एकदम से पलटी और नमिता ने मुश्किल
से अपने को गिरने से बचाया.. उसने देखा..
गौरी अभी भी सो रही है.... और नींद में ही कुछ
बडबडा रही है.. उसने गौरी को उठाया.. अभी भी वोसपने
में देखे गये लाइव मैच की खुमारी से बाहर नहीं निकल पाई थी..
गौरी ने उठकर टाइम देखा, "सुबह के १० बज चुके थे..."नमिता ने उससे कहा, "क्या बात है.. ? चलना नहीं क्या.. ?
उठ कर तैयार हो ले जल्दी.."
"हमें तो रात को ही निकलना था ना.. ! गौरी ने जोर
की जम्हाई लेते हुये कहा.. "कोई सपना देख रही है क्या गौरी.. अभी एक दिन पहले
तो पहुँचे हैं.. तू वापसी की बात कर रही है....
गौरी का ध्यान अपनी पैंटी पर गया.. वो पूरी तरह उसके
योनी रस से चिपकी सी हूई थी, शायद रात को कई बार
नाईटफॉल हो गया...
गौरी ने उठकर पर्दा हटाया.. दूर चोटियों पर जमी बर्फ सूर्य की रौशनी से चमक रही थी.. वो बाथरूम में घुसकर
जोर-जोर से सुबकने लगी.. उसको अहसास हो गया,
माँ तो आखिर माँ ही होती है सौतेली हो या सगी.. !
उसने निश्चय कर लिया, अब से वह
अंजलि को मम्मी ही बोलेगी.....
कुछ देर ऐसे ही लेटे रहने के बाद उनको ठंड फिर से लगने लगी.. चारों ने अपने कपड़े पहने... कपड़े पहनते हुये..
तीनो सुनील को अपनी मादक नजरों से धन्यवाद् बोल
रही थी... सुनील उनको अपने से चिपका कर बस
की तरफ चल दिया... तीनो लड़कियाँ अलग-अलग बस
के पास गयी... सुनील बस से पहले ही कहीं बैठ गया.. कुछ
देर बाद जाने के लिये... अब मुस्कान को अदिति से कोई जलन नहीं थी... वो हँसती हुयी बस में
चढ़ी तो कविता बड़े इत्मिनान से पिछली सीट पर
अपनी टाँगें फैलाये सो रही थी.....
उधर सुनील के जाने के बाद टफ की नजरें सरिताको ढूंढ़
रही थी करीब सुनील के जाने के १० मिनट बाद..
टफ, प्यारी और सरिता में से किसी एक की ताक में
बैठा था पर प्यारी तो अंजलि के पास थी.. मजबूरी मैं.. !
टफ अगर टीचर होता तो किसी भी लड़की के
हाथों सरिता को बुला लेता.. अचानक ही उसको एक आईडिया आया.. वह अंजलि और प्यारी मैडम के पास
ही जाकर खड़ा हो गया...
अंजलि ने उसको देखकर पुछा, "सुनील जी कहाँ गये ?"
वह भी प्यारी को छोड़ कर कब की २ पल के लिए
सुनील की बाँहों में जाना चाहती थी....
"यहीं होंगे ! शायद बस के दूसरी तरफ बैठे हो" टफ को पता था सुनील किसी कबूतरी के साथ गया है.. पर
उसने जान बूझ कर झूठ बोला, "वो भी आपको ही ढूंढ़ रहे
थे !"
टफ के मुँह से ये सुनकर अंजलि खुश हो गयी,"हाँ मुझे
भी उनसे बात करनी थी.. मैं अभी आती हूँ.." कहकर
वो चली गयी अंजलि के जाते ही टफ ने प्यारी के चूतडों पर
चुटकी काट ली.., "अपने खटमल के डंक
को भी नहीं पहचानती"
प्यारी भी शाम से ही अपनी गांड की खुजली मिटाने
की जुगत में थी.., "ये साली प्रिंसिपल
मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही.. कब से पानी टपक रहा है अन्दर से, पता है तेरे को.. कुछ हो नहींसकता क्या ?"
टफ ने नपे तुले शब्दों में कहा, "अगर चुदवानी है तो उस
तरफ अँधेरे में चली जाओ.. मैं यहाँ सब सेट करके आता हूँ..
प्यारी देवी मुस्कुरायी और जाकर अँधेरे में खड़ी हो गयी
.. जिस तरफ गौरी गयी थी..
उसके जाते ही टफ ने सरिता को ढूंढा.. और उसके सामने जाकर खड़ा हो गया.. सरिता उसको अकेला देखते ही बस
में जा चढ़ी मरवाने के लिए..
टफ ने भी दाँयें-बाँयें देखा और उसके पीछे बस में जा चढ़ा..,
"अरे बुलबुल ! कहाँ उड़ गयी थी.. उसने जाते
ही सरिता की दोनों चुचियों को पकड़ा और
उनको मसलने लगा.. सरिता ने दर्द के मारे अपनी एडियाँ उठा ली.., "क्या कर रहा है.. जल्दी पीछे
आजा.. कर दे..
टफ ने रहस्यमयी मुस्कान उसकी तरफ फैंकी..,"ऐसे
नहीं करूँगा मेरी रानी.. आज तेरे को बहुत बड़ा सर्प्राइस
दूँगा.."
"क्या ?" सरिता उत्सुक हो गयी..
टफ ने सर खुजाते हुए कहा, "तेरी मम्मी को चोदुंगा पहले
!"
"क्या.. ?" सरिता ने हैरानी से कहा, "हाँ.. मुझे पता है
वो ऐसी हैं.. पर किसी अनजान के साथ..! "नहीं ये
नहीं हो सकता !"
टफ ने सरिता की जाँघों में हाथ डालते हुए कहा, "मैं उसकी गांड भी मार चूका हूँ.. समझी.. बोल
तमाशा देखना है.. ?
सरिता ने अविश्वास के साथ अपने मुँह पर हाथ रख
लिया.. पर तमाशा तो उसको देखना ही था..
अपनी माँ को चुदते हुए देखने का तमाशा, "हाँ !दिखाओ..
कहाँ है मम्मी ?" सरिता ने उसकी चूत को मसल रहे हाथ को हटाते हुए कहा..
मैंने उसको आगे भेज दिया है वो कुछ दूर जाकर
खड़ी होगी मैं भी जा रहा हूँ.. मैं उसको पीछे नहीं देखने
दूँगा तुम बगैर आवाज किये पीछे-पीछे आ जाना....
कहकर टफ बस से उतर कर उसी और चल दिया, जिस
और उसने प्यारी को भेजा था.. सरिता बस के दूसरी और से घूमकर आयी और उससे दूरी बना कर चलने लगी..
अपनी मम्मी को चोदते हुए टफ को देखने
की इच्छा बलवती होती गयी.....
टफ जल्द ही प्यारी के पास पहुँच गया उसने जाते
ही प्यारी के कंधे पर अपनी बाँह रख दी, ताकि वो पीछे
देखने ना पाए.. , "बहुत देर लगा दी ! कहाँ रह गया था ?" प्यारी रोमांचसे भरी हुयी थी ठंडीवादियों में चुदने के
रोमांच से..
टफ ने कोई जवाब नहीं दिया और उसको ऐसे ही दबाये
आगे चलने लगा..
सरिता ने भी पीछे-पीछे चलना शुरू कर दिया चुपके-
चुपके.... ! गौरी छुपती छुपाती उस साये के पीछे जाती रही..
साया कुछ दूर जाने के बाद ठिठका, उसको अहसासहुआ
की उसके पीछे कोई है.. जाने क्या सोचकर
वो साया चलता रहा.. गौरी उसके पीछे-पीछे थी..
वो दोनों काफी दूर निकल आये..
जब वो बस से करीब आधा किलोमीटर नीचे की और आ गये तो अचानक वो साया पीछे भागा और उसने
गौरी को दबोच लिया.. गौरी कसमसाई.. अचानक हुए
इस हमले में वो हडबडा कर कुछ कर नहीं पाई.. उसने
कम्बल ओढे उस शख्स की आँखों में झाँका..
गौरी उस कन्डक्टर के शिकंजे में अपने आपको पाकर
बहुत डर गयी.. कन्डक्टर भी उसको देखकर हैरानथा.. उसने राकेश को कविता की और इशारा करके जाते
देखा था और वो इसीलिए राकेश के पीछे
गया था की अगर वो दोनों कुछ करेंगे तो थोड़ा प्रसाद
उसको भी जरूर मिलेगा.. रँगे हाथों पकड़ लेने पर.. पर
उसको राकेश कहीं दिखाई ही नहीं दिया इतनी दूर
आने पर.....
पर जब उसने कविता की जगह गौरी को देखा तो एक
बार वो ठिठक गया.. गौरी उसकी बाँहों की कैद से
निकलने के लिए छटपटा रही थी.. कन्डक्टर ने उसके
चेहरे से हाथ हटा लिया..
गौरी को थोड़ी सी राहत मिली, "तुम.. ? छोड़ो मुझे.."
वो डरी हुयी थी, उसको अपनी जाँघों पर कन्डक्टर का लंड चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था....
उसको डर से काँपते देख कन्डक्टर का होंसला बढ़ गया,
उसने सोच लिया था.. चाहे यहाँ से ही वापस भागना पड़े,
इस हूर.. को चोदे बिना नहीं रहूँगा.., ज्यादा चिक-
चिक करी तो जान से मार कर पहाड़ी से फैंक दूँगा साली
.. ! यहाँ क्या अपनी माँ चुदाने आई थी मेरे पीछे... ? गौरी उस पल को कोस रही थी जब उसके दिमाग में
राकेश और कविता का लाइव मैच देखने की खुरापात
उभरी.. वो डर से काँप रही थी.. वो कन्डक्टर से
याचना करने लगी.. मरी सी आवाज में, "प्लीस भैया मुझे
छोड़ दो.." मैं तो कविता समझ कर आपके पीछे आई थी..
मैं ऐसी लड़की नहीं हूँ.. मुझे जाने दो प्लीस.. मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूँ..
तू अपनी बकवास अपने पास ही रख.. कविता को देखने
आई थी.. साली.. बहनचोद.. मैं ६ फ़ुट का तुझे
कविता दिखता हूँ ! अभी दिखाता हूँ तुझे अपना,
कन्डक्टर ने अपना तना हुआ लंड उसकी जाँघों पर और
ज्यादा चुभा दिया.. गौरी को वो लंड किसी पिस्टल से कम नहीं लग रहा था.. जितना डर गन का गर्दन पर
रखे जाने से लगता है.. लगभग यही हाल उसकी चूत के पास
जाँघ पर गढ़े हुए लंड को महसूस करके गौरी का हो रहा था
.., "नहीं.. ! मैं मर जाऊँगी भैया.. प्लीस मुझ पर रहम करो
..."
कन्डक्टर ने दुसरे रास्ते से उसको लाइन पर लाने की सोची, "एक शर्त पर तुझे कुँवारी छोड़ सकता हूँ.. ?"
गौरी उसकी हर शर्त से मना करके उसके मुँह पर
थूकना चाहती थी.. पर उसके पास और कोई चारा ही ना था
..., "क.. कैसी शर्त.... ?"
गौरी उसकी बाँहों में ही कसमसा रही थी..
उसकी चूचियाँ कन्डक्टर की छाती से लगी हुयी थी.... "तुमको एक बार अपने सारे कपड़े निकालने होंगे..... !"
कन्डक्टर की शर्त सुनते ही गौरी सिहर गयी.. उसके
सामने कपड़े निकालना तो अपनी इज्ज़त लुटाने
जैसा ही था.. माना वो थोड़ी सी ठरकी और सेक्सी टाइप
की थी पर आज तक कभी उसने सोचा तक ना था की कोई
यूँ उसके कपड़े निकालने को कह देगा.. वो तो हमेशा ही एक राजकुमारी की तरह
सोचा करती थी.. की कोई राजकुमार आयेगा और
उसको लेकर जायेगा.. ये शर्त वो अपनी मर्ज़ी से
कभी भी नहीं मान सकती थी, "नहीं.. ! मैं ऐसा नहीं कर
सकती !" कन्डक्टर के नरम पड़ जाने पर उसके जवाब में
भी थोड़ी सी कठोरता आ गयी थी..
"तो क्या कर सकती हो..? कपड़े सारे नहीं निकाल
सकती तो कम से कम कमीज ही निकाल दो..."
कन्डक्टर गौरी का गदराया जवान जिस्म देखकर
पिघलता जा रहा था...
नहीं.. प्लीस.. मुझे जाने दो... अभी नहीं.. मनाली जाने के
बाद.. पक्का.. ! कन्डक्टर को भी लग रहा था की वो कुछ कर नहीं पायेगा
.. एक तो डर था.. दुसरे रोड पर.. और तीसरा.. गौरी के
जिस्म की गर्मी से उसका रस निकालने के लिए तड़प
रहा था..," ठीक है.. बस एक काम कर दो.."
"क्या.... ?"
"तुम नीचे बैठ जाओ !" कन्डक्टर ने अपना लंड सहलाते हुए कहा...
"क्यूँ.. ?" गौरी ने इंग्लिश फिल्मों में गर्ल्स को लंड
चूसते देखा था उसका भी बहुत मन था ऐसा करने का पर
अपने राजकुमार के साथ, और कन्डक्टर में से
तो उसको वैसे भी बदबू आ रही थी..
अब मैंने तुमको ना चोदने की बात मान ली है.. तो ये मत सोचो की मैं शरीफ हूँ, याद रखना अगर एक बार भी अब
मैंने तुम्हारे मुँह से और 'ना' या 'क्यूँ' सुना तो नीचे फैंक
दूँगा साली.., कन्डक्टर फिर उफन गया..
गौरी सहम गयी, वो तो भूल ही गयी थी की वो एक
गहरी खायी के पास खड़ी है और ये कन्डक्टर कुछ
भी कर सकता है.. वो कन्डक्टर के चेहरे की और देखती हुयी सी नीचे बैठ गयी.. कन्डक्टर की पैंट
का उभार उसकी आँखों के सामने था..
कन्डक्टर ने झट से अपनी पैंट की जिप खोल दी.. कच्छे
में से सांप की तरह फुंकारता हुआ काला लंड
गौरी की आँखों के सामने झूल गया.. गौरी डरकर पीछे
गिर गयी.., "बैठो !" कन्डक्टर ने आदेश सा दिया.. गौरी मरती क्या ना करती वो फिर से बैठ गयी, पर
उसने मुँह दूसरी और घुमा लिया..
कन्डक्टर का काम अब होने ही वाला था.. उसको लंड हाथ
में लेते ही महसूस होने लगा था की अब वो पल दो पल
का ही खिलाड़ी है.. इतनी हसीन लड़की को अपने
सामने घुटनों के बल बैठा देख कर ही उसकी नसों में उफान सा उठने लगा.. और अचानक ही उसने एक तरफ होकर
अपने लंड से तेज पिचकारी छोड़ दी, "उफ़..
आआअह्ह्ह्ह........"
कन्डक्टर शर्मिंदा सा हो गया.. उसने चुपचाप अपनी पैंट
की जिप बंद की और कहते हुए निकल गया,
"अभी छोड़ रहा हूँ.. अपना वादा याद रखना.." गौरीकी जान में जान आई और वो बस की और भागी.....
कन्डक्टर आराम से बस की और चलता जा रहा था.. वह
सोच ही रहा था की वापस जाये या नहीं.. गौरी उससे
काफी आगे निकल चुकी थी.. वो बस में जाकर
बाकि लोगों को बता भी सकती थी.. अचानक
उसको सड़क से कुछ ही दूरी पर एक आदमी और एक
औरत की हँसने की आवाज सुनी.. उत्सुकतावश वह पगडंडी से दिखाई दे रहे रास्ते पर उतर गया.. कुछ नीचे
उतरने पर आवाजें इस्पष्ट होने लगी.. साली उसदिन
तेरी गांड का जो हाल किया था उसको भूल गयी, आज
तेरी माँ दादी बेटी सब एक साथ कर दूँगा.. "टफ
प्यारी देवी से कह रहा था.."
करदे ना मेरे राजा.. ! सारी रात निकल गयी.. उस बहनचोद अंजलि की गांड ना आती तो साथ में.. ! तो मैं
तेरी गोद में ही बैठकर आती.. "कहकर प्यारी ने टफ
का लंड मुँह में ले लिया..
कन्डक्टर की तो जैसे उस दिन लॉटरी लगनी ही थी..
उसने देखा.. एक औरत उनको छुपकर देख रही है.. सब
करते हुए.. दबे पाँव उसने जाकर देखा.. ये तो कोई लड़की है..
कन्डक्टर ने उस लड़की को ही अपना शिकार बनाने
की सोची.. धीरे से पीछे जाकर उसने लड़की के मुँह
को दबा लिया.. पर उसका हाथ उसके मुँह की बजाय उसके
नाक के ऊपर रख गया.., "ऊयीई माँ.. !"
सरिता की अचानक की गयी इस हारकर से चीख निकलगयी.....
टफ और प्यारी दोनों चौंक पड़े.. प्यारी ने
अपनी बेटी की आवाज पहचान ली.. टफ ये सोच
रहा था की आखिर सरिता ने चीख क्यूँ मारी.. सब
समझाया तो था की कब आना है.. कन्डक्टर बेचारा यहाँ से
भी भाग गया.. "आ जाओ सरिता.. !" टफ ने सरिता को पास
बुला लिया.. सरिता को जैसे पता नहीं क्या मिल
गया हो.. , "मम्मी आप.. !"
प्यारी को कुछ कहते नहीं बन पा रहा था..,"बेटी वो ये
साला मुझे जबरदस्ती घसीट लाया.. !"
"हाँ वो तो मुझे दिख ही रहा है.. मम्मी... !" "देख सरिता ! मैंने तेरी इतनी बातें छुपायी हैं अब अगर
तू.... !"
"मैं कुछ नहीं बताऊँगी मम्मी.... बस मैं तो.... !"
"आजा तू भी आजा.. ! जब आ गयी है तो..
चलो अब कुछ नहीं होगा.. वो साला कौन था पता नहीं..
हमें जल्दी से बस के पास चलना चाहिए ! क्या पता किसको ले आये.., टफ ने अपनी पैंट ऊपर
की और प्यारी को भी उठा दिया.. दोनों बुत बनी उसके
पीछे चलती गयी.....
बस के पास ही आग जली हुयी थी और सब ठंड में उसके
चारों और बैठ कर किसी तरह रात काट रहे थे....
तभी गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज हुयी.. ड्राईवर ने नीचे आकर कहा, "गाड़ी ठीक हो गयी है.. जल्दी बैठो.. !"
सभी खुश होकर बस में बैठ गये.. पर अब की बार कुछ
सीटों की अदला-बदली हो गयी थी..
चलते-चलते करीब सुबह के ४:३० बजे गाड़ी होटल के
सामने रुकी..
सभी नींद में डूबे हुए थे.. सुनील ने १३ कमरों की पेमेंट करी सभी को उनके कमरे दिखा दिये.. एक कमरे में ४
लड़कियाँ थी.. अंजलि और प्यारी का रूम अलग था..
सुनील और टफ का अलग और राकेश का अलग.. सुनील ने
जानबूझ कर राकेश को अलग कमरा दिलवा दिया..
ड्राईवर और कन्डक्टर के रूम की बराबर में.. इस तरह कुल
१५ कमरे बुक हो गये ३ दिन के लिए.. सभी अपने अपने कमरों में जाकर सो गये..
टफ ने उठकर टाइम देखा, सुबह के १० बज चुके थे..
टफ: अभी भी सो रहा है.. उसने सुनील को उठाया.. सुनील
ने जोर की जम्हाई लेते हुए आँखे खोली..
सुनील ने उठकर पर्दा हटाया.. दूर चोटियों पर
जमी बर्फ सूर्य की रौशनी से चमक रही थी..
सुबह उठकर सब नाश्ते के बाद मनाली घूमने चले गये.. करीब १२ बजे तक सभी नहा धोकर तैयार हो चुके थे..
बाहर मस्ती करने जाने के लिए..
दिन भर सबने खूब मजा लिया मनाली में घूमने का और
मार्केट में खरीदारी करने का..
पहले शाम तक मार्केट में घूमें और हिडिम्बा का मंदिर
देखा... उसके बाद वो सब होटल में लौटे और खाया पिया..
सभी लड़कियाँ जो पहली बार बाहर घुमने निकली थी..
बड़ी ही खुश थी...
टफ ने मौका देखकर सुनील से पूछा, "यार.. ! तुझे मजा आ
रहा है ?"
सुनील ने सामान्य बनने की एक्टिंग करते हुए कहा, "हाँ.. ! आ रहा है ! क्यूँ... ?
"क्यूँ झूठ बोल रहा है यार.. !" मुझे सब पता है..
तेरा अंजलि मैडम के साथ कुछ सीन है....
सुनील ने लम्बी साँस लेते हुए कहा, "नहीं यार.. मतलब
हाँ है.. पर क्या हो सकता है.. ?"
टफ ने लगभग उछलते हुए कहा, "हो सकता है मेरे यार.. तू आज रात अंजलि को अपने पास बुला ले.. !"
सुनील ने गौर से टफ को देखा, "और प्यारी मैडम
का क्या करेंगे.. ?"
अबे मैं प्यारी के लिए ही तो यहाँ आया हूँ.. सोच ले
मेरा भी काम हो जायेगा तेरा भी..
सुनील बहुत खुश हुआ.. तुने तो कमाल कर दिया यार, ये हुयी ना बात.. अब आयेगा टूर का मजा !" और फिर
प्रोग्राम सेट हो गया..
शाम होने से पहले ही टफ ने सरिता को भी सब कुछ
समझा दिया..
उधर सुनील ने मौका देखकर गौरी को रोका,"गौरी;
लाइव मैच देखना है तो रात को मेरे कमरे में आ जाना १० बजे के बाद.. !"
गौरी ने हिचकिचाते हुए पूछा, "किसके साथ... ?"
"वही... तेरी दीदी(माँ).. अंजलि के साथ.. !" सुनील
मुस्कुराया...
गौरी इतनी खुश हुयी की वो उछल पड़ी.. "ओके सर.... मैं
१० बजे के बाद आ जाऊँगी.... "
रात को गौरी अपने कमरे से छुप कर बाहर
निकली ही थी की सामने से आ रहे राकेश ने उसका हाथ
पकड़ लिया, "गौरी.. !" गौरी ने अपना हाथ झटका और
तुनकते हुए जवाब दिया, "तुमने क्या मुझे, 'फॉर सेल'
समझ रखा है.. "गौरी कहते हुए आगे बढ़ने को हुयी.. पर
जाने क्या सोच कर वापस अपने कमरे की और चली गयी.. "रात को लाइव मैच देखने के लालच ने
उसको फँसा ही दिया था" अब वह राकेश की नजरों के
साने सुनील के कमरे में जाने का खतरा मोल नहीं लेना चाह
रही थी शायद.. !
राकेश पछता रहा था.. पर वो उसको जाते देखता रहा, और
वो कर भी क्या सकता था इसके सिवाय.. लगभग बाकि सभी सो चुके थे.. होटल में सारे कमरे
वो बुक कर चुके थे.. चोकीदार नीचे लेटा हुआ था..
"नो रूम्स एवेलेबल" का बोर्ड होटल के बाहर लटक
रहा था...
उधर जैसे ही अंजलि सुनील के कमरे में
गयी वो दरवाजा बंद करना ही भूल गयी.. कब से अपने नये यार से मजे लेने को उसका बदन तैयारहो चूका था.. वह
भागती हुयी सी आयी और बेड पर लेटे सुनील के ऊपर
गिर पड़ी.., "कितना तड़पी हूँ में तुम्हारे लिए.." उसने
सुनील के होंटो को अपनी जीभ से तर कर दिया और
फिर उनको चूसने लगी.. सुनील ने अपने हाथ
उसकी गांड के मस्त उभारों पर चलाने शुरू कर दिये.. अंजलि ने ऊपर चढ़े-चढ़े ही अपनी टाँगे मोड़ कर
अपनी गांड को और उभार लिया.. ताकि सुनील और
अन्दर तक उसको छू सके....
जब गौरी कमरे में अचानक घुसी तो सुनील और
अंजलि एक दुसरे को चूम रहे थे बुरी तरह.. अंजलि एक
दम चौंकी.. पर सुनील ने उसको अपने ऊपर से उठने ना दिया, "ये अन्दर कैसे आयी... ?"
"तुमने ही दरवाजा खुला छोड़ दिया !" सुनील उसके
शरमाये हुये चेहरे को अपने हाथों में पकड़े बोला..
गौरी दरवाजा बंद कर चुकी थी..
अपनी जिंदगी का पहला लाइव मैच देखने के लिए..
शायद खेलने के लिए नहीं.. किसी तरह से मचल कर अंजलि ने आपने
आपको सुनील की बाँहों से आजाद कराया और अपना सर
नीचा करके बैठ गयी..
गौरी उसके पास आयी और बोली, "कोई बात
नहीं दीदी.. ! मुझे बुरा नहीं लगता..
बल्कि अच्छा लगता है... "आप ऐसे क्यूँ मुँह लटकाएँ बैठी हैं.. ?"
"नहीं, कुछ नहीं.. !" अंजलि के पास इससे ज्यादाबोलने
को कुछ था ही नहीं..
सुनील गौरी के उभारों को गौर से देख रहा था.. आज
ही नई खरीदी, घुटनों से भी ऊपर तक की नाईटी में
वो गजब ढ़ा रही थी.. सुनील जल्दी से उसको खेल दिखा कर गरम करना चाहता था, ताकि वो भी खेल में
शामिल हो सके, "अंजलि.. ! सब तुम्हारी गलती है.., अब
हमें गौरी के आगे ही..."
"नहीं प्लीस.. गौरी !" अंजलि ने गौरी की और
याचना की द्रिष्टि से देखा.. जैसे
वो बड़ी नहीं बल्कि गौरी से भी छोटी हो..
गौरी तो माँ बनाकर आयी थी.., "ये गलत है दीदी.. !
आपने प्रोमिस किया था.. और आज तो मैं आपको रँगे
हाथो पकड़ चुकी हूँ... आपका और सुनील सर का मैच तो मैं देखकर ही रहूँगी....
"क्यूँ जिद कर रही हो... देखने दो ना... और फिर ये
तो लड़की ही तो है... जब मुझे शर्म नहीं आती तो तुम्हे
क्यूँ आ रही है...?"
अंजलि सर झुकाये बैठी रही... उसको अब लग रहा था,
अपनी बेटी के आगे नंगा होना पड़ेगा.... गौरी बेड के साथ रखी एक कुर्सी को खींच कर बेड के
सामने ले आयी और उस पर बैठ गयी.. बैठने की वजह से
उसकी पतले कपड़े की नाईटी ऊपर सरक आयी.. सुनील
की नजर उसकी चिकनी शायद वैक्स
की हुयी दमकती जाँघों पर पड़ी.. इतनी सुन्दर
मखमली जाँघे सुनील ने कभी देखि नहीं थी.. बैठने की वजह से उसके पुठ्ठे कातिल तरीके से बाहर की और
उभर आये.. गौरी ने जब इतने बुरे तरीके से उसके नीचे
की और झाँक रहे सुनील को देखा तो वह
सकपका गयी और अपनी टाँगों को सीधा करके बेड के
नीचे सरका दिया और अपनी नाईटी ठीक करी,
"चलो अब शुरू हो जाओ.. ! बड़ा मजा आयेगा.. !" सुनील ने अंजलि को अपने पास खींच लिया और
उसकी नाईटी उतारने लगा.. पर अंजलि ने
अपनी नाईटी को नीचे से कसकर पकड़ लिया.., "पहले
तुम उतारो.... !"
सुनील ने झट से अपनी शर्ट उतार कर बेड पर फैंक दी..
उसको क्या अपने घुँघरू टूटने का डर था.. वह अंजलि की और बढा तो उसने फिर उसको बीच में
ही टोक दिया, "नीचे से भी... !"
"चलो ठीक है.. ये भी सही.. !" सुनील ने अपनी पैंट
भी उतार दी.. अब वह सिर्फ अंडरवियर में था जिसमें
से उसके तने हुये लंड के साफ महसूस होने ने,
गौरी को भी शर्माने पर मजबूर कर दिया उसकी धड़कने तेज़ हो गयी.. सुनील ने गौरी की और देखा तो वो दाँयें-
बाँयें नजरे चुराने लगी.. सुनील ने अंजलि कोकहा, "अब
तो ठीक है.."
"नहीं; ये भी उतारो.. !" अंजलि सुनील को ऐसे गौरी के
सामने देखकर अपनी हँसी पर मुश्किल से काबू
पा रही थी.. वो जैसे तैसे टाइम ही गुजार रही थी ताकि गौरी खुद शर्मा कर भाग जाये..
उसका सोचना सही था पर सुनील ने
इसका मौका ही नहीं दिया.., अब ये गलत बात है.. खुद पूरे
कपड़े पहन रखे हैं.. और मुझे ही नंगा कर रही हो.., "क्यूँ
गौरी.. ! सही कह रहा हूँ ना"
गौरी शर्मा गयी.. नजरें नीची करके अपना सर हिला दिया.., "लाइव मैच देखना कोई" पाँचवी पास से
तेज" वाला गेम नहीं था.. इसमें तो बड़ी-बड़ी बेशर्म और
बेबाक लड़कियाँ भी मैदान छोड़ कर भाग जाती हैं
या फिर मैच में शामिल हो जाती हैं.. अब
गौरी को महसूस हो रहा था की ये शर्त खुद उसके लिए
कितनी मुश्किल थी.. पर हिम्मत करके बिना देखे उसने सुनील की बात का जवाब जरूर दिया था.. हाँ में.. !
सुनील अंजलि पर झपट गया और उसके विरोध के
बावजूद उसकी नाईटी खींच कर निकल दी.. वह सिर्फ
ब्रा और एक सफेद पैंटी में ही रह गयी थी.. गौरी ने देखा,
पैंटी नीचे से गीली थी.. तभी उसको लगा उसकी चूत
भी चूने लगी है धीरे-धीरे..
अंजलि सिमट कर बेड के सिरहाने जा लगी,
जितना अधिक हो सकता था उसने अपने आपको छुपाने
की कोशिश करी.. अपने पैर मोड़ लिए और आगे झुक
गयी.. उसको सुनील से नहीं बल्कि गौरी के आगे
सुनील से शर्म आ रही थी.. गौरी नहीं होती तो वो कब
का गेम पूरा भी कर चुके होते... सुनील ने अंजलि को अपनी और खींच लिया और कमर
के उस पार हाथ फँसा कर ब्रा का हूक खोल दिया..
ब्रा खुलते ही अंजलि बेड पर पेट के बल गिर पड़ी और
अपनी चूचियों को चादर में छुपा लिया...
गौरी जैसी क़यामत की चीज भी अंजलि की मस्त
चूतडों की गोलाईयाँ देख कर आह.. किये बिना ना रह सकी.. उसकी गांड मस्त सॉलिड थी और गांड से नीचे
उसकी जाँघों के बीच चिपकी हुयी उसकी पैंटी में से
उसकी फाँकों की मोटाई झलक रही थी..
गौरी ने अपने आपको संभाला और गीली होने की वजह
से चिपक चुकी उसकी पैंटी को अपनी गांड पर से
हटाया, अपना हाथ नीचे ले जाकर.. अब सुनील का ध्यान भी गौरी से हटकर अंजलि की जाँघों पर ही अटका हुआ
था.. थोड़ी साँवली पर चिकनी मस्त जाँघे उसके सौंदर्य
का बखान कर रही थी.......
अंजलि का ध्यान अपने पिछवाड़े पर नजरें गड़ाए हूई
गौरी पर पड़ी.. उसको अचानक ही अपने
चूतडों का ख्याल आया और वह एक दम से उठकर गौरी से जा चिपकी, "खेल देखना है तो तुझे भी मेरी तरह
होना पड़ेगा.. गौरी हडबडा कर कुर्सी से पीछे गिर
पड़ी.. पीछे होने की वजह से सुनील को, उसकी माँसल
जाँघों की जड़ में छुपी बैठी उसकी पैंटी और चूत के उभार
के दर्शन हो गये.. सुनील धन्य हो गया... गौरी को भोगने
की उसकी इच्छा और बलवती हो गयी.. गौरी ने उठने की कोशिश की पर अंजलि ने
उसको वही दबोच लिया और उसकी नाईटी ऊपर
सरका कर उसको पेट तक ला दिया.. दोनों हँस
भी रही थी और शर्मा भी रही थी.. गौरी की गोरी और
साफ पेट देखकर सुनील अपने लंड को पकड़ कर बैठ
गया गौरी की नाभि और उसका कमसिन पतला पेट गजब ढा रहा था.. सच ही उसका नाम गौरी था.. गोरी... !
तभी अंजलि उसको पकड़े-पकड़े ही सुनील को कहने
लगी, "इधर आओ ना.., मेरी मदद करो इसके भी कपड़े
उतरने चाहिये ना.. फ्री में ही मजे ले रही है..!"
"नहीं सर.. प्लीस.. मैं मर जाऊँगी... !" गौरी अपने हाथ से
पकड़ कर अपनी नाईटी को और ऊपर उठने से रोक रही थी.. उसकी हँसी कम होती जा रही थी और उसके
चेहरे पर शर्म की चादर चेहरे पर, पैर
पसारती जा रही थी...
सुनील ने झुक कर गौरी को अपनी बाँहों में उठा लिया..
गौरी ने कुर्सी को पकड़ कर अपने
आपको उसको बाँहों में जाने से रोकने की कोशिश की पर कुर्सी भी साथ ही उठती चली गयी...
सुनील ने अंजलि से पूछा, "क्या करना है अब इसका... ?"
अंजलि मुस्कुरायी और गौरी के चेहरे पर प्यार से हाथ
फेरते हुये बोली, "नंगा.. !" अब वह अपने नंगेपनको भूल
कर गौरी की इज्जत उतरवाने पर उतारू हो गयी....
शर्म से पानी-पानी हो चुकी गौरी ने
अंजलि को अपनी बाँहों का घेरा डाल कर पकड़ लिया,
"दीदी... प्लीस.. !" छोड़ दो ना.. !" उसने गौरी को कसकर पकड़ लिया... सुनील ने
तो गौरी को पकड़ा ही हुआ था... दोनों बेड पर जाकर बैठ
गये.. गौरी उन दोनों के बीच झूलती हूई बेड पर
जा टिकी....
सुनील का एक हाथ गौरी की जाँघों पर था... उसने हाथ
को बातों-बातों में थोड़ा सा और ऊपर करके उसकी पैंटी के ऊपर रख दिया.. वहाँ उसने
गौरी को कसकर पकड़ा हुआ था.....
अंजलि उसकी गर्दन को अपनी गोद में रखे उसके
हाथों को पकड़े हुये थी...
मैच देखने आयी गौरी की हालत पतली हो गयी... पर
उसको लग रहा था वो सुरक्षित हाथों में है... अपनी मम्मी और अपने सर के हाथों में... इसीलिये
ठोड़ा सा निश्चिंत थी...
लेकिन अब गौरी की हालत पतली होती जा रही थी..
मर्द के हाथ उसकी चूत के पास होने से वो लाख चाह कर
भी अपने आपको बेचैन सा महसूस कर रही थी... उधर
अंजलि उसके कपड़े उतारने पर आमादा थी.. सुनीलचुपचाप उसकी छातियों का उठना बैठना देख रहा था..
जब सीधी ऊँगली से ही घी निकल
रहा हो तो टेढ़ी करके क्या फायदा... वो इंतजार कर
रहा था की कब अंजलि उसको नंगा करे और कब वो उस
बेमिसाल हुस्न की मल्लिका के दीदार कर सके...
गौरी के लाख कोशिश करने पर भी जब अंजलि ने उसके हाथों को नहीं छोड़ा तो उसने अपना सर
अंजलि की गोद में घुसा दिया.. अंजलि की रस से
भरी पैंटी की भीनी-भीनी खुश्बू उसका विरोध लगातार
ढीला करती चली गयी... अंजलि ने पहले ही पेट तक आ
चुकी उसकी नाईटी को उसकी ब्रा के ऊपर तक
सरका दिया.. वो मचलती रही... पर अब मचलना पहले जैसा नहीं था... शायद दिखावा ज्यादा था... वो सेक्स के
प्रति मानवीय कमजोरी से टूटती जा रही थी लगातार...
सुनील उसके अकल्पनीय यौवन को देखकर पत्थर
सा हो गया... वो सोच रहा था, सुंदर
तो उसकी बीवी भी बहुत है... पर क्या १८ साल और २२
साल में इतना फर्क आ जाता है.. या फिर पराया माल कुछ ज्यादा ही अच्छा और प्यारा लगता है.... उसका हाथ
उसकी जाँघ से ऊपर उठकर उसके पेट पर ब्रा से
ठोड़ा सा नीचे जाकर जम गया... क्या चीज है यार.. !
अंजलि ने थोड़ी सी कोशिश और की और नाईटी उसके
हसीन बदन से अलग होकर बेड के सिराहने पर जाकर
टंग गयी...
गौरी का दिल इतनी तेजी से धड़क
रहा था की उसकी धक्-धक् बिना स्टेथोस्कोप के
अंजलि और सुनील को सुनाई दे रही थी.. सुनील
का दिल उसकी छातियों की ताल से ताल मिला कर
धड़क रहा था.. अपनी कोहनी से अपनी आँखों को ढके
गौरी ये सोच रही थी की जब उसको कुछ नहीं दिखता तो औरों को भी नहीं दिखता होगा, ठीक
उस कबूतर की तरह जो बिल्ली को आया देख आँखेंबंद
करके गुटरगू करता रहता है उड़ने की बजाय..
गौरी को नहीं पता था की सुनील की आँखें
बिल्ली की तरह ही उसकी घात लगाये बैठी हैं..
उसका शिकार करने के लिए, अंजलि के मन में भी उसको सुनील की जाँघों पर सवार करने का कोई
इरादा नहीं था वो तो बस अपनी झिझक दूर करने के
लिए ही उसको शर्म से पानी-पानी कर
देना चाहती थी... जब अंजलि ने सुनील
को उसकी पैंटी और ब्रा पर नजर घुमाते
देखा तो वो सुनील का आशय समझ गयी.. उसने गौरी को छोड़ दिया, "जा उठकर अपने कपड़े पहन ले...
अब तो समझ आ गया होगा की कितनी शर्म आती है..
अगर तू सच में दिल से मुझे दीदी कहती है तो प्लीस
यहाँ से चली जा...
गौरी को अपनी गलती का अहसास हो गया था पर
उसको इस कदर गरम करके सुनील की बाँहों से उठा देना उसको अजीब सा लगा.. पर अपने आपको उसने
संभाला और अपनी नाईटी पहन ली.. वह आकर
अपनी दीदी माँ से लिपट गयी, "आई लव यू मम्मी..!"
पहली बार गौरी को अहसास हुआ की नारी चाहे
सगी माँ हो या सौतेली, पर माँ तो माँ ही होती है...
पहली बार उसने अंजलि को माँ कहा.. दोनों की आँखें छलक आयी.......
अचानक गौरी एकदम से पलटी और नमिता ने मुश्किल
से अपने को गिरने से बचाया.. उसने देखा..
गौरी अभी भी सो रही है.... और नींद में ही कुछ
बडबडा रही है.. उसने गौरी को उठाया.. अभी भी वोसपने
में देखे गये लाइव मैच की खुमारी से बाहर नहीं निकल पाई थी..
गौरी ने उठकर टाइम देखा, "सुबह के १० बज चुके थे..."नमिता ने उससे कहा, "क्या बात है.. ? चलना नहीं क्या.. ?
उठ कर तैयार हो ले जल्दी.."
"हमें तो रात को ही निकलना था ना.. ! गौरी ने जोर
की जम्हाई लेते हुये कहा.. "कोई सपना देख रही है क्या गौरी.. अभी एक दिन पहले
तो पहुँचे हैं.. तू वापसी की बात कर रही है....
गौरी का ध्यान अपनी पैंटी पर गया.. वो पूरी तरह उसके
योनी रस से चिपकी सी हूई थी, शायद रात को कई बार
नाईटफॉल हो गया...
गौरी ने उठकर पर्दा हटाया.. दूर चोटियों पर जमी बर्फ सूर्य की रौशनी से चमक रही थी.. वो बाथरूम में घुसकर
जोर-जोर से सुबकने लगी.. उसको अहसास हो गया,
माँ तो आखिर माँ ही होती है सौतेली हो या सगी.. !
उसने निश्चय कर लिया, अब से वह
अंजलि को मम्मी ही बोलेगी.....
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