Monday, 7 April 2014

masti ki pathsala - 9

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग-9

अगले दिन जब वाणी उठी..... उसको सच में ही बुखार था... वो स्कूल नही गयी... दिशा भी नही! सोमवार को शमशेर लॅबोवरेटरी में बैठा था थिसेस से पहले उसके 2 पीरियड 'प्रॅक्टिकल सेशन' थे, 10थ क्लास के लिए शमशेर ने उनकी क्लास नही ली... क्यूंकी इस टाइम पर उसने दिव्या को अपने पास बुलाया था... लॅब में उसने 10थ वाले बच्चों को उनकी क्लास में ही काम दे दिया था; याद करने के लिए. 4थ पीरियड की बेल लगने के 5 मिनिट बाद दिव्या उसके पास पहुँच गयी शमशेर वहीं बैठा था, अलमारियों के पीछे, चेअर् पर दिव्या की जान सूख्ती जा रही थी," ससररर...आपने मुझे 4थ पीरियड में बुलाया था!" दिव्या सहमी हुई थी! "हां बुलाया था!" शमशेर सीरीयस होने की एकदम सही आक्टिंग कर रहा था.. जबकि उसके मॅन में दिव्या को प्यार का वही खेल; अच्छे तरीके से सीखने की इच्च्छा थी.. जो वो कल वाणी को सीखा रही थी "ज्ज्जिई; क्या काम है ससररर!"
    शमशेर: वो कल क्या चल रहा था... मेरे कमरे में
    दिव्या: क्क्याअ. ..सर!
    शमशेर: वाणी के साथ!
    दिव्या: आइ आम सॉरी सर; मैं आइन्दा कभी ऐसा नही करूँगी..
    शमशेर: क्यूँ दिव्या कुछ ना बोली.. शमशेर ने कड़क आवाज़ में कहा," तुम्हे सुनाई नही दिया!"
    दिव्या: ज़ीज़ी..क्योंकि...क् योंकि ज़ी वो.....ग़लत काम है वो डर के मारे काँप रही थी
    शमशेर: क्या ग़लत काम है! दिव्या फिर कुछ ना बोली
    शमशेर: देखो अगर अब की बार तुमने मेरे एक भी सवाल का जवाब खुल कर नही दिया तो मैं तुम्हारे मा बाप को बुल्वाउन्गा.. और तुम्हे स्कूल से निकलवा दूँगा; समझी!
    दिव्या: जी सर! उसने तुरंत जवाब दिया
    शमशेर: तो बोलो!
    दिव्या: क्या सर?
    शमशेर: कौनसा काम ग़लत है?
    दिव्या: सर वो जो हम कर रहे थे! उसके जवाब अब जल्दी मिल जाते थे
    शमशेर: क्या कर रहे थे तुम?
    दिव्या: सर... वो खेल रहे थे...
    शमशेर: अच्छा, खेल रहे थे! दिव्या ने नज़रें नीची कर रखी थी
    शमशेर: किसने सिखाया तुम्हे ये खेल?
    दिव्या: सर... वो सरिता के भाईई ने; वो जो सरपंच का बेटा है...
    शमशेर: सरिता को बुलाकर लाओ! दिव्या चली गयी.... थोड़ी देर बाद; सरिता और दिव्या दोनो शमशेर के पास खड़ी थी
    शमशेर: सरिता, तुम्हारे भाई ने दिव्या को एक खेल सिखाया है... पूछोगि नही कौनसा? सरिता ने नज़रें नीची कर ली... उसको पता था वो लड़कियों को कौनसा खेल सिखाता है दिव्या ने मौका ना चूका; अपराध शेर कर लिया, सरिता के साथ," सर उसने इसको भी वो खेल सीखा रखा है! राकेश बता रहा था कल" सरिता सिर झुकाए खड़ी रही, उसको बदनामी का कोई डर नही था... अब कोयले को कोई और काला कैसे करेगा! है ना भाई!
    शमशेर: तो क्या तुम दोनो को स्कूल से निकाल दें?
    सरिता: सॉरी सर, आइन्दा ऐसा नही करेंगे! उसकी 'सॉरी' इस तरह की थी की जैसे उसको किसी ने नकल करते पकड़ लिया हो!
    शमसेर: तुम क्लास में जाओ, थोड़ी देर में बुलाता हूँ शमशेर सरिता के जाते हुए उसकी गांड़ को जैसे माप रहा था... बहुत खुली है... सरिता!
    शमशेर: हां दिव्या, अब बोलो उसने क्या सिखाया था!
    दिव्या: सर उसने इनको दबाया था...
    शमशेर: किनको? तुम्हे नाम नही पता?
    दिव्या: (अपना सिर झुकते हुए) जी पता है...
    शमशेर: तो बोलो!
    दिव्या: जी चूचियाँ.. वा अपने सर के सामने ये नाम बोलते हुए सिहर उठी
    शमशेर: हां तो उसने क्या किया था?
    दिव्या: सर उसने मेरी चूचियों को दबाया था... वह सोच रही थी.. सर मुझे ऐसे शर्मिंदा करके मुझे सज़ा दे रहे हैं...
    शमशेर: कैसे? दिव्या ने अपनी चूचियों को अपने हाथ से दबाया... पर उसको वो मज़ा नही आया
    शमशेर: ऐसे ही दबाया था या कमीज़ के अंदर हाथ डालकर... दिव्या हैरान थी... सर को कैसे पता( उसको नही पता था सर इश्स खेल के चॅंपियन हैं)
    दिव्या: जी अंदर डालकर भी...
    शमशेर: कैसे? दिव्या अब लाल होती जा रही थी... उसने झिझकते हुए अपना हाथ कमीज़ के अंदर डाल दिया... उसके पेट से कमीज़ उपर उठ गया और उसके पेट का नीचे का हिस्सा नंगा हो गया... उसकी नाभि बहुत सुंदर थी... और पेट से नीचे जाने वाला रास्ता भी
    शमशेर: फिर? दिव्या ने सोचा, वाणी से सर ने सबकुछ पूछ लिया है, छुपाने से कोई फायदा नही....
    दिव्या: सर फिर उसने इनको चूसा था!
    शमशेर: नाम लेकर बोलो! दिव्या हर 'कैसे' पर जैसे अपने कपड़े उतारती जा रही थी," जी उसने मेरी चूचियों को चूसा था.... शमशेर का फिर वही सवाल," कैसे" अब दिव्या चूस कर कैसे दिखाती, उसकी जीभ तो उसकी छतियो तक पहुँच ही नही सकती थी, फिर भी उसने एक कोशिश ज़रूर की अपनी जीभ निकाल कर चेहरा नीचे किया अपना कमीज़ उपर उठा कर अपनी चूचियों को सर के सामने नंगी करके उनको छूने की कोशिश करती हुई बोली,"सर, ऐसे!" उसकी चूचियाँ बड़ी मस्त थी, वाणी की छतियो से बड़ी... उनके निप्पल एक अनार के मोटे दाने के बराबर थे शमशेर उन्हे देखकर मस्त हो गया... ऐसा अनुभव पहली बार था और सूपरहिट भी था... शमशेर ने कल ही ये प्लान तैयार कर लिया था," इन्हें चूस कर तो दिखाओ..." दिव्या भी गरम होती जा रही थी," सर मेरी जीभ नही जाती"
    शमशेर: तो मैं चूसूं क्या? दिव्या को जैसे करेंट सा लगा; क्या उसके सर उसके साथ गंदा खेल खेलेंगे!.... वा खामोश खड़ी रही... उसकी कच्छि गीली हो गयी! शमशेर ने सरिता को बुलाकर लाने को कहा...!
    दिव्या ने अपने आपको ठीक किया और सरिता को बुला लाई.. दोनों आकर खड़ी हो गयी...
    शमशेर: यही बात सरिता को बताओ और उससे कहो राकेश की तरह वो करके दिखाए
    दिव्या: सरिता, राकेश ने मेरी चूचियों को चूसा था अब तुम चूस कर सर को दिखाओ!.... जब सर के सामने ही बोल चुकी थी तो सरिता से क्या शरमाना!... वो कहते हुए मस्ती से भरी जा रही थी... डरी हुई मस्ती से! सरिता ताड़ गयी, सर रंगीले आदमी हैं, उसने दिव्या का कमीज़ उपर उठाया और उसकी एक चूची को मुँह में ले लिया और आँख बंद करके चूसने लगी... जैसे उनका दूध निकाल रही हो! वो पर्फेक्ट लेज़्बीयन मालूम हो रही थी दिव्या सिसक उठी... ऐसा करते हुए सरिता की गांड़ सर के बिल्कुल सामने थी, उसके तने हुए लंड से बस 1 फुट दूर.... शमशेर ने उसके एक चूतड़ पर अपना हाथ रख कर देखा... वो मस्त औरत हो चुकी थी
    शमशेर: बस...!.... उसके ऐसा कहते ही सरिता ने अपने होंट हटा लिए.... जैसे शमशेर ने कोई रिमोट दबाया हो...! सरिता इस तरह से सर को देखने लगी जैसे बदले में उससे कुछ माँग रही हो... दिव्या अब भी डरी हुई थी
    शमशेर: ऐसे ही!
    दिव्या:" जी," उसकी साँसे तेज हो गयी थी..... उसकी छातिया उपर नीचे हो रही थी!
    शमशेर: इतना ही मज़ा आया था?
    दिव्या: जी सर सरिता ने विरोध किया," नही सर, जब कोई लड़का चूस्ता है, असली मज़ा तो तभी आता है" उसके हाथ अपनी मोटी-मोटी चुचियों पर जा पहुँचे थे; जो ब्रा में क़ैद थी
    शमशेर: झहूठ क्यूँ बोला, दिव्या!
    दिव्या: सॉरी सर!.... उसका डर अब कम होता जा रहा था... और पूरा खेल खेलने की इच्छा बढ़ती जा रही थी...
    शमशेर: तो बताओ, कितना मज़ा आया था?
    दिव्या: सर कैसे बताओन, यहाँ कोई लड़का थोड़े ही है?
    शमशेर: मैं क्या 'छक्का' हूँ!
    दिव्या: पर सर... आप तो 'सर' हैं... शमशेर इस बात पर ज़ोर से हंस पड़ा... उसको एक चुटकुला याद आ गया दो औरतें शाम ढले सड़क किनारे पेशाब कर रही होती है... तभी एक आदमी को साइकल पर आता देख दोनो सलवार उठा कर अपनी चूत ढक लेती हैं... जब वो पास आया तो उनमें से एक बोली," अरी ये तो 'बच्चों का मास्टर था; बिना बात जल्दबाज़ी में अपनी सलवार गीली कर ली पर उसने दिव्या से कहा," मैं चूस के दिखाउ तो बता देगी कितना मज़ा आया था
    दिव्या: जी सर! .... उसकी नज़र नीचे हो गयी. शमशेर ने दिव्या को अपनी बाहों में इस प्रकार ले लिया की उसके पैर ज़मीन पर ही रहे... शमशेर का दायां हाथ उसकी गांड को संभाल रहा था और बयाँ उसके कंधों को संभाले हुए था... उसने पहले से ही नंगी एक चूची पर अपने होंटो को फैला दिया... दिव्या बहक रही थी... वो पूरा खेल खेलना चाहती थी! सरिता को ये 'ड्रामा' देखते काफ़ी वक़्त हो गया था... वो और वक़्त जाया नही जाने देना चाहती थी... वो शमशेर के पास घुटनो के बल बैठ गयी और शमशेर के आकड़े हुए 8" को आज़ाद कर लिया.. यह शमशेर के लिए अकल्पनिया दृश्या था... थ्रीसम सेक्स! सरिता एक खेली खाई लड़की थी और शमशेर को पहली बार पता चला... सेक्स में एक्षपेरियँसे की अलग ही कीमत होती है... वह तो नयी कलियों को ही खेल सीखने का इच्छुक रहता था... और आज तक उसने किया भी ऐसा ही था... पर आज..... सरिता के मुँह में लंड को सर्ररर से जाता देख वह 'सस्स्स्शह' कर उठा सरिता सच में ही एक वैश्या जैसा बर्ताव कर रही थी... सरिता का भी 'बिल्ली के भागों छीका टूटा' वाला हाल था.... वा इस वक़्त अपना सारा पैसा वसूल कर लेना चाहती थी... वो कभी सर के सुपारे पर दाँत गाड़ा देती तो शमशेर भी अपने दर्द को अपने दाँत दिव्या के निप्पल पर गाड़ा कर पास कर देता... इस तरह से तीनों का एक ही सुर था और एक ही ताल.... अचानक तीनों जैसे प्यासे ही रह गये जब बाहर से पीयान की आवाज़ आई," सर आपको मॅ'म बुला रही हैं... तीनों बदहवास थे... सर ने अपनी पेंट को ठीक किया.... दिव्या ने अपना कमीज़... और.... सरिता अपनी सलवार का नाडा बाँध रही थी... वो अपनी चूत में उंगली डाले हुए थी.... "छुट्टी होते ही यहीं मिलूँगा, लॅब में; दोनो आ जाना, अगर किसी को बताया तो..." .....दोनो ने ना में सिर हिला दिया... शमशेर को पता था वो नही बताएँगी!
    छुट्टी से पहले ही शमशेर ने पीयान को कह दिया था की लॅब की चाबी मैने रख ली है... चोकिदार 7 बजे से पहले आता नही था... कुल मिलाकर वहाँ 'नंगा नाच' होने का फुल्लप्रूफ प्लान था... छुट्टी होते ही दोनो लड़कियाँ लॅब में पहुँच चुकी थी; अलमारियों के पीछे!
    सरिता: थॅंक्स; तूने मेरा नाम ले दिया दिव्या; वह कुर्सी के डंडे पर अपनी चूत रखकर बैठी थी... इंतज़ार उसके लिए असहनिया था
    दिव्या: दीदी, तुम्हे डर नही लगता
    सरिता: अरे डर की मा की गांड़ साले की; ये तो मैं पहचान गयी थी की ये मास्टर रंगीला है... पर इतना रंगीला है; ये पता होता तो में पहले ही दिन साले से अपनी चूत खुद्वा लेती... बेहन चोद... उसने सलवार के उपर से ही अपनी चूत में उंगली कर दी...हाए!
    दिव्या: तो क्या दीदी, सर अब कुछ नही करेंगे?
सरिता: अरे करेंगे क्यो नही! अब तेरी भी माँ चोदेन्गे और मेरी भी... देखती जा बस तू अब... पिछे हट जईयो, पहले मई करूँगी, फेर तेरा नंबर लाइए.. अब तो यो मास्टर कई जगह काम आवेगा बस एक बात का ध्यान राखियो, इस बात का किसी को पता नही चलना चाहिए... नहि ते ये म्हारे हाथ से जाता रहेगा, इसके पिछे तो पुर गाम की रंडी से...
दिव्या: ठीक है दीदी, मैं किसी को नही बतावुँगी! तभी वहाँ सिर आ पहुँचे पुर 3 पीरियड से उसका लंड ऐसे ही खड़ा था; सरिता ने उसकी ऐसी सकिंग की थी आते ही कुर्सी पर बैठकर बोला: जो जहाँ था वहीं आ जाओ!
सरिता: सर जी सज़ा बाद में दे लेना, पहले एक रौंद मेरे साथ खेल लो! मेरी चूत में खुजली मची हुई है... शमशेर उसके बिंदास अंदाज का दीवाना हो गया, सकिंग का तो रिसेस से पहले ही हो गया था. उसने सरिता को कबूतर की तरह दबोच लिया... ये कबूतर फड़फड़ा रहा था... 'जीने' के लिए नही....अपनी मरवाने के लिए... सरिता पागल शेरनी की भाँति टेबल पर जा चढ़ि, और कोहनी टेक कर अपना मुँह खोल दिया, सर के लंड को लेने के लिए... शमशेर ने भी सरिता के सिर को ज़ोर से पकड़कर अपना सारा लंड एक ही बार में गले तक उतार दिया..... दिव्या दोनों को आँखें फाडे देख रही थी... दोनों इस खेल के चॅंपियन थे, एक पुरुष वर्ग में दूसरी महिला वर्ग में.... सरिता ने अपनी गांड़ उची उठा रखी थी, शमशेर ने जोश में बिना गीली किए उंगली उसकी गांड़ में फँसा दी... वो पिछे से उछल पड़ी... पर वो हारने वाली नही थी... उसने एक हाथ में शमशेर के टेस्टेस पकड़ लिए, के तू दर्द देगा तो में भी दूँगी... सरिता कभी सर के लंड को चाटती कभी चूमती और कभी चूसती... शमशेर का ध्यान दिव्या पर गया; वह भी तो खेलने आई थी.. उसने दिव्या को टेबल पर चढ़ा दिया; सरिता के सिर के दोनो और टाँग करके... सरिता को कमर से दबाव देकर चौपाया बना दिया..... अब दिव्या का मुँह सरिता की चूत के पास; और दिव्या की चूत ... सर के मुँह के पास... अजीब नज़ारा था...(आँख बंद करके सोचो यारो
, सर की जीभ दिव्या की चूत में कोहराम मचा रही थी, नयी खिलाड़ी होने की वजह से उसको उंगली में ही इतना मज़ा आ रहा था की वो झाड़ गयी... एक ही मिनिट में... पर शमशेर ने उसको उठाने ही नही दिया...वह कभी उंगली चलाता कभी जीभ... कुल मिलकर उसने 2-3 मिनिट में ही उसको खेलने के लिए फिट बना दिया, वो फिर से मैदान में थी... क्या ट्रैनिंग चल रही थी उसकी!... बिंदास! दिव्या का मुँह सरिता की चूत तक नही पहुँच रहा था.. व्याकुलता में उसने सरिता के चूतड़ो को ही खा डाला... सरिता बदले में सर के लौदे को काट खाती... और सर दिव्या की चूत पर दाँत जमा देते... कभी सिसकियाँ... कभी चीत्कार... कभी खुशी कभी गम... सरिता को भी पता चल चुका था की सर मैदान का कच्चा खिलाड़ी नही है... वो उसके रूस को पीना चाहती थी पर 20 मिनिट की नूरा कुस्ति के बाद भी वह उसको नही मिला... वह थक चुकी थी... और दिव्या तो हर 5 मिनिट बाद पिचकारी छ्चोड़ देती!
सरिता ने मुँह से लंड निकाल कर अपनी हार स्वीकार की सर ने दिव्या को उठा कर मैदान से बाहर कर दिया... वो तो कब की मैदान छोड़ चुकी थी...
शमशेर के दिमाग़ से अंजलि की गांड की चुदाई वाली खुमारी उतरी नही थी सरिता वहाँ भी ले सकती है सोचकर वो कुर्सी पर बैठा और सरिता को सीधा अपने उपर बिठा लिया, गांड के बल! उसने उसको संभाले का भी मौका नही दिया!
"आ मरी", सरिता बदहवास हो चुकी थी ऐसे करार प्रहार से चारों खाने चित हो गयी; उसने अपने को संभाला और टेबल पर हाथ टीका दिए और पैरों का थोड़ा सहारा लेकर उठने की कॉसिश करने लगी; ताकि जितना बचा है, वो ना घुसने पाए! पर शमशेर ने जैसे ये काम आखरी बार करना था. उसने सरिता के हाथों को टेबल से उठा दिया और टंगड़ी लगाकर उसकी टाँगो को ऐसा हवा में उठाया की 'ढ़च्छाक' से सरिता की जांघे उसकी जांघों से मिल गयी
ओओईइ मा! छ्चोड़ साले मुझे...आ... तू तो मार देगा... मेरी मा... बचा... आहह... तू तो... एक बार रुक जा बस... प्लीज़... आ... तू तो... बदलाः...ले... रहा... है... बहनचोद... मेरी माँ का किया ... मैं भुगत रही ... हूँ... थोडा धीरे धीर कर... हाथ मेज़ पर रखने दो जान... इतना मज़ा कभी नही आया... उछाल ले मुझे.. पहले की तरह... ज़ोर से कर ना... हिम्मत नही रही क्या साले... कर ना... कर ना... कर नाआ! आइ लव यू जान! बस छोड़ दे अपना जल्दी.. प्लीज़ बाहर निकाल ले मुँह में पीला दे... प्लीज़ सर! उसको याद आ गया था की वो सर है... उसकी चूत का भूत भाग गया था...
शमशेर को उसकी ये सलाह पसंद आई... उसने झट से उसको पलट दिया और सरिता के चूतड़ ज़मीन पर जा बैठे... शमशेर ने उसके बालों को खींचा और लंड उसके मुँह में ठूस दिया... बस उसका वक़्त आ चुका था... जैसे ही उसके लंड ने मुँह की नमी देखी... उसने भी अपना रस छोड़ दिया... आज इतना निकला था की उसका मुँह भरकर बाहर टपकने लगा... पर उसने इतना सा भी बेकार नही किया... मुँह का गटक कर जीभ से होंटो को चाटने लगी...
उनका जुनून उतर चुका था... सरिता खड़े होते हुए बोली, सर मैं किसी को नही बतावुँगी... शमशेर एक दम शांत था.... एकदम निशचिंत..!
दिव्या इतनी सहम गयी थी की पीछे हटते-हटते दीवार से जा लगी थी और वही से सब देख रही थी,' जो उसने कल सीखा था... उस खेल का ओरिजिनल वर्जन...'
कहने को तो ये थ्रीसम सेक्स था... पर कोई चौथा भी था.... जो बाहर वाली खिड़की से सब देख रहा था.....!shm
मशेर ने आँखों के इशारे से दिव्या को अपने पास बुलाया," सॉरी दिव्या, बाकी खेल फिर कभी सीखूंगा!" वह सहमी हुई थी;वह अब भी सहमी हुई थी; सर उससे सीखीन्गे या उसको सिखाएँगे.. सरिता बार-बार अपनी गांड के छेद को हाथ लगाकर देख रही थी... शायद वो 'घायल' हो गयी थी
शमशेर ने दोनों को जाने के लिए कहा और कुर्सी पर बैठकर अपना पसीना सुखाने लगा... वो आदमख़ोर बन चुका था.... पर दिशा के लिए अब भी उसके दिल में प्यार था....और वाणी के लिए भी..!
उधर दिशा वाणी के साथ लेटकर वाणी का सिर सहलाने लगी... वाणी का शरीर तप रहा था दिशा ने प्यार से उसके गालों पर एक चुम्मि ली," वाणी!"
हां दीदी....
दिशा लगातार वाणी को दुलार रही थी," अब कुछ आराम है?
वाणी ने आँखें खोल कर दिशा को देखा; जैसे कहना चाहती हो 'आराम कैसे होगा'
"तू मुझसे प्यार करती है ना!" दिशा ने वाणी से पूछा!
वाणी ने दिशा के गले में अपनी बाहें डाल दी और उसके गालों से होंट लगा दिए
दिशा: मेरी एक बात मानेगी?
वाणी: बोलो दीदी!
दिशा: नही मेरी, कसम खाओ पहले!
वाणी ने कुछ देर उसको घूरा और फिर वचन दे दिया," तुम्हारी कसम दीदी!"
दिशा: तू मुझे वो बात बता दे की तू कल रो क्यों रही थी...
वाणी की आँखों से आँसू छलक उठे... वो कैसे बताए... पर वो वचन से बँधी थी.... उसने दिव्या के घर आने से लेकर अपने रोती हुई नीचे आने तक की बात, डीटेल में सुना दी..... जैसे मैने आपको सुनाई थी...!
दिशा हैरान रह गयी... उसकी छुटकी अब छुटकी नही रह गयी थी.... वो जवान हो चुकी है... उसको उस 'खेल' में मज़ा आने लगा है जो बच्चों के लिए नही बना उसने कसकर 'जवान छुटकी को अपने सीने से भींच लिया... पर वो हैरान थी शमशेर ने इस बात पर उनको कुछ भी नही कहा.... वो फिर भी कितना शांत था... कितना..........!
"वाणी! तू ठीक हो जा, मैं वादा करती हूँ; सर अब भी तुझे उतना ही प्यार करेंगे, उससे भी ज़्यादा....
वाणी की आँखें चमक उठी... वो उठ कर बैठ गयी! उसमें जैसे जान सी आ गयी," आइ लव यू दीदी!"...
दिव्या तेज़ी से घर आ रही थी... उसने आज जो कुछ भी देखा था वह सपने जैसे था... वो तो सोच रही थी सर उसको सज़ा देंगे.... पर उन्होने तो उसको मज़ा ही दिया... वो ये बात वाणी को बताना चाहती थी.... वो बताना चाहती थी की वाणी को वो खेल पूरा खेलने के लिए राकेश की ज़रूरत नही है.... उनके घर में तो इस खेल का 'सबसे बड़ा खिलाड़ी' है.... वो वाणी के घर घुस गयी...
वाणी अब ठीक हो चुकी थी... वो और दिशा हंस-हंस कर बातें कर रही थी... अब वो बेहन नही रही थी... सहेलियाँ बन चुकी थी... जो सब कुछ शेयर कर सकती हैं...
दिव्या को देखते ही दिशा ने उसको बाहर ही रोक दिया और उस पर बरस पड़ी....हरामजादि... मेरी बेहन को बिगाड़ना चाहती है... शरम नही आती तुझे... वग़ैरा वग़ैरा! वाणी भी वहीं खड़ी थी.. जैसे वो भी यही कहना चाहती हो!
दिव्या शर्मिंदा होकर चली गयी... अब उसने सोच लिया था... कि वो किसी को नही बताएगी... स्कूल वाली बात!
शमशेर स्कूल से निकलता हुआ अंजलि के बारे में सोच रहा था... बेचारी के साथ अच्छा नही हुआ.... 10 दिन बाद ही उसकी शादी तय हो गयी थी... कितनी सेक्सी है वह...उसको उस आदमी के साथ शादी करनी पड़ रही थी जो उससे उमर में 13-14 साल बड़ा है.. जिसकी एक शादी हो चुकी है और जिसकी एक बेटी है... करीब 18 साल की...
अंजलि की बेहन की वजह से उसको ये शादी स्वीकार करनी पड़ी... वरना क्या नही था अंजलि के पास... उसकी बेहन जो किसी लड़के के साथ भाग गयी थी...
शमशेर जैसे ही घर पहुँचा... उसकी दोनों 'प्रेमिकाओं' की आँखे उस पर टिक गयी एक की आँखों में प्यास थी; प्यार की, दूसरी की आँखों में नमी थी.... प्यार की ही....... शमशेर वाणी को देखता हुआ सीधा उपर चला गया; वहाँ और कोई ना थावाणी: दीदी, सर नही बोलेंगे मुझसे; मुझे पता है....
दिशा: तू चल उपर मेरे साथ....
उपर जाकर दिशा अंदर चली गयी, पर वाणी के कदम बाहर ही रुक गये... वो हिम्मत नही कर पा रही थी; सर के सामने जाने की...!
दिशा ने शमशेर से कहा: वाणी बाहर खड़ी है... वो आपके लिए कल से ही रो रही है... वो आपसे बहुत प्यार करती है...
शमशेर उठ कर बाहर आया और वाणी के पास जाकर झुकक कर बोला," आइ लव यू टू बेबी!
वाणी ने अपनी कोमल बाहें 'सर, के गले में डाल दी और दो आँसू टपका दिए.... उसकी गर्दन के पास! शमशेर ने उसको अपनी बाहों में भीच लिया.... अब उसको वाणी के तन से नही केवल मन से लगाव था......
दिन बीत गया... दिशा का इंतज़ार ख़तम होने वाला था दिशा और वाणी ने खाना खाया और शमशेर का खाना लेकर उपर चली गयी... वाणी की झिझक अभी भी दूर नही हुई थी... उसके दिमाग़ में कल वाली बात ज्यों की त्यों थी... वो जाते ही सीधी अंदर वाले कमरे में जाकर लेट गयी उसका मुँह दीवार की और था....वह चाह रही थी.... सर आकर उसको कहें," तू मेरे पास क्यूँ नही आती वाणी...." पर शमशेर का ध्यान तो आज दिशा पर था...सिर्फ़ दिशा पर!
दिशा ने खाना टेबल पर रख दिया... उसका मॅन था वो सर के पास ही बैठ जाए... उससे बात करे... पर बिना वाणी उसको शमशेर के पास बैठना अजीब सा लगा... वो जाकर वाणी की खाट पर ही लेट गयी... उसका चेहरा वाणी के चेहरे की और था... और आँखें लगातार शमशेर को देख रही थी... खाना खाते हुए...
अजीब सी कसंकश थी उसके दिल में, कल कैसे उसने शमशेर का गला पकड़ लिया था... फिर भी वो कुछ ना बोला... पर उसकी शांत आँखें शायद सब कह रही थी... शायद शमशेर को मुझसे पहले ही दिन प्यार हो गया था... मुझसे तो किसी को भी प्यार हो सकता है उसको खुद पर नाज़ हो रहा था! पर उसको कभी किसी से प्यार नही हुआ... शमशेर से पहले! वो खुद ही सोच-सोच कर शर्मा रही थी... उसने कल शमशेर को किस बिंदास तरीके से बोल दिया था..."यस आइ लव यू!"... उसकी आँखों में शमशेर के लिए अथाह प्यार था.... क्या शमशेर भी आज उसके शरीर पर अपने प्यार की मोहर लगा देगा? वा सोचकर ही पिघल गयी... उसने वाणी की टाँग उठा कर अपनी जांघों के बीच रख ली और ज़ोर से दबा दी.... वाणी ने आँखें खोल कर दिशा को देखा और फिर से आँखें बंद कर ली... वो सो नही सकती थी... वो भी शमशेर का इंतज़ार कर रही थी... की वो आकर उसको उठा ले जाए और बेड पर अपने साथ सुला ले... अपनी छति से लगाकर...!
शमशेर ने खाना खाकर दिशा को देखा वो रात हो सकने तक इंतज़ार नही कर सकता था... उसने दिशा की तरफ एक 'किस' उछाल दी.. दिशा ने भी जवाब दिया अपने तरीके से... उसने शमशेर की आँखों में आँखें डाली... उसको कसक से देखा... जैसे उसके पास पहुँच गयी हो और वाणी के गालों पर एक चुंबन जड़ दिया!
वाणी चौंकी; उस्स चुंबन में वो बात नही थी जो दिशा अक्सर उसको लाड़ करते हुए करती थी... इस चुंबन में तो कोई और ही बात थी!
होती भी क्यूँ ना; ये चुंबन उसके लिए नही था... ये चुंबन तो शमशेर के लिए था... उसकी 'फ्लाइयिंग किस का जवाब'....
जैसे-जैसे रात अपने पाँव पसारती रही, दिशा का दिल बैठता गया... आज शमशेर उसको.... सोचने मात्रा से ही उसके बदन में लहर सी दौड़ जाती. उसको अपने जिस्म की कीमत का अहसास होने के बाद किसी लड़के ने 'उस नज़र' से कभी हाथ तक नही लगाया था... उसकी जवानी एक दम फ्रेश थी... फार्म फ्रेश! ऐसी बातों से वो इतनी चिढ़ती थी की उसकी सहेलियाँ तक उसके सामने 'ऐसी' बातें करने से डरती थी पर शमशेर ने जिस दिन से स्कूल में कदम रखे थे, वा बदलती जा रही थी... उसको अब लड़कों का घूर्ना भी इतना बुरा नही लगता था... वो ये सोचकर खुश हो जाती थी की उसके सर को भी मैं इतनी ही सुंदर और सेक्सी लगती होंगी!
दिशा का दिल बुरी तरह धड़कने लगा था; उसने वाणी को टोका,"वाणी!"
वाणी: हूंम्म?
वाणी तो जाग रही है... दिशा की बे-सबरी बढ़ती जा रही थी," कुछ नही सो जा!"
वाणी धीरे से दिशा के कान में बोली,"दीदी, क्या सर सो गये?"
दिशा की नज़रें शमशेर की नज़रों से टकराई; वो बार-बार उसको अपने पास आने का इशारा कर रहा था,"हुम्म!" दिशा ने वाणी को झूठ बोल दिया ताकि वो सो जाए और वो जान सके की... 'ये प्यार कैसे होता है'
वाणी के दिल में ये बात अंदर तक चुभ गयी... फिर तो सर ने मुझे माफ़ नही किया... वरना वो उसके बगैर कैसे सो जाते....या सो भी जाते तो एक बार उसका दुलार तो करते.... सोचकर उसकी आँखें ढब-ढबा गयी!
दिशा ने फिर टोका," वाणी!"
वाणी नही बोली; वो नाराज़ हो गयी थी... दिशा से भी.... सबसे!
 

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