Tuesday, 1 April 2014

masti ki pathsala - 3

मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी  भाग -3

एक दूसरे की बाहों में लेटे-लेटे कब सुबह हो गयी पता ही नही चला. सुबह के ५ बाज चुके थे अभी वो भिवानी से २० मिनट की दूरी पर थे जबकि अंजलि को आगे लोहरू तक भी जाना था जाना तो शमशेर को भी वही था पर अंजलि को नही पता था की उनकी मंज़िल एक ही है वो तो ये सोचकर मायूस थी की उनका अब कुछ पल का ही साथ बाकी है रात को जिसने उसको पहली बार औरत होने का अहसास कराया था और जिसकी छाती पर उसने आँसू बहाए थे उससे बात करते हुए भी वो कतरा रही थी

अंत में शमशेर ने ही चुप्पी तोड़ी,"चलें"

अंजलि: जी... आप कहाँ तक चलेंगे?

शमशेर: तुम्हारे साथ... और कहाँ?

अंजलि: नही!...म..मेरा मतलब है ये पासिबल नही है

शमशेर: भला क्यूँ?

अंजलि: वो एक गाँव है और सबको पता है की मैं कुँवारी हूँ वहाँ लोग इस बात को हल्के से नही लेंगे की मेरे साथ कोई मर्द आया था फिर वहाँ मेरी इज़्ज़त है.

शमशेर ने चुटकी ली," हां, आपकी इज़्ज़त तो मैं रात अच्छि तरह देख चुका हूँ

अंजलि बुरी तरह झेंप गयी काटो तो खून नही तभी बस आने पर वो उसमें बैठ गये अंजलि ने फिर उसको टोका,"बता दीजिए ना की आप क्या करते हैं, कहाँ रहते हैं कोई कॉंटॅक्ट नंबर

शमशेर ने फिर चुटकी ली,"अब तो आपके दिल मैं रहता हूँ आपसे प्यार करता हूँ, और आपका कॉंटॅक्ट नंबर ही मेरा कॉंटॅक्ट नंबर. है

अंजलि: मतलब आप बताना नही चाहते ये तो बता दीजिए की जा कहाँ रहे हैं? तभी भिवानी बस स्टॉप पर पहुँच कर बस रुक गयी अंजलि और शमशेर बस से उतर गये अंजलि ने हसरत भारी निगाह से शमशेर को आखरी बार देखा और लोहरू की बस में बैठ गयी उसकी आँखो में तब भी आँसू थे

कुछ देर बाद ही वह चौक गयी जब शमशेर आकर उसकी साथ वाली सीट पर बैठ गया

अंजलि को भी अब अपनी ग़लती का अहसास हो रहा था ये आदमी जिसको उसने स्वयं को सौप दिया, ना तो अपने बारे में कुछ बता रहा है ना ही उसका पीछा छोड. रहा है उसकी साथ आने वाली हरकत तो उसको बचकानी लगी कहीं ये उसको ब्लॅकमेल करने की कोशिश तो नही करेगा वो सिहर गयी वो उठी और दूसरी सीट पर जाकर बैठ गयी

शमशेर उसका डर समझ रहा था वो अचानक ही बस से उतार गया और बिना मुड़े उसकी आँखों से गायब हो गया

अंजलि ने राहत की साँस ली. पर उसको दुख भी था की उस मर्द से दोबारा नही मिल पाएगी सोचते-सोचते लोहरू आ गया और वो अनमने मन से स्कूल में दाखिल हो गयी




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