मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी भाग-21
उधर शिवानी लोहरू के स्टैंड पर उतरी..
उसको पता नहीं था की स्कूल ट्रिप जा चुकी है..
हाँ सुनील का मोबाइल २ दिन से स्विच ऑफ आने
की वजह से उसको अंदेशा जरूर था..
अंजलि का पति और उसका एक दोस्त शिव अकेले पन
का लुफ्त उठा रहे थे जाम से जाम टकराकर.... दारू काफी ज्यादा हो चुकी थी दोनों बहकने लगे थे..
शिव ने अपना १०वाँ पैग खाली करते ही ओमप्रकाश से
कहा, "साले.. ! तुने शादी के बाद भाभी से नहीं मिलवाया...
बड़ी तमन्ना थी उनको करीब से देखने की... !"
"अबे भूतनी के.." वो तेरी लुगाई है क्या जो करीब से
देखेगा.. ! दूर से दिखा दूँगा जब वो आ जायेगी.. बात करता है.. अपनी तो संभाल नहीं सकता.. मेरी को देखेगा..
करीब से.. !
शिव करीब ३५ साल का हट्टा-
कट्टा आदमी था अपनी खुद की बीवी से तलाक ले
चूका शिव १ न. का औरत खोर था उसके अपने फार्म
हाउस पर नौकरों से ज्यादा नौकरानियाँ थी जो उसकी आवभगत का काम
देखती थी.. मोटी तनख्वा देकर वो काफी कम उम्र
की और हसीन बालाओं को ही नौकरी करने
का मौका देता था...
तभी दरवाजे पर बेल हुयी.. ओमप्रकाश टहलता हुआ
गया और उसने दरवाजा खोल दिया..., "शि...वानी.. !" आओ.. आओ.... उसने अपने दाँत निकाल दिये... उसके
मुँह से शराब की तीव्र दुर्गन्ध आ रही थी.. !
शिवानी उसको इस हालत में देखकर ठिठकी फिर
बिना बोले उसकी साइड से निकल गयी..
"शिवानी जी.... मैंने कहा... सब ठीक तो है ना.... ?"
शिवानी बिना बोले अपने बेडरूम में घुस गयी.... ओमप्रकाश वापस शिव के पास आ गया... शिव ने
उसको दरवाजे के आगे से निकलते देखा था.., "अबे तुने
भी नौकरानी रख ली क्या.. ?"
बात इतनी जोर से कही गयी थी.. की शिवानी के
कानो में भी चुभी..."
"अबे गांडू.. ! तेरे को वो नौकरानी दिखती है क्या... वो तो अंजलि के स्कूल के एक मास्टर की लुगाई है... !"
ओमप्रकाश ने अपने तरीके से शिवानी का परिचय
दिया.... !
शिव ने उसके कान के पास मुँह लेजाकर कहा..., "अबे
कभी ली भी है या नहीं...?" पर उसकी आवाज फिर
भी पहले जितनी थी... "तू भी शिव भाई..." कभी गांड से ऊपर उठकर
सोचता ही नहीं है.. तुम्हारा बस चले तो किसी की चूत
मारे बिना छोड़ो ही ना.. ओमप्रकाश की आवाज सहज
थी...
"क्या बकता है..." मैंने जिसको नजर भर कर देख लिया..
समझो यहाँ आकर बैठ गयी.. "शिव ने कच्छे पर हाथ मारते हुये कहा... वो कच्छे और बनियान में ही था.... !
साली ये लुगाई होती ही ऐसी हैं..., जो जितनी शरीफ
नजर आती है उतनी ही चुदक्कड़ होती है साली... वैसे
तेरी वाली कैसी है.. ?"
बेडरूम के दूसरी और अपने बेडरूम में जाकर बैठ
गयी शिवानी को एक-एक शब्द सुनना असहनीय
हो रहा था.. और जब बात हद से गुजर गयी तो वह
दहाड़ती हुयी उनके बेडरूम के दरवाजे पर गयी, "वॉट इस
दिस नोन्सेन्स.. ! यू हैव ड्रंक, डसैन्ट लेट यू टू इनट्रयूड
इनटू अदर्स लाइफ, जस्ट स्टाप दैट.. !" उसने दरवाजा 'भड़ाक' से बंद किया और वापस चली गयी..
क्या बोल के गयी है ये रंडी...? साली को औकात
दिखा दूँगा.. !
ओमप्रकाश थोड़ा ढीला पड़ गया... जाने दे.. उसको अपने
धंधे का पता नहीं है... तू ठंड रख... !
अबे उसकी माँ की चूत में रखकर ठंडा करुँ क्या अब, समझती क्या है... आज तक शिव भाई को किसी ने
आँख उठा कर भी नहीं देखा.., वो मेरे सामने अंग्रेजी बोल
कर चली गई....
अब यार तू चुप कर ना.. ! बेकार में... पता नहीं है उसको तेरे
बारे में... ! ओमप्रकाश ने उसका ध्यान बटाने की कोशिश
करी, "ले तू पैग लगा ले.. !" अबे पैग लगाने को बोलता है... ! उसको बता के आ तू के
अंग्रेजी बोलने वालियों को भाई अपने यहाँ रखता है..
नौकरानी.. साली.. ! उसका इशारा फिर से अपने लंड
की और था...'यहाँ रखता हूँ' में... !
शिवानी ने सुनील के पास फोन ट्राय किया पर
वो नहीं मिला.. शिव की बातें सुनकर उसको उल्टियाँ आ रही थी और कोई चारा ना देख उसने
लिविंग रूम में जाकर टीवी ऑन करके उसका वोल्यूम
फुल कर दिया उस पर कोई मूवी आ रही थी..
शिव का ध्यान मूवी की और गया.. यार.. ! चल मूवी देखते
हैं.. "वह उठा और चल दिया.. उसको लिविंग रूम में
आया देख शिवानी रिमोट फैंक कर अपने बेडरूम में जा घुसी.. दरवाजा बंद कर लिया.. ओमप्रकाश भी बाहर
आ गया.. दारू की दूसरी बोतल उठाकर.........
कुछ देर में ही दोनों शिवानी का टॉपिक भूल कर
अपनी बातों में और फिल्म में डूब गाये..
शिवानी भी उनकी बातों का टॉपिक बदलने पर कुछ
निश्चिंत सी हो गयी.. उसने बाथरूम में घुस कर अपने कपड़े उतारे और नहाकर अपनी लम्बे सफर की थकान दूर
करने लगी...
फिल्म में गुंडे किसी आदमी को पकड़ कर अपने
आका के पास ले गये.. सरदार ने उस आदमी से कहा, "तो तू
वो प्रोपर्टी हमारे नाम नहीं करेगा... हाँ.. !"
वो आदमी हीरो का दोस्त था.. जैसा अक्सर हिंदी मूवीस में होता है.., "नहीं.. ! मैं मर जाऊँगा, पर
अपने पुरखों की जमीन किसी भी कीमत पर तुम्हे
नहीं दूँगा... !"
"अच्छा.. !" सरदार ने अपनी बन्दूक निकाली और उसके
सीने में गोलियाँ दाग दी.. !
शिव बहुत खुश हुआ, "साला.. ! ये तरीका मेरे को बहुत पसंद है.. दूसरी बार पूछने का ही नहीं.. मस्त है.. भाई.. और
वो तेरी नजभगढ़ वाली प्रोपर्टी का क्या चल रहा है.. ?
हाँ... सौदा हो गया...?"
"हो जायेगा, बात चल रही है..." ओमप्रकाश ने
उसको ठंडा होने की सलाह दी...
तेरी माँ की.. साला तेरी गांड में यही प्रॉब्लम है.. देख हम
दोनों ने साथ ही काम शुरू किया था... तू कहाँ रह गया..
और मैं कहाँ पहुँच गया... ! पर तेरे भेजे में बात कौन डाले... !
बातों को ही छोड़ने में लगा रहता है...
शिवानी नहा कर बाहर आई.. उसने एक
रेशमी नाईटी पहन ली थी अब उसको जोरों की भूख लगी हुयी थी पर किचेन का रास्ता लिविंग रूम से
होकर जाता था, उसने दरवाजे के पास आँख लगाकर देखा...
वो दोनों हँस रहे थे मूवी को देखकर.. शिवानी ने सोचा..
अब इनका नशा हल्का हो गया है.. उसने
दरवाजा खोला और किचेन में जा घुसी..
शिव का ध्यान उस पर गया.., "क्या मस्त आइटम है यार.. ! भाभी जी आप की नाईटी बहुत अच्छी है.." कह कर
वो जोर से हँसने लगा...
शिवानी ने उस की बात पर कान नहीं दिए.. वो किचेन
में घुस कर कुछ पकाने की तैयारी करने लगी..
सच में ही, वो बला की खूबसूरत तो थी ही.. उस रेशम
की मुलायम नाईटी में उसका हर उभार उभर कर सामने आ गया था..
रही सही कसर मूवी के इस सीन ने पूरी कर दी.., सरदार
हीरो की बहन का रेप कर रहा था वो चिल्ला रही थी..
पर सरदार का हौसला उसके चिल्लाने के साथ
ही बढ़ता जा रहा था... हीरो की बहन.. किसी कबूतर
की तरह फडफडा रही थी..... शिव की आँखें इस सीन के अन्दर तक
घुसती चली गयी... जाने क्या सोचकर उसकी आँखें चमक
उठी, "ओम..! तुने कभी रेप किया है...?" उसने धीरे से
कहा...
"क्या बकवास कर रहा है यार... दिखता नहीं घर में
अकेली औरत है...?" "तभी तो पूछ रहा हूँ.. ! करना है क्या.... ?"
ओम ने अचरज से शिव के चेहरे को देखा, उसके दिमाग
की खुरापात उसकी शराब के नशे में डूबी लाल आँखों में
साफ दिखाई दे रही थी..., "चल अन्दर चलते हैं... बंद कर
दे टीवी !"
शिव किसी खूँखार भेड़िये की तरह मुस्कुरा रहा था... शिकार करना वो जनता था... शिकार उसके सामने था..
किचेन में... उसने धीरे से ओम के कान में कहा, "सिर्फ
ट्राय करते हैं... मान गयी तो ठीक है...
वरना अपना क्या बिगाड़ लेगी...."
नशे में नहीं होता तो ओम कभी भी उसको इस बात
की इजाजत नहीं देता... पर जाने क्या बात होती है शराब में... आदमी २ घंटे बाद क्या होगा, ये भी भूल जाता है.., "तू
मरवायेगा यार.. !" कह कर वो फिल्म देखने लगा..
हीरो की बहन ने कुँए में कूद कर जान दे दी.....
शिव सोफे से उठकर किचेन की और गया और दरवाजे
पर खड़ा हो गया... अपने साथ होने जा रही वारदात से
अनजान शिवानी कुछ गुनगुनाती हुयी सी रोटियाँ सेक
रही थी... पसीने के कारण उसकी नाईटी पूरी तरह भीग
गयी थी.. उसके चूतडों का गदरायापन उसकी नाईटी के
नीचे पहनी हुयी उसकी पैंटी के किनारों के अहसास के साथ साफ झलक रहा था... टीवी का वोल्यूम
उतना ही था... जितना शिवानी ने कर दिया था... फुल..!
शिव उस पर किसी बाज की तरह से झपटा..
शिवानी कसमसा कर रह गयी.. शिव का एक हाथ उसके
मुँह पर था और दूसरा उसके पेट पर.. शिवानी के गले से
आवाज निकलने ही ना पाई.. शिव ने उसको उठाया और उसी के बेडरूम में ले गया.. दरवाजे की कुण्डी लगाई और
शिवानी को बेड पर लेजाकर पटक दिया.....
उसके हाव-भाव देखकर शिवानी की ये कहने
की भी हिम्मत नहीं हुयी की आखिर कर क्या रहे है..
वह सब समझ गयी थी.. शिव नीचे खड़ा मुस्कुरा रहा था...
अचानक ही दरवाजे पर दस्तक हुयी.. शिवानी उठकर दरवाजे की और भागी.. पर वहाँ तक पहुँच ना पायी.. शिव
के हाथों में जकड़ी जोर से चिल्लाई, "बचाओ..... !"
पर बचाने वाला कोई ना था.. हाँ शिव को समझाने
वाला तो था... ओम.. ! पर वो भी एक बार
दरवाजा थपथपा कर वापस चला गया.. जब
दरवाजा नहीं खुला.. ! शिव शिवानी के ऊपर गिर पड़ा.. उसको नोचने लगा..
वो चिल्लाती रही.. शिव ने उसकी नाईटी गले से
पकड़ी और खींच दी.. नाईटी चिरती चली गयी..
शिवानी की चूचियाँ अब नंगी थी.. उसने अपने आप
को समेटने की कोशिश करी.. शिव ने उसके दोनों हाथ
पकड़े और पीछे करके एक हाथ से दबा लिए... शिवानी चिल्ला रही थी.. अपने पैर चला रही थी.. खुद
को बचाने के लिए.. शिव उठकर उसकी जाँघों पर बैठ
गया..
ठीक उसकी योनी पर.. हाथ शिव के काबू में होने
की वजह से शिवानी असहाय हो गयी.. भला २२-२३ साल
की ३५ साल के आदमी के आगे क्या बस चलाती.. उसने शिव की कलाई को जोर से अपने दाँतों के बीच ले
लिया.. और लगभग उसकी खाल को काटकर अलग
ही कर दिया..
शिव के क्रोध का ठिकाना ना रहा.. उसने झुक कर
शिवानी के गाल को काट खाया.. उसी जालिम तरीके
से.. शिवानी का दिल और दिमाग काँप उठे.. इस दर्द
को महसूस करके.. उसने अपने दाँत हटा लिए.. समर्पण
कर दिया..
पर इस समर्पण से शिव संतुष्ट नहीं था.. उसने थोड़ा पीछे होकर शिवानी की जाँघों के बीच हाथ दे
दिया..
शिवानी ने एक आखरी कोशिश और की..
अपनी अस्मत बचाने की.. उसने जोर लगाकर
निश्चिंत से हो चुके शिव को पीछे धक्का दे दिया..
शिव बेड से पीछे जा गिरा... शिवानी उठने को भागी... पर उठते हुए उसकी नाईटी में
उसका घुटना आ फँसा और वो मुँह के बल आ गिरी... चोट
सीधी शिव द्वारा काटे गये उसके गाल पर लगी...
शिवानी दर्द से तिल-मिला उठी...
शिव को उठने में कम से कम १ मिनट लगा.. पर तब तक
शिवानी ना उठ पाई... अब शिव खूँखार हो चूका था उसने लगभग हार
चुकी शिवानी को आधा बेड पर गिरा दिया..
शिवानी के घुटने जमीन से लगे थे.. उसके दोनों हाथ पीछे
शिव के हाथों में थे और पैरों को शिव ने अपने घुटने से
दबा दिया.. बेड के कोने पर शिवानी का वो भाग
था जिसको शिव भोगना चाहता था.... शिव ने उसकी नाईटी ऊपर खींच दी.. और पैंटी नीचे....
शिवानी असहाय सी हीरो की बहन की तरह सिसक
रही थी.. तड़प रही थी... उसकी आँखों के आगे
अंधेरा छाया हुआ था....
शिव रूपी भेड़िये के उपर तो शराब के नशे में
वासना का भुत जो सवार था... शिवानी की योनी के कटाव को देखकर शिव एक हाथ
से अपने को तैयार करने लगा...
और तैयार होते ही उसने अपनी हसरत पूरी कर दी..
शिवानी शारीरक और मानसिक दर्द से
तिलमिला उठी.... उसकी चीत्कार सुनकर ओम फिर
दरवाजे पर आया, "शिव भाई... जबरदस्ती नहीं... तुमने बोला था....
शिव को गुस्सा आ गया अपने कुत्सित आनंद में विघ्न
पड़ते देखकर... और ये सब शिवानी की चीखों की वजह
से हो रहा था....
शिव ने अपना मोटा हाथ शिवानी के मुँह पर रख
दिया... शिवानी का सब कुछ घुट गया.... शिव धक्के लगाकर अपनी वासना की पूर्ती करने लगा...
धीरे-धीरे शिवानी का विरोध कम होता-
होता बिलकुल ही बंद हो गया... अब
वो चिल्ला नहीं रही थी...
शिव जब अपनी कुत्सित वासना शांत करके उठा...
तो शिवानी ना उठी... वह नीचे गिर पड़ी... धड़ाम से...
शिव ने उसकी छाती पर हाथ रखा.. वो खामोश
हो चुकी थी... शिव के हाथ के नीचे उसकी साँसों ने दम
तोड़ दिया...
शिव अपना सर खुजाता हुआ बहार आया... उसकी समझ
में नहीं आ रहा था की क्या करे... उसकी नजर टीवी पर
गयी... हीरो... उस सरदार को उसके कर्मों का फल दे रहा था...
शिव डर गया... उसने ओम को सब कुछ बताया... ओम के
हाथ पैर फूल गये....
करीब १ घंटे बाद उनकी कार गेट से निकली और गायब
हो गयी.... शिवानी की लाश लिए
अगले दिन सब रोहतांग दर्रे पर घूम कर आये.. टूर का तीसरा और आखिरी दिन था.. सबने खूब
मजा लिया.. रास्ते भर तीनो मौज मस्ती करते गये
लड़कियों के साथ... चोरी छिपे जमकर छेड़ छाड़ हुयी....
रात को राकेश ने दिव्या को फिर से अपने कमरे में ले
जाकर प्यार किया और टफ ने सरिता को बुलाकर
उसकी माँ के सामने ही चोदा... और माँ को फिर सरिता के सामने... सुनील और अंजलि ने भी अलग
कमरे में फिर से जी भर कर अपनी भूखी वासना को शांत
किया.....
अगले दिनभर जिसका जो दिल चाहा किया, घुमे
फिरे, थकान उतारी और शाम को घर
वापसी की तैयारी की... करीब ७:०० बजे वो घर के लिए निकल पड़े.... ये
वही रात थी जिस दिन शिवानी के साथ
वो हादसा हुआ था..
पर सुनील इस बात से बेखबर था.....
हर एक के चेहरे पर टूर से कुछ ना कुछ मिलने
की ख़ुशी थी...
बस में आते हुए सुनील का ध्यान बड़ी शालीनता के साथ
बैठी हुयी नीरू पर था.. सुनील का ध्यान बार-बार
उसकी तरफ जा रहा था.. क्या ऐसा कभी इसके साथ
भी हो सकता है... ?
नीरू अपनी साफ सुथरी इमेज के लिये पूरे गाँव में
प्रसिद्ध थी, कोई लड़का उसकी तिरछी नजरों से भी कभी देखता नहीं पाया गया था.. फिर
उसकी मुस्कराहट किसी पर मेहरबान हुयी हो... ये
तो कभी किसी ने उसके १६ पार के बाद
देखा ही नहीं था.. दिशा की तरह अपनी नाक पर
मक्खी तक को ना बैठने देने वाली...
स्कूल की सभी लड़कियाँ उसको अपना निर्विवाद नेता मानती थी.. जब भी कभी किसी बात पर दो राय
हो जाती.. नीरू से ही पूछा जाता..
नीरू थी भी इस सम्मान के लायक.. एक गरीब घर में
पैदा होने के बावजूद.. उसने अपनी पहचान बनायीं थी..
अपनी समझदारी, बेबाकी और बेदाग चरित्र से...
हालाँकि वह इतनी हष्ट पुष्ट नहीं थी पर उसकी इमेज उसको उससे कहीं ज्यादा सुन्दर लड़कियों से
भी सेक्सी बनाती थी... गरमा-गरम... पर फिर
भी बिना पका हुआ... बिना 'फुक्क्का' हुआ...
सुनील को अपनी और देखता पाकर नीरू उसकी सीट के
पास गयी, "सर.. ! कुछ कह रहे थे क्या.. ?"
सुनील हडबडा गया, "आअ.. नहीं कुछ नहीं.. !" ऐसी लड़की से डर होना लाजमी था.. किसी की आज
तक उसको प्रपोस करने की हिम्मत ना हुयी थी..
नीरू वापस अपनी सीट पर बैठ गयी... सुबह के ३:०० बजे
वो भिवानी जा पहुँचे...
उधर शिवानी की लाश को भिवानी झाँसी रोड पर
लेकर चल रहे शिव और ओम का नशा काफूर हो चूका था...
अब उनकी समझ में नहीं आ रहा था की क्या करें..
ओम ने कार चला रहे शिव को देखकर कहा, यार तुने
तो अपने साथ मुझे भी फंसवा दिया... कम से कम ये
जिन्दा होती तो बलात्कार का ही इल्जाम लगता, वो भी तुझपर... मर्डर में तो मैं भी साथ ही आ जाऊँगा.. !
यार तुझे जान लेने की क्या जरुरत थी...
अबे.. ! मैं कोई गधा हूँ क्या.. जो जान बूझ कर जान लूँगा.. !
वो चिल्ला रही थी.. मैंने उसका मुँह दबा लिया... नशे में
ये होश ही नहीं रहा की उसकी साँस भी बंद
हो सकती है... तो फिर इसका करना क्या है अब.. ?
शिव चलता रहा..., "इसको बहुत दूर जाकर फैंकना पड़ेगा..
ताकि कोई इसको आसानी से पहचान ना सके... !"
ओम: मेरे पास एक आईडिया है... ये साँस बंद होने से
मरी है... अगर हम इसको नदी में फैंक दे तो.. ?
शिव को आईडिया बेहद पसंद आया.., उसने गाड़ी वापस घुमाई और करीब ५ की.मी. पीछे रह चुकी नहर की और
चलने लगा....
नहर के पुल पर जाकर शिव ने गाड़ी पटरी पर दौड़ा दी...
रात का समय था... बन्दे की जात भी नजर नहीं आ
रही थी... थोड़ी दूर जाकर शिव ने गाड़ी नहर के साथ
लगा दी... ओम.. ! इसको पानी में फैंक दो... ! "शिव ने ओम से कहा.."
ओम पागल नहीं था.., बहुत अच्छे... करम करो तुम.. ! भुगतें
हम.. ! ये काम में नहीं करूँगा... खुद उतारो.. और
जो करना है करो...
शिव: तो तुम नीचे नहीं उतारोगे... ! तुम भी बराबर के
दोषी हो मत भूलो.. ! मैं तुम्हारे ही पास था... तुमने ही मुझे शराब पिलाई.. और ना ही तमने मुझे कुछ करने से रोका...
और तो और तुमने ही इसके हाथ पैर पकड़े और इससे
बलात्कार भी किया.. !
"क्या बक रहे हो.. ?" ओम ने उसको हैरानी से देखा... ,
"ऐसा कब हुआ था.. ?"
पर अगर कुछ गड़बड़ हुयी तो पुलिस को मैं
यही बताऊँगा... ! "शिव ने धूर्तता से कहा..."
ओम मुँह बनाकर उतर गया... खिड़की खोलकर उसने
शिवानी को बाहर की और खिंचा.., वो आश्चर्य और खुशी से उछल पड़ा.., "ओह.. ! तेरे की, ये तो जिन्दा है... !"
क्य्याअअअअअअआ..? शिव को भरोसा ना हुआ... वह
तेजी से पीछे पलटा..., "क्या बकवास कर रहे हो... ?"
हाँ भई... देख हाथ लगाकर देख... !
शिव ने उसकी कलाई पकड़ी.. नब्ज चल रही थी... पर
शिवानी में कोई गति नहीं थी... वह शायद बेहोशी या सदमें में थी..., अब क्या करें... मर गए... ! अब
तो इसको मारना ही पड़ेगा.. ! चल इसको पानी में फैंक दे...
अपने आप मर जायेगी... !
ओम की मुश्किल से जान में जान आई थी... एक
वही तो गवाह थी.. जो उसको बचा सकती थी..., तू पागल
है क्या... अपने बचने की टिकट सिर्फ इसी के पास है... अगर मर गयी तो दोनों में से एक के फँसते
ही दोनों फँसेंगे... मेरे पास एक आईडिया है...! "
"क्या.. ?" शिव की समझ में कुछ नहीं आ रहा था..
उसको सच में ही आइडिये की जरूरत थी...
ओम: इसको अपने फार्म हाउस पर कैद करके रखो.... !
अगर कुछ समस्या आई.. तो हम इसको जिन्दा तो बरामद करा सकते हैं... अगर कोई
समस्या ना आई तो तुम बेशक इसको मार देना.... ! "ओम ने
उसको समझाया..."
कम से कम फाँसी से बचने के लिए शिव को ये उपाय
पसंद आया... वे दोनों गाड़ी में बैठे और वापस
हन्सी की और चल दिए... वाया रोहतक.. बहादुरगढ़... अपने फार्म हाउस पर जाने के लिए... !
"यार.. ! तू मुझे वापस छोड़ दे.. ? घर जाकर मैं
वहाँ की हालत ठीक कर दूँगा... !" ओम अपने आपको अब
इस वारदात से दूर कर लेना चाहता था...
शिव ने कुछ देर सोचा... उसको लगा ये ठीक ही कह
रहा है... अगर किसी पर शक होगा तो सबसे पहले ओम पर ही होगा... घर की ऐसी हालत देखकर.. ! और ओम
फँसा तो समझो शिव तो फँस ही गया... उसने फिर से
गाड़ी घुमा दी और तेजी से भिवानी की और चलने लगा...
करीब १ बजे शिव ने ओम को गाँव के बाहर उतार दिया..
और वापस घूम गया... उसने शिवानी का हाथ पकड़ा..
उसने कोई हलचल नहीं दिखाई.... उसने गाड़ी की स्पीड
बढा दी...
ओम ने घर पहुँच कर सबसे पहले दारु की बोतल वहाँ से
हटाई फिर किचेन को साफ किया गैस अभी तक चालू थी रोटी 'राख' बन चुकी थी गैस बंद करके ओम पहले
बेडरूम में गया और बिस्तर की सिलवटें ठीक की, एक
जगह फर्श पर खून लगा हुआ था... ओम की समझ में
नहीं आया की वो खून आखिर है किसका.. पर उसने
उसको भी साफ किया...
किचेन की सफाई करने के बाद उसने हर जगह घूम कर देखा.... सब कुछ ठीक ठाक था... वह निश्चिंत होकर बेड
पर लेट गया... पर नींद उसकी आँखों में नहीं थी... वह
यूँही करवट बदलता रहा...
बाथरूम में हैंगर पर शिवानी क्या सूट टंगा हुआ था...
सुनील क्या मनपसंद सूट... जो शिवानी अपने मायके
जाते हुए पहन कर गयी थी... और वही पहन कर भी आई थी.. अपने सुनील के लिए.. !!
यहाँ ओम गलती कर गया
करीब ३:३० पर बस स्कूल के पास आकर रुकी...
सभी सो रहे थे...
ड्राईवर ने हार्न देकर सबको जगाया... नींद में अँगडाई लेटे
हुये सभी स्कूल की लड़कियाँ नीचे उतर कर अपने
कपड़ों को ठीक करने लगी....
टफ, सुनील, अंजलि और प्यारी सबसे आखिर में उतारे... प्यारी ने टफ की और मुस्कुराकर देखा... उसको टूर पर ले
जानने के लिए और टूर पर मजा देने के लिए..
टफ मुस्कुरा दिया, "अच्छा आंटी जी, फिर
कभी मिलते हैं...."
अंजलि ने टफ की बात सुनकर मुस्कुराते हुये सुनील से
कहा, "ये भी हमारे साथ ही चल रहे होंगे..." "नहीं नहीं.. मैं तो प्यारी आंटी के साथ ही जाऊँगा..." टफ
ने हँसते हुये कहा और सुनील के साथ ही चलने लगा...
गौरी ने नमिता को भी अपने साथ ले लिया... सभी घर
पहुँच गये...
अंजलि ने बेल बजायी... जागते हुये भी ओम ने थोड़ी देर
से दरवाजा खोला.... ताकि उनको लगे की वो सो रहा था...
अंजलि ने अन्दर आते ही टफ का इंट्रोडक्शन करवाया,
"ये हैं सब इंस्पैक्टर इन क्राइम ब्रांच, भिवानी.. ! सुनील
के दोस्त... !"
सुनते ही ओम के माथे पर पसीना छलक आया... और दो बूंदे
उसके लंड से भी चू पड़ी पेशाब की... उसने अपना डर उससे नजर हटा कर हटाया... वह कुछ ना बोला...
टफ की नजर टेबल के पाये के साथ पड़े सिगरेट के टुकड़े
पर पड़ी..., "यार ये नेवी कट कौन पीता है... इसका तम्बाकू
तो बहुत तेज़ है.. !"
अंजलि ने जवाब दिया, "यहाँ तो कोई सिगरेट
पीता ही नहीं.. ! "या फिर छुप-छुप के ये पीते हो.. !" अंजलि ने ओम की और मुखातिब होते हुये कहा....
"इस साले इंस्पैक्टर को भी अभी मरना था.. !" ओम ने मन
ही मन सोचा और कुछ बोला नहीं.. जाकर बिस्टर पर ढेर
हो गया... !"
आधे बेड पर लेटे सुनील को आज शिवानी कुछ
ज्यादा ही याद आ रही थी.... बस में नीरू के सोम्य योवन ने उसको बहुत ज्यादा उत्तेजित कर दिया था.
उसकी पतिवर्ता पत्नी अगर आज उसके पास
होती तो वो उसको जी भर कर प्यार करता... उसने
घड़ी में समय देखा.. लगभग ४:३० बज चुके थे उसने सुबह
उठते ही शिवानी को फोन करके उसी दिन बुलाने
का निश्चय किया और उस तकिये को, जिसको अक्सर वो प्यार करते हुये शिवानी को नीचे
से ऊपर उठाने के काम आता था, अपनी छाती से
लगाया और सो गया..
अंजलि ने ओम की और देखा, वैसे तो वह सेक्स के
प्रति इतना उत्सुक कभी नहीं रहता था... पर आज
तो उसने उससे बात तक नहीं की... पहले के दिनों में ओम
कम से कम उसकी छाती पर हाथ रखकर तो सोता था...
पर आज तो उसने पीठ ही अंजलि की और कर
रखी थी देखने के लिये.. अंजलि ने भी दूसरी और करवट बदल ली और सो गयी.......
नमिता गौरी को लेटे-लेटे ध्यान से देख रही थी...
गौरी किसी भी तरह से नमिता से कम नहीं थी...
उसका भाई गौरी से प्यार करता था और नमिता अपने भाई
को खोना नहीं चाहती थी... किसी भी कीमत पर... वह
मन ही मन में भुन सी गयी... उसने उलटी लेट कर सोयी हुयी गौरी के मस्त पुट्ठों को देखा...
यहाँ नमिता गौरी से थोड़ा सा पिछड़ रही थी.. नमिता ने
अपनी जाँघों को सहला कर देखा... 'क्या मेरा भाई मुझे
छोड़ देगा.. ?' उसने मन ही मन गौरी को संजय के दिल से
निकालने का निश्चय किया और संजय को गौरी के
दिल में ना बसने देने का...
शिव की गाड़ी करीब ६:३० बजे फार्म हाउस पहुँची...
गेटकीपर ने दरवाजा खोला और शिव
गाड़ी को सीधा गैराज ले गया... वहाँ उसकी पालतू..
लड़कियाँ आधे अधूरे कपड़ों में लिपटी उसका इंतज़ार
कर रही थी...
शिवानी होश में आ चुकी थी.. पर सदमें की वजह से कुछ बोल नहीं पा रही थी... बोलने का फायदा ही क्या होता...
"इसको अंडर-ग्राउंड बेडरूम में ले आओ... !" शिव ने
कहा और आगे बढ़ गया.........
फार्म हाउस पर करीब २३ और २६ साल की छरहरे बदन
वाली २ लड़कियों या यूँ कहें २ औरतों ने
शिवानी को गाड़ी से उतारा और उसको दोनों तरफ से पकड़ कर ले जाने लगी... लम्बी बेहोशी और सदमें से
ग्रस्त शिवानी में विरोध करने की हिम्मत ना के
बराबर ही बची थी.. वह उनके साथ-साथ लगभग
सरकती हुयी सी चल पड़ी... उसकी आँखों में रात
को उसके साथ हुये हादसे का भय साफ झलक रहा था...
दोनों लड़कियाँ उसको ३ कमरों और एक लम्बी गैलरी से गुजार कर नीचे सीढियाँ उतारते हुये एक
आलिशान बेडरूम में ले गयी... वहाँ पहले से ही शिव
खड़ा था और बेडरूम के बीचों बीच एक गोलाकार बेड पर
एक करीब १९ साल की लड़की बिना कपड़ों के अपने
ऊपर एक पतली सी चादर डाले लेटी थी... शिव के
इशारा करते ही वो बिस्तर से उठी और चादर से अपने आपको ढकने का दिखावा करती हुयी दुसरे दरवाजे से
बाहर निकल गयी...
शिव के कहने पर उन लड़कियों ने शिवानी को बेड पर
बिठा दिया, शिव ने लड़कियों की तरफ घुमते हुये
कहा, "अनार का जूस.. ! और लड़कियाँ अदब से "यस
सर..!" कहकर वापस चली गयी... शिवानी उस राक्षस की और फटी आँखों से देख
रही थी.. जिस खूँखार जानवर ने उसके ही घर में
उसकी इज्जत को तार-तार कर दिया, उससे कुछ कहने
या पूछने की हिम्मत शिवानी की ना हुयी... शिव
उसके सामने दिवार के साथ डाले सोफे पर बैठ गया और
उसको घूरने लगा... तभी लड़कियाँ एक शीशे का जग और २ ग्लास ले आयी...
शिव का इशारा पाकर उन्होंने जग और ग्लास टेबल पर
रखे और वापस चली गयी...
शिव ने एक ग्लास में जूस डाला और खड़ा होकर
शिवानी के पास गया, "लो.. !"
उसके हावभाव आवभगत करने वाले नहीं बल्कि आदेशात्मक थे.. शिवानी का हाथ उठ
ही ना पाया... "एक बात ध्यान से सुन लो.. !" मुझे कुछ
भी दुबारा कहने की आदत नहीं है... यहाँ मेरा हुक़म
चलता है, सिर्फ मेरा... ! मैं ५ मिनट में आ रहा हूँ... अगर
ये ग्लास खाली नहीं मिला तो नंगा करके अपने
आदमियों को सौंप दूंगा... फिर मुझे मत कहना... उसने ग्लास वापस टेबल पर रखा और बाहर निकल गया...
शिवानी उसकी बात सुनकर काँप उठी... रात
का हादसा और यहाँ का माहौल देखकर
शिवानी को उसकी एक-एक बात पर यकीन हो गया..
वह तुंरत उठी और एक ही साँस में सारा जूस पी गयी...
शिवानी ने अपने चारों और नजर घुमा कर कमरे
का जायजा लिया.. करीब १८'-२४' का वो आलिशान बेडरूम शिव के अयियाश चरित्र
का जीता जागता सबूत था.. चारों और की दीवारें अष्लील
चित्रों से सजी हुयी थी... सामने दीवार पर
प्लास्मा टीवी टंगा हुआ था.. कमरे के चारों कोनो में कैमरे
लगे हुये थे जिनका फोकस बेड पर ही था... अचानक
ही उसका ध्यान अपनी अस्त व्यस्त नाईटी पर गया.. ब्रा के हुक पीछे से खुले हुये थे.. और बस जैसे तैसे
अटकी हुयी थी... उसने नाईटी में हाथ डालकर
अपनी पैंटी को दुरुस्त किया और ब्रा के हुक बांधकर वह
धम्म से बेड पर गिर पड़ी... उसकी आँखों से आँसू बहने
लगे........
करीब ६-७ मिनट के बाद शिव उसी लड़की के साथ बेडरूम में दाखिल हुआ.. जो शिवानी को बेडरूम में आते
ही बेड पर लेटी मिली थी.. वह अभी भी उस
पतली सी चादर में थी उसका यौवन छलक-छलक कर
बाहर से ही दिखाई दे
रहा था शिवानी को वो गौरी की उम्र की लगी पर जैसे
ही उस लड़की ने शिवानी की तरफ देखा शिवानी ने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया.. शिव ने आते
ही खाली हो चुके गिलास को देखा, "वैरी गुड.. !"
लगता है तुम्हारी समझ में आ गया है.. प्राची... !
इसका खास ध्यान रखना.. जब भी तुम्हे लगे
की इसको किसी चीज की जरुरत है इसको दे देना...
अगर मन करे तो मुझे फोन कर देना समझी.. ! प्राची शिवानी को देख कर मुस्कुरायी..., "ओके सर.. !
मैं इसका खास ध्यान रखूंगी... !" उसकी मुस्कान में एक
अलग ही तरह की धमकी थी..... !
शिव ने उसके शरीर से लिपटी वो चादर खींच ली,
प्राची के चेहरे पर शिकन तक ना पड़ी... वो घूम
गयी और चादर को अपने शरीर से अलग होने दिया... बिलकुल नंगी प्राची के चूतड़ अब शिव की आँखों के
सामने थे.. शिवानी ने ग्लानी से अपनी आँखें बंद कर
ली... सोफे पर ही प्राची को झुका कर शिव उस पर
सवार हो गया... पागल कुत्ते की तरह...
दोनों की वासना से भरी आवाजें शिवानी के कानो में
शीशे की तरह उतरने लगी.......
उधर.. सुबह उठने से पहले अचानक सुनील ने पालती मारी,
पर जल्दी ही उसको गलती का अहसास हो गया... सुबह-
सुबह शिवानी से पहले उठकर नींद में ही पालती मार कर
शिवानी के ऊपर चढ़ जाना, और उसको तब तक तंग
करना जब तक की वह जाग कर, उसके गले में बाँहें डाल कर
उसको 'आइ लव यू' ना बोल दे... उसके बाद शिवानी पलट कर उसके ऊपर आ जाती और उठ जाती...
फ्रेश होकर वह सुनील को उठा देती और चाय बनाने
चली जाती... ये उनकी दिनचर्या का एक
जरुरी हिस्सा बन चुकी थी...
पर आज पालती मारते ही जब एक मरदाना शरीर से
टकराया तो उसको याद आया की शिवानी तो आयी ही नहीं है... वह बाथरूम में
घुस गया...
फ्रेश होने के बाद वह किचेन में जाने के लिये जैसे
ही लिविंग रूम में आया उसकी नजर नींद में अपनी-
अपनी मस्तियों का दीदार करा रही गौरी और
नमिता पर पड़ी.. दोनों का सर सुनील की तरफ था... गौरी उलटी लेटी पड़ी थी.. उसके हर्मन प्यारे जबरदस्त
कसाव लिये हुये नितम्ब अपनी गोलाई और उनके बीच
की गहराई का सबूत उसके लोअर के अन्दर से ही दे रहे
थे...
दोनों निश्चिंत हुयी सोयी पड़ी थी...
नमिता गौरी की अपेक्षा सीधी लेटी हुयी थी.. उसके चौड़े गोल गले वाले कमीज में ब्रा के अन्दर से टपक
रहा उसकी चूचियों का सौंदर्य सुनील को कुछ शरारत
करने के लिये उकसाने लगा...
नमिता दिवार वाली साइड में थी, जबकि गौरी बेड के
दुसरे किनारे पर थी.. सुनील उसके चूतडों के पास
गया और हौले से उनपर हाथ रख दिया... कोई हलचल नहीं हुयी.. उसके चूतड़ उसकी छातियों की वजह से
ऊपर उठी उसकी कमर से भी ऊँचे थे... सुनील को उन्हें
छुने से ऐसा अहसास हुआ मानो किसी ठोस फुटबॉल के
ऊपर रेशम का लबादा लपेटा गया हो..
सुनील ने अपने हाथों का दबाव हल्का सा बढा दिया..
गौरी एक दम से उचक कर बैठ गयी... अपनी आँखें मलते हुये बोली, "उन्नन..." क्या है सर... ? अभी तो आये हैं... !
"चाय बना दोगी मेरे लिये.. !" सुनील ने
बड़ी प्यारी आवाज में कहा..
"गौरी ने नींद में होने की वजह से थोड़ा सा मुँह
बनाया और उठकर किचेन में घुस गयी... सुनील हँसकर
सोफे पर बैठ गया...
तभी उनकी आवाज सुनकर अंजलि बाहर निकल
आयी... सुनील को देखकर मुस्कुराई और पूछा..
इतनी जल्दी कैसे उठ गये...?
"मैं तो रोज ही जल्दी उठता हूँ मैडम, आप सुनाईये... !"
सुनील ने सोफे पर बैठ चुकी अंजलि का हाथ दबाते हुये
पुछा... अरे मैं अभी कहाँ उठने वाली थी... वो तो उन्होंने
उठा दिया... उनको जल्दी जाना था सो ६:०० बजे
ही उठा दिया.....
सुनील ने उसकी और आँख मारते हुये कहा, "मि.
ओमप्रकाश जी गये क्या.. ?"
"हाँ.. ! कह रहे थे कुछ जरुरी काम है... २-३ दिन लग जायेंगे आने में" वह खुश लग रही थी......
सुनील ने सोचा.. चलो एक आध दिन और ऐश कर लेते
हैं... पीछे का मजा ले लेते हैं... बेगम को बाद में ही बुलाएँगे...
और उसकी सुबह उठकर शिवानी को फोन करने
की योजना बदल गयी......
उधर शिवानी लोहरू के स्टैंड पर उतरी..
उसको पता नहीं था की स्कूल ट्रिप जा चुकी है..
हाँ सुनील का मोबाइल २ दिन से स्विच ऑफ आने
की वजह से उसको अंदेशा जरूर था..
अंजलि का पति और उसका एक दोस्त शिव अकेले पन
का लुफ्त उठा रहे थे जाम से जाम टकराकर.... दारू काफी ज्यादा हो चुकी थी दोनों बहकने लगे थे..
शिव ने अपना १०वाँ पैग खाली करते ही ओमप्रकाश से
कहा, "साले.. ! तुने शादी के बाद भाभी से नहीं मिलवाया...
बड़ी तमन्ना थी उनको करीब से देखने की... !"
"अबे भूतनी के.." वो तेरी लुगाई है क्या जो करीब से
देखेगा.. ! दूर से दिखा दूँगा जब वो आ जायेगी.. बात करता है.. अपनी तो संभाल नहीं सकता.. मेरी को देखेगा..
करीब से.. !
शिव करीब ३५ साल का हट्टा-
कट्टा आदमी था अपनी खुद की बीवी से तलाक ले
चूका शिव १ न. का औरत खोर था उसके अपने फार्म
हाउस पर नौकरों से ज्यादा नौकरानियाँ थी जो उसकी आवभगत का काम
देखती थी.. मोटी तनख्वा देकर वो काफी कम उम्र
की और हसीन बालाओं को ही नौकरी करने
का मौका देता था...
तभी दरवाजे पर बेल हुयी.. ओमप्रकाश टहलता हुआ
गया और उसने दरवाजा खोल दिया..., "शि...वानी.. !" आओ.. आओ.... उसने अपने दाँत निकाल दिये... उसके
मुँह से शराब की तीव्र दुर्गन्ध आ रही थी.. !
शिवानी उसको इस हालत में देखकर ठिठकी फिर
बिना बोले उसकी साइड से निकल गयी..
"शिवानी जी.... मैंने कहा... सब ठीक तो है ना.... ?"
शिवानी बिना बोले अपने बेडरूम में घुस गयी.... ओमप्रकाश वापस शिव के पास आ गया... शिव ने
उसको दरवाजे के आगे से निकलते देखा था.., "अबे तुने
भी नौकरानी रख ली क्या.. ?"
बात इतनी जोर से कही गयी थी.. की शिवानी के
कानो में भी चुभी..."
"अबे गांडू.. ! तेरे को वो नौकरानी दिखती है क्या... वो तो अंजलि के स्कूल के एक मास्टर की लुगाई है... !"
ओमप्रकाश ने अपने तरीके से शिवानी का परिचय
दिया.... !
शिव ने उसके कान के पास मुँह लेजाकर कहा..., "अबे
कभी ली भी है या नहीं...?" पर उसकी आवाज फिर
भी पहले जितनी थी... "तू भी शिव भाई..." कभी गांड से ऊपर उठकर
सोचता ही नहीं है.. तुम्हारा बस चले तो किसी की चूत
मारे बिना छोड़ो ही ना.. ओमप्रकाश की आवाज सहज
थी...
"क्या बकता है..." मैंने जिसको नजर भर कर देख लिया..
समझो यहाँ आकर बैठ गयी.. "शिव ने कच्छे पर हाथ मारते हुये कहा... वो कच्छे और बनियान में ही था.... !
साली ये लुगाई होती ही ऐसी हैं..., जो जितनी शरीफ
नजर आती है उतनी ही चुदक्कड़ होती है साली... वैसे
तेरी वाली कैसी है.. ?"
बेडरूम के दूसरी और अपने बेडरूम में जाकर बैठ
गयी शिवानी को एक-एक शब्द सुनना असहनीय
हो रहा था.. और जब बात हद से गुजर गयी तो वह
दहाड़ती हुयी उनके बेडरूम के दरवाजे पर गयी, "वॉट इस
दिस नोन्सेन्स.. ! यू हैव ड्रंक, डसैन्ट लेट यू टू इनट्रयूड
इनटू अदर्स लाइफ, जस्ट स्टाप दैट.. !" उसने दरवाजा 'भड़ाक' से बंद किया और वापस चली गयी..
क्या बोल के गयी है ये रंडी...? साली को औकात
दिखा दूँगा.. !
ओमप्रकाश थोड़ा ढीला पड़ गया... जाने दे.. उसको अपने
धंधे का पता नहीं है... तू ठंड रख... !
अबे उसकी माँ की चूत में रखकर ठंडा करुँ क्या अब, समझती क्या है... आज तक शिव भाई को किसी ने
आँख उठा कर भी नहीं देखा.., वो मेरे सामने अंग्रेजी बोल
कर चली गई....
अब यार तू चुप कर ना.. ! बेकार में... पता नहीं है उसको तेरे
बारे में... ! ओमप्रकाश ने उसका ध्यान बटाने की कोशिश
करी, "ले तू पैग लगा ले.. !" अबे पैग लगाने को बोलता है... ! उसको बता के आ तू के
अंग्रेजी बोलने वालियों को भाई अपने यहाँ रखता है..
नौकरानी.. साली.. ! उसका इशारा फिर से अपने लंड
की और था...'यहाँ रखता हूँ' में... !
शिवानी ने सुनील के पास फोन ट्राय किया पर
वो नहीं मिला.. शिव की बातें सुनकर उसको उल्टियाँ आ रही थी और कोई चारा ना देख उसने
लिविंग रूम में जाकर टीवी ऑन करके उसका वोल्यूम
फुल कर दिया उस पर कोई मूवी आ रही थी..
शिव का ध्यान मूवी की और गया.. यार.. ! चल मूवी देखते
हैं.. "वह उठा और चल दिया.. उसको लिविंग रूम में
आया देख शिवानी रिमोट फैंक कर अपने बेडरूम में जा घुसी.. दरवाजा बंद कर लिया.. ओमप्रकाश भी बाहर
आ गया.. दारू की दूसरी बोतल उठाकर.........
कुछ देर में ही दोनों शिवानी का टॉपिक भूल कर
अपनी बातों में और फिल्म में डूब गाये..
शिवानी भी उनकी बातों का टॉपिक बदलने पर कुछ
निश्चिंत सी हो गयी.. उसने बाथरूम में घुस कर अपने कपड़े उतारे और नहाकर अपनी लम्बे सफर की थकान दूर
करने लगी...
फिल्म में गुंडे किसी आदमी को पकड़ कर अपने
आका के पास ले गये.. सरदार ने उस आदमी से कहा, "तो तू
वो प्रोपर्टी हमारे नाम नहीं करेगा... हाँ.. !"
वो आदमी हीरो का दोस्त था.. जैसा अक्सर हिंदी मूवीस में होता है.., "नहीं.. ! मैं मर जाऊँगा, पर
अपने पुरखों की जमीन किसी भी कीमत पर तुम्हे
नहीं दूँगा... !"
"अच्छा.. !" सरदार ने अपनी बन्दूक निकाली और उसके
सीने में गोलियाँ दाग दी.. !
शिव बहुत खुश हुआ, "साला.. ! ये तरीका मेरे को बहुत पसंद है.. दूसरी बार पूछने का ही नहीं.. मस्त है.. भाई.. और
वो तेरी नजभगढ़ वाली प्रोपर्टी का क्या चल रहा है.. ?
हाँ... सौदा हो गया...?"
"हो जायेगा, बात चल रही है..." ओमप्रकाश ने
उसको ठंडा होने की सलाह दी...
तेरी माँ की.. साला तेरी गांड में यही प्रॉब्लम है.. देख हम
दोनों ने साथ ही काम शुरू किया था... तू कहाँ रह गया..
और मैं कहाँ पहुँच गया... ! पर तेरे भेजे में बात कौन डाले... !
बातों को ही छोड़ने में लगा रहता है...
शिवानी नहा कर बाहर आई.. उसने एक
रेशमी नाईटी पहन ली थी अब उसको जोरों की भूख लगी हुयी थी पर किचेन का रास्ता लिविंग रूम से
होकर जाता था, उसने दरवाजे के पास आँख लगाकर देखा...
वो दोनों हँस रहे थे मूवी को देखकर.. शिवानी ने सोचा..
अब इनका नशा हल्का हो गया है.. उसने
दरवाजा खोला और किचेन में जा घुसी..
शिव का ध्यान उस पर गया.., "क्या मस्त आइटम है यार.. ! भाभी जी आप की नाईटी बहुत अच्छी है.." कह कर
वो जोर से हँसने लगा...
शिवानी ने उस की बात पर कान नहीं दिए.. वो किचेन
में घुस कर कुछ पकाने की तैयारी करने लगी..
सच में ही, वो बला की खूबसूरत तो थी ही.. उस रेशम
की मुलायम नाईटी में उसका हर उभार उभर कर सामने आ गया था..
रही सही कसर मूवी के इस सीन ने पूरी कर दी.., सरदार
हीरो की बहन का रेप कर रहा था वो चिल्ला रही थी..
पर सरदार का हौसला उसके चिल्लाने के साथ
ही बढ़ता जा रहा था... हीरो की बहन.. किसी कबूतर
की तरह फडफडा रही थी..... शिव की आँखें इस सीन के अन्दर तक
घुसती चली गयी... जाने क्या सोचकर उसकी आँखें चमक
उठी, "ओम..! तुने कभी रेप किया है...?" उसने धीरे से
कहा...
"क्या बकवास कर रहा है यार... दिखता नहीं घर में
अकेली औरत है...?" "तभी तो पूछ रहा हूँ.. ! करना है क्या.... ?"
ओम ने अचरज से शिव के चेहरे को देखा, उसके दिमाग
की खुरापात उसकी शराब के नशे में डूबी लाल आँखों में
साफ दिखाई दे रही थी..., "चल अन्दर चलते हैं... बंद कर
दे टीवी !"
शिव किसी खूँखार भेड़िये की तरह मुस्कुरा रहा था... शिकार करना वो जनता था... शिकार उसके सामने था..
किचेन में... उसने धीरे से ओम के कान में कहा, "सिर्फ
ट्राय करते हैं... मान गयी तो ठीक है...
वरना अपना क्या बिगाड़ लेगी...."
नशे में नहीं होता तो ओम कभी भी उसको इस बात
की इजाजत नहीं देता... पर जाने क्या बात होती है शराब में... आदमी २ घंटे बाद क्या होगा, ये भी भूल जाता है.., "तू
मरवायेगा यार.. !" कह कर वो फिल्म देखने लगा..
हीरो की बहन ने कुँए में कूद कर जान दे दी.....
शिव सोफे से उठकर किचेन की और गया और दरवाजे
पर खड़ा हो गया... अपने साथ होने जा रही वारदात से
अनजान शिवानी कुछ गुनगुनाती हुयी सी रोटियाँ सेक
रही थी... पसीने के कारण उसकी नाईटी पूरी तरह भीग
गयी थी.. उसके चूतडों का गदरायापन उसकी नाईटी के
नीचे पहनी हुयी उसकी पैंटी के किनारों के अहसास के साथ साफ झलक रहा था... टीवी का वोल्यूम
उतना ही था... जितना शिवानी ने कर दिया था... फुल..!
शिव उस पर किसी बाज की तरह से झपटा..
शिवानी कसमसा कर रह गयी.. शिव का एक हाथ उसके
मुँह पर था और दूसरा उसके पेट पर.. शिवानी के गले से
आवाज निकलने ही ना पाई.. शिव ने उसको उठाया और उसी के बेडरूम में ले गया.. दरवाजे की कुण्डी लगाई और
शिवानी को बेड पर लेजाकर पटक दिया.....
उसके हाव-भाव देखकर शिवानी की ये कहने
की भी हिम्मत नहीं हुयी की आखिर कर क्या रहे है..
वह सब समझ गयी थी.. शिव नीचे खड़ा मुस्कुरा रहा था...
अचानक ही दरवाजे पर दस्तक हुयी.. शिवानी उठकर दरवाजे की और भागी.. पर वहाँ तक पहुँच ना पायी.. शिव
के हाथों में जकड़ी जोर से चिल्लाई, "बचाओ..... !"
पर बचाने वाला कोई ना था.. हाँ शिव को समझाने
वाला तो था... ओम.. ! पर वो भी एक बार
दरवाजा थपथपा कर वापस चला गया.. जब
दरवाजा नहीं खुला.. ! शिव शिवानी के ऊपर गिर पड़ा.. उसको नोचने लगा..
वो चिल्लाती रही.. शिव ने उसकी नाईटी गले से
पकड़ी और खींच दी.. नाईटी चिरती चली गयी..
शिवानी की चूचियाँ अब नंगी थी.. उसने अपने आप
को समेटने की कोशिश करी.. शिव ने उसके दोनों हाथ
पकड़े और पीछे करके एक हाथ से दबा लिए... शिवानी चिल्ला रही थी.. अपने पैर चला रही थी.. खुद
को बचाने के लिए.. शिव उठकर उसकी जाँघों पर बैठ
गया..
ठीक उसकी योनी पर.. हाथ शिव के काबू में होने
की वजह से शिवानी असहाय हो गयी.. भला २२-२३ साल
की ३५ साल के आदमी के आगे क्या बस चलाती.. उसने शिव की कलाई को जोर से अपने दाँतों के बीच ले
लिया.. और लगभग उसकी खाल को काटकर अलग
ही कर दिया..
शिव के क्रोध का ठिकाना ना रहा.. उसने झुक कर
शिवानी के गाल को काट खाया.. उसी जालिम तरीके
से.. शिवानी का दिल और दिमाग काँप उठे.. इस दर्द
को महसूस करके.. उसने अपने दाँत हटा लिए.. समर्पण
कर दिया..
पर इस समर्पण से शिव संतुष्ट नहीं था.. उसने थोड़ा पीछे होकर शिवानी की जाँघों के बीच हाथ दे
दिया..
शिवानी ने एक आखरी कोशिश और की..
अपनी अस्मत बचाने की.. उसने जोर लगाकर
निश्चिंत से हो चुके शिव को पीछे धक्का दे दिया..
शिव बेड से पीछे जा गिरा... शिवानी उठने को भागी... पर उठते हुए उसकी नाईटी में
उसका घुटना आ फँसा और वो मुँह के बल आ गिरी... चोट
सीधी शिव द्वारा काटे गये उसके गाल पर लगी...
शिवानी दर्द से तिल-मिला उठी...
शिव को उठने में कम से कम १ मिनट लगा.. पर तब तक
शिवानी ना उठ पाई... अब शिव खूँखार हो चूका था उसने लगभग हार
चुकी शिवानी को आधा बेड पर गिरा दिया..
शिवानी के घुटने जमीन से लगे थे.. उसके दोनों हाथ पीछे
शिव के हाथों में थे और पैरों को शिव ने अपने घुटने से
दबा दिया.. बेड के कोने पर शिवानी का वो भाग
था जिसको शिव भोगना चाहता था.... शिव ने उसकी नाईटी ऊपर खींच दी.. और पैंटी नीचे....
शिवानी असहाय सी हीरो की बहन की तरह सिसक
रही थी.. तड़प रही थी... उसकी आँखों के आगे
अंधेरा छाया हुआ था....
शिव रूपी भेड़िये के उपर तो शराब के नशे में
वासना का भुत जो सवार था... शिवानी की योनी के कटाव को देखकर शिव एक हाथ
से अपने को तैयार करने लगा...
और तैयार होते ही उसने अपनी हसरत पूरी कर दी..
शिवानी शारीरक और मानसिक दर्द से
तिलमिला उठी.... उसकी चीत्कार सुनकर ओम फिर
दरवाजे पर आया, "शिव भाई... जबरदस्ती नहीं... तुमने बोला था....
शिव को गुस्सा आ गया अपने कुत्सित आनंद में विघ्न
पड़ते देखकर... और ये सब शिवानी की चीखों की वजह
से हो रहा था....
शिव ने अपना मोटा हाथ शिवानी के मुँह पर रख
दिया... शिवानी का सब कुछ घुट गया.... शिव धक्के लगाकर अपनी वासना की पूर्ती करने लगा...
धीरे-धीरे शिवानी का विरोध कम होता-
होता बिलकुल ही बंद हो गया... अब
वो चिल्ला नहीं रही थी...
शिव जब अपनी कुत्सित वासना शांत करके उठा...
तो शिवानी ना उठी... वह नीचे गिर पड़ी... धड़ाम से...
शिव ने उसकी छाती पर हाथ रखा.. वो खामोश
हो चुकी थी... शिव के हाथ के नीचे उसकी साँसों ने दम
तोड़ दिया...
शिव अपना सर खुजाता हुआ बहार आया... उसकी समझ
में नहीं आ रहा था की क्या करे... उसकी नजर टीवी पर
गयी... हीरो... उस सरदार को उसके कर्मों का फल दे रहा था...
शिव डर गया... उसने ओम को सब कुछ बताया... ओम के
हाथ पैर फूल गये....
करीब १ घंटे बाद उनकी कार गेट से निकली और गायब
हो गयी.... शिवानी की लाश लिए
अगले दिन सब रोहतांग दर्रे पर घूम कर आये.. टूर का तीसरा और आखिरी दिन था.. सबने खूब
मजा लिया.. रास्ते भर तीनो मौज मस्ती करते गये
लड़कियों के साथ... चोरी छिपे जमकर छेड़ छाड़ हुयी....
रात को राकेश ने दिव्या को फिर से अपने कमरे में ले
जाकर प्यार किया और टफ ने सरिता को बुलाकर
उसकी माँ के सामने ही चोदा... और माँ को फिर सरिता के सामने... सुनील और अंजलि ने भी अलग
कमरे में फिर से जी भर कर अपनी भूखी वासना को शांत
किया.....
अगले दिनभर जिसका जो दिल चाहा किया, घुमे
फिरे, थकान उतारी और शाम को घर
वापसी की तैयारी की... करीब ७:०० बजे वो घर के लिए निकल पड़े.... ये
वही रात थी जिस दिन शिवानी के साथ
वो हादसा हुआ था..
पर सुनील इस बात से बेखबर था.....
हर एक के चेहरे पर टूर से कुछ ना कुछ मिलने
की ख़ुशी थी...
बस में आते हुए सुनील का ध्यान बड़ी शालीनता के साथ
बैठी हुयी नीरू पर था.. सुनील का ध्यान बार-बार
उसकी तरफ जा रहा था.. क्या ऐसा कभी इसके साथ
भी हो सकता है... ?
नीरू अपनी साफ सुथरी इमेज के लिये पूरे गाँव में
प्रसिद्ध थी, कोई लड़का उसकी तिरछी नजरों से भी कभी देखता नहीं पाया गया था.. फिर
उसकी मुस्कराहट किसी पर मेहरबान हुयी हो... ये
तो कभी किसी ने उसके १६ पार के बाद
देखा ही नहीं था.. दिशा की तरह अपनी नाक पर
मक्खी तक को ना बैठने देने वाली...
स्कूल की सभी लड़कियाँ उसको अपना निर्विवाद नेता मानती थी.. जब भी कभी किसी बात पर दो राय
हो जाती.. नीरू से ही पूछा जाता..
नीरू थी भी इस सम्मान के लायक.. एक गरीब घर में
पैदा होने के बावजूद.. उसने अपनी पहचान बनायीं थी..
अपनी समझदारी, बेबाकी और बेदाग चरित्र से...
हालाँकि वह इतनी हष्ट पुष्ट नहीं थी पर उसकी इमेज उसको उससे कहीं ज्यादा सुन्दर लड़कियों से
भी सेक्सी बनाती थी... गरमा-गरम... पर फिर
भी बिना पका हुआ... बिना 'फुक्क्का' हुआ...
सुनील को अपनी और देखता पाकर नीरू उसकी सीट के
पास गयी, "सर.. ! कुछ कह रहे थे क्या.. ?"
सुनील हडबडा गया, "आअ.. नहीं कुछ नहीं.. !" ऐसी लड़की से डर होना लाजमी था.. किसी की आज
तक उसको प्रपोस करने की हिम्मत ना हुयी थी..
नीरू वापस अपनी सीट पर बैठ गयी... सुबह के ३:०० बजे
वो भिवानी जा पहुँचे...
उधर शिवानी की लाश को भिवानी झाँसी रोड पर
लेकर चल रहे शिव और ओम का नशा काफूर हो चूका था...
अब उनकी समझ में नहीं आ रहा था की क्या करें..
ओम ने कार चला रहे शिव को देखकर कहा, यार तुने
तो अपने साथ मुझे भी फंसवा दिया... कम से कम ये
जिन्दा होती तो बलात्कार का ही इल्जाम लगता, वो भी तुझपर... मर्डर में तो मैं भी साथ ही आ जाऊँगा.. !
यार तुझे जान लेने की क्या जरुरत थी...
अबे.. ! मैं कोई गधा हूँ क्या.. जो जान बूझ कर जान लूँगा.. !
वो चिल्ला रही थी.. मैंने उसका मुँह दबा लिया... नशे में
ये होश ही नहीं रहा की उसकी साँस भी बंद
हो सकती है... तो फिर इसका करना क्या है अब.. ?
शिव चलता रहा..., "इसको बहुत दूर जाकर फैंकना पड़ेगा..
ताकि कोई इसको आसानी से पहचान ना सके... !"
ओम: मेरे पास एक आईडिया है... ये साँस बंद होने से
मरी है... अगर हम इसको नदी में फैंक दे तो.. ?
शिव को आईडिया बेहद पसंद आया.., उसने गाड़ी वापस घुमाई और करीब ५ की.मी. पीछे रह चुकी नहर की और
चलने लगा....
नहर के पुल पर जाकर शिव ने गाड़ी पटरी पर दौड़ा दी...
रात का समय था... बन्दे की जात भी नजर नहीं आ
रही थी... थोड़ी दूर जाकर शिव ने गाड़ी नहर के साथ
लगा दी... ओम.. ! इसको पानी में फैंक दो... ! "शिव ने ओम से कहा.."
ओम पागल नहीं था.., बहुत अच्छे... करम करो तुम.. ! भुगतें
हम.. ! ये काम में नहीं करूँगा... खुद उतारो.. और
जो करना है करो...
शिव: तो तुम नीचे नहीं उतारोगे... ! तुम भी बराबर के
दोषी हो मत भूलो.. ! मैं तुम्हारे ही पास था... तुमने ही मुझे शराब पिलाई.. और ना ही तमने मुझे कुछ करने से रोका...
और तो और तुमने ही इसके हाथ पैर पकड़े और इससे
बलात्कार भी किया.. !
"क्या बक रहे हो.. ?" ओम ने उसको हैरानी से देखा... ,
"ऐसा कब हुआ था.. ?"
पर अगर कुछ गड़बड़ हुयी तो पुलिस को मैं
यही बताऊँगा... ! "शिव ने धूर्तता से कहा..."
ओम मुँह बनाकर उतर गया... खिड़की खोलकर उसने
शिवानी को बाहर की और खिंचा.., वो आश्चर्य और खुशी से उछल पड़ा.., "ओह.. ! तेरे की, ये तो जिन्दा है... !"
क्य्याअअअअअअआ..? शिव को भरोसा ना हुआ... वह
तेजी से पीछे पलटा..., "क्या बकवास कर रहे हो... ?"
हाँ भई... देख हाथ लगाकर देख... !
शिव ने उसकी कलाई पकड़ी.. नब्ज चल रही थी... पर
शिवानी में कोई गति नहीं थी... वह शायद बेहोशी या सदमें में थी..., अब क्या करें... मर गए... ! अब
तो इसको मारना ही पड़ेगा.. ! चल इसको पानी में फैंक दे...
अपने आप मर जायेगी... !
ओम की मुश्किल से जान में जान आई थी... एक
वही तो गवाह थी.. जो उसको बचा सकती थी..., तू पागल
है क्या... अपने बचने की टिकट सिर्फ इसी के पास है... अगर मर गयी तो दोनों में से एक के फँसते
ही दोनों फँसेंगे... मेरे पास एक आईडिया है...! "
"क्या.. ?" शिव की समझ में कुछ नहीं आ रहा था..
उसको सच में ही आइडिये की जरूरत थी...
ओम: इसको अपने फार्म हाउस पर कैद करके रखो.... !
अगर कुछ समस्या आई.. तो हम इसको जिन्दा तो बरामद करा सकते हैं... अगर कोई
समस्या ना आई तो तुम बेशक इसको मार देना.... ! "ओम ने
उसको समझाया..."
कम से कम फाँसी से बचने के लिए शिव को ये उपाय
पसंद आया... वे दोनों गाड़ी में बैठे और वापस
हन्सी की और चल दिए... वाया रोहतक.. बहादुरगढ़... अपने फार्म हाउस पर जाने के लिए... !
"यार.. ! तू मुझे वापस छोड़ दे.. ? घर जाकर मैं
वहाँ की हालत ठीक कर दूँगा... !" ओम अपने आपको अब
इस वारदात से दूर कर लेना चाहता था...
शिव ने कुछ देर सोचा... उसको लगा ये ठीक ही कह
रहा है... अगर किसी पर शक होगा तो सबसे पहले ओम पर ही होगा... घर की ऐसी हालत देखकर.. ! और ओम
फँसा तो समझो शिव तो फँस ही गया... उसने फिर से
गाड़ी घुमा दी और तेजी से भिवानी की और चलने लगा...
करीब १ बजे शिव ने ओम को गाँव के बाहर उतार दिया..
और वापस घूम गया... उसने शिवानी का हाथ पकड़ा..
उसने कोई हलचल नहीं दिखाई.... उसने गाड़ी की स्पीड
बढा दी...
ओम ने घर पहुँच कर सबसे पहले दारु की बोतल वहाँ से
हटाई फिर किचेन को साफ किया गैस अभी तक चालू थी रोटी 'राख' बन चुकी थी गैस बंद करके ओम पहले
बेडरूम में गया और बिस्तर की सिलवटें ठीक की, एक
जगह फर्श पर खून लगा हुआ था... ओम की समझ में
नहीं आया की वो खून आखिर है किसका.. पर उसने
उसको भी साफ किया...
किचेन की सफाई करने के बाद उसने हर जगह घूम कर देखा.... सब कुछ ठीक ठाक था... वह निश्चिंत होकर बेड
पर लेट गया... पर नींद उसकी आँखों में नहीं थी... वह
यूँही करवट बदलता रहा...
बाथरूम में हैंगर पर शिवानी क्या सूट टंगा हुआ था...
सुनील क्या मनपसंद सूट... जो शिवानी अपने मायके
जाते हुए पहन कर गयी थी... और वही पहन कर भी आई थी.. अपने सुनील के लिए.. !!
यहाँ ओम गलती कर गया
करीब ३:३० पर बस स्कूल के पास आकर रुकी...
सभी सो रहे थे...
ड्राईवर ने हार्न देकर सबको जगाया... नींद में अँगडाई लेटे
हुये सभी स्कूल की लड़कियाँ नीचे उतर कर अपने
कपड़ों को ठीक करने लगी....
टफ, सुनील, अंजलि और प्यारी सबसे आखिर में उतारे... प्यारी ने टफ की और मुस्कुराकर देखा... उसको टूर पर ले
जानने के लिए और टूर पर मजा देने के लिए..
टफ मुस्कुरा दिया, "अच्छा आंटी जी, फिर
कभी मिलते हैं...."
अंजलि ने टफ की बात सुनकर मुस्कुराते हुये सुनील से
कहा, "ये भी हमारे साथ ही चल रहे होंगे..." "नहीं नहीं.. मैं तो प्यारी आंटी के साथ ही जाऊँगा..." टफ
ने हँसते हुये कहा और सुनील के साथ ही चलने लगा...
गौरी ने नमिता को भी अपने साथ ले लिया... सभी घर
पहुँच गये...
अंजलि ने बेल बजायी... जागते हुये भी ओम ने थोड़ी देर
से दरवाजा खोला.... ताकि उनको लगे की वो सो रहा था...
अंजलि ने अन्दर आते ही टफ का इंट्रोडक्शन करवाया,
"ये हैं सब इंस्पैक्टर इन क्राइम ब्रांच, भिवानी.. ! सुनील
के दोस्त... !"
सुनते ही ओम के माथे पर पसीना छलक आया... और दो बूंदे
उसके लंड से भी चू पड़ी पेशाब की... उसने अपना डर उससे नजर हटा कर हटाया... वह कुछ ना बोला...
टफ की नजर टेबल के पाये के साथ पड़े सिगरेट के टुकड़े
पर पड़ी..., "यार ये नेवी कट कौन पीता है... इसका तम्बाकू
तो बहुत तेज़ है.. !"
अंजलि ने जवाब दिया, "यहाँ तो कोई सिगरेट
पीता ही नहीं.. ! "या फिर छुप-छुप के ये पीते हो.. !" अंजलि ने ओम की और मुखातिब होते हुये कहा....
"इस साले इंस्पैक्टर को भी अभी मरना था.. !" ओम ने मन
ही मन सोचा और कुछ बोला नहीं.. जाकर बिस्टर पर ढेर
हो गया... !"
आधे बेड पर लेटे सुनील को आज शिवानी कुछ
ज्यादा ही याद आ रही थी.... बस में नीरू के सोम्य योवन ने उसको बहुत ज्यादा उत्तेजित कर दिया था.
उसकी पतिवर्ता पत्नी अगर आज उसके पास
होती तो वो उसको जी भर कर प्यार करता... उसने
घड़ी में समय देखा.. लगभग ४:३० बज चुके थे उसने सुबह
उठते ही शिवानी को फोन करके उसी दिन बुलाने
का निश्चय किया और उस तकिये को, जिसको अक्सर वो प्यार करते हुये शिवानी को नीचे
से ऊपर उठाने के काम आता था, अपनी छाती से
लगाया और सो गया..
अंजलि ने ओम की और देखा, वैसे तो वह सेक्स के
प्रति इतना उत्सुक कभी नहीं रहता था... पर आज
तो उसने उससे बात तक नहीं की... पहले के दिनों में ओम
कम से कम उसकी छाती पर हाथ रखकर तो सोता था...
पर आज तो उसने पीठ ही अंजलि की और कर
रखी थी देखने के लिये.. अंजलि ने भी दूसरी और करवट बदल ली और सो गयी.......
नमिता गौरी को लेटे-लेटे ध्यान से देख रही थी...
गौरी किसी भी तरह से नमिता से कम नहीं थी...
उसका भाई गौरी से प्यार करता था और नमिता अपने भाई
को खोना नहीं चाहती थी... किसी भी कीमत पर... वह
मन ही मन में भुन सी गयी... उसने उलटी लेट कर सोयी हुयी गौरी के मस्त पुट्ठों को देखा...
यहाँ नमिता गौरी से थोड़ा सा पिछड़ रही थी.. नमिता ने
अपनी जाँघों को सहला कर देखा... 'क्या मेरा भाई मुझे
छोड़ देगा.. ?' उसने मन ही मन गौरी को संजय के दिल से
निकालने का निश्चय किया और संजय को गौरी के
दिल में ना बसने देने का...
शिव की गाड़ी करीब ६:३० बजे फार्म हाउस पहुँची...
गेटकीपर ने दरवाजा खोला और शिव
गाड़ी को सीधा गैराज ले गया... वहाँ उसकी पालतू..
लड़कियाँ आधे अधूरे कपड़ों में लिपटी उसका इंतज़ार
कर रही थी...
शिवानी होश में आ चुकी थी.. पर सदमें की वजह से कुछ बोल नहीं पा रही थी... बोलने का फायदा ही क्या होता...
"इसको अंडर-ग्राउंड बेडरूम में ले आओ... !" शिव ने
कहा और आगे बढ़ गया.........
फार्म हाउस पर करीब २३ और २६ साल की छरहरे बदन
वाली २ लड़कियों या यूँ कहें २ औरतों ने
शिवानी को गाड़ी से उतारा और उसको दोनों तरफ से पकड़ कर ले जाने लगी... लम्बी बेहोशी और सदमें से
ग्रस्त शिवानी में विरोध करने की हिम्मत ना के
बराबर ही बची थी.. वह उनके साथ-साथ लगभग
सरकती हुयी सी चल पड़ी... उसकी आँखों में रात
को उसके साथ हुये हादसे का भय साफ झलक रहा था...
दोनों लड़कियाँ उसको ३ कमरों और एक लम्बी गैलरी से गुजार कर नीचे सीढियाँ उतारते हुये एक
आलिशान बेडरूम में ले गयी... वहाँ पहले से ही शिव
खड़ा था और बेडरूम के बीचों बीच एक गोलाकार बेड पर
एक करीब १९ साल की लड़की बिना कपड़ों के अपने
ऊपर एक पतली सी चादर डाले लेटी थी... शिव के
इशारा करते ही वो बिस्तर से उठी और चादर से अपने आपको ढकने का दिखावा करती हुयी दुसरे दरवाजे से
बाहर निकल गयी...
शिव के कहने पर उन लड़कियों ने शिवानी को बेड पर
बिठा दिया, शिव ने लड़कियों की तरफ घुमते हुये
कहा, "अनार का जूस.. ! और लड़कियाँ अदब से "यस
सर..!" कहकर वापस चली गयी... शिवानी उस राक्षस की और फटी आँखों से देख
रही थी.. जिस खूँखार जानवर ने उसके ही घर में
उसकी इज्जत को तार-तार कर दिया, उससे कुछ कहने
या पूछने की हिम्मत शिवानी की ना हुयी... शिव
उसके सामने दिवार के साथ डाले सोफे पर बैठ गया और
उसको घूरने लगा... तभी लड़कियाँ एक शीशे का जग और २ ग्लास ले आयी...
शिव का इशारा पाकर उन्होंने जग और ग्लास टेबल पर
रखे और वापस चली गयी...
शिव ने एक ग्लास में जूस डाला और खड़ा होकर
शिवानी के पास गया, "लो.. !"
उसके हावभाव आवभगत करने वाले नहीं बल्कि आदेशात्मक थे.. शिवानी का हाथ उठ
ही ना पाया... "एक बात ध्यान से सुन लो.. !" मुझे कुछ
भी दुबारा कहने की आदत नहीं है... यहाँ मेरा हुक़म
चलता है, सिर्फ मेरा... ! मैं ५ मिनट में आ रहा हूँ... अगर
ये ग्लास खाली नहीं मिला तो नंगा करके अपने
आदमियों को सौंप दूंगा... फिर मुझे मत कहना... उसने ग्लास वापस टेबल पर रखा और बाहर निकल गया...
शिवानी उसकी बात सुनकर काँप उठी... रात
का हादसा और यहाँ का माहौल देखकर
शिवानी को उसकी एक-एक बात पर यकीन हो गया..
वह तुंरत उठी और एक ही साँस में सारा जूस पी गयी...
शिवानी ने अपने चारों और नजर घुमा कर कमरे
का जायजा लिया.. करीब १८'-२४' का वो आलिशान बेडरूम शिव के अयियाश चरित्र
का जीता जागता सबूत था.. चारों और की दीवारें अष्लील
चित्रों से सजी हुयी थी... सामने दीवार पर
प्लास्मा टीवी टंगा हुआ था.. कमरे के चारों कोनो में कैमरे
लगे हुये थे जिनका फोकस बेड पर ही था... अचानक
ही उसका ध्यान अपनी अस्त व्यस्त नाईटी पर गया.. ब्रा के हुक पीछे से खुले हुये थे.. और बस जैसे तैसे
अटकी हुयी थी... उसने नाईटी में हाथ डालकर
अपनी पैंटी को दुरुस्त किया और ब्रा के हुक बांधकर वह
धम्म से बेड पर गिर पड़ी... उसकी आँखों से आँसू बहने
लगे........
करीब ६-७ मिनट के बाद शिव उसी लड़की के साथ बेडरूम में दाखिल हुआ.. जो शिवानी को बेडरूम में आते
ही बेड पर लेटी मिली थी.. वह अभी भी उस
पतली सी चादर में थी उसका यौवन छलक-छलक कर
बाहर से ही दिखाई दे
रहा था शिवानी को वो गौरी की उम्र की लगी पर जैसे
ही उस लड़की ने शिवानी की तरफ देखा शिवानी ने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया.. शिव ने आते
ही खाली हो चुके गिलास को देखा, "वैरी गुड.. !"
लगता है तुम्हारी समझ में आ गया है.. प्राची... !
इसका खास ध्यान रखना.. जब भी तुम्हे लगे
की इसको किसी चीज की जरुरत है इसको दे देना...
अगर मन करे तो मुझे फोन कर देना समझी.. ! प्राची शिवानी को देख कर मुस्कुरायी..., "ओके सर.. !
मैं इसका खास ध्यान रखूंगी... !" उसकी मुस्कान में एक
अलग ही तरह की धमकी थी..... !
शिव ने उसके शरीर से लिपटी वो चादर खींच ली,
प्राची के चेहरे पर शिकन तक ना पड़ी... वो घूम
गयी और चादर को अपने शरीर से अलग होने दिया... बिलकुल नंगी प्राची के चूतड़ अब शिव की आँखों के
सामने थे.. शिवानी ने ग्लानी से अपनी आँखें बंद कर
ली... सोफे पर ही प्राची को झुका कर शिव उस पर
सवार हो गया... पागल कुत्ते की तरह...
दोनों की वासना से भरी आवाजें शिवानी के कानो में
शीशे की तरह उतरने लगी.......
उधर.. सुबह उठने से पहले अचानक सुनील ने पालती मारी,
पर जल्दी ही उसको गलती का अहसास हो गया... सुबह-
सुबह शिवानी से पहले उठकर नींद में ही पालती मार कर
शिवानी के ऊपर चढ़ जाना, और उसको तब तक तंग
करना जब तक की वह जाग कर, उसके गले में बाँहें डाल कर
उसको 'आइ लव यू' ना बोल दे... उसके बाद शिवानी पलट कर उसके ऊपर आ जाती और उठ जाती...
फ्रेश होकर वह सुनील को उठा देती और चाय बनाने
चली जाती... ये उनकी दिनचर्या का एक
जरुरी हिस्सा बन चुकी थी...
पर आज पालती मारते ही जब एक मरदाना शरीर से
टकराया तो उसको याद आया की शिवानी तो आयी ही नहीं है... वह बाथरूम में
घुस गया...
फ्रेश होने के बाद वह किचेन में जाने के लिये जैसे
ही लिविंग रूम में आया उसकी नजर नींद में अपनी-
अपनी मस्तियों का दीदार करा रही गौरी और
नमिता पर पड़ी.. दोनों का सर सुनील की तरफ था... गौरी उलटी लेटी पड़ी थी.. उसके हर्मन प्यारे जबरदस्त
कसाव लिये हुये नितम्ब अपनी गोलाई और उनके बीच
की गहराई का सबूत उसके लोअर के अन्दर से ही दे रहे
थे...
दोनों निश्चिंत हुयी सोयी पड़ी थी...
नमिता गौरी की अपेक्षा सीधी लेटी हुयी थी.. उसके चौड़े गोल गले वाले कमीज में ब्रा के अन्दर से टपक
रहा उसकी चूचियों का सौंदर्य सुनील को कुछ शरारत
करने के लिये उकसाने लगा...
नमिता दिवार वाली साइड में थी, जबकि गौरी बेड के
दुसरे किनारे पर थी.. सुनील उसके चूतडों के पास
गया और हौले से उनपर हाथ रख दिया... कोई हलचल नहीं हुयी.. उसके चूतड़ उसकी छातियों की वजह से
ऊपर उठी उसकी कमर से भी ऊँचे थे... सुनील को उन्हें
छुने से ऐसा अहसास हुआ मानो किसी ठोस फुटबॉल के
ऊपर रेशम का लबादा लपेटा गया हो..
सुनील ने अपने हाथों का दबाव हल्का सा बढा दिया..
गौरी एक दम से उचक कर बैठ गयी... अपनी आँखें मलते हुये बोली, "उन्नन..." क्या है सर... ? अभी तो आये हैं... !
"चाय बना दोगी मेरे लिये.. !" सुनील ने
बड़ी प्यारी आवाज में कहा..
"गौरी ने नींद में होने की वजह से थोड़ा सा मुँह
बनाया और उठकर किचेन में घुस गयी... सुनील हँसकर
सोफे पर बैठ गया...
तभी उनकी आवाज सुनकर अंजलि बाहर निकल
आयी... सुनील को देखकर मुस्कुराई और पूछा..
इतनी जल्दी कैसे उठ गये...?
"मैं तो रोज ही जल्दी उठता हूँ मैडम, आप सुनाईये... !"
सुनील ने सोफे पर बैठ चुकी अंजलि का हाथ दबाते हुये
पुछा... अरे मैं अभी कहाँ उठने वाली थी... वो तो उन्होंने
उठा दिया... उनको जल्दी जाना था सो ६:०० बजे
ही उठा दिया.....
सुनील ने उसकी और आँख मारते हुये कहा, "मि.
ओमप्रकाश जी गये क्या.. ?"
"हाँ.. ! कह रहे थे कुछ जरुरी काम है... २-३ दिन लग जायेंगे आने में" वह खुश लग रही थी......
सुनील ने सोचा.. चलो एक आध दिन और ऐश कर लेते
हैं... पीछे का मजा ले लेते हैं... बेगम को बाद में ही बुलाएँगे...
और उसकी सुबह उठकर शिवानी को फोन करने
की योजना बदल गयी......
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