मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी भाग-14
आगे चल कर घने जंगल की साइड में एक पुरानी हवेली थी... लोग मानते थे की यहाँ भूत रहते हैं इसीलिए उस तरफ कोई फटकता भी ना था... शमशेर ने गाड़ी हवेली के अन्दर ही घुसा दी.....
शमशेर ने अजीत के पास फोन किया," कहाँ हो टफ!"
"तेरे दिल में हूँ भई, बोल क्या काम है??"
"गर्मी निकालनी है क्या?"
"कहाँ आना है?"
"गाँव के पास ही, जहाँ पिछले महीने आया था तू; हवेली में!"
"भाई तू नौकरी से निकलवायेगा... २० मिनट में पहुँचता हूँ; गरम कर ले खाना!"
दुसरे के आने की बात सुनकर नेहा काँप गयी... उसको डर सा लगने लगा... वैसे भी ये जगाह...?
लेकिन कविता को किसी बात का डर नहीं था... वो खेली खायी लगती थी... वो भी अब जल्दबाजी में थी... शुरुआत करने के लिये !
"कपड़े निकाल दो!" शमशेर ने उनसे कहा...
नेहा हिचक रही थी... पर जब उसने कविता को फटाफट आदेश का पालन करते देखा तो उसकी भी हिम्मत बढ़ी... और फिर दोनों नंगी हो गयी....
"आप भी तो निकालिये सर!", कविता ने सेक्सी आवाज में कहा!
शमशेर ने दोनों को गौर से देखा... दोनों में कोई भी बुरी नहीं लग रही थी... कविता की तो बस गांड और भरी-भरी गदरायी हुयी चूचियाँ बहकाने के लिये काफी थी... और उसमें कुछ खास था भी नहीं... नेहा को तो वो पहले ही ऊपर से नीचे तक परख चुका था...!
जाने क्या सोचकर उसने नंगी नेहा को गोद में उठाया और उसको गाड़ी के बोनट पर बिठा दिया... उसको पता था नेहा काफी गरम है पहले से ही..... वो झुका और नेहा की चूत की फांकों को एक दुसरे से अलग किया... पतली-पतली उसकी फाँक अन्दर से लाल थी... शमशेर ने अपनी जीभ को लम्बा किया और फांकों के बीच जीभ से इलाज करने लगा... नेहा की आनंद से चीख निकल गयी... उसने सर के 'सिर' को दोनों हाथों से कसकर दबा दिया... शमशेर के हाथ उसकी चुचियों से खेल रहे थे.... मस्त कर रहे थे... नेहा अपना इलाज होता देख कर धन्य हो गयी थी... कविता इंतज़ार नहीं कर सकती थी... वो सर की टाँगों के बीच बैठ गयी... और बुरी तरह फुँकार रहे उसके लुंड को मुँह में भरकर ठंडा करने लगी... वो अपनी उँगलियों को अपनी चूत के मोटे दाने पर रगड़ रही थी....
शमशेर ने सर उठा कर नेहा की आँखों में झाँका," कैसा लग रहा है ...इलाज"
नेहा ने शरमाकर उसके सिर को फिर दबा दिया... उसकी चिकनी चूत में जब जीभ घुसती थी और बाहर आती थी तो उसकी सिसकारी निकल उठती थी... तभी टफ की एंट्री हुयी और वो बिना कुछ बोले कविता को उठा ले गया चोदने के लिये!
टफ ऐसा ही था... कंट्रोल नाम की तो उसमें जैसे चीज़ ही नहीं थी... उसने देर ना करते हुये, एक बार कविता की चूत को देखा की गीली तो नहीं है... और जमीन में ही लिटा कर उसकी टाँगे हद से भी ज्यादा पीछे कर दी... कविता की चीख निकल गयी... उसकी चूत ऊपर आसमान की तरफ देख रही थी... लम्बवत.. अपने आप ही उसकी चूत फ़ैल गयी और डेस्टिनेशन दिखायी देने लगा...
उधर शमशेर ने भी शुरुआत कर दी... उंगली से... उंगली उसकी चूत में आना जाना कर रही थी... और चूत उसके हर बार अन्दर आने का स्वागत अपनी बंद होती और खुलती फांकों से करती....
वहाँ कोई नहीं था... सिवाय उन चारों के...
अजीत ने एक हाथ से कविता की टांगों को पीछे दबाये-दबाये ही अपनी पैंट निकाल दी... फिर उस फ्री हो चुके हाथ से अपने लंड को पकड़ कर नीचे झुकाया और फच्चाक से उसकी ऊपर देखती चूत में घुसा दिया... कविता की चीख निकल गयी और वो छूटने के लिये हिलने लगी... पर वह जितना भी हिलती... उसकी चूत की दीवारें लंड को और ज्यादा एडजस्ट कर लेती... वो पूरा उतरता चला गया...
शमशेर ने अपनी उंगली से नेहा को तृप्त कर दिया.. और उसकी चूत से प्रेमरस बहने लगा... चूत ठंडी हो गयी!
अब शमशेर ने कविता के मुखरस से सने अपने लंड को देखा, वो प्रयाप्त चिकना था... अन्दर जाने के लिये, एक कच्ची चूत में... उसने नेहा को थोड़ा सा नीचे किया और दोनों हाथों से उसको बाजूओं से पकड़ लिया... शमशेर के दोनों अंगूठे नेहा की मसलवा-मसलवा कर लाल हो चुकी चुचियों के निप्पलस को दबा रहे थे.
नेहा की चूत नीचे आती-आती शमशेर के चूत की वेट कर रहे लंड पर टिक गयी और टिक कर रुक गयी... लंड अन्दर ना घुसा पर चीख निकल गयी...
उधर कविता की भी चीख साथ ही निकली.. अजीत ने उसको उल्टा करके अपने लंड से उसकी गांड फाड़ दी... कविता को हिचकी आने लगी... हर हिचकी के साथ लंड ठोड़ा और अन्दर घुस जाता...
इधर शमशेर ने नेहा को अपनी बाँहों में उठा कर खुद बोनट से सट कर खड़ा हो गया... नेहा की टाँग बोनट पर फैली हुयी थी... शमशेर ने धीरे-धीरे नेहा को कमर से पकड़े हुये नीचे दबाना शुरू कर दिया.... नेहा साथ ही चीख रही थी और साथ ही सिसक रही थी... उसका इलाज होता जा रहा था और हो गया... उसकी चूत ने लंड को पूरा खाते ही राहत की साँस ली... अब वह चीख नहीं रही थी... बस मजे ले रही थी... उछल-उछल कर... अपने इलाज के! उसकी छातियाँ शमशेर से चिपकी हुयी थी और अजीब से सुख का अहसास कर रही थी... अचानक नेहा ने शमशेर को जोर से पकड़ कर उसके कंधे पर काट लिया... उसका इलाज हो गया था..
अब कविता भी अपनी गांड को पीछे धकेल-धकेल कर अजीत का पूरा लंड भीतर लेने की कोशिश कर रही थी... अजीत के लंड के गोले कविता की फांकों पर बार-बार फायर कर रहे थे... और इसीमें कविता को आनंद आ रहा था... वरना उसकी गांड का छेद तो घायल हो गया था...
शमशेर ने नेहा को मेंढ़क की तरह कार के बोनट पर बिठाकर उसकी गांड का मुआयना किया.. पर वो इतना टाइट था की शमशेर के प्रहार सहने लायक नहीं था... शमशेर ने नेहा को उठाया और कार की पिछली खिड़की खोलकर अन्दर बैठा दिया... कुतिया की तराह!
इस पोजीशन में उसकी गांड और चूत दोनों शमशेर को साफ़ दिखायी दे रही थी... शमशेर ने उसकी चूत में उंगली डाल कर गीली की और उसकी गांड में घुसाने की कोशिश करने लगा... नेहा उछल पड़ी... पर बोली कुछ नहीं.... शमशेर ने नेहा की गांड को पकड़ कर ठोड़ा नीचे झुकाया और वो ठोड़ा सा खुल गयी...
एक बार फिर शमशेर ने अपना लंड उसकी चूत में दे दिया... इस बार पहले से ज्यादा मजा आया... और इसी मजे-मजे में उसकी गांड भी हंसती हुयी सी उसकी उंगली को अपने अन्दर लेने लगी और ले ली...
अजीत ने फिर से कविता को सीधा कर लिया था.. और चूत लंड खेल रहा था... उसका यही अंदाज था चूत-गांड-चूत !
अब वहशीपन अपने चरम पर था.. कुछ ही दूरी पर दो-दो लड़कियाँ अपने हसीन सफ़र में डूबी हुयी थी... लड़कों का तो काम ही यही था... इस हसीन सफ़र पर चलते रहना... लगभग एक साथ ही दोनों ने अपना पानी दोनों के मुँह में छोड़ दिया... सिसकियाँ बंद हो गयी... दोनों लड़कियों को उनके लंड से पानी पीकर जवानी की अपनी प्यास को बुझाया... बड़ा मजा आया...
"भाई एक-एक राउंड बदल कर...!" अजीत ने लालची निगाहों से नेहा को घूरा..."
शमशेर ने नेहा को देखा... उसकी इच्छा नहीं थी अब...
"रहने दे... ये लेट हो जायेगी! फिर कभी!"
"पर भाई! इसकी जरूर लूँगा एक बार और..." अजीत ने कविता की चूचियाँ पकड़ कर उसको खड़ी करते हुये बोला!
"जा इसको भिवानी ले जा... घर ले जाना और रात होने से पहले इसकी बुआ के यहाँ छोड़ आना!"
"सर! आप कब मारोगे?" कविता ने पूछा
"क्या"
"मेरी चूत" ! वो बहुत बेशर्म थी.....!
शमशेर ने नेहा के कपड़े पहन-ने के बाद गाडी में बिठाया और चला गया...
अजीत ने कविता को घूरा, "साली, तू इतनी चुदकड़ है; फिर चिल्लायी क्यूँ"
कविता ने उसको पलट कर जवाब दिया," साले! गांड फाड़ दी और पूछता है चिल्लायी क्यूँ... तुम्हारे घर पर कौन है!"
"अकेला हूँ! क्यूँ?"
"मैं बुआ के घर कल जाउंगी, आज तेरे से चुदवाउंगी... बड़ा मजा आया" वो हँसने लगी!
"और घर पता लग गया तो" !
नहीं! बुआ के घर पर फोन नहीं है... मैं रास्ते से फोन करके कह दूंगी; पहुँच गयी...
अजीत ने उसको गाड़ी में डाला और चल दिया!
दिशा बहुत दुखी थी... एक तो शमशेर ने अपने हाथों से मुझे हरा दिया.... क्या कमी है मुझमें ! उसपर मुझसे बात तक नहीं की... सीधे ऊपर चले गये! क्या वो कभी सोचते भी हैं मेरे प्यार के बारे में... कहीं वो वाणी से मुझसे ज्यादा प्यार ना करते हों! दिशा की आँखों में पहले दिन से लेकर अब तक की सारी कहानी घूम गयी.... हाँ वो तो वाणी से ही प्यार करते हैं.... मुझसे तो बस खेलते हैं.... सोच-सोच कर ही उसका सर चकरा रहा था... तभी गेट पर हुयी आहट ने दिशा का ध्यान भंग कर दिया...... निशा आयी थी... दिशा के बाद गाँव की सबसे सेक्सी लड़की...(वाणी को लोग सेक्सी नहीं प्यारी समझते थे) उसके हर अंग में मस्ती जैसे कूट-कूट कर भरी हो; वो १२थ में पढ़ती थी... गर्ल्स स्कूल में...
दिशा: आओ निशा दीदी!
निशा: सर हैं क्या ऊपर?
दिशा: नहीं, पर तुम्हें क्या काम है...
निशा: बस, यूँ ही मिलने को दिल कर रहा था.... उसकी आँखों में शरारत थी....
दिशा अपने आपे में ना रही... एक तो वाणी... ऊपर से ये और आ गयी सर की दीवानी!," यूँही का क्या मतलब है... शर्म नहीं आती! सर हैं तो क्या कोयी भी लिपट जायेगा उनसे... बस यूँ ही मिलने आ गयी..." दिशा कुछ-कुछ बके जा रही थी...
निशा: ऐ दिशा! जबान संभाल कर बोलना; जब कोयी लिपटायेगा तो मैं तो लिपटूंगी. इतनी ही फिकर है तो संभाल के रख 'अपने सर' को... लैब में जाकर देखा कर क्या मस्ती चलती है वहाँ!"
दिशा का सर चकरा गया... क्या बक रही है निशा... मैं तेरा सर फोड़ दूंगी!
निशा: अरे; जो देखा है, वही बोल रही हूँ...
दिशा नरम पड़ गयी... पता नहीं वो क्या सुने क्या ना सुने! उसने निशा को सॉरी बोलकर अन्दर बुलाया. वाणी भी साथ ही चिपकी हुयी थी... ध्यान से सुन रही थी एक-एक बात !
तभी शमशेर आया और सीधा ऊपर चला गया. उसको नहीं पता था की क्या तूफ़ान आने वाला है घर में.. वह जाकर लेट गया... दिशा के बारे में सोचने लगा!
दिशा: दीदी प्लीज खुलकर बताओ क्या बात है...
निशा: नहीं, सर के सामने ही बताऊंगी!
वो तीनो ऊपर चले गये; शमशेर समझ गया की ये स्कूल की लड़की है... सुन्दर लड़कियों को तो उसने एक-एक करके अपनी आँखों में उतर रखा था... चोदने के लिये... समय आने पर!
दिशा जाकर सीधे शमशेर से बोली.... ये आपके बारे में कुछ बता रही हैं... सुनकर बताना सच है या झूठ...
वो दोनों खड़ी थी... वाणी सर की गोद में जाकर बैठ गयी....
शमशेर ने कुछ सोचा... फिर बोला... क्या बात है.... उसने निशा की और हैरत से देखा... इसको तो मैंने कभी टोका भी नहीं!
निशा: मैंने आपको लैब में देखा था सर! उसकी आवाज सपष्ट थी पर शमशेर फिर भी अंजान बनता हुआ बोला," क्या?"
निशा: मैंने.... आपको.... लैब.... में... देखा... था.... ...!
उसने हर शब्द को जैसे चबा-चबा कर कहा....
सरिता और दिव्या के साथ... वो दोनों नंगी थी... और आप उनके साथ गंदी बात कर रहे थे!... मैंने देखा था.. अपनी आँखों से
ये सुनते ही शमशेर पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा; अगर दिशा वहाँ ना होती तो वो संभाल भी लेता.... पर....
दिशा: बताईये ये सच है या झूठ!
शमशेर ने नजरें नीची कर ली... उसके ऐसा करते ही दिशा चक्कर खाकर गिर पड़ी... वाणी भाग कर उसके पास गयी और रो-रो कर उसको पुकारने लगी ! वो बेहोश हो गयी थी... निशा ने जब बात बिगड़ते देखि तो वहाँ से चली गयी !
शमशेर ने दिशा को उठाकर ऊपर लिटा दिया... और बैठ गया... उसकी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था... वो ये तय नहीं कर पा रहा था की दिशा शमा की जगाह ले सकती है या नहीं... सारा-सारा दिन वो यही सोचता रहता था....
वाणी ने सर का हाथ पकड़ा और बोली, "सर, अब मैं कभी आपसे खेलने को नहीं कहूँगी.... मैं आपसे शादी भी नहीं करुँगी..... आप मेरी दीदी से ही शादी करना... और उसी के साथ खेलना! आप किसी और के साथ खेलते हो तो दीदी मर सी जाती हैं... वो रो रही थी और अपनी बहन के सिर को बार-बार हिला रही थी...
शमशेर ने वाणी को अपने सीने से लगा लिया...
शमशेर ने दिशा के ऊपर पानी के छीटे मारे... वो होश में तो आ गयी...
पर लेती रही अधमरी सी...
शमशेर उसकी आँखों से आँखें नहीं मिला पा रहा था... उसने मुँह फेर लिया..
तभी दिशा ने अपना हाथ उठाकर शमशेर की गोद में रख दिया... शमशेर ने उसको देखा... दिशा की अधखुली आँखें उसी को देख रही थी.
"तुमने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया, .... शमशेर"
शमशेर अचानक ही बरस पड़ा... बरसों पहले शमा के लिये बंजर हो चुकी आँखें रो पड़ी... उसको १३ साल पहले शमा को कहे गये अपने शब्द ज्यों के त्यों याद आ गये... जब शमा उसके अरमानो को कुचल कर दिनेश के साथ जा रही थी....
"तुमने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया.... शमा!"
शमशेर दिशा से बुरी तराह लिपट गया... दिशा निश्चेत सी पड़ी रही... उसकी बाँहों में...
शमशेर निश्चय कर चुका था, उसको क्या करना है....
वह उठा; मुँह धोया और बाहर चला गया
क्या ये शमा का दूसरा जन्म है मेरे लिये.... नहीं-नहीं वो तो १३ साल पहले मरी थी.... दिशा तो १८ की हो चुकी है.....
हे भगवान तेरी लीला तू ही जानता है....!
तभी शमशेर का फोन बज गया; उधर अजीत बोल रहा था..."भाई, आ जा... दिन में कसर रह गयी होगी... तेरा माल मेरे पास ही है सारी रात के लिये...
शमशेर कुछ ना बोला... दूसरी बार बुलाने पर शमशेर बोला, "ना" !
"आजा यार, में कभी इनकार करता हूँ!"
"मुझे मेरी जिंदगी मिल गयी है.... मेरी दिशा!"
वाणी खिड़की के पास खड़ी सुन रही थी........
होली का दिन था... चारों और गुलाल ही गुलाल.... सिर्फ दिशा और वाणी के रंग उड़े ही थे... दिशा के तो जैसे हाथ पैर ही काम नहीं कर रहे थे.... वह अब भी शमशेर को माफ़ करने को तैयार थी... पर कम से कम शमशेर उससे बात तो करे... आइन्दा ऐसा ना करने का वादा तो करे... पर शमशेर ने तो उससे बात तक करनी छोड़ दी... उस दिन के बाद! ये बात दिशा और वाणी को और परेशान कर रही थी.
"अरे क्या हो गया तुझे बेटी? त्यौहार के दिन कैसी शक्ल बना रखी है... चल उठ नहा धो ले!" मामी ने कहा!
दिशा ऐसे ही पड़ी रही... हिली तक नहीं...
मामी: वाणी! क्या है ये... देख मैं तेरे सिर को बता दूँगी
दिशा सुनते ही बिलख पड़ी,"बता दो जिसको बताना है मामी... मुझसे नहीं. चला जाता.. ना मुझे अब पढ़ना है... और ना ही कुछ करना है!"
मामी: अच्छा! वाणी जा बुलाकर तो ला तेरे सर को!
वाणी नहीं उठी...
मामी: ठहर जा! तुम दोनों शैतान हो गयी हो! मैं बुलाकर लाती हूँ"
मामा: रुक जा, मैं ही लाता हूँ बुलाकर, मुझे सरपंच की लड़की के बारे में उससे बात भी करनी है!
दिशा के कान खड़े हो गये," क्या बात करनी है... मामा?"
मामा: अरे वो सरपंच आया था मेरे पास... कह रहा था... उसकी लड़की सरिता का रिश्ता ले लें तुम्हारे सर... बहुत बड़े ज़मीदार हैं... कह रहे थे.. घर भर देंगे इनका...
दिशा विचलित सी हो गयी, "कहीं शमशेर सरिता से तो प्यार नहीं करता..."
रुको! मैं बुलाकर लाती हूँ! दिशा ऊपर भाग गयी... पीछे-पीछे वाणी!
दिशा ने तरारे के साथ दरवाजा खोला, "तुम... तुम जब सरिता से प्यार करते हो तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया... बोलो... बोलो... तुम्हें बोलना पड़ेगा!
शमशेर कुछ ना बोला... दिशा तड़प उठी," सरिता का रिश्ता आया है तुम्हारे लिये... कर लेना शादी... घर भर देंगे तुम्हारा... जाओ कर लो शादी..." वो रोने लगी...
वाणी: सर, आपको मामा बुला रहे हैं
शमशेर ने दिशा और वाणी का हाथ पकड़ा और नीचे चला गया.... दिशा ने हाथ छुड़ाने की कोशिश करी पर ना छुड़ा सकी...!
नीचे जाकर उसने मामा से पूछा, "क्या बात है मामा जी?
मामा: अरे वो सरपंच आया था..... दहेज़ बहुत ज्यादा देंगे.. अच्छा रिश्ता है बेटा ... आगे तुम जो कहोगे मैं बता दूंगा....
शमशेर: मैं..... दिशा से शादी करूँगा मामा जी... आप चाहे या ना चाहे... सिर्फ दिशा से...
मामा ने दिशा की ओर देखा, उसके चेहरे के रंग वापस आ गये थे... वो एकटक प्यार से शमशेर को देखे जा रही थी...
मामा: हमारी दिशा के तो भाग खुल जायेंगे बेटा...
दिशा शरमाकर अन्दर भाग गयी... ओर वाणी भी, शरमाकर नहीं... अपनी दीदी के चेहरे की ख़ुशी मापने...
शमशेर के चेहरे पर जहाँ भर की रौनक आ गयी... उसका वनवास पूरा हुआ..!
उस दिन सबने जमकर होली खेली...
कुछ दिन बाद शमसेर ने अपना ट्रान्सफर बॉयस स्कूल में करा लिया... ओर अपनी जगाह एक ओर आशिक को वहाँ भेज दिया... उससे भी ज्यादा ठरकी....
दिशा शमशेर के साथ शहर चली गयी.... पढ़ने भी ओर खेलने भी... अपने शमशेर के साथ...
वाणी को भी वो साथ ही ले गये... खिलाने नहीं... पढाने...
वाणी समझ चुकी थी... इसको खेल नहीं इश्क कहते हैं ओर ये इश्क आसान नहीं होता. ... ओर ये भी की अच्छे खानदानों में ये.... एक के साथ ही होता है.......
शमशेर कभी समझ ही नहीं पाया की इतने पाप करने के बाद भी भगवान ने ये हीरा उसको कैसे दे दिया...... शायद उसके एक बार किये हुये सच्चे प्यार के लिये...
शमशेर की लाइफ में फिर से प्यार आ गया.. ओर उसने सेक्स-सेक्स और सेक्स की थ्योरी छोड़ दी...
टफ अब भी गाँव में आता है... पता नहीं उसको कौन सुधारेगी!
अंजलि वापस आ गयी गाँव में... अपने ४२ साल के बुड्ढे (उसकी तुलना में) पिया के साथ... बुड्ढा अपने साथ एक क़यामत लेकर आया था... गौरी....
गौरी ने सारे गाँव के मनचलों की नींद उड़ा दी... जल्द ही दिशा के आशिक दिशा की जुदाई का गम भूल कर गौरी से आँखें सेक-सेक कर अपने जख्म भरने लगे...
शाम होते ही... सुबह होते ही.... स्कूल का टाइम होते ही... छुट्टी का टाइम होते ही, जैसे सारे मनचले आकर उसकी हाजरी लगाने लगे... दूर से ही !
गौरी को देखकर कहीं से भी ये नहीं कहा जा सकता था की ये अपने इसी बाप की औलाद है जिसने अभी-अभी अंजलि को उसकी दूसरी माँ बना दिया है.... या तो गौरी की पहली माँ गजब की सुन्दर रही होगी... या फिर अंजलि का कोई दूसरा बाप होगा... अंधेरों का मेहरबान !
गौरी १२थ में पढ़ती थी... ऊपर से नेचे तक उसका उसका रूप-यौवन किसी साँचे में ढाला गया लगता था... किसी पेप्सी की बोतल जैसे लम्बे, बड़े ३६"-२६"-३८" के ढाँचे में... गर्दन लम्बी सुराहीदार होने की वजाह से वो जितनी लम्बी थी उससे कुछ ज्यादा ही दिखायी देती थी... ५'४" की लम्बाई वाली गौरी जब चलती थी तो उसका हर अंग मटकता था.. यूँ.. यूँ... और यूँ !
ऐसा नहीं था की उसको अपने कातिलाना हद तक सेक्सी होने का अंदाजा नहीं था... था और इसको उसने संभाल कर रखा था... शहर में रहने की वजह से वो कपड़े भी हमेशा इस तरह के पहनती थी की उसकी जवानी और ज्यादा भड़के... उसके अंग और ज्यादा दिखें... गाँव में तो उसने जैसे हलचल ही मचा दी !
अंजलि शमशेर को बहुत याद करती थी ... सपनो में भी और अकेले होने पर भी... उसने शमशेर के दोस्त उस ठरकी नये साइंस मास्टर को अपने ही बेडरूम के साथ वाला एक रूम दे दिया था... क्यूँकी वो शादी शुदा था शमशेर की तरह कुँवारा नहीं! उसकी बीवी और वो साथ ही रहते थे !
नये साइंस मास्टर का नाम सुनील था. करीब २७ साल की उम्र, ना ज्यादा सेहतमंद और ना ज्यादा कमजोर, बस ठीक-ठाक था... उसकी शादी ६ महीने पहले हुयी थी शिवानी के साथ... उसकी उम्र करीब २२ साल की थी !
शिवानी में उम्र और जवानी के लिहाज से कोई ऐसी कमी ना थी की सुनील को बाहर ताक-झाँक करनी पड़े ! पर... निगोड़े मर्दों का... कहाँ जी भरता है.... सुनील कभी भी एक लड़की पर अपने को रोक नहीं पाया... कॉलेज में भी वो हर हफ्ते एक नयी गर्लफ्रेंड बनाता था... इतनी हसीन बीवी मिलने पर भी वो एक्स्ट्रा क्लास से नहीं चूकता था ... और अब गर्ल्स स्कूल में आने पर तो जैसे उसकी पाँचो उंगलियाँ घी में और सिर कढ़ाई में था. उसके पास एक ही कमरा होने की वजाह से अंजलि और उसने लिविंग रूम शेयर कर रखा था... दिन में अक्सर पाँचों साथ ही रहते थे...
अंजलि काम निपटा कर बुढ्ढे सईयाँ के पास आयी... ओमप्रकाश के बिस्तर में....
अन्दर आते ही ओमप्रकाश ने उसको अपनी बाँहों में खींच लिया," क्या बात है, डार्लिंग?" तुम शादी से खुश नहीं हो क्या?"
"नहीं तो !" आपको ऐसा क्यूँ लगा !
अंजलि को शमशेर के सीने से लगाई हुयी अपनी कामुकता याद आ रही थी
"तुम सुहागरात से आज तक कभी मेरे पास आकर खुश नहीं दिखायी दी !" ओमप्रकाश को अहसास था की उसकी उम्र अब अंजलि जैसी शानदार औरत को काबू में करने लायक नहीं है.
"आप तो बस यूँ ही पता नहीं... क्या-क्या सोचते रहे हो" अंजलि ने शमशेर को याद किया और सैया की शर्ट के बटन खोलने लगी.
सुनील अंजलि के बेडरूम में जाते ही दोनों बेडरूम से अटैच बाथरूम में घुस कर उनकी इस प्रेम वार्तालाप को दरवाजे से कान लगाकर बड़े मजे से सुन रहा था.
अंजलि ने ओमप्रकाश को खुश करने के लिए उसको अपने हाथों से पूरा नंगा कर दिया और उम्र के साथ ही कुछ-कुछ बूढा सा हो गया लंड अपने होंटो के बीच दबा लिया...."
"आह.. अंजलि!! जब तुम इसको मुँह में लेती हो तो मैं सब कुछ भूल जाता हूँ... क्या कमाल का चूसती हो तुम!
अंजलि को शमशेर का तना हुआ लंड याद आ गया... उसी ने तो सिखाया था उसको... चूसना!
उसने पूरा मुँह खोलकर ओमप्रकाश का सारा लंड अन्दर ले लिया पर वो गले की उस गहराई तक नहीं उतर पाया जहाँ वो शमशेर का पहुँचा लेती थी... लाख कोशिश करने पर भी...
सुनील अंजलि के होंटो की 'पुचः-पुचः' सुन कर गरम होता जा रहा था..
अंजलि ने लंड मुँह से निकल लिया और अपना पेटीकोट उतार कर लेट गयी... "आ जाओ"!
"अब सहन नहीं होता"
ओमप्रकाश अंजलि के मुँह से अपनी जरुरत जान कर बहुत खुश हुआ. उसने अपना लंड अंजलि की चूत में घुसा दिया...
अंजलि ने आँखें बंद कर ली और शमशेर को याद करने लगी... उसकी आहें बढ़ती गयी... उसको याद आया आखिरी बार शमशेर ने उसकी गांड को कितना मजा दिया था...
अंजलि ने ओमप्रकाश को जैसे धक्का सा दिया और उलट गयी... चार पैरों पर... कुतिया बन गयी... इस आस में की ओमप्रकाश उसकी प्यासी गांड पर रहम करे!
पर ओमप्रकाश ने तो फिर से उसकी चूत को ही चुना... गांड पर उंगली तक नहीं लगायी...
अंजलि ने उसके लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़ा और सिसक कर बोली," पीछे भी करिये ना!" उसको कहते हुये शर्म आ रही थी, पर वह अपने आप को रोक ना सकी!
"क्या?" ओमप्रकाश तो जैसे जानता ही नहीं था की वहाँ भी मजा आता है.. गांड में... चूत से भी ज्यादा... मर्दों को औरतों से ज्यादा!"
"यहाँ" अंजलि ने अपनी ऊँगली के नाखून से अपनी गांड के छेद को कुरेदते हुये इशारा किया...
सुनील सब सुन रहा था... सब समझ रहा था!
"छीइइइ! ये भी कोई प्यार करने की चीज है" और वो लुढ़क गया... अंजलि के ऊपर... अंजलि की गांड तड़प उठी... अपने शमशेर के लिए!"
सुनील अपने बेडरूम में चला गया और शिवानी के ऊपर गिर कर उसको चूम लिया... वो तो गांड का रसिया था.. पर शिवानी ने कभी उस खास जगाह पर उंगली तक कभी रखने नहीं दी.........
"क्या बात है, इतनी देर तक बाथरूम में क्या कर रहे थे.." शिवानी ने सुनील से शरारत से कहा
"मुठ मार रहा था!" सुनील के जवाब हमेशा ही करारे होते थे.
"फिर मैं किसलिए हूँ..?" शिवानी ने सुनील के होंटो को चूम कर कहा...!
"इसलिए!" और उसने शिवानी की नाईटी ऊपर खींच दी...
शिवानी की मस्त तनी चूचियाँ और उसकी माँसल जाँघें, उनके बीच खिले हुये फूल जैसी शेव की हुयी उसकी चूत सब कुछ बेपर्दा हो गयी...!
सुनील ने अपने कपड़े उतार फैंके और अपना लंड लगभग जबरदस्ती शिवानी के मुँह में ठूस दिया... शिवानी ने एक बार तने हुये उसके लंड को बाहर निकला, "तुम ये जो मुँह में डाल देते हो ना... मुझे बहुत गुस्सा आता है ये इसकी जगाह ठोड़े ही है ! "और वापस मुँह में डाल कर अनमने मन से आँखे खोले ही चूसने लगी... उसके हाथ अपनी चूत को समझा रहे थे... ठोड़ा इंतज़ार करने के लिए..!
"तुम जो इतने कानून छाँटती हो ना, ये नहीं वो नहीं... किसी दिन बेवफा हो गया तो मुझे दोष मत देना ! अरे सेक्स की भी कोई लिमिट होती है क्या ! "सुनील ने उत्तेजित आवाज में कहा.."
शिवानी ने उसके लंड को हलके से काट लिया... उसको बेवफा होने की सोचने के लिये सजा दे डाली....
सुनील ने शिवानी के मुँह से लंड निकाल लिया और उसकी चूत पर जीभ रख दी... शिवानी सिसक उठी पर उसको ये भी अजीब लगता था... घिनौना! पर उसको मजा पूरा आ रहा था!
"अब जल्दी करो सहन नहीं होता! "शिवानी ने कसमसाते हुये सुनील से प्रार्थना की...
सुनील ने देर ना करते हुये अपना लंड उसकी जड़ों में घुसा दिया और उसकी चूचियों से लिपट गया... उसको पता था अगर शिवानी का पानी निकल गया तो वह बुरा मुँह बना लेगी.. आगे करते हुये!
पता नहीं कैसी औरत थी शिवानी... सेक्स कोई ऐसे होता है क्या भला... चूत में डाला.. धक्के मार कर निकाल और निकाल लिया... बाहर... पर वो तो वन डे में ही यकीन रखती थी... २-२ पारियों वाले टेस्ट मैच में नहीं....
गौरी में सेक्स कूट-कूट कर भरा हुआ था.. पर उसके रुतबे और शानदार शख्सियत को देखकर कोयी भी उसके करीब आने की हिम्मत नहीं कर पाता था.. बस दूर से ही सब तड़प कर रह जाते... गौरी को भी उनको तड़पाने में आनंद आता था...
सुबह-सुबह ही वह ट्रैक पैंट और टाइट टी-शर्ट पहन कर बाहर बालकनी में खड़ी हो जाती. उस ड्रेस में उसकी बाहर को निकली चूचियाँ और माँसल जाँघों से चिपकी पैंट गजब ढाती थी. उसके चूतडों और उसकी चूत के सही-सही आकर का पता लगाया जा सकता था.....
और मकान के बाहर मनचलों की भीड़ लग जाती... जैसे बच्चन साहब की बीमारी के दौरान 'प्रतीक्षा' पर लगती थी, उसके बंगले पर
बेडरूम २ ही होने के कारन वह लिविंग रूम में ही सोती थी... वह उठी और छुपा कर रखी गयी एक ब्लू सी.डी. जाकर प्लेयर में डाल दी... म्यूट करके...
गौरी का हाथ उसकी चूत के दाने पर चला गया... जैसे-जैसे मूवी चलती गयी... उसकी उत्तेजना बढ़ती गयी और वो अपने दाने को मसलने लगी, आज तक उसने अपनी चूत में उंगली नहीं डाली थी... शी वॉस आ वर्जिन... टेक्निकलि !
गौरी सिसक पड़ी.. उसका शरीर अकड़ गया और उसने अपने आपको ही पकड़ लिया कस कर, चुचियों से... उसकी चूत का रस निकलते ही उसको असीम शांति मिली... वह सो गयी... कभी भी वह बिना झड़े नहीं सो पाती थी...
सुबह म्यूजिक चलाने के लिये सुनील ने अपनी फेवरेट सी.डी. ली और प्लेयर में डाल दी. निकली हुयी सी.डी. को देखकर वह चौंका; इंग्लिश न. ८!
रात को तो उसने गजनी देखते हुये ही टी.वी. ऑफ कर दिया था.. तब अंजलि भी बेडरूम में जा चुकी थी..
उसने बालकनी में खड़ी अपने फैन्स को तड़पा रही गौरी को गौर से देखा... और वही सी.डी. वापस प्लेयर में डालकर नहाने चला गया.. प्लेयर को ऑफ करके!
आगे चल कर घने जंगल की साइड में एक पुरानी हवेली थी... लोग मानते थे की यहाँ भूत रहते हैं इसीलिए उस तरफ कोई फटकता भी ना था... शमशेर ने गाड़ी हवेली के अन्दर ही घुसा दी.....
शमशेर ने अजीत के पास फोन किया," कहाँ हो टफ!"
"तेरे दिल में हूँ भई, बोल क्या काम है??"
"गर्मी निकालनी है क्या?"
"कहाँ आना है?"
"गाँव के पास ही, जहाँ पिछले महीने आया था तू; हवेली में!"
"भाई तू नौकरी से निकलवायेगा... २० मिनट में पहुँचता हूँ; गरम कर ले खाना!"
दुसरे के आने की बात सुनकर नेहा काँप गयी... उसको डर सा लगने लगा... वैसे भी ये जगाह...?
लेकिन कविता को किसी बात का डर नहीं था... वो खेली खायी लगती थी... वो भी अब जल्दबाजी में थी... शुरुआत करने के लिये !
"कपड़े निकाल दो!" शमशेर ने उनसे कहा...
नेहा हिचक रही थी... पर जब उसने कविता को फटाफट आदेश का पालन करते देखा तो उसकी भी हिम्मत बढ़ी... और फिर दोनों नंगी हो गयी....
"आप भी तो निकालिये सर!", कविता ने सेक्सी आवाज में कहा!
शमशेर ने दोनों को गौर से देखा... दोनों में कोई भी बुरी नहीं लग रही थी... कविता की तो बस गांड और भरी-भरी गदरायी हुयी चूचियाँ बहकाने के लिये काफी थी... और उसमें कुछ खास था भी नहीं... नेहा को तो वो पहले ही ऊपर से नीचे तक परख चुका था...!
जाने क्या सोचकर उसने नंगी नेहा को गोद में उठाया और उसको गाड़ी के बोनट पर बिठा दिया... उसको पता था नेहा काफी गरम है पहले से ही..... वो झुका और नेहा की चूत की फांकों को एक दुसरे से अलग किया... पतली-पतली उसकी फाँक अन्दर से लाल थी... शमशेर ने अपनी जीभ को लम्बा किया और फांकों के बीच जीभ से इलाज करने लगा... नेहा की आनंद से चीख निकल गयी... उसने सर के 'सिर' को दोनों हाथों से कसकर दबा दिया... शमशेर के हाथ उसकी चुचियों से खेल रहे थे.... मस्त कर रहे थे... नेहा अपना इलाज होता देख कर धन्य हो गयी थी... कविता इंतज़ार नहीं कर सकती थी... वो सर की टाँगों के बीच बैठ गयी... और बुरी तरह फुँकार रहे उसके लुंड को मुँह में भरकर ठंडा करने लगी... वो अपनी उँगलियों को अपनी चूत के मोटे दाने पर रगड़ रही थी....
शमशेर ने सर उठा कर नेहा की आँखों में झाँका," कैसा लग रहा है ...इलाज"
नेहा ने शरमाकर उसके सिर को फिर दबा दिया... उसकी चिकनी चूत में जब जीभ घुसती थी और बाहर आती थी तो उसकी सिसकारी निकल उठती थी... तभी टफ की एंट्री हुयी और वो बिना कुछ बोले कविता को उठा ले गया चोदने के लिये!
टफ ऐसा ही था... कंट्रोल नाम की तो उसमें जैसे चीज़ ही नहीं थी... उसने देर ना करते हुये, एक बार कविता की चूत को देखा की गीली तो नहीं है... और जमीन में ही लिटा कर उसकी टाँगे हद से भी ज्यादा पीछे कर दी... कविता की चीख निकल गयी... उसकी चूत ऊपर आसमान की तरफ देख रही थी... लम्बवत.. अपने आप ही उसकी चूत फ़ैल गयी और डेस्टिनेशन दिखायी देने लगा...
उधर शमशेर ने भी शुरुआत कर दी... उंगली से... उंगली उसकी चूत में आना जाना कर रही थी... और चूत उसके हर बार अन्दर आने का स्वागत अपनी बंद होती और खुलती फांकों से करती....
वहाँ कोई नहीं था... सिवाय उन चारों के...
अजीत ने एक हाथ से कविता की टांगों को पीछे दबाये-दबाये ही अपनी पैंट निकाल दी... फिर उस फ्री हो चुके हाथ से अपने लंड को पकड़ कर नीचे झुकाया और फच्चाक से उसकी ऊपर देखती चूत में घुसा दिया... कविता की चीख निकल गयी और वो छूटने के लिये हिलने लगी... पर वह जितना भी हिलती... उसकी चूत की दीवारें लंड को और ज्यादा एडजस्ट कर लेती... वो पूरा उतरता चला गया...
शमशेर ने अपनी उंगली से नेहा को तृप्त कर दिया.. और उसकी चूत से प्रेमरस बहने लगा... चूत ठंडी हो गयी!
अब शमशेर ने कविता के मुखरस से सने अपने लंड को देखा, वो प्रयाप्त चिकना था... अन्दर जाने के लिये, एक कच्ची चूत में... उसने नेहा को थोड़ा सा नीचे किया और दोनों हाथों से उसको बाजूओं से पकड़ लिया... शमशेर के दोनों अंगूठे नेहा की मसलवा-मसलवा कर लाल हो चुकी चुचियों के निप्पलस को दबा रहे थे.
नेहा की चूत नीचे आती-आती शमशेर के चूत की वेट कर रहे लंड पर टिक गयी और टिक कर रुक गयी... लंड अन्दर ना घुसा पर चीख निकल गयी...
उधर कविता की भी चीख साथ ही निकली.. अजीत ने उसको उल्टा करके अपने लंड से उसकी गांड फाड़ दी... कविता को हिचकी आने लगी... हर हिचकी के साथ लंड ठोड़ा और अन्दर घुस जाता...
इधर शमशेर ने नेहा को अपनी बाँहों में उठा कर खुद बोनट से सट कर खड़ा हो गया... नेहा की टाँग बोनट पर फैली हुयी थी... शमशेर ने धीरे-धीरे नेहा को कमर से पकड़े हुये नीचे दबाना शुरू कर दिया.... नेहा साथ ही चीख रही थी और साथ ही सिसक रही थी... उसका इलाज होता जा रहा था और हो गया... उसकी चूत ने लंड को पूरा खाते ही राहत की साँस ली... अब वह चीख नहीं रही थी... बस मजे ले रही थी... उछल-उछल कर... अपने इलाज के! उसकी छातियाँ शमशेर से चिपकी हुयी थी और अजीब से सुख का अहसास कर रही थी... अचानक नेहा ने शमशेर को जोर से पकड़ कर उसके कंधे पर काट लिया... उसका इलाज हो गया था..
अब कविता भी अपनी गांड को पीछे धकेल-धकेल कर अजीत का पूरा लंड भीतर लेने की कोशिश कर रही थी... अजीत के लंड के गोले कविता की फांकों पर बार-बार फायर कर रहे थे... और इसीमें कविता को आनंद आ रहा था... वरना उसकी गांड का छेद तो घायल हो गया था...
शमशेर ने नेहा को मेंढ़क की तरह कार के बोनट पर बिठाकर उसकी गांड का मुआयना किया.. पर वो इतना टाइट था की शमशेर के प्रहार सहने लायक नहीं था... शमशेर ने नेहा को उठाया और कार की पिछली खिड़की खोलकर अन्दर बैठा दिया... कुतिया की तराह!
इस पोजीशन में उसकी गांड और चूत दोनों शमशेर को साफ़ दिखायी दे रही थी... शमशेर ने उसकी चूत में उंगली डाल कर गीली की और उसकी गांड में घुसाने की कोशिश करने लगा... नेहा उछल पड़ी... पर बोली कुछ नहीं.... शमशेर ने नेहा की गांड को पकड़ कर ठोड़ा नीचे झुकाया और वो ठोड़ा सा खुल गयी...
एक बार फिर शमशेर ने अपना लंड उसकी चूत में दे दिया... इस बार पहले से ज्यादा मजा आया... और इसी मजे-मजे में उसकी गांड भी हंसती हुयी सी उसकी उंगली को अपने अन्दर लेने लगी और ले ली...
अजीत ने फिर से कविता को सीधा कर लिया था.. और चूत लंड खेल रहा था... उसका यही अंदाज था चूत-गांड-चूत !
अब वहशीपन अपने चरम पर था.. कुछ ही दूरी पर दो-दो लड़कियाँ अपने हसीन सफ़र में डूबी हुयी थी... लड़कों का तो काम ही यही था... इस हसीन सफ़र पर चलते रहना... लगभग एक साथ ही दोनों ने अपना पानी दोनों के मुँह में छोड़ दिया... सिसकियाँ बंद हो गयी... दोनों लड़कियों को उनके लंड से पानी पीकर जवानी की अपनी प्यास को बुझाया... बड़ा मजा आया...
"भाई एक-एक राउंड बदल कर...!" अजीत ने लालची निगाहों से नेहा को घूरा..."
शमशेर ने नेहा को देखा... उसकी इच्छा नहीं थी अब...
"रहने दे... ये लेट हो जायेगी! फिर कभी!"
"पर भाई! इसकी जरूर लूँगा एक बार और..." अजीत ने कविता की चूचियाँ पकड़ कर उसको खड़ी करते हुये बोला!
"जा इसको भिवानी ले जा... घर ले जाना और रात होने से पहले इसकी बुआ के यहाँ छोड़ आना!"
"सर! आप कब मारोगे?" कविता ने पूछा
"क्या"
"मेरी चूत" ! वो बहुत बेशर्म थी.....!
शमशेर ने नेहा के कपड़े पहन-ने के बाद गाडी में बिठाया और चला गया...
अजीत ने कविता को घूरा, "साली, तू इतनी चुदकड़ है; फिर चिल्लायी क्यूँ"
कविता ने उसको पलट कर जवाब दिया," साले! गांड फाड़ दी और पूछता है चिल्लायी क्यूँ... तुम्हारे घर पर कौन है!"
"अकेला हूँ! क्यूँ?"
"मैं बुआ के घर कल जाउंगी, आज तेरे से चुदवाउंगी... बड़ा मजा आया" वो हँसने लगी!
"और घर पता लग गया तो" !
नहीं! बुआ के घर पर फोन नहीं है... मैं रास्ते से फोन करके कह दूंगी; पहुँच गयी...
अजीत ने उसको गाड़ी में डाला और चल दिया!
दिशा बहुत दुखी थी... एक तो शमशेर ने अपने हाथों से मुझे हरा दिया.... क्या कमी है मुझमें ! उसपर मुझसे बात तक नहीं की... सीधे ऊपर चले गये! क्या वो कभी सोचते भी हैं मेरे प्यार के बारे में... कहीं वो वाणी से मुझसे ज्यादा प्यार ना करते हों! दिशा की आँखों में पहले दिन से लेकर अब तक की सारी कहानी घूम गयी.... हाँ वो तो वाणी से ही प्यार करते हैं.... मुझसे तो बस खेलते हैं.... सोच-सोच कर ही उसका सर चकरा रहा था... तभी गेट पर हुयी आहट ने दिशा का ध्यान भंग कर दिया...... निशा आयी थी... दिशा के बाद गाँव की सबसे सेक्सी लड़की...(वाणी को लोग सेक्सी नहीं प्यारी समझते थे) उसके हर अंग में मस्ती जैसे कूट-कूट कर भरी हो; वो १२थ में पढ़ती थी... गर्ल्स स्कूल में...
दिशा: आओ निशा दीदी!
निशा: सर हैं क्या ऊपर?
दिशा: नहीं, पर तुम्हें क्या काम है...
निशा: बस, यूँ ही मिलने को दिल कर रहा था.... उसकी आँखों में शरारत थी....
दिशा अपने आपे में ना रही... एक तो वाणी... ऊपर से ये और आ गयी सर की दीवानी!," यूँही का क्या मतलब है... शर्म नहीं आती! सर हैं तो क्या कोयी भी लिपट जायेगा उनसे... बस यूँ ही मिलने आ गयी..." दिशा कुछ-कुछ बके जा रही थी...
निशा: ऐ दिशा! जबान संभाल कर बोलना; जब कोयी लिपटायेगा तो मैं तो लिपटूंगी. इतनी ही फिकर है तो संभाल के रख 'अपने सर' को... लैब में जाकर देखा कर क्या मस्ती चलती है वहाँ!"
दिशा का सर चकरा गया... क्या बक रही है निशा... मैं तेरा सर फोड़ दूंगी!
निशा: अरे; जो देखा है, वही बोल रही हूँ...
दिशा नरम पड़ गयी... पता नहीं वो क्या सुने क्या ना सुने! उसने निशा को सॉरी बोलकर अन्दर बुलाया. वाणी भी साथ ही चिपकी हुयी थी... ध्यान से सुन रही थी एक-एक बात !
तभी शमशेर आया और सीधा ऊपर चला गया. उसको नहीं पता था की क्या तूफ़ान आने वाला है घर में.. वह जाकर लेट गया... दिशा के बारे में सोचने लगा!
दिशा: दीदी प्लीज खुलकर बताओ क्या बात है...
निशा: नहीं, सर के सामने ही बताऊंगी!
वो तीनो ऊपर चले गये; शमशेर समझ गया की ये स्कूल की लड़की है... सुन्दर लड़कियों को तो उसने एक-एक करके अपनी आँखों में उतर रखा था... चोदने के लिये... समय आने पर!
दिशा जाकर सीधे शमशेर से बोली.... ये आपके बारे में कुछ बता रही हैं... सुनकर बताना सच है या झूठ...
वो दोनों खड़ी थी... वाणी सर की गोद में जाकर बैठ गयी....
शमशेर ने कुछ सोचा... फिर बोला... क्या बात है.... उसने निशा की और हैरत से देखा... इसको तो मैंने कभी टोका भी नहीं!
निशा: मैंने आपको लैब में देखा था सर! उसकी आवाज सपष्ट थी पर शमशेर फिर भी अंजान बनता हुआ बोला," क्या?"
निशा: मैंने.... आपको.... लैब.... में... देखा... था.... ...!
उसने हर शब्द को जैसे चबा-चबा कर कहा....
सरिता और दिव्या के साथ... वो दोनों नंगी थी... और आप उनके साथ गंदी बात कर रहे थे!... मैंने देखा था.. अपनी आँखों से
ये सुनते ही शमशेर पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा; अगर दिशा वहाँ ना होती तो वो संभाल भी लेता.... पर....
दिशा: बताईये ये सच है या झूठ!
शमशेर ने नजरें नीची कर ली... उसके ऐसा करते ही दिशा चक्कर खाकर गिर पड़ी... वाणी भाग कर उसके पास गयी और रो-रो कर उसको पुकारने लगी ! वो बेहोश हो गयी थी... निशा ने जब बात बिगड़ते देखि तो वहाँ से चली गयी !
शमशेर ने दिशा को उठाकर ऊपर लिटा दिया... और बैठ गया... उसकी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था... वो ये तय नहीं कर पा रहा था की दिशा शमा की जगाह ले सकती है या नहीं... सारा-सारा दिन वो यही सोचता रहता था....
वाणी ने सर का हाथ पकड़ा और बोली, "सर, अब मैं कभी आपसे खेलने को नहीं कहूँगी.... मैं आपसे शादी भी नहीं करुँगी..... आप मेरी दीदी से ही शादी करना... और उसी के साथ खेलना! आप किसी और के साथ खेलते हो तो दीदी मर सी जाती हैं... वो रो रही थी और अपनी बहन के सिर को बार-बार हिला रही थी...
शमशेर ने वाणी को अपने सीने से लगा लिया...
शमशेर ने दिशा के ऊपर पानी के छीटे मारे... वो होश में तो आ गयी...
पर लेती रही अधमरी सी...
शमशेर उसकी आँखों से आँखें नहीं मिला पा रहा था... उसने मुँह फेर लिया..
तभी दिशा ने अपना हाथ उठाकर शमशेर की गोद में रख दिया... शमशेर ने उसको देखा... दिशा की अधखुली आँखें उसी को देख रही थी.
"तुमने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया, .... शमशेर"
शमशेर अचानक ही बरस पड़ा... बरसों पहले शमा के लिये बंजर हो चुकी आँखें रो पड़ी... उसको १३ साल पहले शमा को कहे गये अपने शब्द ज्यों के त्यों याद आ गये... जब शमा उसके अरमानो को कुचल कर दिनेश के साथ जा रही थी....
"तुमने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया.... शमा!"
शमशेर दिशा से बुरी तराह लिपट गया... दिशा निश्चेत सी पड़ी रही... उसकी बाँहों में...
शमशेर निश्चय कर चुका था, उसको क्या करना है....
वह उठा; मुँह धोया और बाहर चला गया
क्या ये शमा का दूसरा जन्म है मेरे लिये.... नहीं-नहीं वो तो १३ साल पहले मरी थी.... दिशा तो १८ की हो चुकी है.....
हे भगवान तेरी लीला तू ही जानता है....!
तभी शमशेर का फोन बज गया; उधर अजीत बोल रहा था..."भाई, आ जा... दिन में कसर रह गयी होगी... तेरा माल मेरे पास ही है सारी रात के लिये...
शमशेर कुछ ना बोला... दूसरी बार बुलाने पर शमशेर बोला, "ना" !
"आजा यार, में कभी इनकार करता हूँ!"
"मुझे मेरी जिंदगी मिल गयी है.... मेरी दिशा!"
वाणी खिड़की के पास खड़ी सुन रही थी........
होली का दिन था... चारों और गुलाल ही गुलाल.... सिर्फ दिशा और वाणी के रंग उड़े ही थे... दिशा के तो जैसे हाथ पैर ही काम नहीं कर रहे थे.... वह अब भी शमशेर को माफ़ करने को तैयार थी... पर कम से कम शमशेर उससे बात तो करे... आइन्दा ऐसा ना करने का वादा तो करे... पर शमशेर ने तो उससे बात तक करनी छोड़ दी... उस दिन के बाद! ये बात दिशा और वाणी को और परेशान कर रही थी.
"अरे क्या हो गया तुझे बेटी? त्यौहार के दिन कैसी शक्ल बना रखी है... चल उठ नहा धो ले!" मामी ने कहा!
दिशा ऐसे ही पड़ी रही... हिली तक नहीं...
मामी: वाणी! क्या है ये... देख मैं तेरे सिर को बता दूँगी
दिशा सुनते ही बिलख पड़ी,"बता दो जिसको बताना है मामी... मुझसे नहीं. चला जाता.. ना मुझे अब पढ़ना है... और ना ही कुछ करना है!"
मामी: अच्छा! वाणी जा बुलाकर तो ला तेरे सर को!
वाणी नहीं उठी...
मामी: ठहर जा! तुम दोनों शैतान हो गयी हो! मैं बुलाकर लाती हूँ"
मामा: रुक जा, मैं ही लाता हूँ बुलाकर, मुझे सरपंच की लड़की के बारे में उससे बात भी करनी है!
दिशा के कान खड़े हो गये," क्या बात करनी है... मामा?"
मामा: अरे वो सरपंच आया था मेरे पास... कह रहा था... उसकी लड़की सरिता का रिश्ता ले लें तुम्हारे सर... बहुत बड़े ज़मीदार हैं... कह रहे थे.. घर भर देंगे इनका...
दिशा विचलित सी हो गयी, "कहीं शमशेर सरिता से तो प्यार नहीं करता..."
रुको! मैं बुलाकर लाती हूँ! दिशा ऊपर भाग गयी... पीछे-पीछे वाणी!
दिशा ने तरारे के साथ दरवाजा खोला, "तुम... तुम जब सरिता से प्यार करते हो तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया... बोलो... बोलो... तुम्हें बोलना पड़ेगा!
शमशेर कुछ ना बोला... दिशा तड़प उठी," सरिता का रिश्ता आया है तुम्हारे लिये... कर लेना शादी... घर भर देंगे तुम्हारा... जाओ कर लो शादी..." वो रोने लगी...
वाणी: सर, आपको मामा बुला रहे हैं
शमशेर ने दिशा और वाणी का हाथ पकड़ा और नीचे चला गया.... दिशा ने हाथ छुड़ाने की कोशिश करी पर ना छुड़ा सकी...!
नीचे जाकर उसने मामा से पूछा, "क्या बात है मामा जी?
मामा: अरे वो सरपंच आया था..... दहेज़ बहुत ज्यादा देंगे.. अच्छा रिश्ता है बेटा ... आगे तुम जो कहोगे मैं बता दूंगा....
शमशेर: मैं..... दिशा से शादी करूँगा मामा जी... आप चाहे या ना चाहे... सिर्फ दिशा से...
मामा ने दिशा की ओर देखा, उसके चेहरे के रंग वापस आ गये थे... वो एकटक प्यार से शमशेर को देखे जा रही थी...
मामा: हमारी दिशा के तो भाग खुल जायेंगे बेटा...
दिशा शरमाकर अन्दर भाग गयी... ओर वाणी भी, शरमाकर नहीं... अपनी दीदी के चेहरे की ख़ुशी मापने...
शमशेर के चेहरे पर जहाँ भर की रौनक आ गयी... उसका वनवास पूरा हुआ..!
उस दिन सबने जमकर होली खेली...
कुछ दिन बाद शमसेर ने अपना ट्रान्सफर बॉयस स्कूल में करा लिया... ओर अपनी जगाह एक ओर आशिक को वहाँ भेज दिया... उससे भी ज्यादा ठरकी....
दिशा शमशेर के साथ शहर चली गयी.... पढ़ने भी ओर खेलने भी... अपने शमशेर के साथ...
वाणी को भी वो साथ ही ले गये... खिलाने नहीं... पढाने...
वाणी समझ चुकी थी... इसको खेल नहीं इश्क कहते हैं ओर ये इश्क आसान नहीं होता. ... ओर ये भी की अच्छे खानदानों में ये.... एक के साथ ही होता है.......
शमशेर कभी समझ ही नहीं पाया की इतने पाप करने के बाद भी भगवान ने ये हीरा उसको कैसे दे दिया...... शायद उसके एक बार किये हुये सच्चे प्यार के लिये...
शमशेर की लाइफ में फिर से प्यार आ गया.. ओर उसने सेक्स-सेक्स और सेक्स की थ्योरी छोड़ दी...
टफ अब भी गाँव में आता है... पता नहीं उसको कौन सुधारेगी!
अंजलि वापस आ गयी गाँव में... अपने ४२ साल के बुड्ढे (उसकी तुलना में) पिया के साथ... बुड्ढा अपने साथ एक क़यामत लेकर आया था... गौरी....
गौरी ने सारे गाँव के मनचलों की नींद उड़ा दी... जल्द ही दिशा के आशिक दिशा की जुदाई का गम भूल कर गौरी से आँखें सेक-सेक कर अपने जख्म भरने लगे...
शाम होते ही... सुबह होते ही.... स्कूल का टाइम होते ही... छुट्टी का टाइम होते ही, जैसे सारे मनचले आकर उसकी हाजरी लगाने लगे... दूर से ही !
गौरी को देखकर कहीं से भी ये नहीं कहा जा सकता था की ये अपने इसी बाप की औलाद है जिसने अभी-अभी अंजलि को उसकी दूसरी माँ बना दिया है.... या तो गौरी की पहली माँ गजब की सुन्दर रही होगी... या फिर अंजलि का कोई दूसरा बाप होगा... अंधेरों का मेहरबान !
गौरी १२थ में पढ़ती थी... ऊपर से नेचे तक उसका उसका रूप-यौवन किसी साँचे में ढाला गया लगता था... किसी पेप्सी की बोतल जैसे लम्बे, बड़े ३६"-२६"-३८" के ढाँचे में... गर्दन लम्बी सुराहीदार होने की वजाह से वो जितनी लम्बी थी उससे कुछ ज्यादा ही दिखायी देती थी... ५'४" की लम्बाई वाली गौरी जब चलती थी तो उसका हर अंग मटकता था.. यूँ.. यूँ... और यूँ !
ऐसा नहीं था की उसको अपने कातिलाना हद तक सेक्सी होने का अंदाजा नहीं था... था और इसको उसने संभाल कर रखा था... शहर में रहने की वजह से वो कपड़े भी हमेशा इस तरह के पहनती थी की उसकी जवानी और ज्यादा भड़के... उसके अंग और ज्यादा दिखें... गाँव में तो उसने जैसे हलचल ही मचा दी !
अंजलि शमशेर को बहुत याद करती थी ... सपनो में भी और अकेले होने पर भी... उसने शमशेर के दोस्त उस ठरकी नये साइंस मास्टर को अपने ही बेडरूम के साथ वाला एक रूम दे दिया था... क्यूँकी वो शादी शुदा था शमशेर की तरह कुँवारा नहीं! उसकी बीवी और वो साथ ही रहते थे !
नये साइंस मास्टर का नाम सुनील था. करीब २७ साल की उम्र, ना ज्यादा सेहतमंद और ना ज्यादा कमजोर, बस ठीक-ठाक था... उसकी शादी ६ महीने पहले हुयी थी शिवानी के साथ... उसकी उम्र करीब २२ साल की थी !
शिवानी में उम्र और जवानी के लिहाज से कोई ऐसी कमी ना थी की सुनील को बाहर ताक-झाँक करनी पड़े ! पर... निगोड़े मर्दों का... कहाँ जी भरता है.... सुनील कभी भी एक लड़की पर अपने को रोक नहीं पाया... कॉलेज में भी वो हर हफ्ते एक नयी गर्लफ्रेंड बनाता था... इतनी हसीन बीवी मिलने पर भी वो एक्स्ट्रा क्लास से नहीं चूकता था ... और अब गर्ल्स स्कूल में आने पर तो जैसे उसकी पाँचो उंगलियाँ घी में और सिर कढ़ाई में था. उसके पास एक ही कमरा होने की वजाह से अंजलि और उसने लिविंग रूम शेयर कर रखा था... दिन में अक्सर पाँचों साथ ही रहते थे...
अंजलि काम निपटा कर बुढ्ढे सईयाँ के पास आयी... ओमप्रकाश के बिस्तर में....
अन्दर आते ही ओमप्रकाश ने उसको अपनी बाँहों में खींच लिया," क्या बात है, डार्लिंग?" तुम शादी से खुश नहीं हो क्या?"
"नहीं तो !" आपको ऐसा क्यूँ लगा !
अंजलि को शमशेर के सीने से लगाई हुयी अपनी कामुकता याद आ रही थी
"तुम सुहागरात से आज तक कभी मेरे पास आकर खुश नहीं दिखायी दी !" ओमप्रकाश को अहसास था की उसकी उम्र अब अंजलि जैसी शानदार औरत को काबू में करने लायक नहीं है.
"आप तो बस यूँ ही पता नहीं... क्या-क्या सोचते रहे हो" अंजलि ने शमशेर को याद किया और सैया की शर्ट के बटन खोलने लगी.
सुनील अंजलि के बेडरूम में जाते ही दोनों बेडरूम से अटैच बाथरूम में घुस कर उनकी इस प्रेम वार्तालाप को दरवाजे से कान लगाकर बड़े मजे से सुन रहा था.
अंजलि ने ओमप्रकाश को खुश करने के लिए उसको अपने हाथों से पूरा नंगा कर दिया और उम्र के साथ ही कुछ-कुछ बूढा सा हो गया लंड अपने होंटो के बीच दबा लिया...."
"आह.. अंजलि!! जब तुम इसको मुँह में लेती हो तो मैं सब कुछ भूल जाता हूँ... क्या कमाल का चूसती हो तुम!
अंजलि को शमशेर का तना हुआ लंड याद आ गया... उसी ने तो सिखाया था उसको... चूसना!
उसने पूरा मुँह खोलकर ओमप्रकाश का सारा लंड अन्दर ले लिया पर वो गले की उस गहराई तक नहीं उतर पाया जहाँ वो शमशेर का पहुँचा लेती थी... लाख कोशिश करने पर भी...
सुनील अंजलि के होंटो की 'पुचः-पुचः' सुन कर गरम होता जा रहा था..
अंजलि ने लंड मुँह से निकल लिया और अपना पेटीकोट उतार कर लेट गयी... "आ जाओ"!
"अब सहन नहीं होता"
ओमप्रकाश अंजलि के मुँह से अपनी जरुरत जान कर बहुत खुश हुआ. उसने अपना लंड अंजलि की चूत में घुसा दिया...
अंजलि ने आँखें बंद कर ली और शमशेर को याद करने लगी... उसकी आहें बढ़ती गयी... उसको याद आया आखिरी बार शमशेर ने उसकी गांड को कितना मजा दिया था...
अंजलि ने ओमप्रकाश को जैसे धक्का सा दिया और उलट गयी... चार पैरों पर... कुतिया बन गयी... इस आस में की ओमप्रकाश उसकी प्यासी गांड पर रहम करे!
पर ओमप्रकाश ने तो फिर से उसकी चूत को ही चुना... गांड पर उंगली तक नहीं लगायी...
अंजलि ने उसके लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़ा और सिसक कर बोली," पीछे भी करिये ना!" उसको कहते हुये शर्म आ रही थी, पर वह अपने आप को रोक ना सकी!
"क्या?" ओमप्रकाश तो जैसे जानता ही नहीं था की वहाँ भी मजा आता है.. गांड में... चूत से भी ज्यादा... मर्दों को औरतों से ज्यादा!"
"यहाँ" अंजलि ने अपनी ऊँगली के नाखून से अपनी गांड के छेद को कुरेदते हुये इशारा किया...
सुनील सब सुन रहा था... सब समझ रहा था!
"छीइइइ! ये भी कोई प्यार करने की चीज है" और वो लुढ़क गया... अंजलि के ऊपर... अंजलि की गांड तड़प उठी... अपने शमशेर के लिए!"
सुनील अपने बेडरूम में चला गया और शिवानी के ऊपर गिर कर उसको चूम लिया... वो तो गांड का रसिया था.. पर शिवानी ने कभी उस खास जगाह पर उंगली तक कभी रखने नहीं दी.........
"क्या बात है, इतनी देर तक बाथरूम में क्या कर रहे थे.." शिवानी ने सुनील से शरारत से कहा
"मुठ मार रहा था!" सुनील के जवाब हमेशा ही करारे होते थे.
"फिर मैं किसलिए हूँ..?" शिवानी ने सुनील के होंटो को चूम कर कहा...!
"इसलिए!" और उसने शिवानी की नाईटी ऊपर खींच दी...
शिवानी की मस्त तनी चूचियाँ और उसकी माँसल जाँघें, उनके बीच खिले हुये फूल जैसी शेव की हुयी उसकी चूत सब कुछ बेपर्दा हो गयी...!
सुनील ने अपने कपड़े उतार फैंके और अपना लंड लगभग जबरदस्ती शिवानी के मुँह में ठूस दिया... शिवानी ने एक बार तने हुये उसके लंड को बाहर निकला, "तुम ये जो मुँह में डाल देते हो ना... मुझे बहुत गुस्सा आता है ये इसकी जगाह ठोड़े ही है ! "और वापस मुँह में डाल कर अनमने मन से आँखे खोले ही चूसने लगी... उसके हाथ अपनी चूत को समझा रहे थे... ठोड़ा इंतज़ार करने के लिए..!
"तुम जो इतने कानून छाँटती हो ना, ये नहीं वो नहीं... किसी दिन बेवफा हो गया तो मुझे दोष मत देना ! अरे सेक्स की भी कोई लिमिट होती है क्या ! "सुनील ने उत्तेजित आवाज में कहा.."
शिवानी ने उसके लंड को हलके से काट लिया... उसको बेवफा होने की सोचने के लिये सजा दे डाली....
सुनील ने शिवानी के मुँह से लंड निकाल लिया और उसकी चूत पर जीभ रख दी... शिवानी सिसक उठी पर उसको ये भी अजीब लगता था... घिनौना! पर उसको मजा पूरा आ रहा था!
"अब जल्दी करो सहन नहीं होता! "शिवानी ने कसमसाते हुये सुनील से प्रार्थना की...
सुनील ने देर ना करते हुये अपना लंड उसकी जड़ों में घुसा दिया और उसकी चूचियों से लिपट गया... उसको पता था अगर शिवानी का पानी निकल गया तो वह बुरा मुँह बना लेगी.. आगे करते हुये!
पता नहीं कैसी औरत थी शिवानी... सेक्स कोई ऐसे होता है क्या भला... चूत में डाला.. धक्के मार कर निकाल और निकाल लिया... बाहर... पर वो तो वन डे में ही यकीन रखती थी... २-२ पारियों वाले टेस्ट मैच में नहीं....
गौरी में सेक्स कूट-कूट कर भरा हुआ था.. पर उसके रुतबे और शानदार शख्सियत को देखकर कोयी भी उसके करीब आने की हिम्मत नहीं कर पाता था.. बस दूर से ही सब तड़प कर रह जाते... गौरी को भी उनको तड़पाने में आनंद आता था...
सुबह-सुबह ही वह ट्रैक पैंट और टाइट टी-शर्ट पहन कर बाहर बालकनी में खड़ी हो जाती. उस ड्रेस में उसकी बाहर को निकली चूचियाँ और माँसल जाँघों से चिपकी पैंट गजब ढाती थी. उसके चूतडों और उसकी चूत के सही-सही आकर का पता लगाया जा सकता था.....
और मकान के बाहर मनचलों की भीड़ लग जाती... जैसे बच्चन साहब की बीमारी के दौरान 'प्रतीक्षा' पर लगती थी, उसके बंगले पर
बेडरूम २ ही होने के कारन वह लिविंग रूम में ही सोती थी... वह उठी और छुपा कर रखी गयी एक ब्लू सी.डी. जाकर प्लेयर में डाल दी... म्यूट करके...
गौरी का हाथ उसकी चूत के दाने पर चला गया... जैसे-जैसे मूवी चलती गयी... उसकी उत्तेजना बढ़ती गयी और वो अपने दाने को मसलने लगी, आज तक उसने अपनी चूत में उंगली नहीं डाली थी... शी वॉस आ वर्जिन... टेक्निकलि !
गौरी सिसक पड़ी.. उसका शरीर अकड़ गया और उसने अपने आपको ही पकड़ लिया कस कर, चुचियों से... उसकी चूत का रस निकलते ही उसको असीम शांति मिली... वह सो गयी... कभी भी वह बिना झड़े नहीं सो पाती थी...
सुबह म्यूजिक चलाने के लिये सुनील ने अपनी फेवरेट सी.डी. ली और प्लेयर में डाल दी. निकली हुयी सी.डी. को देखकर वह चौंका; इंग्लिश न. ८!
रात को तो उसने गजनी देखते हुये ही टी.वी. ऑफ कर दिया था.. तब अंजलि भी बेडरूम में जा चुकी थी..
उसने बालकनी में खड़ी अपने फैन्स को तड़पा रही गौरी को गौर से देखा... और वही सी.डी. वापस प्लेयर में डालकर नहाने चला गया.. प्लेयर को ऑफ करके!
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