मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी भाग-18
गौरी का ध्यान उसी पर था.. सड़क पर काफी अँधेरा था..
पर क्यूंकि गौरी ने बस के पीछे अपनी आँखें
गड़ा रखी थी.. उसको कम्बल ओढे एक साया सड़क पर
जाता दिखाई दिया.. गौरी को यकीन था वो कविता ही थी..
गौरी भी धीरे से उठी और वहाँ से सरक कर बस में
जा चड़ी.. कविता वहाँ नहीं थी उसको पूरा यकीन
हो गया था की कविता और राकेश अब जरूर गेम खेलेंगे..
गौरी सुनील और अंजलि का लाइव मैच तो देख
ना सकी थी.. पर लाइव मैच देखने का चांस उसका यही पूरा हो सकता था.. उसने दोनों को रँगे
हाथो पकड़ कर अपनी हसरत पूरी करने
की योजना बनायीं और उधर ही चल दी.. जिधर
उसको वो साया जाता दिखाई दिया था.....
उधर उनसे दूसरी दिशा में ड्राईवर थोड़ी ही दूरी पर
कविता का मुँह बंद करके उसको लगभग घसीटता सा लेकर जा रहा था... कामातुर
कविता भी अनजान जगह और उस पर अनजान आदमी के
लपेटे में खुद को पाकर बुरी तरह डरी हुयी थी....
जिधर गौरी साया देखकर गयी थी उससे बिलकुल
दूसरी दिशा में काफी दूर ले जाकर ड्राईवर ने उसके मुँह से
हाथ हटा लिया लेकिन वो उसको एक हाथ से मजबूती से
पकड़े हुए था....
कविता कसमसाई..., "छोड़ दो मुझे, यहाँ क्यूँ ले आये
हो.. ?" उसकी आवाज में विरोध उतना ही था जितना एक कुँवारी लड़की को अपने
हो सकने वाले बलात्कार से पहले होता है...
ड्राईवर ने लगभग गिडगिडा कर कहा, हाय..
मेरी रानी ! एक बार बस दबा कर देख लेने दो... मैं तुम्हे
जाने दूँगा..
"नहीं.." मुझे अभी छोड़ो... ! "मुझे जाने दो..." ड्राईवर को गिडगिडाते देख कविता में थोड़ी सी हिम्मत आ
गयी...
ड्राईवर को कविता की इजाजत नहीं चाहिए थी...
वो तो बस इतना चाहता था की पूरा काम वो आसानी से
करवा ले... वरना बस में उसकी शराफत वो देख
ही चूका था... कैसे राकेश से मजे ले रही थी... तेरी चूची कितनी मोटी-मोटी हैं गांड भी मस्त है
फिर चूत भी... कसम से तू मुझे एक बार हाथ लगा लेने दे...
जैसे 'उस' लौंडे से दबवा रही थी हाय.. क्या चीजहै तू !
"ड्राईवर रह-रह कर उसको यहाँ वहाँ से
दबा रहा था उसका एक हाथ अपने लंड को थोड़ा इंतज़ार
करने की तस्सली दे रहा था.. पर कविता थी की मानने को तैयार ही नहीं थी, तुम मुझे ऐसे क्यूँ आह... उठा कर
लाये ज्यादा बकवास की तो मैं चिल्ला दूँगी जाने
दो मुझे..
ड्राईवर पर उसके विरोध का कुछ भी असर दिखाई
नहीं दे रहा था उसने कविता का एक नितम्ब अपने हाथ
में पकड़ लिया और चूतडों के बीच की खायी को उँगलियों से कुरेदने
लगा मानो उसकी गांड को जगा रहा हो...., "करने दे
ना छोरी बड़ी मस्त है तू..."
तभी पीछे से एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा..
थप्पड़ लगते ही वह घिघियाँ गया और हाथ जोड़कर
पलट गया, "मुझे माफ कर दो भाई साहब ! मैं तो बस यूँही.." पीछे राकेश खड़ा तमतमाया हुआ था..,"चुप चाप यहाँ से फूट
ले.. वरना साले की...."
"जाता हूँ ना भाई.. जाता हूँ.." कहने के बाद ड्राईवर ने पीछे
मुड़कर नहीं देखा और अँधेरे में गायब हो गया....
"मैंने तुम्हें कहाँ बुलाया था.. और तुम कहाँ पहुँच गयी" कहते
हुए राकेश ने वहीँ से शुरू कर दिया जहाँ ड्राईवर कविता को छोड़ कर गया था.. उसने कविता के
नितम्बों को सख्ती से पकड़ लिया..
"नहीं.. मैं अब कुछ नहीं करने दूँगी, मेरा दिमाग खराब
हो गया है.. छोड़ो मुझे.. मैं जा रही हूँ..." कविता ने
गुस्सा दिखाते हुए कहा...
राकेश उसको धीरे-धीरे सरकता सरकाता सड़क के एक
मोड़ पर नीचे की और जा रहे छोटे से रास्ते की और ले
गया शायद वो रास्ता नीचे गाँव में जाता था मनाली के रोड
से दूर.....
"देख तो ले एक बार !" राकेश ने पैंट में से अपना लम्बा,
मोटा और केले जैसा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया.. लंड बिलकुल तैयार था... उसकी चूत की सुरंग को खोल देने
के लिए...
नहीं.. मुझे कुछ नहीं देखना ! "कविता ने मुँह फेर लिया.."
पर ऐसे शानदार लंड को अपने हाथ से अलग ना कर पायी..
ऐसे लंड रोज-रोज कहाँ मिलते हैं पर ऊपर से
वो यही दिखा रही थी की उसको कुछ भी नहीं करना है कुछ भी......
राकेश के लंड को सहलाते-सहलाते कविता इतनी गरम
हो गयी थी की उसने अपने दुसरे हाथ
को भी वहीँ पहुँचा दिया.. पर नखरे तो देखो लड़की के,
"तुम बहुत गंदे हो, तुम्हें शर्म नहीं आती क्या... ?"
राकेश बातों का खिलाड़ी नहीं था.. ना ही उसे कविता की बात का जवाब देने में इंटरेस्ट था वो तो बस
एक ही रट लगाये हुए था, "एक बार दे
देगी तो तेरा क्या घिस जाएगा.. ?"
कविता ने फिर वही राग-अलापा, "नहीं मुझे कुछ देना-
वेना नहीं है.. "उसका ध्यान अब भी राकेश के लंड
की कड़क हो चुकी टोपी पर था.. राकेश ने अपना हाथ सलवार के अन्दर से पीछे उसकी गांड
की दरारों में घुसा दिया था.. वो एक हाथ से
ही दोनों चूतडों को अलग-अलग करने की कोशिश कर
रहा था.. पर मोटी कसी हुयी गांड फिर भी बार-बार
चिपकी जा रही थी.. राकेश की एक उँगली गांड के प्रवेश
द्वार तक पहुँच ही गयी.. उसने उँगली गांड के छेद में ही घुसा दी.. कविता को रात के तारे दिखाई देने बंद
हो गये थे क्यूँकि उसकी आँखें मारे आनंद के बंद
हो गयी थी वो आगे होकर राकेश की छाती से चिपक
गयी और उसके होंटों को अपने नरम होंटो से चूमने
लगी.. राकेश ने भी कविता के होंट चूसने शुरू कर दिये..
राकेश उत्तेजित पहले से ही बहुत था, अब उससेसहन नही हो पा रहा था... उसने झट से कविता का पहले
कम्बल उतारा और जमीन पर बिछा दिया और
उसको जबरदस्ती उस पर लिटाने की कोशिश करने
लगा..
"रुक जाओ ना ! इडियट.. मारने
का मजा भी लेना नहीं आता.... "कविता अब सीधे ट्रिपल-एक्स मूड में आ गयी थी...
राकेश उसकी बात सुनकर ठिठक कर खड़ा हो गया.. जैसे
सच में ही वो नादान हो.. जैसे
कविता ही उसको जबरदस्ती वहाँ उठा लायी हो....
वो चुप चाप कविता की और देखने लगा जैसे पूछ
रहा हो... फिर कैसे मारनी है... चूत !
कविता ने राकेश को सीधा खड़ा हो जाने को कहा..
वो बच्चे की तरह अपनी नूनी पकड़ कर खड़ा हो गया..
कविता कम्बल पर घुटनों के बल बैठी और
उसका सुपाड़ा अपना पूरा मुँह खोल कर अन्दर फिट कर
लिया.. राकेश मारे आनंद के मर ही गया... वो तो जैसे
उसका चेला बन गया.. अपने आप वो हिला भी नहीं.. अब जो कर रही थी.. वो कविता ही कर रही थी..
कविता उसके गरम लंड के सुपाड़े पर अपनी जीभ घुमाने
लगी.. राकेश मारे आनंद के उछल रहा था.."इस्स्स्स्स्स....
चूऊऊऊस लेएएऐ.. ! कसअअअअम से छोअअअरी.. तेरे
जैसीइइई लड़की... आह.. गुदगुदी हो रही है...
कविता ने अपने दोनों हाथों से राकेश के चूतड़ पकड़ रखे थे और लंड को पकड़ने की जरुरत ही नहीं थी.. उसे
तो कविता के होंटो ने जकड़ रखा था.. बुरी तरह...
कविता ने लंड को और ज्यादा दबोचने की कोशिश
करी पर लंड का सुपाड़ा इतना मोटा था की उसके गले से
आगे ही ना बढा.. वो सुपाड़े को ही आगे पीछे होंट करके
चोदने लगी.. ऐसा करते हुये वो राकेश के चेहरे के पल-पल बदल रहे भाव देखकर और ज्यादाउत्तेजित
हो रही थी.......
राकेश को कविता ने सुपाड़ा चूस-चूस कर इतना पागल
कर दिया की वो आखरी दम पर भी अपना लंड बाहर
निकालना भूल गया ५ मिनट में ही वो थर्रा गया.. उसके
लंड का रस झटके मार-मार कर कविता के मुँह में ही निकल गया.. आनंद के मारे उसने
अपनी एडियाँ ऊपर उठा ली.. पर कविता उसके सुपाड़े
से मुँह हटाने को तैयार ही ना थी.. वह साथ-साथऊपर
उठती चली गयी और रस की एक-एक बूँद को अपने मुँह
में भर लिया.. लंड अपने आप ही शर्मा कर बाहर निकल
आया.. राकेश की हालत देखकर कविता अपनी जीभ से होंटो को चाटती हुयी मुस्कुरा रही थी..,"बहुत गरम था..
मजा आ गया !"
"मेरा सारा प्लान चौपट कर दिया तुमने.. अपनी चूत
को बचा लिया.. मेरे लंड से ! "चलो जल्दी चलो.. बस के
पास !" राकेश अपनी चैन बंद करने लगा..
कविता तो पूरे रंग में थी, "ऐसे नहीं जाने दूँगी अब.. मेरा रस कौन पियेगा !"
कहती हुयी कविता अपनी सलवार उतारने लगी और
फिर पैंटी उतार कर अपनी कमसिन, पर
खेली खायी चूत का दीदार राकेश को कराया..
राकेश उसकी १८ साल
की चिकनी मोटी फाँकों वाली चूत को देखता ही रह गया.. सच में उसने ऐसी चूत आज तक नहीं देखि थी..
बिना कुछ कहे ही वह कम्बल पर बैठ गया और
कविता की चूत पर हाथ फेरने लगा..," हाय..
कितनी गोरी चिट्टी है कविता तेरी चूत..
कविता ने एक स्पेस्लिस्ट की तरह अपने चूतड़ कम्बल
पर रखे और अपनी टाँगें फैला दी... ऐसा करते ही चूत
की फाँकों ने दूर होकर उसका सुर्ख लाल रंग राकेश
को दिखाया... वह भौचक्का होकर उसको देखने लगा..
राकेश ने तुंरत अपनी पैंट उतार दी.. लंड का ओरिजनल
काम करने के लिये.... पर कविता पूरी तरह मस्त थी.. उसने राकेश के चेहरे
को पकड़ा और अपनी चूत के दाने से उसके होंट लगा कर
मचल उठी, " इसको मुँह में पकड़ कर चूसो.. !"
राकेश ने जैसे उसकी आज्ञा का पालन किया.. उसने जीभ
निकाल कर चूत की फाँकों में रस टपकाना शुरू कर
दिया... कविता ने सर जोर से चूत पर दबा लिया औरतेज-तेज साँसे लेने लगी... राकेश को ठंड में भी पसीने आने
लगे..., "अपना लौड़ा मेरी चूत पर रखो अदंर मत करना.."
कविता ने आदेश दिया, और उसका गुलाम हो चुके राकेश
ने ऐसा ही किया.. वो उसके ऊपर आ गया और घुटनों और
कोहनियों के बल जमीन पर सेट हो गया.. लंड
उसकी चूत के ऊपर झूल रहा था.. अभी वो पूरी तरह अकड़ा नहीं था...
कविता ने अपना हाथ नीचे ले जाकर उसके लंड
को पकड़ा और अपनी चूत पर घिसने लगी... बाहर ही...
दाने पर... वह सिसक रही थी.. बक रही थी.. और राकेश
का लौड़ा खड़ा होते-होते उसकी चूत की फाँकों के बीच
फँस गया.. अब वह ज्यादा हिल नहीं रहा था... कविता के चूतड़ ऊपर उठते चले गये.. लंड अब कम हिल रहा था और
कविता की चूत ही ऊपर नेचे होकर अपने आप से लौडे
को घिस रही थी..
राकेश अब फिर कगार पर आ गया था झड़ने के... उसने
लौड़ा कविता के हाथ से छीन लिया, "अब की बार ऐसे
नहीं.. अब अन्दर करने दो चूत के..." कविता भी अबमस्त हो चुकी थी उसने अपनी टाँग
हवा में उठा दी और उनको पीछे ले गयी,
"लो फँसा दो जल्दी.." वह तड़प सी गयी थी.. लंड
को डलवाने को...
राकेश ने कविता की टाँगों को पकड़ कर थोड़ा औरपीछे
किया, अपना लंड चूत के ऊपर रखा और उस पर बैठ गया... कविता की एकदम साँस बंद हो गयी..
उसका गला सूख गया.. आँखें बाहर आने को हुयी और वह
मिमियाने लगी.. , "बाहर निकाल जल्दी, मर
गयी माँआआआ..." पर राकेश ने अपने गुरु से बगावत कर
दी.. उसका मुँह दबोचा और उसके अदंर समाता चला गया..
पूरा लंड चूत में उतार कर उसने कविता की चूतको देखा.. वह पूरी तरह खुल गई थी..
राकेश ने लंड पूरा चूत में फँसाये-फँसाये
ही कविता को बैठा लिया अपनी जाँघो पर और
उसका कमीज उतार दिया, ब्रा से
ढकी उसकी चूचियाँ इतनी मस्त लग रही थी की राकेश
ने तुंरत उसकी ब्रा को ऊपर उठा कर
उसकी चूचियों को ब्रा के नीचे से निकाल लिया और उनको चूसने लगा.. धीरे-धीरे !
कविता की चूत ने जैसे तैसे राकेश का लंड अपने अदंर रख
लिया.. राकेश उसको अपनी जाँघों पर बिठाये ऊपर
नीचे करके हिला रहा था और थोड़ा-थोड़ा लंड चूतके
अदंर बाहर होने लगा....
धीरे-धीरे मजा बढ़ने लगा.. कविता ने उसके गले में बाहें डाली और पीछे लुढ़क गयी लगभग पहले वाली पोजीशन
आ गयी.. राकेश अपने पंजों पर बैठ गया और लंड
को थोड़ा और ज्यादा अदंर-बाहर करने लगा.. अब
कविता को भी जन्नत में होने का अहसास हो रहाथा..
उसको लगा दर्द में तो इस मजे से
भी ज्यादा मजा आया था... सोचते-सोचते ही उसकी चूत का ढेर सारा रस बाहर निकलने लगा झटके.. अब झटके
नहीं लग रहे थे... लंड इतनी सफाई से अदंर-बाहर
हो रहा था की जैसे वो धक्के लगा ही ना रहा हो..अचानक
कविता का बचा खुचा रस भी बौछार की तरह से निकल
कर लंड के साथ ही बाहर टपकने लगा... कविता को अब
दर्द का अहसास होने लगा... अब इस दर्द में मजा नहीं था... पर राकेश का काम अब बहुत देर तक
चलना था.. कविता ने कहा "अब इसमें नहीं... में
उलटी होती हूँ.. तुम पीछे कर लो"
राकेश का तो मजे से बुरा हाल हो गया... गांड में जाने
का ऑफर मिलते ही लंड और सख्त हो गया... वहाँ और
सख्ती की जरुरत जो थी.. उसने झट अपना लंड बाहर निकाला और
कविता को कुतिया बना दिया.. उसकी कमर को बीच
से नीचे दबा कर जितना गांड
को खोला जा सकता था खोला... लंड को गांड के छेदपर
टिकाया और बोला.. "डाल दूँ ?"
"हाँ !" और हाँ कहते ही कविता ने अपने दाँतों को बुरी तरह भींच लिया... उसको पता था अब
क्या होना है...
राकेश के जोर लगाते ही चिकना होने की वजह से
वो फिसल कर चूत में ही घुस गया..
कविता चिल्ला उठी.. "यहाँ क्यूँ कर दिया कमीने... !"
राकेश ने लंड निकाल कर सॉरी बोला... उसने कविता की चूत से, अपनी ऊँगली को घुसा कर रस
लगाया और ऊँगली गांड में घुसा दी... इससे मोटे
की तो वो आदि थी, "इससे कुछ नहीं होगा... लंड
घुसा ना अपना..."
"चिकनी तो कर लूँ कविता.. तेरी गांड" उसने रस
को अच्छी तरह से उसकी गांड में लगाया और फिरसे अपना लौड़ा ट्राय किया.. एक हाथ से पकड़ा और उस पर
जोर डाला.. सुपाड़ा आधा अदंर गया.. और कविता दर्द
और मजे के मारे मर सी गयी, "फँसा दे... फँसा दे...
जल्दी फँसा दे... फटने दे चिंता मत कर..."
राकेश को भला क्या चिंता होनी थी.. उसने एक
झटका और जोर से मारा और लंड का गोल घेरा उसकी गांड में फँस गया...
कविता की टाँगें जैसे बीच में से कट जायेंगी, पर उसमें
गजब की हिम्मत थी उसने अपने मुँह में कम्बल ठूस
लिया.. पर टाँगे नहीं हिलने दी मैदान से...
कुछ देर बाद गांड ने भी हिम्मत हार कर खुद को खोल
ही दिया लंड के लिये... अब लंड बाहर कम आता और हर बार अदंर ज्यादा जाता... ऐसे ही इंच-इंच सरकता-
सरकता लंड पूरा अदंर-बाहर होने लगा..
कविता को राकेश से ज्यादा और राकेश को कविता से
ज्यादा मजे लेने की पड़ी थी.. दोनों आगे पीछे होते रहे..
राकेश ने दोनों और से उसकी चूचियों को पकड़
रखा था और झटकों के साथ-साथ उनको भी खींच रहा था.....
ऐसा चलता गया.. चलता गया.. और फिर रुकने लगा..
राकेश ने उसकी गांड को रस से भर दिया और तब तक
धक्के लगाता रहा जब तक उसके लंड ने और धक्केलगाने
से इनकार करके मुड़ कर अपने आपको गांड से बाहर ना कर
लिया... कविता ने तुंरत पलट कर उसके लंड को अपने होंटो से
चुम्मी दे कर थैंक्स बोला.. इतने मजे देने के लिये.. पर लंड
सो चुका था....
बस के पास सभी अपनी-अपनी बातों में लीन थे
सभी मनाली जाकर करने वाली मौज
मस्ती की प्लानिंग कर रहे थे
किसी को किसी की फिकर ना थी जो जिसके पास
बैठा था उसके सिवा किसी का ख्याल ना था लगभग
उसी वक़्त... अकेले खड़े बातें कर रहे टफ और सुनील के पास मुस्कान आयी, "सर.. ! मुझे आपसे कुछ बात
करनी है.. !"
"बोलो.. !" सुनील ने घूमते हुये कहा
मुस्कान टफ के सामने शर्मा रही थी.. हालाँकिबस में
उसने सरिता के साथ मस्ती करते टफ को देख
लिया था और वो खुद भी जानती थी की सुनील की जाँघों पर बैठ मजे लेते टफ ने भी उसको देखा था पर
वो फिर भी शर्मा रही थी.., "सर मुझे अकेले में बात
करनी है आपसे.. !" वो नजरें झुकायें बात कर रही थी..
सुनील के हाथों मिली मस्ती की लाली अब भी उसके
गालों पर कायम थी.. "अच्छा हुआ जो अँधेरे की वजह से
किसी ने नहीं देखा" सुनील टफ को 'एक मिनट' कहकर उसी और चल पड़ा जिस तरफ कविता और राकेशगये
हुये थे..., "मजा आया मुस्कान.. !"
मुस्कान कुछ ना बोली बस नजरें झुकाये साथ चलती रही..
वो चाहती थी की सर खुद ही उसकी कसक जान लें और
उसको प्रैक्टिकल पूरा करा दें.. जिसको सर ने
अधुरा छोड़ कर उसकी हालत पतली कर दी थी... थोड़ा आगे जाने पर सुनील ने उसके कंधे पर हाथ रख
लिया और चलता रहा, "बोलो ना ! शर्मा क्यूँ रहीहो ?"
"कुछ नहीं सर....वो !" मुस्कान कुछ बोल
नहीं पा रही थी... उन्होंने ध्यान नहीं दिया...बस में
उनके पीछे बैठी अदिति और दिव्या उनके पीछे-पीछे
जासूसों की तरह चल रही थी.. उनको पता था.. जरूरयहाँ प्रैक्टिकल पूरा हो सकता है..
क्या पता उनका भी एक-एक पीरियड हो जाये...
सुनील ने उसके कंधे पर रखे हाथ से
उसकी चूची को दबा दिया.. ज्यादा बड़ी नहीं थी पर
कड़ी-कड़ी जरूर थी.. मुस्कान
हल्की सी सिसकारी लेकर सुनील की छाती से लिपट गयी.., "सर कर दो ! प्लीस.. मैं मर जाऊँगी..!" उसने
अपने हाथ सुनील की पीठ पर चिपका लिये और
अपनी छाती सुनील की पसलियों में गाड़ दी.. सुनील
को उसकी चूचियों की गर्मी का अहसास होते
ही विश्वास हो गया अब ये चुदे बिना नहीं मानेगी..
मुझसे नहीं तो किसी और से.. ! सुनील ने उसका चेहरा ऊपर उठाया और उसके सुलगते
होंटो को थोड़ी सांत्वना दी.. अपने होंटो से,"आई लव यू
सर !" मुस्कान का हाल बेहाल हो रहा था....
सुनील को लगा अभी वो ज्यादा दूर नहीं आये हैं.. वो रोड
पर चलता गया.. और उस रस्ते को पार कर गया.. जिस
रास्ते पर उस समय राकेश ने कविता की गांड में अपनी हथेली फँसा रखी थी....
अदिति और दिव्या भी उनके पीछे
चलती गयी उनको भी बड़ी लगन थी प्रैक्टिकल करने
की.....
रोड पर चलते-चलते सुनील को नीचे ढलान की और
जाता एक संकरा सा रास्ता दिखाई दिया करीब २ फीट चौड़ा शायद किसी गाँव के लिये शोर्टकट था सुनील ने
मुस्कान को अपनी छाती से चिपकाया और नीचे उतरने
लगा..
वो करीब २० फीट ही गये होंगे की उन्हें एक चीख
सुनायी दी.. दोनों चौंक कर पल्टे.. अदिति के जूते मैं से
एक कांटा उसके पैर में चुभ गया था इसीलिए उसकी चीख निकल गयी.. सुनील तेजी से चढ़ कर उसके पास गया,
"अदिति तुम ? और ये दिव्या ?"
अदिति और दिव्या का सर शर्म से झुक गया..
शर्मा तो सुनील भी गया था पर उसको पता था.. ये
तो होना ही था.. अदिति बस में उनके पीछे ही बैठी थी,
"जासूसी कर रही हो !?"
अदिति ने सर झुकाये ही जवाब दिया, "नहीं सर, हम
तो सिर्फ देखने आये थे !" सुनील थोड़ा संभल कर बोला, "देखने ही आये थे या कुछ
करने भी ?"
अदिति कुछ ना बोली... उसने सुनील की कलाई अपने
कोमल हाथों में पकड़ ली... सुनील समझ गया...
वो भी प्रैक्टिकल करना चाहती थी, "और ये
छिपकली ?" उसने दिव्या की और देखा... उसको क्या पता था ये छिपकली राकेश का साँप निगल
चुकी है एक बार.. अपनी चूत में !, "सर मुझे भी करना है.. !"
दिव्या की चूत बुरी तरह खुजा रही थी उसको प्यार
का खेल सिखा कर राकेश गौरी के पीछे जो पड़
गया था और वह इतने दिन से यूँ ही तड़प रही थी..
"ये कोई बच्चों का खेल नहीं है ? जाओ !" सुनील ने दिव्या को कहा... पर उसको डर भी था की अगर
दिव्या को वापस भेज दिया तो ये राज उगल
भी सकती है.... उसने दिव्या को मुँह लटका कर सुबकते
देखा तो सुनील ने दोनों का हाथ पकड़ा और मुस्कान के
पास ले आया....
मुस्कान अदिति से जलती थी.. अदिति वही लड़की थी जिसको सुनील ने पहले
ही दिन उठा कर पूछा था, "तुम्हें किससे प्यार है.. ?"
उसकी चूचियाँ क्लास में सबसे मस्त
थी ज्यादा बड़ी नहीं थी पर
सीधी खड़ी थी बिना ब्रा के, और
उसकी प्यारी सी हँसी का सुनील दीवाना था.. जब वह हँसती थी तो उसके गाल पर दाँयी और एक डिम्पल बन
जाता था...
मुस्कान ने मुँह बना कर कहा, "मैं जाऊँ सर !"
"नहीं" नीचे चलो ! आराम से... आज तुम सभी को एक
नया प्रैक्टिकल कराता हूँ.... ऐसा प्रैक्टिकल तो आज
तक खुद मैंने भी नहीं किया है..... कुछ और नीचे जाने पर रास्ते की साईड में ही सुनील
को एक छोटी सी क्यारी दिखाई दी.. जिसको समतल
करके शायद कुछ सब्जी वगैराह उगाने के लिये तैयार
किया गया था.. सुनील तीनों को वहीँ ले गया.. ठंड
काफी थी चारों को सर्दी लग रही थी.. सुनील ने
अपना कम्बल उतारा और जमीन पर बिछा दिया.. "सब अपने-अपने कपड़े निकल लो, और कम्बल ओढ़ लो"
सुनील ने तीनो से कहा.. मुस्कान को छोड़ कर
दिव्या और अदिति ने तुंरत ऐसा ही किया.. मुस्कान
नाराज हो गयी थी.. उसको अपना हिस्सा बाँटना पड़
रहा था.. सुनील ने मुस्कान को अपनी बाँहों में भर
लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा.. गरम तो वह पहले ही थी.. जब सुनील ने उन
दोनों नंगी लड़कियों को छोड़कर उसको बाँहों में
भरा तो उसकी नाराजगी जाती रही.. उसने कम्बल उतार
फैंका और सुनील से चिपक कर उसकी जाँघ से
अपनी जाँघों के बीच छुपी कोमल चूत को रगड़ने लगी..
अब वह अपने से सुनील को दूर नहीं करना चाहतीथी.. वह अदिति को जलाने के लिये कुछ बढ़-चढ़ कर
ही अपना प्यार लुटा रही थी सुनील पर.. मुस्कान
को देखकर उनकी भी हिम्मत बढ़ गयी..
नंगी अदिति ने सुनील को पीछे से पकड़ लिया और
अपनी छाती उसकी पीठ से सटाकर शर्ट के ऊपर से
ही सुनील को दाँतों से काटने लगी.. मुस्कान ने अपना हाथ अदिति की चूची पर ले जाकर उसके दाने
को जोर से दबा दिया.. अदिति सिसक उठी आह...
दिव्या के लिये सुनील का कोई हिस्सा नहीं बचा था..
वह अदिति के पीछे आकर उसके चूतडों पर हाथ
फिराने लगी.. जब उसका हाथ अदिति की गांड
की दरार में से होकर गुजरा तो वो उछल पड़ी.. उसको यहाँ किसी ने पहली बार हाथ लगाया था..
दिव्या तो खेल का पहला भाग खेल रही थी.. और पहले
भाग में लड़की हो या लड़का.. उसको कोई फर्क
नहीं पड़ता था..
मुस्कान अलग होकर अपने कपड़े उतारने लगी..
वो अदिति से पीछे नहीं रहना चाहती थी.. अब
कहीं भी शर्मीलेपन के लिये कोई जगह नहीं थी..
मुस्कान के अलग हटते ही अदिति घूम कर आगे आ
गयी... सुनील उसकी सबसे प्यारी चूचियों से खेलने
लगा... सुनील ने उसकी छातियों के मोतियों को चूसना शुरू कर दिया... अदिति पागल
हो उठी.. दिव्या अदिति के पीछे आ गयी और नीचे
बैठकर उसकी टाँगों के बीच उसकी चूत से अपने होंट
सटा दिये...
अदिति आनंद से दोहरी होती जा रही थी... पल-पल
उसको जन्नत का अहसास करा रहा था... सबकुछ भूल कर वह बदहवासी में बोल रही थी., हाय... मेरा सबकुछ चूस
लिया.... अआह... मेराअआ... सब... कुछ.. निकाआआल
आह... लिया.... सर्रर्र्र जजीईई.. मर गईईई.. आह..."
दिव्या ने उसको मचलता देख दुगने जोश से
उसकी फाँकों में अपनी जीभ से खेलना शुरू कर दिया....
मुस्कान भी तैयार होकर मैदान में आ गयी.. उसने सुनील की पैंट खोली और उसको खींच कर घुटनों से नीचे कर
दिया.. वो सुनील की टाँगों के नीचे कम्बल पर अपने
चूतड़ टिका कर बैठ गयी और सुनील के अंडरवियर में
अपना हाथ डालकर उसका लंड बाहर निकल लिया.. लंड
ऊपर उठने की कोशिश कर रहा था.. पर जोर से पकड़े हुये
मुस्कान ने थोड़ा ऊँचा उठाकर उसको अपने होंटों में ले लिया.. लंड उसको गले से नीचे उतारना नहीं आता था..
उसने सुपाड़े को ही मुश्किल से मुँह में भर लिया और
उसका दूध पीने लगी.. सुनील की हालत
बुरी होती जा रही थी.. इस तरह
का उसका भी पहला अनुभव था और अपने दोनों हाथों में
लड्डू और लंड मुस्कान के मुँह में.. सुनील को अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था..
दिव्या ने अदिति की चूत को चूसते-चूसते
ही अपना पैर सीधा किया और मुस्कान की चूत से
लगा दिया.. मुस्कान ने झट उसका अँगूठा अपनी चूत में
सेट कर लिया और उठक-बैठक लगाने लगी..
दिव्या साथ ही साथ सुनील की जाँघों पर हाथ फेर रही थी.. सुनील अदिति की छातियों पर से हटा और
मुस्कान को नीचे लिटा दिया, उसने मुस्कान
की टाँगों को ऊपर उठा कर खोल दिया.. मुस्कान तो इस
एक्शन के लिये कब की तरस रही थी.. उसने झट से
अपनी चूत को अपने एक हाथ की उँगलियों से खोलकर
दिखाया.. मानो कह रही हो.. देखिये सर.. कितनी प्यारी है.. सच में ही उसकी चूत की बनावट
गजब की थी..
सुनील ने अपनी पैंट को उतार फैंका और
अदिति को मुस्कान के सर की तरफ आने को कहा..
अदिति और दिव्या दोनों उधर आ गयी.. सुनील के
कहने पर अदिति ने उसकी दोनों टाँगे पकड़ ली और दिव्या ने उसका मुँह बंद कर लिया.. अपने मुलायम
हाथों से...
"देखना एक बार दर्द होगा.. फिर मजा ही मजा है.." कहते
ही सुनील ने अपना लंड चूत की दीवारों से लगाया और
जोर लगा दिया.. मुस्कान ने मारे दर्द के
दिव्या की हथेली को काट खाया.. दिव्या दर्द से कराह
उठी उसने तुंरत ही मुस्कान के मुँह से अपना हाथ
हटा लिया और उसकी छातियों को मसलने लगी.. अदिति अब तक ऊँगली अपनी चूत में डाल चुकी थी..
बहुत अधिक दर्द होने पर भी मुस्कान ने अपने
आपको काबू में रखा ये सोचकर की कहीं सुनील
उसको छोड़ कर अदिति को ना पकड़ लें.. दर्द शांत
होने पर अदिति और दिव्या ने मुस्कान को छोड़
दिया और एक दुसरे की चूत में ऊँगली डाल कर तेजी से चलाने लगी... सुनील के लंड के लिये खुद को तैयार करने
लगी...
मुस्कान से ज्यादा देर नहीं हुआ.. वो ३-४ मिनट में ही ढेर
हो गयी और लंड को बाहर निकालने की जिद करने
लगी...
सुनील ने लंड बाहर निकाल लिया और अदिति को कुतिया बना लिया... सुनील उसके ऊपर
चढ़ बैठा... अदिति की चूत गीली होकर टपक
रही थी....
सुनील ने अदिति की गांड को अपनी जाँघों के बीच
दबा लिया... उसका सर कम्बल पर झुका हुआ था... सुनील
के कहने पर दिव्या उसके मुँह के दोनों और अपनी टाँगे फैलाई और लेट कर अदिति का मुँह अपनी चूत पर रख
दिया... अदिति उसकी चूत को चाटने लगी.... मुस्कान
ने अदिति के नीचे घुसकर उसकी चूचियों को अपने
मुँह में दबा लिया... सुनील ने सब सेट करके
दिव्या को उसका मुँह अपनी चूत पर दबाने को कहा..." उम्म्म्म्म्म्म!" जैसे ही सुनील के लंड ने अदिति की चूत को चीर कर रास्ता बनाया.. उसने
हिलने और चीखने की लाख कोशिश की पर ना वह
हिल सकी और ना ही चीख सकी... लंड धीरे-धीरे झटके
लेता हुआ उसकी चूत में पैबस्त हो गया... अदिति मन
ही मन पछता रही थी.. पर अब पछताए होत क्या...
उसकी चीखें दिव्या की चूत में ही गुम होती गयी... तब तक जब तक की उसको मजा नहीं आने लगा और
वो अपनी गांड से पीछे धक्के लगाने लगी.. सुनील के
इशारे पर दिव्या ने अदिति का मुँह आजाद कर दिया...
अब चीखों की जगह उसके मुँह से कामुक
सिसकारियाँ निकल रही थी.. मुस्कान से उसका मजे
लेना ना देखा गया.. वह बाहर निकली और बैठकर अपनी चूत में ऊँगली घुसाई..
गीली ऊँगली अदिति की कमर पर से लेजाकर
उसकी गांड में घुसाने लगी... सुनील मुस्कान की कोशिश
को समझ गया..
उसने अदिति को सीधा कर दिया.. मुस्कान की तरह
ही उसकी टाँगे उठाई और फिर से उसकी चूत में लंड से धक्के मारने लगा.. अब मुस्कान के लिये गांड में दर्द
करना आसन था.. उसने अपनी ऊँगली नीचे से उसकी गांड
में ठूस दी... पर इसने एक बार दर्द देकर अदिति के मजे
को और बढा दिया... एक दो मिनट के बाद ही वह
भी चूत रस से नहा उठी.. सुनील
को अभी दिव्या को भी निपटाना था..
अदिति को छोड़ कर सुनील ने दिव्या को अपने नीचे
दबा लिया... उसने बाकि दोनों को उठकर
दिव्या को भी पकड़ने को कहा... पर दोनों निढाल
हो चुकी थी... नीचे लेटी हुयी दिव्या की कमर के नीचे
से हाथ निकाल कर सुनील ने खुद ही उसको काबू में कर
लिया... दुसरे हाथ से सुनील ने लंड को चूत के छेद पर सेट करके उस हाथ से दिव्या का मुँह दबा लिया... "बस एक
बार..." अपनी बात को अधुरा ही छोड़ते हुये सुनील ने जैसे
ही अपने लंड का दबाव दिव्या की चूत पर बढाया.. वह
उन दोनों से ज्यादा आसानी के साथ सर्रर्र्र से चूत में
उतरता चला गया... सिर्फ एक बार दिव्या की आँखें
पथरायीं.. और वो नीचे से अपने चूतड़ उचकाने के लिये... सुनील समझ गया.. इसका मुँह बंद करनातो बेवकूफी है...
उसने मुँह से हाथ हटाकर दिव्या की चूचियों पर रख
दिया... और उन्हें मसलने लगा... दिव्या तो उन दोनों से
भी ज्यादा मजे दे रही थी... हालाँकि वो अभी भी कुछ-
कुछ शर्मा रही थी पर उसके चूतडों की थिरकन सुनील
के लंड के आगे-पीछे होने की स्पीड से बिलकुलमैच कर रही थी... करीब ३० मिनट से लगातार अलग-अलग
चूतों पर सवार सुनील का लंड बौखला गया था...
ऐसा मजा तो उसको कभी मिला ही नहीं... आखिरकार
वह दिव्या की चूत से हार गया... और बाहर निकल कर
दिव्या के पेट को अपने रस से मालामाल कर दिया...
सुनील ने दिव्या के होंट मुँह में लेकर जैसे ही उसको जोर से पकड़ा... वह भी आँखें बंद करते हुये सुनील से नाजुक बेल
की भांति लिपट गयी... आखिरकार उसकी चूत ने
भी कम्बल पर अपने निशान छोड़ दिये... सुनील
का काम ख़तम होते देख वो दोनों भी उससे लिपटगयी
गौरी का ध्यान उसी पर था.. सड़क पर काफी अँधेरा था..
पर क्यूंकि गौरी ने बस के पीछे अपनी आँखें
गड़ा रखी थी.. उसको कम्बल ओढे एक साया सड़क पर
जाता दिखाई दिया.. गौरी को यकीन था वो कविता ही थी..
गौरी भी धीरे से उठी और वहाँ से सरक कर बस में
जा चड़ी.. कविता वहाँ नहीं थी उसको पूरा यकीन
हो गया था की कविता और राकेश अब जरूर गेम खेलेंगे..
गौरी सुनील और अंजलि का लाइव मैच तो देख
ना सकी थी.. पर लाइव मैच देखने का चांस उसका यही पूरा हो सकता था.. उसने दोनों को रँगे
हाथो पकड़ कर अपनी हसरत पूरी करने
की योजना बनायीं और उधर ही चल दी.. जिधर
उसको वो साया जाता दिखाई दिया था.....
उधर उनसे दूसरी दिशा में ड्राईवर थोड़ी ही दूरी पर
कविता का मुँह बंद करके उसको लगभग घसीटता सा लेकर जा रहा था... कामातुर
कविता भी अनजान जगह और उस पर अनजान आदमी के
लपेटे में खुद को पाकर बुरी तरह डरी हुयी थी....
जिधर गौरी साया देखकर गयी थी उससे बिलकुल
दूसरी दिशा में काफी दूर ले जाकर ड्राईवर ने उसके मुँह से
हाथ हटा लिया लेकिन वो उसको एक हाथ से मजबूती से
पकड़े हुए था....
कविता कसमसाई..., "छोड़ दो मुझे, यहाँ क्यूँ ले आये
हो.. ?" उसकी आवाज में विरोध उतना ही था जितना एक कुँवारी लड़की को अपने
हो सकने वाले बलात्कार से पहले होता है...
ड्राईवर ने लगभग गिडगिडा कर कहा, हाय..
मेरी रानी ! एक बार बस दबा कर देख लेने दो... मैं तुम्हे
जाने दूँगा..
"नहीं.." मुझे अभी छोड़ो... ! "मुझे जाने दो..." ड्राईवर को गिडगिडाते देख कविता में थोड़ी सी हिम्मत आ
गयी...
ड्राईवर को कविता की इजाजत नहीं चाहिए थी...
वो तो बस इतना चाहता था की पूरा काम वो आसानी से
करवा ले... वरना बस में उसकी शराफत वो देख
ही चूका था... कैसे राकेश से मजे ले रही थी... तेरी चूची कितनी मोटी-मोटी हैं गांड भी मस्त है
फिर चूत भी... कसम से तू मुझे एक बार हाथ लगा लेने दे...
जैसे 'उस' लौंडे से दबवा रही थी हाय.. क्या चीजहै तू !
"ड्राईवर रह-रह कर उसको यहाँ वहाँ से
दबा रहा था उसका एक हाथ अपने लंड को थोड़ा इंतज़ार
करने की तस्सली दे रहा था.. पर कविता थी की मानने को तैयार ही नहीं थी, तुम मुझे ऐसे क्यूँ आह... उठा कर
लाये ज्यादा बकवास की तो मैं चिल्ला दूँगी जाने
दो मुझे..
ड्राईवर पर उसके विरोध का कुछ भी असर दिखाई
नहीं दे रहा था उसने कविता का एक नितम्ब अपने हाथ
में पकड़ लिया और चूतडों के बीच की खायी को उँगलियों से कुरेदने
लगा मानो उसकी गांड को जगा रहा हो...., "करने दे
ना छोरी बड़ी मस्त है तू..."
तभी पीछे से एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा..
थप्पड़ लगते ही वह घिघियाँ गया और हाथ जोड़कर
पलट गया, "मुझे माफ कर दो भाई साहब ! मैं तो बस यूँही.." पीछे राकेश खड़ा तमतमाया हुआ था..,"चुप चाप यहाँ से फूट
ले.. वरना साले की...."
"जाता हूँ ना भाई.. जाता हूँ.." कहने के बाद ड्राईवर ने पीछे
मुड़कर नहीं देखा और अँधेरे में गायब हो गया....
"मैंने तुम्हें कहाँ बुलाया था.. और तुम कहाँ पहुँच गयी" कहते
हुए राकेश ने वहीँ से शुरू कर दिया जहाँ ड्राईवर कविता को छोड़ कर गया था.. उसने कविता के
नितम्बों को सख्ती से पकड़ लिया..
"नहीं.. मैं अब कुछ नहीं करने दूँगी, मेरा दिमाग खराब
हो गया है.. छोड़ो मुझे.. मैं जा रही हूँ..." कविता ने
गुस्सा दिखाते हुए कहा...
राकेश उसको धीरे-धीरे सरकता सरकाता सड़क के एक
मोड़ पर नीचे की और जा रहे छोटे से रास्ते की और ले
गया शायद वो रास्ता नीचे गाँव में जाता था मनाली के रोड
से दूर.....
"देख तो ले एक बार !" राकेश ने पैंट में से अपना लम्बा,
मोटा और केले जैसा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया.. लंड बिलकुल तैयार था... उसकी चूत की सुरंग को खोल देने
के लिए...
नहीं.. मुझे कुछ नहीं देखना ! "कविता ने मुँह फेर लिया.."
पर ऐसे शानदार लंड को अपने हाथ से अलग ना कर पायी..
ऐसे लंड रोज-रोज कहाँ मिलते हैं पर ऊपर से
वो यही दिखा रही थी की उसको कुछ भी नहीं करना है कुछ भी......
राकेश के लंड को सहलाते-सहलाते कविता इतनी गरम
हो गयी थी की उसने अपने दुसरे हाथ
को भी वहीँ पहुँचा दिया.. पर नखरे तो देखो लड़की के,
"तुम बहुत गंदे हो, तुम्हें शर्म नहीं आती क्या... ?"
राकेश बातों का खिलाड़ी नहीं था.. ना ही उसे कविता की बात का जवाब देने में इंटरेस्ट था वो तो बस
एक ही रट लगाये हुए था, "एक बार दे
देगी तो तेरा क्या घिस जाएगा.. ?"
कविता ने फिर वही राग-अलापा, "नहीं मुझे कुछ देना-
वेना नहीं है.. "उसका ध्यान अब भी राकेश के लंड
की कड़क हो चुकी टोपी पर था.. राकेश ने अपना हाथ सलवार के अन्दर से पीछे उसकी गांड
की दरारों में घुसा दिया था.. वो एक हाथ से
ही दोनों चूतडों को अलग-अलग करने की कोशिश कर
रहा था.. पर मोटी कसी हुयी गांड फिर भी बार-बार
चिपकी जा रही थी.. राकेश की एक उँगली गांड के प्रवेश
द्वार तक पहुँच ही गयी.. उसने उँगली गांड के छेद में ही घुसा दी.. कविता को रात के तारे दिखाई देने बंद
हो गये थे क्यूँकि उसकी आँखें मारे आनंद के बंद
हो गयी थी वो आगे होकर राकेश की छाती से चिपक
गयी और उसके होंटों को अपने नरम होंटो से चूमने
लगी.. राकेश ने भी कविता के होंट चूसने शुरू कर दिये..
राकेश उत्तेजित पहले से ही बहुत था, अब उससेसहन नही हो पा रहा था... उसने झट से कविता का पहले
कम्बल उतारा और जमीन पर बिछा दिया और
उसको जबरदस्ती उस पर लिटाने की कोशिश करने
लगा..
"रुक जाओ ना ! इडियट.. मारने
का मजा भी लेना नहीं आता.... "कविता अब सीधे ट्रिपल-एक्स मूड में आ गयी थी...
राकेश उसकी बात सुनकर ठिठक कर खड़ा हो गया.. जैसे
सच में ही वो नादान हो.. जैसे
कविता ही उसको जबरदस्ती वहाँ उठा लायी हो....
वो चुप चाप कविता की और देखने लगा जैसे पूछ
रहा हो... फिर कैसे मारनी है... चूत !
कविता ने राकेश को सीधा खड़ा हो जाने को कहा..
वो बच्चे की तरह अपनी नूनी पकड़ कर खड़ा हो गया..
कविता कम्बल पर घुटनों के बल बैठी और
उसका सुपाड़ा अपना पूरा मुँह खोल कर अन्दर फिट कर
लिया.. राकेश मारे आनंद के मर ही गया... वो तो जैसे
उसका चेला बन गया.. अपने आप वो हिला भी नहीं.. अब जो कर रही थी.. वो कविता ही कर रही थी..
कविता उसके गरम लंड के सुपाड़े पर अपनी जीभ घुमाने
लगी.. राकेश मारे आनंद के उछल रहा था.."इस्स्स्स्स्स....
चूऊऊऊस लेएएऐ.. ! कसअअअअम से छोअअअरी.. तेरे
जैसीइइई लड़की... आह.. गुदगुदी हो रही है...
कविता ने अपने दोनों हाथों से राकेश के चूतड़ पकड़ रखे थे और लंड को पकड़ने की जरुरत ही नहीं थी.. उसे
तो कविता के होंटो ने जकड़ रखा था.. बुरी तरह...
कविता ने लंड को और ज्यादा दबोचने की कोशिश
करी पर लंड का सुपाड़ा इतना मोटा था की उसके गले से
आगे ही ना बढा.. वो सुपाड़े को ही आगे पीछे होंट करके
चोदने लगी.. ऐसा करते हुये वो राकेश के चेहरे के पल-पल बदल रहे भाव देखकर और ज्यादाउत्तेजित
हो रही थी.......
राकेश को कविता ने सुपाड़ा चूस-चूस कर इतना पागल
कर दिया की वो आखरी दम पर भी अपना लंड बाहर
निकालना भूल गया ५ मिनट में ही वो थर्रा गया.. उसके
लंड का रस झटके मार-मार कर कविता के मुँह में ही निकल गया.. आनंद के मारे उसने
अपनी एडियाँ ऊपर उठा ली.. पर कविता उसके सुपाड़े
से मुँह हटाने को तैयार ही ना थी.. वह साथ-साथऊपर
उठती चली गयी और रस की एक-एक बूँद को अपने मुँह
में भर लिया.. लंड अपने आप ही शर्मा कर बाहर निकल
आया.. राकेश की हालत देखकर कविता अपनी जीभ से होंटो को चाटती हुयी मुस्कुरा रही थी..,"बहुत गरम था..
मजा आ गया !"
"मेरा सारा प्लान चौपट कर दिया तुमने.. अपनी चूत
को बचा लिया.. मेरे लंड से ! "चलो जल्दी चलो.. बस के
पास !" राकेश अपनी चैन बंद करने लगा..
कविता तो पूरे रंग में थी, "ऐसे नहीं जाने दूँगी अब.. मेरा रस कौन पियेगा !"
कहती हुयी कविता अपनी सलवार उतारने लगी और
फिर पैंटी उतार कर अपनी कमसिन, पर
खेली खायी चूत का दीदार राकेश को कराया..
राकेश उसकी १८ साल
की चिकनी मोटी फाँकों वाली चूत को देखता ही रह गया.. सच में उसने ऐसी चूत आज तक नहीं देखि थी..
बिना कुछ कहे ही वह कम्बल पर बैठ गया और
कविता की चूत पर हाथ फेरने लगा..," हाय..
कितनी गोरी चिट्टी है कविता तेरी चूत..
कविता ने एक स्पेस्लिस्ट की तरह अपने चूतड़ कम्बल
पर रखे और अपनी टाँगें फैला दी... ऐसा करते ही चूत
की फाँकों ने दूर होकर उसका सुर्ख लाल रंग राकेश
को दिखाया... वह भौचक्का होकर उसको देखने लगा..
राकेश ने तुंरत अपनी पैंट उतार दी.. लंड का ओरिजनल
काम करने के लिये.... पर कविता पूरी तरह मस्त थी.. उसने राकेश के चेहरे
को पकड़ा और अपनी चूत के दाने से उसके होंट लगा कर
मचल उठी, " इसको मुँह में पकड़ कर चूसो.. !"
राकेश ने जैसे उसकी आज्ञा का पालन किया.. उसने जीभ
निकाल कर चूत की फाँकों में रस टपकाना शुरू कर
दिया... कविता ने सर जोर से चूत पर दबा लिया औरतेज-तेज साँसे लेने लगी... राकेश को ठंड में भी पसीने आने
लगे..., "अपना लौड़ा मेरी चूत पर रखो अदंर मत करना.."
कविता ने आदेश दिया, और उसका गुलाम हो चुके राकेश
ने ऐसा ही किया.. वो उसके ऊपर आ गया और घुटनों और
कोहनियों के बल जमीन पर सेट हो गया.. लंड
उसकी चूत के ऊपर झूल रहा था.. अभी वो पूरी तरह अकड़ा नहीं था...
कविता ने अपना हाथ नीचे ले जाकर उसके लंड
को पकड़ा और अपनी चूत पर घिसने लगी... बाहर ही...
दाने पर... वह सिसक रही थी.. बक रही थी.. और राकेश
का लौड़ा खड़ा होते-होते उसकी चूत की फाँकों के बीच
फँस गया.. अब वह ज्यादा हिल नहीं रहा था... कविता के चूतड़ ऊपर उठते चले गये.. लंड अब कम हिल रहा था और
कविता की चूत ही ऊपर नेचे होकर अपने आप से लौडे
को घिस रही थी..
राकेश अब फिर कगार पर आ गया था झड़ने के... उसने
लौड़ा कविता के हाथ से छीन लिया, "अब की बार ऐसे
नहीं.. अब अन्दर करने दो चूत के..." कविता भी अबमस्त हो चुकी थी उसने अपनी टाँग
हवा में उठा दी और उनको पीछे ले गयी,
"लो फँसा दो जल्दी.." वह तड़प सी गयी थी.. लंड
को डलवाने को...
राकेश ने कविता की टाँगों को पकड़ कर थोड़ा औरपीछे
किया, अपना लंड चूत के ऊपर रखा और उस पर बैठ गया... कविता की एकदम साँस बंद हो गयी..
उसका गला सूख गया.. आँखें बाहर आने को हुयी और वह
मिमियाने लगी.. , "बाहर निकाल जल्दी, मर
गयी माँआआआ..." पर राकेश ने अपने गुरु से बगावत कर
दी.. उसका मुँह दबोचा और उसके अदंर समाता चला गया..
पूरा लंड चूत में उतार कर उसने कविता की चूतको देखा.. वह पूरी तरह खुल गई थी..
राकेश ने लंड पूरा चूत में फँसाये-फँसाये
ही कविता को बैठा लिया अपनी जाँघो पर और
उसका कमीज उतार दिया, ब्रा से
ढकी उसकी चूचियाँ इतनी मस्त लग रही थी की राकेश
ने तुंरत उसकी ब्रा को ऊपर उठा कर
उसकी चूचियों को ब्रा के नीचे से निकाल लिया और उनको चूसने लगा.. धीरे-धीरे !
कविता की चूत ने जैसे तैसे राकेश का लंड अपने अदंर रख
लिया.. राकेश उसको अपनी जाँघों पर बिठाये ऊपर
नीचे करके हिला रहा था और थोड़ा-थोड़ा लंड चूतके
अदंर बाहर होने लगा....
धीरे-धीरे मजा बढ़ने लगा.. कविता ने उसके गले में बाहें डाली और पीछे लुढ़क गयी लगभग पहले वाली पोजीशन
आ गयी.. राकेश अपने पंजों पर बैठ गया और लंड
को थोड़ा और ज्यादा अदंर-बाहर करने लगा.. अब
कविता को भी जन्नत में होने का अहसास हो रहाथा..
उसको लगा दर्द में तो इस मजे से
भी ज्यादा मजा आया था... सोचते-सोचते ही उसकी चूत का ढेर सारा रस बाहर निकलने लगा झटके.. अब झटके
नहीं लग रहे थे... लंड इतनी सफाई से अदंर-बाहर
हो रहा था की जैसे वो धक्के लगा ही ना रहा हो..अचानक
कविता का बचा खुचा रस भी बौछार की तरह से निकल
कर लंड के साथ ही बाहर टपकने लगा... कविता को अब
दर्द का अहसास होने लगा... अब इस दर्द में मजा नहीं था... पर राकेश का काम अब बहुत देर तक
चलना था.. कविता ने कहा "अब इसमें नहीं... में
उलटी होती हूँ.. तुम पीछे कर लो"
राकेश का तो मजे से बुरा हाल हो गया... गांड में जाने
का ऑफर मिलते ही लंड और सख्त हो गया... वहाँ और
सख्ती की जरुरत जो थी.. उसने झट अपना लंड बाहर निकाला और
कविता को कुतिया बना दिया.. उसकी कमर को बीच
से नीचे दबा कर जितना गांड
को खोला जा सकता था खोला... लंड को गांड के छेदपर
टिकाया और बोला.. "डाल दूँ ?"
"हाँ !" और हाँ कहते ही कविता ने अपने दाँतों को बुरी तरह भींच लिया... उसको पता था अब
क्या होना है...
राकेश के जोर लगाते ही चिकना होने की वजह से
वो फिसल कर चूत में ही घुस गया..
कविता चिल्ला उठी.. "यहाँ क्यूँ कर दिया कमीने... !"
राकेश ने लंड निकाल कर सॉरी बोला... उसने कविता की चूत से, अपनी ऊँगली को घुसा कर रस
लगाया और ऊँगली गांड में घुसा दी... इससे मोटे
की तो वो आदि थी, "इससे कुछ नहीं होगा... लंड
घुसा ना अपना..."
"चिकनी तो कर लूँ कविता.. तेरी गांड" उसने रस
को अच्छी तरह से उसकी गांड में लगाया और फिरसे अपना लौड़ा ट्राय किया.. एक हाथ से पकड़ा और उस पर
जोर डाला.. सुपाड़ा आधा अदंर गया.. और कविता दर्द
और मजे के मारे मर सी गयी, "फँसा दे... फँसा दे...
जल्दी फँसा दे... फटने दे चिंता मत कर..."
राकेश को भला क्या चिंता होनी थी.. उसने एक
झटका और जोर से मारा और लंड का गोल घेरा उसकी गांड में फँस गया...
कविता की टाँगें जैसे बीच में से कट जायेंगी, पर उसमें
गजब की हिम्मत थी उसने अपने मुँह में कम्बल ठूस
लिया.. पर टाँगे नहीं हिलने दी मैदान से...
कुछ देर बाद गांड ने भी हिम्मत हार कर खुद को खोल
ही दिया लंड के लिये... अब लंड बाहर कम आता और हर बार अदंर ज्यादा जाता... ऐसे ही इंच-इंच सरकता-
सरकता लंड पूरा अदंर-बाहर होने लगा..
कविता को राकेश से ज्यादा और राकेश को कविता से
ज्यादा मजे लेने की पड़ी थी.. दोनों आगे पीछे होते रहे..
राकेश ने दोनों और से उसकी चूचियों को पकड़
रखा था और झटकों के साथ-साथ उनको भी खींच रहा था.....
ऐसा चलता गया.. चलता गया.. और फिर रुकने लगा..
राकेश ने उसकी गांड को रस से भर दिया और तब तक
धक्के लगाता रहा जब तक उसके लंड ने और धक्केलगाने
से इनकार करके मुड़ कर अपने आपको गांड से बाहर ना कर
लिया... कविता ने तुंरत पलट कर उसके लंड को अपने होंटो से
चुम्मी दे कर थैंक्स बोला.. इतने मजे देने के लिये.. पर लंड
सो चुका था....
बस के पास सभी अपनी-अपनी बातों में लीन थे
सभी मनाली जाकर करने वाली मौज
मस्ती की प्लानिंग कर रहे थे
किसी को किसी की फिकर ना थी जो जिसके पास
बैठा था उसके सिवा किसी का ख्याल ना था लगभग
उसी वक़्त... अकेले खड़े बातें कर रहे टफ और सुनील के पास मुस्कान आयी, "सर.. ! मुझे आपसे कुछ बात
करनी है.. !"
"बोलो.. !" सुनील ने घूमते हुये कहा
मुस्कान टफ के सामने शर्मा रही थी.. हालाँकिबस में
उसने सरिता के साथ मस्ती करते टफ को देख
लिया था और वो खुद भी जानती थी की सुनील की जाँघों पर बैठ मजे लेते टफ ने भी उसको देखा था पर
वो फिर भी शर्मा रही थी.., "सर मुझे अकेले में बात
करनी है आपसे.. !" वो नजरें झुकायें बात कर रही थी..
सुनील के हाथों मिली मस्ती की लाली अब भी उसके
गालों पर कायम थी.. "अच्छा हुआ जो अँधेरे की वजह से
किसी ने नहीं देखा" सुनील टफ को 'एक मिनट' कहकर उसी और चल पड़ा जिस तरफ कविता और राकेशगये
हुये थे..., "मजा आया मुस्कान.. !"
मुस्कान कुछ ना बोली बस नजरें झुकाये साथ चलती रही..
वो चाहती थी की सर खुद ही उसकी कसक जान लें और
उसको प्रैक्टिकल पूरा करा दें.. जिसको सर ने
अधुरा छोड़ कर उसकी हालत पतली कर दी थी... थोड़ा आगे जाने पर सुनील ने उसके कंधे पर हाथ रख
लिया और चलता रहा, "बोलो ना ! शर्मा क्यूँ रहीहो ?"
"कुछ नहीं सर....वो !" मुस्कान कुछ बोल
नहीं पा रही थी... उन्होंने ध्यान नहीं दिया...बस में
उनके पीछे बैठी अदिति और दिव्या उनके पीछे-पीछे
जासूसों की तरह चल रही थी.. उनको पता था.. जरूरयहाँ प्रैक्टिकल पूरा हो सकता है..
क्या पता उनका भी एक-एक पीरियड हो जाये...
सुनील ने उसके कंधे पर रखे हाथ से
उसकी चूची को दबा दिया.. ज्यादा बड़ी नहीं थी पर
कड़ी-कड़ी जरूर थी.. मुस्कान
हल्की सी सिसकारी लेकर सुनील की छाती से लिपट गयी.., "सर कर दो ! प्लीस.. मैं मर जाऊँगी..!" उसने
अपने हाथ सुनील की पीठ पर चिपका लिये और
अपनी छाती सुनील की पसलियों में गाड़ दी.. सुनील
को उसकी चूचियों की गर्मी का अहसास होते
ही विश्वास हो गया अब ये चुदे बिना नहीं मानेगी..
मुझसे नहीं तो किसी और से.. ! सुनील ने उसका चेहरा ऊपर उठाया और उसके सुलगते
होंटो को थोड़ी सांत्वना दी.. अपने होंटो से,"आई लव यू
सर !" मुस्कान का हाल बेहाल हो रहा था....
सुनील को लगा अभी वो ज्यादा दूर नहीं आये हैं.. वो रोड
पर चलता गया.. और उस रस्ते को पार कर गया.. जिस
रास्ते पर उस समय राकेश ने कविता की गांड में अपनी हथेली फँसा रखी थी....
अदिति और दिव्या भी उनके पीछे
चलती गयी उनको भी बड़ी लगन थी प्रैक्टिकल करने
की.....
रोड पर चलते-चलते सुनील को नीचे ढलान की और
जाता एक संकरा सा रास्ता दिखाई दिया करीब २ फीट चौड़ा शायद किसी गाँव के लिये शोर्टकट था सुनील ने
मुस्कान को अपनी छाती से चिपकाया और नीचे उतरने
लगा..
वो करीब २० फीट ही गये होंगे की उन्हें एक चीख
सुनायी दी.. दोनों चौंक कर पल्टे.. अदिति के जूते मैं से
एक कांटा उसके पैर में चुभ गया था इसीलिए उसकी चीख निकल गयी.. सुनील तेजी से चढ़ कर उसके पास गया,
"अदिति तुम ? और ये दिव्या ?"
अदिति और दिव्या का सर शर्म से झुक गया..
शर्मा तो सुनील भी गया था पर उसको पता था.. ये
तो होना ही था.. अदिति बस में उनके पीछे ही बैठी थी,
"जासूसी कर रही हो !?"
अदिति ने सर झुकाये ही जवाब दिया, "नहीं सर, हम
तो सिर्फ देखने आये थे !" सुनील थोड़ा संभल कर बोला, "देखने ही आये थे या कुछ
करने भी ?"
अदिति कुछ ना बोली... उसने सुनील की कलाई अपने
कोमल हाथों में पकड़ ली... सुनील समझ गया...
वो भी प्रैक्टिकल करना चाहती थी, "और ये
छिपकली ?" उसने दिव्या की और देखा... उसको क्या पता था ये छिपकली राकेश का साँप निगल
चुकी है एक बार.. अपनी चूत में !, "सर मुझे भी करना है.. !"
दिव्या की चूत बुरी तरह खुजा रही थी उसको प्यार
का खेल सिखा कर राकेश गौरी के पीछे जो पड़
गया था और वह इतने दिन से यूँ ही तड़प रही थी..
"ये कोई बच्चों का खेल नहीं है ? जाओ !" सुनील ने दिव्या को कहा... पर उसको डर भी था की अगर
दिव्या को वापस भेज दिया तो ये राज उगल
भी सकती है.... उसने दिव्या को मुँह लटका कर सुबकते
देखा तो सुनील ने दोनों का हाथ पकड़ा और मुस्कान के
पास ले आया....
मुस्कान अदिति से जलती थी.. अदिति वही लड़की थी जिसको सुनील ने पहले
ही दिन उठा कर पूछा था, "तुम्हें किससे प्यार है.. ?"
उसकी चूचियाँ क्लास में सबसे मस्त
थी ज्यादा बड़ी नहीं थी पर
सीधी खड़ी थी बिना ब्रा के, और
उसकी प्यारी सी हँसी का सुनील दीवाना था.. जब वह हँसती थी तो उसके गाल पर दाँयी और एक डिम्पल बन
जाता था...
मुस्कान ने मुँह बना कर कहा, "मैं जाऊँ सर !"
"नहीं" नीचे चलो ! आराम से... आज तुम सभी को एक
नया प्रैक्टिकल कराता हूँ.... ऐसा प्रैक्टिकल तो आज
तक खुद मैंने भी नहीं किया है..... कुछ और नीचे जाने पर रास्ते की साईड में ही सुनील
को एक छोटी सी क्यारी दिखाई दी.. जिसको समतल
करके शायद कुछ सब्जी वगैराह उगाने के लिये तैयार
किया गया था.. सुनील तीनों को वहीँ ले गया.. ठंड
काफी थी चारों को सर्दी लग रही थी.. सुनील ने
अपना कम्बल उतारा और जमीन पर बिछा दिया.. "सब अपने-अपने कपड़े निकल लो, और कम्बल ओढ़ लो"
सुनील ने तीनो से कहा.. मुस्कान को छोड़ कर
दिव्या और अदिति ने तुंरत ऐसा ही किया.. मुस्कान
नाराज हो गयी थी.. उसको अपना हिस्सा बाँटना पड़
रहा था.. सुनील ने मुस्कान को अपनी बाँहों में भर
लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा.. गरम तो वह पहले ही थी.. जब सुनील ने उन
दोनों नंगी लड़कियों को छोड़कर उसको बाँहों में
भरा तो उसकी नाराजगी जाती रही.. उसने कम्बल उतार
फैंका और सुनील से चिपक कर उसकी जाँघ से
अपनी जाँघों के बीच छुपी कोमल चूत को रगड़ने लगी..
अब वह अपने से सुनील को दूर नहीं करना चाहतीथी.. वह अदिति को जलाने के लिये कुछ बढ़-चढ़ कर
ही अपना प्यार लुटा रही थी सुनील पर.. मुस्कान
को देखकर उनकी भी हिम्मत बढ़ गयी..
नंगी अदिति ने सुनील को पीछे से पकड़ लिया और
अपनी छाती उसकी पीठ से सटाकर शर्ट के ऊपर से
ही सुनील को दाँतों से काटने लगी.. मुस्कान ने अपना हाथ अदिति की चूची पर ले जाकर उसके दाने
को जोर से दबा दिया.. अदिति सिसक उठी आह...
दिव्या के लिये सुनील का कोई हिस्सा नहीं बचा था..
वह अदिति के पीछे आकर उसके चूतडों पर हाथ
फिराने लगी.. जब उसका हाथ अदिति की गांड
की दरार में से होकर गुजरा तो वो उछल पड़ी.. उसको यहाँ किसी ने पहली बार हाथ लगाया था..
दिव्या तो खेल का पहला भाग खेल रही थी.. और पहले
भाग में लड़की हो या लड़का.. उसको कोई फर्क
नहीं पड़ता था..
मुस्कान अलग होकर अपने कपड़े उतारने लगी..
वो अदिति से पीछे नहीं रहना चाहती थी.. अब
कहीं भी शर्मीलेपन के लिये कोई जगह नहीं थी..
मुस्कान के अलग हटते ही अदिति घूम कर आगे आ
गयी... सुनील उसकी सबसे प्यारी चूचियों से खेलने
लगा... सुनील ने उसकी छातियों के मोतियों को चूसना शुरू कर दिया... अदिति पागल
हो उठी.. दिव्या अदिति के पीछे आ गयी और नीचे
बैठकर उसकी टाँगों के बीच उसकी चूत से अपने होंट
सटा दिये...
अदिति आनंद से दोहरी होती जा रही थी... पल-पल
उसको जन्नत का अहसास करा रहा था... सबकुछ भूल कर वह बदहवासी में बोल रही थी., हाय... मेरा सबकुछ चूस
लिया.... अआह... मेराअआ... सब... कुछ.. निकाआआल
आह... लिया.... सर्रर्र्र जजीईई.. मर गईईई.. आह..."
दिव्या ने उसको मचलता देख दुगने जोश से
उसकी फाँकों में अपनी जीभ से खेलना शुरू कर दिया....
मुस्कान भी तैयार होकर मैदान में आ गयी.. उसने सुनील की पैंट खोली और उसको खींच कर घुटनों से नीचे कर
दिया.. वो सुनील की टाँगों के नीचे कम्बल पर अपने
चूतड़ टिका कर बैठ गयी और सुनील के अंडरवियर में
अपना हाथ डालकर उसका लंड बाहर निकल लिया.. लंड
ऊपर उठने की कोशिश कर रहा था.. पर जोर से पकड़े हुये
मुस्कान ने थोड़ा ऊँचा उठाकर उसको अपने होंटों में ले लिया.. लंड उसको गले से नीचे उतारना नहीं आता था..
उसने सुपाड़े को ही मुश्किल से मुँह में भर लिया और
उसका दूध पीने लगी.. सुनील की हालत
बुरी होती जा रही थी.. इस तरह
का उसका भी पहला अनुभव था और अपने दोनों हाथों में
लड्डू और लंड मुस्कान के मुँह में.. सुनील को अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था..
दिव्या ने अदिति की चूत को चूसते-चूसते
ही अपना पैर सीधा किया और मुस्कान की चूत से
लगा दिया.. मुस्कान ने झट उसका अँगूठा अपनी चूत में
सेट कर लिया और उठक-बैठक लगाने लगी..
दिव्या साथ ही साथ सुनील की जाँघों पर हाथ फेर रही थी.. सुनील अदिति की छातियों पर से हटा और
मुस्कान को नीचे लिटा दिया, उसने मुस्कान
की टाँगों को ऊपर उठा कर खोल दिया.. मुस्कान तो इस
एक्शन के लिये कब की तरस रही थी.. उसने झट से
अपनी चूत को अपने एक हाथ की उँगलियों से खोलकर
दिखाया.. मानो कह रही हो.. देखिये सर.. कितनी प्यारी है.. सच में ही उसकी चूत की बनावट
गजब की थी..
सुनील ने अपनी पैंट को उतार फैंका और
अदिति को मुस्कान के सर की तरफ आने को कहा..
अदिति और दिव्या दोनों उधर आ गयी.. सुनील के
कहने पर अदिति ने उसकी दोनों टाँगे पकड़ ली और दिव्या ने उसका मुँह बंद कर लिया.. अपने मुलायम
हाथों से...
"देखना एक बार दर्द होगा.. फिर मजा ही मजा है.." कहते
ही सुनील ने अपना लंड चूत की दीवारों से लगाया और
जोर लगा दिया.. मुस्कान ने मारे दर्द के
दिव्या की हथेली को काट खाया.. दिव्या दर्द से कराह
उठी उसने तुंरत ही मुस्कान के मुँह से अपना हाथ
हटा लिया और उसकी छातियों को मसलने लगी.. अदिति अब तक ऊँगली अपनी चूत में डाल चुकी थी..
बहुत अधिक दर्द होने पर भी मुस्कान ने अपने
आपको काबू में रखा ये सोचकर की कहीं सुनील
उसको छोड़ कर अदिति को ना पकड़ लें.. दर्द शांत
होने पर अदिति और दिव्या ने मुस्कान को छोड़
दिया और एक दुसरे की चूत में ऊँगली डाल कर तेजी से चलाने लगी... सुनील के लंड के लिये खुद को तैयार करने
लगी...
मुस्कान से ज्यादा देर नहीं हुआ.. वो ३-४ मिनट में ही ढेर
हो गयी और लंड को बाहर निकालने की जिद करने
लगी...
सुनील ने लंड बाहर निकाल लिया और अदिति को कुतिया बना लिया... सुनील उसके ऊपर
चढ़ बैठा... अदिति की चूत गीली होकर टपक
रही थी....
सुनील ने अदिति की गांड को अपनी जाँघों के बीच
दबा लिया... उसका सर कम्बल पर झुका हुआ था... सुनील
के कहने पर दिव्या उसके मुँह के दोनों और अपनी टाँगे फैलाई और लेट कर अदिति का मुँह अपनी चूत पर रख
दिया... अदिति उसकी चूत को चाटने लगी.... मुस्कान
ने अदिति के नीचे घुसकर उसकी चूचियों को अपने
मुँह में दबा लिया... सुनील ने सब सेट करके
दिव्या को उसका मुँह अपनी चूत पर दबाने को कहा..." उम्म्म्म्म्म्म!" जैसे ही सुनील के लंड ने अदिति की चूत को चीर कर रास्ता बनाया.. उसने
हिलने और चीखने की लाख कोशिश की पर ना वह
हिल सकी और ना ही चीख सकी... लंड धीरे-धीरे झटके
लेता हुआ उसकी चूत में पैबस्त हो गया... अदिति मन
ही मन पछता रही थी.. पर अब पछताए होत क्या...
उसकी चीखें दिव्या की चूत में ही गुम होती गयी... तब तक जब तक की उसको मजा नहीं आने लगा और
वो अपनी गांड से पीछे धक्के लगाने लगी.. सुनील के
इशारे पर दिव्या ने अदिति का मुँह आजाद कर दिया...
अब चीखों की जगह उसके मुँह से कामुक
सिसकारियाँ निकल रही थी.. मुस्कान से उसका मजे
लेना ना देखा गया.. वह बाहर निकली और बैठकर अपनी चूत में ऊँगली घुसाई..
गीली ऊँगली अदिति की कमर पर से लेजाकर
उसकी गांड में घुसाने लगी... सुनील मुस्कान की कोशिश
को समझ गया..
उसने अदिति को सीधा कर दिया.. मुस्कान की तरह
ही उसकी टाँगे उठाई और फिर से उसकी चूत में लंड से धक्के मारने लगा.. अब मुस्कान के लिये गांड में दर्द
करना आसन था.. उसने अपनी ऊँगली नीचे से उसकी गांड
में ठूस दी... पर इसने एक बार दर्द देकर अदिति के मजे
को और बढा दिया... एक दो मिनट के बाद ही वह
भी चूत रस से नहा उठी.. सुनील
को अभी दिव्या को भी निपटाना था..
अदिति को छोड़ कर सुनील ने दिव्या को अपने नीचे
दबा लिया... उसने बाकि दोनों को उठकर
दिव्या को भी पकड़ने को कहा... पर दोनों निढाल
हो चुकी थी... नीचे लेटी हुयी दिव्या की कमर के नीचे
से हाथ निकाल कर सुनील ने खुद ही उसको काबू में कर
लिया... दुसरे हाथ से सुनील ने लंड को चूत के छेद पर सेट करके उस हाथ से दिव्या का मुँह दबा लिया... "बस एक
बार..." अपनी बात को अधुरा ही छोड़ते हुये सुनील ने जैसे
ही अपने लंड का दबाव दिव्या की चूत पर बढाया.. वह
उन दोनों से ज्यादा आसानी के साथ सर्रर्र्र से चूत में
उतरता चला गया... सिर्फ एक बार दिव्या की आँखें
पथरायीं.. और वो नीचे से अपने चूतड़ उचकाने के लिये... सुनील समझ गया.. इसका मुँह बंद करनातो बेवकूफी है...
उसने मुँह से हाथ हटाकर दिव्या की चूचियों पर रख
दिया... और उन्हें मसलने लगा... दिव्या तो उन दोनों से
भी ज्यादा मजे दे रही थी... हालाँकि वो अभी भी कुछ-
कुछ शर्मा रही थी पर उसके चूतडों की थिरकन सुनील
के लंड के आगे-पीछे होने की स्पीड से बिलकुलमैच कर रही थी... करीब ३० मिनट से लगातार अलग-अलग
चूतों पर सवार सुनील का लंड बौखला गया था...
ऐसा मजा तो उसको कभी मिला ही नहीं... आखिरकार
वह दिव्या की चूत से हार गया... और बाहर निकल कर
दिव्या के पेट को अपने रस से मालामाल कर दिया...
सुनील ने दिव्या के होंट मुँह में लेकर जैसे ही उसको जोर से पकड़ा... वह भी आँखें बंद करते हुये सुनील से नाजुक बेल
की भांति लिपट गयी... आखिरकार उसकी चूत ने
भी कम्बल पर अपने निशान छोड़ दिये... सुनील
का काम ख़तम होते देख वो दोनों भी उससे लिपटगयी
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