मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी भाग-12
अगले दिन सुबह-सुबह जब दिशा शमशेर और अजीत के लिए चाय देने आयी तो अजीत को वहाँ ना पाकर वो बहुत खुश हुयी, क्यूँकी वो अकेली थी; वाणी सोयी हुयी थी...
पूरे २४ घंटे से शमशेर ने उसको छुआ नहीं था,"आपके दोस्त कहाँ गये?"
शमशेर ने उसको देखते ही अपनी बाँहों में उठा लिया... दिशा उससे लिपट गयी... उसके साथ के बिना दिशा को एक-एक पल अधुरा सा लगता था...
जी भर कर उसके चेहरे को चूमने के बाद बोला," उसको भी ड्यूटी करनी है भाई! वैसे कोई काम था क्या? ... और वाणी नहीं आयी ऊपर तेरे साथ!"
वाणी: आपका उसके बिना, और उसका आपके बिना दिल ही नहीं लगता. मैं तो बस ऐसे ही काँटा बनी हुयी हूँ!...... वो सोयी हुयी है...
शमशेर: सोयी हुयी है... स्कूल नहीं जाना क्या?
दिशा: नहीं!
शमशेर: क्यूँ?
दिशा संकुचाती हुयी सी...," बस... ऐसे ही!"
शमशेर: ऐसे ही का क्या मतलब है? आज तो स्कूल में बैस्ट ड्रेस कम्पटीशन भी है ना!
दिशा: हाँ........ इसीलिए तो...
शमशेर: तो तुम्हारे बिना क्या वहाँ भूत अवार्ड लेंगे? चलो उसको उठा कर जल्दी तैयार होने को कहो!
दिशा, अपना सर नीचा करके.... " वो.... हमारे पास ड्रेस नहीं है!
"उसके चेहरे से कम्पटीशन में भाग ना ले सकने की मजबूरी साफ़ झलक रही थी...
शमशेर: तो ये बात है... मुझे क्यूँ नहीं बोला... मैं क्या कुछ लगता नहीं हूँ... तुम्हारा किरायेदार हूँ आखिर!
दिशा ने अपने हाथ का मुक्का बना कर उसको दिखाया और उसकी छाती पर सर टिका दिया...
शमशेर: चलो, अकेलेपन का फायदा उठाओ; कपड़े निकाल दो आज तो!
दिशा: अभी!.... मन् तो उसका भी मचल रहा था!
शमशेर: हाँ अभी!
दिशा आँखें बंद करके बेड पर लेट गयी... खुले कमीज में भी उसकी छातियों का कसाव गजब ढा रहा था...
शमशेर अन्दर गया और एक डिब्बा उसके पेट पर रख दिया!
दिशा ने आँखें खोल दी," क्या है ये?"
शमशेर: चलो तैयार हो जाओ! स्कूल चलना है... वाईट जींस टॉप तुम्हारे लिये है और वाणी के लिये वाईट स्कर्ट टॉप!
दिशा शमशेर से लिपट गयी... उसकी आँखों से निकले आँसू शमशेर को "आई लव यू" बोल रहे थे; उसकी केयर करने के लिये....
दिशा और वाणी जब नयी ड्रेस में स्कूल पहुँची तो मानो स्कूल का हर कोना उनकी तरफ खींचा आया था.. दोनों स्वर्ग से उतरी अप्सरायें लग रही थी....
लड़कियाँ उनको हैरत से देख रही थी, जैसे उनको पहचाना ही ना हो! इस तरह सबको अपनी और देखता पाकर दोनों फूली नहीं समां रही थी...
दिशा तो पहले ही लड़कों के लिये क़यामत थी... आज तो लड़कियाँ भी जैसे उसको दिल दे बैठी हों!
सफ़ेद टाईट टॉप में उसकी छातियाँ इस कदर इस्पष्ट दिखाई दे रही थी... की बाहर से "ऐस ऐ गेस्ट" आये बुड्ढों तक की आँखें बाहर निकलने को हो गयी! चारों और से सीटियाँ ही सीटियाँ कांटेस्ट शुरू होने से पहले ही ये ऐलान कर रही थी की आज का विनर कौन होगा.
उसका टॉप उसकी कमर को पूरा नहीं ढक पा रहा था... उसकी नाभि के कटाव पर सभी "भूखे कुत्तों" की... और छके हुये "बूढें कुत्तों" की भी जीभ लपलपा रही थी.. वह जिधर भी जाती... सभी आँखें वही मुड़ जाती...
दिशा से ये सब सहन नहीं हो रहा था... अपनी ख़ुशी पर काबू पाना उसके वश में नहीं था...
उसके पिछवाड़े की गोलाईयाँ इतनी गोल थी मानो उन्हें किसी ड्रोइंग एक़िप्मैन्ट की सहायता से निशान लगाकर तराशा गया हो... सब कुछ सही-सही..... शी वॉस जस्ट ऐ परफैक्ट लेडी ऑन अर्थ; आई बिलीव!
उधर वाणी भी कम कहर नहीं ढा रही थी... सब कुछ दिशा जैसा ही, नपा तुला! पर दिशा के मुकाबले उतनी 'जवान' नहीं होने की वजाह से वो आँखों को अपने से लपेट नहीं पा रही थी... फिर भी वो बहुत खुश थी... उसके सर जो उसको देख रहे थे...! और उस नादान दीवानी को क्या चाहिये था...
कम्पटीशन शुरू हो गया... बहुत सी लड़कियाँ तो दिशा और वाणी को देखकर स्टेज पर ही नहीं चढी... और जो चढी वो भी दर्शकों की हँसी का पात्र बनकर रह गयी.
अंत में दो ही नाम मैदान में रहे.......बताने की जरुरत नहीं है.
मिस्टर जज मंच पर चढ़े और उन्होंने बोलना शुरू किया... दोनों की खुबसूरती का नशा उस पर से अभी उतरा नहीं था...
"प्यारे बच्चो, टीचर्स और इस कम्पटीशन की शोभा बढ़ाने आये मेहमानों," कहते हैं की सुन्दरता मन की होती है; तन की नहीं, पर आज के.. ...... वगैरा वगैरा......!
अंत में मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ की २ बच्चियों को किसी भी तरह से तन और उनके द्वारा पहनी गयी खुबसूरत ड्रेसेस के आधार पर कहीं से भी एक दूसरी से कम या ज्यादा नहीं ठहराया जा सकता... और जब ये दोनों चीजे बराबर हैं तो हमें चाहिये हम उनके मन की सुन्दरता से उन्हें तौलें! अब क्यूँकी मैं इनको जनता नहीं हूँ इसीलिए दिशा और वाणी में से विजेता चुन-ने के लिये में प्रिंसिपल को मंच पर इनवाईट करना चाहूँगा...
प्रिंसिपल तो छुट्टी पर थी, स्टाफ वालों ने टीचर्स इन्चार्ज शमशेर को मंच पर धकेल ही दिया... हाँ धकेलना ही कहेंगे क्यूँकी एक भंवरे को अपने दो फूलों में से एक को छाती में लगाना था और दुसरे को पैरों पर गिराना था.....
कैसी घड़ी आ गयी... इससे अच्छा तो वो ड्रेसेस का सर्प्राइस ना ही देने की सोचता तो अच्छा था... शमशेर बहके क़दमों से स्टेज पर चढा.......
शमशेर ने स्टेज पर चढ़कर दोनों परियों को देखा... दोनों इतरा रही थी... अपने आप पर... उसी के कारण... ना वो ड्रेस लेकर आता ना ही वो स्कूल आती! ये सब उसका खुद का किया धरा है....
दोनों को ही अपनी-अपनी जीत का विश्वास था... दोनों को यकीन था की शमशेर सिर्फ उसी से प्यार करता है.... दोनों ही बस भागने को तैयार बैठी थी... अपना नाम बोलते ही भाग कर स्टेज पर जाने के लिये...
जब सीटियों का शोर तेज हो गया तो शमशेर को होश आया..... उससे और कुछ ना बोला गया..... उसने 'वाणी!' कहा और स्टेज से उतर गया....
वाणी भागती हुयी आयी और सर से लिपट गयी... उसकी आँखों में चमक थी, जीत की, अपनी दीदी से जीत की... पर शमशेर का ध्यान दिशा पर गया... वो क्लास की और जा रही थी... आँसू पौछते हुये !
इनाम लेकर वाणी किसी गुड़िया की तरह उछल रही थी... सबको दिखा रही थी... शमशेर सीधा ऑफिस में चला गया... उसने मन देखा था... तन नहीं!
वाणी भागती हुयी ऑफिस में आयी और अपना इनाम सर को दे दिया,"लो सर"!
शमशेर ने वाणी से कहा, "तुम्हारा इनाम है, तुम्ही रखो!"
वाणी ने शमशेर को उसी की बात याद दिला दी, "नहीं सर, मेरा नहीं है..... अपना है" !
शमशेर का गला रुंध गया... वो कुछ भी ना बोल पाया !
"एक बात कहूँ सर जी!"
"हम्म..."
"आप मुझसे ही शादी करोगे ना....."
तभी छुट्टी हो गयी और 'बच्चियाँ' घर जाने लगी! वाणी ने दिशा को हर जगाह ढूँढा पर वो नहीं मिली तो अकेले ही घर चली गयी....
घर जाते ही वाणी ने दिशा को देखा वो खाट पर बैठी हुयी थी और गुस्से में लग रही थी.... उसने ड्रेस भी चेन्ज कर ली थी..
वाणी: दीदी आप जल्दी क्यूँ आ गयी?
दिशा ने मुँह बना लिया, वो कुछ ना बोली...
वाणी: दीदी ये देखो....... अपना इनाम... उसने ट्रोफी दिशा के हाथ में देनी चाही...
दिशा पहले ही सुलग रही थी.... उसने एक चाँटा वाणी के मुँह पर दे मारा!
वाणी उसको एकटक देखती रह गयी, उसकी नजरें जमीन पर पड़ी ... दिशा की नयी ड्रेस जमीन पर पड़ी थी... फैंकी हुयी सी....
वाणी ने प्यार से ड्रेसेस को देखा... वो जींस ट्राई करना चाहती थी पर उसने उनकी तह करके अलमारी में रख दिया..
दिशा ने फिर से उनको निकाल कर फैंक दिया... जमीन पर!
वाणी: क्या हुआ दीदी? ऐसा क्यूँ कर रही हो, सर ने कितने प्यार से दी है!
दिशा ने वाणी को अपनी बाँहों में जकड़ लिया और रोने लगी.... तभी सर आ गये और सीधे ऊपर चले गये...
वाणी: दीदी, ऊपर चलें!
दिशा: नहीं तू जा, मैं नहीं जाती और लेट गयी..... वाणी भी उसके साथ ही लेट गयी, उसके पेट पर पैर रखकर....
उधर नेहा काफी देर तक स्कूल में ही खड़ी रही.... सर ने उसको आज छुट्टी के बाद लैब में आने को कहा था... उसका इलाज करने के लिये... पर जब सर सीधे चले गये तो वो भी उसके पीछे-पीछे चली गयी.... अपनी चूत का इलाज करवाने के लिये...
दिशा के घर जाते ही उसने दोनों को नीचे देखा तो वो उन्ही के पास चली गयी...
"सर ऊपर हैं क्या?"
वाणी: हाँ! अभी आये हैं...
नेहा: दिशा! चल, मुझे कुछ सवाल समझने हैं...
दिशा: नहीं तू जा! मैं थकी हुयी हूँ...
नेहा मन् ही मन् खिल सी गयी और सीडियाँ चढ़ने लगी!
नेहा ने ऊपर आते ही शमशेर को खिड़की से देखा.... वो अच्छे मूड में नहीं लग रहे थे.... "सर जी!"
शमशेर ने उसको ऐसे ही नजर भर कर देखा... वो आज जबरदस्त सज कर आयी थी... पंजाबी कुर्ते और पजामे में ... लाल रंग का कुर्ता छातियों पर से कसावट लिये हुये... और मेल खाते सफ़ेद रंग का पैरलल पजामा... जांघों से सटा हुआ सब, किसीमें भी उत्तेजना जगाने के लिये काफी थे... ऊपर से लो कट गला होने की वजाह से उसकी मस्त पहाड़ियों के बीच दिख रही गहरी घाटी किसी को भी ललचाने और उसका रेप तक करने पर विवश कर सकती थी... फिर नेहा तो खुद ही अपना रेप करवाने को व्याकुल थी.....
"सर, मुझे वो..... एक्सर-साईज करनी थी...." नेहा ने तड़पते हुये कहा..
शमशेर जानता था, उसको कौनसी एक्सर-साईज करनी है..," प्लीस नेहा, आज मूड नहीं है... कल आना!"
"और सर ...... वो! ....... ईलाआज..!"
"हाँ-हाँ उसी की बात कर रहा हूँ!"..... "वैसे आज तुम बहुत सेक्सी लग रही हो".... सेक्स का पुजारी हो चूका शमशेर अपना मूड ठीक करने लग गया था अब...
"तो सर! .... मैं जाऊं!"
"हाँ.... जाओ.... एक मिनट इधर आना..."
नेहा उसके करीब जाकर खड़ी हो गयी.... शमशेर ने अपने हाथ से उसके माँसल नितम्ब को अपने हाथ में लिया और थोड़ा सहलाकर दबा दिया...!"
"आह्ह्ह... सर... पूरा इलाज कर दो ना.... प्लीस..." नेहा तड़प कर बोली.
"आओ.. इधर बैठो!" शमशेर को उसकी जवानी पर तरस आ गया..... और.... अपने 'जवान' पर.... जो अब तक कई झटके खा चूका था..
नेहा उसके साथ बेड पर बैठ गयी.... उसने अपनी बुक और कॉपी खोल कर पेन उनके बीच में रखा और एक तरफ रख दी... फिर डॉ. शमशेर को देखने लगी... अपने इलाज के लिये!
शमशेर: कहो क्या प्रॉब्लम है....
नेहा: जी दर्द होता है...!
शमशेर: कहाँ....?
नेहा ने अपनी छाती पर गले से थोड़ा सा नीचे हाथ रखा," सर यहाँ"
शमशेर: सही-सही बताओ!
नेहा ने अपना हाथ थोड़ा और नीचे रख लिया, पर अभी भी वो उसकी चूचियों तक नहीं पहुँचा था... फिर बोली" सर! मैं नहीं बता सकती.... कई जगाह दर्द है!
शमशेर: अगर मैं हाथ लगाकर पूछूं तो बता दोगी की वहाँ दर्द है की नहीं?
नेहा की आँखें बंद हो गयी... ऐ.सी. में भी पसीना निकलने लगा.... वो कुछ ना बोली...
शमशेर: बोलो, फिर बता दोगी!
नेहा: सर आपको सब पता है.... आप जल्दी इलाज कर दो बस... मुझसे रहा नहीं जाता....
शमशेर: मुझे कैसे पता?
नेहा: जी.... वो.. आप हाथ लगाकर पूछ लीजिये... मैं बता दूँगी... कहाँ-कहाँ दर्द है.
शमशेर मानो एक डॉक्टर की तरह ही उसका जिस्म चेक करने लग गया...!
उसने अपना हाथ नेहा की बायीं चूची की साईड में रख दिया," यहाँ दर्द हो रहा है क्या?
नेहा: हायईईईई सर.... हाँ सर होता है... पर आपके छूने से दर्द मिट जाता है और मजा आने लगता है..
शमशेर ने सीढ़ियों की और झाँका और उसकी बाँयी चूची के अनार के दाने जैसे निप्पल को सहला दिया.... वो खड़ा था... तैयार! शमशेर ने अपनी दो उँगलियों के बीच में उस निप्पल को हलके से रगड़ा... और शमशेर के पूछने से पहले ही नेहा कराह उठी..." सर बहुत होता है यहाँ... और करो ना... दुसरे को भी... मसल दो सर!"
शमशेर ने उसकी दोनों चूचियों को अपने हाथों में भरकर देखा, वो उसकी बड़ी-बड़ी हथेलियों में बिलकुल छुप गयी... नेहा सिसक पड़ी... वो अपने दोनों हाथों को शमशेर के हाथों के ऊपर से ही दबाने लगी... "सर... थोड़ा जोर से...!
इतने से ही वो पूरी तरह गरम हो गयी थी. शमशेर ने उसको बेड से नीचे खड़ा कर दिया.. और उसके दोनों नितम्बों (चूतड़) को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर विपरीत दिशा में खींच दिया... दायाँ वाला दायी और... बायाँ वाला बायीं और... नेहा को उस खिचाव का झटका अपनी चूत तक महसूस हुआ... शमशेर के हर 'चेक' पर वो 'मेट' हो रही थी.... उसकी हालत ऐसी हो गयी जैसे पानी बिन मछली... नेहा की मछली... शमशेर के लुंड के पानी को पीने के लिये तड़प गयी... अपनी चूत को बुरी तरह दबाते हुये वो बोली.... "सर... यहाँ तो चेक करिये....!
शमशेर ने उसपर बिजली गिरा दी, बोला "यहाँ पर ये सब नहीं हो सकता... ! कल स्कूल में देखेंगे" उसको अब दिशा से डर लगने लगा था.
नेहा ने शमशेर का हाथ पकड़कर अपने आप ही... गीली पर फिर भी प्यासी मछली के होंटो से लगा दिया, "अभी कुछ करो सर, मैं मर जाउंगी!"
शमशेर: मेरी गाड़ी में बैठकर चल सकती हो... जहाँ में ले जाऊं...
नेहा: शमशेर के हाथ को अपनी चूत पर रगड़ते हुये," कहीं भी ले चलो सर... मुझे भगा ले चलो यहाँ से... मैं अब आपके बिना नहीं रह सकती... मेरी चूउउऊ...
वो बीच में ही रुक गयी... "क्या कह देती मैं भी....
शमशेर: चूउउऊ क्या?
नेहा: सर कुछ नहीं; चलीये आप...
शमशेर: कुछ नहीं क्या... क्या कह रही थी तुम...
नेहा: सर..... चूउउउत... इस्स्सह्ह्ह्ह्ह!
उसने फिर आँखें बंद कर ली...
शमशेर: ऐसा करो, यहाँ से निकलो... और मुझे गाँव के बाहर भिवानी रोड पर मिलना.... मैं १५ मिनट में आता हूँ...
नेहा कसमसाती हुयी जल्दी से चली गयी......
गाँव से बाहर निकलते ही शमशेर को किसी ने हाथ दे दिया; वो शमशेर को जानता था, पर शमशेर उसको नहीं...
शमशेर ने गाड़ी रोक कर शीशा नीचे किया... हाँ...
अनजान: नमस्ते मास्टर जी...
शमशेर: जी नमस्कार!
अनजान: कहाँ जा रहे हैं मास्टर जी...
शमशेर: भिवानी... क्यूँ?
अनजान: मास्टर जी, मेरी बिटिया को भिवानी जाना है.. उसकी बुआ के पास, परसों होली है फिर तो वो जा नहीं पायेगी.... मैं यहाँ इसी लिये खड़ा था की कोई साधन मिल जाये... अगर आप उसको... भिवानी तक छोड़ दें तो बड़ी मेहरबानी होगी...
अब शमशेर मना कैसे करता की उसको तो भिवानी जाना ही नहीं है... वो उसको टालने के इरादे से बोला... देखिये मुझे रास्ते में रुकना है ... और टाइम लग सकता है...
अनजान: कोई बात नहीं सर... कितने बजे ही पहुँचा देना... आगे की तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है... अरी कविता! भाग कर आ... तुम्हारे सर जा रहे हैं भिवानी..
फिर शमशेर को बोलने का मौका ही ना मिला... एक मोटी गांड वाली करीब १९ साल की लड़की भागती हुयी आयी... और पिछली खिड़की खोल कर बैठ गयी... उसका बाप राम-राम करके चला गया...
"अब क्या करुँ... नेहा को वहीं छोड़ दूं.... नहीं-नहीं... ये तो तरसा कर मारने जैसा होगा... उसने उस लड़की से कहा," आगे एक लड़की और खड़ी है... उसको जरा हॉस्पिटल में दिखा कर लाना है... मैं तुम्हें कहाँ छोड़ दूं..."
कहीं भी चोद देना सर," वो लड़की मस्ताई हुयी थी... उसने जान बूझ कर 'चोद' कहा... 'छोड़ की बजाय'...
तभी शमशेर को नेहा दिखायी दी.. वो गाँव से दूर जा चुकी थी... ताकि कोई उसको सर के साथ जाते देख ना ले! वो बड़ी बेचैन दिखायी दे रही थी...
शमशेर के गाड़ी रोकते ही वो जल्दी से आगे आ बैठी और बैठते ही बोली... जल्दी चलीये सर... मेरी चूत तड़प रही है... शमशेर को उससे ऐसी उम्मीद ना थी... नेहा ने कविता को नहीं देखा था... नेहा की आवाज सुनते ही कविता चौंक पड़ी," नेहा... तू भीइइई.. !
नेहा तो हक्की बक्की रह गयी. ये कैसे आयी, क्या ये भी सर से इलाज... क्या दोनों को..
शमशेर: अब जो हो गया सो हो गया! कविता ये बताओ इस 'तू भी का क्या मतलब है'... क्या तू भी इन चक्करों में रहती है.
कविता कातिल मुस्कान से हँसते हुये बोली," इन् चक्करों में तो नहीं... पर आपके चक्कर में तो हर कोई रहती है... पर मुझे ये नहीं पता था की ये शरीफ भी... " कहकर वो फिर हँसने लगी.
अब शमशेर को कोई टेंशन ही नहीं थी... उसके बाप को तो वो पहले ही कह चुका था की टाइम लगेगा... उसने गाड़ी दायी और घुमा कर एक कच्चे रास्ते की और उतार दी... कविता ने कुछ नहीं पूछा... वो निश्चिन्त थी और रोमांचित भी...
पूरे २४ घंटे से शमशेर ने उसको छुआ नहीं था,"आपके दोस्त कहाँ गये?"
शमशेर ने उसको देखते ही अपनी बाँहों में उठा लिया... दिशा उससे लिपट गयी... उसके साथ के बिना दिशा को एक-एक पल अधुरा सा लगता था...
जी भर कर उसके चेहरे को चूमने के बाद बोला," उसको भी ड्यूटी करनी है भाई! वैसे कोई काम था क्या? ... और वाणी नहीं आयी ऊपर तेरे साथ!"
वाणी: आपका उसके बिना, और उसका आपके बिना दिल ही नहीं लगता. मैं तो बस ऐसे ही काँटा बनी हुयी हूँ!...... वो सोयी हुयी है...
शमशेर: सोयी हुयी है... स्कूल नहीं जाना क्या?
दिशा: नहीं!
शमशेर: क्यूँ?
दिशा संकुचाती हुयी सी...," बस... ऐसे ही!"
शमशेर: ऐसे ही का क्या मतलब है? आज तो स्कूल में बैस्ट ड्रेस कम्पटीशन भी है ना!
दिशा: हाँ........ इसीलिए तो...
शमशेर: तो तुम्हारे बिना क्या वहाँ भूत अवार्ड लेंगे? चलो उसको उठा कर जल्दी तैयार होने को कहो!
दिशा, अपना सर नीचा करके.... " वो.... हमारे पास ड्रेस नहीं है!
"उसके चेहरे से कम्पटीशन में भाग ना ले सकने की मजबूरी साफ़ झलक रही थी...
शमशेर: तो ये बात है... मुझे क्यूँ नहीं बोला... मैं क्या कुछ लगता नहीं हूँ... तुम्हारा किरायेदार हूँ आखिर!
दिशा ने अपने हाथ का मुक्का बना कर उसको दिखाया और उसकी छाती पर सर टिका दिया...
शमशेर: चलो, अकेलेपन का फायदा उठाओ; कपड़े निकाल दो आज तो!
दिशा: अभी!.... मन् तो उसका भी मचल रहा था!
शमशेर: हाँ अभी!
दिशा आँखें बंद करके बेड पर लेट गयी... खुले कमीज में भी उसकी छातियों का कसाव गजब ढा रहा था...
शमशेर अन्दर गया और एक डिब्बा उसके पेट पर रख दिया!
दिशा ने आँखें खोल दी," क्या है ये?"
शमशेर: चलो तैयार हो जाओ! स्कूल चलना है... वाईट जींस टॉप तुम्हारे लिये है और वाणी के लिये वाईट स्कर्ट टॉप!
दिशा शमशेर से लिपट गयी... उसकी आँखों से निकले आँसू शमशेर को "आई लव यू" बोल रहे थे; उसकी केयर करने के लिये....
दिशा और वाणी जब नयी ड्रेस में स्कूल पहुँची तो मानो स्कूल का हर कोना उनकी तरफ खींचा आया था.. दोनों स्वर्ग से उतरी अप्सरायें लग रही थी....
लड़कियाँ उनको हैरत से देख रही थी, जैसे उनको पहचाना ही ना हो! इस तरह सबको अपनी और देखता पाकर दोनों फूली नहीं समां रही थी...
दिशा तो पहले ही लड़कों के लिये क़यामत थी... आज तो लड़कियाँ भी जैसे उसको दिल दे बैठी हों!
सफ़ेद टाईट टॉप में उसकी छातियाँ इस कदर इस्पष्ट दिखाई दे रही थी... की बाहर से "ऐस ऐ गेस्ट" आये बुड्ढों तक की आँखें बाहर निकलने को हो गयी! चारों और से सीटियाँ ही सीटियाँ कांटेस्ट शुरू होने से पहले ही ये ऐलान कर रही थी की आज का विनर कौन होगा.
उसका टॉप उसकी कमर को पूरा नहीं ढक पा रहा था... उसकी नाभि के कटाव पर सभी "भूखे कुत्तों" की... और छके हुये "बूढें कुत्तों" की भी जीभ लपलपा रही थी.. वह जिधर भी जाती... सभी आँखें वही मुड़ जाती...
दिशा से ये सब सहन नहीं हो रहा था... अपनी ख़ुशी पर काबू पाना उसके वश में नहीं था...
उसके पिछवाड़े की गोलाईयाँ इतनी गोल थी मानो उन्हें किसी ड्रोइंग एक़िप्मैन्ट की सहायता से निशान लगाकर तराशा गया हो... सब कुछ सही-सही..... शी वॉस जस्ट ऐ परफैक्ट लेडी ऑन अर्थ; आई बिलीव!
उधर वाणी भी कम कहर नहीं ढा रही थी... सब कुछ दिशा जैसा ही, नपा तुला! पर दिशा के मुकाबले उतनी 'जवान' नहीं होने की वजाह से वो आँखों को अपने से लपेट नहीं पा रही थी... फिर भी वो बहुत खुश थी... उसके सर जो उसको देख रहे थे...! और उस नादान दीवानी को क्या चाहिये था...
कम्पटीशन शुरू हो गया... बहुत सी लड़कियाँ तो दिशा और वाणी को देखकर स्टेज पर ही नहीं चढी... और जो चढी वो भी दर्शकों की हँसी का पात्र बनकर रह गयी.
अंत में दो ही नाम मैदान में रहे.......बताने की जरुरत नहीं है.
मिस्टर जज मंच पर चढ़े और उन्होंने बोलना शुरू किया... दोनों की खुबसूरती का नशा उस पर से अभी उतरा नहीं था...
"प्यारे बच्चो, टीचर्स और इस कम्पटीशन की शोभा बढ़ाने आये मेहमानों," कहते हैं की सुन्दरता मन की होती है; तन की नहीं, पर आज के.. ...... वगैरा वगैरा......!
अंत में मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ की २ बच्चियों को किसी भी तरह से तन और उनके द्वारा पहनी गयी खुबसूरत ड्रेसेस के आधार पर कहीं से भी एक दूसरी से कम या ज्यादा नहीं ठहराया जा सकता... और जब ये दोनों चीजे बराबर हैं तो हमें चाहिये हम उनके मन की सुन्दरता से उन्हें तौलें! अब क्यूँकी मैं इनको जनता नहीं हूँ इसीलिए दिशा और वाणी में से विजेता चुन-ने के लिये में प्रिंसिपल को मंच पर इनवाईट करना चाहूँगा...
प्रिंसिपल तो छुट्टी पर थी, स्टाफ वालों ने टीचर्स इन्चार्ज शमशेर को मंच पर धकेल ही दिया... हाँ धकेलना ही कहेंगे क्यूँकी एक भंवरे को अपने दो फूलों में से एक को छाती में लगाना था और दुसरे को पैरों पर गिराना था.....
कैसी घड़ी आ गयी... इससे अच्छा तो वो ड्रेसेस का सर्प्राइस ना ही देने की सोचता तो अच्छा था... शमशेर बहके क़दमों से स्टेज पर चढा.......
शमशेर ने स्टेज पर चढ़कर दोनों परियों को देखा... दोनों इतरा रही थी... अपने आप पर... उसी के कारण... ना वो ड्रेस लेकर आता ना ही वो स्कूल आती! ये सब उसका खुद का किया धरा है....
दोनों को ही अपनी-अपनी जीत का विश्वास था... दोनों को यकीन था की शमशेर सिर्फ उसी से प्यार करता है.... दोनों ही बस भागने को तैयार बैठी थी... अपना नाम बोलते ही भाग कर स्टेज पर जाने के लिये...
जब सीटियों का शोर तेज हो गया तो शमशेर को होश आया..... उससे और कुछ ना बोला गया..... उसने 'वाणी!' कहा और स्टेज से उतर गया....
वाणी भागती हुयी आयी और सर से लिपट गयी... उसकी आँखों में चमक थी, जीत की, अपनी दीदी से जीत की... पर शमशेर का ध्यान दिशा पर गया... वो क्लास की और जा रही थी... आँसू पौछते हुये !
इनाम लेकर वाणी किसी गुड़िया की तरह उछल रही थी... सबको दिखा रही थी... शमशेर सीधा ऑफिस में चला गया... उसने मन देखा था... तन नहीं!
वाणी भागती हुयी ऑफिस में आयी और अपना इनाम सर को दे दिया,"लो सर"!
शमशेर ने वाणी से कहा, "तुम्हारा इनाम है, तुम्ही रखो!"
वाणी ने शमशेर को उसी की बात याद दिला दी, "नहीं सर, मेरा नहीं है..... अपना है" !
शमशेर का गला रुंध गया... वो कुछ भी ना बोल पाया !
"एक बात कहूँ सर जी!"
"हम्म..."
"आप मुझसे ही शादी करोगे ना....."
तभी छुट्टी हो गयी और 'बच्चियाँ' घर जाने लगी! वाणी ने दिशा को हर जगाह ढूँढा पर वो नहीं मिली तो अकेले ही घर चली गयी....
घर जाते ही वाणी ने दिशा को देखा वो खाट पर बैठी हुयी थी और गुस्से में लग रही थी.... उसने ड्रेस भी चेन्ज कर ली थी..
वाणी: दीदी आप जल्दी क्यूँ आ गयी?
दिशा ने मुँह बना लिया, वो कुछ ना बोली...
वाणी: दीदी ये देखो....... अपना इनाम... उसने ट्रोफी दिशा के हाथ में देनी चाही...
दिशा पहले ही सुलग रही थी.... उसने एक चाँटा वाणी के मुँह पर दे मारा!
वाणी उसको एकटक देखती रह गयी, उसकी नजरें जमीन पर पड़ी ... दिशा की नयी ड्रेस जमीन पर पड़ी थी... फैंकी हुयी सी....
वाणी ने प्यार से ड्रेसेस को देखा... वो जींस ट्राई करना चाहती थी पर उसने उनकी तह करके अलमारी में रख दिया..
दिशा ने फिर से उनको निकाल कर फैंक दिया... जमीन पर!
वाणी: क्या हुआ दीदी? ऐसा क्यूँ कर रही हो, सर ने कितने प्यार से दी है!
दिशा ने वाणी को अपनी बाँहों में जकड़ लिया और रोने लगी.... तभी सर आ गये और सीधे ऊपर चले गये...
वाणी: दीदी, ऊपर चलें!
दिशा: नहीं तू जा, मैं नहीं जाती और लेट गयी..... वाणी भी उसके साथ ही लेट गयी, उसके पेट पर पैर रखकर....
उधर नेहा काफी देर तक स्कूल में ही खड़ी रही.... सर ने उसको आज छुट्टी के बाद लैब में आने को कहा था... उसका इलाज करने के लिये... पर जब सर सीधे चले गये तो वो भी उसके पीछे-पीछे चली गयी.... अपनी चूत का इलाज करवाने के लिये...
दिशा के घर जाते ही उसने दोनों को नीचे देखा तो वो उन्ही के पास चली गयी...
"सर ऊपर हैं क्या?"
वाणी: हाँ! अभी आये हैं...
नेहा: दिशा! चल, मुझे कुछ सवाल समझने हैं...
दिशा: नहीं तू जा! मैं थकी हुयी हूँ...
नेहा मन् ही मन् खिल सी गयी और सीडियाँ चढ़ने लगी!
नेहा ने ऊपर आते ही शमशेर को खिड़की से देखा.... वो अच्छे मूड में नहीं लग रहे थे.... "सर जी!"
शमशेर ने उसको ऐसे ही नजर भर कर देखा... वो आज जबरदस्त सज कर आयी थी... पंजाबी कुर्ते और पजामे में ... लाल रंग का कुर्ता छातियों पर से कसावट लिये हुये... और मेल खाते सफ़ेद रंग का पैरलल पजामा... जांघों से सटा हुआ सब, किसीमें भी उत्तेजना जगाने के लिये काफी थे... ऊपर से लो कट गला होने की वजाह से उसकी मस्त पहाड़ियों के बीच दिख रही गहरी घाटी किसी को भी ललचाने और उसका रेप तक करने पर विवश कर सकती थी... फिर नेहा तो खुद ही अपना रेप करवाने को व्याकुल थी.....
"सर, मुझे वो..... एक्सर-साईज करनी थी...." नेहा ने तड़पते हुये कहा..
शमशेर जानता था, उसको कौनसी एक्सर-साईज करनी है..," प्लीस नेहा, आज मूड नहीं है... कल आना!"
"और सर ...... वो! ....... ईलाआज..!"
"हाँ-हाँ उसी की बात कर रहा हूँ!"..... "वैसे आज तुम बहुत सेक्सी लग रही हो".... सेक्स का पुजारी हो चूका शमशेर अपना मूड ठीक करने लग गया था अब...
"तो सर! .... मैं जाऊं!"
"हाँ.... जाओ.... एक मिनट इधर आना..."
नेहा उसके करीब जाकर खड़ी हो गयी.... शमशेर ने अपने हाथ से उसके माँसल नितम्ब को अपने हाथ में लिया और थोड़ा सहलाकर दबा दिया...!"
"आह्ह्ह... सर... पूरा इलाज कर दो ना.... प्लीस..." नेहा तड़प कर बोली.
"आओ.. इधर बैठो!" शमशेर को उसकी जवानी पर तरस आ गया..... और.... अपने 'जवान' पर.... जो अब तक कई झटके खा चूका था..
नेहा उसके साथ बेड पर बैठ गयी.... उसने अपनी बुक और कॉपी खोल कर पेन उनके बीच में रखा और एक तरफ रख दी... फिर डॉ. शमशेर को देखने लगी... अपने इलाज के लिये!
शमशेर: कहो क्या प्रॉब्लम है....
नेहा: जी दर्द होता है...!
शमशेर: कहाँ....?
नेहा ने अपनी छाती पर गले से थोड़ा सा नीचे हाथ रखा," सर यहाँ"
शमशेर: सही-सही बताओ!
नेहा ने अपना हाथ थोड़ा और नीचे रख लिया, पर अभी भी वो उसकी चूचियों तक नहीं पहुँचा था... फिर बोली" सर! मैं नहीं बता सकती.... कई जगाह दर्द है!
शमशेर: अगर मैं हाथ लगाकर पूछूं तो बता दोगी की वहाँ दर्द है की नहीं?
नेहा की आँखें बंद हो गयी... ऐ.सी. में भी पसीना निकलने लगा.... वो कुछ ना बोली...
शमशेर: बोलो, फिर बता दोगी!
नेहा: सर आपको सब पता है.... आप जल्दी इलाज कर दो बस... मुझसे रहा नहीं जाता....
शमशेर: मुझे कैसे पता?
नेहा: जी.... वो.. आप हाथ लगाकर पूछ लीजिये... मैं बता दूँगी... कहाँ-कहाँ दर्द है.
शमशेर मानो एक डॉक्टर की तरह ही उसका जिस्म चेक करने लग गया...!
उसने अपना हाथ नेहा की बायीं चूची की साईड में रख दिया," यहाँ दर्द हो रहा है क्या?
नेहा: हायईईईई सर.... हाँ सर होता है... पर आपके छूने से दर्द मिट जाता है और मजा आने लगता है..
शमशेर ने सीढ़ियों की और झाँका और उसकी बाँयी चूची के अनार के दाने जैसे निप्पल को सहला दिया.... वो खड़ा था... तैयार! शमशेर ने अपनी दो उँगलियों के बीच में उस निप्पल को हलके से रगड़ा... और शमशेर के पूछने से पहले ही नेहा कराह उठी..." सर बहुत होता है यहाँ... और करो ना... दुसरे को भी... मसल दो सर!"
शमशेर ने उसकी दोनों चूचियों को अपने हाथों में भरकर देखा, वो उसकी बड़ी-बड़ी हथेलियों में बिलकुल छुप गयी... नेहा सिसक पड़ी... वो अपने दोनों हाथों को शमशेर के हाथों के ऊपर से ही दबाने लगी... "सर... थोड़ा जोर से...!
इतने से ही वो पूरी तरह गरम हो गयी थी. शमशेर ने उसको बेड से नीचे खड़ा कर दिया.. और उसके दोनों नितम्बों (चूतड़) को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर विपरीत दिशा में खींच दिया... दायाँ वाला दायी और... बायाँ वाला बायीं और... नेहा को उस खिचाव का झटका अपनी चूत तक महसूस हुआ... शमशेर के हर 'चेक' पर वो 'मेट' हो रही थी.... उसकी हालत ऐसी हो गयी जैसे पानी बिन मछली... नेहा की मछली... शमशेर के लुंड के पानी को पीने के लिये तड़प गयी... अपनी चूत को बुरी तरह दबाते हुये वो बोली.... "सर... यहाँ तो चेक करिये....!
शमशेर ने उसपर बिजली गिरा दी, बोला "यहाँ पर ये सब नहीं हो सकता... ! कल स्कूल में देखेंगे" उसको अब दिशा से डर लगने लगा था.
नेहा ने शमशेर का हाथ पकड़कर अपने आप ही... गीली पर फिर भी प्यासी मछली के होंटो से लगा दिया, "अभी कुछ करो सर, मैं मर जाउंगी!"
शमशेर: मेरी गाड़ी में बैठकर चल सकती हो... जहाँ में ले जाऊं...
नेहा: शमशेर के हाथ को अपनी चूत पर रगड़ते हुये," कहीं भी ले चलो सर... मुझे भगा ले चलो यहाँ से... मैं अब आपके बिना नहीं रह सकती... मेरी चूउउऊ...
वो बीच में ही रुक गयी... "क्या कह देती मैं भी....
शमशेर: चूउउऊ क्या?
नेहा: सर कुछ नहीं; चलीये आप...
शमशेर: कुछ नहीं क्या... क्या कह रही थी तुम...
नेहा: सर..... चूउउउत... इस्स्सह्ह्ह्ह्ह!
उसने फिर आँखें बंद कर ली...
शमशेर: ऐसा करो, यहाँ से निकलो... और मुझे गाँव के बाहर भिवानी रोड पर मिलना.... मैं १५ मिनट में आता हूँ...
नेहा कसमसाती हुयी जल्दी से चली गयी......
गाँव से बाहर निकलते ही शमशेर को किसी ने हाथ दे दिया; वो शमशेर को जानता था, पर शमशेर उसको नहीं...
शमशेर ने गाड़ी रोक कर शीशा नीचे किया... हाँ...
अनजान: नमस्ते मास्टर जी...
शमशेर: जी नमस्कार!
अनजान: कहाँ जा रहे हैं मास्टर जी...
शमशेर: भिवानी... क्यूँ?
अनजान: मास्टर जी, मेरी बिटिया को भिवानी जाना है.. उसकी बुआ के पास, परसों होली है फिर तो वो जा नहीं पायेगी.... मैं यहाँ इसी लिये खड़ा था की कोई साधन मिल जाये... अगर आप उसको... भिवानी तक छोड़ दें तो बड़ी मेहरबानी होगी...
अब शमशेर मना कैसे करता की उसको तो भिवानी जाना ही नहीं है... वो उसको टालने के इरादे से बोला... देखिये मुझे रास्ते में रुकना है ... और टाइम लग सकता है...
अनजान: कोई बात नहीं सर... कितने बजे ही पहुँचा देना... आगे की तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है... अरी कविता! भाग कर आ... तुम्हारे सर जा रहे हैं भिवानी..
फिर शमशेर को बोलने का मौका ही ना मिला... एक मोटी गांड वाली करीब १९ साल की लड़की भागती हुयी आयी... और पिछली खिड़की खोल कर बैठ गयी... उसका बाप राम-राम करके चला गया...
"अब क्या करुँ... नेहा को वहीं छोड़ दूं.... नहीं-नहीं... ये तो तरसा कर मारने जैसा होगा... उसने उस लड़की से कहा," आगे एक लड़की और खड़ी है... उसको जरा हॉस्पिटल में दिखा कर लाना है... मैं तुम्हें कहाँ छोड़ दूं..."
कहीं भी चोद देना सर," वो लड़की मस्ताई हुयी थी... उसने जान बूझ कर 'चोद' कहा... 'छोड़ की बजाय'...
तभी शमशेर को नेहा दिखायी दी.. वो गाँव से दूर जा चुकी थी... ताकि कोई उसको सर के साथ जाते देख ना ले! वो बड़ी बेचैन दिखायी दे रही थी...
शमशेर के गाड़ी रोकते ही वो जल्दी से आगे आ बैठी और बैठते ही बोली... जल्दी चलीये सर... मेरी चूत तड़प रही है... शमशेर को उससे ऐसी उम्मीद ना थी... नेहा ने कविता को नहीं देखा था... नेहा की आवाज सुनते ही कविता चौंक पड़ी," नेहा... तू भीइइई.. !
नेहा तो हक्की बक्की रह गयी. ये कैसे आयी, क्या ये भी सर से इलाज... क्या दोनों को..
शमशेर: अब जो हो गया सो हो गया! कविता ये बताओ इस 'तू भी का क्या मतलब है'... क्या तू भी इन चक्करों में रहती है.
कविता कातिल मुस्कान से हँसते हुये बोली," इन् चक्करों में तो नहीं... पर आपके चक्कर में तो हर कोई रहती है... पर मुझे ये नहीं पता था की ये शरीफ भी... " कहकर वो फिर हँसने लगी.
अब शमशेर को कोई टेंशन ही नहीं थी... उसके बाप को तो वो पहले ही कह चुका था की टाइम लगेगा... उसने गाड़ी दायी और घुमा कर एक कच्चे रास्ते की और उतार दी... कविता ने कुछ नहीं पूछा... वो निश्चिन्त थी और रोमांचित भी...
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