मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी भाग-11
ऑफिस से गाँव वापस आते हुये शमशेर के साथ कोई और भी था... उसका दोस्त... मुझे नाम तो पता नहीं पर शमशेर उसको 'ट्फ' कह रहा था...
"तो मुझे कितने दिन के लिए ले जा रहे हो?" मि. ट्फ ने कहा. नाम के मुताबिक ही वह सच में सख्त था... बिल्कुल ट्फ! शमशेर जितना लम्बा... शमशेर जितना हेल्थी और शमशेर से सुंदर... उसकी उम्र करीब २५ की थी.
शमशेर: जितने दिन चाहो! तेरा ही घर है पगले!
टफ: यार; तू भी ना, ऐसे टाइम पर खींच लेता है, अपने साथ... आज कल कितना बोझ है ड्यूटी का. वो क्राइम ब्रांच में इंस्पेक्टर था," और सुना तेरी सेक्स लाइफ कैसी चल रही है... सुधरेगा या नहीं...
शमशेर ने कहा," नहीं!" और दोनों जोर जोर से हंसने लगे! तभी अचानक शमशेर ने ब्रेक लगा दिये," देख तुझे एक मस्त मैडम से मिलाता हूँ"
शीशा खोल कर शमशेर ने आवाज दी," अरे मैडम यहाँ कैसे?" प्यारी मैडम खड़ी थी! शमशेर ने उसको लिफ्ट के लिए ऑफर किया. प्यारी आकर गाड़ी में बैठ गयी," अरे भैया! सब तुम्हारी ही मेहरबानी है! दिशा को इतनी सी सजा देने पर तुमने मुझे इतनी बड़ी सजा दिलवा दी! अब यहाँ आती हूँ रोज २० कि.मि." अब तुम्हारे जैसे दयावान रोज तो नहीं मिलते ना... और ये तेरा भाई है क्या?
शमशेर: भाई जैसा ही है मैडम! क्यूँ?
प्यारी: शादी हो गयी इसकी या तेरी तरह खुद पका खा रहा है....
शमशेर: कहाँ मैडम; हम शादी के लायक कहाँ हैं... शमशेर कि टोन सेक्सी थी... प्यारी ताड़ गयी... और उसने किया ही क्या था आज तक!
प्यारी: भैया तुम भारी जवानी में ऐसे कैसे रहते हो... प्यारी ने अपनी ब्रा को ठीक किया...
शमशेर: तैयार हो जाओ ट्फ भाई... इसके पाप तो तुझे ही धोने पड़ेंगे!
प्यारी: क्या मतलब?
शमशेर: कुछ नहीं; पर्सनल बात है कुछ... ( क्यूँ ट्फ; सही कह रहा हूँ ना!..... ट्फ मुस्कुरा रहा है
चल रेस्पोंस भेज... कैसे लेनी है... ऐसे या वैसे!
प्यारी: अरे सही तो कह रही हूँ भैया; इन्सान की और भी जरूरतें होती हैं... रोटी, कपडा; मकान के अलावा... जवान मर्द हो, लड़कियाँ कितनी दीवानी रहती होंगी न तुम जैसों की तो!
टफ ने इशारा किया शमशेर ने गाड़ी रोक दी. टफ उतर कर पीछे जा बैठा," सही कह रही हैं आंटी जी!" उसने उसकी जाँघों पर हाथ रख दिया!
प्यारी: अरे! तेरे को तो बोलने की ही तमीज न है.. मैं क्या.... आंटी दिखाई देती हूँ तेरे को; जरा एक बार ऊपर से नीचे तो देख.
टफ: हाय.......और क्या बोलूँ........ आंटी जीईई
प्यारी: फिर से...! अरे मेरे आगे तो कुँवारी लड़कियाँ भी पानी भरती हैं.... सरिता भी मुझसे जलती है!... वैसे नाम क्या है तेरा... मैं तो तुझे नाम से ही बोलूंगी!.... तू चाहे तो मुझे 'प्यारी कह सकता है... मेरा नाम है प्यारी...
टफ: मुझे 'प्यारा' कहते हैं प्यारी... और उसने प्यारी की जाँघों पर रखे अपने हाथ को अन्दर की तरफ घुसा दिया.... प्यारी ने उसका हाथ दोनों हाथों से पकड़ लिया....,"धत ये भी कोई जवानी दिखाने की जगह है.... कभी हवेली पर आना.. दिखाती हूँ मैं... क्या चीज़ हूँ!
टफ उसका सिग्नल मिलते ही उसकी ४०" की कसी हुयी चुचियों को दोनों हाथों में जैसे लपक लिया,"ट्रेलर तो देख ही सकता हूँ प्यारी... !"
इतने मजबूत हाथों में खुद को जकड़ा पाकर प्यारी धन्य हो गयी... उसने अपना सूट ऊपर उठा लिया... और ब्रा नीचे सरका दी, उसकी चूचियाँ सच में ही कुंवारियों को भी पानी पिला सकती थी! छोटे पपीते के आकार की प्यारी की छातियाँ और उन पर तने हुये उसके अंगूर जैसे निप्पलस ने टफ को सिसकारी भरने पर मजबूर कर दिया!
गाड़ी चलती रही... हौले-हौले!
टफ उसकी छातियों पर हाथ धोकर टूट पड़ा... दोनों हाथों से वो प्यारी पर प्यार लुटा रहा था... मजबूती से... प्यारी को भी ऐसे ही मर्दों को अपनी सवारी कराना पसंद था," तू अपना तो ट्रेलर दिखा दे रे प्यारे!" कहकर उसने टफ की पैंट के ऊपर से ही उसके मोटे, लम्बे, अब तक टाइट हो चुके उसके लंड को पकड़ लिया मजबूती से, मानो ऐलान कर दिया हो "अब गियर वही बदलेगी.... वही चलाएगी अब प्यार की गाड़ी!"
प्यारी ने जिप खोली और टफ के 'टफ' लंड को चेक करने लगी," अरे तुम शहर वोलों का लौड़ा तो बड़ा प्यारा होता है... साफ़ सुथरा... गाँव में तो साले लंड के साथ अपने बाल भी भाट देते हैं... और उसने बिना बालों वाला 'लौड़ा' अपने गले तक उतार दिया... और उस पर इतनी सख्ती से दांत गड़ा दिए.. की टफ को लगा... वो कट कर गिर पड़ेगा... उसने प्यारी को एक ही झटके में अपने से दूर फैक दिया," साली कुतिया... अपने साथ ही ले जायेगी क्या इसको.." और अपने हाथ को जैसे सलवार के ऊपर से ही उसकी चूत में घुसा दिया!
"ऊयी मार दी रे... तरीका भी नहीं पता क्या साले रंडवे! रुक जा, पहले अपना लौड़ा खिला दे फिर इसको चाहे काट कर अपने साथ ले जाना.
टफ ने उसका सर पकड़ा और नीचे झुकाकर अपने लंड को उसके मुंह में भर दिया... गले तक... जैसे बोतल के मुंह पर कॉर्क फिट कर दिया हो!
प्यारी अन्दर ही अन्दर छटपटाने लगी.. टफ ki इस अनोखे बदले से छुटकारा पाना प्यारी के वश की बात ना थी... वो इधर उधर बदहवासी में हाथ मारने लगी!
"अबे जान लेगा क्या इसकी," छोड़ दे इसको, मार जायेगी."
टफ ने आगे देखते-देखते कहा...,"मर जायेगी तो मर जायेगी साली.... लावारिस दिखा के फूंक देंगे साली को... और उसने प्यारी देवी को छोड़ दिया... अब उसकी हिम्मत भी ना हो रही थी उसके लौड़े की और देखने की... उसने अपनी सलवार का नाड़ा खोला और पैर 'प्यारे के आगे खोल दिए!
"मस्त माल है भाई... अभी तक गारंटी में ही था लगता है... तू गाड़ी वापस ले ले! इसको आज ही एक्सपायर कर दूंगा!
शमशेर ने गाड़ी सीधी स्कूल में ले जाकर घुसा दी और उन दोनों को "उसी प्यार की प्रयोगशाला" में कैद करते हुये बोला..." टफ, आराम से करना... जान से मत मार देना.... मैं १ घंटे में आऊंगा" कहकर वह लैब का ताला लगाकर चला गया!
अन्दर आते ही टफ खूंखार भेड़िये की तराह प्यार करने को आतुर प्यारी देवी पर टूट रहा था. वह ये गाना गुनगुना रहा था... हम तुम्म्म इक कमरे में बंद हो..., और.....!
"ठहर तो जा निकम्मे; कभी लड़की देखि नहीं क्या?"
"देखि हैं... पर तेरे जैसी जालिम नहीं देखि"... टफ को पता था... औरत और लड़की की सबसे बड़ी कमजोरी.. अपनी प्रशंसा सुनना होती है.
प्यारी ने झट से अपने कपड़े उतार दिये... उसका भरा-भरा शरीर, ४०" तनी लगभग तनी हुयी चुचियाँ, मोटी-मोटी जाँघें, जाँघो के बीच दुबकी बाल साफ़ की हुयी... मोटी-मोटी फांको वाली चूत, करीब ४६" की डबल गांड और उसके बीचों बीच कसे हुये चूतडों की वजह से बनी गहरी घाटी को देख टफ अपना आप खो बैठा... उसमें शमशेर जितना कंट्रोल नहीं था... उसने झट से प्यारी की एक टांग उठा कर टेबल के ऊपर रख दी. प्यारी की गांड फटने को हो गयी... उसकी चूत गांड के बीच में से झाँक रही थी... टफ की और... टफ ने घुटनों के बल बैठ कर उसकी चूत में अपनी जीभ घुसा दी...
अन्दर तक... अपनी मोटी जाँघों की वजाह से प्यारी को ये आसन पसंद नहीं आ रहा था.. उसने उठने की कोशिश करी पर टफ ने उसको मेमने की तराह दबोच रखा था... एक मोटा मेमना!
"जान से मरेगा क्या? तेरी... कुत्ते ... आह.. एक बार छोड़ दे... सीधी... आह.. होकर लेट लेने दे जालिम.... अपनी चूत में रसीली जीभ को घुसा पाकर वह आप खोती जा रही थी... पर टाँगों का दर्द उसको परेशान कर रहा था... लेकिन टफ उसके साथ किसी तराह की रियात के मूड में नहीं था... उसने जीभ अन्दर तो घुसा ही रखी थी... अपनी उंगली उसकी गांड के काले हो चुके छेद में घुसा दी...
"हिये माँ.. सारा मजा खुद ही लेगा क्या... मुझे भी तो लेने दे... प्यारी का भी तो ख्याल रख... सीधा होने दे साले... " प्यारी देवी ने जवान खून के आगे अपने घुटने टेक दिये... वो अब उठने की कोशिश नहीं कर रही थी.. हांफ रही थी.. और विनती करके अपने लिए थोड़ी दया की भीख मांग रही थी... उसका सर टेबल से लगा हुआ था और उसकी चुचियाँ टेबल में जैसे घुसी हुयी थी... उसको तने हुये अपने निप्पलों में टेबल से रगड़ खाने की वजाह से दर्द हो रहा था.
टफ अपनी ऊँगली इतनी तेजी से उसकी गांड में पेल रहा था की लगता था जैसे प्यारी के छेद में मोटर से चलने वाली कोई रोड अन्दर बाहर हो रही हो... उसको अब बोलने का भी अवसर नहीं मिल रहा था... आखिरकार, उसकी चूत "रोने" लगी... वो गाढे-गाढे आँसू टपकाने लगी... टफ इस रस का शौकीन था... उसने रस जमीन पर नहीं टपकने दिया...
उसके बाद प्यारी को थोड़ी देर के लिए रहत मिली," मार ही दिया था तुने तो... क्या नाम है तेरा! टफ को उसकी सुन्नी नहीं थी.. अपनी करनी थी! प्यारी को पलट कर टेबल पर पीठ के बल लिटा दिया और उसकी सलवार उठा ली.
सलवार का एक कोना अपनी उंगली से लपेट कर उसने प्यारी की टांगों को ऊपर उठा कर फिर से उनको चौड़ा कर दिया...और कपड़े से ढकी उंगली को उसकी गांड में घुसेड़ दिया!
"ये क्या कर रहा है तू? पागल है क्या... मैं कहाँ फंस गयी रे अम्मा!"
टफ उसकी चूत को अन्दर से साफ़ कर रहा था.. बिलकुल सूखी! उसको दर्द देकर मजा लेने में ही आनंद आता था... और प्यारी की गीली चूत में दर्द कहाँ होता.
टफ ने टाईम वेस्ट नहीं किया.. अपनी उंगली निकाल दी और अपने लंड को आजाद करके उसकी मुंह बाये पड़ी चूत में धकेल दिया.... चूत बिलकुल सूखी होने की वजाह से जैसे प्यारी की प्यासी दीवारें छिल गयी.. वो कराह उठी.. फिर से छटपटाने लगी.. पर आजाद ना हो पाई...
टफ में कमाल की तेजी थी... लंड इतनी तेजी से अन्दर बाहर हो रहा था की जैसे प्यारी में भूकंप आया हो... टफ ने देखा उसकी मोटी चूचियाँ बुरी तराह हिल रही हैं... प्यारी देवी कुतिया की तराह भोंके जा रही थी, पर टफ उस वक़्त कुछ नहीं सुन रहा था.. वो टेबल पर ही चढ़ बैठा.. प्यारी को और आगे धकेल कर... अब प्यारी देवी के खुल चुके बाल और उसकी गर्दन दोनों ही नीचे लटक रहे थे.
टफ ने उसकी टाँगों के दोनों और से अपने हाथ निकाल कर उसकी चुचियों को मजबूती से बुरी तराह जकड़ लिया.. और फिर वैसे ही झटके शुरू कर दिये.. अब उसकी चूचियाँ हिल नहीं रही थी.. पर टफ की जकड़न में वो और भी व्याकुल हो उठी. बकती बकती प्यारी की चूत को उस वक़्त ही आराम मिल पाया जब उसकी चूत फिर से गीली हो गयी... पर अब जैसे ही टफ का लंड उसकी चूत में फिसलने सा लगा... टफ का मजा कम हो गया....करीब २० मिनट बाद..!
पर उसको मजा लेना आता था... दर्द देकर.. उसने तुंरत उसकी चूत में से लंड निकाल लिया...
"कर ना साले... अभी तक तो तू मेरी माँ चोद रहा था... और अब मजा आने लगा तो तुने निकाल दिया... फाड़ दे साले मेरी चू...
"ये तो पहले ही फटी पड़ी है... इसको ये ८" और क्या फाड़ेगा! इसके लिए तो मुझे कोई मूसल लाना पड़ेगा.... लाऊं क्या?"
"नहीं रे! मर जाउंगी... बस तू मुझे अब छोड़ दे जाने दे!"
ऐसे कैसे जाने देता... टफ ने उसको पकड़ कर फिर से उसी पोसिशन में ला दिया जिस पोसिशन में वो पहले थी... उसकी गांड फट गयी!
टफ ने उसकी गांड को घूरा और अपने लंड के लिए सही लगा तो उसमें उतारने लगा... प्यारी रोने लगी.. सुबक-सुबक कर.. और ५-६ झटकों में टफ ने उसकी अंतड़ियों को कट कर रख दिया... लंड दूर गांड में उतार गया था... प्यारी को होश नहीं था," प्लीस एक बार थूक लगा लो.... और इस बार टफ ने उसकी मान ली... टफ उसकी गांड को चौड़ा करके दूर से ही इस तराह थूकने लगा जैसे वह गांड नहीं कोई डस्टबिन हो... ४-५ कोशिशों के बाद निशाना लग गया... और थूक उसकी गांड ने पी लिया!
अब फिर वही कहानी शुरू... पर प्यारी को अब आराम था... वह ३५ मिनट में पहली बार खुश दिखाई दी...
उसकी बक-बक बढ़ने लगी, दर्द के मारे नहीं अब की बार; उत्तेजना के मारे, टफ की स्पीड अब भी वही थी जो उसकी चूत में थी..
प्यारी निहाल हो गयी.. टफ ने गांड से निकाल कर चिकना लंड उसकी चूत में काम पर लगा दिया... प्यारी सिस्कारने लगी और तभी उसकी चूत ने फिर पानी छोड़ दिया.. वो सीधी होकर इस जांबाज को अपने गले से लगा लेना चाहती थी... पर टफ ने उसकी आखिरी इच्छा भी पूरी ना की... उसके पलटते ही उसको बालों से पकड़कर नीचे बैठाया और... लगभग जबरदस्ती करते हुये.. उसका मुंह खुलवाया और लंड की सारी मेहनत का फल उसको पिला दिया... टफ ने उसको तब तक नहीं छोड़ा.. जब तक उसके गले में से रस गटकने का आभास होता रहा
प्यारी देवी उसको टुकुर-टुकुर देख रही थी... टफ ने अपना लंड बाहर निकाला और कपड़े पहनने शुरू कर दिये! उसके चेहरे पर अजीब सी शांति थी... प्यारी को दर्द देने की!
"गबरू! आपना नाम तो बता दे!" प्यारी भी कपड़े पहन रही थी...
"टफ मुस्कुराया और बोला," मुझे अजीत कहते हैं.... आंटी जी!"
प्यारी सोच रही थी...," साला चोद चाद कर आंटी जी कह रहा है...!"
अजीत ने शमशेर के पास फोन किया और बोला आ जाओ भाई!
शमशेर और अजीत प्यारी को वापस गाँव के बाहर छोड़ आये और घर चले गए!.....
"टफ,कैसी रही प्यारी?",शमशेर ने आते हुये पूछा.
"साली बहुत कड़वी थी?" अजीत और शमशेर जोर से हँसे!, अजीत ने म्यूजिक ऑन कर दिया.
घर जाकर वो सीधे ऊपर चले गए... दिशा और वाणी नीचे खिड़की में बैठी शमशेर का ही इंतज़ार कर रही थी... पर जब उन्होंने किसी और को भी देखा तो वो बाहर ना निकली और दिशा उनके लिये चाय बनाने लगी.
चाय बना कर दिशा ऊपर देने गयी... वाणी भी साथ गयी... दिशा की जासूस! अब वो एक पल के लिये भी दिशा को शमशेर के पास अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी.
अजीत ने जब दुनिया की तमाम सुन्दरता, मासूमियत और कशिश से भरी उन जवान लड़कियों को देखा तो बस देखता ही रह गया. जब वो चाय देकर चली गयी तो अजीत शमशेर से बोला," भाई! तू तो जन्नत में आ गया है... मैं भी कहूं, तू कभी फोन ही नहीं करता... तेरे तो घर में दिवाली है दिवाली..."
शमशेर: प्लीस यार, इनके बारे में ऐसा कुछ मत बोल!
अजीत: क्यूँ, तुने बहिन बनानी शुरू कर दी क्या 'भाई!'?
शमशेर ने एक धौल अजीत की पीठ पर जमाया और उसकी आँखों की नमी देखकर अजीत सब समझ गया," कौनसी है उस्ताद... तेरे वाली?"
शमशेर ने चाय का कप अजीत को दिया," बड़ी! वो मुझसे बहुत प्यार करती है!"
अजीत: और तू?... उसने गौर से शमशेर की आँखों में देखा...
शमशेर: पता नहीं! चाय पीले ठंडी हो जायेगी!
अजीत: और छोटे वाली, उसको भी कुछ ना बोलूँ; वो भी तो क़यामत है...
शमशेर: छोड़ ना यार, कितनी छोटी है!
अजीत: छोटी है!..... चल भाई तू कहता है तो छोटी ही होगी... पर मेरी समझ में नहीं आता वो छोटी है कहाँ से!...... अजीत के सामने उस बला की सुन्दर युवती का चेहरा घूम गया!
शमशेर: यार तू तो बस बाल की खाल निकाल लेता है... तू उसकी बातें सुन के देखना! चल इस टॉपिक को छोड़.... तुझे दिशा कैसी लगी?
अजीत: दिशा? ये दिशा कौन है...
शमशेर: बडी वाली... ये जो अभी आई थी... वाणी के साथ!
अजीत गम्भीर होकर शमशेर की और देखने लगा, दिशा का नाम आते ही उसको शमा याद आ गयी, शमशेर की शमा... जिसके लिये शमशेर ने अपना नाम दीपक से शमशेर कर लिया.... शमा;शमशेर.... अजीत अतीत में खो गया!
बात कॉलेज के दिनों की थी... आज से करीब १३ साल पहले की;
अजीत का भाई सुमित और 'दीपक' साथ-साथ पढ़ते थे.. तब 'दीपक' ऐसा नहीं था. ना तो इतना तगड़ा और ना ही इतना शांत;निश्चिंत वो एक लड़की के प्यार में ऐसा दीवाना हुआ की क्या रात को नींद और क्या दिन को चैन...
"शमा" यही नाम था उसका... शमशेर उसको पागलों की तरह से चाहता था... और शायद शमा भी... चाहती क्यूँ नहीं होगी.. एक आई.पी.स. ऑफिसर का बेटा था शमशेर; निहायत ही शरीफ और इन्टैलिजैन्ट... शमा भी मॉडर्न परिवार की लड़की थी... कॉलेज में हर कोई उसका दीवाना था.. एक लड़के का तो 'दीपक' से कई बार झगड़ा भी हुआ था, शमा के लिए... और बात 'दीपक' के बाप तक पहुँच गयी थी... समाज में इज्जत के झंडे गाडें हुए लोग रात को चाहे कितनी ही होली खेल ले; पर दिन में अपने कपड़ों को साफ़ ही रखना चाहते हैं... बेदाग़!
दीपक के पिताजी ने दीपक को वार्निग दे राखी थी... रोज़-रोज़ की बदनामी अगर यूँ ही होती रही तो उसको वो घर से निकाल देंगे!
पर प्यार का जहरीला बिच्छू जिसको डस लेता है वो समाज से बगावत कर लेता है... और बदले में मिलने वाली जलालत को अपनी मोहब्बत का इनाम...
शमशेर ने भी यही किया... उसके शमा से प्यार को देखकर उसके दोस्त उसको शेर कहने लगे; शमा का शेर! और वो दीपक से शमशेर हो गया; शमा का शमशेर!
उस् पागल ने डोक्युमैन्ट्स में भी अपना नाम बदल लिया... इस बात से खफा उसके पिताजी ने उसको धक्के दे दिए; 'अपने घर से' और तभी से वो अजीत के घर रहने लगा... उसके भाई की तरह!
कुछ दिनों बाद की बात है...
शमशेर की क्लास के एक लड़के ने सबको अपनी ब'डे पार्टी के लिए इन्वाईट किया अपने फार्म हाउस पर; शमशेर को भी;
ये वही लड़का था जिसके साथ पहले झगड़ा हो चुका था, शमा के लिए....
शमशेर जाना नहीं चाहता था... पर शमा उसको जबरदस्ती ले गयी, अपने साथ; फार्म हाउस पर....
वो ही वो क़यामत की रात थी.. जिसने शमशेर को ऐसा बना दिया... बिलकुल शांत... बिलकुल निश्चिंत!
दिनेश ने केक काटा और सबसे पहले शमा को खिलाया, फिर उसके होंटों को चूम लिया; शमा ने भी उसको अपनी बाँहों में भर लिया और एक लम्बी फ्रेंच किस दी...
ये किस दिनेश की केवल वैल विशेस नहीं थी; दोनों के चेहरों से वासना टपक रही थी... Shamsher ko ek pal to jaise यकीन नहीं हुआ... फिर खून का घूँट पीकर रह गया; आखिर उस किस में शमा की मर्ज़ी शामिल थी.
हद तो जब हो गयी, जब कुछ देर बाद दिनेश उसको अपने कंधे पर उठा कर जाने लगा...शमा ने शमशेर को बाय किया, मुस्कुराते हुए!
"दिनेश!" शमशेर की आँखों में खून उतर गया... सभी की आँखों में उतर जाता... बेवफाई का ऐसा नंगा प्रदर्शन देखकर.
दिनेश ने शमा को अपने कंधे से उतारा," क्या है बे! अभी तेरी 'बहिन को चोदुंगा साले! आजा देखना हो तो!"... शमा अब भी मुस्कुरा रही थी
शमशेर उसकी और भगा... पर दिनेश के दोस्तों ने मिलकर उसको पहले ही लपक लिया... नहीं तो एक खून और हो जाता... दिनेश का या शमा का... एक खून तो पहले ही हो चुका था... 'शमशेर' के अरमानों का..
"साले को अन्दर ले आओ!" दिनेश दहाड़ा....
और वो उसको एक बेडरूम में ले गए...
आलिशान बेडरूम में; और शमशेर को वहाँ घुटनों में लाठी देकर बाँध दिया... शमशेर जमीन पर पड़ा था... असहाय और लाचार!
शमा और दिनेश कमरे में आ गये. दिनेश ने इशारा किया और शमा अपने शरीर का एक-एक कपड़ा उतार कर शमशेर की और फैंकती गयी... आखिर में अपनी पैंटी भी....
शमशेर का चेहरा भीग गया था...
उसके लाचार आँसू फर्श पर बह रहे थे...
उसने आँख खोल कर शमा को देखा...
शमा दिनेश के अंग को मुंह में ले कर चूस रही थी...
शमशेर की आँखे बंद हो गयी...
उसके बाद कमरे में करीब ३० मिनट तक शमा की आँहे गूंजती रही... सिसकियाँ गूंजती रही...
जो शमशेर के कानो में पिघले हुए लावे की तरह जा रही थी!
शमशेर लाख कोशिश करने के बाद भी अपने कान बंद नहीं कर पाया... उसको सब कुछ सुन-ना पड़ा; सब कुछ.
अंत में जब सिसकिया बंद हो गयी तब शमशेर ने आँखें खोली...
दिनेश उसकी नंगी छातियों पर पड़ा था...
शमा ने बोला, " आई लव यू दिनेश! " उसी लहजे में जिस लहजे में उसने हजारों बार बोला था...
" आई लव यू दीपक.... आई लव यू माय शमशेर "!
शमशेर ने कपड़े पहनकर बाहर जाती हुयी शमा से पूछा, " तुमने..... ऐसा क्यूँ किया, शमा! "
" क्यूंकि तुम्हारे पास अब पैसा नहीं है... जान! " और वो मुस्कुराती हुयी चली गयी...
दिनेश ने अपने दोस्तों को बुलाया," खोल दो साले को; अगर जरा भी गैरत होगी तो खुद ही मर जायेगा... बहन का....!"
उसके दोस्तों ने शमशेर को खोल दिया; पर शमशेर नहीं उठा... अब उठने को रहा ही क्या था!
उसके दोस्तों ने शमशेर को फार्म हाउस से बाहर फैंक कर अजीत के भाई को फोन कर दिया..
वो अपने दोस्तों के साथ आया और शमशेर को ले गया. कॉलेज में जिसको भी पता चला; वो खूब रोया, पर शमशेर के आँसू नहीं निकले... उसके सारे आँसू निकल चुके थे; शमा के सामने!
शमशेर के पिता को पता चला तो भागा हुआ आया, लम्बी-लम्बी लालबत्ती वाली गाड़ियों में. और अपने वंश को ले गया...
उसके दो दिन बाद ही शमा और दिनेश मरे पाये गये! पुलिस ने अपनी केस डायरी में लिखा," वो एक दुसरे से बहुत प्यार करते थे, पर समाज ने उनको मिलने ही नहीं दिया... इसीलिए दोनों ने सुसाइड कर लिया!
कहते हैं समय सब कुछ भुला देता है... शमशेर भी बदल गया... पर दो चीजे उसने नहीं बदली... एक तो अपना नाम... और दूसरा उस रात के बाद वाला अपना नेचर;..... बिलकुल शांत.... बिलकुल निश्चिंत...
वो प्यार से नफरत करने लगा... उसको तब के बाद लड़कियों से एक ही मतलब रहता था... सेक्स... सेक्स और सेक्स....
शमशेर ने अजीत को देखा... वो आँख बंद किये रो रहा था.... बिना बोले.... लगातार...!
शमशेर ने अजीत के हाथ से कप ले लिया... चाय तो कब की ठंडी हो चुकी थी. वो कुछ ना बोला. उसके दोस्त जब भी उससे मिलते थे तो शमशेर के अतीत को याद करके ऐसे ही सुबकते थे... भीतर ही भीतर...
शमशेर उसके लिए पानी ले आया," लो, टफ! मुँह धो लो!... कुछ देर बाद सब नोर्मल हो गया और वो फिर से मस्ती भरी बातें करने लगे
"शमशेर भाई! ये तो बता ये सरिता क्या बला है?"
"कौन सरिता?", शमशेर को याद नहीं आया!
अरे वो मेरी 'प्यारी' गाड़ी में कह नहीं रही थी!" मुझसे तो सरिता भी जलती है."
"ओह अच्छा! सरिता! वो उसी की तो बेटी है...
"मस्त है क्या?"
"देखेगा, तो खुद ही समझ जायेगा!"
"भाई! वो भी दिख जायेगी क्या?"
"हाँ, हाँ; क्यूँ नहीं दिखेगी?"
"लगता है खानदान ही धंधे में है, भाई!"
तभी दिशा ऊपर आई," खाना लगाना है क्या.... सर". दिशा दरवाजे की साईड में खड़ी थी, शरमाई सी, और वाणी उसकी साईड में..... जासूस!
अजीत: एक बार अन्दर आना!.... वो शमशेर के नये प्यार को अपनी आँखों से परखना चाहता था.....
दिशा अन्दर आ गयी... नजरें झुकाये.... और वाणी ने उसका हाथ पकड़ा हुआ था... वो इस नये मेहमान को घूर रही थी!
"अच्छा! एक बात तो बताओ; तुम्हारा फेवरेट टीचर कौन है....." अजीत ने कहा
दिशा निशब्द खड़ी रही... वो उसके सर थोड़े ही थे! पर वाणी ने एक भी सेकंड नहीं गवाई, और बेड पर चढ़कर सर से लिपट गयी," शमशेर सर!"
अजीत ने उसकी और हाथ बढ़ाया," ही! आई ऍम अजीत एंड यू"
वाणी ने दोनों हाथ जोड़ दिये," नमस्ते! और हाथ नहीं मिलाओंगी; दीदी कहती हैं, बाहर वाले लड़कों को ज्यादा मुँह नहीं लगाते!"
ऐसा सुनते ही तीनों की जोर से हँसी छुट गयी! वाणी को लगा कुछ गलत कह दिया, दीदी से पूछ लो; इन्होने ही बोला था!
दिशा शरमाकर नीचे भाग गयी... और वाणी उसके पीछे-पीछे... ये पूछने के लिए की उसने क्या गलत कह दिया!
नीचे जाते ही दिशा जोर-जोर से हँसने लगी... वाणी ने पूछा," क्या हुआ दीदी! बताओ ना!"
दिशा हँसते हुये बोली," कुछ नहीं तू भी कितनी उल्लू है, कोई किसी के सामने ऐसे ही थोड़े बोलता है!.... और फिर वे इनके दोस्त हैं!"
वाणी: सॉरी दीदी! मैं ऊपर सॉरी बोलकर आऊँ?
दिशा: नहीं रहने दे! ...... फिर कुछ सोच कर बोली," वाणी! एक बात पूछूं तो बतायेगी!
वाणी: पूछो दीदी!
दिशा: मान लो तेरी किसी के साथ शादी हो जाती है...
वाणी: मैं तो सर से ही शादी करुँगी दीदी....
दिशा सिहर गयी... वाणी के प्यार का रंग बदलता जा रहा था...
दिशा: वाणी!........... शमशेर से मैं प्यार करती हूँ;(वो भावुक हो गयी थी) मैं उनसे शादी करना चाहती हूँ... क्या तू मेरे और उसके बीच में आयेगी? क्या तू कभी अपनी दीदी का दिल तोड़ सकती है...
वाणी ने उसका हाथ पकड़ लिया .... ," क्या ऐसा नहीं हो सकता की सर हम दोनों से शादी कर लें, दीदी! मेरी एक सहेली की दो मम्मियाँ हैं"
दिशा ने उसके गालों को सहलाते हुये कहा," हम हिन्दू हैं, वाणी! हमारे धरम में ऐसा नहीं होता....
"पर दीदी; हम कह देंगे हम तो मुसलमान बन गये!"
"ऐसे नहीं होता वाणी! और मान भी लो; ऐसा हो जाये तो क्या हम एक दुसरे को शमशेर और अपने बीच एक दूसरी को सहन कर लेंगे...."
"बीच में कहाँ दीदी; एक तरफ में और एक तरफ तुम..."
दिशा: तू तो है ना; बिलकुल पागल है; एक बात बता, ये जो सर के दोस्त हैं..... कैसे लगते हैं तुझे..?
वाणी: बहुत सुंदर है दीदी... सर से भी सुंदर!
दिशा: तू उनसे शादी कर ले ना! में शमशेर से बात कर लूंगी!
वाणी: नहीं दीदी, उनसे तुम कर लो; मैं तो सर से ही करुँगी.... वो दिशा को घूर रही थी!
तभी मामा मामी आ गये; खाना लगाकर दोनों खाना दे आयी और नीचे ही सो गयी; आज वाणी ने जिद नहीं की...
वो समझने लगी थी... प्यार में अकेलेपन की जरुरत को....
ऑफिस से गाँव वापस आते हुये शमशेर के साथ कोई और भी था... उसका दोस्त... मुझे नाम तो पता नहीं पर शमशेर उसको 'ट्फ' कह रहा था...
"तो मुझे कितने दिन के लिए ले जा रहे हो?" मि. ट्फ ने कहा. नाम के मुताबिक ही वह सच में सख्त था... बिल्कुल ट्फ! शमशेर जितना लम्बा... शमशेर जितना हेल्थी और शमशेर से सुंदर... उसकी उम्र करीब २५ की थी.
शमशेर: जितने दिन चाहो! तेरा ही घर है पगले!
टफ: यार; तू भी ना, ऐसे टाइम पर खींच लेता है, अपने साथ... आज कल कितना बोझ है ड्यूटी का. वो क्राइम ब्रांच में इंस्पेक्टर था," और सुना तेरी सेक्स लाइफ कैसी चल रही है... सुधरेगा या नहीं...
शमशेर ने कहा," नहीं!" और दोनों जोर जोर से हंसने लगे! तभी अचानक शमशेर ने ब्रेक लगा दिये," देख तुझे एक मस्त मैडम से मिलाता हूँ"
शीशा खोल कर शमशेर ने आवाज दी," अरे मैडम यहाँ कैसे?" प्यारी मैडम खड़ी थी! शमशेर ने उसको लिफ्ट के लिए ऑफर किया. प्यारी आकर गाड़ी में बैठ गयी," अरे भैया! सब तुम्हारी ही मेहरबानी है! दिशा को इतनी सी सजा देने पर तुमने मुझे इतनी बड़ी सजा दिलवा दी! अब यहाँ आती हूँ रोज २० कि.मि." अब तुम्हारे जैसे दयावान रोज तो नहीं मिलते ना... और ये तेरा भाई है क्या?
शमशेर: भाई जैसा ही है मैडम! क्यूँ?
प्यारी: शादी हो गयी इसकी या तेरी तरह खुद पका खा रहा है....
शमशेर: कहाँ मैडम; हम शादी के लायक कहाँ हैं... शमशेर कि टोन सेक्सी थी... प्यारी ताड़ गयी... और उसने किया ही क्या था आज तक!
प्यारी: भैया तुम भारी जवानी में ऐसे कैसे रहते हो... प्यारी ने अपनी ब्रा को ठीक किया...
शमशेर: तैयार हो जाओ ट्फ भाई... इसके पाप तो तुझे ही धोने पड़ेंगे!
प्यारी: क्या मतलब?
शमशेर: कुछ नहीं; पर्सनल बात है कुछ... ( क्यूँ ट्फ; सही कह रहा हूँ ना!..... ट्फ मुस्कुरा रहा है
चल रेस्पोंस भेज... कैसे लेनी है... ऐसे या वैसे!
प्यारी: अरे सही तो कह रही हूँ भैया; इन्सान की और भी जरूरतें होती हैं... रोटी, कपडा; मकान के अलावा... जवान मर्द हो, लड़कियाँ कितनी दीवानी रहती होंगी न तुम जैसों की तो!
टफ ने इशारा किया शमशेर ने गाड़ी रोक दी. टफ उतर कर पीछे जा बैठा," सही कह रही हैं आंटी जी!" उसने उसकी जाँघों पर हाथ रख दिया!
प्यारी: अरे! तेरे को तो बोलने की ही तमीज न है.. मैं क्या.... आंटी दिखाई देती हूँ तेरे को; जरा एक बार ऊपर से नीचे तो देख.
टफ: हाय.......और क्या बोलूँ........ आंटी जीईई
प्यारी: फिर से...! अरे मेरे आगे तो कुँवारी लड़कियाँ भी पानी भरती हैं.... सरिता भी मुझसे जलती है!... वैसे नाम क्या है तेरा... मैं तो तुझे नाम से ही बोलूंगी!.... तू चाहे तो मुझे 'प्यारी कह सकता है... मेरा नाम है प्यारी...
टफ: मुझे 'प्यारा' कहते हैं प्यारी... और उसने प्यारी की जाँघों पर रखे अपने हाथ को अन्दर की तरफ घुसा दिया.... प्यारी ने उसका हाथ दोनों हाथों से पकड़ लिया....,"धत ये भी कोई जवानी दिखाने की जगह है.... कभी हवेली पर आना.. दिखाती हूँ मैं... क्या चीज़ हूँ!
टफ उसका सिग्नल मिलते ही उसकी ४०" की कसी हुयी चुचियों को दोनों हाथों में जैसे लपक लिया,"ट्रेलर तो देख ही सकता हूँ प्यारी... !"
इतने मजबूत हाथों में खुद को जकड़ा पाकर प्यारी धन्य हो गयी... उसने अपना सूट ऊपर उठा लिया... और ब्रा नीचे सरका दी, उसकी चूचियाँ सच में ही कुंवारियों को भी पानी पिला सकती थी! छोटे पपीते के आकार की प्यारी की छातियाँ और उन पर तने हुये उसके अंगूर जैसे निप्पलस ने टफ को सिसकारी भरने पर मजबूर कर दिया!
गाड़ी चलती रही... हौले-हौले!
टफ उसकी छातियों पर हाथ धोकर टूट पड़ा... दोनों हाथों से वो प्यारी पर प्यार लुटा रहा था... मजबूती से... प्यारी को भी ऐसे ही मर्दों को अपनी सवारी कराना पसंद था," तू अपना तो ट्रेलर दिखा दे रे प्यारे!" कहकर उसने टफ की पैंट के ऊपर से ही उसके मोटे, लम्बे, अब तक टाइट हो चुके उसके लंड को पकड़ लिया मजबूती से, मानो ऐलान कर दिया हो "अब गियर वही बदलेगी.... वही चलाएगी अब प्यार की गाड़ी!"
प्यारी ने जिप खोली और टफ के 'टफ' लंड को चेक करने लगी," अरे तुम शहर वोलों का लौड़ा तो बड़ा प्यारा होता है... साफ़ सुथरा... गाँव में तो साले लंड के साथ अपने बाल भी भाट देते हैं... और उसने बिना बालों वाला 'लौड़ा' अपने गले तक उतार दिया... और उस पर इतनी सख्ती से दांत गड़ा दिए.. की टफ को लगा... वो कट कर गिर पड़ेगा... उसने प्यारी को एक ही झटके में अपने से दूर फैक दिया," साली कुतिया... अपने साथ ही ले जायेगी क्या इसको.." और अपने हाथ को जैसे सलवार के ऊपर से ही उसकी चूत में घुसा दिया!
"ऊयी मार दी रे... तरीका भी नहीं पता क्या साले रंडवे! रुक जा, पहले अपना लौड़ा खिला दे फिर इसको चाहे काट कर अपने साथ ले जाना.
टफ ने उसका सर पकड़ा और नीचे झुकाकर अपने लंड को उसके मुंह में भर दिया... गले तक... जैसे बोतल के मुंह पर कॉर्क फिट कर दिया हो!
प्यारी अन्दर ही अन्दर छटपटाने लगी.. टफ ki इस अनोखे बदले से छुटकारा पाना प्यारी के वश की बात ना थी... वो इधर उधर बदहवासी में हाथ मारने लगी!
"अबे जान लेगा क्या इसकी," छोड़ दे इसको, मार जायेगी."
टफ ने आगे देखते-देखते कहा...,"मर जायेगी तो मर जायेगी साली.... लावारिस दिखा के फूंक देंगे साली को... और उसने प्यारी देवी को छोड़ दिया... अब उसकी हिम्मत भी ना हो रही थी उसके लौड़े की और देखने की... उसने अपनी सलवार का नाड़ा खोला और पैर 'प्यारे के आगे खोल दिए!
"मस्त माल है भाई... अभी तक गारंटी में ही था लगता है... तू गाड़ी वापस ले ले! इसको आज ही एक्सपायर कर दूंगा!
शमशेर ने गाड़ी सीधी स्कूल में ले जाकर घुसा दी और उन दोनों को "उसी प्यार की प्रयोगशाला" में कैद करते हुये बोला..." टफ, आराम से करना... जान से मत मार देना.... मैं १ घंटे में आऊंगा" कहकर वह लैब का ताला लगाकर चला गया!
अन्दर आते ही टफ खूंखार भेड़िये की तराह प्यार करने को आतुर प्यारी देवी पर टूट रहा था. वह ये गाना गुनगुना रहा था... हम तुम्म्म इक कमरे में बंद हो..., और.....!
"ठहर तो जा निकम्मे; कभी लड़की देखि नहीं क्या?"
"देखि हैं... पर तेरे जैसी जालिम नहीं देखि"... टफ को पता था... औरत और लड़की की सबसे बड़ी कमजोरी.. अपनी प्रशंसा सुनना होती है.
प्यारी ने झट से अपने कपड़े उतार दिये... उसका भरा-भरा शरीर, ४०" तनी लगभग तनी हुयी चुचियाँ, मोटी-मोटी जाँघें, जाँघो के बीच दुबकी बाल साफ़ की हुयी... मोटी-मोटी फांको वाली चूत, करीब ४६" की डबल गांड और उसके बीचों बीच कसे हुये चूतडों की वजह से बनी गहरी घाटी को देख टफ अपना आप खो बैठा... उसमें शमशेर जितना कंट्रोल नहीं था... उसने झट से प्यारी की एक टांग उठा कर टेबल के ऊपर रख दी. प्यारी की गांड फटने को हो गयी... उसकी चूत गांड के बीच में से झाँक रही थी... टफ की और... टफ ने घुटनों के बल बैठ कर उसकी चूत में अपनी जीभ घुसा दी...
अन्दर तक... अपनी मोटी जाँघों की वजाह से प्यारी को ये आसन पसंद नहीं आ रहा था.. उसने उठने की कोशिश करी पर टफ ने उसको मेमने की तराह दबोच रखा था... एक मोटा मेमना!
"जान से मरेगा क्या? तेरी... कुत्ते ... आह.. एक बार छोड़ दे... सीधी... आह.. होकर लेट लेने दे जालिम.... अपनी चूत में रसीली जीभ को घुसा पाकर वह आप खोती जा रही थी... पर टाँगों का दर्द उसको परेशान कर रहा था... लेकिन टफ उसके साथ किसी तराह की रियात के मूड में नहीं था... उसने जीभ अन्दर तो घुसा ही रखी थी... अपनी उंगली उसकी गांड के काले हो चुके छेद में घुसा दी...
"हिये माँ.. सारा मजा खुद ही लेगा क्या... मुझे भी तो लेने दे... प्यारी का भी तो ख्याल रख... सीधा होने दे साले... " प्यारी देवी ने जवान खून के आगे अपने घुटने टेक दिये... वो अब उठने की कोशिश नहीं कर रही थी.. हांफ रही थी.. और विनती करके अपने लिए थोड़ी दया की भीख मांग रही थी... उसका सर टेबल से लगा हुआ था और उसकी चुचियाँ टेबल में जैसे घुसी हुयी थी... उसको तने हुये अपने निप्पलों में टेबल से रगड़ खाने की वजाह से दर्द हो रहा था.
टफ अपनी ऊँगली इतनी तेजी से उसकी गांड में पेल रहा था की लगता था जैसे प्यारी के छेद में मोटर से चलने वाली कोई रोड अन्दर बाहर हो रही हो... उसको अब बोलने का भी अवसर नहीं मिल रहा था... आखिरकार, उसकी चूत "रोने" लगी... वो गाढे-गाढे आँसू टपकाने लगी... टफ इस रस का शौकीन था... उसने रस जमीन पर नहीं टपकने दिया...
उसके बाद प्यारी को थोड़ी देर के लिए रहत मिली," मार ही दिया था तुने तो... क्या नाम है तेरा! टफ को उसकी सुन्नी नहीं थी.. अपनी करनी थी! प्यारी को पलट कर टेबल पर पीठ के बल लिटा दिया और उसकी सलवार उठा ली.
सलवार का एक कोना अपनी उंगली से लपेट कर उसने प्यारी की टांगों को ऊपर उठा कर फिर से उनको चौड़ा कर दिया...और कपड़े से ढकी उंगली को उसकी गांड में घुसेड़ दिया!
"ये क्या कर रहा है तू? पागल है क्या... मैं कहाँ फंस गयी रे अम्मा!"
टफ उसकी चूत को अन्दर से साफ़ कर रहा था.. बिलकुल सूखी! उसको दर्द देकर मजा लेने में ही आनंद आता था... और प्यारी की गीली चूत में दर्द कहाँ होता.
टफ ने टाईम वेस्ट नहीं किया.. अपनी उंगली निकाल दी और अपने लंड को आजाद करके उसकी मुंह बाये पड़ी चूत में धकेल दिया.... चूत बिलकुल सूखी होने की वजाह से जैसे प्यारी की प्यासी दीवारें छिल गयी.. वो कराह उठी.. फिर से छटपटाने लगी.. पर आजाद ना हो पाई...
टफ में कमाल की तेजी थी... लंड इतनी तेजी से अन्दर बाहर हो रहा था की जैसे प्यारी में भूकंप आया हो... टफ ने देखा उसकी मोटी चूचियाँ बुरी तराह हिल रही हैं... प्यारी देवी कुतिया की तराह भोंके जा रही थी, पर टफ उस वक़्त कुछ नहीं सुन रहा था.. वो टेबल पर ही चढ़ बैठा.. प्यारी को और आगे धकेल कर... अब प्यारी देवी के खुल चुके बाल और उसकी गर्दन दोनों ही नीचे लटक रहे थे.
टफ ने उसकी टाँगों के दोनों और से अपने हाथ निकाल कर उसकी चुचियों को मजबूती से बुरी तराह जकड़ लिया.. और फिर वैसे ही झटके शुरू कर दिये.. अब उसकी चूचियाँ हिल नहीं रही थी.. पर टफ की जकड़न में वो और भी व्याकुल हो उठी. बकती बकती प्यारी की चूत को उस वक़्त ही आराम मिल पाया जब उसकी चूत फिर से गीली हो गयी... पर अब जैसे ही टफ का लंड उसकी चूत में फिसलने सा लगा... टफ का मजा कम हो गया....करीब २० मिनट बाद..!
पर उसको मजा लेना आता था... दर्द देकर.. उसने तुंरत उसकी चूत में से लंड निकाल लिया...
"कर ना साले... अभी तक तो तू मेरी माँ चोद रहा था... और अब मजा आने लगा तो तुने निकाल दिया... फाड़ दे साले मेरी चू...
"ये तो पहले ही फटी पड़ी है... इसको ये ८" और क्या फाड़ेगा! इसके लिए तो मुझे कोई मूसल लाना पड़ेगा.... लाऊं क्या?"
"नहीं रे! मर जाउंगी... बस तू मुझे अब छोड़ दे जाने दे!"
ऐसे कैसे जाने देता... टफ ने उसको पकड़ कर फिर से उसी पोसिशन में ला दिया जिस पोसिशन में वो पहले थी... उसकी गांड फट गयी!
टफ ने उसकी गांड को घूरा और अपने लंड के लिए सही लगा तो उसमें उतारने लगा... प्यारी रोने लगी.. सुबक-सुबक कर.. और ५-६ झटकों में टफ ने उसकी अंतड़ियों को कट कर रख दिया... लंड दूर गांड में उतार गया था... प्यारी को होश नहीं था," प्लीस एक बार थूक लगा लो.... और इस बार टफ ने उसकी मान ली... टफ उसकी गांड को चौड़ा करके दूर से ही इस तराह थूकने लगा जैसे वह गांड नहीं कोई डस्टबिन हो... ४-५ कोशिशों के बाद निशाना लग गया... और थूक उसकी गांड ने पी लिया!
अब फिर वही कहानी शुरू... पर प्यारी को अब आराम था... वह ३५ मिनट में पहली बार खुश दिखाई दी...
उसकी बक-बक बढ़ने लगी, दर्द के मारे नहीं अब की बार; उत्तेजना के मारे, टफ की स्पीड अब भी वही थी जो उसकी चूत में थी..
प्यारी निहाल हो गयी.. टफ ने गांड से निकाल कर चिकना लंड उसकी चूत में काम पर लगा दिया... प्यारी सिस्कारने लगी और तभी उसकी चूत ने फिर पानी छोड़ दिया.. वो सीधी होकर इस जांबाज को अपने गले से लगा लेना चाहती थी... पर टफ ने उसकी आखिरी इच्छा भी पूरी ना की... उसके पलटते ही उसको बालों से पकड़कर नीचे बैठाया और... लगभग जबरदस्ती करते हुये.. उसका मुंह खुलवाया और लंड की सारी मेहनत का फल उसको पिला दिया... टफ ने उसको तब तक नहीं छोड़ा.. जब तक उसके गले में से रस गटकने का आभास होता रहा
प्यारी देवी उसको टुकुर-टुकुर देख रही थी... टफ ने अपना लंड बाहर निकाला और कपड़े पहनने शुरू कर दिये! उसके चेहरे पर अजीब सी शांति थी... प्यारी को दर्द देने की!
"गबरू! आपना नाम तो बता दे!" प्यारी भी कपड़े पहन रही थी...
"टफ मुस्कुराया और बोला," मुझे अजीत कहते हैं.... आंटी जी!"
प्यारी सोच रही थी...," साला चोद चाद कर आंटी जी कह रहा है...!"
अजीत ने शमशेर के पास फोन किया और बोला आ जाओ भाई!
शमशेर और अजीत प्यारी को वापस गाँव के बाहर छोड़ आये और घर चले गए!.....
"टफ,कैसी रही प्यारी?",शमशेर ने आते हुये पूछा.
"साली बहुत कड़वी थी?" अजीत और शमशेर जोर से हँसे!, अजीत ने म्यूजिक ऑन कर दिया.
घर जाकर वो सीधे ऊपर चले गए... दिशा और वाणी नीचे खिड़की में बैठी शमशेर का ही इंतज़ार कर रही थी... पर जब उन्होंने किसी और को भी देखा तो वो बाहर ना निकली और दिशा उनके लिये चाय बनाने लगी.
चाय बना कर दिशा ऊपर देने गयी... वाणी भी साथ गयी... दिशा की जासूस! अब वो एक पल के लिये भी दिशा को शमशेर के पास अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी.
अजीत ने जब दुनिया की तमाम सुन्दरता, मासूमियत और कशिश से भरी उन जवान लड़कियों को देखा तो बस देखता ही रह गया. जब वो चाय देकर चली गयी तो अजीत शमशेर से बोला," भाई! तू तो जन्नत में आ गया है... मैं भी कहूं, तू कभी फोन ही नहीं करता... तेरे तो घर में दिवाली है दिवाली..."
शमशेर: प्लीस यार, इनके बारे में ऐसा कुछ मत बोल!
अजीत: क्यूँ, तुने बहिन बनानी शुरू कर दी क्या 'भाई!'?
शमशेर ने एक धौल अजीत की पीठ पर जमाया और उसकी आँखों की नमी देखकर अजीत सब समझ गया," कौनसी है उस्ताद... तेरे वाली?"
शमशेर ने चाय का कप अजीत को दिया," बड़ी! वो मुझसे बहुत प्यार करती है!"
अजीत: और तू?... उसने गौर से शमशेर की आँखों में देखा...
शमशेर: पता नहीं! चाय पीले ठंडी हो जायेगी!
अजीत: और छोटे वाली, उसको भी कुछ ना बोलूँ; वो भी तो क़यामत है...
शमशेर: छोड़ ना यार, कितनी छोटी है!
अजीत: छोटी है!..... चल भाई तू कहता है तो छोटी ही होगी... पर मेरी समझ में नहीं आता वो छोटी है कहाँ से!...... अजीत के सामने उस बला की सुन्दर युवती का चेहरा घूम गया!
शमशेर: यार तू तो बस बाल की खाल निकाल लेता है... तू उसकी बातें सुन के देखना! चल इस टॉपिक को छोड़.... तुझे दिशा कैसी लगी?
अजीत: दिशा? ये दिशा कौन है...
शमशेर: बडी वाली... ये जो अभी आई थी... वाणी के साथ!
अजीत गम्भीर होकर शमशेर की और देखने लगा, दिशा का नाम आते ही उसको शमा याद आ गयी, शमशेर की शमा... जिसके लिये शमशेर ने अपना नाम दीपक से शमशेर कर लिया.... शमा;शमशेर.... अजीत अतीत में खो गया!
बात कॉलेज के दिनों की थी... आज से करीब १३ साल पहले की;
अजीत का भाई सुमित और 'दीपक' साथ-साथ पढ़ते थे.. तब 'दीपक' ऐसा नहीं था. ना तो इतना तगड़ा और ना ही इतना शांत;निश्चिंत वो एक लड़की के प्यार में ऐसा दीवाना हुआ की क्या रात को नींद और क्या दिन को चैन...
"शमा" यही नाम था उसका... शमशेर उसको पागलों की तरह से चाहता था... और शायद शमा भी... चाहती क्यूँ नहीं होगी.. एक आई.पी.स. ऑफिसर का बेटा था शमशेर; निहायत ही शरीफ और इन्टैलिजैन्ट... शमा भी मॉडर्न परिवार की लड़की थी... कॉलेज में हर कोई उसका दीवाना था.. एक लड़के का तो 'दीपक' से कई बार झगड़ा भी हुआ था, शमा के लिए... और बात 'दीपक' के बाप तक पहुँच गयी थी... समाज में इज्जत के झंडे गाडें हुए लोग रात को चाहे कितनी ही होली खेल ले; पर दिन में अपने कपड़ों को साफ़ ही रखना चाहते हैं... बेदाग़!
दीपक के पिताजी ने दीपक को वार्निग दे राखी थी... रोज़-रोज़ की बदनामी अगर यूँ ही होती रही तो उसको वो घर से निकाल देंगे!
पर प्यार का जहरीला बिच्छू जिसको डस लेता है वो समाज से बगावत कर लेता है... और बदले में मिलने वाली जलालत को अपनी मोहब्बत का इनाम...
शमशेर ने भी यही किया... उसके शमा से प्यार को देखकर उसके दोस्त उसको शेर कहने लगे; शमा का शेर! और वो दीपक से शमशेर हो गया; शमा का शमशेर!
उस् पागल ने डोक्युमैन्ट्स में भी अपना नाम बदल लिया... इस बात से खफा उसके पिताजी ने उसको धक्के दे दिए; 'अपने घर से' और तभी से वो अजीत के घर रहने लगा... उसके भाई की तरह!
कुछ दिनों बाद की बात है...
शमशेर की क्लास के एक लड़के ने सबको अपनी ब'डे पार्टी के लिए इन्वाईट किया अपने फार्म हाउस पर; शमशेर को भी;
ये वही लड़का था जिसके साथ पहले झगड़ा हो चुका था, शमा के लिए....
शमशेर जाना नहीं चाहता था... पर शमा उसको जबरदस्ती ले गयी, अपने साथ; फार्म हाउस पर....
वो ही वो क़यामत की रात थी.. जिसने शमशेर को ऐसा बना दिया... बिलकुल शांत... बिलकुल निश्चिंत!
दिनेश ने केक काटा और सबसे पहले शमा को खिलाया, फिर उसके होंटों को चूम लिया; शमा ने भी उसको अपनी बाँहों में भर लिया और एक लम्बी फ्रेंच किस दी...
ये किस दिनेश की केवल वैल विशेस नहीं थी; दोनों के चेहरों से वासना टपक रही थी... Shamsher ko ek pal to jaise यकीन नहीं हुआ... फिर खून का घूँट पीकर रह गया; आखिर उस किस में शमा की मर्ज़ी शामिल थी.
हद तो जब हो गयी, जब कुछ देर बाद दिनेश उसको अपने कंधे पर उठा कर जाने लगा...शमा ने शमशेर को बाय किया, मुस्कुराते हुए!
"दिनेश!" शमशेर की आँखों में खून उतर गया... सभी की आँखों में उतर जाता... बेवफाई का ऐसा नंगा प्रदर्शन देखकर.
दिनेश ने शमा को अपने कंधे से उतारा," क्या है बे! अभी तेरी 'बहिन को चोदुंगा साले! आजा देखना हो तो!"... शमा अब भी मुस्कुरा रही थी
शमशेर उसकी और भगा... पर दिनेश के दोस्तों ने मिलकर उसको पहले ही लपक लिया... नहीं तो एक खून और हो जाता... दिनेश का या शमा का... एक खून तो पहले ही हो चुका था... 'शमशेर' के अरमानों का..
"साले को अन्दर ले आओ!" दिनेश दहाड़ा....
और वो उसको एक बेडरूम में ले गए...
आलिशान बेडरूम में; और शमशेर को वहाँ घुटनों में लाठी देकर बाँध दिया... शमशेर जमीन पर पड़ा था... असहाय और लाचार!
शमा और दिनेश कमरे में आ गये. दिनेश ने इशारा किया और शमा अपने शरीर का एक-एक कपड़ा उतार कर शमशेर की और फैंकती गयी... आखिर में अपनी पैंटी भी....
शमशेर का चेहरा भीग गया था...
उसके लाचार आँसू फर्श पर बह रहे थे...
उसने आँख खोल कर शमा को देखा...
शमा दिनेश के अंग को मुंह में ले कर चूस रही थी...
शमशेर की आँखे बंद हो गयी...
उसके बाद कमरे में करीब ३० मिनट तक शमा की आँहे गूंजती रही... सिसकियाँ गूंजती रही...
जो शमशेर के कानो में पिघले हुए लावे की तरह जा रही थी!
शमशेर लाख कोशिश करने के बाद भी अपने कान बंद नहीं कर पाया... उसको सब कुछ सुन-ना पड़ा; सब कुछ.
अंत में जब सिसकिया बंद हो गयी तब शमशेर ने आँखें खोली...
दिनेश उसकी नंगी छातियों पर पड़ा था...
शमा ने बोला, " आई लव यू दिनेश! " उसी लहजे में जिस लहजे में उसने हजारों बार बोला था...
" आई लव यू दीपक.... आई लव यू माय शमशेर "!
शमशेर ने कपड़े पहनकर बाहर जाती हुयी शमा से पूछा, " तुमने..... ऐसा क्यूँ किया, शमा! "
" क्यूंकि तुम्हारे पास अब पैसा नहीं है... जान! " और वो मुस्कुराती हुयी चली गयी...
दिनेश ने अपने दोस्तों को बुलाया," खोल दो साले को; अगर जरा भी गैरत होगी तो खुद ही मर जायेगा... बहन का....!"
उसके दोस्तों ने शमशेर को खोल दिया; पर शमशेर नहीं उठा... अब उठने को रहा ही क्या था!
उसके दोस्तों ने शमशेर को फार्म हाउस से बाहर फैंक कर अजीत के भाई को फोन कर दिया..
वो अपने दोस्तों के साथ आया और शमशेर को ले गया. कॉलेज में जिसको भी पता चला; वो खूब रोया, पर शमशेर के आँसू नहीं निकले... उसके सारे आँसू निकल चुके थे; शमा के सामने!
शमशेर के पिता को पता चला तो भागा हुआ आया, लम्बी-लम्बी लालबत्ती वाली गाड़ियों में. और अपने वंश को ले गया...
उसके दो दिन बाद ही शमा और दिनेश मरे पाये गये! पुलिस ने अपनी केस डायरी में लिखा," वो एक दुसरे से बहुत प्यार करते थे, पर समाज ने उनको मिलने ही नहीं दिया... इसीलिए दोनों ने सुसाइड कर लिया!
कहते हैं समय सब कुछ भुला देता है... शमशेर भी बदल गया... पर दो चीजे उसने नहीं बदली... एक तो अपना नाम... और दूसरा उस रात के बाद वाला अपना नेचर;..... बिलकुल शांत.... बिलकुल निश्चिंत...
वो प्यार से नफरत करने लगा... उसको तब के बाद लड़कियों से एक ही मतलब रहता था... सेक्स... सेक्स और सेक्स....
शमशेर ने अजीत को देखा... वो आँख बंद किये रो रहा था.... बिना बोले.... लगातार...!
शमशेर ने अजीत के हाथ से कप ले लिया... चाय तो कब की ठंडी हो चुकी थी. वो कुछ ना बोला. उसके दोस्त जब भी उससे मिलते थे तो शमशेर के अतीत को याद करके ऐसे ही सुबकते थे... भीतर ही भीतर...
शमशेर उसके लिए पानी ले आया," लो, टफ! मुँह धो लो!... कुछ देर बाद सब नोर्मल हो गया और वो फिर से मस्ती भरी बातें करने लगे
"शमशेर भाई! ये तो बता ये सरिता क्या बला है?"
"कौन सरिता?", शमशेर को याद नहीं आया!
अरे वो मेरी 'प्यारी' गाड़ी में कह नहीं रही थी!" मुझसे तो सरिता भी जलती है."
"ओह अच्छा! सरिता! वो उसी की तो बेटी है...
"मस्त है क्या?"
"देखेगा, तो खुद ही समझ जायेगा!"
"भाई! वो भी दिख जायेगी क्या?"
"हाँ, हाँ; क्यूँ नहीं दिखेगी?"
"लगता है खानदान ही धंधे में है, भाई!"
तभी दिशा ऊपर आई," खाना लगाना है क्या.... सर". दिशा दरवाजे की साईड में खड़ी थी, शरमाई सी, और वाणी उसकी साईड में..... जासूस!
अजीत: एक बार अन्दर आना!.... वो शमशेर के नये प्यार को अपनी आँखों से परखना चाहता था.....
दिशा अन्दर आ गयी... नजरें झुकाये.... और वाणी ने उसका हाथ पकड़ा हुआ था... वो इस नये मेहमान को घूर रही थी!
"अच्छा! एक बात तो बताओ; तुम्हारा फेवरेट टीचर कौन है....." अजीत ने कहा
दिशा निशब्द खड़ी रही... वो उसके सर थोड़े ही थे! पर वाणी ने एक भी सेकंड नहीं गवाई, और बेड पर चढ़कर सर से लिपट गयी," शमशेर सर!"
अजीत ने उसकी और हाथ बढ़ाया," ही! आई ऍम अजीत एंड यू"
वाणी ने दोनों हाथ जोड़ दिये," नमस्ते! और हाथ नहीं मिलाओंगी; दीदी कहती हैं, बाहर वाले लड़कों को ज्यादा मुँह नहीं लगाते!"
ऐसा सुनते ही तीनों की जोर से हँसी छुट गयी! वाणी को लगा कुछ गलत कह दिया, दीदी से पूछ लो; इन्होने ही बोला था!
दिशा शरमाकर नीचे भाग गयी... और वाणी उसके पीछे-पीछे... ये पूछने के लिए की उसने क्या गलत कह दिया!
नीचे जाते ही दिशा जोर-जोर से हँसने लगी... वाणी ने पूछा," क्या हुआ दीदी! बताओ ना!"
दिशा हँसते हुये बोली," कुछ नहीं तू भी कितनी उल्लू है, कोई किसी के सामने ऐसे ही थोड़े बोलता है!.... और फिर वे इनके दोस्त हैं!"
वाणी: सॉरी दीदी! मैं ऊपर सॉरी बोलकर आऊँ?
दिशा: नहीं रहने दे! ...... फिर कुछ सोच कर बोली," वाणी! एक बात पूछूं तो बतायेगी!
वाणी: पूछो दीदी!
दिशा: मान लो तेरी किसी के साथ शादी हो जाती है...
वाणी: मैं तो सर से ही शादी करुँगी दीदी....
दिशा सिहर गयी... वाणी के प्यार का रंग बदलता जा रहा था...
दिशा: वाणी!........... शमशेर से मैं प्यार करती हूँ;(वो भावुक हो गयी थी) मैं उनसे शादी करना चाहती हूँ... क्या तू मेरे और उसके बीच में आयेगी? क्या तू कभी अपनी दीदी का दिल तोड़ सकती है...
वाणी ने उसका हाथ पकड़ लिया .... ," क्या ऐसा नहीं हो सकता की सर हम दोनों से शादी कर लें, दीदी! मेरी एक सहेली की दो मम्मियाँ हैं"
दिशा ने उसके गालों को सहलाते हुये कहा," हम हिन्दू हैं, वाणी! हमारे धरम में ऐसा नहीं होता....
"पर दीदी; हम कह देंगे हम तो मुसलमान बन गये!"
"ऐसे नहीं होता वाणी! और मान भी लो; ऐसा हो जाये तो क्या हम एक दुसरे को शमशेर और अपने बीच एक दूसरी को सहन कर लेंगे...."
"बीच में कहाँ दीदी; एक तरफ में और एक तरफ तुम..."
दिशा: तू तो है ना; बिलकुल पागल है; एक बात बता, ये जो सर के दोस्त हैं..... कैसे लगते हैं तुझे..?
वाणी: बहुत सुंदर है दीदी... सर से भी सुंदर!
दिशा: तू उनसे शादी कर ले ना! में शमशेर से बात कर लूंगी!
वाणी: नहीं दीदी, उनसे तुम कर लो; मैं तो सर से ही करुँगी.... वो दिशा को घूर रही थी!
तभी मामा मामी आ गये; खाना लगाकर दोनों खाना दे आयी और नीचे ही सो गयी; आज वाणी ने जिद नहीं की...
वो समझने लगी थी... प्यार में अकेलेपन की जरुरत को....
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