मस्ती की पाठशाला - एक रोमाचंक कहानी भाग-8
दिव्या: आ वाणी; चल ना मेरे घर वाणी ने भोलेपन से कहा," नआईईई, मुझे तो अभी स्कूल का काम भी करना है मैं दोपहर बाद आ जवँगी; ओके!" दिव्या उससे दोपहर बाद आने का प्रोमिसे लेकर चली गयी....... दिव्या, वाणी की बेस्ट फ्रेंड; उसी की उमर की थी उसका बदन भी गदराया हुआ था चेहरे से गाँव का अल्हाड़पन भोलापन साफ झलकता था उसका घर सरपंच की हवेली से सटा हुआ था....छत से छत मिलती थी. सरपंच का बिगड़ा हुआ बेटा; छत से दिव्या को अकेला देखकर कूद आया! जाहिर है उसकी नियत ठीक नही थी...! "राकेश तुम छत से कूदकर क्यूँ आए हो!", दिव्या उसकी आँखों में छिपि वासना को नही समझ पाई राकेश करीब 21 साल का नौजवान लड़का था. एक तो उसका खून ही खराब था; दूसरे उसके बाप की गाँव में तूती बोलती थी; फिर बिगड़ता कैसे नही," दिव्या में तुझे एक खेल सिखाने आया हूं. खेलेगी!" "नही, मुझे अभी पढ़ना है; शाम को वाणी आएगी तो मैं उसके साथ खेलूँगी, तब आ जाना" राकेश: सोच ले इतना मस्त खेल है की हमेशा याद रखेगी. इस खेल को सिर्फ़ दो ही खेल सकते हैं फिर मत कहना की सिखाया नही मैने सरिता को भी सीखा दिया है दिव्या: ठीक है 5 मिनिट में सीखा दो! राकेश ने झट से अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया!
दिव्या: तुम ये दरवाजा क्यूँ बंद कर रहे हो!
राकेश: क्यूंकी ये खेल अंधेरे में खेला जाता है,पागल!
दिव्या: अच्छा! .....वो खेल सीखने के लिए उत्सुक हो उठी
राकेश: अब तुम आँखे बंद कर लो, देखो आँखे नही खोलना
दिव्या: ठीक है!... और उसने आँखें बंद कर ली. राकेश ने उसके गालों की पप्पी ले ली... दिव्या ने आँखें खोल दी,"छ्हीईइ! बेशर्म, ये कोई खेल है?"
राकेश: अरे खेल तो अब शुरू होगा, बस तुम आँखें नही खॉलॉगी! दिव्या ने अनमने मंन से आँखें बंद कर ली. राकेश ने पिछे से जाकर उसकी दोनों अधपकी चुचियाँ पकड़ ली.. दिव्या: हटो राकेश, ये तो गंदी बात है. तुम यहाँ हाथ मत लगाओ!..... उसके दिल में एक लहर सी उठी थी राकेश उसकी छातियोन को मसलता रहा दिव्या ने छुड़ाने की कोशिश की पर उसका विरोध लगातार कम होता गया
उसकी आँखें बंद सी होने लगी उसके सारे शरीर में हलचल शुरू हो गयी; जांघों के बीच भी गुद-गुदी सी हो रही थी उसको वश में आता देख राकेश आगे आ गया उसके होंट चूसने लगा और उसके कमीज़ में अपना हाथ घुसा दिया अब उसकी चुचियों और राकेश के हाथों के बीच कोई परदा ना था दिव्या पर जवानी का नशा हावी होता जा रही था वो आँखें बंद किए किए ही खाट पर बैठ गयी उसके मुँह से अजीब से आँहें निकल रही थी राकेश ने उसको हाथ का हल्का सा इशारा दिया और वो चारपाई पर पसर गयी उसको नही पता था उसकी सहेलिया जिसे गंदी बात कहती है उसमें दुनिया भर का मज़ा है "राकेशह!" "क्या?" राकेश उसका कमीज़ उठाहकर उसकी चुचियों को बता रहा था की ये सिर्फ़ दूध पिलाने के लिए नही बल्कि चूसने के काम भी आती हैं
दिव्या: बहुत मज़ा आ रहा है राकेश! आहह....ये तो बहुत अच्छा खेल है राकेश ने उसका अधमरा सा करके छोड़ दिया वह उससे अलग हो गया! " और करो ना प्लीज, थोड़ी देर और" मानो दिव्या उससे भीख माँग रही थी!
राकेश: नही ये खेल तो यहीं तक है. अब इसका दूसरा हिस्सा शुरू होगा.... वह अपने पॅंट में छिपे लंड को मसल रहा था
दिव्या: नही, मुझे यही खेलना है! इसमें मज़ा आता है
राकेश: अरे वो खेलकर तो तुम इसको भूल ही जाओगी राकेश समझ गया था की अब दिल्ली दूर नही है
दिव्या: अच्च्छा! तो खेलो फिर....... राकेश जानता था; दिव्या अन्छुई कली है, खेल के अगले भाग में उसको दर्द भी होगा आँसू भी निकलेंगे...और वो चिल्लाएगी भी," दिव्या, अगला खेल बड़ा मजेदार है पर वो थोड़ा सा मुश्किल है" "कैसे?" वो और मज़ा लेने को व्याकुल थी वो समझ नही पा रही थी की जो मज़ा अभी तक के खेल में उसको आया था, उससे ज़्यादा मज़ा... कितना होता होगा!
राकेश: अब मैं तुम्हे एक कुर्सी से बाँध दूँगा तुम्हारा मुँह भी कपड़े से बाँध दूँगा! फिर शुरू होगा आगे खेल!
दिव्या: नही तुम चीटिंग करोगे, मुझे कुर्सी से बाँध कर भाग जाओगे.....हालाँकि वो ऐसा करने को तैयार थी
राकेश: मैं पागल हूँ क्या, मुझे ऐसा करना होता तो मैं पहले यही खेल खेलने को कहता टाइम बर्बाद क्यूँ करता.... दिव्या: हूंम्म! ओके...! राकेश ने दीवार के साथ एक कुर्सी सटाई और उस पर दिव्या को इस तरह बैठा दिया जिससे उसके चूतड़ कुर्सी से थोड़ा बाहर निकले थे उसके पैरो को उसने कुर्सी के हत्थो के उपर से ले जाकर बाहर की और बाँध दिए इस पोज़िशन में वो तंग हो गयी
दिव्या: पैरो को आगे ही एक साथ करके नही बाँध सकते क्या?
राकेश: नही, ये खेल का रूल है! दिव्या अपनी गॅंड को हिलाकर अड्जस्ट करने की कॉसिश करती हुई बोली," अच्छा ठीक है! अब जल्दी सिख़ाओ, मुझे दर्द हो रहा है राकेश मंन ही मंन मुस्कुराया, सोचा ये इसी को दर्द कह रही है तो आगे क्या होगा. उसने दिव्या के मुँह पर कपड़ा बाँध दिया अब वो बोल नही सकती थी; ज़्यादा हिल नही सकती थी... अब राकेश ने देर नही की. वो दिव्या की सलवार खोलने लगा दिव्या ने कुछ बोलने की कोशिश करी, उसको शर्म आ रही थी.... राकेश ने दिव्या की सलवार का नाडा खोलकर उसके पीछे हाथ लेजाकर सलवार को नीचे से आगे की और खींच लिया, उसके अंडरवियर समेत... और सलवार को उपर घुटनों तक उठा दिया पैर बँधे होने की वजह से वो पूरी नही निकल सका दिव्या कसमसा रही थी; राकेश के सामने उसकी नंगी चूत थी.... पर वो तो हिल भी ना सकती थी, बोल भी ना सकती थी, उसने ज़्यादा कोशिश भी नही की, उसने शर्म से आँखे बंद कर ली राकेश नीचे बैठा और उसकी गांड़ को जितना आगे कर सकता था कर दिया उसने अपने होंट उसकी सलवार के नीचे से ले जाकर चूत से सटा दिए दिव्या सकपका गयी उसकी आँखें मारे उत्तेजना के बंद हो गयी असीम आनंद का अनुभव हो रहा था उसने सोचा; राकेश सही कह रहा था इसमें तो और भी मज़ा है, लेकिन पैर बाँधने की क्या ज़रूरत थी! अब राकेश जैसे उसकी चूत को चूस नही खा रहा था, कभी उपर, कभी नीचे, कभी ये फाँक, कभी वो फाँक; कभी दाना तो कभी छेद. दिव्या बुरी तरह छट-पटा रही थी हाए, इतना मज़ा दे दिया उसकी चुचियों में कस-मसाहट सी हो रही थी. इनको क्यूँ खाली छोड़ रखा है, उसका दिल किया वो राकेश को अपने उपर खींच ले; पर उसके तो हाथ भी बँधे हुए थे अब दिव्या की टाँगों का दर्द जाता रहा! अचानक उसको मिलने वाला मज़ा बंद हो गया था उसने आँखे खोली, राकेश अपनी पॅंट उतार रहा था राकेश ने अपनी पॅंट और अंडरवेर उतार कर ज़मीन पर फेंक दी, दिव्या की आँखें फटी की फटी रह गयी इसका इतना लंबा कैसे है! अब ये इसका क्या करेगा.. जल्द ही उसको इसका जवाब मिल गया राकेश अब ज़्यादा टाइम लगाने के मूड में नही था उसने कुर्सी के हत्थे पर अपना एक हाथ रखा और दूसरे से अपने 6 इंची को उसकी गीली हो चुकी चूत से सटा दिया दिव्या डर गयी! ये तो शादी के बाद वाला खेल है, उसकी दीदी ने बताया था; जब पहली बार उसके पति ने इसमें घुसाया था तो उसकी जान ही निकल गयी वह जितना हिल सकती थी, उतना हिल कर अपना विरोध जताने लगी. "बट इन वान्ट"
राकेश ने अपने लंड का दबाव उसकी चूत पर दबाया पर वो खुलने का नाम ही नही ले रही थी दिव्या की चीख उसके मुँह में ही दबकर रह जाती थी राकेश भी नादान नही था वो किचन से मक्खन उठा लाया अपनी उंगली से दिव्या की चूत में ही मुट्ठी भर मक्खन ठुस दिया, दिशा की चूत से सीटी जैसी आवाज़ आने लगी, ये सिग्नल था की अब की बार काम हो जाएगा राकेश ने अपने लंड पर भी मक्खन चुपडा और टारगेट को देखने लगा उसने दिव्या की चीखों की परवाह ना करते हुए अपने औज़ार का सारा दम उसकी चूत के मुहाने पर लगा दिया!....सॅटटॅक और सूपड़ा अंदर. उसने दिव्या की जांघों को अपने हाथों से दबा कर एक बार और हुंकार भारी, दिव्या बेहोश सी हो गयी उसने इतने गंदे लड़के की बात पर विस्वास करके अपनी मौत बुला ली दर्द को कम तो होना ही था सो हुआ, दिव्या को धीरे-धीरे मज़ा आना ही था सो आने लगा अब उसकी आँखों से पानी सूख गया और उनमें आनंद की चमक आ गयी वह अपने आपे में नही रही, कहना चाहती थी मुझे खोल दो और खुल कर खेलो ये खेल पर वो तो बोल ही नही सकती थी, वो तो खेल ही नही सकती थी.... वो तो बस एक खिलौना थी; राकेश के हाथों का.... राकेश उसको चोद्ता ही चला गया.... उसने ये भी परवाह ना की दिव्या की मछ्लि घायल है; खून फाँक रही है.... मक्खन में लिपटा हुआ.... अचानक राकेश का काम होने को आ गया और उसने ज़ोर की दहाड़ लगाई.... वह शिकार में कामयाब जो हो गया था, लंड निकाल कर उसकी गोद में गिर पड़ा.... दिव्या का तो पता ही नही कितनी बार उसकी योनि ने रस उगला..... खून में लिपटा हुआ.... खैर राकेश ने दिव्या को खोल दिया दिव्या खून देखकर एक बार तो डरी, फिर उसको दीदी की बात याद आ गयी....पहली बार तो आता ही है. जब दोनो नॉर्मल हो गये तो राकेश ने कहा," मज़ा आया मेरी जान"
दिव्या: हां पर तुमने चीटिंग की,.... मुझे आइन्दा कभी बांधना मत!
दिशा सर के लिए दूध लेकर गयी शमशेर बस नाहकार ही निकला था दिशा उसको बहुत कुछ कहना चाहती थी पर पता नही क्यूँ, उसके सामने जाते ही जैसे उसके होंट सील जाते थे; वह शमशेर के जिस्म पर नही बल्कि उसकी पर्सनॅलिटी पर मरती थी रात की बात को याद करके वह बार-बार खुश हो जाती थी, उसको पता था की सर के सपने में वो आई थी..... पर वो ये नही समझ पा रही थी की सर बार-बार उसका नाम लेकर माफी क्यूँ माँग रहे थे.... जो भी था सर का सपना तो डरावना ही था.... वरना वो पसीने में क्यूँ भीगे होते! उसने दूध का मग टेबल पर रख दिया और झाड़ू लेकर वहाँ सफाई करने लगी
शमशेर: रहने दो, मैं कर लूँगा! दिशा: आ..आप कैसे करेंगे सर!... वो बड़ी हिम्मत करके बोल पाई
शमशेर: करनी ही पड़ेगी... और कौन करेगा?
दिशा: मैं कर तो रही हूँ!
शमशेर: तुम कब तक करोगी? दिशा के दिल में आया कहदे सारी उमर; पर लबों ने साथ नही दिया," सर! आप शादी क्यूँ नही करते?
शमशेर: कोई मिलती ही नही..... शमशेर आगे कहने वाला था....'तुम्हारे जैसी' पर उन्न खास शब्दों को वो दूध के साथ पी गया!
दिशा: आपको कैसी लड़की चाहिए.... ? अब की बार उसने 'सर' नही लगाया. शमशेर को सीधे बोलते हुए उसको बड़ा आनंद आया तभी शमशेर का सेल बज गया; अंजलि का फोन था 'हेलो' उधर से आवाज़ आई,"शमशेर!" "हां!" "तुम मेरे पास अभी आ जाओ", बहुत खास बात करनी है" शमशेर ने दिशा की और देखा,"क्या खास बात है भला? "तुम आओ तो सही; आ रहे हो ना" "हां" कहकर उसने फोन काट दिया उसने जल्दी से कपड़े बदले और नीचे उतर गया नीचे जैसे वाणी उसका ही इंतज़ार कर रही थी," सर, आपने मुझे प्रोमिसे किया था की मुझे गाड़ी चलाना सिखाएँगे, आज सनडे है; चलें..." शमशेर: आज नही वाणी, फिर कभी...! वाणी: प्लीज़ सर, चलिए ना
शमशेर: वाणी, अभी मुझे काम है, शाम को देखते हैं! ओक; बाइ वाणी मायूस होकर सर को जाते देखती रही......
अंजली उसका ही इंतज़ार कर रही थी शमशेर के अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया उसने अजीब सा सवाल किया," शमशेर, तुम्हे में कैसी लगती हूँ?" शमशेर ने उसको खींच कर अपने से सटा लिया और उसके होंटो को चूम कर बोला,"सेक्सी!"
अंजली: मैं मज़ाक नही कर रही; आइ'एम क्वाइट सीरीयस बोलो ना! शमशेर रात से ही प्यासा था, उसने अंजलि को बाहों में उठा लिया और बेड पर ले जाकर पटक दिया अंजलि कातिल निगाहों से उसको देखने लगी शमशेर भी कुछ सोचकर ही आया था," मेरा तुम्हारे साथ नहाने की बड़ी इच्छा है चलें! वो तो शमशेर की दीवानी थी; कैसे मना करती," एक शर्त है?" "बोलो!" "तुम मुझे नहलाओगे!" उसकी शर्त में शमशेर का भी भला था "चलो! यहीं से शुरुआत कर देता हूँ" कहकर शमशेर अंजलि के शरीर को एक-एक कपड़ा उतार कर अनावृत करने लगा अंजलि गरम हो गयी थी नंगी होते ही उसने शमशेर को बेड पर नीचे गिरा लिया और तुरंत ही उसको भी नंगा कर दिया वो उसके उपर जैसे गिर पड़ी और उसके होंटो पर अपनी मोहर लगाने लगी शमशेर को रह=रह कर दिशा याद आ रही थी जैसे अगर उसको पता चलेगा तो वह बहुत नाराज़ होगी "क्या बात है? मूड नही है क्या," अंजलि ने उसके होंटो को आज़ाद करते हुए कहा शमशेर संभाल गया और पलट कर उसके उपर आ गया, उसने उसकी छाति को दबा दिया....क्या दिशा को भी वो ऐसे छू पाएगा अंजलि की सिसकी नकल गयी उसने शमशेर का सिर अपनी चुचियों पर दबा दिया शमशेर उस पल बाकी सब कुछ भूल गया शमशेर उस पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा, और जिस्म को नोचने लगा, वो सच में ही बहुत सेक्सी थी शमशेर उठा और अपना लंड उसको चखने के लिए पेश किया अंजलि भी इस कुलफी को खाने की शौकीन हो चुकी थी उसने झट से मुँह खोलकर अपनी चूत के यार को अपने गरम होंटो में क़ैद कर लिया कमरे का टेम्परेचर बढ़ता जा रहा था रह-रह कर अंजलि के मुँह से जब उसका लंड बाहर लिकलता तो 'पंप' की आवाज़ होती कुछ ही दिनों में ही वो ओरल सेक्स में परफेक्ट हो चुकी थी अंजलि ने चूस-चूस कर शमशेर के लंड को एकदम चिकना कर दिया था; अपनी कसी चूत के लिए तैयार! शमशेर ने अंजलि को पलट दिया और उसके 40" की गांड़ को मसालने लगा. उसने अंजलि को बीच से उपर किया और एक तकिये को वहाँ सेट कर दिया अंजलि की गांड उपर उठ गयी.....उसकी दरार और खुल सी गयी
अंजलि को जल्द ही समझ आ गया की आज शमशेर का इरादा ख़तरनाक है; वो गांड़ के टाइट छेद पर अपना थूक लगा रहा था.... "प्लीज़ यहाँ नही!" अंजलि को डर लग रहा था... फिर कभी कर लेना...!" अभी नही तो कभी नही वाले अंदाज में शमशेर ने अपनी उंगली उसकी गांड़ में फँसा दी, ऐसा तो वो पहले भी उसको चोद्ते हुए कर चुका था! पर आज तो उसका इरादा असली औजार वहाँ उसे करने का लग रहा था अंजलि को उंगली अंदर बाहर लेने में परेशानी हो रही थी उसने अपनी गांड़ को और चौड़ा दिया ताकि कुछ राहत मिल सके कुछ देर ऐसे ही करने के बाद शमशेर ने ड्रेसिंग टेबल के ड्रॉयर से कोल्ड क्रीम निकाल ली," इससे आसान हो जाएगा" जैसे ही कोल्ड क्रीम लगी हुई उसकी उंगली अंजलि की गांड़ की दरारों से गुज़री, अंजलि को चिकनाई और थंडक का अहसास हुआ, ये अपेक्षाकृत अधिक सुखदायी था करीब 2 मिनिट तक शमशेर उंगली से ही उसके 'दूसरे छेद' में ड्रिलिंग करता रहा, अब अंजलि को मज़ा आने लगा था उसने अपनी गांड़ को थोड़ा और उँचा उठा लिया और रास्ते और आसान होते गये; फिर थोड़ा और....फिर थोडा और..... थोड़ी देर बाद वह कुतिया बन गयी.....! इश्स पोज़िशन में उसकी गांड़ की आँख सीधे छत को देख रही थी, उंगली निकालने पर भी वह थोड़ी देर खुली रहती थी शमशेर ने ड्रिलर का साइज़ बढ़ा दिया; अब अंगूठा अपने काम पर लगा था शमशेर झुका और अंजलि की चूत का दाना अपने होंटो में दबा लिया, वह तो 'हाइयी मर गयी' कह बैठी मरी तो वो नही थी लेकिन शमशेर को पता था वो मरने ही वाली है शमशेर घुटने मोड़ कर उसकी गांड़ पर झुक गया, टारगेट सेट किया और 'फिर!'..... अंजलि चिहुनक पड़ी, पहले ही वार में निशाना सटीक बैठा था..... लंड आधा इधर.... आधा उधर.... अंजलि मुँह के बाल गिर पड़ी, लंड अब भी फँसा हुआ था.... करीब 3 इंच "बुसस्स्सस्स.... प्लीज़.... रुक... जाओ! और नही" अंजलि का ये कहना यूँही नही था... उसकी गांड़ फैल कर 4 इंच खुल चुकी थी...... 4 इंच! शमशेर ने संयम से काम लिया; उसकी छातिया दबाने लगा..... कमर पर किस करने लगा.... वग़ैरा वग़ैरा! अंजलि कुछ शांत हुई, पर वो बार बार कह रही थी," हिलना मत....हिलना मत!" शमशेर ने उसको धीरे से उपर उठाया.... धीरे.... धीरे और उसको वापस चार पैरों वाली बना दिया......कुतिया! शमशेर ने अपना लंड थोड़ा सा बाहर खींचा.... उसकी गांड़ के अन्द्रुनि हिस्से को थोड़ी राहत बक्शी और फिर जुलम ढा दिया... पूरा जुलम उसकी गांड़ में ही ढा दिया अंजलि को काटो तो खून नही.... बदहवास शी होकर कुछ-कुछ बोलने लगी, शायद बताना ज़रूरी नही! शमशेर ने काम चालू कर दिया.... कमरे का वातावरण अजीबो-गरीब हो गया था अंजलि कभी कुछ बोलती.... कभी कुछ कभी शमशेर को कुत्ता कहती.... कभी कमीना कहती.... और फिर उसी को कहती.....आइ लव यू जान.... जैसे मज़ा देने वाला कोई और हो और सज़ा देने वाला कोई और. आख़िरकार अंजलि ने राहत की साँस ली.... उसका दर्द लगभग बंद हो गया.... अब तो लंड उसकी गांड़ में सटाक से जा रहा था और फटाक से आ रहा था.... फिर तो दोनों जैसे दूध में नहा रहे हो.... सारा वातावरण असभ्या हो गया था.... लगता ही नही था वो पढ़े लिखे हैं.... आज तो उन्होने मज़े लेने की हद तक मज़ा लिया..... मज़े देने की हद तक मज़ा दिया.... और आख़िर आते-आते दोनों टूट चुके थे.......
अंजलि ने नंगी ही शमशेर के साथ स्नान किया शमशेर ने अंजलि को खूब रगड़ा और अंजलि ने शमशेर को... फिर दोनों अपना शरीर ढक कर बाहर सोफे पर बैठ गये "डू यू लव मी जान?" अंजलि ने बैठते ही सवाल दागा " तुम्हे कोई शक है?" "नही तो!" अंजलि ने उसकी गोद में सिर रख लिया," क्या तुम मुझसे शादी करोगे?" "नही!" शमशेर का जवाब बहुत कड़वा था "क्यूँ?" अंजलि उठ कर बैठ गयी!
शमशेर: क्या मैने कभी ऐसा कोई वादा किया है?
अंजलि: ना!
शमशेर: तो ऐसा सवाल क्यूँ किया? अंजलि मायूस हो गयी " मैने तो इसीलिए पूचछा था..... चाचा का फोने आया था; मेरे लिए एक रिश्ता आया है" "कंग्रॅजुलेशन्स!" क्या करता है" शमशेर को जैसे कोई फ़र्क नही पड़ा
अंजलि: कुछ खास नही, उमर करीब 40 साल है एक बच्ची है पहली बीवी से! और मुझे इतना ही पता है की वो पैसे वाला है... बस! शमशेर ने उसको बाहों में भर कर माथे पर चूम लिया..... उसे लगा शायद ये आखरी बार है.... राकेश के जाने के बाद, दिव्या बहुत बेचैन हो गयी... वो वोडेफोन की एड आती है ना टी.वी. पर; अब सबको बताओ सिर्फ़ 60 पैसे में; की मोटी की तरह ही उसका हाल था, सबको तो वो बता नही सकती, पर वाणी; वो तो उसकी बेस्ट फ्रेंड थी दिव्या ने वाणी को ये खेल सिखाने की सोची और बिना देर किए उसके घर पहुँच गयी "वाणी", घर जाकर उसने आवाज़ लगाई "हां दिव्या, आ जाओ! मैं यही हूँ!" दिव्या की आवाज़ में हमेशा रहने वाली मिठास थी दिव्या: अब चलें हमारे घर! वाणी: सॉरी दिव्या! सर के आने के बाद मुझे गाड़ी सीखने जाना है! मैं नही चल सकती
दिव्या: अच्छा एक बार बाहर आना! वाणी उसके साथ बाहर आ गयी," बोल!"
दिव्या: तू चल ना प्लीज़. मुझे तुझे एक खेल सिखाना है वाणी उत्सुक हो गयी खेलने में उसको बहुत मज़ा आता था!," कैसा खेल!" दिव्या: नही, यहाँ नही बता सकती, अकेले में ही बता सकती हूँ!
वाणी: तो चल उपर! उपर बता देना!
दिव्या: उपर तो सर रहते हैं, वो आ गये तो?
वाणी: नही, वो तो 5 बजे की कहकर गये हैं, अभी तो 2 ही बजे हैं! चल जल्दी चल! दोनों भागती हुई उपर चली गयी उपर जाकर उन्होने दरवाजा बंद कर लिया, एक खिड़की खुली थी
दिव्या: ये भी बंद कर दे!
वाणी: अरे इसकी कोई ज़रूरत नही है, कोई आएगा तो सीढ़ियों से ही दिख जाएगा; फिर ऐसा भी क्या खेल है जो तू इतना डर रही है
दिव्या: देख बुरा मत मानना, ये छुप कर खेलने का ही खेल है, पर मज़ा बहुत आता है
वाणी: ऐसा कौनसा खेल है?
दिव्या: शादी के बाद वाला खेल! वाणी को पता ही नही था की शादी के बाद कोई खेल भी खेला जाता है उसको किसी ने बताया ही नही आज तक! वो उत्सुक हो उठी, ऐसा खेल खेलने के लिए," चल जल्दी सीखा ना"
दिव्या: देख वैसे तो ये खेल लड़के के साथ खेला जाता है पर..... वाणी ने बीच में ही टोक दिया," तो सर को आने दो!" दिव्या उसकी बात पर हँसी," धात! ऐसा फिर मत कहना.... पर में तुझ खेल सीखा सकती हूँ...."
वाणी: तो सीखा ना, इतनी बातें क्यूँ कर रही है........ वाणी ने आँखें बंद कर ली; दिव्या ने राकेश की तरह से ही वाणी के पीछे जाकर उसकी मदभरी छातियों को हल्के से दबा दिया वाणी उछल पड़ी," ये क्या कर रही है तू" हां, मज़ा तो उसको आया था; ये मज़ा तो वो ले चुकी थी सर के हाथो से!
दिव्या: तू बस अब टोक मत, यही तो खेल है! वाणी हँसने लगी, उसके बदन में गुदगुदी सी होने लगी,"ठीक है" और उसने फिर आँखें बंद कर ली दिव्या ने इस बार उसके टॉप में हाथ डाल दिया और उसको खेल का पहला भाग सिखाने लगी. वाणी मारे गुदगुदी के मरी जा रही थी. वह रह रह कर उच्छल पड़ती! उसको बहुत मज़ा आ रहा था; उसका चेहरा धीरे धीरे लाल होने लगा! अब दिव्या उसको छ्चोड़ कर बोली," अब तू इधर मुँह कर ले; तू मुझसे खेल और में तुझसे खेलूँगी." अब लेज़्बियेनिज़्म अपने चरम पर था दोनों एक दूसरे की चुचियों को मसल रही थी एक दूसरे के लबों से लब टकरा रही थी; दोनों ही मस्त हो चुकी थी, बीच-बीच में दोनों सीढ़हियों की और भी देख लेती वाणी: तू तो कह रही थी की ये खेल लड़के के साथ खेला जाता है; इसमें लड़के की क्या ज़रूरत है.... वो साथ साथ 'खेल' भी रही थी
दिव्या: पहला भाग तो चल जाता है, पर दूसरा भाग लड़के के बिना नही हो सकता
वाणी: वो कैसे?
दिव्या: चल बताती हूँ; बेड पर लेट जा...... और वाणी लेट गयी..! दिव्या ने वाणी का स्कर्ट उपर उठा दिया और उसकी कच्छि को नीचे कर दिया.... वाणी को अजीब सा लग रहा था पर वो ये खेल पूरा खेलना चाहती थी.... दिव्या वाणी की चूत देखकर जल सी गयी; उसकी क्यूँ नही है ऐसी......वैसी तो शायद दुनिया में किसी की नही थी दिव्या ने वाणी की चूत पर अपने होंट सटा दिए... वाणी भभक उठी.... उसको कल रात की याद ताज़ा हो गयी जब वो....... सर की 'टाँग' पर बैठी थी... वाणी की आँखों में मस्ती भरती जा रही थी.... उसने मस्त अंदाज में पूछा....," तूने कहाँ सीखा री ये खेल!" "सरपंच के लड़के से!" "राकेश से" वाणी बहकति जा रही थी" "हां वो आज 4 बजे फिर आएगा.... तुझे भी खेलना है क्या पूरा खेल? चलना मेरे साथ.....3:30 बजे चलेंगे.... घर पर कोई नही है... रात को आएँगे! हां मुझे भी खेलना है पूरा खेल मैं भी चालूंगी तेरे साथ.......
अपनी मस्ती में सिर से पैर तक डूबी नवयौवनाओं को शमशेर के सीढ़ियाँ चढ़ने की आवाज़ भी सुनाई नही दी शमशेर ने खिड़की से उनके प्रेमलाप को सुना; वो वापस जाने ही वाला था की जाने क्या सोचकर उसने दरवाजा खोल दिया ..........? शमशेर को देखते ही दोनों का चेहरा फक्क रह गया वाणी तो इतनी डर गयी की अपने को ढ़हकना ही भूल गयी........ यूँ ही पड़ी रही! शमशेर उन दोनों को बिना किसी भाव के देख रहा था वाणी को अहसास हुआ की जैसे उनकी दुनिया ही ख़तम हो गयी.... करीब एक मिनिट बीत जाने पर दिव्या को वाणी के नंगेपन का अहसास हुआ और उसने वाणी की स्कर्ट नीचे ख्हींच दी वाणी को पता चल चुका था वह जो भी कर रही थी, बहुत ग़लत था दिव्या तो सिर्फ़ पकड़े जाने के डर से काँप रही थी, वो भी उनके सर के द्वारा!.... पर वाणी का तो जैसे उस एक पल में ही सब ख़तम हो गया..... उसके सर..... उसके अपने सर ने उनको ग़लत बात करते देख लिया.. वो अब भी एकटक सर को ऐसे ही देखे जा रही थी.... जैसे पत्थर बन गयी हो! शमशेर ने दिव्या की और देखा और कहा जाओ!.... पर वह हिली तक नही! शमशेर ने फिर कहा," दिव्या, अपने घर जाओ" उसने अपना सिर नीचे झुकाया और जल्दी-जल्दी वहाँ से निकल गयी. अब शमशेर ने वाणी की और देखा..... ऐसे तो कभी सर देखते ही ना थे उसको..... वो तो उनकी अपनी थी..... उनकी अपनी वाणी! "वाणी" नीचे जाओ! वाणी उठी और अपने भगवान से लिपट गयी...... उसकी आँखों में माफी माँगने का भाव नही था.... ना ही उसको पकड़े जाने की वजह से मिल सकने वाली सज़ा का डर..... उसको तो बस शमशेर के दिल से दूर हो जाने का डर था..... उसने 'अपने' सर को कसकर पकड़ लिया! शमशेर ने वाणी की बाहों के घेरे से खुद को आज़ाद कर कहा " वाणी, नीचे जाओ!" वाणी इस तरह रो रही थी जैसे उसका बच्चा मर गया हो... वा पीछे देखती देखती.... रोती बिलखती नीचे चली गयी! नीचे जाते ही दिशा ने उसको इस तरह रोते देखा तो भाग कर बाहर आई,"क्या हुआ छुटकी!" वाणी कुछ ना बोली.... बस रोती रही...... एकटक उपर देखती रही दिशा ने उसको कसकर अपने सीने से भीच लिया और उपर देखने लगी....... दिशा वाणी को अंदर ले गयी...." बता ना छुटकी क्या हुआ?" वाणी ने और ज़ोर से सुबकना शुरू कर दिया दिशा ने उसके गालों पर बह रही मोतियों की धारा को अपनी चुननी से सॉफ किया, पर वो बरसात रुकने का नाम ही नही ले रही थी....," बता ना वाणी; ऐसा क्या हुआ जो तू मुझे भी नही बता सकती मैं तो तेरी दीदी हूँ ना!" दिशा के मंन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे.... जिस तरह से वाणी रो रही थी, उसके शक़ को और हवा मिल रही थी.... छुटकी सर से कुछ ज़्यादा ही चिपक के रहती थी कहीं सर ने उसकी मासूमियत का फ़ायदा तो नही उठा लिया.... ," छुटकी, मुझे सिर्फ़ ये बता दे की कोई 'ग़लत बात है क्या, जो तू मुझे बताने से हिचक रही है!" वाणी ने सुबक्ते हुए ही अपना सिर हां में हिला दिया
दिशा का पारा गरम हो गया, जिसस आदमी को वो 'अपने के रूप में.......," क्या सर ने...." वाणी ने दिशा की बात को पूरा ही नही होने दिया.... सर का नाम सुनते ही उसने दिशा के मुँह पर अपने कोमल हाथ रख दिए और चीत्कार कर उठी. वह अपनी दीदी से बुरी तरह लिपट गयी अब दिशा....'सब कुछ समझ चुकी थी!.... उसके चेहरे पर नफ़रत और कड़वाहट तैरने लगी.... अब उसे 'सर; सर नही बल्कि एक सुंदर रूप धारण किए हुए कोई बाहरूपिया शैतान लग रहा था...... वह अपने दिल में हज़ारों.... लाखों.... गालियाँ और बददुआयं भर कर उपर चली गयी.... वाणी का भी उसके साथ ही जाने का मॅन था.... पर अब उसके सर 'अपने नही रहे!' दिशा ने उपर जाकर धक्के के साथ दरवाजा खोल दिया.... शमशेर आराम से तकिये पर सिर टिकाए कुछ सोच रहा था.... हमेशा की तरह एक दम शांत... एक दम निसचिंत! "कामीने!" दिशा ने सिर को उसकी औकात बताई शमशेर ने उसकी और देखा, पर कोई प्रतिक्रिया नही दी, वह ऐसे ही शांत बैठा रहा. उसकी यही अदा तो सबको उसका दीवाना बना देती थी... पर आज दिशा उसकी इश्स 'अदा' पर बिलख पड़ी," हराम जादे, मैं तुझे......" दिशा उसके पास गयी और उससे कॉलर से पकड़ लिया..... उसके मुँह से और कुछ ना निकला... "क्या हुआ?" शमशेर ने शांत लहजे में ही उत्तर दिया.... उसका कंट्रोल जबरदस्त था... उसके चेहरे पर दिशा को पछ्तावे या शर्मिंदगी का कोई चिन्ह दिखाई नही दिया.... "निकल जा यहाँ से! मेरे मामा मामी के आने से पहले... नही तो तुझे.... तुझे जान से मार दूँगी..." दिशा ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर ज़मीन पर थूका और पैर पटकते हुए नीचे चली गयी..... वह चाँदी जैसी दिख रही थी. शमशेर ने अपना लॅपटॉप खोला और काम में लग गया.... नीचे जाकर दिशा ने अब तक रो रही वाणी को अपने दहक रहे सिने से लगाया," बस कर छुटकी, उस हराम जादे को मैने.....! वाणी उसको अवाक देखती रह गयी. उसके आँसू जैसे एक्दम सूख गये.... वा सोच रही थी दीदी किस 'हराम जादे' को गाली दे रही है,"क्या हुआ दीदी?" दिशा की आँखों में जैसे खून था," मैने उसको घर छोड़कर भाग जाने को कह दिया है!" "मगर...."वाणी हैरान थी, ये क्या कह रही हैं दीदी 'अपने सर ' के बारे में," उन्होने क्या कर दिया दीदी?" अब की बार निशब्द होने की बारी दिशा की थी...." वो तुझे.... सर ने तेरे साथ कुछ नही किया.....?" "नही दीदी.... उन्होने तो मेरे को धमकाया भी नही....." सारा गेम ही उलट गया.... अब दिशा सुबक रही थी और वाणी उससे पूछ रही थी,"क्या हुआ दीदी? तुमने सर को क्या कह दिया?" दिशा के पास वाणी को बताने लायक कुछ नही था ये उसने क्या कर दिया! जिसकी तस्वीर वो अपने दिल के आईने में देख रही थी... उसी के दिल में उसने हज़ारों काँटे चुबा दिये; अपमान के..... ज़िल्लत के.... और नफ़रत के! "मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ होता है?", दिशा के मन में विचारों का तूफान सा उसको अंदर तक झकझोर रहा था...! पहले उसने स्कूल में सर की बेइज़्ज़ती की.... और जब....अब मुश्किल से उसको लगने लगा था कि सर उस बात को भूल चुके हैं तो....," ये मैने क्या कर दिया वाणी!" "दीदी, बताओ ना क्या हो गया!?" वाणी अब उसके आँसू पोछ रही थी....! दिशा की आँखें लाल हो चुकी थी.... लाल तो पहले से ही थी मारे गुस्से के! अब तो बस उनका भाव बदल गया था... अब उन्न मोटी-मोटी आँखों में पाश्चाताप था..... ग्लानि थी.... और शमशेर के दिल से लग कर आँसू लुटाने की प्यास थी.... एक तड़प थी उसकी छाति से चिपक कर देखने की और एक भूख़ भी थी...... वो औरत की तरह सोच रही थी; लड़की की तरह नही.... दिशा ने वाणी का हाथ पकड़ा और उसको उपर ले गयी.... खिड़की से उन्होने देखा शमशेर आँखें बंद किए दीवार से सटा बैठा था.....बिल्कुल शांत......बिल्कुल निशचिंत..... उसके चेहरे पर झलक रहे तेज़ का सामना करने की दोनों में से किसी में हिम्मत नही थी..... दोनों ने एक दूसरे को देखा..... और उल्टे पाँव लौट गयी..... नीचे.... अब दोनों रो रही थी.... एक दूसरे से चिपक कर.... अब कोई किसी से वजह नही पूछ रहा था... हां आँसू ज़रूर पोंछ रही थी.... एक दूसरे के!.... सुबक्ते हुए ही वाणी ने दिशा से कहा," दीदी! अब सर हमसे कभी बात नही करेंगे ना!" "तू चुप कर छुटकी; आजा, सोजा!", दिशा ने वाणी को अपने साथ खाट पर लिटा लिया, वाणी ने अपनी टाँग दिशा के पेट पर रख दी और आँखें बंद कर ली ना जाने कब वो सर के ख्यालों में खोई खोई सो गयी.... दिशा सीधी लेटी हुई शुन्य में घूरे जा रही थी वो दिशा से पूछना चाहती थी की असल में हुआ क्या था! पर वो वाणी को अभी और दुखी नही करना चाहती थी.... थोडी देर बाद ही उसके मामा मामी आ गये," आ! दिशा बेटी आज तो सारा बदन टूट रहा है! इतना काम था खेत में....ला जल्दी से खाना लगा दे खाकर लेट जायें, ... ये वाणी अभी से कैसे सो गयी...." "मामा, इसकी तबीयत थोडी खराब है... मैने गोली देकर सुला दिया है...." "आज उपर नही गयी ये!, उतर गया ए.सी. का भूत" " नही....वो सर ने ही बोल दिया की बुखार में ए.सी. ठीक नही रहेगा"... आज इसको नीचे ही सुला दो!" "और तुम?" मामा ने उसकी मॅन को परखने की कोशिश की!" जैसे उसको पता हो; इनका कोई चक्कर है... "म्*म्म...मैं भी नीचे ही सोऊगी... और क्या में अकेली जाउन्गि"..... मॅन में वो सोच रही थी.... काश में अकेली जा सकती! "हूंम्म... तुम समझदार हो बेटी"..मामा ने कहा "खाना खा लिया इसने!" मामी ने दिशा से पूछा,
दिशा: हां मामी, और मैने भी खा लिया.... दिशा झूठ बोल रही थी... उसको पता था उसकी तरह वो भी खाना नही खा पाएगी... "और सर तो 8:00 बजे खाते हैं"... तू उन्हे खाना दे आना... हम तो अब सो रहे हैं" मामा ने उठते हुए कहा... दिशा सोचने लगी "मैं उपर कैसे जाउ?"....... करीब 8:00 बजे; दिशा सोच-सोच कर परेशान थी की अब उसको 'सर' के सामने जाना पड़ेगा... उसने टूटे हुए पैरों से सीढ़िया चढ़ि... शमशेर ने उसको खाना लेकर आते खिड़की से देख लिया था शायद! जैसे ही वा दरवाजे के सामने जाकर रुकी; अंदर से सर की आवाज़ आई," आ जाओ दिशा!" दिशा की पहली समस्या तो हल हुई....वो सोच रही थी वो अंदर कैसे जाएगी? वो अंदर चली गयी... सिर झुकाए! उसने टेबल पर खाना रखा और जाने लगी...."दिशा!" वह कठपुतली की तरह रुकी और पलट गयी....उसकी नज़रे झुकी हुई थी...शर्म के मारे!
शमशेर: उपर देखो! मेरी तरफ.... दिशा ने जैसे ही उपर देखा.... उसकी आँखें दबदबा गयी... वो छलक उठी थी.... एक आँसू उसके गालों से होता हुआ उसके होंटो पर जाकर टिक गया; जैसे कहना चाहता हो,"मैं प्यार का आँसू हूँ, मुझे चखकर देखो......वो आँसू शमशेर के लिए थे.... शमशेर के चखने के लिए... दिशा ने शमशेर को देखा, वो अब भी मुस्कुरा रहा था...," इधर आओ, मेरे पास!" दिशा उसके करीब चली गयी... आज वो जो भी कहता वो कर देती....जो भी माँगता....वो दे देती! शमशेर ने उसकी कलाई पकड़ ली.....और तब शमशेर को कुछ कहने की ज़रूरत नही पड़ी.......वो घुटने मोड़ कर .... उसकी गोद में जा गिरी.... "सॉरी!" दिशा ने आगे 'सर' नही कहा. उसकी आँखों में अब भी नमी थी... वो निश्चय कर चुकी थी.... अब शमशेर के प्रति अपनी भावना नही छिपयेगि....चाहे उसका यार उसको जान से मार डाले... उसने शमशेर की आँखो में आँखें डालकर दोहराया....."सॉरी!"... उसके लब थिरक रहे थे....प्यार में... शमशेर को भी पता नही क्यूँ पहली बार किसी के उससे प्यार के बारे में इतनी देर से पता चला... शायद पहले प्यार'...'प्यार' नही सिर्फ़ वासना थी... " लगता है तुम्हे मुझसे प्यार हो गया है?" "यस, आइ लव यू!" दिशा ने एलान कर दिया.... इस बार उसके होंट नही कांपे, सच्चाई पर जो अडिग थे! शमशेर ने अपने होंटो से उसके होंटो पर ठहरे 'उस्स' आँसू को चखा.... वो सच में ही प्यार का आँसू था दिशा ने अपने आपको शमशेर के अंदर समाहित कर लिया.... उसको अब कोई डर नही था... कुछ देर वो निशब्द एक दूसरे में समाए रहे....फिर शमशेर ने कहा," कल रात को यहीं आ जाना.... सोने के लिए....मेरे साथ" दिशा को उससे अलग होते हुए अजीब सा लग रहा था... एक दिन का इंतज़ार मानो सालों का इंतज़ार था... पर उसका दिल उछल रहा था... सीढ़ियों से उतरते हुए... उसकी छातियो के साथ.....
दिव्या: आ वाणी; चल ना मेरे घर वाणी ने भोलेपन से कहा," नआईईई, मुझे तो अभी स्कूल का काम भी करना है मैं दोपहर बाद आ जवँगी; ओके!" दिव्या उससे दोपहर बाद आने का प्रोमिसे लेकर चली गयी....... दिव्या, वाणी की बेस्ट फ्रेंड; उसी की उमर की थी उसका बदन भी गदराया हुआ था चेहरे से गाँव का अल्हाड़पन भोलापन साफ झलकता था उसका घर सरपंच की हवेली से सटा हुआ था....छत से छत मिलती थी. सरपंच का बिगड़ा हुआ बेटा; छत से दिव्या को अकेला देखकर कूद आया! जाहिर है उसकी नियत ठीक नही थी...! "राकेश तुम छत से कूदकर क्यूँ आए हो!", दिव्या उसकी आँखों में छिपि वासना को नही समझ पाई राकेश करीब 21 साल का नौजवान लड़का था. एक तो उसका खून ही खराब था; दूसरे उसके बाप की गाँव में तूती बोलती थी; फिर बिगड़ता कैसे नही," दिव्या में तुझे एक खेल सिखाने आया हूं. खेलेगी!" "नही, मुझे अभी पढ़ना है; शाम को वाणी आएगी तो मैं उसके साथ खेलूँगी, तब आ जाना" राकेश: सोच ले इतना मस्त खेल है की हमेशा याद रखेगी. इस खेल को सिर्फ़ दो ही खेल सकते हैं फिर मत कहना की सिखाया नही मैने सरिता को भी सीखा दिया है दिव्या: ठीक है 5 मिनिट में सीखा दो! राकेश ने झट से अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया!
दिव्या: तुम ये दरवाजा क्यूँ बंद कर रहे हो!
राकेश: क्यूंकी ये खेल अंधेरे में खेला जाता है,पागल!
दिव्या: अच्छा! .....वो खेल सीखने के लिए उत्सुक हो उठी
राकेश: अब तुम आँखे बंद कर लो, देखो आँखे नही खोलना
दिव्या: ठीक है!... और उसने आँखें बंद कर ली. राकेश ने उसके गालों की पप्पी ले ली... दिव्या ने आँखें खोल दी,"छ्हीईइ! बेशर्म, ये कोई खेल है?"
राकेश: अरे खेल तो अब शुरू होगा, बस तुम आँखें नही खॉलॉगी! दिव्या ने अनमने मंन से आँखें बंद कर ली. राकेश ने पिछे से जाकर उसकी दोनों अधपकी चुचियाँ पकड़ ली.. दिव्या: हटो राकेश, ये तो गंदी बात है. तुम यहाँ हाथ मत लगाओ!..... उसके दिल में एक लहर सी उठी थी राकेश उसकी छातियोन को मसलता रहा दिव्या ने छुड़ाने की कोशिश की पर उसका विरोध लगातार कम होता गया
उसकी आँखें बंद सी होने लगी उसके सारे शरीर में हलचल शुरू हो गयी; जांघों के बीच भी गुद-गुदी सी हो रही थी उसको वश में आता देख राकेश आगे आ गया उसके होंट चूसने लगा और उसके कमीज़ में अपना हाथ घुसा दिया अब उसकी चुचियों और राकेश के हाथों के बीच कोई परदा ना था दिव्या पर जवानी का नशा हावी होता जा रही था वो आँखें बंद किए किए ही खाट पर बैठ गयी उसके मुँह से अजीब से आँहें निकल रही थी राकेश ने उसको हाथ का हल्का सा इशारा दिया और वो चारपाई पर पसर गयी उसको नही पता था उसकी सहेलिया जिसे गंदी बात कहती है उसमें दुनिया भर का मज़ा है "राकेशह!" "क्या?" राकेश उसका कमीज़ उठाहकर उसकी चुचियों को बता रहा था की ये सिर्फ़ दूध पिलाने के लिए नही बल्कि चूसने के काम भी आती हैं
दिव्या: बहुत मज़ा आ रहा है राकेश! आहह....ये तो बहुत अच्छा खेल है राकेश ने उसका अधमरा सा करके छोड़ दिया वह उससे अलग हो गया! " और करो ना प्लीज, थोड़ी देर और" मानो दिव्या उससे भीख माँग रही थी!
राकेश: नही ये खेल तो यहीं तक है. अब इसका दूसरा हिस्सा शुरू होगा.... वह अपने पॅंट में छिपे लंड को मसल रहा था
दिव्या: नही, मुझे यही खेलना है! इसमें मज़ा आता है
राकेश: अरे वो खेलकर तो तुम इसको भूल ही जाओगी राकेश समझ गया था की अब दिल्ली दूर नही है
दिव्या: अच्च्छा! तो खेलो फिर....... राकेश जानता था; दिव्या अन्छुई कली है, खेल के अगले भाग में उसको दर्द भी होगा आँसू भी निकलेंगे...और वो चिल्लाएगी भी," दिव्या, अगला खेल बड़ा मजेदार है पर वो थोड़ा सा मुश्किल है" "कैसे?" वो और मज़ा लेने को व्याकुल थी वो समझ नही पा रही थी की जो मज़ा अभी तक के खेल में उसको आया था, उससे ज़्यादा मज़ा... कितना होता होगा!
राकेश: अब मैं तुम्हे एक कुर्सी से बाँध दूँगा तुम्हारा मुँह भी कपड़े से बाँध दूँगा! फिर शुरू होगा आगे खेल!
दिव्या: नही तुम चीटिंग करोगे, मुझे कुर्सी से बाँध कर भाग जाओगे.....हालाँकि वो ऐसा करने को तैयार थी
राकेश: मैं पागल हूँ क्या, मुझे ऐसा करना होता तो मैं पहले यही खेल खेलने को कहता टाइम बर्बाद क्यूँ करता.... दिव्या: हूंम्म! ओके...! राकेश ने दीवार के साथ एक कुर्सी सटाई और उस पर दिव्या को इस तरह बैठा दिया जिससे उसके चूतड़ कुर्सी से थोड़ा बाहर निकले थे उसके पैरो को उसने कुर्सी के हत्थो के उपर से ले जाकर बाहर की और बाँध दिए इस पोज़िशन में वो तंग हो गयी
दिव्या: पैरो को आगे ही एक साथ करके नही बाँध सकते क्या?
राकेश: नही, ये खेल का रूल है! दिव्या अपनी गॅंड को हिलाकर अड्जस्ट करने की कॉसिश करती हुई बोली," अच्छा ठीक है! अब जल्दी सिख़ाओ, मुझे दर्द हो रहा है राकेश मंन ही मंन मुस्कुराया, सोचा ये इसी को दर्द कह रही है तो आगे क्या होगा. उसने दिव्या के मुँह पर कपड़ा बाँध दिया अब वो बोल नही सकती थी; ज़्यादा हिल नही सकती थी... अब राकेश ने देर नही की. वो दिव्या की सलवार खोलने लगा दिव्या ने कुछ बोलने की कोशिश करी, उसको शर्म आ रही थी.... राकेश ने दिव्या की सलवार का नाडा खोलकर उसके पीछे हाथ लेजाकर सलवार को नीचे से आगे की और खींच लिया, उसके अंडरवियर समेत... और सलवार को उपर घुटनों तक उठा दिया पैर बँधे होने की वजह से वो पूरी नही निकल सका दिव्या कसमसा रही थी; राकेश के सामने उसकी नंगी चूत थी.... पर वो तो हिल भी ना सकती थी, बोल भी ना सकती थी, उसने ज़्यादा कोशिश भी नही की, उसने शर्म से आँखे बंद कर ली राकेश नीचे बैठा और उसकी गांड़ को जितना आगे कर सकता था कर दिया उसने अपने होंट उसकी सलवार के नीचे से ले जाकर चूत से सटा दिए दिव्या सकपका गयी उसकी आँखें मारे उत्तेजना के बंद हो गयी असीम आनंद का अनुभव हो रहा था उसने सोचा; राकेश सही कह रहा था इसमें तो और भी मज़ा है, लेकिन पैर बाँधने की क्या ज़रूरत थी! अब राकेश जैसे उसकी चूत को चूस नही खा रहा था, कभी उपर, कभी नीचे, कभी ये फाँक, कभी वो फाँक; कभी दाना तो कभी छेद. दिव्या बुरी तरह छट-पटा रही थी हाए, इतना मज़ा दे दिया उसकी चुचियों में कस-मसाहट सी हो रही थी. इनको क्यूँ खाली छोड़ रखा है, उसका दिल किया वो राकेश को अपने उपर खींच ले; पर उसके तो हाथ भी बँधे हुए थे अब दिव्या की टाँगों का दर्द जाता रहा! अचानक उसको मिलने वाला मज़ा बंद हो गया था उसने आँखे खोली, राकेश अपनी पॅंट उतार रहा था राकेश ने अपनी पॅंट और अंडरवेर उतार कर ज़मीन पर फेंक दी, दिव्या की आँखें फटी की फटी रह गयी इसका इतना लंबा कैसे है! अब ये इसका क्या करेगा.. जल्द ही उसको इसका जवाब मिल गया राकेश अब ज़्यादा टाइम लगाने के मूड में नही था उसने कुर्सी के हत्थे पर अपना एक हाथ रखा और दूसरे से अपने 6 इंची को उसकी गीली हो चुकी चूत से सटा दिया दिव्या डर गयी! ये तो शादी के बाद वाला खेल है, उसकी दीदी ने बताया था; जब पहली बार उसके पति ने इसमें घुसाया था तो उसकी जान ही निकल गयी वह जितना हिल सकती थी, उतना हिल कर अपना विरोध जताने लगी. "बट इन वान्ट"
राकेश ने अपने लंड का दबाव उसकी चूत पर दबाया पर वो खुलने का नाम ही नही ले रही थी दिव्या की चीख उसके मुँह में ही दबकर रह जाती थी राकेश भी नादान नही था वो किचन से मक्खन उठा लाया अपनी उंगली से दिव्या की चूत में ही मुट्ठी भर मक्खन ठुस दिया, दिशा की चूत से सीटी जैसी आवाज़ आने लगी, ये सिग्नल था की अब की बार काम हो जाएगा राकेश ने अपने लंड पर भी मक्खन चुपडा और टारगेट को देखने लगा उसने दिव्या की चीखों की परवाह ना करते हुए अपने औज़ार का सारा दम उसकी चूत के मुहाने पर लगा दिया!....सॅटटॅक और सूपड़ा अंदर. उसने दिव्या की जांघों को अपने हाथों से दबा कर एक बार और हुंकार भारी, दिव्या बेहोश सी हो गयी उसने इतने गंदे लड़के की बात पर विस्वास करके अपनी मौत बुला ली दर्द को कम तो होना ही था सो हुआ, दिव्या को धीरे-धीरे मज़ा आना ही था सो आने लगा अब उसकी आँखों से पानी सूख गया और उनमें आनंद की चमक आ गयी वह अपने आपे में नही रही, कहना चाहती थी मुझे खोल दो और खुल कर खेलो ये खेल पर वो तो बोल ही नही सकती थी, वो तो खेल ही नही सकती थी.... वो तो बस एक खिलौना थी; राकेश के हाथों का.... राकेश उसको चोद्ता ही चला गया.... उसने ये भी परवाह ना की दिव्या की मछ्लि घायल है; खून फाँक रही है.... मक्खन में लिपटा हुआ.... अचानक राकेश का काम होने को आ गया और उसने ज़ोर की दहाड़ लगाई.... वह शिकार में कामयाब जो हो गया था, लंड निकाल कर उसकी गोद में गिर पड़ा.... दिव्या का तो पता ही नही कितनी बार उसकी योनि ने रस उगला..... खून में लिपटा हुआ.... खैर राकेश ने दिव्या को खोल दिया दिव्या खून देखकर एक बार तो डरी, फिर उसको दीदी की बात याद आ गयी....पहली बार तो आता ही है. जब दोनो नॉर्मल हो गये तो राकेश ने कहा," मज़ा आया मेरी जान"
दिव्या: हां पर तुमने चीटिंग की,.... मुझे आइन्दा कभी बांधना मत!
दिशा सर के लिए दूध लेकर गयी शमशेर बस नाहकार ही निकला था दिशा उसको बहुत कुछ कहना चाहती थी पर पता नही क्यूँ, उसके सामने जाते ही जैसे उसके होंट सील जाते थे; वह शमशेर के जिस्म पर नही बल्कि उसकी पर्सनॅलिटी पर मरती थी रात की बात को याद करके वह बार-बार खुश हो जाती थी, उसको पता था की सर के सपने में वो आई थी..... पर वो ये नही समझ पा रही थी की सर बार-बार उसका नाम लेकर माफी क्यूँ माँग रहे थे.... जो भी था सर का सपना तो डरावना ही था.... वरना वो पसीने में क्यूँ भीगे होते! उसने दूध का मग टेबल पर रख दिया और झाड़ू लेकर वहाँ सफाई करने लगी
शमशेर: रहने दो, मैं कर लूँगा! दिशा: आ..आप कैसे करेंगे सर!... वो बड़ी हिम्मत करके बोल पाई
शमशेर: करनी ही पड़ेगी... और कौन करेगा?
दिशा: मैं कर तो रही हूँ!
शमशेर: तुम कब तक करोगी? दिशा के दिल में आया कहदे सारी उमर; पर लबों ने साथ नही दिया," सर! आप शादी क्यूँ नही करते?
शमशेर: कोई मिलती ही नही..... शमशेर आगे कहने वाला था....'तुम्हारे जैसी' पर उन्न खास शब्दों को वो दूध के साथ पी गया!
दिशा: आपको कैसी लड़की चाहिए.... ? अब की बार उसने 'सर' नही लगाया. शमशेर को सीधे बोलते हुए उसको बड़ा आनंद आया तभी शमशेर का सेल बज गया; अंजलि का फोन था 'हेलो' उधर से आवाज़ आई,"शमशेर!" "हां!" "तुम मेरे पास अभी आ जाओ", बहुत खास बात करनी है" शमशेर ने दिशा की और देखा,"क्या खास बात है भला? "तुम आओ तो सही; आ रहे हो ना" "हां" कहकर उसने फोन काट दिया उसने जल्दी से कपड़े बदले और नीचे उतर गया नीचे जैसे वाणी उसका ही इंतज़ार कर रही थी," सर, आपने मुझे प्रोमिसे किया था की मुझे गाड़ी चलाना सिखाएँगे, आज सनडे है; चलें..." शमशेर: आज नही वाणी, फिर कभी...! वाणी: प्लीज़ सर, चलिए ना
शमशेर: वाणी, अभी मुझे काम है, शाम को देखते हैं! ओक; बाइ वाणी मायूस होकर सर को जाते देखती रही......
अंजली उसका ही इंतज़ार कर रही थी शमशेर के अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया उसने अजीब सा सवाल किया," शमशेर, तुम्हे में कैसी लगती हूँ?" शमशेर ने उसको खींच कर अपने से सटा लिया और उसके होंटो को चूम कर बोला,"सेक्सी!"
अंजली: मैं मज़ाक नही कर रही; आइ'एम क्वाइट सीरीयस बोलो ना! शमशेर रात से ही प्यासा था, उसने अंजलि को बाहों में उठा लिया और बेड पर ले जाकर पटक दिया अंजलि कातिल निगाहों से उसको देखने लगी शमशेर भी कुछ सोचकर ही आया था," मेरा तुम्हारे साथ नहाने की बड़ी इच्छा है चलें! वो तो शमशेर की दीवानी थी; कैसे मना करती," एक शर्त है?" "बोलो!" "तुम मुझे नहलाओगे!" उसकी शर्त में शमशेर का भी भला था "चलो! यहीं से शुरुआत कर देता हूँ" कहकर शमशेर अंजलि के शरीर को एक-एक कपड़ा उतार कर अनावृत करने लगा अंजलि गरम हो गयी थी नंगी होते ही उसने शमशेर को बेड पर नीचे गिरा लिया और तुरंत ही उसको भी नंगा कर दिया वो उसके उपर जैसे गिर पड़ी और उसके होंटो पर अपनी मोहर लगाने लगी शमशेर को रह=रह कर दिशा याद आ रही थी जैसे अगर उसको पता चलेगा तो वह बहुत नाराज़ होगी "क्या बात है? मूड नही है क्या," अंजलि ने उसके होंटो को आज़ाद करते हुए कहा शमशेर संभाल गया और पलट कर उसके उपर आ गया, उसने उसकी छाति को दबा दिया....क्या दिशा को भी वो ऐसे छू पाएगा अंजलि की सिसकी नकल गयी उसने शमशेर का सिर अपनी चुचियों पर दबा दिया शमशेर उस पल बाकी सब कुछ भूल गया शमशेर उस पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा, और जिस्म को नोचने लगा, वो सच में ही बहुत सेक्सी थी शमशेर उठा और अपना लंड उसको चखने के लिए पेश किया अंजलि भी इस कुलफी को खाने की शौकीन हो चुकी थी उसने झट से मुँह खोलकर अपनी चूत के यार को अपने गरम होंटो में क़ैद कर लिया कमरे का टेम्परेचर बढ़ता जा रहा था रह-रह कर अंजलि के मुँह से जब उसका लंड बाहर लिकलता तो 'पंप' की आवाज़ होती कुछ ही दिनों में ही वो ओरल सेक्स में परफेक्ट हो चुकी थी अंजलि ने चूस-चूस कर शमशेर के लंड को एकदम चिकना कर दिया था; अपनी कसी चूत के लिए तैयार! शमशेर ने अंजलि को पलट दिया और उसके 40" की गांड़ को मसालने लगा. उसने अंजलि को बीच से उपर किया और एक तकिये को वहाँ सेट कर दिया अंजलि की गांड उपर उठ गयी.....उसकी दरार और खुल सी गयी
अंजलि को जल्द ही समझ आ गया की आज शमशेर का इरादा ख़तरनाक है; वो गांड़ के टाइट छेद पर अपना थूक लगा रहा था.... "प्लीज़ यहाँ नही!" अंजलि को डर लग रहा था... फिर कभी कर लेना...!" अभी नही तो कभी नही वाले अंदाज में शमशेर ने अपनी उंगली उसकी गांड़ में फँसा दी, ऐसा तो वो पहले भी उसको चोद्ते हुए कर चुका था! पर आज तो उसका इरादा असली औजार वहाँ उसे करने का लग रहा था अंजलि को उंगली अंदर बाहर लेने में परेशानी हो रही थी उसने अपनी गांड़ को और चौड़ा दिया ताकि कुछ राहत मिल सके कुछ देर ऐसे ही करने के बाद शमशेर ने ड्रेसिंग टेबल के ड्रॉयर से कोल्ड क्रीम निकाल ली," इससे आसान हो जाएगा" जैसे ही कोल्ड क्रीम लगी हुई उसकी उंगली अंजलि की गांड़ की दरारों से गुज़री, अंजलि को चिकनाई और थंडक का अहसास हुआ, ये अपेक्षाकृत अधिक सुखदायी था करीब 2 मिनिट तक शमशेर उंगली से ही उसके 'दूसरे छेद' में ड्रिलिंग करता रहा, अब अंजलि को मज़ा आने लगा था उसने अपनी गांड़ को थोड़ा और उँचा उठा लिया और रास्ते और आसान होते गये; फिर थोड़ा और....फिर थोडा और..... थोड़ी देर बाद वह कुतिया बन गयी.....! इश्स पोज़िशन में उसकी गांड़ की आँख सीधे छत को देख रही थी, उंगली निकालने पर भी वह थोड़ी देर खुली रहती थी शमशेर ने ड्रिलर का साइज़ बढ़ा दिया; अब अंगूठा अपने काम पर लगा था शमशेर झुका और अंजलि की चूत का दाना अपने होंटो में दबा लिया, वह तो 'हाइयी मर गयी' कह बैठी मरी तो वो नही थी लेकिन शमशेर को पता था वो मरने ही वाली है शमशेर घुटने मोड़ कर उसकी गांड़ पर झुक गया, टारगेट सेट किया और 'फिर!'..... अंजलि चिहुनक पड़ी, पहले ही वार में निशाना सटीक बैठा था..... लंड आधा इधर.... आधा उधर.... अंजलि मुँह के बाल गिर पड़ी, लंड अब भी फँसा हुआ था.... करीब 3 इंच "बुसस्स्सस्स.... प्लीज़.... रुक... जाओ! और नही" अंजलि का ये कहना यूँही नही था... उसकी गांड़ फैल कर 4 इंच खुल चुकी थी...... 4 इंच! शमशेर ने संयम से काम लिया; उसकी छातिया दबाने लगा..... कमर पर किस करने लगा.... वग़ैरा वग़ैरा! अंजलि कुछ शांत हुई, पर वो बार बार कह रही थी," हिलना मत....हिलना मत!" शमशेर ने उसको धीरे से उपर उठाया.... धीरे.... धीरे और उसको वापस चार पैरों वाली बना दिया......कुतिया! शमशेर ने अपना लंड थोड़ा सा बाहर खींचा.... उसकी गांड़ के अन्द्रुनि हिस्से को थोड़ी राहत बक्शी और फिर जुलम ढा दिया... पूरा जुलम उसकी गांड़ में ही ढा दिया अंजलि को काटो तो खून नही.... बदहवास शी होकर कुछ-कुछ बोलने लगी, शायद बताना ज़रूरी नही! शमशेर ने काम चालू कर दिया.... कमरे का वातावरण अजीबो-गरीब हो गया था अंजलि कभी कुछ बोलती.... कभी कुछ कभी शमशेर को कुत्ता कहती.... कभी कमीना कहती.... और फिर उसी को कहती.....आइ लव यू जान.... जैसे मज़ा देने वाला कोई और हो और सज़ा देने वाला कोई और. आख़िरकार अंजलि ने राहत की साँस ली.... उसका दर्द लगभग बंद हो गया.... अब तो लंड उसकी गांड़ में सटाक से जा रहा था और फटाक से आ रहा था.... फिर तो दोनों जैसे दूध में नहा रहे हो.... सारा वातावरण असभ्या हो गया था.... लगता ही नही था वो पढ़े लिखे हैं.... आज तो उन्होने मज़े लेने की हद तक मज़ा लिया..... मज़े देने की हद तक मज़ा दिया.... और आख़िर आते-आते दोनों टूट चुके थे.......
अंजलि ने नंगी ही शमशेर के साथ स्नान किया शमशेर ने अंजलि को खूब रगड़ा और अंजलि ने शमशेर को... फिर दोनों अपना शरीर ढक कर बाहर सोफे पर बैठ गये "डू यू लव मी जान?" अंजलि ने बैठते ही सवाल दागा " तुम्हे कोई शक है?" "नही तो!" अंजलि ने उसकी गोद में सिर रख लिया," क्या तुम मुझसे शादी करोगे?" "नही!" शमशेर का जवाब बहुत कड़वा था "क्यूँ?" अंजलि उठ कर बैठ गयी!
शमशेर: क्या मैने कभी ऐसा कोई वादा किया है?
अंजलि: ना!
शमशेर: तो ऐसा सवाल क्यूँ किया? अंजलि मायूस हो गयी " मैने तो इसीलिए पूचछा था..... चाचा का फोने आया था; मेरे लिए एक रिश्ता आया है" "कंग्रॅजुलेशन्स!" क्या करता है" शमशेर को जैसे कोई फ़र्क नही पड़ा
अंजलि: कुछ खास नही, उमर करीब 40 साल है एक बच्ची है पहली बीवी से! और मुझे इतना ही पता है की वो पैसे वाला है... बस! शमशेर ने उसको बाहों में भर कर माथे पर चूम लिया..... उसे लगा शायद ये आखरी बार है.... राकेश के जाने के बाद, दिव्या बहुत बेचैन हो गयी... वो वोडेफोन की एड आती है ना टी.वी. पर; अब सबको बताओ सिर्फ़ 60 पैसे में; की मोटी की तरह ही उसका हाल था, सबको तो वो बता नही सकती, पर वाणी; वो तो उसकी बेस्ट फ्रेंड थी दिव्या ने वाणी को ये खेल सिखाने की सोची और बिना देर किए उसके घर पहुँच गयी "वाणी", घर जाकर उसने आवाज़ लगाई "हां दिव्या, आ जाओ! मैं यही हूँ!" दिव्या की आवाज़ में हमेशा रहने वाली मिठास थी दिव्या: अब चलें हमारे घर! वाणी: सॉरी दिव्या! सर के आने के बाद मुझे गाड़ी सीखने जाना है! मैं नही चल सकती
दिव्या: अच्छा एक बार बाहर आना! वाणी उसके साथ बाहर आ गयी," बोल!"
दिव्या: तू चल ना प्लीज़. मुझे तुझे एक खेल सिखाना है वाणी उत्सुक हो गयी खेलने में उसको बहुत मज़ा आता था!," कैसा खेल!" दिव्या: नही, यहाँ नही बता सकती, अकेले में ही बता सकती हूँ!
वाणी: तो चल उपर! उपर बता देना!
दिव्या: उपर तो सर रहते हैं, वो आ गये तो?
वाणी: नही, वो तो 5 बजे की कहकर गये हैं, अभी तो 2 ही बजे हैं! चल जल्दी चल! दोनों भागती हुई उपर चली गयी उपर जाकर उन्होने दरवाजा बंद कर लिया, एक खिड़की खुली थी
दिव्या: ये भी बंद कर दे!
वाणी: अरे इसकी कोई ज़रूरत नही है, कोई आएगा तो सीढ़ियों से ही दिख जाएगा; फिर ऐसा भी क्या खेल है जो तू इतना डर रही है
दिव्या: देख बुरा मत मानना, ये छुप कर खेलने का ही खेल है, पर मज़ा बहुत आता है
वाणी: ऐसा कौनसा खेल है?
दिव्या: शादी के बाद वाला खेल! वाणी को पता ही नही था की शादी के बाद कोई खेल भी खेला जाता है उसको किसी ने बताया ही नही आज तक! वो उत्सुक हो उठी, ऐसा खेल खेलने के लिए," चल जल्दी सीखा ना"
दिव्या: देख वैसे तो ये खेल लड़के के साथ खेला जाता है पर..... वाणी ने बीच में ही टोक दिया," तो सर को आने दो!" दिव्या उसकी बात पर हँसी," धात! ऐसा फिर मत कहना.... पर में तुझ खेल सीखा सकती हूँ...."
वाणी: तो सीखा ना, इतनी बातें क्यूँ कर रही है........ वाणी ने आँखें बंद कर ली; दिव्या ने राकेश की तरह से ही वाणी के पीछे जाकर उसकी मदभरी छातियों को हल्के से दबा दिया वाणी उछल पड़ी," ये क्या कर रही है तू" हां, मज़ा तो उसको आया था; ये मज़ा तो वो ले चुकी थी सर के हाथो से!
दिव्या: तू बस अब टोक मत, यही तो खेल है! वाणी हँसने लगी, उसके बदन में गुदगुदी सी होने लगी,"ठीक है" और उसने फिर आँखें बंद कर ली दिव्या ने इस बार उसके टॉप में हाथ डाल दिया और उसको खेल का पहला भाग सिखाने लगी. वाणी मारे गुदगुदी के मरी जा रही थी. वह रह रह कर उच्छल पड़ती! उसको बहुत मज़ा आ रहा था; उसका चेहरा धीरे धीरे लाल होने लगा! अब दिव्या उसको छ्चोड़ कर बोली," अब तू इधर मुँह कर ले; तू मुझसे खेल और में तुझसे खेलूँगी." अब लेज़्बियेनिज़्म अपने चरम पर था दोनों एक दूसरे की चुचियों को मसल रही थी एक दूसरे के लबों से लब टकरा रही थी; दोनों ही मस्त हो चुकी थी, बीच-बीच में दोनों सीढ़हियों की और भी देख लेती वाणी: तू तो कह रही थी की ये खेल लड़के के साथ खेला जाता है; इसमें लड़के की क्या ज़रूरत है.... वो साथ साथ 'खेल' भी रही थी
दिव्या: पहला भाग तो चल जाता है, पर दूसरा भाग लड़के के बिना नही हो सकता
वाणी: वो कैसे?
दिव्या: चल बताती हूँ; बेड पर लेट जा...... और वाणी लेट गयी..! दिव्या ने वाणी का स्कर्ट उपर उठा दिया और उसकी कच्छि को नीचे कर दिया.... वाणी को अजीब सा लग रहा था पर वो ये खेल पूरा खेलना चाहती थी.... दिव्या वाणी की चूत देखकर जल सी गयी; उसकी क्यूँ नही है ऐसी......वैसी तो शायद दुनिया में किसी की नही थी दिव्या ने वाणी की चूत पर अपने होंट सटा दिए... वाणी भभक उठी.... उसको कल रात की याद ताज़ा हो गयी जब वो....... सर की 'टाँग' पर बैठी थी... वाणी की आँखों में मस्ती भरती जा रही थी.... उसने मस्त अंदाज में पूछा....," तूने कहाँ सीखा री ये खेल!" "सरपंच के लड़के से!" "राकेश से" वाणी बहकति जा रही थी" "हां वो आज 4 बजे फिर आएगा.... तुझे भी खेलना है क्या पूरा खेल? चलना मेरे साथ.....3:30 बजे चलेंगे.... घर पर कोई नही है... रात को आएँगे! हां मुझे भी खेलना है पूरा खेल मैं भी चालूंगी तेरे साथ.......
अपनी मस्ती में सिर से पैर तक डूबी नवयौवनाओं को शमशेर के सीढ़ियाँ चढ़ने की आवाज़ भी सुनाई नही दी शमशेर ने खिड़की से उनके प्रेमलाप को सुना; वो वापस जाने ही वाला था की जाने क्या सोचकर उसने दरवाजा खोल दिया ..........? शमशेर को देखते ही दोनों का चेहरा फक्क रह गया वाणी तो इतनी डर गयी की अपने को ढ़हकना ही भूल गयी........ यूँ ही पड़ी रही! शमशेर उन दोनों को बिना किसी भाव के देख रहा था वाणी को अहसास हुआ की जैसे उनकी दुनिया ही ख़तम हो गयी.... करीब एक मिनिट बीत जाने पर दिव्या को वाणी के नंगेपन का अहसास हुआ और उसने वाणी की स्कर्ट नीचे ख्हींच दी वाणी को पता चल चुका था वह जो भी कर रही थी, बहुत ग़लत था दिव्या तो सिर्फ़ पकड़े जाने के डर से काँप रही थी, वो भी उनके सर के द्वारा!.... पर वाणी का तो जैसे उस एक पल में ही सब ख़तम हो गया..... उसके सर..... उसके अपने सर ने उनको ग़लत बात करते देख लिया.. वो अब भी एकटक सर को ऐसे ही देखे जा रही थी.... जैसे पत्थर बन गयी हो! शमशेर ने दिव्या की और देखा और कहा जाओ!.... पर वह हिली तक नही! शमशेर ने फिर कहा," दिव्या, अपने घर जाओ" उसने अपना सिर नीचे झुकाया और जल्दी-जल्दी वहाँ से निकल गयी. अब शमशेर ने वाणी की और देखा..... ऐसे तो कभी सर देखते ही ना थे उसको..... वो तो उनकी अपनी थी..... उनकी अपनी वाणी! "वाणी" नीचे जाओ! वाणी उठी और अपने भगवान से लिपट गयी...... उसकी आँखों में माफी माँगने का भाव नही था.... ना ही उसको पकड़े जाने की वजह से मिल सकने वाली सज़ा का डर..... उसको तो बस शमशेर के दिल से दूर हो जाने का डर था..... उसने 'अपने' सर को कसकर पकड़ लिया! शमशेर ने वाणी की बाहों के घेरे से खुद को आज़ाद कर कहा " वाणी, नीचे जाओ!" वाणी इस तरह रो रही थी जैसे उसका बच्चा मर गया हो... वा पीछे देखती देखती.... रोती बिलखती नीचे चली गयी! नीचे जाते ही दिशा ने उसको इस तरह रोते देखा तो भाग कर बाहर आई,"क्या हुआ छुटकी!" वाणी कुछ ना बोली.... बस रोती रही...... एकटक उपर देखती रही दिशा ने उसको कसकर अपने सीने से भीच लिया और उपर देखने लगी....... दिशा वाणी को अंदर ले गयी...." बता ना छुटकी क्या हुआ?" वाणी ने और ज़ोर से सुबकना शुरू कर दिया दिशा ने उसके गालों पर बह रही मोतियों की धारा को अपनी चुननी से सॉफ किया, पर वो बरसात रुकने का नाम ही नही ले रही थी....," बता ना वाणी; ऐसा क्या हुआ जो तू मुझे भी नही बता सकती मैं तो तेरी दीदी हूँ ना!" दिशा के मंन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे.... जिस तरह से वाणी रो रही थी, उसके शक़ को और हवा मिल रही थी.... छुटकी सर से कुछ ज़्यादा ही चिपक के रहती थी कहीं सर ने उसकी मासूमियत का फ़ायदा तो नही उठा लिया.... ," छुटकी, मुझे सिर्फ़ ये बता दे की कोई 'ग़लत बात है क्या, जो तू मुझे बताने से हिचक रही है!" वाणी ने सुबक्ते हुए ही अपना सिर हां में हिला दिया
दिशा का पारा गरम हो गया, जिसस आदमी को वो 'अपने के रूप में.......," क्या सर ने...." वाणी ने दिशा की बात को पूरा ही नही होने दिया.... सर का नाम सुनते ही उसने दिशा के मुँह पर अपने कोमल हाथ रख दिए और चीत्कार कर उठी. वह अपनी दीदी से बुरी तरह लिपट गयी अब दिशा....'सब कुछ समझ चुकी थी!.... उसके चेहरे पर नफ़रत और कड़वाहट तैरने लगी.... अब उसे 'सर; सर नही बल्कि एक सुंदर रूप धारण किए हुए कोई बाहरूपिया शैतान लग रहा था...... वह अपने दिल में हज़ारों.... लाखों.... गालियाँ और बददुआयं भर कर उपर चली गयी.... वाणी का भी उसके साथ ही जाने का मॅन था.... पर अब उसके सर 'अपने नही रहे!' दिशा ने उपर जाकर धक्के के साथ दरवाजा खोल दिया.... शमशेर आराम से तकिये पर सिर टिकाए कुछ सोच रहा था.... हमेशा की तरह एक दम शांत... एक दम निसचिंत! "कामीने!" दिशा ने सिर को उसकी औकात बताई शमशेर ने उसकी और देखा, पर कोई प्रतिक्रिया नही दी, वह ऐसे ही शांत बैठा रहा. उसकी यही अदा तो सबको उसका दीवाना बना देती थी... पर आज दिशा उसकी इश्स 'अदा' पर बिलख पड़ी," हराम जादे, मैं तुझे......" दिशा उसके पास गयी और उससे कॉलर से पकड़ लिया..... उसके मुँह से और कुछ ना निकला... "क्या हुआ?" शमशेर ने शांत लहजे में ही उत्तर दिया.... उसका कंट्रोल जबरदस्त था... उसके चेहरे पर दिशा को पछ्तावे या शर्मिंदगी का कोई चिन्ह दिखाई नही दिया.... "निकल जा यहाँ से! मेरे मामा मामी के आने से पहले... नही तो तुझे.... तुझे जान से मार दूँगी..." दिशा ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर ज़मीन पर थूका और पैर पटकते हुए नीचे चली गयी..... वह चाँदी जैसी दिख रही थी. शमशेर ने अपना लॅपटॉप खोला और काम में लग गया.... नीचे जाकर दिशा ने अब तक रो रही वाणी को अपने दहक रहे सिने से लगाया," बस कर छुटकी, उस हराम जादे को मैने.....! वाणी उसको अवाक देखती रह गयी. उसके आँसू जैसे एक्दम सूख गये.... वा सोच रही थी दीदी किस 'हराम जादे' को गाली दे रही है,"क्या हुआ दीदी?" दिशा की आँखों में जैसे खून था," मैने उसको घर छोड़कर भाग जाने को कह दिया है!" "मगर...."वाणी हैरान थी, ये क्या कह रही हैं दीदी 'अपने सर ' के बारे में," उन्होने क्या कर दिया दीदी?" अब की बार निशब्द होने की बारी दिशा की थी...." वो तुझे.... सर ने तेरे साथ कुछ नही किया.....?" "नही दीदी.... उन्होने तो मेरे को धमकाया भी नही....." सारा गेम ही उलट गया.... अब दिशा सुबक रही थी और वाणी उससे पूछ रही थी,"क्या हुआ दीदी? तुमने सर को क्या कह दिया?" दिशा के पास वाणी को बताने लायक कुछ नही था ये उसने क्या कर दिया! जिसकी तस्वीर वो अपने दिल के आईने में देख रही थी... उसी के दिल में उसने हज़ारों काँटे चुबा दिये; अपमान के..... ज़िल्लत के.... और नफ़रत के! "मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ होता है?", दिशा के मन में विचारों का तूफान सा उसको अंदर तक झकझोर रहा था...! पहले उसने स्कूल में सर की बेइज़्ज़ती की.... और जब....अब मुश्किल से उसको लगने लगा था कि सर उस बात को भूल चुके हैं तो....," ये मैने क्या कर दिया वाणी!" "दीदी, बताओ ना क्या हो गया!?" वाणी अब उसके आँसू पोछ रही थी....! दिशा की आँखें लाल हो चुकी थी.... लाल तो पहले से ही थी मारे गुस्से के! अब तो बस उनका भाव बदल गया था... अब उन्न मोटी-मोटी आँखों में पाश्चाताप था..... ग्लानि थी.... और शमशेर के दिल से लग कर आँसू लुटाने की प्यास थी.... एक तड़प थी उसकी छाति से चिपक कर देखने की और एक भूख़ भी थी...... वो औरत की तरह सोच रही थी; लड़की की तरह नही.... दिशा ने वाणी का हाथ पकड़ा और उसको उपर ले गयी.... खिड़की से उन्होने देखा शमशेर आँखें बंद किए दीवार से सटा बैठा था.....बिल्कुल शांत......बिल्कुल निशचिंत..... उसके चेहरे पर झलक रहे तेज़ का सामना करने की दोनों में से किसी में हिम्मत नही थी..... दोनों ने एक दूसरे को देखा..... और उल्टे पाँव लौट गयी..... नीचे.... अब दोनों रो रही थी.... एक दूसरे से चिपक कर.... अब कोई किसी से वजह नही पूछ रहा था... हां आँसू ज़रूर पोंछ रही थी.... एक दूसरे के!.... सुबक्ते हुए ही वाणी ने दिशा से कहा," दीदी! अब सर हमसे कभी बात नही करेंगे ना!" "तू चुप कर छुटकी; आजा, सोजा!", दिशा ने वाणी को अपने साथ खाट पर लिटा लिया, वाणी ने अपनी टाँग दिशा के पेट पर रख दी और आँखें बंद कर ली ना जाने कब वो सर के ख्यालों में खोई खोई सो गयी.... दिशा सीधी लेटी हुई शुन्य में घूरे जा रही थी वो दिशा से पूछना चाहती थी की असल में हुआ क्या था! पर वो वाणी को अभी और दुखी नही करना चाहती थी.... थोडी देर बाद ही उसके मामा मामी आ गये," आ! दिशा बेटी आज तो सारा बदन टूट रहा है! इतना काम था खेत में....ला जल्दी से खाना लगा दे खाकर लेट जायें, ... ये वाणी अभी से कैसे सो गयी...." "मामा, इसकी तबीयत थोडी खराब है... मैने गोली देकर सुला दिया है...." "आज उपर नही गयी ये!, उतर गया ए.सी. का भूत" " नही....वो सर ने ही बोल दिया की बुखार में ए.सी. ठीक नही रहेगा"... आज इसको नीचे ही सुला दो!" "और तुम?" मामा ने उसकी मॅन को परखने की कोशिश की!" जैसे उसको पता हो; इनका कोई चक्कर है... "म्*म्म...मैं भी नीचे ही सोऊगी... और क्या में अकेली जाउन्गि"..... मॅन में वो सोच रही थी.... काश में अकेली जा सकती! "हूंम्म... तुम समझदार हो बेटी"..मामा ने कहा "खाना खा लिया इसने!" मामी ने दिशा से पूछा,
दिशा: हां मामी, और मैने भी खा लिया.... दिशा झूठ बोल रही थी... उसको पता था उसकी तरह वो भी खाना नही खा पाएगी... "और सर तो 8:00 बजे खाते हैं"... तू उन्हे खाना दे आना... हम तो अब सो रहे हैं" मामा ने उठते हुए कहा... दिशा सोचने लगी "मैं उपर कैसे जाउ?"....... करीब 8:00 बजे; दिशा सोच-सोच कर परेशान थी की अब उसको 'सर' के सामने जाना पड़ेगा... उसने टूटे हुए पैरों से सीढ़िया चढ़ि... शमशेर ने उसको खाना लेकर आते खिड़की से देख लिया था शायद! जैसे ही वा दरवाजे के सामने जाकर रुकी; अंदर से सर की आवाज़ आई," आ जाओ दिशा!" दिशा की पहली समस्या तो हल हुई....वो सोच रही थी वो अंदर कैसे जाएगी? वो अंदर चली गयी... सिर झुकाए! उसने टेबल पर खाना रखा और जाने लगी...."दिशा!" वह कठपुतली की तरह रुकी और पलट गयी....उसकी नज़रे झुकी हुई थी...शर्म के मारे!
शमशेर: उपर देखो! मेरी तरफ.... दिशा ने जैसे ही उपर देखा.... उसकी आँखें दबदबा गयी... वो छलक उठी थी.... एक आँसू उसके गालों से होता हुआ उसके होंटो पर जाकर टिक गया; जैसे कहना चाहता हो,"मैं प्यार का आँसू हूँ, मुझे चखकर देखो......वो आँसू शमशेर के लिए थे.... शमशेर के चखने के लिए... दिशा ने शमशेर को देखा, वो अब भी मुस्कुरा रहा था...," इधर आओ, मेरे पास!" दिशा उसके करीब चली गयी... आज वो जो भी कहता वो कर देती....जो भी माँगता....वो दे देती! शमशेर ने उसकी कलाई पकड़ ली.....और तब शमशेर को कुछ कहने की ज़रूरत नही पड़ी.......वो घुटने मोड़ कर .... उसकी गोद में जा गिरी.... "सॉरी!" दिशा ने आगे 'सर' नही कहा. उसकी आँखों में अब भी नमी थी... वो निश्चय कर चुकी थी.... अब शमशेर के प्रति अपनी भावना नही छिपयेगि....चाहे उसका यार उसको जान से मार डाले... उसने शमशेर की आँखो में आँखें डालकर दोहराया....."सॉरी!"... उसके लब थिरक रहे थे....प्यार में... शमशेर को भी पता नही क्यूँ पहली बार किसी के उससे प्यार के बारे में इतनी देर से पता चला... शायद पहले प्यार'...'प्यार' नही सिर्फ़ वासना थी... " लगता है तुम्हे मुझसे प्यार हो गया है?" "यस, आइ लव यू!" दिशा ने एलान कर दिया.... इस बार उसके होंट नही कांपे, सच्चाई पर जो अडिग थे! शमशेर ने अपने होंटो से उसके होंटो पर ठहरे 'उस्स' आँसू को चखा.... वो सच में ही प्यार का आँसू था दिशा ने अपने आपको शमशेर के अंदर समाहित कर लिया.... उसको अब कोई डर नही था... कुछ देर वो निशब्द एक दूसरे में समाए रहे....फिर शमशेर ने कहा," कल रात को यहीं आ जाना.... सोने के लिए....मेरे साथ" दिशा को उससे अलग होते हुए अजीब सा लग रहा था... एक दिन का इंतज़ार मानो सालों का इंतज़ार था... पर उसका दिल उछल रहा था... सीढ़ियों से उतरते हुए... उसकी छातियो के साथ.....
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